होशे की भविष्यवाणी, परमेश्वर के साथ-साथ चलने में हमारी मदद करती है
होशे की भविष्यवाणी, परमेश्वर के साथ-साथ चलने में हमारी मदद करती है
“वे यहोवा के पीछे पीछे चलेंगे।”—होशे 11:10.
1. होशे की किताब में आध्यात्मिक अर्थ रखनेवाली कौन-सी कहानी दर्ज़ है?
क्या आपको ऐसी कहानियाँ पढ़ने में मज़ा आता है जिसके किरदार बड़े ही दिलचस्प होते हैं और जिसमें साज़िशें रची जाती हैं? बाइबल की किताब, होशे में एक ऐसी ही कहानी दी गयी है, जो आध्यात्मिक अर्थ रखती है। * यह कहानी परमेश्वर के नबी होशे के परिवार के बारे में है, और आध्यात्मिक अर्थ रखनेवाले शादी के उस बंधन को दर्शाती है, जो यहोवा ने मूसा की व्यवस्था वाचा के ज़रिए इस्राएल जाति के साथ बाँधा था।
2. होशे के बारे में हम क्या जानते हैं?
2 इस कहानी की घटनाएँ कब और किन हालात में हुई थीं, यह हमें होशे की किताब के पहले अध्याय से पता चलता है। होशे शायद दस गोत्रवाले इस्राएल राज्य (इस्राएल का सबसे बड़ा गोत्र एप्रैम था, इसलिए इस राज्य को एप्रैम भी कहा जाता था) के इलाके में रहता था। उसने इस्राएल के आखिरी सात राजाओं और यहूदा के राजा उज्जियाह, योताम, आहाज और हिजकिय्याह के शासन के दौरान भविष्यवाणी की थी। (होशे 1:1) तो इसका मतलब है कि होशे ने कम-से-कम 59 साल तक भविष्यवाणी करने का काम किया था। हालाँकि होशे की किताब की लिखाई सा.यु.पू. 745 के कुछ ही वक्त बाद पूरी हुई थी, मगर यह किताब आज भी बहुत अहमियत रखती है, क्योंकि आज लाखों लोग होशे की इस भविष्यवाणी के मुताबिक कदम उठा रहे हैं: “वे यहोवा के पीछे पीछे चलेंगे।”—होशे 11:10.
एक सरसरी नज़र
3, 4. चंद शब्दों में समझाइए कि होशे के अध्याय 1 से 5 में क्या बताया गया है।
3 आइए पहले होशे की किताब के शुरू के पाँच अध्यायों पर एक सरसरी नज़र डालें। इससे हमारा यह इरादा और भी मज़बूत होगा कि हम परमेश्वर के साथ-साथ चलने के लिए उस पर विश्वास रखें और उसकी मरज़ी के मुताबिक जीएँ। इन अध्यायों पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि इस्राएल राज्य के लोग आध्यात्मिक अर्थ में व्यभिचार करने के दोषी थे, लेकिन अगर वे पश्चाताप दिखाते, तो यहोवा उन पर दया करता। यह बात अपनी पत्नी, गोमेर के साथ होशे के व्यवहार से दिखायी गयी है। गोमेर ने होशे के बेटे को जन्म देने के बाद, दो नाजायज़ बच्चे पैदा किए थे। फिर भी होशे ने उसे दोबारा अपना लिया, ठीक जैसे यहोवा पश्चाताप करनेवाले इस्राएलियों पर दया दिखाने के लिए तैयार था।—होशे 1:1–3:5.
4 यहोवा ने इस्राएल के खिलाफ मुकद्दमा चलाया क्योंकि उस देश में न तो सच्चाई, न करुणा और ना ही परमेश्वर का ज्ञान था। यहोवा, मूर्तिपूजा करनेवाली इस्राएल जाति और भटके हुए यहूदा देश, दोनों से लेखा लेनेवाला था। मगर जब परमेश्वर के ये लोग ‘संकट में पड़ते,’ तब वे यहोवा को ढूँढ़ने लगते।—होशे 4:1–5:15.
परदा उठता है
5, 6. (क) दस गोत्रवाले इस्राएल राज्य में व्यभिचार किस हद तक बढ़ गया था? (ख) प्राचीन इस्राएल को दी गयी चेतावनी हमारे लिए क्यों अहमियत रखती है?
5 परमेश्वर ने होशे को आज्ञा दी: “जाकर एक वेश्या [“व्यभिचारिणी पत्नी,” NW] को अपनी पत्नी बना ले, और उसके कुकर्म के लड़केबालों को अपने लड़केबाले कर ले, क्योंकि यह देश यहोवा के पीछे चलना छोड़कर वेश्या का सा बहुत काम करता है।” (होशे 1:2) इस्राएल में व्यभिचार किस हद तक बढ़ गया था? यह किताब बताती है: “छिनाला करानेवाली आत्मा ने [दस गोत्रवाले इस्राएल राज्य के लोगों को] बहकाया है, और वे अपने परमेश्वर की अधीनता छोड़कर छिनाला करते हैं। . . . तुम्हारी बेटियां छिनाल और तुम्हारी बहुएं व्यभिचारिणी हो गई हैं। . . . मनुष्य आप ही वेश्याओं के साथ एकान्त में जाते, और देवदासियों के साथी होकर यज्ञ करते हैं।”—होशे 4:12-14.
6 इस्राएल देश में हर तरफ व्यभिचार फैला हुआ था, शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों मायने में। इसलिए यहोवा इस्राएलियों को “दण्ड” देनेवाला था। (होशे 1:4; 4:9) यह चेतावनी हमारे दिनों के लिए भी अहमियत रखती है क्योंकि आज भी जो लोग व्यभिचार और अशुद्ध उपासना करते हैं, यहोवा उन्हें सज़ा देनेवाला है। मगर जो लोग परमेश्वर के साथ-साथ चलते हैं, वे शुद्ध उपासना के उसके स्तरों को मानते हैं। वे जानते हैं कि ‘मसीह और परमेश्वर के राज्य में किसी व्यभिचारी की मीरास नहीं होगी।’—इफिसियों 5:5; याकूब 1:27.
7. होशे और गोमेर की शादी ने किस बात को दर्शाया था?
7 ज़ाहिर है कि जब होशे ने गोमेर से शादी की तब वह कुँवारी थी और उसका चरित्र बेदाग था। और वह तब भी होशे की वफादार थी जब “उस से गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ।” (होशे 1:3) इस कहानी का आध्यात्मिक अर्थ, इस्राएल के साथ परमेश्वर यहोवा के रिश्ते के बारे में है। इस्राएलियों को सा.यु.पू. 1513 में मिस्र की गुलामी से छुड़ाने के कुछ वक्त बाद यहोवा ने उनके साथ एक वाचा बाँधी जो शादी के पवित्र बंधन जैसा करार थी। इस्राएल ने इस वाचा को मानने की हामी भरी, और इस तरह अपने “पति” और स्वामी यहोवा के हमेशा वफादार बने रहने का वादा किया। (यशायाह 54:5) जी हाँ, होशे और गोमेर के बीच शादी का जो पवित्र बंधन था, उससे यह दर्शाया गया कि इस्राएल और यहोवा के बीच आध्यात्मिक अर्थ में पति-पत्नी जैसा रिश्ता था। लेकिन आगे चलकर कहानी का रुख बदल गया!
8. इस्राएल का दस गोत्रवाला राज्य कैसे बना, और उनकी उपासना के बारे में आप क्या कह सकते हैं?
8 बाइबल बताती है कि होशे की पत्नी “फिर गर्भवती हुई और उसके एक बेटी उत्पन्न हुई।” बाद में गोमेर का एक और बच्चा हुआ। ये दोनों बच्चे शायद नाजायज़ थे। (होशे 1:6,8) यह ध्यान में रखते हुए कि गोमेर इस्राएल को दर्शाती थी, आप शायद पूछें कि ‘गोमेर की तरह इस्राएल जाति ने कैसे बदचलनी की थी?’ सामान्य युग पूर्व 997 में इस्राएल के दस गोत्र, दक्षिण के दो गोत्र यहूदा और बिन्यामीन से अलग हो गए। फिर इस्राएल के दस गोत्रवाले उत्तरी राज्य में बछड़े की उपासना शुरू की गयी ताकि वहाँ के लोगों को यहूदा के यरूशलेम जाकर यहोवा के मंदिर में उपासना करने से रोका जा सके। इसके अलावा, झूठे देवता बाल की उपासना इस्राएल की रग-रग में समा गयी, जिसमें नीच लैंगिक कामों से जुड़े रस्मो-रिवाज़ माने जाते थे।
9. होशे 1:6 की भविष्यवाणी के मुताबिक इस्राएल का क्या हश्र हुआ?
9 जब गोमेर का दूसरा बच्चा हुआ, जो शायद नाजायज़ था, तब यहोवा ने होशे से कहा: “उसका नाम लोरुहामा [यानी, “जिस पर दया नहीं हुई”] रख; क्योंकि मैं इस्राएल के घराने पर फिर कभी दया करके उनका अपराध किसी प्रकार से क्षमा न करूंगा।” (होशे 1:6) ठीक जैसे यहोवा ने कहा था, उसने इस्राएल को माफ नहीं किया। इसलिए सा.यु.पू. 740 में उसने इस्राएलियों को अश्शूरियों के हवाले कर दिया जो उन्हें बंदी बनाकर ले गए। मगर परमेश्वर ने दो गोत्रवाले यहूदा के राज्य पर दया दिखायी और उसे मुसीबत से बचाया। यहोवा ने उसे बचाने के लिए धनुष, तलवार, युद्ध, घोड़ों या सवारों का इस्तेमाल नहीं किया। (होशे 1:7) इसके बजाय, सा.यु.पू. 732 में उसके एक स्वर्गदूत ने एक ही रात में 1,85,000 अश्शूरी सैनिकों को मार गिराया जो यहूदा की राजधानी, यरूशलेम के लिए खतरा बने हुए थे।—2 राजा 19:35.
इस्राएल के खिलाफ यहोवा का मुकद्दमा
10. गोमेर का व्यभिचार किस बात को दर्शाता है?
10 गोमेर, होशे को छोड़कर चली गयी और एक “व्यभिचारिणी पत्नी” बन गयी थी, यानी एक पराए आदमी के साथ रहने लगी थी। यह दिखाता है कि इस्राएल राज्य ने किस तरह यहोवा को छोड़कर मूर्तिपूजा करनेवाली जातियों के साथ राजनीतिक संधियाँ कर ली थीं और उन्हीं को अपना आसरा बना लिया था। इस्राएली अपनी खुशहाली का श्रेय यहोवा को देने के बजाय दूसरी जातियों के देवी-देवताओं को देने लगे थे। इस तरह उन्होंने झूठी उपासना में शरीक होकर परमेश्वर के साथ अपनी शादी की वाचा को तोड़ दिया था। इसलिए ताज्जुब नहीं कि यहोवा ने आध्यात्मिक मायने में व्यभिचार करनेवाली इस जाति के खिलाफ मुकद्दमा चलाया।—होशे 1:2, NW; 2:2,12,13.
11. जब यहोवा ने इस्राएल और यहूदा को बंधुवाई में जाने दिया, तब व्यवस्था वाचा का क्या हुआ?
11 अपने स्वामी, यहोवा को छोड़ देने की इस्राएलियों को क्या सज़ा मिली? यहोवा ने उन्हें “जंगल में” यानी बाबुल की बंधुवाई में भेज दिया। (होशे 2:14) सामान्य युग पूर्व 740 में, बाबुल ने अश्शूर पर फतह हासिल की और तब से इस्राएली बाबुलियों के कब्ज़े में आ गए। इस तरह यहोवा ने इस दस गोत्रवाले राज्य को मिट जाने दिया, मगर उसने बारह गोत्रवाले इस्राएल राज्य के साथ शुरू में शादी की जो वाचा बाँधी थी उसे खारिज नहीं किया। यहाँ तक कि सा.यु.पू. 607 में जब परमेश्वर ने यरूशलेम को बाबुलियों के हाथों नाश होने दिया और यहूदा के लोगों को बाबुल की बंधुवाई में जाने दिया, तब भी उसने मूसा की व्यवस्था वाचा रद्द नहीं की, जिसकी बिना पर बारह गोत्रवाली इस्राएल जाति और यहोवा के बीच आध्यात्मिक अर्थ में शादी का बंधन कायम हुआ था। यह रिश्ता सा.यु. 33 में टूट गया जब यहूदी धर्मगुरुओं ने यीशु मसीह को ठुकरा दिया और उसे मरवा डाला।—कुलुस्सियों 2:14.
यहोवा इस्राएल को ताड़ना देता है
12, 13. होशे 2:6-8 का निचोड़ क्या है, और ये शब्द इस्राएल पर कैसे लागू हुए?
12 परमेश्वर ने इस्राएल जाति को कड़ी सलाह दी कि वह ‘अपने छिनालपन को अलग करे।’ मगर यहोवा की बात मानने के बजाय, वह अपने प्रेमियों के पास ही जाना चाहती थी। (होशे 2:2,5) यहोवा ने कहा: “इसलिए देखो, मैं उसके मार्ग को कांटों से घेरूंगा, और ऐसा बाड़ा खड़ा करूंगा कि वह राह न पा सकेगी। वह अपने यारों [“प्रेमियों,” NHT] के पीछे चलने से भी उन्हें न पाएगी; और उन्हें ढूंढ़ने से भी न पाएगी। तब वह कहेगी, मैं अपने पहिले पति के पास फिर जाऊंगी, क्योंकि मेरी पहिली दशा इस समय की दशा से अच्छी थी। वह यह नहीं जानती थी, कि अन्न, नया दाखमधु और तेल मैं ही उसे देता था, और उसके लिए वह चान्दी सोना जिसको वे बाल देवता के काम में ले आते हैं, मैं ही बढ़ाता था।”—होशे 2:6-8.
13 इस्राएल ने ऐसे देशों से मदद माँगी जो एक वक्त उसके ‘प्रेमी’ थे, मगर उनमें से एक भी उसकी मदद न कर सका। इस्राएल के आस-पास मानो कँटीली झाड़ियों का बाड़ा लगा दिया गया था जिसकी वजह से वे उसे मदद न दे सके। अश्शूर ने इस्राएल की राजधानी सामरिया की तीन साल तक घेराबंदी की, फिर सा.यु.पू. 740 में उसे जीत लिया। इसके बाद दस गोत्रवाले इस राज्य को फिर कभी बसाया नहीं गया। बंधुवाई में जाने के बाद, इस्राएलियों में से सिर्फ कुछ लोग ही इस बात को समझते कि जब उनके पूर्वज, यहोवा की सेवा करते थे तब उनके हालात कितने अच्छे थे। इसलिए ये बचे हुए इस्राएली, बाल की उपासना को ठुकरा देते और यहोवा के चुने हुए लोगों के नाते उसके साथ दोबारा एक अच्छा रिश्ता कायम करने की कोशिश करते।
कहानी पर एक और नज़र
14. होशे ने दोबारा गोमेर को अपनी पत्नी के रूप में क्यों कबूल किया?
14 होशे के परिवार के हालात और इस्राएल के साथ यहोवा के रिश्ते के बीच क्या संबंध है, यह और अच्छी तरह समझने के लिए ज़रा इन शब्दों पर ध्यान दीजिए: “यहोवा ने मुझ से कहा, अब जाकर एक ऐसी स्त्री से प्रीति कर, जो व्यभिचारिणी होने पर भी अपने प्रिय की प्यारी हो।” (होशे 3:1) होशे ने इस हुक्म को माना और गोमेर को उस आदमी से मोल लिया जिसके साथ वह रहती थी। बाद में होशे ने गोमेर को कड़ी सलाह दी: “तू बहुत दिन तक मेरे लिये बैठी रहना; और न तो छिनाला करना, और न किसी पुरुष की स्त्री हो जाना।” (होशे 3:2,3) गोमेर ने इस ताड़ना को माना और होशे ने दोबारा उसे अपनी पत्नी के रूप में कबूल कर लिया। यहोवा परमेश्वर ने भी इस्राएल और यहूदा के लोगों के साथ कुछ ऐसा ही व्यवहार किया था। वह कैसे?
15, 16. (क) परमेश्वर से ताड़ना पाने के बाद, यहोवा की चुनी हुई जाति को उसकी दया पाने के लिए क्या करना था? (ख) होशे 2:18 की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
15 जब इस्राएल और यहूदा के लोग बाबुल की बंधुवाई में थे, तब परमेश्वर ने अपने नबियों के ज़रिए उनके साथ ‘शान्ति की बातें कीं।’ परमेश्वर की दया पाने के लिए उसके लोगों को पश्चाताप करना था और गोमेर की तरह अपने स्वामी के पास लौट आना था। यहोवा ने वादा किया था कि अपनी पत्नी जैसी इस्राएल जाति को ताड़ना देने के बाद वह उसे “जंगल” से यानी बाबुल से निकाल लाएगा और यरूशलेम और यहूदा में बहाल करेगा। (होशे 2:14,15) यहोवा ने अपना यह वादा सा.यु.पू. 537 में पूरा किया।
16 परमेश्वर ने अपना यह वादा भी पूरा किया: “उस समय मैं उनके लिये बन-पशुओं और आकाश के पक्षियों और भूमि पर के रेंगनेवाले जन्तुओं के साथ वाचा बान्धूंगा, और धनुष और तलवार तोड़कर युद्ध को उनके देश से दूर कर दूंगा; और ऐसा करूंगा कि वे लोग निडर सोया करेंगे।” (होशे 2:18) बाबुल से जो बचे हुए यहूदी अपने वतन लौटे, वे वहाँ निडर बसे रहे। उन्हें जंगली जानवरों से कोई खतरा नहीं था। यह भविष्यवाणी एक बार फिर सा.यु. 1919 में पूरी हुई जब आत्मिक इस्राएल के शेष जन ‘बड़े बाबुल’ से यानी झूठे धर्म से आज़ाद हुए जो दुनिया-भर में एक साम्राज्य की तरह फैला है। अब वे आध्यात्मिक फिरदौस में अपने उन साथियों के साथ बेखौफ और खुशी-खुशी जी रहे हैं जिन्हें नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा है। इन सच्चे मसीहियों में जानवरों जैसा खूँखार स्वभाव नहीं है।—प्रकाशितवाक्य 14:8; यशायाह 11:6-9; गलतियों 6:16.
सबक सीखकर इन्हें दिल में बिठाइए
17-19. (क) हमें परमेश्वर के कौन-से गुण दिखाने के लिए उकसाया गया है? (ख) यहोवा की दया और करुणा का हम पर क्या असर होना चाहिए?
17 परमेश्वर दयालु और करुणामयी है, और हमें भी ऐसा ही होना चाहिए। यह एक सबक है जो हम होशे के शुरूआती अध्यायों से सीखते हैं। (होशे 1:6,7; 2:23) परमेश्वर उन इस्राएलियों को दया दिखाने के लिए तैयार था जो पश्चाताप करते। परमेश्वर ने जो किया वह इस नीतिवचन के मुताबिक था: “जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी।” (नीतिवचन 28:13) और जो अपने पापों से पश्चाताप करते हैं, उन्हें भजनहार के इन शब्दों से भी बहुत दिलासा मिलता है: “टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।”—भजन 51:17.
18 होशे की भविष्यवाणी यह साफ दिखाती है कि हम जिस परमेश्वर की उपासना करते हैं, वह बड़ा ही करुणामयी और दयालु है। अगर कुछ लोग उसके धर्मी मार्गों से भटककर दूर भी चले जाएँ, तो भी वे पश्चाताप करके लौट सकते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं, तो यहोवा दिल खोलकर उनका स्वागत करता है। यहोवा ने जिस इस्राएल जाति के साथ आध्यात्मिक अर्थ में शादी की थी, उसके लोगों ने जब पश्चाताप किया तो यहोवा ने उन पर दया दिखायी। हालाँकि उन्होंने यहोवा की आज्ञा तोड़ दी थी और ‘इस्राएल के पवित्र को खेदित किया था, मगर वह दयालु था और उसने स्मरण रखा कि वे नाशमान हैं।’ (भजन 78:38-41) परमेश्वर की इस दया की वजह से हमें यह प्रेरणा मिलनी चाहिए कि हम अपने इस करुणामयी परमेश्वर यहोवा के साथ हमेशा-हमेशा चलते रहें।
19 इस्राएल देश में जहाँ देखो वहाँ कत्ल, चोरी और व्यभिचार जैसे पाप किए जा रहे थे, फिर भी यहोवा ने ‘इस्राएल के साथ शान्ति की बातें कीं।’ (होशे 2:14; 4:2) जब हम यहोवा की दया और करुणा के बारे में गहराई से सोचते हैं, तो इसका हमारे दिल पर गहरा असर होना चाहिए, साथ ही यहोवा के साथ हमारा लगाव और भी मज़बूत होना चाहिए। इसलिए आइए हम खुद से ये सवाल पूछें: ‘दूसरों के साथ पेश आते वक्त मैं यहोवा जैसी दया और करुणा दिखाने में पहले से ज़्यादा कैसे कर सकता हूँ? अगर कोई भाई या बहन मुझे ठेस पहुँचाता है और बाद में मुझसे माफी माँगता है, तो क्या मैं परमेश्वर की तरह उसे माफ करने को तैयार रहता हूँ?’—भजन 86:5.
20. यह बताने के लिए एक मिसाल दीजिए कि परमेश्वर ने हमें जो आशा दी है, उस पर हमें पूरा भरोसा रखना चाहिए।
20 परमेश्वर सच्ची आशा देता है। मिसाल के लिए, उसने वादा किया है: ‘मैं आकोर की तराई को उसके लिए आशा का द्वार कर दूंगा।’ (होशे 2:15) प्राचीनकाल में पत्नी का दर्जा रखनेवाले अपने संगठन को यहोवा ने यह पक्की आशा दी थी कि उसे अपने वतन में दोबारा बसाया जाएगा, जहाँ “आकोर की तराई” थी। परमेश्वर का यह वादा सा.यु.पू. 537 में पूरा हुआ था। और इससे हमें पक्का यकीन होता है कि यहोवा ने हमें भी जो आशा दी है, वह ज़रूर पूरी होगी।
21. परमेश्वर के साथ-साथ चलने के लिए ज्ञान का होना कितना ज़रूरी है?
21 परमेश्वर के साथ हमेशा चलते रहने के लिए ज़रूरी है कि हम लगातार उसका ज्ञान लेते रहें और उसके मुताबिक ज़िंदगी जीएँ। इस्राएल में यहोवा का ज्ञान बिलकुल नहीं था। (होशे 4:1,6) मगर कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने परमेश्वर से मिलनेवाली तालीम को बेशकीमती समझा, उसके मुताबिक अपनी ज़िंदगी बितायी और ढेरों आशीषें पायीं। होशे भी उन्हीं में से एक था। और यही बात एलिय्याह के दिनों के उन 7,000 इस्राएलियों के बारे में भी सच थी जिन्होंने बाल देवता के आगे घुटने नहीं टेके थे। (1 राजा 19:18; रोमियों 11:1-4) परमेश्वर से मिलनेवाली तालीम के लिए एहसानमंदी दिखाने से, उसके साथ-साथ चलने में हमें मदद मिलेगी।—भजन 119:66; यशायाह 30:20,21.
22. धर्मत्याग के बारे में हमारा नज़रिया क्या होना चाहिए?
22 यहोवा अपने लोगों की अगुवाई करनेवालों से उम्मीद करता है कि वे धर्मत्याग को ठुकराएँ। मगर होशे 5:1 कहता है: “हे याजको, यह बात सुनो! हे इस्राएल के सारे घराने, ध्यान देकर सुनो! हे राजा के घराने, तुम भी कान लगाओ! क्योंकि तुम पर न्याय किया जाएगा; क्योंकि तुम मिसपा में फन्दा, और ताबोर पर लगाया हुआ जाल बन गए हो।” धर्मत्यागी अगुवे इस्राएलियों के लिए एक फन्दा और जाल बन गए थे क्योंकि वे उन्हें मूर्तिपूजा करने के लिए लुभा रहे थे। ताबोर पर्वत और मिसपा नाम की जगह शायद ऐसी झूठी उपासना के अड्डे थे।
23. होशे के अध्याय 1 से 5 के अध्ययन से आपको कैसे फायदा हुआ है?
23 अब तक हमने होशे की भविष्यवाणी से सीखा कि यहोवा दयालु परमेश्वर है जो उसकी हिदायतों पर चलनेवालों और धर्मत्याग को ठुकरानेवालों को आशा देता है, साथ ही ढेरों आशीषें देता है। तो आइए हम भी बीते ज़माने के पश्चातापी इस्राएलियों की तरह यहोवा को ढूँढ़ें और हमेशा उसे खुश करने की पूरी कोशिश करें। (होशे 5:15) अगर हम ऐसा करेंगे, तो अच्छे फलों की कटनी काटेंगे और वह अनोखी खुशी और शांति पाएँगे जो परमेश्वर के साथ वफादारी से चलनेवालों को मिलती है।—भजन 100:2; फिलिप्पियों 4:6,7.
[फुटनोट]
^ गलतियों 4:21-26 में भी आध्यात्मिक अर्थ रखनेवाली एक कहानी दी गयी है। इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स् का भाग 2, पेज 693-4 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
आप क्या जवाब देंगे?
• होशे और गोमेर की शादी ने किस बात को दर्शाया?
• यहोवा ने इस्राएल के खिलाफ मुकद्दमा क्यों चलाया?
• होशे के अध्याय 1 से 5 से मिलनेवाले किस सबक ने आप पर खासकर असर किया?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 18 पर तसवीर]
क्या आप जानते हैं कि होशे की पत्नी किसे दर्शाती है?
[पेज 19 पर तसवीर]
सामान्य युग पूर्व 740 में अश्शूर ने सामरिया के निवासियों पर जीत हासिल की
[पेज 20 पर तसवीर]
लोग खुशी-खुशी अपने वतन लौटे