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नहेमायाह किताब की झलकियाँ

नहेमायाह किताब की झलकियाँ

यहोवा का वचन जीवित है

नहेमायाह किताब की झलकियाँ

बाइबल की एज्रा नाम की किताब में दर्ज़ आखिरी वाकये को घटे 12 साल बीत चुके थे। अब, “यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने” का वक्‍त आ गया है। यही वह अहम घटना है जिससे भविष्यवाणी में बताए सालोंवाले 70 सप्ताह शुरू होते, जो उस समय तक ले जाते जब मसीहा प्रकट होता। (दानिय्येल 9:24-27) नहेमायाह किताब यह ब्यौरा देती है कि यरूशलेम की दीवारों को दोबारा बनाते वक्‍त, परमेश्‍वर के लोगों के साथ क्या-क्या हुआ। इसमें सा.यु.पू. 456 से लेकर 443 के बाद तक की सारी घटनाएँ दर्ज़ हैं। बारह से भी ज़्यादा साल का यह दौर, एक बहुत ही खास समय था।

इस किताब का लेखक, गवर्नर नहेमायाह है। इसमें लिखी रोमांचक कहानी दिखाती है कि अगर इरादा अटल हो और यहोवा परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा हो, तो सच्ची उपासना बुलंद होकर ही रहती है। इसमें साफ ज़ाहिर किया गया है कि यहोवा अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए कैसे हालात को मोड़ देता है। नहेमायाह किताब, एक फौलादी और दिलेर अगुवे की भी दास्तान है। इस किताब के पैगाम से आज सभी सच्चे उपासक बहुत-से अनमोल सबक सीख सकते हैं, “क्योंकि परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल” है।—इब्रानियों 4:12.

‘शहरपनाह बन गयी’

(नहेमायाह 1:1–6:19)

नहेमायाह, शूशन नाम के राजगढ़ में है और उसे राजा अर्तक्षत्र लॉन्गिमेनस की सेवा में एक ऐसा ओहदा मिला है जो सिर्फ भरोसे के आदमी को ही दिया जाता है। जब नहेमायाह को खबर मिलती है कि उसके भाई-बंधु “बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं,” तो वह बेचैन हो उठता है। वह मार्गदर्शन के लिए परमेश्‍वर से गिड़गिड़ाकर बिनती करता है। (नहेमायाह 1:3, 4) कुछ वक्‍त बाद, राजा अर्तक्षत्र नहेमायाह के चेहरे पर छायी उदासी देख लेता है और वजह जानने पर उसे यरूशलेम जाने की इजाज़त देता है।

यरूशलेम पहुँचने के बाद, नहेमायाह रात के अँधेरे में शहर की दीवारों का जायज़ा लेता है, और यहूदियों को इन्हें दोबारा खड़ी करने की अपनी योजना बताता है। दीवार बनाने का काम शुरू हो जाता है और साथ ही, दुश्‍मनों का विरोध भी। मगर नहेमायाह बड़ी बहादुरी के साथ अगुवाई करता है जिसकी वजह से “शहरपनाह बन[कर]” तैयार हो जाती है।—नहेमायाह 6:15.

बाइबल सवालों के जवाब पाना:

1:1; 2:1—क्या इन दोनों आयतों में ‘बीसवाँ वर्ष’ एक ही तारीख से गिना गया है? जी हाँ, यहाँ राजा अर्तक्षत्र की हुकूमत के 20वें वर्ष की बात की गयी है। लेकिन इन दोनों आयतों में इस साल तक पहुँचने का हिसाब अलग-अलग तरीके से लगाया गया है। इतिहास बताता है कि सा.यु.पू. 475 में अर्तक्षत्र राजगद्दी पर विराजमान हुआ था। बाबुल के शास्त्री, फारसी राजाओं की हुकूमत के सालों की गिनती निसान (मार्च/अप्रैल) से निसान तक करते थे। उनके इस दस्तूर के मुताबिक अर्तक्षत्र की हुकूमत का पहला साल सा.यु.पू. 474 के निसान से शुरू हुआ था। इस हिसाब से देखे तो नहेमायाह 2:1 में बताए 20वें वर्ष की शुरूआत सा.यु.पू. 455 के निसान में हुई थी। इसका मतलब है कि नहेमायाह 1:1 में बताया किसलवे (नवंबर/दिसंबर) नाम का महीना, सा.यु.पू. 455 का नहीं बल्कि पिछले साल यानी सा.यु.पू. 456 का किसलवे महीना होगा। मगर नहेमायाह 1:1 में उसने कहा कि यह महीना भी अर्तक्षत्र की हुकूमत के 20वें साल में पड़ता है। शायद इस मामले में उसने गिनती अर्तक्षत्र के राजगद्दी पर बैठने की तारीख से की हो। या यह भी हो सकता है कि नहेमायाह ने उस हिसाब का इस्तेमाल किया हो जिसे आज यहूदी ‘सिविल इयर’ कहते हैं। इस साल की शुरूआत तिशरी महीने से होती है यानी सितंबर/अक्टूबर से। हिसाब लगाने का तरीका चाहे जो भी रहा हो, एक बात तय है कि जिस साल यरूशलेम को फिर से बनाने की आज्ञा निकली, वह था सा.यु.पू. 455.

4:17,18—शहरपनाह को दोबारा बनाते वक्‍त सिर्फ एक हाथ से काम करना कैसे मुमकिन था? बोझ ढोनेवालों के लिए यह कोई मुश्‍किल काम नहीं था। वे एक हाथ से अपने सिर या कंधों पर रखे भार को आसानी से पकड़ सकते थे, जबकि ‘दूसरे हाथ से हथियार पकड़’ सकते थे। और राजगीर जिन्हें अपने काम में दोनों हाथों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत थी, वे “अपनी जांघ पर तलवार लटकाए हुए [शहरपनाह] बनाते थे।” इस तरह वे हमेशा तैयार रहते थे ताकि अगर दुश्‍मन अचानक धावा बोल दें, तो वे उनका मुकाबला कर सकें।

5:7 (नयी हिन्दी बाइबिल)—नहेमायाह ने किस मायने में “प्रतिष्ठित नागरिकों तथा सरकारी अफसरों पर दोषारोपण” किया? ये लोग अपने ही संगी यहूदियों से सूदखोरी कर रहे थे जो कि मूसा की कानून-व्यवस्था के खिलाफ था। (लैव्यव्यवस्था 25:36; व्यवस्थाविवरण 23:19) यही नहीं, वे ब्याज की जितनी रकम की माँग कर रहे थे, वह बहुत ही ज़्यादा थी। वे हर महीने ब्याज पर “सौवां भाग” माँग रहे थे, यानी सालाना 12 प्रतिशत ब्याज। (नहेमायाह 5:11) यह सरासर ज़्यादती थी, क्योंकि लोगों पर पहले से कर चुकाने का भारी बोझ था और उनको खाने के लाले भी पड़े हुए थे। इसलिए नहेमायाह ने रईसों पर दोष लगाया, यानी उसने परमेश्‍वर के कानून के आधार पर उन्हें डाँटा-फटकारा और उनके पाप का पर्दाफाश किया।

6:5—अगर चिट्ठी में कुछ गुप्त बातें लिखी हों तो उसे एक थैली में डालकर सीलबंद किया जाता था। तो फिर सम्बल्लत ने नहेमायाह को “खुली हुई चिट्ठी” क्यों भेजी? सम्बल्लत ने चिट्ठी में नहेमायाह पर झूठे इलज़ाम लगाए थे और शायद वह चाहता था कि इन इलज़ामों के बारे में सबको पता चल जाए। शायद उसने सोचा कि चिट्ठी पढ़कर नहेमायाह इतना आग-बबूला हो उठेगा कि वह शहरपनाह बनाने का काम छोड़ देगा और अपनी सफाई देने के लिए आएगा। या फिर सम्बल्लत ने सोचा होगा कि अगर चिट्ठी यहूदियों के हाथों में पड़ जाए, तो वे घबरा जाएँगे और शहरपनाह बनाने का काम बंद कर देंगे। मगर नहेमायाह घबराया नहीं बल्कि शांत रहा और परमेश्‍वर से मिले काम को पूरा करने में लगा रहा।

हमारे लिए सबक:

1:4; 2:4; 4:4, 5. जब हम पर कोई मुसीबत आती है या हमें कोई अहम फैसला करना होता है, तो हमें “प्रार्थना में नित्य लगे” रहना चाहिए और परमेश्‍वर के वचन या उसके संगठन से मिले मार्गदर्शन को मानना चाहिए।—रोमियों 12:12.

1:11–2:8; 4:4, 5, 15, 16; 6:16. यहोवा अपने सेवकों की दिल से की गयी प्रार्थनाओं का जवाब देता है।—भजन 86:6, 7.

1:4; 4:19, 20; 6:3, 15. हालाँकि नहेमायाह में कोमल भावनाएँ थीं, फिर भी उसने धार्मिकता की खातिर दृढ़ता से काम करने की एक बढ़िया मिसाल कायम की।

1:11–2:3. नहेमायाह की सबसे बड़ी खुशी, पिलानेहारे के तौर पर उसका ऊँचा ओहदा नहीं था। इसके बजाय, उसकी खुशी सच्ची उपासना को बढ़ाने में थी। क्या हमें भी सच्ची उपासना और इसे बढ़ावा देनेवाले सभी कामों के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए और सबसे ज़्यादा खुशी हमें इन्हीं से नहीं मिलनी चाहिए?

2:4-8. यहोवा ने ही अर्तक्षत्र को उकसाया था कि वह नहेमायाह को यरूशलेम जाने और वहाँ की शहरपनाह बनाने की इजाज़त दे। नीतिवचन 21:1 कहता है: “राजा का मन नालियों के जल की नाईं यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उसको फेर देता है।”

3:5, 27. सच्ची उपासना की खातिर अगर हमें मेहनत-मशक्कत करनी पड़े, तो हमें तकोइयों के “रईसों” की तरह कभी नहीं सोचना चाहिए कि इससे हम छोटे हो जाएँगे। इसके बजाय, हमें तकोइयों के आम लोगों की मिसाल पर चलना चाहिए जिन्होंने खुशी-खुशी अपने काम में खुद को पूरी तरह लगा दिया था।

3:10, 23, 28-30. हालाँकि कुछ भाई-बहन उन इलाकों में जा सके हैं जहाँ राज्य के प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है, मगर हममें से ज़्यादातर अपने ही शहर में रहकर सच्ची उपासना को बढ़ावा देने की कोशिश कर सकते हैं। जैसे, हम राज्य घर के निर्माण काम में हिस्सा ले सकते हैं या फिर विपत्ति के समय राहत-सामग्री पहुँचाने में हाथ बँटा सकते हैं। लेकिन सच्ची उपासना को बढ़ावा देने का सबसे अहम तरीका है, राज्य का प्रचार करना।

4:14. विरोध का सामना करते वक्‍त, हम भी अपने डर को काबू में रख पाएँगे अगर हम इस बात की गाँठ बाँध लें कि हमारा “[प्रभु] महान और भययोग्य है।”

5:14-19. मसीही अध्यक्षों के लिए गवर्नर नहेमायाह ने नम्रता दिखाने, नि:स्वार्थ होने और समझ से काम लेने में एक बढ़िया मिसाल कायम की। उसमें परमेश्‍वर के कानून को लागू करवाने का जोश था, मगर उसने कभी-भी अपने स्वार्थ के लिए दूसरों पर रोब जमाने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, उसने ज़ुल्म सहनेवालों और गरीबों के लिए परवाह दिखायी। और उदारता दिखाने में तो वह परमेश्‍वर के सभी सेवकों के लिए एक उम्दा मिसाल है।

“हे मेरे परमेश्‍वर! मेरे हित के लिये मुझे स्मरण कर”

(नहेमायाह 7:1–13:31)

जैसे ही यरूशलेम की शहरपनाह बनकर तैयार हो जाती है, नहेमायाह फाटक लगवाता है और शहर की सुरक्षा का इंतज़ाम करता है। इसके बाद, वह लोगों की वंशावली का रिकॉर्ड बनाना शुरू करता है। जब सभी इस्राएली “जलफाटक के साम्हने के चौक में” जमा होते हैं, तब याजक एज्रा लोगों को मूसा की कानून-व्यवस्था पढ़कर सुनाता है और नहेमायाह और लेवी, लोगों को व्यवस्था के बारे में समझाते हैं। (नहेमायाह 8:1) झोपड़ियों के पर्व के बारे में जानने के बाद, वे बड़ी खुशी के साथ यह पर्व मनाते हैं।

कुछ दिन बाद, इस्राएली फिर से इकट्ठा होते हैं। इस बार ‘इस्राएल का वंश’ एक जाति के तौर पर किए सभी पापों को खुल्लमखुल्ला कबूल करता है। इसके बाद लेवी, इस्राएलियों को याद दिलाते हैं कि परमेश्‍वर ने कैसे उनके साथ व्यवहार किया था और फिर सभी लोग ‘परमेश्‍वर की व्यवस्था पर चलने’ की शपथ खाते हैं। (नहेमायाह 9:1, 2; 10:29) यरूशलेम शहर में आबादी कम होने की वजह से चिट्ठियाँ डाली जाती हैं ताकि शहर के बाहर रहनेवाले हर 10 पुरुषों में से 1 को अंदर लाया जा सके। इसके बाद, शहरपनाह का उद्‌घाटन इतनी धूम-धाम से किया जाता है कि “यरूशलेम के आनन्द की ध्वनि दूर दूर तक” सुनायी देती है। (नहेमायाह 12:43) यरूशलेम में 12 साल रहने के बाद, नहेमायाह वापस राजा अर्तक्षत्र की सेवा में लौट जाता है। देखते-ही-देखते, यहूदी लोगों में अशुद्धता फिर घुस आती है। जब नहेमायाह दोबारा यरूशलेम आता है, तो इस दफा वह हालात को ठीक करने के लिए ठोस कदम उठाता है। वह परमेश्‍वर से अपने लिए नम्रता से यह गुज़ारिश करता है: “हे मेरे परमेश्‍वर! मेरे हित के लिये मुझे स्मरण कर।”—नहेमायाह 13:31.

बाइबल सवालों के जवाब:

7:6-67—नहेमायाह ने जरुब्बाबेल के साथ यरूशलेम वापस लौटनेवाले शेष लोगों की जो सूची तैयार की थी और एज्रा ने हरेक घराने के लोगों की जो सूची बनायी थी, उन दोनों में फर्क क्यों है? (एज्रा 2:1-65) हो सकता है कि एज्रा और नहेमायाह ने दो अलग-अलग दस्तावेज़ों का इस्तेमाल किया हो। मिसाल के लिए, एक में शायद उन लोगों के नाम लिखे थे जो यरूशलेम वापस लौटना चाहते थे, जबकि दूसरे में उन लोगों के नाम थे जो असल में वापस आए थे और बेशक इन दोनों में लोगों की गिनती अलग रही होगी। दोनों दस्तावेज़ों में फर्क इसलिए भी हो सकता है कि जो यहूदी पहले अपनी वंशावली का सबूत नहीं दे पाए, वे शायद बाद में इसका सबूत दे पाए हों। लेकिन एक बात है जो इन दोनों दस्तावेज़ों में एक-सी है: दास-दासियों और गायक-गायिकाओं को छोड़, जो लोग पहले वापस आए थे, उनकी गिनती थी, 42,360.

10:34—लोगों से लकड़ियाँ लाने के लिए क्यों कहा गया था? हालाँकि मूसा की कानून-व्यवस्था में लकड़ियों की भेंट चढ़ाने की आज्ञा नहीं दी गयी थी, बल्कि बाद में हालात की माँग की वजह से यह दी गयी थी। वेदी पर बलि के जानवरों को जलाने के लिए ढेर सारी लकड़ियों की ज़रूरत थी। मगर ज़ाहिर है कि लकड़ी बटोरने के लिए नतीन लोग काफी नहीं थे जो गैर-इस्राएली थे और मंदिर में दास के तौर पर सेवा किया करते थे। इसलिए मंदिर में भेंट चढ़ाने के लिए लकड़ियों की कमी न हो, इस बात का पूरा ध्यान रखने के लिए चिट्ठियाँ डाली गयी थीं।

13:6—नहेमायाह कितने समय के लिए यरूशलेम में नहीं था? बाइबल सिर्फ इतना बताती है कि नहेमायाह “कुछ समय पश्‍चात्‌” (NHT) राजा से छुट्टी माँगता है ताकि वह यरूशलेम लौट सके। “कुछ समय पश्‍चात्‌” का शाब्दिक अर्थ है, “दिनों के बीतने पर।” इसलिए यह ठीक-ठीक बताना नामुमकिन है कि वह कितने समय के लिए यरूशलेम में नहीं था। लेकिन वापस आने पर नहेमायाह ने यरूशलेम को जिस हाल में पाया, उससे उसकी गैर-मौजूदगी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। जैसे, यरूशलेम में लोग न तो याजकवर्ग का साथ दे रहे थे, ना ही सब्त के नियम का पालन कर रहे थे। बहुत-से लोगों ने विदेशी स्त्रियों से शादी कर ली थी और उनकी संतान भी हुई जिन्हें यहूदियों की ज़बान तक नहीं आती थी। हालात का इस कदर बिगड़ना दिखाता है कि नहेमायाह काफी लंबे समय के लिए यरूशलेम में नहीं था।

13:25, 28—जो यहूदी पुरानी बातों की तरफ फिर गए थे, उन्हें सुधारने के लिए नहेमायाह ने ‘डांटने’ के अलावा और क्या किया? नहेमायाह ने उन्हें “कोसा” यानी परमेश्‍वर की व्यवस्था में दिए न्यायदंड सुनाए। उसने ‘उनमें से कितनों को पिटवाया’ जिसका मतलब है कि उसने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का हुक्म दिया होगा। नहेमायाह ने “उनके बाल नुचवाए” जो इस बात की निशानी थी कि लोगों की बुराइयाँ देखकर उसका गुस्सा भड़क उठा था। इतना ही नहीं, उसने महायाजक एल्याशीब के पोते को अपने पास से खदेड़ दिया क्योंकि उसने होरोनी सम्बल्लत की बेटी से शादी की थी।

हमारे लिए सबक:

8:8. परमेश्‍वर के वचन के सिखानेवाले होने के नाते, हम बाइबल का ‘अर्थ समझाते’ हैं, यानी आयतें पढ़कर सुनाते वक्‍त शब्दों का सही उच्चारण करते हैं, उनके अहम भागों पर ज़ोर देते हैं, उनका सही मतलब बताते हैं और साफ-साफ समझाते हैं कि इन्हें ज़िंदगी में कैसे लागू किया जा सकता है।

8:10. “यहोवा का आनन्द” हमें तभी हासिल होगा जब हमें अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत का एहसास होगा और हम इसे पूरी करने की कोशिश करेंगे, साथ ही परमेश्‍वर के संगठन से मिले मार्गदर्शन को मानेंगे। इसलिए यह निहायत ज़रूरी है कि हम मन लगाकर बाइबल का अध्ययन करें, बिना नागा मसीही सभाओं में हाज़िर रहें और जोशो-खरोश के साथ राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने के काम में हिस्सा लें!

11:2. अपने पुरखों की ज़मीन छोड़कर यरूशलेम आकर बसने में काफी खर्चा था और कुछ नुकसान भी। इसलिए जिन इस्राएलियों ने अपनी मरज़ी से यह कदम उठाया था, उन्होंने आत्म-त्याग की भावना ज़ाहिर की थी। हम भी अधिवेशन में या दूसरे मौकों पर दूसरों की खातिर सेवा करने के लिए खुशी-खुशी सामने आकर आत्म-त्याग की भावना दिखा सकते हैं।

12:31, 38, 40-42. गीत गाना, यहोवा की महिमा करने और अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर करने का एक बढ़िया तरीका है। इसलिए मसीही सभाओं में हमें दिल खोलकर गाना चाहिए।

13:4-31. हमें सावधानी बरतने की ज़रूरत है ताकि हम धीरे-धीरे धन-दौलत के लालच में न पड़ जाएँ, ना ही भ्रष्टाचार और धर्मत्याग के फंदे में फँस जाएँ।

13:22. नहेमायाह अच्छी तरह जानता था कि उसे यहोवा को लेखा देना है। हमें भी यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमें यहोवा को लेखा देना है।

यहोवा की आशीष पाना बेहद ज़रूरी!

भजनहार ने अपने गीत में गाया: “यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनानेवालों का परिश्रम व्यर्थ होगा।” (भजन 127:1) इस बात की सच्चाई क्या ही खूबसूरत तरीके से नहेमायाह की किताब में बयान की गयी है!

इसमें दिए सबक हमारे लिए साफ हैं। अगर हम अपने काम में कामयाब होना चाहते हैं, तो यहोवा की आशीष और मंज़ूरी पाना बेहद ज़रूरी है। लेकिन अगर हम सच्ची उपासना को पहली जगह न दें, तो क्या हम यहोवा से आशीष पाने की उम्मीद कर सकते हैं? हरगिज़ नहीं। इसलिए आइए हम नहेमायाह की तरह, अपना पूरा ध्यान यहोवा की उपासना करने और उसे बढ़ावा देने में लगाए रखें।

[पेज 8 पर तसवीर]

“राजा का मन नालियों के जल की नाईं यहोवा के हाथ में रहता है”

[पेज 9 पर तसवीर]

नहेमायाह, जिसमें कोमल भावनाएँ थीं और जो कदम उठाने में बिलकुल भी देर नहीं करता था, यरूशलेम आता है

[पेज 10, 11 पर तसवीरें]

क्या आपको परमेश्‍वर के वचन का ‘अर्थ समझाना’ आता है?