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शैतान को मौका मत दो

शैतान को मौका मत दो

शैतान को मौका मत दो

“शैतान को मौक़ा न दो।”—इफिसियों 4:27, हिन्दुस्तानी बाइबल।

1. बहुत-से लोग क्यों इब्‌लीस के अस्तित्त्व पर शक करते हैं?

 मसीही होने का दावा करनेवाले कई लोग सदियों से मानते आए हैं कि इब्‌लीस या शैतान एक ऐसा प्राणी है जिसके सिर पर सींग हैं, जिसके चिरे हुए खुर हैं, वह लाल कपड़े पहने हुए है और अपने पाँचे से दुष्ट इंसानों को नरक की आग में झोंक देता है। मगर बाइबल, इब्‌लीस के बारे में ऐसा नहीं सिखाती। फिर भी, ऐसी गलत धारणाओं की वजह से लाखों लोग इब्‌लीस के अस्तित्त्व पर शक करने लगे हैं या वे सोचने लगे हैं कि इब्‌लीस कुछ नहीं बस बुराई का गुण है।

2. इब्‌लीस के बारे में बाइबल कौन-कौन-सी सच्चाइयाँ बताती है?

2 इब्‌लीस सचमुच अस्तित्त्व में है, इस बात को साबित करने के लिए बाइबल एक चश्‍मदीद गवाह का बयान पेश करती है। यह गवाह, यीशु मसीह था। जब वह स्वर्ग में था तो उसने इब्‌लीस को वहाँ देखा था, और धरती पर रहते वक्‍त भी उसने शैतान से बात की थी। (अय्यूब 1:6; मत्ती 4:4-11) बाइबल यह नहीं बताती कि इस आत्मिक प्राणी का असली नाम क्या है, मगर उसे इब्‌लीस (जिसका मतलब “निंदा करनेवाला” है) कहा गया है क्योंकि उसने परमेश्‍वर की निंदा की थी। उसे शैतान (जिसका मतलब “विरोधी” है) भी कहा गया है क्योंकि वह यहोवा का विरोध करता है। शैतान इब्‌लीस को “पुराना सांप” कहा गया है, शायद इसलिए क्योंकि उसने हव्वा को धोखा देने के लिए एक साँप का इस्तेमाल किया था। (प्रकाशितवाक्य 12:9; 1 तीमुथियुस 2:14) उसे “दुष्ट” भी कहा गया है।—मत्ती 6:13, NHT, फुटनोट। *

3. अब हम किस सवाल पर गौर करने जा रहे हैं?

3 हम एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर यहोवा के सेवक हैं, इसलिए हम किसी भी तरह से उसके सबसे बड़े दुश्‍मन, शैतान के जैसा बनना नहीं चाहते। तभी यह ज़रूरी है कि हम प्रेरित पौलुस की इस सलाह को मानें: “शैतान को मौक़ा न दो।” (इफिसियों 4:27, हिन्दुस्तानी बाइबल) तो फिर, शैतान के कुछ रवैए क्या हैं जो हमें नहीं अपनाने चाहिए?

सबसे बड़े निंदक जैसा मत बनिए

4. “उस दुष्ट” ने परमेश्‍वर की निंदा कैसे की?

4 “दुष्ट” शैतान को ‘इब्‌लीस’ या निंदक कहना बिलकुल सही है। निंदा करने का मतलब है, किसी के खिलाफ नफरत से भरकर, उसे बदनाम करने के इरादे से उसके बारे में झूठी बातें फैलाना। परमेश्‍वर ने आदम को आज्ञा दी थी: “भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।” (उत्पत्ति 2:17) हव्वा को भी इस आज्ञा के बारे में बताया गया था। मगर इब्‌लीस ने एक साँप के ज़रिए हव्वा से कहा: “तुम निश्‍चय न मरोगे, वरन परमेश्‍वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाओगे।” (उत्पत्ति 3:4, 5) यहोवा परमेश्‍वर की कितनी बड़ी निंदा!

5. दियुत्रिफेस दूसरों की निंदा करने के लिए सज़ा पाने लायक क्यों था?

5 इस्राएलियों को यह हुक्म दिया गया था: “निन्दक बनकर अपने लोगों में न फिरा करना।” (लैव्यव्यवस्था 19:16, आर.ओ.वी.) प्रेरित यूहन्‍ना ने अपने दिनों के एक आदमी के बारे में बताया जो दूसरों की निंदा करता था: “मैं ने मण्डली को कुछ लिखा था; पर दियुत्रिफेस जो उन में बड़ा बनना चाहता है, हमें ग्रहण नहीं करता। सो जब मैं आऊंगा, तो उसके कामों की जो वह कर रहा है सुधि दिलाऊंगा, कि वह हमारे विषय में बुरी बुरी बातें बकता है।” (3 यूहन्‍ना 9, 10) दियुत्रिफेस, यूहन्‍ना की निंदा करता था और इस गुनाह के लिए वह सज़ा पाने लायक था। क्या कोई भी वफादार मसीही, दियुत्रिफेस जैसा बनना चाहेगा और सबसे बड़े निंदक, शैतान के नक्शेकदम पर चलना चाहेगा? हरगिज़ नहीं।

6, 7. हम क्यों किसी की निंदा नहीं करना चाहेंगे?

6 अकसर यहोवा के सेवकों को निंदा और झूठे इलज़ामों का निशाना बनाया जाता है। मिसाल के लिए, बाइबल बताती है कि “मुख्य याजक और शास्त्री . . . खड़े होकर बड़े ज़ोर से [यीशु पर] दोष लगा रहे थे।” (लूका 23:10, NHT) महायाजक हनन्याह और दूसरों ने मिलकर पौलुस पर झूठा आरोप लगाया था। (प्रेरितों 24:1-8) और बाइबल शैतान के बारे में कहती है कि वह ‘हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला है जो रात दिन हमारे परमेश्‍वर के साम्हने उन पर दोष लगाया करता है।’ (प्रकाशितवाक्य 12:10) इस आयत में बताए गए भाई, इन अंतिम दिनों में धरती पर रहनेवाले अभिषिक्‍त मसीही हैं।

7 कोई भी मसीही नहीं चाहेगा कि वह किसी की निंदा करे या उस पर झूठे इलज़ाम लगाए। फिर भी हमसे यह गलती हो सकती है, अगर हम पूरी बात जाने बगैर किसी के खिलाफ गवाही देते हैं। पुराने ज़माने में अगर कोई इस्राएली जानबूझकर किसी के खिलाफ झूठी गवाही देता, तो मूसा की कानून-व्यवस्था के तहत, उसे मौत की सज़ा दी जाती थी। (निर्गमन 20:16; व्यवस्थाविवरण 19:15-19) इसके अलावा, बाइबल कहती है कि जिन बातों से यहोवा को घृणा है, उनमें से एक है “झूठ बोलनेवाला साक्षी।” (नीतिवचन 6:16-19) इन सारे कारणों को ध्यान में रखते हुए, हम हरगिज़ नहीं चाहेंगे कि हम शैतान के नक्शेकदम पर चलें, जो सबसे बड़ा निंदक और दोष लगानेवाला है।

सबसे पहले हत्यारे के तौर-तरीके मत अपनाइए

8. यह कैसे कहा जा सकता है कि इब्‌लीस “आरम्भ से हत्यारा” था?

8 इब्‌लीस एक हत्यारा है। यीशु ने कहा था: “वह तो आरम्भ से हत्यारा है।” (यूहन्‍ना 8:44) शुरू में जब शैतान, आदम और हव्वा को परमेश्‍वर से दूर ले गया, तब से वह एक हत्यारा बना। कैसे? उसने उस पहले जोड़े और उनकी सभी संतानों को मौत के मुँह में धकेल दिया। (रोमियों 5:12) गौर कीजिए कि हत्यारा सिर्फ एक शख्स को कहा जाता है, बुराई के गुण को नहीं।

9. जैसे 1 यूहन्‍ना 3:15 में बताया गया है, हम हत्यारे कैसे बन सकते हैं?

9 इस्राएलियों को दी गयी दस आज्ञाओं में से एक आज्ञा थी: “तू हत्या न करना।” (व्यवस्थाविवरण 5:17) प्रेरित पतरस ने अपनी पत्री में मसीहियों को लिखा: ‘तुम में से कोई व्यक्‍ति हत्यारा होने के कारण दुख न पाए।’ (1 पतरस 4:15) इसलिए यहोवा के सेवक होने के नाते हम किसी का खून नहीं करेंगे। लेकिन, अगर हम किसी मसीही भाई या बहन से नफरत करते हैं और उसकी मौत की कामना करते हैं, तो हम परमेश्‍वर की नज़र में हत्यारे ठहरते हैं। प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; और तुम जानते हो, कि किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता।” (1 यूहन्‍ना 3:15) इस्राएलियों को यह हुक्म दिया गया था: “अपने मन में एक दूसरे के प्रति बैर न रखना।” (लैव्यव्यवस्था 19:17) इसलिए अगर किसी मसीही भाई के साथ हमारी खटपट हो जाती है, तो आइए हम जल्द-से-जल्द मामले को निपटा लें, ताकि हत्यारा शैतान हमारी मसीही एकता तोड़ने न पाए।—लूका 17:3, 4.

सबसे बड़े झूठे का डटकर सामना कीजिए

10, 11. सबसे बड़े झूठे, शैतान का डटकर सामना करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

10 इब्‌लीस झूठा है। यीशु ने कहा था: “जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, बरन झूठ का पिता है।” (यूहन्‍ना 8:44) शैतान ने हव्वा से झूठ बोला था। मगर यीशु उससे कितना अलग था। वह धरती पर इसलिए आया ताकि सच्चाई के बारे में गवाही दे सके। (यूहन्‍ना 18:37) यीशु के चेले होने के नाते अगर हम इब्‌लीस का डटकर सामना करना चाहते हैं, तो हमें झूठ और धोखे का सहारा नहीं लेना चाहिए। हमें सिर्फ ‘सत्य बोलना’ चाहिए। (जकर्याह 8:16; इफिसियों 4:25) ‘सत्यवादी ईश्‍वर, यहोवा’ सिर्फ अपने सच्चे और ईमानदार साक्षियों को उसकी सेवा करने का सुअवसर देता है। दुष्ट लोगों को यहोवा की तरफ से गवाही देने का कोई हक नहीं है।—भजन 31:5; 50:16; यशायाह 43:10.

11 बाइबल की सच्चाई ने हमें शैतान की झूठी शिक्षाओं से जो आज़ादी दिलायी है, अगर हम उसे अनमोल समझते हैं, तो हम मसीहियत की राह को कभी नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि यही ‘सत्य का मार्ग’ है। (2 पतरस 2:2; यूहन्‍ना 8:32) “सुसमाचार की सच्चाई” तमाम मसीही शिक्षाओं से मिलकर बनी है। (गलतियों 2:5, 14) हमारा उद्धार इस बात पर निर्भर है कि हम “सत्य पर चलते” रहें, यानी तमाम मसीही शिक्षाओं को मानें और ‘झूठ के पिता’ का डटकर सामना करें।—3 यूहन्‍ना 3, 4, 8.

सबसे बड़े धर्मत्यागी का विरोध कीजिए

12, 13. हमें धर्मत्यागियों के साथ कैसे पेश आना चाहिए?

12 वह आत्मिक प्राणी जो आगे चलकर इब्‌लीस बना, एक वक्‍त सच्चाई में था। मगर जैसे यीशु ने बताया था: “[वह] सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं।” (यूहन्‍ना 8:44) यह बड़ा धर्मत्यागी, शैतान लगातार “सत्यवादी ईश्‍वर” के खिलाफ काम करता रहा है। पहली सदी के कुछ मसीही, सच्चाई से भटक गए थे और शायद यही वजह थी कि वे “शैतान के फंदे” में फँस गए। इसलिए पौलुस ने अपने साथी तीमुथियुस को हिदायत दी कि वह नम्रता से इन मसीहियों को समझाए ताकि वे आध्यात्मिक मायने में दोबारा खड़े हो सकें और शैतान के फंदे से छूट सकें। (2 तीमुथियुस 2:23-26) बेशक, आध्यात्मिक मायने में गिरकर फिर सँभलने से तो अच्छा है कि हम सच्चाई को कसकर थामे रहें और धर्मत्यागियों के विचारों में फँसने की गलती ही न करें।

13 पहले इंसानी जोड़े ने इब्‌लीस की बात मान ली और उसके झूठ को नहीं ठुकराया, इसलिए वे धर्मत्यागी बन गए। तो क्या आज हमें धर्मत्यागियों की सुननी चाहिए, उनके साहित्य की या इंटरनेट पर उनके वेब साइट की जाँच करनी चाहिए? अगर हमें परमेश्‍वर और सच्चाई से प्यार है, तो हम ऐसा हरगिज़ नहीं करेंगे। हमें धर्मत्यागियों को अपने घर में घुसने नहीं देना चाहिए, यहाँ तक कि उन्हें सलाम भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से हम ‘उनके बुरे कामों में साझी’ होंगे। (2 यूहन्‍ना 9-11) ऐसा कभी न हो कि हम शैतान के झाँसे में आकर “सत्य के [मसीही] मार्ग” को छोड़ दें और उन झूठे उपदेशकों के पीछे हो लें जो “घातक और विधर्मी शिक्षा का प्रचार” (NHT) करते हैं और ‘बातें गढ़कर हमें अपने लाभ का कारण’ बनाने की ताक में रहते हैं।—2 पतरस 2:1-3.

14, 15. पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों और अपने साथी तीमुथियुस को क्या चेतावनी दी?

14 पौलुस ने इफिसुस के मसीही प्राचीनों से कहा: “अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है; कि तुम परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपने लोहू से मोल लिया है। मैं जानता हूं, कि मेरे जाने के बाद फाड़नेवाले भेड़िए तुम में आएंगे, जो झुंड को न छोड़ेंगे। तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी मेढ़ी बातें कहेंगे।” (प्रेरितों 20:28-30) ठीक जैसे पौलुस ने चेतावनी दी थी, समय के गुज़रते धर्मत्यागी आए और उन्होंने “टेढ़ी मेढ़ी बातें” कीं।

15 सामान्य युग 65 के आस-पास, प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को लिखी पत्री में उसे बढ़ावा दिया कि वह ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाए।’ पौलुस ने लिखा: “पर अशुद्ध बकवाद से बचा रह; क्योंकि ऐसे लोग और भी अभक्‍ति में बढ़ते जाएंगे। और उन का वचन सड़े-घाव की नाईं फैलता जाएगा: हुमिनयुस और फिलेतुस उन्हीं में से हैं। जो यह कहकर कि पुनरुत्थान हो चुका है सत्य से भटक गए हैं, और कितनो के विश्‍वास को उलट पुलट कर देते हैं।” जी हाँ, धर्मत्याग शुरू हो चुका था! लेकिन पौलुस ने आगे कहा: “तौभी परमेश्‍वर की पक्की नेव बनी रहती है।”—2 तीमुथियुस 2:15-19.

16. सबसे बड़े धर्मत्यागी, शैतान की धूर्त्त चालों के बावजूद हम यहोवा और उसके वचन की तरफ वफादार कैसे रह पाए हैं?

16 शैतान ने कई बार सच्ची उपासना में मिलावट करने के लिए धर्मत्यागियों का इस्तेमाल किया है, मगर वह बुरी तरह नाकाम रहा है। सन्‌ 1868 के आस-पास, चार्ल्स टेज़ रसल ने ईसाईजगत के गिरजों की सदियों पुरानी शिक्षाओं की करीबी से जाँच करनी शुरू की। उन्होंने पाया कि ईसाईजगत के चर्चों में बाइबल की गलत समझ दी जाती है। रसल और उनकी तरह सच्चाई की तलाश कर रहे दूसरे चंद लोगों ने अमरीका के पेन्सिलवेनिया राज्य के पिट्‌सबर्ग शहर में, साथ मिलकर बाइबल अध्ययन करना शुरू किया। तब से लेकर आज तक करीब 140 साल बीत चुके हैं और इस दौरान, परमेश्‍वर और उसके वचन के बारे में यहोवा के सेवकों का ज्ञान बढ़ता रहा है। साथ ही, यहोवा और उसके वचन के लिए उनका प्यार भी गहरा होता गया है। हालाँकि सबसे बड़ा धर्मत्यागी शैतान धूर्त्त चालें चल रहा है, मगर विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग आध्यात्मिक रूप से सतर्क रहा है और इस वजह से वह सच्चे मसीहियों को यहोवा और उसके वचन की तरफ वफादार बने रहने में लगातार मदद देता रहा है।—मत्ती 24:45.

संसार के शासक को अपने ऊपर अधिकार करने मत दीजिए

17-19. इब्‌लीस के वश में पड़ा संसार क्या है, और हमें क्यों उससे प्रेम नहीं रखना चाहिए?

17 शैतान एक और तरीके से हमें फँसाने की कोशिश करता है। वह हमें इस संसार से प्रेम रखने को लुभाता है। यह संसार अधर्मी इंसानों का समाज है जो परमेश्‍वर से दूर है। यीशु ने इब्‌लीस को इस “संसार का शासक” कहा और यह भी बताया: “उसका मुझ पर कोई अधिकार नहीं।” (यूहन्‍ना 14:30, NHT) ऐसा हो कि शैतान हम पर भी कभी अधिकार न करने पाए! मगर हम जानते हैं कि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्‍ना 5:19) तभी तो इब्‌लीस ने यीशु को “सारे जगत के राज्य” देने की पेशकश रखी, इस शर्त पर कि वह एक बार यहोवा को छोड़ उसकी उपासना करे। मगर परमेश्‍वर के बेटे ने कड़े शब्दों से इस पेशकश को ठुकरा दिया। (मत्ती 4:8-10) यह संसार, जिस पर शैतान का राज है, मसीह के चेलों से नफरत करता है। (यूहन्‍ना 15:18-21) इसलिए ताज्जुब नहीं कि प्रेरित यूहन्‍ना ने हमें चिताया कि हम संसार से प्रेम न रखें!

18 यूहन्‍ना ने लिखा: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात्‌ शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (1 यूहन्‍ना 2:15-17) हमें संसार से प्रेम नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इसके तौर-तरीके शरीर की पापी इच्छाओं को पूरा करने के लिए लुभाते हैं, और यहोवा परमेश्‍वर के स्तरों के बिलकुल खिलाफ हैं।

19 लेकिन तब क्या, अगर हम संसार की चीज़ों से प्यार करने लगे हैं? तो हमें परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी होगी कि इस कमज़ोरी पर काबू पाने और शरीर की अभिलाषाओं को ठुकराने में वह हमारी मदद करे। (गलतियों 5:16-21) अगर हम यह बात अपने ज़हन में उतार लें कि इस अधर्मी ‘संसार के हाकिम’ दरअसल ‘दुष्टता की आत्मिक सेनाएँ’ हैं, तो हम “अपने आप को संसार से निष्कलंक र[खने]” की पुरज़ोर कोशिश करेंगे।—याकूब 1:27; इफिसियों 6:11, 12; 2 कुरिन्थियों 4:4.

20. यह क्यों कहा जा सकता है कि हम “संसार के नहीं” हैं?

20 अपने चेलों के बारे में यीशु ने कहा: “जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।” (यूहन्‍ना 17:16) अभिषिक्‍त मसीही और उनके समर्पित साथी, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध रहने और इस संसार से दूरी बनाए रखने की पूरी कोशिश करते हैं। (यूहन्‍ना 15:19; 17:14; याकूब 4:4) यह अधर्मी संसार हमसे नफरत करता है क्योंकि हम उससे अलग रहते हैं और “धार्मिकता के प्रचारक” हैं। (2 पतरस 2:5, NHT) यह सच है कि आज हम ऐसे समाज में जी रहे हैं, जहाँ लोग वेश्‍यागामी, व्यभिचारी, अन्धेर करनेवाले, मूर्तिपूजक, चोर, झूठे और पियक्कड़ हैं। (1 कुरिन्थियों 5:9-11; 6:9-11; प्रकाशितवाक्य 21:8) फिर भी, हम इस “संसार की आत्मा” का खुद पर असर नहीं पड़ने देते, क्योंकि हम उन पापी इच्छाओं को पूरा नहीं करते जिनका यह संसार बढ़ावा देता है।—1 कुरिन्थियों 2:12.

शैतान को मौका मत दो

21, 22. इफिसियों 4:26, 27 में दी पौलुस की सलाह को आप कैसे लागू कर सकते हैं?

21 हम “संसार की आत्मा” के बहकावे में आने के बजाय परमेश्‍वर की आत्मा की दिखायी राह पर चलते हैं। यह आत्मा हमारे अंदर प्रेम और संयम जैसे गुण पैदा करती है। (गलतियों 5:22, 23) शैतान हमारे विश्‍वास को कमज़ोर करने के लिए जो हमले करता है, उनका मुकाबला करने में ये गुण हमारी मदद करते हैं। इब्‌लीस चाहता है कि हम ‘कुढ़ जाएँ और बुराई करें,’ मगर परमेश्‍वर की आत्मा हमें ‘क्रोध से परे रहने और जलजलाहट को छोड़ देने’ में मदद देती है। (भजन 37:8) यह सच है कि कभी-कभी हमारा गुस्सा होना जायज़ हो सकता है, फिर भी पौलुस हमें सलाह देता है: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। और न शैतान को अवसर दो।”—इफिसियों 4:26, 27.

22 अगर हम किसी के खिलाफ मन में नाराज़गी पालते रहें, तो हमसे पाप हो सकता है। वह कैसे? हमारे नाराज़ रहने से शैतान को कलीसिया की एकता में फूट डालने या हमसे बुरे काम करवाने का मौका मिल जाएगा। इसलिए दूसरों के साथ खटपट हो जाने पर हमें फौरन परमेश्‍वर के बताए तरीके से सुलह कर लेनी चाहिए। (लैव्यव्यवस्था 19:17, 18; मत्ती 5:23, 24; 18:15, 16) तो फिर, आइए हम परमेश्‍वर की आत्मा की दिखायी राह पर चलें, खुद पर संयम बरतें और वाजिब कारण होने पर भी अपने गुस्से को इस हद तक बढ़ने न दें कि हम दूसरों के खिलाफ कड़वाहट से भर जाएँ और उनसे नफरत करने लगें।

23. अगले लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

23 अब तक हमने इब्‌लीस के कुछ ऐसे रवैयों के बारे में चर्चा की है, जो हमें नहीं अपनाने चाहिए। लेकिन कुछ लोगों के मन में ऐसे सवाल उठ सकते हैं: क्या हमें शैतान से डरना चाहिए? वह मसीहियों पर ज़ुल्म क्यों लाता है? हम शैतान के हाथों मात खाने से कैसे बच सकते हैं?

[फुटनोट]

^ नवंबर 15, 2005 की प्रहरीदुर्ग के शुरूआती लेख, “क्या इब्‌लीस एक हकीकत है?” देखिए।

आपका जवाब क्या है?

• हमें क्यों कभी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए?

पहला यूहन्‍ना 3:15 के मुताबिक हम हत्यारे बनने से कैसे बच सकते हैं?

• धर्मत्यागियों की तरफ हमारा नज़रिया क्या होना चाहिए, और क्यों?

• हमें क्यों संसार से प्रेम नहीं रखना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

हम शैतान को अपनी मसीही एकता तोड़ने का कभी-भी मौका नहीं देंगे

[पेज 24 पर तसवीरें]

यूहन्‍ना ने हमें संसार से प्रेम न रखने की सलाह क्यों दी?