क्या आप यीशु की उपस्थिति के चिन्ह को देख पा रहे हैं?
क्या आप यीशु की उपस्थिति के चिन्ह को देख पा रहे हैं?
हममें से कोई नहीं चाहेगा कि हमें बड़ी बीमारी लग जाए या हमारे साथ कोई हादसा हो। इसके उलटा, ऐसी आफतों से बचने के लिए एक समझदार इंसान खतरे की निशानियाँ देखकर सावधान हो जाएगा और बचाव के लिए ज़रूरी कदम उठाएगा। यीशु मसीह ने एक खास चिन्ह के बारे में बताया था जिसे पहचानना हम सबके लिए ज़रूरी है। इस खास चिन्ह का पूरी दुनिया पर और हर इंसान पर असर होता, आप पर और आपके परिवार पर भी।
यीशु ने परमेश्वर के राज्य के बारे में बताया था जो इस धरती से बुराई का सफाया करके इसे एक खूबसूरत फिरदौस बना देगा। उसके चेलों को यह जानने में बहुत दिलचस्पी थी कि यह राज्य कब आएगा। इसलिए उन्होंने यीशु से पूछा: “तेरी उपस्थिति का और इस रीति-व्यवस्था के अन्त का क्या चिन्ह होगा?”—मत्ती 24:3, NW.
यीशु जानता था कि उसकी मौत और पुनरुत्थान के कई सदियों बाद उसे स्वर्ग में मसीहाई राज्य का राजा बनाया जाएगा ताकि वह इंसानों पर राज करे। यीशु को स्वर्ग में राजा ठहराया जाता और कोई भी इंसान इस घटना को देख नहीं सकता था। इसीलिए यीशु ने अपने चेलों को एक चिन्ह दिया जिससे वे समझ पाते कि वह राजा के तौर पर अब ‘उपस्थित’ है और ‘रीति-व्यवस्था का अंत’ बहुत करीब है। यीशु के बताए इस चिन्ह के कई पहलू हैं। इन सारे पहलुओं को एक-साथ पूरा होते देखकर चेले समझ पाते कि यीशु की उपस्थिति शुरू हो गयी है।
सुसमाचार की किताबों के लेखक मत्ती, मरकुस और लूका ने यीशु के जवाब को अपनी किताबों में बिलकुल सही-सही दर्ज़ किया है। (मत्ती, अध्याय 24 और 25; मरकुस, अध्याय 13; लूका, अध्याय 21) उस चिन्ह के बारे में बाइबल के दूसरे लेखकों ने और ज़्यादा जानकारी दी है। (2 तीमुथियुस 3:1-5; 2 पतरस 3:3, 4; प्रकाशितवाक्य 6:1-8; 11:18) जगह की कमी की वजह से हम इस लेख में यीशु के बताए चिन्ह के सभी पहलुओं पर खुलकर चर्चा नहीं कर सकते, मगर हम उस चिन्ह के पाँच अहम पहलुओं पर गौर करेंगे। आपके लिए यह जानकारी काफी फायदेमंद और ज़रूरी साबित होगी।—पेज 6 पर बक्स देखिए।
‘एक लड़ाई जिसने दुनिया बदल दी’
“जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा।” (मत्ती 24:7) जर्मनी के अखबार देर श्फीगल की रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 1914 से पहले लोगों का “मानना था कि एक सुनहरा भविष्य आनेवाला है, जब उन्हें ज़्यादा आज़ादी मिलेगी और हर तरफ तरक्की और खुशहाली होगी।” और फिर सबकुछ बदल गया। गेओ नाम की पत्रिका कहती है: “वह जंग जो अगस्त 1914 को शुरू हुई और नवंबर 1918 तक चलती रही, उसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। इस जंग ने पुराने युग को खत्म करके नए युग को जन्म दिया।” दुनिया के पाँच महाद्वीपों से छः करोड़ से भी ज़्यादा सैनिकों ने इस वहशियाना लड़ाई में हिस्सा लिया था। औसतन हर दिन करीब 6,000 फौजियों को मौत के घाट उतारा गया। इस युद्ध के बाद से, हर पीढ़ी के इतिहासकार, जो तरह-तरह की सरकारों के हिमायती रहे हैं, उन सबका यही मानना है कि “सन् 1914-1918 की लड़ाई ने दुनिया बदल दी।”
पहले विश्वयुद्ध ने इंसानी समाज को इतना बदलकर रख दिया है कि कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा और इसने इंसान को इस व्यवस्था के आखिरी दिनों में ला खड़ा किया है। बीसवीं सदी के बाकी सालों में युद्ध, लड़ाई-झगड़े और आतंकवादी हमले बढ़ते चले गए हैं। और आज इस 21वीं सदी की शुरूआत में भी हालात में कोई सुधार नहीं आया है। युद्ध के अलावा, चिन्ह के दूसरे पहलू भी साफ नज़र आ रहे हैं।
अकाल, महामारी और भूकंप
“जगह जगह अकाल पड़ेंगे।” (मत्ती 24:7) पहले विश्वयुद्ध के दौरान अकाल ने पूरे यूरोप को अपनी जकड़ में ले लिया था और तब से इंसान इसकी गिरफ्त से छूट नहीं पाया है। इतिहासकार ऐलन बुलक ने लिखा कि सन् 1933 में रूस और यूक्रेन में “भूख से तड़पते हज़ारों लोग गाँव के रास्तों पर भटकते दिखाई देते थे . . . और सड़कों के किनारे लाशों के ढेर लगे होते थे।” सन् 1943 में, पत्रकार टी. एच. वाइट ने चीन के हनॉन प्रांत में आए अकाल को खुद अपनी आँखों से देखा था। उसने लिखा: “अकाल के वक्त, हर चीज़ खानेलायक बन जाती है, इंसान का शरीर ज़िंदा रहने के लिए किसी भी चीज़ को खाकर हज़म कर लेता और काम चला लेता है। मगर सिर्फ मौत का खौफ ही एक इंसान को ऐसी चीज़ खाने के लिए मजबूर कर सकता है जो बिलकुल खानेलायक नहीं होती।” अफसोस की बात है कि हाल के सालों में, अफ्रीका में बार-बार अकाल पड़ता रहता है। हालाँकि धरती पर अन्न की इतनी पैदावार होती है कि यह सभी इंसानों के लिए काफी है, मगर ‘संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन’ का अनुमान है कि आज भी पूरी दुनिया में ऐसे 84 करोड़ लोग हैं जिन्हें भरपेट खाने को नहीं मिलता।
“जगह जगह . . . मरियां पड़ेंगी।” (लूका 21:11) स्यूटडॉइची ट्साइटुंग नाम का अखबार कहता है: “सन् 1918 में स्पैनिश इन्फ्लुएंज़ा ने करीब 2 से 5 करोड़ लोगों की जानें ले लीं, यह गिनती पहले विश्वयुद्ध और प्लेग से मारे गए लोगों की तादाद से भी ज़्यादा थी।” उसके बाद से मलेरिया, चेचक, टी.बी., पोलियो और हैजे जैसी बीमारियों ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है। और एड्स जिस तेज़ी से फैल रहा है, उसे देखकर दुनिया दहशत में पड़ गयी है। आज चिकित्सा-विज्ञान तरक्की की बुलंदियाँ छू रहा है, मगर यह देखकर हम चकरा जाते हैं कि बीमारियाँ अपनी जगह पर कायम हैं और उनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो गया है। इससे पहले इंसान के सामने ऐसी मुश्किल कभी नहीं थी, जहाँ इलाज के होते हुए भी लोग आम बीमारियों से मर रहे हैं। इससे साफ पता चलता है कि हमारा वक्त बहुत ही अनोखा है।
“भुईंडोल होंगे।” (मत्ती 24:7) पिछले 100 सालों के दौरान भूकंपों ने लाखों लोगों को मौत की नींद सुला दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 1914 के बाद से हर साल औसतन 18 ऐसे भूकंप आ रहे हैं जो इमारतों को नुकसान पहुँचाते हैं और ज़मीन में बड़ी-बड़ी दरारें पैदा करते हैं। और साल में एक बार ऐसा बड़ा और भीषण भूकंप ज़रूर आता है जो बड़ी-बड़ी इमारतों को गिराकर उन्हें मिट्टी में मिला देता है। आज टेकनॉलजी में इतनी तरक्की होने के बावजूद भी ऐसे हादसों में मरनेवालों की गिनती में कोई कमी नहीं हुई है। इसकी वजह यह है कि आज बहुत-से शहर, जहाँ आबादी तेज़ी से बढ़ रही है, वे ऐसी जगह पर हैं जहाँ भूकंप आने का खतरा है।
खुशी का पैगाम!
अंतिम दिनों के चिन्ह के ज़्यादातर पहलू, दर्दनाक घटनाओं के बारे में हैं। मगर यीशु ने इस चिन्ह में खुशी के एक पैगाम के बारे में भी बताया था।
“राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो।” (मत्ती 24:14) राज्य का सुसमाचार सुनाने का काम यीशु ने अपने दिनों में शुरू किया था। यह काम अंतिम दिनों के दौरान अपने आखिरी मुकाम पर पहुँचेगा। आज यह सचमुच हो रहा है। यहोवा के साक्षी, लोगों को बाइबल का संदेश सुना रहे हैं और जो बाइबल सीखना चाहते हैं उन्हें वे सीखी हुई बातें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लागू करने में मदद दे रहे हैं। फिलहाल, पूरी दुनिया में साठ लाख से भी ज़्यादा साक्षी 235 देशों में, 400 से भी ज़्यादा भाषाओं में प्रचार कर रहे हैं।
ध्यान दीजिए की यीशु ने यह नहीं कहा था कि दुनिया में मुसीबतों की वजह से लोगों की ज़िंदगी रुक जाएगी। ना ही उसने यह कहा कि पूरी दुनिया में चिन्ह का सिर्फ एक ही पहलू नज़र आएगा। इसके बजाय, उसने ऐसी ढेरों घटनाओं का ज़िक्र किया था, जो एक-साथ उस चिन्ह का हिस्सा होतीं। इसलिए सारी दुनिया के लोग उस चिन्ह को पहचान सकते, फिर चाहे वे कहीं भी क्यों न रहते हों।
यहाँ-वहाँ होनेवाली इक्का-दुक्का घटनाओं पर ध्यान देने के बजाय क्या आप यह समझ पा रहे हैं कि ये घटनाएँ एक ऐसे चिन्ह का हिस्सा हैं जिसके कई पहलू हैं और जो पूरी दुनिया के लिए खास मायने रखता है? आज धरती पर जो कुछ हो रहा है, उसका असर आप पर और आपके परिवार पर भी होता है। हम शायद पूछें, तो फिर आज क्यों बहुत कम लोग इस बात पर ध्यान देते हैं?
अपनी ख्वाहिशें ज़्यादा मायने रखती हैं
“तैरना मना है,” “सावधान! वोलटेज ज़्यादा है,” “गाड़ी धीरे चलाइए।” ये ऐसी कुछ चेतावनियाँ और चिन्ह हैं जिन्हें हम अकसर देखते हैं मगर उन पर ध्यान नहीं देते। भला क्यों? क्योंकि हम इस भुलावे में रहते हैं कि हमें बेहतर पता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं। मिसाल के लिए, हमें शायद लगे कि कानून ने जो हद ठहरायी है उससे कहीं तेज़ रफ्तार से गाड़ी चलाना गलत नहीं है। या हम पर तैरने का ऐसा जुनून सवार हो कि हम ऐसी जगह तैरने से खुद को रोक नहीं पाते जहाँ तैरना सख्त मना है। मगर ऐसे चिन्हों को नज़रअंदाज़ करना बेवकूफी है।
उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, इटली और स्विट्ज़रलैंड में बर्फ से ढके आल्प्स पहाड़ों पर कई पर्यटकों ने अपनी जान गँवायी है। इसकी वजह? स्कीइंग या स्नोबोर्ड के खेलों के लिए उनसे गुज़ारिश की गयी थी कि वे सिर्फ सुरक्षित रास्तों पर ही रहें। मगर, इन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करनेवाले अपनी जान से हाथ धो बैठे। स्यूटडॉइची ट्साइटुंग नाम का अखबार बताता है कि ऐसी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करनेवाले पर्यटकों का उसूल होता है: खतरों से खेलने में ही मज़ा है। अफसोस की बात है कि चेतावनी पर ध्यान न देने का अंजाम बहुत दर्दनाक हो सकता है।
आज किन वजहों से लोग यीशु के बताए चिन्ह को अनदेखा कर रहे हैं? शायद कुछ लोगों को धन-दौलत के लालच ने अंधा कर रखा है, कुछ ने बेरुखी की वजह से अपने मन को कठोर कर लिया है, कुछ कशमकश की वजह से कोई फैसला नहीं कर पाते, कुछ रोज़मर्रा की भाग-दौड़ से पस्त हैं, तो कुछ लोगों को अपनी बदनामी का डर है। क्या इनमें से कोई भी वजह आपको यीशु की उपस्थिति के चिन्ह पर ध्यान देने से रोक रही है? क्या इस चिन्ह को बूझने और उसके मुताबिक सही कदम उठाने में ही बुद्धिमानी नहीं होगी?
धरती पर फिरदौस में ज़िंदगी
आज बहुत-से लोग, यीशु की उपस्थिति के चिन्ह पर ध्यान दे रहे हैं। जर्मनी में, क्रिस्तियान नाम का एक जवान और उसकी पत्नी, दूसरों को मसीहाई राज्य के बारे में बताने में काफी समय बिताते हैं। वह लिखता है: “आज हम बहुत ही बुरे वक्त में जी रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि ये ‘अन्तिम दिन’ हैं।” फ्रैंक भी जर्मनी का रहनेवाला है। वह भी अपनी पत्नी के साथ लोगों को बाइबल से खुशखबरी सुनाता है। वह कहता है: “दुनिया की हालत को देखकर आज बहुत-से लोगों को यह चिंता खायी जा रही है कि पता नहीं आगे क्या होनेवाला है। हम बाइबल की ऐसी भविष्यवाणियाँ बताकर उनका हौसला बढ़ाते हैं, जो दिखाती हैं कि यह धरती एक फिरदौस बना दी जाएगी।” ऐसा करके क्रिस्तियान और फ्रैंक, यीशु के बताए चिन्ह के एक पहलू को पूरा करने में हाथ बँटा रहे हैं। वह है, राज्य की खुशखबरी का ऐलान करना।—मत्ती 24:14.
जैसे ही ये अंतिम दिन खत्म होंगे, यीशु इस पुरानी रीति-व्यवस्था का और उसका साथ देनेवालों का सफाया कर देगा। फिर मसीहाई राज्य, धरती की बागडोर सँभालेगा और जैसा पहले से भविष्यवाणी में बताया गया है, धरती को एक फिरदौस बनाया जाएगा। इंसान को बीमारी और मौत के चंगुल से आज़ाद किया जाएगा और मरे हुओं को दोबारा इस धरती पर ज़िंदा किया जाएगा। आज जो लोग इन अंतिम दिनों के चिन्ह पर ध्यान देते हैं, उन्हें यह शानदार और खुशियों भरा भविष्य मिलनेवाला है। तो क्या यह अक्लमंदी की बात नहीं होगी कि इस चिन्ह के बारे में और ज़्यादा सीखें और जानें कि इस व्यवस्था के अंत से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए? बेशक, हर किसी को जल्द-से-जल्द ऐसा कदम उठाना चाहिए।—यूहन्ना 17:3.
[पेज 4 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
यीशु ने ऐसी कई घटनाओं की भविष्यवाणी की थी, जिनके एक-साथ घटने से वह चिन्ह पूरा होगा और इसे दुनिया के किसी भी कोने में रहनेवाले लोग पहचान सकते हैं
[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
क्या आप कई पहलुओंवाले चिन्ह को पूरा होते हुए देख रहे हैं, जो सारी दुनिया के लिए बहुत बड़े मायने रखता है?
[पेज 6 पर बक्स/तसवीरें]
अंतिम दिनों की निशानियाँ
बड़े पैमाने पर युद्ध।—मत्ती 24:7; प्रकाशितवाक्य 6:4
अकाल।—मत्ती 24:7; प्रकाशितवाक्य 6:5, 6, 8
महामारियाँ।—लूका 21:11; प्रकाशितवाक्य 6:8
अधर्म का बढ़ना।—मत्ती 24:12
भूकंप।—मत्ती 24:7
कठिन समय।—2 तीमुथियुस 3:1
पैसे का लालच।—2 तीमुथियुस 3:2
माता-पिता की आज्ञा न माननेवाले।—2 तीमुथियुस 3:2
स्वाभाविक स्नेह की कमी।—2 तीमुथियुस 3:3
परमेश्वर के बजाय, सुख-विलास चाहना।—2 तीमुथियुस 3:4
संयम की कमी।—2 तीमुथियुस 3:3
भले के बैरी।—2 तीमुथियुस 3:3
आनेवाले नाश की चेतावनी पर कोई ध्यान न देना।—मत्ती 24:39, NW
हँसी-ठट्ठा करनेवालों का अंतिम दिनों के सबूतों को ठुकराना।—2 पतरस 3:3, 4
परमेश्वर के राज्य का दुनिया-भर में प्रचार।—मत्ती 24:14
[पेज 5 पर चित्रों का श्रेय]
पहले विश्वयुद्ध के सैनिक: The World War—A Pictorial History, 1919 किताब से; गरीब परिवार: AP Photo/Aijaz Rahi; पोलियो का शिकार: © WHO/P. Virot