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अपने सिरजनहार की सेवा करते रहने का मेरा अटल फैसला

अपने सिरजनहार की सेवा करते रहने का मेरा अटल फैसला

जीवन कहानी

अपने सिरजनहार की सेवा करते रहने का मेरा अटल फैसला

कानस्टन्स्‌ बेनानटी की ज़ुबानी

सब कुछ इतना जल्दी हो गया कि हमें विश्‍वास नहीं हो रहा था! हमारी नन्ही-सी बिटिया, कामील को अचानक तेज़ बुखार आया और बस छः दिन के अंदर उसकी मौत हो गयी। वह सिर्फ बाईस महीने की थी। इस हादसे से मैं पूरी तरह टूट गयी थी। मेरे लिए यह दुःख सहना इतना मुश्‍किल हो गया कि मैं भी मर जाना चाहती थी। आखिर, परमेश्‍वर ने मेरे साथ ऐसा क्यों होने दिया? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

मेरे माता-पिता इटली के सिसली द्वीप में कास्टैलाममारे डेल गॉलफो नाम के कसबे के रहनेवाले थे। बाद में वे अमरीका के न्यू यॉर्क शहर में आ बसे। यहीं पर दिसंबर 8,1908 को मैं पैदा हुई। हम आठ बच्चे थे, पाँच लड़के और तीन लड़कियाँ। * तो माँ-पिताजी को मिलाकर हम कुल दस जन थे।

सन्‌ 1927 में मेरे पिताजी सान्टो काटान्डज़ारो ने बाइबल विद्यार्थियों के एक छोटे समूह की सभाओं में जाना शुरू किया। उन दिनों यहोवा के साक्षी, बाइबल विद्यार्थी कहलाते थे। हम न्यू जर्सी राज्य में रहते थे। यहाँ बाइबल विद्यार्थियों की सभाएँ चलाने के लिए जोवाननी डे चैका नाम का एक इतालवी भाई आता था। वह न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन में यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय (जिसे बेथेल कहा जाता है) में सेवा करता था। कुछ समय बाद, मेरे पिताजी प्रचार काम में हिस्सा लेने लगे और फिर उन्होंने पूरे समय की सेवा शुरू कर दी। यह काम वे सन्‌ 1953 में मरते दम तक करते रहे।

जब माँ जवान थी, तो उसका नन बनने का बड़ा अरमान था, मगर नाना-नानी ने उसे इजाज़त नहीं दी थी। माँ को पिताजी का बाइबल अध्ययन करना पसंद नहीं था, इसलिए मुझे भी पिताजी के साथ अध्ययन करने से मना कर रखा था। मगर कुछ वक्‍त बाद मैंने पिताजी की शख्सियत में कुछ बदलाव देखे, जो कि मुझे बहुत अच्छा लगा। वे एक शांत स्वभाव के और कोमल इंसान बन गए। इसलिए अब परिवार में काफी शांति थी।

इसी दरमियान, मेरी मुलाकात चार्ल्स नाम के एक आदमी से हुई जो मेरी उम्र का था। उसका जन्म ब्रुकलिन में हुआ था। और मेरे परिवार की तरह उसका परिवार भी सिसली से आया था। कुछ ही वक्‍त बाद उसके साथ मेरी मँगनी हो गयी। और सन्‌ 1931 में जब पिताजी ओहायो राज्य के कोलम्बस में हुए यहोवा के साक्षियों के अधिवेशन से लौटे, तब चार्ल्स और मैंने शादी कर ली। शादी के एक साल के अंदर हमारी बेटी कामील पैदा हुई। मगर कुछ ही समय बाद जब उसकी मौत हो गयी, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गयी। मुझसे यह दुःख सहा नहीं जा रहा था। मेरा यह हाल देखकर एक दिन चार्ल्स ने रोते हुए मुझसे कहा: “कामील मेरी भी बेटी थी। क्यों न हम एक-दूसरे का दर्द बाँटकर अपनी ज़िंदगी को आगे बढ़ाएँ?”

हमने बाइबल की सच्चाई अपनायी

चार्ल्स ने मुझे याद दिलाया कि जब पिताजी ने कामील के अंतिम संस्कार में भाषण दिया तो उसमें पुनरुत्थान की आशा का ज़िक्र किया था। मैंने चार्ल्स से पूछा: “क्या आप वाकई मानते हो कि मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे?”

उन्होंने कहा: “हाँ, मैं मानता हूँ! क्यों न हम जाँच करके देखें कि बाइबल इस बारे में और क्या कहती है?”

उस रात मुझे नींद नहीं आयी। सुबह छः बजे मैं पिताजी के पास गयी, इससे पहले कि वे काम के लिए निकल जाते। मैंने उनसे कहा कि चार्ल्स और मैं बाइबल का अध्ययन करना चाहते हैं। पिताजी खुशी से फूले न समाए और उन्होंने मुझे गले लगा लिया। माँ अब तक बिस्तर से नहीं उठी थी। उसने हमारी बातचीत सुनी तो मुझसे पूछा कि आखिर मामला क्या है। मैंने कहा: “कुछ खास नहीं। मैं बस यह कह रही थी कि चार्ल्स और मैंने बाइबल अध्ययन करने का फैसला किया है।”

इस पर माँ ने कहा: “हम सबको बाइबल का अध्ययन करने की ज़रूरत है।” फिर क्या था, मेरे सभी भाई-बहनों को मिलाकर हम 11 जन एक-साथ बाइबल का अध्ययन करने लगे।

बाइबल के अध्ययन से मुझे काफी दिलासा मिला। मैं जिन सवालों को लेकर उलझन में थी, एक-एक करके उनकी गुत्थी सुलझने लगी और निराशा की जगह आशा ने ले ली। एक साल बाद सन्‌ 1935 में, चार्ल्स और मैंने दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ बताना शुरू कर दिया। फरवरी 1937 में हमने ब्रुकलिन के मुख्यालय में एक भाषण सुना, जिसमें समझाया गया था कि बाइबल के मुताबिक पानी में बपतिस्मा लेना क्यों ज़रूरी है। इसके बाद पास के एक होटल के स्विमिंग पूल में हम दोनों का और दूसरे कई लोगों का बपतिस्मा हुआ। मैंने यह कदम सिर्फ इसलिए नहीं उठाया कि मैं भविष्य में अपनी बिटिया को दोबारा देखना चाहती थी, बल्कि इसलिए भी कि मैं अपने सिरजनहार की सेवा करना चाहती थी, जिसे अब मैं जानने और प्यार करने लगी थी।

पूरे समय की सेवा शुरू करना

मैंने जो सीखा था, उसके बारे में दूसरों को बताने से मुझे बहुत खुशी मिली और मैंने कई आशीषें पायीं। उन दिनों कई लोगों ने हमारे राज्य संदेश को कबूल किया और वे भी इस काम में हिस्सा लेने लगे। (मत्ती 9:37) सन्‌ 1941 में, चार्ल्स और मैं पायनियर बन गए। यहोवा के साक्षियों में पूरे समय के प्रचारकों को पायनियर कहा जाता है। कुछ ही समय बाद, हमने एक ट्रेलर-घर खरीदा और चार्ल्स ने पतलून बनानेवाली हमारी फैक्ट्री मेरे छोटे भाई फ्रैंक को सौंप दी। फिर एक दिन हमें एक चिट्ठी मिली जिसमें लिखा था कि हमें खास पायनियर बनाया गया है। हम खुशी से उछल पड़े। पहले-पहल हमने न्यू जर्सी में सेवा की, और बाद में हमें न्यू यॉर्क भेजा गया।

सन्‌ 1946 में हम मरीलैंड राज्य के बॉल्टीमॉर शहर में एक अधिवेशन के लिए गए। वहाँ हमसे कहा गया कि यहोवा के साक्षियों के खास नुमाइंदों के साथ होनेवाली एक बैठक में हम हाज़िर हों। बैठक में हम भाई नेथन एच. नॉर और मिल्टन जी. हैनशल से मिले। उन्होंने हमसे मिशनरी सेवा के बारे में और खासकर इटली में प्रचार काम के बारे में बात की। उन्होंने हमारे सामने वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड में हाज़िर होने की पेशकश रखी और हमसे इस बारे में सोचने को कहा।

हमसे कहा गया था: “पहले अच्छी तरह सोच लीजिए, फिर अपना फैसला हमें बताइए।” उस ऑफिस से बाहर निकलने के बाद, चार्ल्स और मैंने एक-दूसरे को देखा, फिर पीछे मुड़कर हम सीधे ऑफिस में गए। हमने कहा: “हमने इस बारे में सोच लिया है। हम गिलियड जाने के लिए तैयार हैं।” दस दिन बाद, हम गिलियड स्कूल की सातवीं क्लास में हाज़िर थे।

गिलियड के उन महीनों में हमें जो ट्रेनिंग मिली, उसे हम कभी नहीं भूल सकते। खासकर, हमारे शिक्षक जिस तरह सब्र के साथ और प्यार से हमें सिखाते थे, वह हमारे दिल को छू गया। उन्होंने हमें विदेश में सेवा करते वक्‍त आनेवाली मुश्‍किलों का सामना करने के लिए तैयार किया। जुलाई 1946 को हमारा ग्रेजुएशन हुआ, जिसके बाद हमें कुछ वक्‍त के लिए न्यू यॉर्क शहर के उस इलाके में प्रचार करने के लिए भेजा गया जहाँ बहुत-से इतालवी लोग रहते थे। इसके बाद वह दिन आया जिसका हमें बेसब्री से इंतज़ार था! जून 25,1947 को हम इटली के लिए रवाना हुए, जहाँ हमें मिशनरी सेवा करनी थी।

मिशनरी सेवा की जगह जा बसना

इटली का सफर हमने एक ऐसे जहाज़ में तय किया जो पहले फौजी कार्रवाई में इस्तेमाल होता था। चौदह दिन की समुद्री यात्रा के बाद, हम इटली के बंदरगाह शहर जेनोआ पहुँचे। दूसरे विश्‍वयुद्ध को खत्म हुए दो ही साल बीते थे, इसलिए युद्ध से इस शहर में हुई बरबादी के निशान अब भी देखे जा सकते थे। इसकी एक मिसाल थी रेलवे स्टेशन, जहाँ बमबारी की वजह से खिड़कियों का एक भी शीशा नहीं बचा था। जेनोआ से हमने मालगाड़ी पकड़ी और मिलान शहर गए, जहाँ इटली का शाखा दफ्तर और एक मिशनरी घर था।

युद्ध के बाद पूरा इटली तंगहाली की चपेट में आ गया था। देश की हालत सुधारने की कोशिशें की जा रही थीं, फिर भी गरीबी चारों तरफ फैली थी। यहाँ आते ही मेरी तबियत बहुत खराब हो गयी। एक डॉक्टर ने मेरी जाँच करके बताया कि मेरा दिल इतना कमज़ोर हो गया है कि उसकी राय में मेरा अमरीका लौट जाना बेहतर होगा। मगर शुक्र है कि उस डॉक्टर की बात गलत निकली। आज 58 साल बाद भी मैं इटली में ही सेवा कर रही हूँ।

यहाँ सेवा किए हमें कुछ ही साल हुए थे कि अमरीका में रहनेवाले मेरे सगे भाइयों ने हमें बताया कि वे हमें एक कार देना चाहते हैं। मगर चार्ल्स ने उन्हें मना कर दिया और मैं इस फैसले से खुश थी। क्योंकि जहाँ तक हमें खबर थी, उन दिनों इटली में किसी भी साक्षी के पास कार नहीं थी, इसलिए चार्ल्स ने सोचा कि अच्छा होगा अगर हम भी अपने मसीही भाइयों जैसी ज़िंदगी बिताएँ। कई सालों बाद, सन्‌ 1961 में जाकर हमने एक छोटी-सी कार ली।

मिलान में हमारा पहला राज्य घर एक तहखाना था, जिसका फर्श कच्ची मिट्टी का था। वहाँ न तो कोई बाथरूम था, ना ही पानी का कोई इंतज़ाम। अगर पानी रहता भी तो सिर्फ बारिश होने पर, जब तहखाना पानी से भर जाता था। इस राज्य घर में सिर्फ हम ही नहीं, बल्कि छोटे-छोटे चूहे भी थे जो यहाँ-वहाँ भाग-दौड़ करते नज़र आते थे। सभाओं के दौरान रोशनी के लिए दो बल्ब थे। ऐसी मुश्‍किलों के बावजूद, नेकदिल लोगों को सभाओं में आते और समय के गुज़रते हमारे साथ प्रचार में हिस्सा लेते देखकर हमें बहुत हौसला मिलता था।

मिशनरी जीवन के किस्से

एक बार हमने एक आदमी को पुस्तिका शांति—क्या यह हमेशा कायम रहेगी? (अँग्रेज़ी) दी। जब हम बातचीत खत्म करके उसके घर से निकल रहे थे, तभी उसकी पत्नी सान्टीना आयी, जो साग-सब्ज़ियों से भरे थैले पकड़े हुई थी। वह ज़रा चिढ़ी हुई थी। उसने कहा कि उसकी आठ बेटियाँ हैं, जिनकी परवरिश में ही उसका सारा वक्‍त निकल जाता है, इसलिए हमारी बातें सुनने के लिए उसके पास फुरसत नहीं है। जब मैं दोबारा सान्टीना से मिलने गयी, तब उसका पति घर पर नहीं था और वह स्वेटर बुन रही थी। उसने कहा: “आपकी बात सुनने के लिए मेरे पास वक्‍त नहीं है। और वैसे मुझे पढ़ना भी नहीं आता।”

मैंने मन-ही-मन यहोवा से प्रार्थना की और फिर सान्टीना से पूछा कि क्या आप मेरे पति के लिए एक स्वेटर बुन सकती हैं, मैं आपको पैसे दे दूँगी। दो हफ्ते बाद, मेरा स्वेटर तैयार था और मैं सान्टीना के साथ इस किताब से नियमित तौर पर बाइबल अध्ययन करने लगी, “सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी” (अँग्रेज़ी)। सान्टीना ने पढ़ना सीख लिया और अपने पति के विरोध के बावजूद उसने सच्चाई में तरक्की की और बपतिस्मा लिया। उसकी आठ में से पाँच बेटियाँ भी साक्षी बन गयीं। इसके अलावा, सान्टीना ने दूसरे कई लोगों को बाइबल की सच्चाई अपनाने में मदद दी।

सन्‌ 1951 के मार्च महीने में हमें ब्रेशा नाम के इलाके में प्रचार करने के लिए भेजा गया, जहाँ एक भी साक्षी नहीं था। हमारे साथ दो और मिशनरी बहनों को भेजा गया। एक थी, रूथ कानन * और दूसरी लॉइस कालहन। लॉइस ने बाद में बिल वंगर्ट से शादी की। ब्रेशा में हमें रहने के लिए फर्नीचर के साथ एक फ्लैट मिला। मगर दो महीने बाद मकान मालिक ने हमें 24 घंटों के अंदर घर खाली करने को कहा। वहाँ कोई भी साक्षी नहीं था, जिसकी शरण में हम जा सकते। इसलिए हमें मजबूरन एक होटल में रहना पड़ा जहाँ हमने करीब दो महीने गुज़ारे।

जहाँ तक खान-पान की बात है, हमें कॉफी, हल्के-फुल्के नाश्‍ते, थोड़े-से पनीर और कुछ फलों से ही पेट की आग बुझानी पड़ती थी। इन सारी तकलीफों के बावजूद हम ज़िंदगी से पूरी तरह खुश थे। कुछ समय बाद हमें रहने के लिए एक छोटा-सा अपार्टमेंट मिल गया। एक छोटे कमरे को हम राज्य घर के तौर पर इस्तेमाल करते थे। सन्‌ 1952 में मसीह की मौत के स्मारक पर उस छोटे-से कमरे में 35 लोग हाज़िर हुए।

चुनौतियों का सामना करना

उन दिनों कैथोलिक पादरियों का आम जनता पर काफी दबदबा था। मिसाल के लिए, एक दिन जब हम ब्रेशा में प्रचार कर रहे थे, तो एक पादरी ने कुछ लड़कों को हम पर पत्थर फेंकने के लिए भड़काया। मगर ऐसे विरोध के बावजूद, वक्‍त के गुज़रते 16 लोग हमारे साथ बाइबल अध्ययन करने लगे और कुछ ही समय के अंदर साक्षी बन गए। पता है उनमें से एक कौन था? उन्हीं लड़कों में से एक जिसने हमें पत्थर मारने की धमकी दी थी! आज वह ब्रेशा की एक कलीसिया में प्राचीन की हैसियत से सेवा कर रहा है। सन्‌ 1955 में जब हमने ब्रेशा छोड़ा, तो उस वक्‍त यहाँ 40 राज्य प्रचारक थे जो प्रचार काम में हिस्सा ले रहे थे।

इसके बाद, तीन साल तक हमने लेगहॉर्न (लीवॉर्नो) शहर में सेवा की, जहाँ ज़्यादातर साक्षी स्त्रियाँ थीं। इसलिए हम बहनों को कलीसिया में ऐसे काम करने पड़ते थे जो आम तौर पर भाइयों को सौंपे जाते हैं। फिर हम जेनोआ गए, जहाँ 11 बरस पहले हमने मिशनरी सेवा शुरू की थी। अब तक वहाँ एक कलीसिया बन चुकी थी। वहाँ का राज्य घर उसी इमारत की पहली मंज़िल पर था जिसके अपार्टमेंट में हम रहते थे।

जेनोआ पहुँचते ही मैंने एक स्त्री के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया, जिसका पति पहले मुक्केबाज़ था और मुक्केबाज़ी के एक जिम्नेज़ियम का मैनेजर भी। उस स्त्री ने आध्यात्मिक तरक्की की और बहुत जल्द हमारी मसीही बहन बन गयी। उसका पति सच्चाई का विरोध करता था और कई सालों तक उसके रवैए में कोई बदलाव नहीं आया। मगर बाद में वह अपनी पत्नी के साथ सभाओं में आने लगा। लेकिन वह राज्य घर के अंदर बैठने के बजाय, बाहर ही बैठकर कार्यक्रम सुना करता था। हमारे जेनोआ छोड़कर जाने के बाद, हमें खबर मिली कि उस आदमी ने बाइबल अध्ययन की गुज़ारिश की है। आखिरकार, उसका बपतिस्मा हो गया और वह एक अच्छा मसीही अध्यक्ष बन गया। उसने अपनी आखिरी साँस तक वफादारी बनाए रखी।

मैंने एक और स्त्री के साथ बाइबल अध्ययन किया जिसका मँगेतर एक पुलिसवाला था। पहले तो उस आदमी ने थोड़ी-बहुत दिलचस्पी दिखायी, मगर शादी के बाद वह बदल गया। वह अपनी पत्नी का विरोध करने लगा, इसलिए उस स्त्री ने अध्ययन करना बंद कर दिया। बाद में उस स्त्री ने दोबारा बाइबल अध्ययन शुरू किया। तब उसके पति ने यह कहकर उसे धमकी दी कि अगर कभी उसने बाइबल अध्ययन करते हुए उसे पकड़ लिया, तो वह हम दोनों को गोली मार देगा। फिर भी उस स्त्री ने आध्यात्मिक तरक्की की और बपतिस्मा पाकर साक्षी बन गयी। कहने की ज़रूरत नहीं कि उसके पति ने हम पर गोली नहीं चलायी। सालों बाद, जब मैं जेनोआ में एक सम्मेलन में हाज़िर थी, तो कोई मेरे पीछे से आया और अपने हाथों से मेरी आँखें बंद करके कहने लगा, बताओ तो सही मैं कौन हूँ। जब उसने मेरी आँखों से अपने हाथ हटाए, तो मैंने देखा कि वह उसी स्त्री का पति है। मैं अपने आँसुओं को रोक नहीं पायी। उसने मुझे गले लगा लिया और बताया कि उसने यहोवा को किया अपना समर्पण ज़ाहिर करने के लिए उसी दिन बपतिस्मा लिया है!

सन्‌ 1964 से लेकर 1972 तक चार्ल्स ने कलीसियाओं का दौरा करके उन्हें मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी निभायी। इस दौरान मुझे चार्ल्स के साथ-साथ सफर करने का सुअवसर मिला। हमने उत्तरी इटली के लगभग सभी इलाकों का दौरा किया—पीडमांट, लॉम्बार्डी और लिग्युरीआ। इसके बाद, हमने दोबारा पायनियर सेवा शुरू की। पहले फ्लोरेंस के पास एक इलाके में और बाद में वरचेली में। सन्‌ 1977 में वरचेली में सिर्फ एक कलीसिया थी, लेकिन सन्‌ 1999 में जब हम यह जगह छोड़कर गए तब तक यहाँ तीन कलीसियाएँ बन चुकी थीं। उस साल मैं 91 साल की हो गयी। इसलिए हमें बताया गया कि अब हम रोम के मिशनरी घर में जाकर रहें। यह एक छोटा-सा सुंदर घर है और आस-पास का इलाका भी काफी शांत है।

एक और दर्दनाक घड़ी

चार्ल्स को कभी अपनी सेहत को लेकर कोई शिकायत नहीं थी, वो बिलकुल तंदुरुस्त थे। मगर मार्च 2002 में अचानक उनकी तबियत बिगड़ गयी। उनकी हालत इतनी खराब होती गयी कि आखिरकार मई 11,2002 को वो चल बसे। शादी के बाद 71 साल तक हमने साथ मिलकर ज़िंदगी का सफर तय किया था। चाहे दुःख की घड़ियाँ हों या खुशियों के पल, हम हर वक्‍त एक-दूसरे के साथ रहे। चार्ल्स की मौत से मुझे इतना गहरा सदमा पहुँचा और खालीपन महसूस हुआ कि मैं बता नहीं सकती।

कई बार मैं अपने मन के दर्पण में चार्ल्स को देखा करती हूँ, सूट पहने हुए और सिर पर 1930 के ज़माने की टोपी। कभी उनका मुस्कराता चेहरा मेरे सामने आता है, तो कभी उनकी हँसी मेरे कानों में गूँजने लगती है। उन्हें खोने का गम सहने में यहोवा ने जिस तरह मेरी मदद की, उसके लिए मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। और अपने मसीही भाई-बहनों की भी एहसानमंद हूँ जिनके प्यार ने मुझे सँभलने में मदद दी। मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है जब मैं एक बार फिर चार्ल्स से मिल पाऊँगी।

अपनी सेवा जारी रखना

अपने सिरजनहार की सेवा करना, मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खासियत रही है। इन बीते सालों के दौरान ‘मैंने परखकर देखा है कि यहोवा कितना भला है!’ (भजन 34:8) मैंने उसका प्यार महसूस किया है और देखा है कि किस तरह वह पल-पल मेरी देखभाल करता रहा है। हालाँकि मैंने अपनी बिटिया खो दी, मगर यहोवा ने मुझे इतने सारे आध्यात्मिक बेटे-बेटियाँ दिए हैं। मेरे ये बच्चे पूरे इटली में हैं और उन्हें देखकर न सिर्फ मेरा बल्कि यहोवा का दिल भी मगन होता है।

अपने सिरजनहार के बारे में दूसरों को बताना, यह काम मुझे दुनिया के सभी कामों से प्यारा लगता है। इसीलिए आज भी मैं लोगों को प्रचार करती हूँ और बाइबल अध्ययन चलाती हूँ। कभी-कभी मुझे दुःख होता है कि मैं अपनी खराब सेहत के चलते यहोवा की सेवा ज़्यादा नहीं कर पा रही हूँ। लेकिन मुझे यकीन है कि यहोवा मेरी कमज़ोरियों के बारे में जानता है, वह मुझसे प्यार करता है और मैं जितना कर पाती हूँ, उसकी वह कदर करता है। (मरकुस 12:42) मेरी यह तमन्‍ना है कि मैं भजन 146:2 में दर्ज़ इन शब्दों के मुताबिक जीने की पूरी कोशिश करूँ: “मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक मैं अपने परमेश्‍वर का भजन गाता रहूंगा।” *

[फुटनोट]

^ मेरे एक भाई, आनजेलो काटान्डज़ारो का अनुभव अप्रैल 1,1975 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 205-7 पर प्रकाशित किया गया था।

^ इस बहन की जीवन-कहानी मई 1,1971 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 277-80 पर दी गयी है।

^ जुलाई 16,2005 को बहन बेनानटी गुज़र गयीं। उस दौरान यह लेख तैयार किया जा रहा था। बहन की उम्र 96 थी।

[पेज 13 पर तसवीर]

कामील

[पेज 14 पर तसवीर]

सन्‌ 1931 में, हमारी शादी के दिन

[पेज 14 पर तसवीर]

माँ को पहले तो कोई दिलचस्पी नहीं थी, मगर बाद में उसने माना कि हम सब को बाइबल का अध्ययन करना चाहिए

[पेज 15 पर तसवीर]

सन्‌ 1946 में, अपने गिलियड ग्रेजुएशन के दौरान भाई नॉर के साथ

[पेज 17 पर तसवीर]

चार्ल्स के साथ, उनकी मौत से कुछ ही समय पहले