गलत सोच का विरोध कीजिए!
गलत सोच का विरोध कीजिए!
कुलपिता अय्यूब पर जब मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, तो उससे हमदर्दी जताने और उसे दिलासा देने के लिए उसके तीन दोस्त आए। वे थे, एलीपज, बिलदद और सोपर। (अय्यूब 2:11) उन तीनों में से एलीपज बहुत रुतबेवाला था और शायद उम्र में भी सबसे बड़ा था। सबसे पहले उसी ने बात करनी शुरू की और दूसरों के मुकाबले वह देर तक बोला। एलीपज के तीन भाषणों से हमें उसकी सोच के बारे में क्या पता चलता है?
एलीपज अपने साथ हुई एक अलौकिक घटना को याद करते हुए कहता है: “एक आत्मा मेरे साम्हने से होकर चली; और मेरी देह के रोएं खड़े हो गए। वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहिचान न सका। परन्तु मेरी आंखों के साम्हने कोई रूप था; पहिले सन्नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुन पड़ा।” (अय्यूब 4:15, 16) यह आत्मा क्या थी जिसने एलीपज की सोच पर असर किया था? एलीपज ने आगे जो कड़वे शब्द कहे, उनसे पता चलता है कि यह आत्मा परमेश्वर का कोई धर्मी स्वर्गदूत हो ही नहीं सकता। (अय्यूब 4:17, 18) दरअसल वह एक दुष्ट आत्मिक प्राणी था। और उसी आत्मिक प्राणी के बहकावे में आकर एलीपज और उसके दोनों साथियों ने यहोवा के बारे में गलत बातें कही थी। यही वजह है कि यहोवा ने उन्हें झिड़का। (अय्यूब 42:7) जी हाँ, एलीपज पर दुष्टात्मा का असर था। उसकी बातों से पता चलता है कि उसकी सोच परमेश्वर की सोच के खिलाफ थी।
एलीपज की बातों से किन गलत विचारों का पता लगता है? हमें गलत सोच से क्यों खबरदार रहना चाहिए? और इसका विरोध करने के लिए हम क्या कदम उठा सकते हैं?
“वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता”
अपने तीनों भाषणों में एलीपज ने यह विचार पेश किया कि परमेश्वर जल्लाद है और उसके सेवक चाहे जितना भी जतन कर लें, वे कभी उसे खुश नहीं कर पाएँगे। एलीपज ने अय्यूब से कहा: “देख, वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता, और अपने स्वर्गदूतों को मूर्ख ठहराता है।” (अय्यूब 4:18) उसने परमेश्वर के बारे में बाद में कहा: “वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है।” (अय्यूब 15:15) उसने पूछा: “क्या तेरे धर्मी होने से सर्वशक्तिमान सुख पा सकता है?” (अय्यूब 22:3) एलीपज के इस विचार से बिलदद भी सहमत था, तभी उसने कहा: “देख, [परमेश्वर की] दृष्टि में चन्द्रमा भी अन्धेरा ठहरता, और तारे भी निर्मल नहीं ठहरते।”—अय्यूब 25:5.
हमें खबरदार रहना होगा कि कहीं हम इस तरह की सोच रखने न लगें। वरना हमें यह लगेगा कि परमेश्वर हमसे हद-से-ज़्यादा की माँग करता है। ऐसी सोच यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को खतरे में डाल सकती है। इसके अलावा, ज़रा सोचिए अगर हम ऐसी सोच को अपना लेते हैं तो अनुशासन मिलने पर हम कैसा रवैया दिखाएँगे? हम नम्रता से अनुशासन कबूल करने के बजाय शायद मन-ही-मन “यहोवा से चिढ़ने” लगें और उसके लिए अपने दिल में नाराज़गी पालें। (नीतिवचन 19:3) इससे परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता टूट सकता है!
“क्या पुरुष से ईश्वर को लाभ पहुंच सकता है?”
परमेश्वर बहुत कठोर है, इस विचार से मिलता-जुलता एक और विचार यह है कि वह हम इंसानों को बिलकुल बेकार समझता है। एलीपज अपने तीसरे भाषण में यह सवाल करता है: “क्या पुरुष से ईश्वर को लाभ पहुंच सकता है? जो बुद्धिमान है, वह अपने ही लाभ का कारण होता है।” (अय्यूब 22:2) एलीपज के कहने का मतलब था कि परमेश्वर की नज़र में इंसान किसी लायक नहीं है। उसी तरह बिलदद ने यह दलील पेश की: “मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में धर्मी क्योंकर ठहर सकता है? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह क्योंकर निर्मल हो सकता है?” (अय्यूब 25:4) उनके कहने का यह मतलब था कि एक मामूली-सा इंसान अय्यूब, परमेश्वर की नज़रों में धर्मी ठहरने की सोच भी कैसे सकता था?
निराश करनेवाली भावनाएँ आज कुछ लोगों को आ घेरती हैं। इसके लिए कई बातें ज़िम्मेदार हो सकती हैं जैसे, उनकी परवरिश, ज़िंदगी के तनाव, या जाति-भेद का शिकार होना। इसके अलावा, शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ भी इंसान के आत्म-सम्मान को कुचलने की कोशिश करती हैं, क्योंकि ऐसा करने में उन्हें मज़ा आता है। अगर वे किसी इंसान को यकीन दिला दें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को खुश करना नामुमकिन है, तो वह निराश होकर बड़ी आसानी से हार मान सकता है। देखते-ही-देखते ऐसा इंसान सच्चाई से बहक सकता है, और यह भी हो सकता है कि वह अपने आपको जीवित परमेश्वर से दूर कर ले।—इब्रानियों 2:1; 3:12.
ढलती उम्र और खराब सेहत की वजह से हम राज्य की सेवा में शायद उतना न कर पाएँ जितना हम अपनी जवानी में करते थे। यह समझना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है कि शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ हमें यह महसूस कराना चाहती हैं कि हम यहोवा की सेवा में जो भी करते हैं, उससे वह खुश नहीं होता। हमें इस तरह की सोच का विरोध करना चाहिए।
गलत सोच का विरोध कैसे करें
इसके बावजूद कि अय्यूब की ज़िंदगी में शैतान बहुत-सी तकलीफें ले आया, अय्यूब ने कहा: “जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूंगा।” (अय्यूब 27:5) अय्यूब परमेश्वर से बेहद प्यार करता था, इसलिए उसने ठान लिया था कि वह अपनी खराई बनाए रखेगा फिर चाहे जो भी हो। इससे हम एक ऐसी ज़रूरी बात जान सकते हैं जो हमें गलत सोच का विरोध करने में मदद देगी। हमें इस बात को अच्छी तरह समझना होगा कि परमेश्वर हमसे कितना प्यार करता है और उसके प्यार के लिए सच्ची कदरदानी पैदा करनी होगी। इसके अलावा, ज़रूरी है कि हम यहोवा के लिए अपने प्यार को बढ़ाएँ। इसके लिए हमें परमेश्वर के वचन का बाकायदा अध्ययन करना होगा और सीखी बातों पर प्रार्थना के साथ मनन करना होगा।
मिसाल के लिए, यूहन्ना 3:16 कहता है: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया।” यहोवा को सभी इंसानों से बेइंतिहा प्यार है और सदियों से वह उनके साथ जिस तरह पेश आया, वह उसके प्यार का सबूत देता है। गुज़रे ज़माने की मिसालों पर मनन करने से यहोवा के लिए हमारी कदर बढ़ेगी और हम उससे और भी प्यार करने लगेंगे। इससे हमें गलत सोच का विरोध करने में मदद मिलेगी।
गौर कीजिए कि यहोवा इब्राहीम के साथ उस वक्त कैसे पेश आया जब वह सदोम और अमोरा का नाश करनेवाला था। यहोवा के इस न्यायदंड के बारे में इब्राहीम ने आठ बार उससे पूछताछ की। मगर यहोवा एक बार भी उससे खीज नहीं उठा और ना ही उस पर बरस पड़ा। इसके बजाय, यहोवा ने इब्राहीम की सारी चिंताएँ दूर कीं और उसे तसल्ली दी। (उत्पत्ति 18:22-33) बाद में, जब परमेश्वर ने सदोम के विनाश से लूत और उसके परिवार को बचाया, तो लूत ने पहाड़ों पर भाग जाने के बजाय पास के एक शहर में पनाह लेने के लिए परमेश्वर से इजाज़त माँगी। तब यहोवा ने लूत से कहा: “देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी बिनती अंगीकार की है, कि जिस नगर की चर्चा तू ने की है, उसको मैं नाश न करूंगा।” (उत्पत्ति 19:18-22) क्या ये घटनाएँ दिखाती हैं कि यहोवा एक ज़ालिम और पत्थरदिल तानाशाह है? बिलकुल नहीं। उलटा ये घटनाएँ यहोवा के बारे में बिलकुल सही बात बताती हैं कि वह प्यार करनेवाला, कृपालु, दयालु और दूसरों का लिहाज़ करनेवाला राजा है।
बाइबल में हारून, दाऊद और मनश्शे के किस्से भी इस सोच को गलत साबित करते हैं कि परमेश्वर हमेशा दूसरों में गलतियाँ ढूँढ़ता है और कोई भी उसे खुश नहीं कर सकता। हारून ने तीन बड़े अपराध किए थे। उसने सोने का बछड़ा बनाया, मूसा की नुक्ताचीनी करने में अपनी बहन मरियम का साथ दिया और मरीबा में, परमेश्वर के नाम की महिमा नहीं की और उसे पवित्र नहीं ठहराया। इन सबके बावजूद, यहोवा ने उसके अच्छे गुणों पर ध्यान दिया और उसे अपनी मौत तक महायाजक की हैसियत से सेवा करने दिया।—निर्गमन 32:3, 4; गिनती 12:1, 2; 20:9-13.
2 शमूएल 12:9; 1 इतिहास 21:1-7.
दाऊद जब राजा था, तो उस दौरान उसने कुछ गंभीर पाप किए थे। उसने व्यभिचार किया, एक बेगुनाह इंसान के खिलाफ साज़िश करके उसे मरवा डाला और परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ जाकर अपनी प्रजा की गिनती ली। मगर यहोवा ने गौर किया कि दाऊद ने दिल से अपने पापों का पश्चाताप किया था और इसलिए यहोवा ने अपनी राज्य वाचा को नहीं तोड़ा और दाऊद को उसकी मौत तक हुकूमत करने दिया।—यहूदा के राजा मनश्शे ने बाल देवता के लिए वेदियाँ खड़ी कीं, अपने बेटों को आग में होम कर दिया, जादू-टोने को बढ़ावा दिया और मंदिर के आँगनों में झूठे देवताओं के लिए वेदियाँ बनायीं। मगर जब उसने सच्चे दिल से पश्चाताप किया तो यहोवा ने उसे माफ कर दिया, उसे कैद से आज़ाद किया और उसका राजपाट उसे लौटा दिया। (2 इतिहास 33:1-13) क्या यहोवा के इन कामों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि उसे कोई खुश नहीं कर सकता? हरगिज़ नहीं कह सकते!
झूठा दोष लगानेवाला खुद दोषी है
इस बात से हमें ताज्जुब नहीं करना चाहिए कि शैतान खुद उन बातों का दोषी है जिनका दोष वह यहोवा पर डालता है। दरअसल शैतान बेरहम और जल्लाद है। इसका एक पक्का सबूत है, बीते समयों में झूठे धर्मों का वह दस्तूर जिसमें बच्चों की बलि चढ़ायी जाती थी। धर्मत्यागी इस्राएलियों ने अपने बेटे-बेटियों को आग में जलाया था जबकि यह एक ऐसा काम था जिसके बारे में यहोवा कभी सोच भी नहीं सकता था।—यिर्मयाह 7:31.
तो हमारे अंदर गलतियाँ ढूँढ़नेवाला यहोवा नहीं बल्कि शैतान है। प्रकाशितवाक्य 12:10 शैतान के बारे में कहता है कि वह ‘हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला है, जो रात दिन हमारे परमेश्वर के साम्हने उन पर दोष लगाया करता है।’ दूसरी तरफ यहोवा के बारे में भजनहार ने अपने गीत में कहा: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? परन्तु तू क्षमा करनेवाला है।”—भजन 130:3, 4.
जब गलत सोच नहीं रहेगी
ज़रा सोचिए, उस वक्त स्वर्गदूतों ने कैसी चैन की साँस ली होगी जब शैतान इब्लीस और उसकी दुष्टात्माओं को स्वर्ग से खदेड़ दिया गया था! (प्रकाशितवाक्य 12:7-9) इसके बाद से ये दुष्टात्माएँ, स्वर्ग में दूतों से बने यहोवा के परिवार में किसी तरह का खलल पैदा नहीं कर सकती थीं।—दानिय्येल 10:13.
धरती पर जीनेवाले इंसानों को भी भविष्य में ऐसी ही खुशियाँ मिलेंगी। जल्द ही वह समय आनेवाला है जब स्वर्ग का एक दूत, जिसके पास अथाह कुंड की चाबी और एक बड़ी ज़ंजीर होगी, वह शैतान और उसकी दुष्टात्माओं को बाँधकर अथाह कुंड में बंद कर देगा। यहाँ से वे हम इंसानों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएँगे। (प्रकाशितवाक्य 20:1-3) तब हमें कितनी राहत मिलेगी!
उस वक्त के आने तक हमें गलत सोच से खबरदार रहना होगा। जब भी हमें लगता है कि गलत विचार हमारे अंदर पनप रहे हैं, तो हमें तुरंत यहोवा के प्यार के बारे में सोचना चाहिए जिससे हम गलत सोच का विरोध कर पाएँगे। तब ‘परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे हैं, हमारे हृदय और हमारे विचारों को सुरक्षित रखेगी।’—फिलिप्पियों 4:6, 7.
[पेज 26 पर तसवीर]
अय्यूब ने गलत सोच का विरोध किया
[पेज 28 पर तसवीर]
लूत ने अपने तजुरबे से जाना कि यहोवा दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ करनेवाला राजा है