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दूसरा इतिहास किताब की झलकियाँ

दूसरा इतिहास किताब की झलकियाँ

यहोवा का वचन जीवित है

दूसरा इतिहास किताब की झलकियाँ

बाइबल में दूसरा इतिहास किताब का इतिहास उस वक्‍त से शुरू होता है जब इस्राएल देश पर राजा सुलैमान की हुकूमत चल रही थी। और यह किताब खत्म होती है फारसी राजा कुस्रू के इन शब्दों से, जो उसने बाबुल की बंधुवाई में पड़े यहूदियों से कहे थे: “[यहोवा] ने मुझे आज्ञा दी है कि यरूशलेम जो यहूदा में है उस में मेरा एक भवन बनवा; इसलिये हे उसकी प्रजा के सब लोगो, तुम में से जो कोई चाहे कि उसका परमेश्‍वर यहोवा उसके साथ रहे, तो वह [यरूशलेम को] रवाना हो जाए।” (2 इतिहास 36:23) याजक एज्रा ने इस किताब की लिखाई सा.यु.पू. 460 में पूरी की थी। इसमें 500 सालों का इतिहास दर्ज़ है, यानी सा.यु.पू. 1037 से लेकर सा.यु.पू. 537 तक की घटनाएँ।

कुस्रू के फरमान जारी करने से यहूदियों के लिए यरूशलेम लौटना और वहाँ यहोवा की उपासना को बहाल करना मुमकिन होता है। लेकिन बरसों तक बाबुल की बंधुवाई में पड़े रहने का उन पर कुछ बुरा असर भी पड़ा है। लौटनेवाले इन बंधुवों को अपने देश के इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसलिए दूसरा इतिहास की किताब में, इस बारे में चंद शब्दों में जीती-जागती तसवीर पेश की गयी है कि दाऊद के राजवंश से आए राजाओं के दौर में क्या-क्या घटनाएँ हुई थीं। आज हमें भी इस किताब में दिलचस्पी है, क्योंकि यह दिखाती है कि सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञा मानने से कैसी आशीषें मिलती हैं और उसकी आज्ञाओं के खिलाफ जाने से क्या-क्या अंजाम भुगतने पड़ते हैं।

एक राजा यहोवा के लिए भवन बनवाता है

(2 इतिहास 1:1–9:31)

यहोवा, राजा सुलैमान को बुद्धि और ज्ञान देकर उसके दिल की मुराद पूरी करता है। साथ ही वह उसे दौलत और शोहरत भी देता है। सुलैमान यरूशलेम में यहोवा के लिए एक आलीशान मंदिर बनवाता है। इससे प्रजा के लोग बहुत “आनन्दित” होते हैं। (2 इतिहास 7:10) सुलैमान “धन और बुद्धि में पृथ्वी के सब राजाओं से बढ़कर” हो जाता है।—2 इतिहास 9:22.

सुलैमान इस्राएल देश पर 40 साल तक हुकूमत करता है। इसके बाद वह ‘अपने पुरखाओं के संग सो जाता है; और उसका पुत्र रहूबियाम उसके स्थान पर राजा बनता है।’ (2 इतिहास 9:31) सुलैमान के सच्ची उपासना से दूर जाने के बारे में एज्रा ने इस किताब में कुछ नहीं लिखा है। उसने बस राजा की इस मूर्खता का ज़िक्र किया है कि उसने मिस्र से कई घोड़े जमा किए थे, और फिरौन की बेटी से शादी की थी। तो हम देख सकते हैं कि इतिहासकार एज्रा ने अपनी इस किताब में सिर्फ अच्छी बातों का ब्यौरा दिया है।

बाइबल सवालों के जवाब पाना:

2:14—इस आयत में एक कारीगर की जो वंशावली बतायी गयी है, वह 1 राजा 7:14 में बतायी वंशावली से अलग क्यों है? पहला राजा किताब में उस कारीगर की माँ को ‘नप्ताली के गोत्र की विधवा’ बताया गया है, क्योंकि उसका पति उसी गोत्र का था। लेकिन यह स्त्री दान के गोत्र की थी। अपने पति के गुज़र जाने के बाद, उसने सोर देश के एक आदमी से शादी की थी, और वह कारीगर इसी सोरवासी का बेटा था।

2:18; 8:10—ये आयतें कहती हैं कि मज़दूरों पर ठहराए गए सरदारों के प्रधानों और मुखियाओं की गिनती 3,600 और 250 थी, जबकि 1 राजा 5:16; 9:23 के मुताबिक उनकी गिनती 3,300 और 550 थी। इन संख्याओं में फर्क क्यों है? फर्क शायद इसलिए है क्योंकि दोनों किताबों में उनका बँटवारा अलग-अलग तरीके से किया गया है। दूसरा इतिहास में शायद उनकी जाति के हिसाब से बताया गया है कि 3,600 जन गैर-इस्राएली मुखिया थे और 250 जन इस्राएली मुखिया थे। और पहला राजा किताब उनके ओहदे में फर्क बताती है कि 3,300 आदमी मुखिया थे और 550 जन ऊँचे पद के मुख्य हाकिम थे। वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन दोनों किताबें यही दिखाती हैं कि उन मुखियाओं की कुल गिनती 3,850 थी।

4:2-4—ढाले गए हौज़ के नीचे के हिस्से में बैलों की प्रतिमाएँ क्यों बनायी गयीं? बाइबल में बैल ताकत की निशानी हैं। (यहेजकेल 1:10; प्रकाशितवाक्य 4:6, 7) बैलों की प्रतिमाएँ बनाना बिलकुल सही था, क्योंकि ताँबे के इन 12 बैलों पर उस विशाल “हौद” को टिकाया गया था, जिसका वज़न करीब 30 टन था। बैलों की ये प्रतिमाएँ बनाना, दस आज्ञाओं में से दूसरी आज्ञा का किसी भी तरह से उल्लंघन नहीं था, क्योंकि यह दूसरी आज्ञा उपासना के लिए मूर्तियाँ बनाने की मनाही करती है।—निर्गमन 20:4, 5.

4:5—ढाले गए हौज़ में कितना पानी समा सकता था? इस हौज़ में तीन हज़ार बत यानी 66,000 लीटर पानी समा सकता था। मगर लगता है कि आम तौर पर इसकी क्षमता का लगभग दो-तिहाई हिस्सा ही भरा जाता था। पहला राजा 7:26 कहता है: “[हौज़] में दो हज़ार बत [44,000 लीटर पानी] की समाई थी।”

5:4, 5, 10—शुरू के निवास-स्थान की कौन-सी चीज़ें सुलैमान के मंदिर में रखी गयी थीं? शुरू के मिलापवाले तम्बू की सिर्फ एक ही चीज़ सुलैमान के मंदिर में रखी गयी थी, और वह थी वाचा का संदूक। मंदिर को बनाने के बाद, निवास-स्थान को गिबोन से यरूशलेम ले जाया गया और उसे शायद वहीं रखा गया था।—2 इतिहास 1:3, 4.

हमारे लिए सबक:

1:11, 12. सुलैमान की इस गुज़ारिश से यहोवा ने जाना कि बुद्धि और ज्ञान हासिल करना इस राजा की सबसे बड़ी ख्वाहिश थी। वाकई, हमारी प्रार्थनाएँ परमेश्‍वर को बताती हैं कि हमारी सबसे बड़ी ख्वाहिश क्या है। इसलिए यह जाँचना बुद्धिमानी होगी कि हम अपनी प्रार्थनाओं में यहोवा से क्या कहते हैं।

6:4. यहोवा की करुणा और भलाई के लिए हमें दिल से इतना एहसानमंद होना चाहिए कि हम यहोवा को धन्य कहें, यानी प्यार और एहसान भरे दिल से उसकी स्तुति करें।

6:18-21. हालाँकि परमेश्‍वर किसी भवन में समा नहीं सकता, फिर भी मंदिर इसलिए बनाया गया था ताकि वह यहोवा की उपासना की खास जगह बना रहे। आज के ज़माने में यहोवा के साक्षियों के राज्य घर, सच्ची उपासना की खास जगहें हैं।

6:19, 22, 32. यहोवा सबकी प्रार्थनाएँ सुनने के लिए तैयार था, फिर चाहे वह देश का राजा हो या छोटे-से-छोटा इंसान, और यहाँ तक कि जब कोई परदेशी सच्चे मन से उसे पुकारता तो उसकी दोहाई भी वह सुनता था। *भजन 65:2.

दाऊद के वंश से आए राजाओं का क्रम

(2 इतिहास 10:1–36:23)

इस्राएल के सभी गोत्रों से मिलकर बना राज्य अब दो हिस्सों में बँट जाता है। एक है, उत्तर का दस गोत्रोंवाला राज्य और दूसरा, दक्षिण में यहूदा और बिन्यामीन का दो गोत्रोंवाला राज्य। पूरे इस्राएल के याजक और लेवी अपने देश से ज़्यादा राज्य की वाचा के वफादार रहने का चुनाव करते हैं, और सुलैमान के बेटे रहूबियाम के पक्ष में होते हैं। मंदिर को बनाने का काम पूरा हुए 30 ही साल हुए हैं कि उसका खज़ाना लूट लिया जाता है।

रहूबियाम के बाद आनेवाले 19 राजाओं में से 5 वफादार हैं, 3 शुरू में तो अच्छे रहते हैं मगर बाद में यहोवा से मुकर जाते हैं, और एक राजा अपने बुरे मार्ग से फिर जाता है। बाकी सारे राजा वही करते हैं जो यहोवा की नज़रों में बुरा है। * दूसरा इतिहास किताब में खासकर उन पाँच राजाओं के कामों की जानकारी दी गयी है जिन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा था। हिजकिय्याह ने कैसे मंदिर की सेवाएँ दोबारा शुरू करवायीं और योशिय्याह ने कैसे एक महान फसह का इंतज़ाम किया था, इन घटनाओं के बारे में पढ़ने से उन यहूदियों को काफी हिम्मत मिली होगी जो यरूशलेम में यहोवा की उपासना बहाल करना चाहते थे।

बाइबल सवालों के जवाब पाना:

13:5—“लोनवाली वाचा” का मतलब क्या है? लोन या नमक में चीज़ों को सड़ने से बचाने की शक्‍ति होती है। इसलिए नमक को किसी चीज़ के टिकाऊ और स्थायी होने की निशानी माना जाता है। तो “लोनवाली वाचा” का मतलब है ऐसा करारनामा जो हमेशा अटल रहेगा।

14:2-5; 15:17—क्या राजा आसा ने सभी “ऊंचे स्थान” निकाल दिए थे? ऐसा लगता है कि उसने सभी “ऊंचे स्थान” नहीं निकाले। शायद उसने सिर्फ उन ऊँचे स्थानों को मिटाया जहाँ झूठे देवताओं की पूजा की जाती थी, मगर उन ऊँचे स्थानों को छोड़ दिया जहाँ लोग यहोवा की उपासना करते थे। या हो सकता है कि आसा की हुकूमत के आखिरी सालों में ऊँचे स्थान दोबारा बनाए गए हों। इन ऊँचे स्थानों को आसा के बेटे यहोशापात ने मिटा दिया। मगर यहोशापात की हुकूमत के दौरान भी सारे के सारे ऊँचे स्थान नहीं मिटाए गए थे।—2 इतिहास 17:5, 6; 20:31-33.

15:9; 34:6—इस्राएल राज्य का जो बँटवारा किया गया था, उसमें शिमोन के गोत्र का हिस्सा कहाँ था? शिमोन को यहूदा के इलाके में ही शहर दिए गए थे, इसलिए इलाके के हिसाब से देखें तो शिमोन का गोत्र यहूदा और बिन्यामीन के राज्य में ही था। (यहोशू 19:1) मगर, उपासना के मामले में यह गोत्र उत्तरी राज्य की तरफ हो गया था और उसने वहाँ की हुकूमत का साथ दिया था। (1 राजा 11:30-33; 12:20-24) इसलिए, शिमोन को दस गोत्रवाले उत्तरी राज्य का हिस्सा समझा जाता था।

16:13, 14न्यू वर्ल्ड ट्रांसलेशन के मुताबिक क्या आसा की लाश को जलाया गया था? नहीं, इस बाइबल में जब यह आयत कहती है कि ‘अंत्येष्टि में बहुत बड़े पैमाने पर जलाया गया था’ तो उसका मतलब यह नहीं है कि आसा की लाश को जलाया गया था, बल्कि यह है कि उसकी अंत्येष्टि में खुशबूदार मसाले जलाए गए थे।

35:3—योशिय्याह ने पवित्र संदूक को कहाँ से लाकर मंदिर में रखवाया था? हो सकता है, योशिय्याह से पहले के दुष्ट राजाओं में से किसी ने उसे मंदिर से निकालकर कहीं और रख दिया हो। या फिर योशिय्याह ने जब बड़े पैमाने पर मंदिर की मरम्मत करवायी थी, तो उस दौरान संदूक को नुकसान से बचाने के लिए शायद कहीं और रखवा दिया था। बाइबल इस बारे में कुछ नहीं बताती। सुलैमान के ज़माने के बाद, संदूक का ज़िक्र सिर्फ इसी वाकये में आता है जब योशिय्याह ने उसे दोबारा मंदिर में रखवाया था।

हमारे लिए सबक:

13:13-18; 14:11, 12; 32:9-23. यहोवा पर भरोसा रखने की अहमियत के बारे में हम क्या ही बढ़िया सबक सीख सकते हैं!

16:1-5, 7; 18:1-3, 28-32; 21:4-6; 22: 10-12; 28:16-22. पराए लोगों यानी अविश्‍वासियों के साथ संधि करने या रिश्‍ता जोड़ने का अंजाम खतरनाक हो सकता है। दुनिया के मामलों से दूर रहना ही हमारे लिए अक्लमंदी होगी।—यूहन्‍ना 17:14, 16; याकूब 4:4.

16:7-12; 26:16-21; 32:25, 26. राजा आसा इतना अहंकारी हो गया था कि अपनी ज़िंदगी के आखिरी सालों में उसने बहुत बुराई की। उज्जिय्याह का घमंड उसकी बरबादी का सबब बना। और हिजकिय्याह भी शायद फूल उठा था, इसीलिए उसने बाबुल के दूतों को अपना खज़ाना दिखाकर बड़ी मूर्खता का काम किया। (यशायाह 39:1-7) बाइबल हमें चेतावनी देती है: “विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है।”—नीतिवचन 16:18.

16:9. यहोवा ऐसे लोगों की मदद करता है जिनका हृदय उसकी ओर निष्कपट है, और उनकी खातिर अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करने के लिए वह उत्सुक रहता है।

18:12, 13, 23, 24, 27. मीकायाह की तरह हमें भी निडर होकर यहोवा और उसके उद्देश्‍यों के बारे में दूसरों को बताना चाहिए।

19:1-3. यहोवा हमेशा हमारे अंदर अच्छाइयाँ ढूँढ़ता है, ऐसे वक्‍त पर भी जब हम उसे नाराज़ कर देते हैं।

20:1-28. हम इस बात का पूरा भरोसा रख सकते हैं कि जब हम यहोवा के मार्गदर्शन के लिए नम्रता से उससे बिनती करेंगे, तो वह ज़रूर हमें सही राह दिखाएगा।—नीतिवचन 15:29.

20:17. अगर हम ‘यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना’ चाहते हैं, तो हमें अपनी-अपनी जगह पर “ठहरे रहना” होगा, यानी जी-जान से परमेश्‍वर के राज्य की पैरवी करनी होगी। हमें मामलों को अपने हाथ में लेने के बजाय, चुपचाप ‘खड़े रहना’ चाहिए यानी यहोवा पर पूरा भरोसा रखना चाहिए।

24:17-19; 25:14. योआश और उसके बेटे अमस्याह के लिए मूर्तिपूजा एक फंदा साबित हुई। आज हमें भी मूर्तिपूजा गलत राह पर ले जा सकती है, खासकर लोभ और राष्ट्रीयवाद, जो मूर्तिपूजा के ऐसे तरीके हैं जिन्हें पहचानना मुश्‍किल है।—कुलुस्सियों 3:5; प्रकाशितवाक्य 13:4.

32:6, 7. ‘परमेश्‍वर के सारे हथियार बान्धकर’ आध्यात्मिक युद्ध लड़ते वक्‍त हमें भी निडर और मज़बूत होना चाहिए।—इफिसियों 6:11-18.

33:2-9, 12, 13, 15, 16. एक इंसान अपना सच्चा पश्‍चाताप तब दिखाता है जब वह गलत रास्ते पर चलना छोड़ देता है और सही काम करने के लिए जी-जान से कोशिश करता है। सच्चा पश्‍चाताप करने से, राजा मनश्‍शे जैसा खराब इंसान भी यहोवा की दया पा सकता है।

34:1-3. बचपन में हमारे हालात चाहे कितने ही बुरे रहे हों, फिर भी ज़रूरी नहीं कि परमेश्‍वर को जानने और उसकी सेवा करने में ये हालात हमारे लिए रुकावट बन जाएँ। जब योशिय्याह छोटा था, तब शायद उसके दादा मनश्‍शे का उस पर अच्छा असर पड़ा था, जिसने तब तक अपने बुरे कामों से पश्‍चाताप कर लिया था। योशिय्याह पर चाहे जिस तरह से भी अच्छा असर पड़ा हो, आगे चलकर इसके बढ़िया नतीजे निकले। हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है।

36:15-17. यहोवा करुणा दिखानेवाला और धीरज धरनेवाला परमेश्‍वर है। मगर उसकी करुणा और उसके धीरज की कुछ सीमाएँ भी हैं। इस दुष्ट संसार पर यहोवा की तरफ से आनेवाले नाश से बचने के लिए, ज़रूरी है कि लोग राज्य का संदेश सुनें और उसे कबूल करें।

36:17, 22, 23. यहोवा जो कहता है, वह हमेशा सच निकलता है।—1 राजा 9:7, 8; यिर्मयाह 25:9-11.

एक किताब ने उसे कदम उठाने के लिए उकसाया

दूसरा इतिहास 34:33 कहता है कि “योशिय्याह ने इस्राएलियों के सब देशों में से सब घिनौनी वस्तुओं को दूर करके जितने इस्राएल में मिले, उन सभों से उपासना कराई; अर्थात्‌ उनके परमेश्‍वर यहोवा की उपासना कराई।” योशिय्याह को यह कदम उठाने के लिए किस बात ने उकसाया? जब शापान नाम के मंत्री को यहोवा की व्यवस्था की किताब मिली, तो वह उसे राजा योशिय्याह के पास ले आया। फिर राजा ने उस किताब को पढ़वाया। किताब की बातों का योशिय्याह पर इतना गहरा असर हुआ कि उसने मरते दम तक शुद्ध उपासना को ज़ोर-शोर से बढ़ावा दिया।

परमेश्‍वर के वचन को पढ़ने और पढ़ी हुई बातों पर मनन करने से हम पर गहरा असर पड़ सकता है। दाऊद के वंश से आए राजाओं के वृत्तांत पर मनन करने से क्या हमें बढ़ावा नहीं मिलता कि हम उन राजाओं की मिसाल पर चलें जिन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा, और उनके जैसे न बनें जिन्होंने उस पर भरोसा नहीं रखा था? दूसरा इतिहास किताब हमें उकसाती है कि हम सिर्फ और सिर्फ सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की भक्‍ति करें और हमेशा उसके वफादार बने रहें। इस किताब का संदेश वाकई जीवित और असरदार है।—इब्रानियों 4:12.

[फुटनोट]

^ मंदिर के उद्‌घाटन से जुड़े सवालों के जवाबों के लिए और उस मौके पर सुलैमान की प्रार्थना से मिलनेवाले सबक के बारे में जानने के लिए प्रहरीदुर्ग जुलाई 1, 2005, पेज 28-31 देखिए।

^ यहूदा के राजाओं में कौन किसके बाद आया था, इसकी सूची के लिए अगस्त 1, 2005 के प्रहरीदुर्ग का पेज 12 देखिए।

[पेज 18 पर तसवीर]

क्या आप जानते हैं कि हौज़ के निचले हिस्से के लिए बैलों की प्रतिमाएँ बनाना क्यों बिलकुल सही था?

[पेज 21 पर तसवीरें]

योशिय्याह को बचपन में बहुत कम आध्यात्मिक मदद मिली थी, फिर भी वह बड़ा होकर यहोवा का वफादार सेवक बना