यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर चलते रहिए
यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर चलते रहिए
“जो कोई यह कहता है, कि मैं [परमेश्वर] में बना रहता हूं, उसे चाहिए, कि आप भी वैसा ही चले जैसा वह [यीशु] चलता था।”—1 यूहन्ना 2:6.
1, 2. यीशु की ओर ताकते रहने का क्या मतलब है?
प्रेरित पौलुस ने लिखा: “वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें। और विश्वास के कर्त्ता [“अधिनायक,” नयी हिन्दी बाइबिल] और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें।” (इब्रानियों 12:1, 2) वफादारी की राह पर बने रहने के लिए ज़रूरी है कि हम यीशु मसीह की ओर ताकते रहें।
2 मसीही यूनानी शास्त्र में जिस यूनानी शब्द के लिए “ताकते रहें” इस्तेमाल किया गया है, उसका मतलब है, “किसी चीज़ पर से अपना ध्यान भटकने न देना,” या “अपनी नज़र गढ़ाए रखना।” इस बारे में ज़्यादा जानकारी देते हुए एक किताब कहती है: “एक यूनानी धावक के लिए अपनी आँखें मंज़िल पर लगाए रखना बेहद ज़रूरी था, क्योंकि जिस पल वह अपनी नज़र फेरकर भीड़ को देखने लगता उसी पल उसकी रफ्तार धीमी पड़ जाती। एक मसीही के साथ भी ऐसा ही होता है।” अगर हमारा ध्यान गैर-ज़रूरी बातों की तरफ भटकने लगे, तो हम आध्यात्मिक तरक्की नहीं कर पाएँगे। इसलिए हमें अपने अधिनायक, यीशु मसीह की ओर ताकते रहना चाहिए। किस मकसद से हमें उसकी ओर ताकना चाहिए? जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “अधिनायक” किया गया है, उसका अर्थ है, “प्रमुख अगुवा, जो हर काम में अगुवाई करता है और इस तरह सबके लिए मिसाल कायम करता है।” तो यीशु की ओर ताकते रहने का मतलब है उसकी मिसाल पर चलना।
3, 4. (क) यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर चलने के लिए क्या ज़रूरी है? (ख) हमें किन सवालों पर गौर करना चाहिए?
3 बाइबल हमें बताती है: “जो कोई यह कहता है, कि मैं [परमेश्वर] में बना रहता हूं, उसे चाहिए, कि आप भी वैसा ही चले जैसा वह [यीशु] चलता था।” (1 यूहन्ना 2:6) जिस तरह यीशु ने अपने पिता की आज्ञाएँ मानी, हमें भी यीशु की आज्ञाओं को मानना चाहिए और इस तरह परमेश्वर के प्यार में बने रहना चाहिए।—यूहन्ना 15:10.
4 यीशु के नक्शे-कदम पर चलने के लिए ज़रूरी है कि हम उसे अपना प्रमुख अगुवा मानकर उसकी मिसाल को अच्छी तरह जानें और उसकी नकल करने में अपना भरसक करें। इस सिलसिले में हमें इन अहम सवालों पर गौर करने की ज़रूरत है: आज मसीह कैसे हमारी अगुवाई कर रहा है? किन तरीकों से हमें दिखाना चाहिए कि हम उसके नक्शे-कदम पर चलते हैं? यीशु मसीह के दिखाए नमूने पर सख्ती से चलने के क्या फायदे हैं?
मसीह अपने चेलों की अगुवाई कैसे करता है
5. स्वर्ग जाने से पहले यीशु ने अपने चेलों से क्या वादा किया था?
5 यीशु मसीह, पुनरुत्थान के बाद स्वर्ग लौटने से पहले अपने चेलों पर प्रकट हुआ और उसने उन्हें एक अहम काम सौंपा। उसने कहा: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।” हमारे प्रमुख अगुवे, यीशु ने उनसे यह भी वादा किया था कि वह हमेशा उनके साथ रहेगा और इस काम में मदद देता रहेगा। उसने कहा: “देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती 28:19, 20) आज, जगत के अंत के इस समय में यीशु मसीह किस तरह अपने चेलों के संग है?
6, 7. यीशु, पवित्र आत्मा के ज़रिए हमारी अगुवाई कैसे करता है?
6 यीशु ने कहा था: “सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।” (यूहन्ना 14:26) ठीक जैसे यीशु ने कहा था, आज हमें उसके नाम से पवित्र आत्मा दी जाती है जो हमारी अगुवाई करती है और हिम्मत बँधाती है। पवित्र आत्मा, आध्यात्मिक बातों के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ाती है और ‘परमेश्वर की गूढ़ बातों को भी’ समझने में हमारी मदद करती है। (1 कुरिन्थियों 2:10) इसके अलावा, परमेश्वर के ये गुण “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम” ‘आत्मा के फल’ हैं। (गलतियों 5:22, 23) हम पवित्र आत्मा की मदद से ही इन गुणों को अपने अंदर बढ़ा सकते हैं।
7 जब हम बाइबल का अध्ययन करते हैं और सीखी हुई बातों पर चलने की कोशिश करते हैं, तो यहोवा की आत्मा हमारी बुद्धि, समझ, प्रवीणता, ज्ञान, न्याय और विवेक को बढ़ाती है। (नीतिवचन 2:1-11) पवित्र आत्मा हमें आज़माइशों और परीक्षाओं के वक्त धीरज धरने में मदद देती है। (1 कुरिन्थियों 10:13; 2 कुरिन्थियों 4:7; फिलिप्पियों 4:13) मसीहियों को ज़ोर देकर बताया गया है कि वे ‘अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और पवित्रता को सिद्ध करें।’ (2 कुरिन्थियों 7:1) पवित्र आत्मा की मदद के बगैर क्या हम पवित्रता या शुद्धता के बारे में परमेश्वर की माँग पूरी कर सकते हैं? बिलकुल नहीं। तो यीशु आज जिन तरीकों से हमारी अगुवाई कर रहा है, उनमें से एक है पवित्र आत्मा। यहोवा परमेश्वर ने अपने बेटे को पवित्र आत्मा का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया है।—मत्ती 28:18.
8, 9. मसीह “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए कलीसिया की अगुवाई कैसे कर रहा है?
8 गौर कीजिए कि मसीह और किस तरीके से आज कलीसिया की अगुवाई करता है। अपनी उपस्थिति और जगत के अंत के बारे में बताते वक्त यीशु ने कहा: “वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराएगा।”—मत्ती 24:3, 45-47.
9 यहाँ बताया गया “स्वामी” यीशु मसीह है। और “दास” का मतलब धरती पर मौजूद अभिषिक्त मसीहियों का झुंड है। इस दास वर्ग को धरती पर यीशु के सारे काम-काज की देखरेख करने और समय पर आध्यात्मिक भोजन देने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” वर्ग के कुछ काबिल अध्यक्षों का एक शासी निकाय है, जो इस दास वर्ग के नुमाइंदे हैं। शासी निकाय, दुनिया-भर में होनेवाले प्रचार काम की निगरानी करता है और समय पर आध्यात्मिक आहार मुहैया कराता है। इस तरह आज मसीह, आत्मा से अभिषिक्त “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” वर्ग और उसके शासी निकाय के ज़रिए कलीसिया की अगुवाई कर रहा है।
10. प्राचीनों के बारे में हमारा रवैया कैसा होना चाहिए, और क्यों?
10 मसीह एक और तरीके से हमारी अगुवाई करता है। वह है, ‘मनुष्यों के रूप में दान’ यानी कलीसिया के प्राचीन या अध्यक्ष। इन अध्यक्षों को इसलिए ठहराया गया है ताकि “पवित्र लोग सिद्ध हो [“सुधारे,” NW] जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए।” (इफिसियों 4:8, 11, 12) इन अध्यक्षों के बारे में इब्रानियों 13:7 कहता है: “जो तुम्हारे अगुवे [हैं], और जिन्हों ने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो।” प्राचीन, कलीसिया के अगुवे हैं। वे यीशु मसीह के आदर्श पर चलते हैं, इसलिए उनका विश्वास हमारे लिए एक मिसाल बन जाता है। (1 कुरिन्थियों 11:1) अगर हम प्राचीनों का कहना मानें और उनके अधीन रहें तो हम प्राचीनों के इस इंतज़ाम के लिए अपनी कदर दिखा रहे होते हैं।—इब्रानियों 13:17.
11. आज मसीह किन तरीकों से अपने चेलों की अगुवाई कर रहा है, और मसीह के नक्शे-कदम पर चलने में क्या शामिल है?
11 तो जैसा हमने देखा, आज यीशु मसीह पवित्र आत्मा, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और कलीसिया के प्राचीनों के ज़रिए अपने चेलों की अगुवाई कर रहा है। मसीह के नक्शे-कदम पर चलने के लिए इन इंतज़ामों को सही-सही समझना और उनके अधीन रहना ज़रूरी है। इतना ही नहीं, यीशु जिस ढंग से अगुवाई करता और अधीनता दिखाता है, उस मिसाल पर भी हमें चलना चाहिए। प्रेरित पतरस ने लिखा: “तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।” (1 पतरस 2:21) यीशु के सिद्ध आदर्श पर चलने का हम पर क्या असर होना चाहिए?
अधिकार का इस्तेमाल करते वक्त कोमलता दिखाइए
12. किस मामले में मसीह के आदर्श पर चलने में कलीसिया के प्राचीनों को खास दिलचस्पी होगी?
12 यीशु को अपने पिता से इतना बड़ा अधिकार मिला था, जितना किसी और को नहीं मिला है, फिर भी उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल करते वक्त हमेशा कोमलता दिखायी। कलीसिया के सभी लोगों को, और खासकर अध्यक्षों को चाहिए कि वे अपनी “कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट” करें। (फिलिप्पियों 4:5; 1 तीमुथियुस 3:2, 3) प्राचीनों को कलीसिया पर कुछ हद तक अधिकार दिया गया है, इसलिए यह ज़रूरी है कि वे अपने अधिकार का इस्तेमाल करते वक्त मसीह के नक्शे-कदम पर चलें।
13, 14. परमेश्वर की सेवा में भाई-बहनों को मज़बूत करने के लिए प्राचीन, मसीह की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
13 यीशु अपने चेलों की सीमाओं को समझता था। उसने कभी उनसे हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं की। (यूहन्ना 16:12) यीशु ने उन्हें परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में ‘यत्न करने’ का बढ़ावा दिया, मगर उन पर कोई दबाव नहीं डाला। (लूका 13:24) यत्न करने में उसने खुद एक मिसाल पेश की और चेलों को ऐसा करने के लिए प्यार से उकसाया। उसी तरह आज मसीही प्राचीन, भाई-बहनों में दोष की भावना पैदा करके या उन्हें शर्मिंदा करके परमेश्वर की सेवा करने के लिए उन पर ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करते। इसके बजाय, वे भाई-बहनों का इस तरह हौसला बढ़ाते हैं कि यहोवा और यीशु के लिए, साथ ही पड़ोसी के लिए उनका प्यार उन्हें यहोवा की सेवा करने को उकसाता है।—मत्ती 22:37-39.
14 यीशु ने दूसरों पर धाक जमाकर अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल नहीं किया। उसने लोगों के लिए ऐसे स्तर नहीं ठहराए जिन पर चलना उनके लिए मुश्किल हो जाए, ना ही हज़ारों कायदे-कानून बनाए। इसके बजाय, वह मूसा की व्यवस्था के सिद्धांतों को इतनी अच्छी तरह समझाता था कि लोग उन सिद्धांतों को मानने के लिए खुद-ब-खुद उकसाए जाते थे। (मत्ती 5:27, 28) कलीसिया के प्राचीन, यीशु मसीह की मिसाल पर चलते हुए अपनी मन-मरज़ी से कोई नियम नहीं बनाते, ना ही दूसरों पर अपने विचार थोपने की कोशिश करते हैं। जब पहनावे, बनाव-श्रृंगार या मनोरंजन की बात आती है तो प्राचीन, बाइबल के इन सिद्धांतों पर जैसे, मीका 6:8; 1 कुरिन्थियों 10:31-33; और 1 तीमुथियुस 2:9, 10 तर्क करके भाई-बहनों के दिलों तक पहुँचने की कोशिश करते हैं।
हमदर्दी दिखाइए और माफ करने को तैयार रहिए
15. जब यीशु के चेलों ने गलतियाँ कीं, तो वह उनके साथ कैसे पेश आया?
15 मसीह के चेलों ने जब गलतियाँ कीं, तब वह उनके साथ जिस तरह से पेश आया, वह भी हमारे लिए एक मिसाल है। धरती पर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात को हुई दो घटनाओं पर गौर कीजिए। उस रात गतसमने बाग जाने के बाद, यीशु “पतरस और याकूब और यूहन्ना को अपने साथ ले गया” और उन्हें ‘जागते रहने’ के लिए कहा। इसके बाद वह “थोड़ा आगे बढ़ा, और भूमि पर गिरकर प्रार्थना करने लगा।” मगर जब वह वापस आया तो ‘उन्हें सोता हुआ पाया।’ तब यीशु ने क्या किया? उसने कहा: “आत्मा तो तैयार है, पर शरीर दुर्बल है।” (मरकुस 14:32-38) जी हाँ, यीशु ने पतरस, याकूब और यूहन्ना को फटकारने के बजाय उनसे हमदर्दी जतायी! उसी रात, पतरस ने तीन बार यीशु को पहचानने से इनकार कर दिया था। (मरकुस 14:66-72) इसके बाद यीशु, पतरस के साथ कैसे पेश आया? ‘प्रभु जी उठा और शमौन [पतरस] को दिखाई दिया।’ (लूका 24:34) बाइबल कहती है कि यीशु पहले “कैफा को तब बारहों को दिखाई दिया।” (1 कुरिन्थियों 15:5) यीशु, पतरस से नाराज़ नहीं था मगर जब उसने पतरस का पश्चाताप देखा तो उसे माफ कर दिया और उसकी हिम्मत बँधायी। बाद में यीशु ने उसे बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ भी सौंपी।—प्रेरितों 2:14; 8:14-17; 10:44, 45.
16. जब कोई भाई हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता या हमारे खिलाफ कोई गलती करता है, तो हम यीशु की तरह कैसे पेश आ सकते हैं?
16 हमारे भाई-बहन भी असिद्ध हैं, इसलिए जब वे हमारी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते या हमारे खिलाफ कोई गलती करते हैं, तो क्या हमें भी यीशु की तरह हमदर्दी नहीं दिखानी चाहिए और उन्हें माफ नहीं करना चाहिए? पतरस ने अपने मसीही भाइयों को यह कहकर उकसाया: “सब के सब एक मन और कृपामय और भाईचारे की प्रीति रखनेवाले, और करुणामय, और नम्र बनो। बुराई के बदले बुराई मत करो; और न गाली के बदले गाली दो; पर इस के विपरीत आशीष ही दो।” (1 पतरस 3:8, 9) लेकिन मान लीजिए कि हमने किसी भाई के खिलाफ गलती की है, मगर वह यीशु की तरह हमारे साथ हमदर्दी नहीं जताता या हमें माफ नहीं करता, तब हमें क्या करना चाहिए? ऐसे में भी हमारा फर्ज़ बनता है कि हम यीशु की मिसाल पर चलें। अगर यीशु हमारी जगह होता तो वह किस तरह पेश आता, वैसे ही हमें भी पेश आना चाहिए।—1 यूहन्ना 3:16.
राज्य के कामों को पहली जगह दीजिए
17. क्या दिखाता है कि यीशु ने परमेश्वर की मरज़ी को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दी थी?
17 एक और मामले में हमें यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर चलने की ज़रूरत है। वह है, परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी सुनाना। यह काम यीशु की ज़िंदगी का खास मकसद था। सामरिया में सूखार नाम के शहर के पास एक सामरी स्त्री को गवाही देने के बाद, यीशु ने अपने चेलों को यह बताया: “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।” (यूहन्ना 4:34) जैसे खाना शरीर को ज़रूरी खुराक, संतुष्टि और स्फूर्ति देकर ज़िंदा रखता है, उसी तरह अपने पिता की मरज़ी पूरी करना यीशु को ताकत देता था। अगर हम भी यीशु की तरह हर वक्त परमेश्वर की मरज़ी को पहली जगह दें, तो हमारी ज़िंदगी को भी एक मकसद और सच्ची खुशी मिलेगी।
18. बच्चों को पूरे समय की सेवा का बढ़ावा देने से क्या आशीषें मिलती हैं?
18 जो माता-पिता अपने बच्चों को पूरे समय की सेवा करने का बढ़ावा देते हैं, उन्हें और उनके बच्चों को बदले में ढेरों आशीषें मिलती हैं। एक पिता ने अपने जुड़वा बेटों को छुटपन से ही पायनियर सेवा का लक्ष्य रखने का बढ़ावा दिया। उसके दोनों बेटे पढ़ाई खत्म करने के बाद पायनियर बने। इससे पिता को जो खुशी मिली उसके बारे में वह लिखता है: “हमारे बेटों ने हमें निराश नहीं किया। एहसान-भरे दिल से हम कह सकते हैं कि ‘लड़के, यहोवा के दिए हुए भाग हैं।’” (भजन 127:3) और बच्चों को पूरे समय की सेवा करने से क्या फायदे मिलते हैं? पाँच बच्चों की एक माँ कहती है: “पायनियर सेवा की वजह से मेरे सभी बच्चे, यहोवा के साथ और भी करीबी रिश्ता बना पाए हैं और निजी अध्ययन करने की और भी अच्छी आदत पैदा कर पाए हैं। उन्होंने अपने समय का अक्लमंदी से इस्तेमाल करना और आध्यात्मिक बातों को हमेशा पहली जगह देना सीखा है। यह सच है कि उन सभी को ज़िंदगी में कई फेरबदल करने पड़े हैं, मगर उन्हें इस बात का कोई अफसोस नहीं कि उन्होंने यह रास्ता चुना।”
19. जवानों को अक्लमंदी से काम लेते हुए भविष्य के लिए क्या योजना बनानी चाहिए?
19 जवानो, आपने आगे क्या करने की सोची है? क्या आप किसी पेशे में महारत हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं? या पूरे समय की सेवा को अपना करियर बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं? पौलुस ने सलाह दी थी: “ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियों की नाईं नहीं पर बुद्धिमानों की नाईं चलो। और अवसर को बहुमोल समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं।” उसने आगे यह भी कहा: “इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो, कि प्रभु की इच्छा क्या है।”—इफिसियों 5:15-17.
वफादार रहिए
20, 21. यीशु ने अपनी वफादारी कैसे दिखायी और हम उसके उदाहरण पर कैसे चल सकते हैं?
20 यीशु के नक्शे-कदम पर चलने के लिए हमें उसके जैसी वफादारी दिखानी चाहिए। बाइबल उसकी वफादारी के बारे में यह कहती है: “[उस] ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। बरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।” यीशु हर वक्त यहोवा की हुकूमत का वफादार रहा। कैसे? उसके बारे में परमेश्वर की जो भी मरज़ी थी उसे पूरा होने के लिए उसने खुद को सौंप दिया। उसने इस हद तक परमेश्वर की आज्ञा मानी कि एक काठ पर दर्दनाक मौत मरना भी उसे मंज़ूर था। हमें भी यीशु के जैसा “स्वभाव” रखना चाहिए और परमेश्वर की मरज़ी को मानकर उसके वफादार रहना चाहिए।—फिलिप्पियों 2:5-8.
21 यीशु ने अपने प्रेरितों के साथ भी वफादारी निभायी। प्रेरितों में कई कमियाँ थीं, फिर भी उसने “अन्त तक” उनसे प्रेम किया। (यूहन्ना 13:1) उसी तरह, आज भले ही हमारे भाइयों में कई कमियाँ हों मगर हमें उनमें नुक्स निकालने की आदत नहीं बनानी चाहिए।
यीशु के दिखाए नमूने पर सख्ती से चलिए
22, 23. यीशु के दिखाए नमूने पर सख्ती से चलने के क्या फायदे हैं?
22 असिद्ध इंसान होने की वजह से हम अपने सिद्ध आदर्श, यीशु के नक्शे-कदम पर हू-ब-हू नहीं चल सकते। मगर हम उसके पद-चिन्हों पर चलने की जी-तोड़ कोशिश तो कर सकते हैं। इसके लिए हमें समझना होगा कि आज मसीह किन इंतज़ामों के ज़रिए हमारी अगुवाई कर रहा है, फिर उन इंतज़ामों के अधीन रहना होगा और उसके दिखाए नमूने का सख्ती से पालन करना होगा।
23 मसीह की मिसाल पर चलने से हमें बेशुमार फायदे मिलते हैं। जब हम अपना ध्यान अपनी ख्वाहिशों के बजाय परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में लगाते हैं, तो हमें जीवन में सच्चा सुख मिलता है। (यूहन्ना 5:30; 6:38) हमारा विवेक शुद्ध रहता है और हम दूसरों के लिए एक अच्छी मिसाल बनते हैं। यीशु ने उन सभी को जो ज़िंदगी के बोझ तले दबे हुए थे, यह न्यौता दिया कि वे उसके पास आएँ और विश्राम पाएँ। (मत्ती 11:28-30) जब हम यीशु के उदाहरण पर चलते हैं तो हमारी संगति से दूसरों को भी विश्राम मिलेगा। इसलिए आइए, हम सभी यीशु के नक्शे-कदम पर चलते रहें।
क्या आपको याद है?
• आज मसीह अपने चेलों की अगुवाई कैसे करता है?
• प्राचीन, परमेश्वर के दिए अधिकार का इस्तेमाल करने में मसीह के उदाहरण पर कैसे चल सकते हैं?
• जब दूसरे गलतियाँ करते हैं, तो उनके साथ पेश आते वक्त हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
• नौजवान, राज्य के कामों को पहली जगह कैसे दे सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 23 पर तसवीर]
मसीह की अगुवाई मानने में प्राचीन हमारी मदद करते हैं
[पेज 24, 25 पर तसवीरें]
जवानो, क्या आप आशीषों से भरी मसीही ज़िंदगी जीने के लिए योजना बना रहे हैं?