इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

क्या आप परमेश्‍वर के साथ-साथ चलेंगे?

क्या आप परमेश्‍वर के साथ-साथ चलेंगे?

क्या आप परमेश्‍वर के साथ-साथ चलेंगे?

‘अपने परमेश्‍वर के साथ नम्रता से चलो।’मीका 6:8.

1, 2. यहोवा हमारे बारे में जो महसूस करता है, उसकी तुलना हम एक पिता के साथ कैसे कर सकते हैं जो अपने बच्चे को चलना सिखा रहा है?

 एक नन्हा-मुन्‍ना अपने लड़खड़ाते पैरों पर खड़ा होकर पहली बार चलना शुरू करता है। सामने उसके माता-पिता बाहें फैलाए उसे अपने पास बुला रहे हैं। बच्चे का पहली बार चलना हमारे लिए शायद कोई खास मायने न रखता हो, लेकिन माता-पिता के लिए यह ज़िंदगी का एक बहुत खास दिन होता है। यह लमहा उन्हें आनेवाले सुनहरे कल का एहसास दिलाता है। वे आनेवाले उन महीनों और सालों का बेसब्री से इंतज़ार करने लगते हैं जब वे अपने बच्चे का हाथ अपने हाथ में लेकर उसके साथ चलेंगे। वे यही उम्मीद करते हैं कि आनेवाले बरसों-बरस अपने बच्चे को सही राह दिखाएँगे और उसे सहारा देते रहेंगे।

2 यहोवा परमेश्‍वर भी अपने बच्चों यानी इंसानों के बारे में ऐसा ही महसूस करता है। उसने एक बार अपनी जाति, इस्राएल या एप्रैम के बारे में कहा था: “मैं ही एप्रैम को पांव-पांव चलाता था, और उनको गोद में लिए फिरता था; . . . मैं उनको मनुष्य जानकर प्रेम की डोरी से खींचता था।” (होशे 11:3, 4) यहोवा इन आयतों में समझा रहा है कि वह एक प्यारे पिता की तरह, सब्र के साथ अपने बच्चे को चलना सिखा रहा है और जब बच्चा गिर पड़ता है, तो वह उसे अपनी गोद में उठा लेता है। जी हाँ, इस पूरे जहान में यहोवा से अच्छा पिता कोई और नहीं है! और उसकी भी यही आरज़ू है कि वह हमें चलना सिखाए। यही नहीं, जैसे-जैसे हम अपने कदम बढ़ाकर तरक्की करते जाते हैं, उसे हमारे साथ-साथ चलने से बड़ी खुशी मिलती है। जैसा कि लेख की खास आयत बताती है, परमेश्‍वर के साथ-साथ चलना हमारे लिए बिलकुल मुमकिन है! (मीका 6:8) लेकिन परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने का मतलब क्या है? हमारे लिए क्यों उसके साथ-साथ चलना ज़रूरी है? हम उसके साथ कैसे चल सकते हैं? और परमेश्‍वर के साथ चलने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं? आइए एक-एक करके इन चारों सवालों पर चर्चा करें।

परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने का क्या मतलब है?

3, 4. (क) परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने के बारे में पेश की गयी तसवीर क्यों बहुत बढ़िया है? (ख) परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने का क्या मतलब है?

3 यह सच है कि हाड़-माँस का बना इंसान सचमुच में यहोवा के साथ नहीं चल सकता क्योंकि वह आत्मिक प्राणी है। (निर्गमन 33:20; यूहन्‍ना 4:24) इसलिए बाइबल जब भी परमेश्‍वर के साथ इंसान के चलने की बात कहती है, तो इसका लाक्षणिक अर्थ है। दरअसल बाइबल इन शब्दों से एक बहुत ही बढ़िया तसवीर खींचती है, जो हर देश, हर संस्कृति और हर ज़माने के लोगों को समझ में आती है। जी हाँ, दो लोगों के साथ-साथ चलने की बात, क्या किसी भी देश या ज़माने के इंसान को समझने में मुश्‍किल लगेगी? दो इंसानों का साथ-साथ चलना दिखाता है कि उनके आपस में प्यार है, वे एक-दूसरे के बहुत करीब हैं, है ना? इस तरह की भावनाएँ हमें यह समझने में मदद करती हैं कि परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने का क्या मतलब है। आइए हम देखें कि इसमें ठीक-ठीक क्या शामिल है।

4 वफादार पुरुष हनोक और नूह को याद कीजिए। उन दोनों के बारे में बाइबल ऐसा क्यों कहती है कि वे परमेश्‍वर के साथ-साथ चले थे? (उत्पत्ति 5:24; 6:9) बाइबल में अकसर “चलने” का मतलब है, जीने का एक खास तरीका अपनाना। हनोक और नूह, दोनों ने यहोवा परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक ज़िंदगी बितायी थी। वे अपने ज़माने के लोगों से एकदम अलग थे, क्योंकि सही राह दिखाने के लिए उन्होंने यहोवा से मदद माँगी और उसकी आज्ञाओं को माना। उन्हें उस पर पूरा भरोसा था। तो क्या इसका मतलब यह है कि उनकी ज़िंदगी के सारे फैसले यहोवा ने किए थे? जी नहीं। यहोवा ने इंसान को अपनी मरज़ी का मालिक बनाया है और वह चाहता है कि हर इंसान आज़ाद मरज़ी के इस तोहफे के साथ-साथ अपनी “तर्क-शक्‍ति” का भी इस्तेमाल करे। (रोमियों 12:1, NW) फिर भी हम फैसले करते वक्‍त, नम्रता से अपनी तर्क-शक्‍ति का इस्तेमाल यहोवा की बुद्धि के मुताबिक करते हैं जो हमारी बुद्धि से कहीं ज़्यादा श्रेष्ठ है। (नीतिवचन 3:5, 6; यशायाह 55:8, 9) इस तरह हम ज़िंदगी में मानो अपने मित्र यहोवा के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलते हैं।

5. यीशु ने एक इंसान की उम्र में एक हाथ बढ़ाने की बात क्यों कही?

5 बाइबल अकसर ज़िंदगी की तुलना एक सफर या चलने से करती है। कुछ आयतों में यह तुलना साफ-साफ दिखायी देती है, तो कुछ में इसकी तरफ इशारा किया गया है। मिसाल के लिए, यीशु ने कहा था: “तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपनी अवस्था में एक हाथ भी बढ़ा सकता है?” (मत्ती 6:27, फुटनोट) इस आयत के शब्द पढ़ने के बाद, आप शायद उलझन में पड़ जाएँ। “अवस्था” या उम्र का हिसाब समय से रखा जाता है, जबकि “हाथ” से दूरी नापी जाती है। तो फिर यीशु ने एक इंसान की “अवस्था” में “एक हाथ” बढ़ाने की बात क्यों कही? * इसलिए कि शायद वह ज़िंदगी की तुलना एक सफर से कर रहा था। इस तरह, वह सिखा रहा था कि चिंता करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि इससे ज़िंदगी के सफर में एक छोटा कदम भी आप जोड़ नहीं पाएँगे। लेकिन, क्या इसका यह मतलब है कि परमेश्‍वर के साथ हम कितनी दूर तक चल पाएँगे, इस बारे में हम कुछ नहीं कर सकते? जी नहीं, इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है! यही बात हमें दूसरे सवाल पर लाती है, हमारे लिए क्यों परमेश्‍वर के साथ-साथ चलना ज़रूरी है?

परमेश्‍वर के साथ-साथ हमारे लिए क्यों चलना ज़रूरी है?

6, 7. असिद्ध इंसानों को किस चीज़ की सख्त ज़रूरत है, और इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए हमें क्यों यहोवा के पास जाना चाहिए?

6 यहोवा परमेश्‍वर के साथ-साथ चलना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है, इसकी एक वजह यिर्मयाह 10:23 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) में दी गयी है: “हे यहोवा, मैं जानता हूँ, कि व्यक्‍ति सचमुच अपनी जिन्दगी का मालिक नहीं है। लोग सचमुच अपने भविष्य की योजना नहीं बना सकते है। लोग सचमुच नहीं जानते कि कैसे ठीक जीवित रहा जाय।” इस आयत से साफ है कि हम इंसानों में अपनी ज़िंदगी को सही दिशा देने की न तो काबिलीयत है और ना ही यह हमारा हक है। हमें परमेश्‍वर के मार्गदर्शन की सख्त ज़रूरत है। जो लोग परमेश्‍वर के दिखाए रास्ते पर चलने के बजाय, अपने रास्ते पर चलने की मनमानी करते हैं, वे वही गलती दोहराते हैं जो पहले जोड़े, आदम और हव्वा ने की थी। उन्होंने भले-बुरे का फैसला करने का अधिकार अपने हाथ में ले लिया जबकि यह अधिकार उनका था ही नहीं। (उत्पत्ति 3:1-6) उसी तरह, हमारे लिए क्या भला है और क्या बुरा, इस बारे में हम फैसला कर ही नहीं “सकते,” क्योंकि इसका हक हमें नहीं दिया गया है।

7 क्या आपको कभी-कभी ऐसा नहीं लगता कि ज़िंदगी के सफर में कोई हमें बतानेवाला होता कि सही रास्ता कौन-सा है? हर दिन हमें कई फैसले करने पड़ते हैं, कुछ छोटे तो कुछ बड़े। कुछ फैसले बहुत मुश्‍किल होते हैं, खासकर जब ये हमारे या हमारे अपनों के भविष्य से जुड़े होते हैं। लेकिन, मान लीजिए कि सही फैसले लेने में एक ऐसा शख्स हमारी मदद करना चाहता है जो हमसे कहीं ज़्यादा बुद्धिमान है, और उम्र में हमसे इतना बड़ा है कि उसका कोई हिसाब नहीं, तो क्या हम उसकी मदद नहीं लेंगे? बेशक लेंगे। यह शख्स कोई और नहीं बल्कि यहोवा परमेश्‍वर है। मगर अफसोस, दुनिया के ज़्यादातर लोग अपनी समझ पर भरोसा करते हैं, और अपना रास्ता खुद चुनते हैं। वे नीतिवचन 28:26 की इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ करते हैं: “जो अपने ऊपर भरोसा रखता है, वह मूर्ख है; और जो बुद्धि से चलता है, वह बचता है।” यहोवा हमें उन तमाम मुसीबतों से बचाना चाहता है जो अपने धोखेबाज़ दिल पर भरोसा करने से हम पर आती हैं। (यिर्मयाह 17:9) वह चाहता है कि हम बुद्धि से चलते हुए उस पर भरोसा रखें कि वही सबसे बड़ा बुद्धिमान है जो हमें सही रास्ता दिखाता है और सिखाता भी है। जब हम ऐसा करते हैं, तो ज़िंदगी की राह पर चलते-चलते हम किसी से डरेंगे नहीं, और हमारे अंदर सुख और सुकून का एहसास रहेगा।

8. पाप और असिद्धता आखिरकार हर इंसान को कहाँ तक ले आते हैं, लेकिन यहोवा हमारे लिए क्या चाहता है?

8 परमेश्‍वर के साथ-साथ चलना क्यों ज़रूरी है, इसकी एक और वजह में यह शामिल है कि हम कितनी दूर तक चलना चाहते हैं। बाइबल एक दर्दनाक सच्चाई बयान करती है। एक मायने में हम सभी असिद्ध इंसान एक ही मंज़िल की तरफ बढ़ रहे हैं। ढलती उम्र की तकलीफों के बारे में बताते हुए सभोपदेशक 12:5 (NHT) कहता है: “मनुष्य तो अपने अनन्त निवास में चला जाता और शोक करनेवाले सड़कों में फिरते हैं।” यह “अनन्त निवास” क्या है? यह है कब्र, जहाँ हर किसी को पाप और असिद्धता आखिरकार ले ही आते हैं। (रोमियों 6:23) मगर यहोवा नहीं चाहता कि हम जन्म से मरण तक का यह छोटा और काँटों से भरा रास्ता तय करें। (अय्यूब 14:1) इसके बजाय, वह चाहता है कि हम उसके साथ-साथ चलें, क्योंकि तभी हम उतनी दूर तक चलने की उम्मीद रख सकते हैं जितना परमेश्‍वर ने हमारे लिए तय किया है यानी हमेशा-हमेशा के लिए। क्या आप भी यही नहीं चाहते? तो फिर, आपको स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के साथ-साथ चलना होगा।

हम परमेश्‍वर के साथ-साथ कैसे चल सकते हैं?

9. यहोवा कभी-कभी अपने लोगों से क्यों छिपा रहा, मगर यशायाह 30:20 में वह किस बात का यकीन दिलाता है?

9 इस लेख की शुरूआत में पूछे गए तीसरे सवाल पर हमें सबसे ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। वह यह कि हम परमेश्‍वर के साथ-साथ कैसे चल सकते हैं? इसका जवाब हमें यशायाह 30:20, 21 (NHT) में मिलता है जहाँ लिखा है: “तुम्हारा शिक्षक [“महान उपदेशक,” NW] अधिक समय तक छिपा न रहेगा। परन्तु तुम अपनी आंखों से अपने शिक्षक को देखोगे। जब कभी दाहिने या बाएं मुड़ने लगो तो तुम्हारे कान पीछे से यह वचन सुनेंगे, ‘मार्ग यही है, इसी पर चलो।’” इन शब्दों से यहोवा के लोगों को बहुत हिम्मत मिली होगी, क्योंकि आयत 20 के शब्दों से उन्हें वह वक्‍त याद आया होगा जब उन्होंने परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की और इस वजह से परमेश्‍वर ने मानो खुद को उनसे छिपा लिया था। (यशायाह 1:15; 59:2) मगर यहाँ, आयत कह रही है कि यहोवा छिपा हुआ नहीं है बल्कि अपने वफादार बंदों के सामने खड़ा है। इससे हमें शायद एक टीचर का खयाल आए जो अपने विद्यार्थियों के सामने खड़ा होकर दिखाता है कि वह उन्हें क्या सिखाना चाहता है।

10. किस मायने में ‘आपके कान पीछे से’ अपने महान उपदेशक का “वचन” सुनेंगे?

10 आयत 21 में एक अलग ही तसवीर पेश की गयी है। यह आयत कहती है कि यहोवा अपने लोगों के पीछे-पीछे चलते हुए दिशा बता रहा है कि उन्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए। बाइबल विद्वानों का कहना है कि यह बात शायद एक चरवाहे को मन में रखकर लिखी गयी हो, क्योंकि वह कभी-कभी अपनी भेड़ों के पीछे-पीछे चलता है और रास्ता दिखाने के लिए आवाज़ लगाता है और इस तरह उन्हें भटकने से बचाता है। यह तसवीर हम पर कैसे लागू होती है? जब हम मार्गदर्शन के लिए परमेश्‍वर का वचन पढ़ते हैं, तो हम वे शब्द पढ़ते हैं जो हज़ारों साल पहले लिखे गए थे। इसलिए समय की धारा में देखें तो कहा जा सकता है कि परमेश्‍वर के वचन हमारे पीछे से हम तक आ रहे हैं। फिर भी, ये वचन आज भी उतनी ही अहमियत रखते हैं जितनी तब रखते थे जब उन्हें लिखा गया था। बाइबल की सलाह पर चलकर हम हर दिन सही फैसले कर सकते हैं, साथ ही आनेवाली ज़िंदगी के लिए भी योजना बना सकते हैं। (भजन 119:105) अगर हम मन लगाकर बाइबल में सलाह ढूँढ़ें और उस पर अमल करें, तो यहोवा बेशक हमें राह दिखानेवाला होगा। इस तरह हम परमेश्‍वर के साथ-साथ चल रहे होंगे।

11. यिर्मयाह 6:16 के मुताबिक, यहोवा ने अपने लोगों को समझाने के लिए कौन-सा प्यार-भरा तकाज़ा किया, मगर बदले में उन्होंने क्या जवाब दिया?

11 क्या हम अपनी ज़िंदगी के हर कदम पर परमेश्‍वर के वचन को मानते हैं? कभी-कभी रुककर, पूरी ईमानदारी के साथ खुद की जाँच करना फायदेमंद होता है। इस आयत पर गौर कीजिए जो हमें खुद की जाँच करने में मदद देगी: “यहोवा यों भी कहता है, सड़कों पर खड़े होकर देखो, और पूछो कि प्राचीनकाल का अच्छा मार्ग कौन सा है, उसी में चलो, और तुम अपने अपने मन में चैन पाओगे।” (यिर्मयाह 6:16) इन शब्दों से हमें एक मुसाफिर की याद आती है जो एक चौराहे पर आकर रुक जाता है और किसी से रास्ता पूछता है। आध्यात्मिक मायने में, इस्राएल में रहनेवाले यहोवा के बागी लोगों को भी उस मुसाफिर की तरह यहोवा से रास्ता पूछना चाहिए था। उन्हें पता लगाना चाहिए था कि वे कैसे ‘प्राचीनकाल के मार्ग’ पर लौट सकते थे। इस ‘अच्छे मार्ग’ पर उनके वफादार पूर्वज चले थे, जबकि इस्राएल जाति ने इस रास्ते से बहककर सबसे बड़ी मूर्खता का काम किया था। लेकिन अफसोस कि इस्राएल ने यहोवा के इस प्यार भरे तकाज़े का जवाब बड़ी ढिठाई से दिया। आयत 16 आगे कहती है: “उन्हों ने कहा, हम उस पर न चलेंगे।” मगर नए ज़माने में, परमेश्‍वर के लोग उनसे बिलकुल अलग हैं। वे इस सलाह को दिल से मानते हैं।

12, 13. (क) मसीह के अभिषिक्‍त चेलों ने कैसे यिर्मयाह 6:16 की सलाह को खुद पर लागू किया है? (ख) आज हम ज़िंदगी की राह पर किस तरह चल रहे हैं, इसकी जाँच हम कैसे कर सकते हैं?

12 उन्‍नीसवीं सदी के आखिरी सालों से, मसीह के अभिषिक्‍त चेलों ने यिर्मयाह 6:16 की सलाह को खुद पर लागू किया है। एक समूह के तौर पर, वे पूरे दिल से ‘प्राचीनकाल के मार्ग’ पर लौट आने में अगुवाई कर रहे हैं। वे धर्मत्यागी ईसाईजगत से एकदम अलग हैं, उन्होंने पूरी वफादारी के साथ ‘खरी बातों के आदर्श’ को माना है, जिसे यीशु ने कायम किया था और जिसकी पैरवी पहली सदी में उसके वफादार चेलों ने की थी। (2 तीमुथियुस 1:13) ईसाईजगत ने भले ही उस मार्ग पर चलना छोड़ दिया है, मगर अभिषिक्‍त जन और ‘अन्य भेड़’ आज भी उस मार्ग पर चल रहे हैं। और ऐसा करने में अभिषिक्‍त जन न सिर्फ एक-दूसरे की बल्कि ‘अन्य भेड़ों’ की भी मदद करते हैं ताकि वे उम्दा किस्म की ज़िंदगी जीएँ और खुशी पाएँ।—यूहन्‍ना 10:16, NW.

13 विश्‍वासयोग्य दास वर्ग ने सही समय पर भोजन देकर, लाखों लोगों को ‘प्राचीनकाल के मार्ग’ का पता लगाने और परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने में मदद दी है। (मत्ती 24:45-47) क्या आप उन लाखों में से एक हैं? अगर हाँ, तो आप क्या कर सकते हैं जिससे कि आप इस राह से बहककर अपनी ही राह पर न चलने लगें? कभी-कभी समझदारी इसी में होती है कि आप थोड़ी देर रुककर जाँचें कि आप अपनी ज़िंदगी के साथ क्या कर रहे हैं और किस तरह चल रहे हैं। अगर आप बिना नागा बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ें और उन सभाओं में हाज़िर हों जिनके ज़रिए अभिषिक्‍त जन हिदायतें देते हैं, तो आपको परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने की तालीम मिलती है। और जब कोई आपको सलाह देता है तो उस पर अगर आप नम्रता से अमल करें, तो आप वाकई में परमेश्‍वर के साथ-साथ और ‘प्राचीनकाल के मार्ग’ पर चल रहे होंगे।

‘अनदेखे को मानो देखते’ हुए चलिए

14. अगर यहोवा हमारे लिए एक हकीकत है, तो यह बात हम अपने निजी फैसलों से कैसे दिखाएँगे?

14 यहोवा परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने के लिए ज़रूरी है कि उसका वजूद हमारे लिए एक हकीकत हो। याद कीजिए कि यहोवा ने प्राचीन इस्राएल के वफादार लोगों को यकीन दिलाया था कि वह उनसे छिपा हुआ नहीं था। उसी तरह, हमारा महान उपदेशक आज अपने लोगों के सामने खुद को ज़ाहिर कर रहा है। क्या यहोवा की शख्सियत आपके लिए इस कदर एक हकीकत है, मानो वह आपके सामने खड़ा होकर आपको हिदायत दे रहा हो? आपमें ऐसा पक्का विश्‍वास होना ज़रूरी है, तभी आप परमेश्‍वर के साथ-साथ चल पाएँगे। मूसा में ऐसा विश्‍वास था, इसलिए “वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों 11:27) अगर यहोवा हमारे लिए एक हकीकत है, तो हम ऐसा कोई भी फैसला नहीं करेंगे जिससे उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचेगी। जैसे, हम कोई भी गलत काम करने की नहीं सोचेंगे, ना ही ऐसा करने के बाद उसे मसीही प्राचीनों या अपने घरवालों से छिपाए रखेंगे। इसके बजाय, चाहे हमें कोई न भी देखे, फिर भी हम परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने की कोशिश करते रहेंगे। पुराने ज़माने के राजा दाऊद की तरह हम भी यह ठान चुके हैं: “मैं अपने घर में मन की खराई के साथ अपनी चाल चलूंगा।”—भजन 101:2.

15. मसीही भाई-बहनों के साथ मेल-जोल बढ़ाने से कैसे यहोवा हमारे लिए और भी हकीकी होगा?

15 यहोवा जानता है कि हम हाड़-मांस से बने असिद्ध इंसान हैं और कई बार हमारे लिए उन चीज़ों पर विश्‍वास करना मुश्‍किल होता है जिन्हें हम देख नहीं सकते। (भजन 103:14) इस कमज़ोरी पर काबू पाने में वह हमारी बहुत मदद करता है। मिसाल के लिए, उसने धरती के सारे देशों में से “अपने नाम के लिये . . . लोग” इकट्ठे किए हैं। (प्रेरितों 15:14) जब हम सब मिलकर यहोवा की सेवा करते हैं, तो हमें एक-दूसरे से काफी हौसला मिलता है। जब हम अनुभव सुनते हैं कि यहोवा ने कैसे एक मसीही भाई या बहन को किसी खामी पर काबू पाने में या किसी कड़ी आज़माइश को पार करने में मदद दी है, तो यहोवा की शख्सियत हमारे लिए और भी हकीकी हो जाती है।—1 पतरस 5:9.

16. यीशु के बारे में सीखने से हमें परमेश्‍वर के साथ-साथ चलते रहने में कैसे मदद मिलेगी?

16 सबसे बढ़कर, यहोवा ने हमें अपने बेटे की मिसाल दी है। यीशु ने कहा था: “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।” (यूहन्‍ना 14:6) यहोवा की शख्सियत की हकीकत को और नज़दीकी से जानने का एक सबसे बढ़िया तरीका है, यीशु की इंसानी ज़िंदगी का अध्ययन करना। यीशु की हर बात और उसके हर काम से उसके स्वर्गीय पिता की शख्सियत और उसका तौर-तरीका साफ-साफ दिखायी देता था। (यूहन्‍ना 14:9) कोई भी फैसला करते वक्‍त, हमें बहुत ध्यान से सोचने की ज़रूरत है कि अगर यीशु मेरी जगह होता, तो क्या करता? अगर हम इस तरह सोच-समझकर और प्रार्थना करके फैसला करें, तो हम मसीह के नक्शेकदम पर चल रहे होंगे। (1 पतरस 2:21) ऐसा करके हम परमेश्‍वर के साथ-साथ चलते हैं।

क्या आशीषें मिलेंगी?

17. अगर हम यहोवा के मार्ग पर चलें, तो हमें मन में कैसा “चैन” मिलेगा?

17 यहोवा परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने से हमें जीवन में कई आशीषें मिलेंगी। याद कीजिए कि यहोवा ने ‘अच्छे मार्ग’ की खोज करनेवाले अपने लोगों से क्या वादा किया था। उसने कहा था: “उसी में चलो, और तुम अपने अपने मन में चैन पाओगे।” (यिर्मयाह 6:16) यहाँ “चैन” का मतलब क्या है? क्या यह चैन की ज़िंदगी है जिसमें सिर्फ मौज-मस्ती और ऐशो-आराम ही हो? जी नहीं। यहोवा इससे भी बढ़कर, एक बेहतरीन ज़िंदगी देने का वादा करता है, ऐसी ज़िंदगी जो दुनिया के सबसे दौलतमंद लोगों को भी शायद ही मिले। मन का चैन पाने का मतलब है, अंदरूनी सुकून, खुशी, सुख और आध्यात्मिक संतोष पाना। इस तरह के चैन का यह भी मतलब है कि आपको यकीन है कि आपने ज़िंदगी में सबसे बेहतरीन रास्ता चुना है। मुसीबतों से भरी इस दुनिया में मन की यह शांति विरले ही मिलती है!

18. यहोवा आपको कौन-सी आशीष देना चाहता है, और आपने क्या करने की ठानी है?

18 यह सच है कि जीवन अपने आपमें एक बड़ा वरदान है। ज़िंदगी की राह पर कुछ कदम चलना, बिलकुल न चलने से तो बेहतर ही है। लेकिन यहोवा ने कभी नहीं चाहा था कि ज़िंदगी की राह पर, आप चुस्त-फुर्त जवानी से दर्द-भरे बुढ़ापे तक का इतना छोटा सफर तय करें। इसके बजाय, यहोवा चाहता है कि आपको सबसे बढ़िया आशीष मिले। वह चाहता है कि आप उसके साथ हमेशा-हमेशा के लिए चलते रहें! यही बात मीका 4:5 में बहुत ही बढ़िया शब्दों में बतायी गयी है: “सब राज्यों के लोग तो अपने अपने देवता का नाम लेकर चलते हैं, परन्तु हम लोग अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।” क्या आप उस आशीष पर कब्ज़ा करेंगे? क्या आप ऐसी ज़िंदगी जीएँगे जिसे यहोवा ने “सच्ची ज़िन्दगी” कहा है? (1 तीमुथियुस 6:19, हिन्दुस्तानी बाइबल) ऐसी ज़िंदगी को सच्ची ज़िंदगी कहकर यहोवा हमें इसे पाने की कोशिश करने को उकसाता है। तो फिर, ठान लीजिए कि आप आज, कल, हर दिन और हमेशा-हमेशा के लिए यहोवा के साथ-साथ चलते रहेंगे!

[फुटनोट]

^ कुछ बाइबल अनुवादों में, इस आयत में शब्द “एक हाथ” को बदलकर “एक घड़ी” (NHT; नयी हिन्दी बाइबिल) इस्तेमाल किया गया है, जो कि समय का हिसाब है। मगर, बाइबल की मूल भाषा में जो शब्द इस्तेमाल किया गया उसका असली मतलब पक्के तौर पर एक हाथ ही है। एक हाथ की लंबाई करीब 45 सेंटीमीटर होती है।

आप क्या जवाब देंगे?

• परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने का क्या मतलब है?

• परमेश्‍वर के साथ-साथ चलना आपको क्यों ज़रूरी लगता है?

• परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने में क्या बात आपकी मदद करेगी?

• परमेश्‍वर के साथ-साथ चलनेवालों को क्या आशीषें मिलती हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीरें]

बाइबल के पन्‍नों के ज़रिए, हमें पीछे से यहोवा की आवाज़ सुनायी देती है कि “मार्ग यही है”

[पेज 25 पर तसवीर]

सभाओं में हमें सही समय पर आध्यात्मिक भोजन मिलता है