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प्रेम, विश्‍वास और आज्ञा मानने का जीता जागता सबूत

प्रेम, विश्‍वास और आज्ञा मानने का जीता जागता सबूत

प्रेम, विश्‍वास और आज्ञा मानने का जीता जागता सबूत

न्यूयॉर्क के वॉलकिल इलाके में वॉचटावर फार्म्स पर, मई 16, 2005 की सुबह की ठंडक और धूप से समाँ बड़ा ही सुहाना लग रहा था। सूरज निकलने से कुछ देर पहले यहाँ बारिश हुई थी, इसलिए ताज़ा कटी घास के बड़े-बड़े लॉन और फूलों पर बारिश की बूँदें सूरज की रोशनी में झिलमिला रही थीं। पास ही तालाब में किनारे-किनारे एक बत्तख अपने आठ छोटे-छोटे बच्चों के साथ मज़े से तैर रही थी। वहाँ आए मेहमान इन खूबसूरत नज़ारों को आँखों में भरते हुए उनकी दाद देते रहे। वे धीमी आवाज़ में बुदबुदाते हुए एक-दूसरे से बात कर रहे थे, मानो सुबह के उस शांत वातावरण की खामोशी को तोड़ना न चाहते हों।

ये मेहमान यहोवा के साक्षी थे, जो दुनिया-भर के 48 देशों से आए थे। लेकिन वे बस इन खूबसूरत नज़ारों का लुत्फ उठाने नहीं आए थे। वे तो यह देखना चाहते थे कि अमरीका के वॉलकिल, बेथेल अहाते में अभी-अभी जो लाल-ईंटों से एक बड़ी इमारत बनायी गयी है, उसमें क्या कुछ हो रहा है। जब वे इमारत में दाखिल हुए, जो अंदर से बहुत लंबी-चौड़ी थी, तो वहाँ का नज़ारा भी देखकर वे दंग रह गए, हालाँकि माहौल बाहर की तरह कतई शांत नहीं था।

परछत्ती से जब मेहमानों ने नीचे देखा तो उन्हें मशीनें-ही-मशीनें नज़र आयीं, जो किसी भूलभुलैया से कम नहीं थीं। कंक्रीट से बने चमकीले फर्श पर पाँच विशालकाय प्रेस पैर पसारे दिखायी दीं। यह जगह इतनी बड़ी थी कि इसमें नौ फुटबॉल मैदान समा जाएँ। यही वह जगह है जहाँ बाइबलें, किताबें और पत्रिकाएँ छापी जाती हैं। प्रेस पर कागज़ के बड़े-बड़े रोल लगे थे जिनमें से हरेक का वज़न 1,700 किलो तक होता है। तेज़ रफ्तार से घूमते ये रोल ऐसे लगते थे मानो ट्रक के पहिए घूम रहे हों। तेईस किलोमीटर लंबे कागज़ का एक रोल महज़ 25 मिनट में खाली होकर प्रेस से निकल जाता था। इस दौरान प्रेस कागज़ पर छपाई करती और फिर स्याही को सुखाकर ठंडा कर देती थी, ताकि कागज़ की तह लगाकर उसे पत्रिका का रूप दिया जा सके। फिर पत्रिकाएँ ऊपर लगे पट्टे की मदद से तेज़ रफ्तार से आगे बढ़ती जा रही थीं, ताकि इन्हें इकट्ठा करके बक्सों में डालकर कलीसियाओं को भेजा जा सके। कुछ और प्रेस भी थीं, जो किताबों के पन्‍नों के गट्ठे छाप रही थीं। इन गट्ठों को फटाफट निकालकर, एक स्टोर में ज़मीन से लेकर छत तक रखा जा रहा था। बाद में इन्हें जिल्दसाज़ी की जगह भेज दिया जाता है जहाँ उन पर जिल्द चढ़ायी जाती है। यह सारा काम कंप्यूटर के ज़रिए अचूक तरीके से और मानो एक लय में हो रहा था।

छपाईखाने के बाद मेहमान जिल्दसाज़ी की जगह देखने गए। यहाँ ऐसी मशीनें हैं जो एक दिन में करीब 50,000 सख्त जिल्दवाली किताबें और डीलक्स बाइबलें तैयार करती हैं। किताबों के पन्‍नों के गट्ठों को सही क्रम में इकट्ठा करके साथ बाँधा और चिपकाया जाता है और फिर इनके किनारे कतरे जाते हैं। इसके बाद इन पर जिल्द चढ़ायी जाती है। तैयार किताबों को डिब्बों में डाल दिया जाता है। इसके बाद, मशीनें इन डिब्बों को सीलबंद कर, इन पर लेबल लगा देती हैं और इन्हें लकड़ी के पायदानों पर जमा कर देती हैं। यहाँ से माल ढोनेवाली गाड़ियाँ इन डिब्बों को उठा ले जाती हैं। इसके अलावा, मशीनों की एक और कतार है जो एक दिन में 1,00,000 मुलायम जिल्दवाली किताबें तैयार करती है। यह भी कई मशीनों से बना एक विशालकाय ताना-बाना है जिसमें अनगिनत मोटरें, पट्टे, कलपुर्ज़े, पहिए और बेल्टें हैं। ये सभी बिजली की रफ्तार से चलती हुई, बाइबल की समझ देनेवाला साहित्य छापती हैं।

एक बेहतरीन घड़ी के पुर्ज़ों में जैसा अचूक तालमेल होता है, वैसी उम्दा तालमेल से काम करनेवाली ये मशीनें आधुनिक तकनीक का एक बेमिसाल अजूबा हैं। और जैसा हम आगे देखेंगे, ये मशीनें परमेश्‍वर के लोगों के प्रेम, विश्‍वास और आज्ञा मानने के जज़्बे का भी जीता-जागता सबूत हैं। लेकिन सवाल यह है कि छपाई का सारा काम न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन से हटाकर वॉलकिल क्यों लाया गया?

एक बड़ी वजह थी, छपाई करने और साहित्य भेजने के काम को एक ही छत के नीचे लाकर इसे सरल बनाना। किताबें छापने का काम बरसों से ब्रुकलिन में हो रहा था और वहीं से इन्हें दूसरी जगहों तक भेजा जाता था, जबकि पत्रिकाएँ वॉलकिल में छापी और वहीं से भेजी जाती थीं। दोनों काम एक ही जगह करने से न सिर्फ कम लोगों की ज़रूरत पड़ती, बल्कि परमेश्‍वर के काम के लिए मिलनेवाले दान का किफायत से इस्तेमाल भी हो पाता। इसके अलावा, ब्रुकलिन की प्रेसें पुरानी हो गयी थीं, इसलिए जर्मनी से दो नयी MAN रोलैण्ड लिथोमन प्रिंटिंग प्रेसें मँगवाई गयी थीं। लेकिन ये प्रेसें इतनी बड़ी हैं कि ब्रुकलिन के छापेखाने में नहीं समा सकती थीं।

यहोवा की आशीष

किताबें-पत्रिकाएँ छापने का हमेशा से एक ही मकसद रहा है, परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाना। और देखा गया है कि इस काम पर शुरू से यहोवा की आशीष रही है। सन्‌ 1879 से लेकर 1922 तक किताबों की छपाई का काम बाहर की प्रेसों में करवाया जाता था। फिर सन्‌ 1922 में ब्रुकलिन शहर में 18 कॉनकॉर्ड स्ट्रीट पर एक छः मंज़िला इमारत किराए पर ली गयी और किताबों की छपाई के लिए ज़रूरी साधन खरीदे गए। मगर उस वक्‍त कुछ लोगों को लग रहा था कि हमारे भाई शायद इस काम में कामयाब नहीं हो पाएँगे।

ऐसी राय रखनेवालों में एक था, उस कंपनी का प्रेसिडेंट जिसके छापेखाने में अब तक हमारी ज़्यादातर किताबें छापी जाती थीं। जब वह कॉनकॉर्ड स्ट्रीट पर नयी जगह देखने आया तो उसने कहा: “तुम लोगों ने छपाई की सबसे बेहतरीन मशीनें तो हासिल कर ली हैं, मगर तुम्हारे पास एक भी ऐसा आदमी नहीं जो उनके बारे में ज़रा-सी भी जानकारी रखता हो। छः महीने के अंदर-अंदर जब तुम्हारी सारी मशीनें ज़ंग खा जाएँगी न, तब तुम्हें अक्ल आएगी कि जो लोग अब तक तुम्हारी किताबें छाप रहे थे यह उन्हीं के बस का काम है।”

उस वक्‍त के प्रिंटरी अध्यक्ष भाई रॉबर्ट जे. मार्टिन ने बाद में कहा: “उस आदमी की बात सही तो लग रही थी, लेकिन उसने प्रभु को ध्यान में नहीं रखा; प्रभु शुरू से ही हमारे साथ रहा है। . . . और उसकी आशीष से कुछ ही वक्‍त के अंदर हम अपनी किताबें खुद छापने लगे।” तब से लेकर अगले 80 सालों के दौरान यहोवा के साक्षियों ने अपनी प्रिंटिंग प्रेसों में अरबों किताबें वगैरह छापी हैं।

फिर अक्टूबर 5, 2002 को वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ पेन्सिलवेनिया की सालाना बैठक में यह घोषणा की गयी कि शासी निकाय ने छपाई के काम को अमरीका के शाखा दफ्तर से हटाकर वॉलकिल भेजने की मंज़ूरी दे दी है। दो नयी प्रेसों का ऑर्डर दिया जा चुका था, जिनके आने की तारीख थी फरवरी, 2004. अब भाइयों पर यह ज़िम्मेदारी थी कि वे 15 महीनों के अंदर-अंदर वॉलकिल के छापेखाने को और बड़ा करने का डिज़ाइन तैयार कर उसे साकार रूप दें, ताकि नयी प्रेसों के लिए जगह तैयार हो सके। उसके बाद, अगले 9 महीने के अंदर जिल्दसाज़ी और साहित्य भेजनेवाली नयी मशीनों को लगाने का काम पूरा करना था। शायद कुछ लोगों को शक हुआ होगा कि इतने कम समय में क्या यह सारा काम पूरा होगा! लेकिन हमारे भाइयों को यकीन था कि यहोवा की मदद से यह काम ज़रूर पूरा होगा।

“आपसी सहयोग का क्या ही खुशनुमा माहौल”

यह जानते हुए भाइयों ने काम शुरू कर दिया कि यहोवा के लोग मदद करने के लिए खुशी-खुशी आगे आएँगे। (भजन 110:3) काम इतना ज़्यादा था कि बेथेल के निर्माण विभागों में जितने लोग थे, उससे कहीं ज़्यादा लोगों की ज़रूरत थी। अमरीका और कैनडा से 1,000 से ज़्यादा ऐसे भाई-बहन आए जिन्हें निर्माण काम में हुनर हासिल था। कुछ लोगों ने एक हफ्ते के लिए, कुछ ने उससे ज़्यादा, और कुछ ने तीन महीनों तक, थोड़े समय की स्वयंसेवा कार्यक्रम के तहत खुशी-खुशी सेवा की। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय सेवा और अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवा कार्यक्रमों के तहत सेवा करनेवालों को भी इस काम में हाथ बँटाने के लिए बुलाया गया। स्थानीय निर्माण समितियों ने भी काफी मदद दी।

वॉलकिल की इस निर्माण योजना में सेवा करने के लिए, कुछ लोगों को यहाँ तक आने के सफर में भारी खर्च उठाना पड़ा और नौकरी से भी छुट्टी लेनी पड़ी। मगर उन्होंने ये सारे त्याग खुशी-खुशी किए। अमरीका के बेथेल परिवार के सदस्यों ने इन सारे स्वयंसेवकों के लिए ठहरने और खाने-पीने का इंतज़ाम करने में कड़ी मेहनत की और इस तरह निर्माण योजना को सफल बनाने में हिस्सा लिया। ब्रुकलिन, पैटरसन और वॉलकिल के बेथेल परिवारों के 535 से ज़्यादा सदस्यों ने हफ्ते के पाँच दिन अपना-अपना काम करने के अलावा, शनिवार के दिनों में खुद आगे बढ़कर निर्माण काम में हिस्सा लिया। परमेश्‍वर के लोगों ने इस महान काम को अंजाम देने के लिए दिल खोलकर जो मदद दी, वह सिर्फ इसलिए मुमकिन हुई क्योंकि इसके पीछे यहोवा का हाथ था।

दूसरों ने पैसे वगैरह दान करके मदद दी। मिसाल के लिए, नौ साल की ऐबी से भाइयों को एक चिट्ठी मिली। उसने लिखा: “आप कितनी मेहनत करके हमारे लिए अच्छी-अच्छी किताबें बनाते हो, मैं आपकी बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। मैं शायद बहुत जल्द आप लोगों को देखने आऊँगी। डैडी कह रहे थे कि हम अगले साल आएँगे! मैं एक बैज पहनूँगी ताकि आप मुझे पहचान सको। नयी प्रिंटिंग प्रेस के लिए मेरी तरफ से 20 डॉलर लीजिए! ये पैसे मुझे जेब खर्च के लिए दिए गए थे, मगर मैं आप भाइयों को देना चाहती हूँ।”

एक बहन ने लिखा: “मैंने आप लोगों के लिए क्रोशिए से कुछ टोपियाँ बनायी हैं, कृपया मेरा यह छोटा-सा तोहफा कबूल कीजिए। मैं चाहती हूँ कि ये टोपियाँ वॉलकिल की निर्माण योजना में काम कर रहे भाई-बहनों को दी जाएँ। एक एल्मैनेक में बताया गया है कि इस साल ठंड बहुत ज़बरदस्त होगी। यह बात सही है या नहीं, मैं नहीं जानती। लेकिन मुझे इतना पता है कि वॉलकिल में ज़्यादातर काम चारदीवारी के बाहर होगा, इसलिए मैं चाहती हूँ कि हमारे भाई-बहन ठंड से अपना सिर बचा सकें। वहाँ के निर्माण काम के लिए ज़रूरी एक भी हुनर मुझमें नहीं है, लेकिन मुझे क्रोशिए से बुनने का काम आता है, इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न इस हुनर का इस्तेमाल करके अपनी तरफ से कुछ मदद करूँ।” इस बहन ने क्रोशिए से 106 टोपियाँ बनाकर भेजीं!

प्रिंटरी को बनाने का सारा काम वक्‍त पर पूरा हो गया। प्रिंटरी अध्यक्ष जॉन लारसन ने कहा: “भाई-बहनों के बीच आपसी सहयोग का क्या ही खुशनुमा माहौल था। क्या इसमें शक की कोई गुंजाइश बचती है कि इस काम पर यहोवा की आशीष थी? सब कुछ इतनी तेज़ी से हो गया कि आँखों पर विश्‍वास नहीं हो रहा। मुझे मई 2003 का वह वक्‍त याद है जब मैं खाली ज़मीन पर खड़े भाइयों को नींव डालते देख रहा था। अब एक साल भी नहीं हुआ कि ठीक उसी जगह पर मैंने एक प्रिंटिंग प्रेस को काम करते देखा।”

समर्पण कार्यक्रम

नयी प्रिंटरी और उसके साथ बेथेल सदस्यों के रहने के लिए तीन इमारतों का समर्पण कार्यक्रम, मई 16, 2005 के दिन सोमवार को रखा गया था। पैटरसन और ब्रुकलिन, साथ ही कैनडा बेथेल परिवार के सदस्यों को यह कार्यक्रम वीडियो से दिखाया गया। कुल मिलाकर 6,049 लोगों ने इस कार्यक्रम का आनंद लिया। यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य, थियोडोर जारज़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और संस्था के छपाई काम का इतिहास चंद शब्दों में बताया। शाखा समिति के सदस्य जॉन लारसन और जॉन कीकॉट ने कुछ इंटरव्यू लेकर और वीडियो पर कुछ घटनाओं की झलक दिखाकर बताया कि अमरीका में यह निर्माण काम और छपाई मशीनों को लगाने का सारा काम शुरू से आखिर तक कैसे चला। शासी निकाय के सदस्य भाई जॉन बार ने कार्यक्रम का आखिरी भाषण देकर, नयी प्रिंटरी और तीनों इमारतों को यहोवा परमेश्‍वर को समर्पित किया।

अगले हफ्ते के दौरान, पैटरसन और ब्रुकलिन के बेथेल सदस्यों को इन नयी इमारतों का दौरा करने का मौका दिया गया। उस दौरान कुल मिलाकर 5,920 लोगों ने दौरा किया।

प्रिंटरी के बारे में हमारा नज़रिया क्या है?

भाई बार ने समर्पण भाषण में ज़ोर देकर कहा कि प्रिंटरी भले ही देखनेलायक चीज़ है, मगर इसकी रौनक इसमें लगायी मशीनों से नहीं है। इसके बजाय, लोगों की वजह से इसकी अहमियत बढ़ जाती है। यहाँ हम जो साहित्य छापते हैं, उसका लोगों की ज़िंदगी पर गहरा असर पड़ता है। यही वह बात है जो इस प्रिंटरी को एक खास प्रिंटरी बनाती है।

यहाँ लगायी हर नयी प्रेस एक घंटे और कुछ मिनट में दस लाख ट्रैक्ट छाप सकती है। लेकिन एक इंसान की ज़िंदगी की कायापलट करने के लिए इनमें से बस एक ट्रैक्ट काफी है। मिसाल के लिए, सन्‌ 1921 में दक्षिण अफ्रीका में कुछ कर्मचारी रेल की एक पटरी की मरम्मत कर रहे थे। तभी उनमें से एक आदमी, क्रिस्टियान को एक पटरी के नीचे कागज़ का एक टुकड़ा फँसा हुआ दिखायी पड़ा। वह पर्चा हमारा एक ट्रैक्ट था। क्रिस्टियान ने बड़ी दिलचस्पी के साथ उसे पढ़ा। फिर वह अपने दामाद के पास दौड़ा-दौड़ा गया और मारे खुशी के कहने लगा: “आज मैंने सच्चाई पा ली है!” कुछ समय बाद, उन दोनों ने इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए दक्षिण अफ्रीका के शाखा दफ्तर को खत लिखा। तब शाखा दफ्तर ने उन्हें कुछ बाइबल साहित्य भेजा। उन दोनों आदमियों ने अध्ययन किया, बपतिस्मा लिया और फिर वे दूसरों को बाइबल की सच्चाई सिखाने लगे। उनके बताने से और भी कई लोगों ने सच्चाई को अपनाया। सन्‌ 1990 के दशक की शुरूआत तक उनके खानदान के 100 से ज़्यादा लोग यहोवा के साक्षी बन गए थे। यह सब रेल की पटरी पर मिले एक ट्रैक्ट का कमाल था!

भाई बार ने बताया कि हम जो साहित्य छापते हैं, वह लोगों को सच्चाई में लाता है, उन्हें सच्चाई में बने रहने में मदद देता है, उनके अंदर लगातार जोश भरता रहता है और हमारे भाईचारे के बंधन को और मज़बूत करता है। और सबसे अहम बात यह है कि यह साहित्य, जिसे बाँटने में हम सभी हिस्सा लेते हैं, हमारे परमेश्‍वर यहोवा की महिमा करता है!

प्रिंटरी के बारे में यहोवा का क्या नज़रिया है?

भाई बार ने हाज़िर लोगों से इस बारे में भी सोचने को कहा कि प्रिंटरी के बारे में यहोवा का क्या नज़रिया होगा। बेशक, वह अपना काम करवाने के लिए इस पर निर्भर नहीं है। वह चाहे तो पत्थरों से भी खुशखबरी का प्रचार करवा सकता है! (लूका 19:40) यहोवा परमेश्‍वर को इन मशीनों की जटिलता, रफ्तार, उनके आकार या उनकी क्षमता देखकर कोई ताज्जुब नहीं होता। यह सब उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि उसने तो पूरे विश्‍व को बनाया है! (भजन 147:10, 11) यहोवा छपाई के ऐसे बढ़िया तरीकों के बारे में जानता है, जिनके बारे में इंसान कभी खयालों में भी नहीं सोच सकता, ना ही वैसी मशीनें बना सकता है। तो फिर, वह क्या चीज़ है जो यहोवा के लिए सचमुच मायने रखती है? प्रिंटरी में काम करनेवाले उसके लोगों के अनमोल गुण—उनका प्रेम, विश्‍वास और आज्ञा मानने का जज़्बा, जो इस प्रिंटरी के ज़रिए साफ झलकता है।

यह प्रिंटरी किस तरह यहोवा के लोगों के प्रेम का सबूत है, इसे समझाने के लिए भाई बार ने एक मिसाल दी। एक लड़की अपने माता-पिता के लिए एक केक बनाती है। माता-पिता उस केक को देखकर ज़रूर खुश होंगे। मगर केक चाहे जैसा भी हो, उससे ज़्यादा जो बात माता-पिता के दिल को छू जाएगी, वह है उनकी बच्ची का प्यार जिसकी वजह से बच्ची में अपने माता-पिता के लिए कुछ करने का जज़्बा पैदा हुआ। उसी तरह, जब यहोवा इस नयी प्रिंटरी को देखता है, तो वह इस इमारत और इन मशीनों से ज़्यादा एक और बात पर ध्यान देता है। सबसे पहले तो वह इस प्रिंटरी को उसके नाम के लिए हमारे प्रेम का सबूत समझता है।—इब्रानियों 6:10.

इसके अलावा, जिस तरह यहोवा ने नूह के बनाए जहाज़ को उसके विश्‍वास का सबूत माना, उसी तरह वह इस प्रिंटरी को हमारे विश्‍वास का जीता-जागता सबूत मानता है। हमारा यह विश्‍वास किस बात पर है? नूह को विश्‍वास था कि यहोवा ने जो कहा है वह ज़रूर सच होगा। आज हमें यह विश्‍वास है कि हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं, खुशखबरी वह सबसे खास संदेश है जिसका सारी दुनिया में ऐलान किया जा रहा है और लोगों के लिए इसे सुनना बहुत ज़रूरी है। हम जानते हैं कि बाइबल का संदेश लोगों की ज़िंदगी बचा सकता है।—रोमियों 10:13, 14.

बेशक, यहोवा इस प्रिंटरी को इस बात का भी सबूत मानता है कि हमारे अंदर उसकी आज्ञा मानने का जज़्बा है। जैसा हम जानते हैं, यह उसकी मरज़ी है कि अंत आने से पहले खुशखबरी का ऐलान धरती के कोने-कोने तक किया जाए। (मत्ती 24:14) इस काम को पूरा करने में यह प्रिंटरी, साथ ही दूसरे देशों के छापेखाने बहुत मददगार साबित होंगे।

इस प्रिंटरी के लिए दान देने, इसका निर्माण करने और इसमें छपाई का काम शुरू करने में सबने जो प्रेम, विश्‍वास और आज्ञा मानने का जज़्बा दिखाया था, बिलकुल वैसा ही जज़्बा दुनिया के सभी हिस्सों में रहनेवाले यहोवा के लोग दिखाते हैं और वे उन सभी को सच्चाई सिखाने में लगे हुए हैं जो सुनने के लिए तैयार हैं।

[पेज 11 पर बक्स/तसवीरें]

अमरीका में छपाई के काम में हुई बढ़ोतरी

1920: 35 मर्टल ऐवन्यू, ब्रुकलिन में पहली रोटरी प्रेस से पत्रिकाएँ छापी गयीं।

1922: प्रिंटरी को 18 कॉनकॉर्ड स्ट्रीट की एक छः मंज़िला इमारत में ले जाया गया। अब यहाँ किताबें छापी जाने लगीं।

1927: प्रिंटरी को 117 ऐडम्स स्ट्रीट की एक नयी इमारत में ले जाया गया।

1949: ऐडम्स स्ट्रीट की उस इमारत के साथ एक नौ मंज़िला इमारत जोड़ दी गयी, जिससे प्रिंटरी अब दुगनी बढ़ गयी।

1956: 77 सैन्ड्‌स स्ट्रीट पर एक नयी इमारत बनायी गयी, जिससे ऐडम्स स्ट्रीट की प्रिंटरी फिर से दुगनी बढ़ गयी।

1967: एक दस मंज़िला इमारत बनायी गयी, और प्रिंटरी की सारी इमारतों को एक-दूसरे से जोड़ना मुमकिन हुआ। अब प्रिंटरी का इलाका शुरू की इमारत से दस गुना बड़ा हो गया था।

1973: वॉलकिल में एक और प्रिंटरी बनायी गयी, जो खासकर पत्रिकाएँ छापने के लिए थी।

2004: अमरीका में होनेवाली छपाई, जिल्दसाज़ी और साहित्य भेजने का सारा काम वॉलकिल लाया गया।