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दिनोंदिन बढ़ते उजियाले के मार्ग पर चलना

दिनोंदिन बढ़ते उजियाले के मार्ग पर चलना

दिनोंदिन बढ़ते उजियाले के मार्ग पर चलना

“धर्मियों का पथ भोर के प्रकाश के समान होता है, जो दिन की पूर्णता तक अधिकाधिक बढ़ता जाता है।”—नीतिवचन 4:18, NHT.

1, 2. यहोवा से लगातार आध्यात्मिक उजियाला पाने का क्या नतीजा हुआ है?

 रात के अंधकार को चीरते हुए जब सूरज निकलता है तो क्या असर होता है, यह भला रोशनी के बनानेवाले यहोवा परमेश्‍वर से बेहतर कौन बता सकता है? (भजन 36:9) परमेश्‍वर कहता है: ‘जब भोर की रोशनी पृथ्वी की छोरों को वश में करती है, तो पृथ्वी ऐसे बदलती है जैसे मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएं मानो वस्त्र पहिने हुए दिखाई देती हैं।’ (अय्यूब 38:12-14) ठीक जैसे चिकनी, गीली मिट्टी पर मोहर लगाने से उसका रूप बदल जाता है, उसी तरह जब सूरज की रोशनी धीरे-धीरे पृथ्वी ग्रह पर पड़ती है, तो मानो पृथ्वी का रूप बदल जाता और हर चीज़ साफ नज़र आने लगती है।

2 सचमुच की रोशनी के अलावा, आध्यात्मिक उजियाले का देनेवाला भी यहोवा है। (भजन 43:3) एक तरफ जहाँ संसार घोर अंधकार में है, वहीं दूसरी तरफ सच्चा परमेश्‍वर, यहोवा अपने लोगों को लगातार उजियाला दे रहा है। इसका नतीजा क्या हुआ है? बाइबल जवाब देती है: “धर्मियों का पथ भोर के प्रकाश के समान होता है, जो दिन की पूर्णता तक अधिकाधिक बढ़ता जाता है।” (नीतिवचन 4:18, NHT) दिनोंदिन बढ़ता यह उजियाला यहोवा के लोगों का मार्ग रोशन कर रहा है। इससे संगठन के काम करने के तरीकों में, बाइबल की शिक्षाओं को साफ-साफ समझने और नैतिकता के मामलों में सुधार आए हैं।

बढ़ते उजियाले से संगठन के कामकाज के तरीके में सुधार

3. यशायाह 60:17 में क्या वादा किया गया है?

3 यहोवा ने यशायाह नबी के ज़रिए भविष्यवाणी की थी: “मैं पीतल की सन्ती सोना, लोहे की सन्ती चान्दी, लकड़ी की सन्ती पीतल और पत्थर की सन्ती लोहा लाऊंगा।” (यशायाह 60:17) किसी सस्ती धातु के बदले कीमती धातु का इस्तेमाल करना उन्‍नति की निशानी है। उसी तरह, “जगत के अन्त” या इन “अन्तिम दिनों” के दौरान, यहोवा के साक्षियों ने अपने संगठन के काम करने के तरीके में उन्‍नति होते देखी है।—मत्ती 24:3; 2 तीमुथियुस 3:1.

4. सन्‌ 1919 में कौन-सा इंतज़ाम शुरू किया गया था, और इससे कैसा फायदा हुआ?

4 अंतिम दिनों की शुरूआत में बाइबल विद्यार्थी, जिन्हें आज यहोवा के साक्षी कहा जाता है, कलीसियाओं में वोट डालकर प्राचीनों और डीकनों का चुनाव करते थे। मगर कुछ प्राचीनों में प्रचार करने की सच्ची भावना नहीं थी। कुछ प्राचीन ऐसे थे जो खुद तो प्रचार में हिस्सा नहीं लेना चाहते थे, ऊपर से दूसरों को भी जाने से रोकते थे। इसलिए सन्‌ 1919 में हर कलीसिया में सर्विस डाइरेक्टर या सेवा निर्देशक का इंतज़ाम शुरू किया गया था। सेवा निर्देशक को कलीसिया वोट डालकर नहीं चुनती थी, बल्कि शाखा दफ्तर उसे परमेश्‍वर के निर्देशन में नियुक्‍त करता था। इस भाई की ज़िम्मेदारी थी, प्रचार काम की व्यवस्था करना, उसके लिए इलाके देना और प्रचार में हिस्सा लेने का बढ़ावा देना। इससे आनेवाले सालों में राज्य के प्रचार काम में कमाल की तेज़ी आयी।

5. सन्‌ 1920 के दशक में क्या सुधार किया गया था?

5 फिर जब सन्‌ 1922 आया, तो अमरीका के सीडर पॉइंट ओहायो में हुए बाइबल विद्यार्थियों के एक अधिवेशन से कलीसिया के सभी लोगों में प्रचार के लिए नया जोश भर आया। उस अधिवेशन में उन सबसे गुज़ारिश की गयी: “राजा और उसके राज्य की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो।” सन्‌ 1927 के आते-आते यह तय किया गया कि घर-घर के प्रचार के लिए रविवार का दिन सबसे बढ़िया रहेगा। क्यों? क्योंकि ज़्यादातर लोग रविवार के दिन ही घर पर होते थे। आज भी यहोवा के साक्षी वैसा ही जोश दिखाते हैं। वे ऐसे समयों पर लोगों से मिलने जाते हैं जब वे आम तौर पर घर पर रहते हैं, जैसे शाम के वक्‍त या शनिवार-रविवार के दिन।

6. सन्‌ 1931 में कौन-सा प्रस्ताव पारित किया गया था, और इसका राज्य के प्रचार काम पर कैसा असर पड़ा?

6 सन्‌ 1931 में अमरीका के ओहायो के कॉलंबस शहर में एक अधिवेशन हुआ। जुलाई 26 के रविवार की दोपहर को एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिससे राज्य के प्रचार काम के लिए गज़ब का जोश पैदा हुआ। बाद में यह प्रस्ताव दुनिया-भर में पारित किया गया। प्रस्ताव का एक हिस्सा यह कहता है: “हम, यहोवा के सेवकों को उसके नाम से एक काम करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है, और उसकी आज्ञा मानते हुए हम वह संदेश सुनाते हैं जिसके बारे में खुद यीशु मसीह ने प्रचार किया था। हम लोगों को बताते हैं कि यहोवा ही सच्चा और सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है; इसलिए हम खुशी-खुशी वह नाम स्वीकार करते हैं जो हमारे प्रभु परमेश्‍वर ने हमें दिया है, और हम चाहते हैं कि अब से हम इस नए नाम, यानी यहोवा के साक्षी के तौर पर जाने जाएँ और इसी नाम से पुकारे जाएँ।” (यशायाह 43:10) इस नए नाम से साफ-साफ पता चलता है कि इसे धारण करनेवालों का सबसे पहला और ज़रूरी काम क्या है! जी हाँ, यहोवा ने अपने सभी सेवकों को एक काम दिया है, उसके बारे में साक्षी देना। अधिवेशन में यह नाम पाकर लोगों में जोश की लहर दौड़ गयी!

7. सन्‌ 1932 में क्या बदलाव आया, और क्यों?

7 कई प्राचीन नम्रता दिखाते हुए, प्रचार के काम में जी-जान से जुट गए। मगर कुछ जगहों में वोट से चुने गए प्राचीनों ने इस बात का विरोध किया कि कलीसिया के सभी लोगों को प्रचार में हिस्सा लेना चाहिए। लेकिन बहुत जल्द और भी सुधार होनेवाले थे। सन्‌ 1932 में द वॉचटावर पत्रिका के ज़रिए कलीसियाओं को हिदायत मिली कि वे वोट डालकर प्राचीनों और डीकनों को चुनना बंद कर दें। इसके बजाय, उन्हें एक सेवा समिति का चुनाव करना था। यह समिति ऐसे आध्यात्मिक लोगों से बननी थी जो प्रचार काम में हिस्सा लेते। इस तरह कलीसिया की निगरानी करने का ज़िम्मा ऐसे लोगों को सौंपा गया जो ज़ोर-शोर से प्रचार में हिस्सा लेते थे। इससे प्रचार का काम भी आगे बढ़ता गया।

बढ़ते उजियाले से और भी सुधार हुए

8. सन्‌ 1938 में क्या सुधार आया?

8 यह उजियाला “अधिकाधिक बढ़ता” जा रहा था। सन्‌ 1938 में चुनावों का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया गया। इसके बजाय, ज़िम्मेदारी के सभी पदों के लिए, भाइयों को बाइबल की माँगों के मुताबिक और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के निर्देशन के तहत परमेश्‍वर के मार्गदर्शन में चुना जाने लगा। (मत्ती 24:45-47) इस बदलाव को यहोवा के साक्षियों की तकरीबन सभी कलीसियाओं ने फौरन कबूल कर लिया और गवाही देने का काम फल लाता रहा।

9. सन्‌ 1972 में कौन-सा इंतज़ाम शुरू किया गया था, और इसे उन्‍नति क्यों कहा जा सकता है?

9 अक्टूबर 1, 1972 से कलीसियाओं की निगरानी के मामले में एक और फेरबदल किया गया। पहले सिर्फ एक कॉन्ग्रिगेशन सर्वेन्ट या अध्यक्ष, कलीसिया की देखरेख करता था। मगर फिर, इसके बदले यहोवा के साक्षियों की हर कलीसिया में प्राचीनों का एक निकाय ठहराया गया। इस नए इंतज़ाम से प्रौढ़ मसीही भाइयों को बढ़ावा मिला है कि वे कलीसिया की अगुवाई करने के लिए खुद को काबिल बनाएँ। (1 तीमुथियुस 3:1-7) नतीजा, बड़ी तादाद में भाइयों को कलीसिया की ज़िम्मेदारियाँ सँभालने का तजुरबा हासिल हुआ है। इन भाइयों ने उन नए लोगों को कितनी अनमोल मदद दी है, जो बाइबल की सच्चाई अपनाकर संगठन में आए हैं!

10. सन्‌ 1976 में कौन-सा इंतज़ाम शुरू किया गया था?

10 जनवरी 1, 1976 से शासी निकाय के सदस्यों को छः समितियों में संगठित किया गया और इन समितियों ने संगठन के और दुनिया-भर की कलीसियाओं के सारे कामकाज की बागडोर सँभाल ली। “अनेक सलाहकारों की सलाहों” से राज्य काम के सभी पहलुओं की देखरेख करना वाकई एक आशीष साबित हुई है!—नीतिवचन 15:22, NHT; 24:6.

11. सन्‌ 1992 में क्या उन्‍नति हुई, और क्यों?

11 सन्‌ 1992 में संगठन में एक और उन्‍नति हुई जो काफी हद तक उस घटना से मिलती-जुलती है, जब इस्राएली और बाकी लोग बाबुल की बंधुआई से लौटे थे। उस वक्‍त, मंदिर में सेवा करने के लिए बहुत कम लेवी थे। इसलिए गैर-इस्राएली नतीनों को लेवियों की मदद करने के लिए और भी ज़िम्मेदारी का काम सौंपा गया। उसी तरह, आज धरती पर विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ रही हैं और इसलिए उनकी मदद करने के लिए सन्‌ 1992 में ‘अन्य भेड़’ के कुछ लोगों को सेवा की और भी ज़िम्मेदारियाँ दी गयीं। उन्हें शासी निकाय की समितियों की मदद करने के लिए सहायकों के नाते नियुक्‍त किया गया।—यूहन्‍ना 10:16, NW.

12. यहोवा ने किस मायने में शांति को हमारा शासक ठहराया है?

12 इन सारे बदलावों का क्या नतीजा निकला है? यहोवा कहता है: “मैं शान्ति को तेरा शासक और धार्मिकता को तेरा प्रशासक ठहराऊंगा।” (यशायाह 60:17, NHT) आज यहोवा के सेवकों के बीच “शान्ति” पायी जाती है और धार्मिकता के लिए प्यार उनका “प्रशासक” ठहरा है, यानी यह प्यार उन्हें परमेश्‍वर की सेवा करने को उकसाता है। वे राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने के लिए अच्छी तरह संगठित हैं।—मत्ती 24:14; 28:19, 20.

यहोवा, बाइबल शिक्षाओं की समझ बढ़ाने के लिए भी उजियाला देता है

13. सन्‌ 1920 के दशक में यहोवा ने बाइबल शिक्षाओं की समझ बढ़ाने के लिए अपने लोगों पर उजियाला कैसे चमकाया?

13 यहोवा, बाइबल शिक्षाओं की समझ बढ़ाने के लिए भी अपने लोगों पर उजियाला चमकाता है। प्रकाशितवाक्य 12:1-9 इसकी एक मिसाल है। इसमें दिए वृत्तांत में तीन लाक्षणिक किरदारों का ज़िक्र मिलता है: एक गर्भवती “स्त्री” जो जन्म देती है, एक “अजगर” और एक “बेटा।” क्या आप जानते हैं कि इनमें से हर किरदार किसे दर्शाता है? इसका जवाब मार्च 1, 1925 की द वॉचटावर पत्रिका के एक लेख में दिया गया था जिसका शीर्षक था, “राष्ट्र का जन्म।” उस लेख ने परमेश्‍वर के लोगों को राज्य के जन्म से जुड़ी भविष्यवाणियों की बेहतर समझ दी। इससे यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्‍व में दो संगठन हैं जो एक-दूसरे के एकदम खिलाफ हैं। एक है यहोवा का संगठन और दूसरा शैतान का। फिर सन्‌ 1927/28 में परमेश्‍वर के लोगों ने जाना कि क्रिसमस और जन्मदिन, बाइबल की शिक्षाओं के खिलाफ हैं और इन्हें मनाना छोड़ दिया।

14. सन्‌ 1930 के दशक में बाइबल की किन सच्चाइयों पर सही समझ दी गयी थी?

14 फिर सन्‌ 1930 के दशक में बाइबल की तीन सच्चाइयों पर ज़्यादा रोशनी डाली गयी। बाइबल विद्यार्थी सालों से जानते थे कि प्रकाशितवाक्य 7:9-17 में बतायी “बड़ी भीड़,” उन 1,44,000 जनों से अलग है जो राजा और याजक बनकर मसीह के साथ राज करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 5:9, 10; 14:1-5) मगर वह बड़ी भीड़ कौन है, यह तब तक साफ-साफ समझ नहीं आया था। जिस तरह भोर के उजियाले में हमें धुँधली चीज़ों का आकार और रंग साफ नज़र आने लगता है, ठीक उसी तरह सन्‌ 1935 में बड़ी भीड़ की पहचान साफ हो गयी। यह समझ हासिल हुई कि इस समूह के लोग “बड़े क्लेश” से बच निकलेंगे और उन्हें धरती पर हमेशा जीने की आशा है। उसी साल एक और सच्चाई पर सही समझ हासिल हुई, जिसका असर कई देशों में साक्षी माता-पिताओं के उन बच्चों पर पड़ा जो स्कूल जाते थे। एक तरफ जहाँ दुनिया में हर कहीं देशभक्‍ति की भावना ज़ोरों पर थी, वहीं दूसरी तरफ यहोवा के साक्षियों ने झंडे की सलामी के बारे में समझा कि यह देश का आदर करने की महज़ कोई रस्म नहीं बल्कि उपासना से जुड़ा है। उसके अगले साल, बाइबल की एक और सच्चाई पर सही समझ दी गयी कि मसीह क्रूस पर नहीं बल्कि काठ पर मरा था।—प्रेरितों 10:39.

15. लहू की पवित्रता पर कब और कैसे ज़ोर दिया गया?

15 दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, घायल सैनिकों को खून चढ़वाना इलाज का आम तरीका बन चुका था। युद्ध का दौर खत्म होते ही परमेश्‍वर के लोगों को खून की पवित्रता पर ज़्यादा जानकारी दी गयी। जुलाई 1, 1945 की द वॉचटावर पत्रिका के अंक में “यहोवा के सभी उपासकों को, जो उसकी धार्मिकता की नयी दुनिया में हमेशा के लिए जीना चाहते हैं,” यह बढ़ावा दिया गया था “कि वे लहू की पवित्रता का आदर करें और इस अहम मामले में परमेश्‍वर के धर्मी नियम का पालन करें।”

16. न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌ कब रिलीज़ की गयी, और इसकी दो खासियतें क्या हैं?

16 सन्‌ 1946 में बाइबल के एक नए अनुवाद की ज़रूरत महसूस हुई जो बाइबल हस्तलिपियों से मिली नयी जानकारी के आधार पर तैयार किया जाता और जिसमें ईसाईजगत की परंपराओं और शिक्षाओं की छाप न होती। दिसंबर 1947 से ऐसा अनुवाद तैयार करने का काम शुरू हो गया। सन्‌ 1950 में न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द क्रिस्चन ग्रीक स्क्रिप्चर्स्‌ अँग्रेज़ी में रिलीज़ की गयी। अँग्रेज़ी में इब्रानी शास्त्र को पाँच भागों में तैयार किया गया था और सन्‌ 1953 से एक-के-बाद-एक भाग रिलीज़ होते गए। आखिरी भाग सन्‌ 1960 में रिलीज़ हुआ यानी बाइबल का अनुवाद शुरू करने के कुछ 12 साल बाद। न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌ की पूरी बाइबल एक ही भाग में सन्‌ 1961 को रिलीज़ की गयी। यह बाइबल अब बहुत-सी भाषाओं में उपलब्ध है और इसकी कई खासियतें हैं। एक तो यह कि जहाँ-जहाँ परमेश्‍वर का नाम यहोवा आना चाहिए, वहाँ-वहाँ इस बाइबल में उसे वापस डाला गया है। इसके अलावा, इसमें मूल भाषाओं का शाब्दिक अनुवाद किया गया है। इससे परमेश्‍वर के वचन के बारे में लगातार बेहतर समझ हासिल करते रहना मुमकिन हुआ है।

17. सन्‌ 1962 में कौन सी नयी समझ दी गयी थी?

17 फिर जब सन्‌ 1962 आया, तो रोमियों 13:1 में बताए “प्रधान अधिकारियों” के बारे में और एक मसीही को किस हद तक अधीनता दिखाना है, इस बारे में नयी समझ दी गयी। रोमियों अध्याय 13 का गहरा अध्ययन करने और तीतुस 3:1, 2 और 1 पतरस 2:13, 17 जैसे वचनों की जाँच करने से यह पता चला कि ‘प्रधान अधिकारी’ यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह नहीं बल्कि इंसानी सरकार हैं।

18. सन्‌ 1980 के दशक में किन सच्चाइयों के बारे में साफ समझ दी गयी?

18 इसके बाद के सालों में, धर्मियों के मार्ग का प्रकाश बढ़ता ही गया। सन्‌ 1985 में इस बात पर साफ समझ दी गयी कि “जीवन के निमित्त” धर्मी ठहराए जाने और परमेश्‍वर के मित्र के नाते धर्मी ठहराए जाने का मतलब क्या है। (रोमियों 5:18; याकूब 2:23) और सन्‌ 1987 में, मसीही जुबली का मतलब अच्छी तरह समझाया गया।

19. हाल के सालों में यहोवा ने कैसे अपने लोगों पर आध्यात्मिक उजियाला चमकाया है?

19 सन्‌ 1995 में “भेड़ों” को “बकरियों” से अलग किए जाने के बारे में और अच्छी तरह समझाया गया था। सन्‌ 1998 में यहेजकेल के मंदिर के दर्शन को बारीकी से समझाया गया था और हमारे समय में इस दर्शन की पूर्ति होना शुरू हो चुका है। सन्‌ 1999 में इस बारे में नयी समझ दी गयी थी कि “घृणित वस्तु” कब और कैसे “पवित्र स्थान में खड़ी” होती है। (मत्ती 24:15, 16; 25:32) और जब सन्‌ 2002 आया, तो परमेश्‍वर की उपासना “आत्मा और सच्चाई से” करने के मतलब पर ज़्यादा रोशनी डाली गयी।—यूहन्‍ना 4:24.

20. परमेश्‍वर के लोगों ने और किस मामले में सुधार होते देखा है?

20 संगठन के काम करने के तरीके और बाइबल की शिक्षाओं की समझ में आए सुधार के अलावा, इस बात में भी सुधार आए हैं कि मसीहियों का व्यवहार कैसा होना चाहिए। मिसाल के लिए, सन्‌ 1973 में यह समझाया गया कि तंबाकू ‘शरीर को मलिन’ करता है और इसके इस्तेमाल को गंभीर पाप मानना चाहिए। (2 कुरिन्थियों 7:1) दस साल बाद, जुलाई 15, 1983 की द वॉचटावर पत्रिका ने साफ बताया कि बंदूक, पिस्तौल जैसे हथियारों के इस्तेमाल के बारे में हमारा नज़रिया क्या होना चाहिए। ये तो बस कुछ मिसालें हैं जो दिखाती हैं कि हमारे समय में कैसे उजियाला बढ़ता ही जा रहा है।

दिनोंदिन बढ़ते उजियाले के मार्ग पर चलते रहिए

21. क्या नज़रिया होने से हम दिनोंदिन बढ़ते उजियाले के मार्ग पर चलते रहेंगे?

21 लंबे समय से प्राचीन रह चुके एक भाई का कहना है: “किसी बदलाव को कबूल करना और उसके मुताबिक खुद को ढालना बहुत मुश्‍किल हो सकता है।” यह प्राचीन पिछले 48 सालों से राज्य का एक प्रचारक है। उन सालों के दौरान उसने जो सुधार होते देखे हैं, उन्हें कबूल करने में किस बात ने उसकी मदद की है? वह कहता है: “सही नज़रिया रखना बहुत ज़रूरी है। अगर हम किसी बदलाव को अपनाने से इनकार करते हैं, तो परमेश्‍वर का संगठन हमें छोड़कर आगे निकल जाएगा। जब कभी मुझे कुछ बदलाव को कबूल करना मुश्‍किल लगता है, मैं पतरस के उन शब्दों को याद करता हूँ जो उसने यीशु से कहे थे: ‘हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।’ फिर मैं खुद से पूछता हूँ: ‘यहोवा के संगठन को छोड़कर मैं कहाँ जाऊँगा—क्या वापस उस दुनिया में जहाँ अंधकार के सिवा और कुछ नहीं है?’ इससे मुझे मदद मिलती है कि मैं परमेश्‍वर के संगठन से मज़बूती से जुड़ा रहूँ।”—यूहन्‍ना 6:68.

22. उजियाले में चलते रहने से हमें क्या फायदा होता है?

22 इसमें कोई शक नहीं कि हमारे चारों तरफ की दुनिया घोर अंधकार में है। यहोवा अपने लोगों को लगातार उजियाला दे रहा है, जिससे उनके और इस दुनिया के बीच फासला बढ़ता जा रहा है। इस उजियाले से हमें क्या फायदा होता है? अंधेरी राह में अगर कोई गड्ढा हो, तो टॉर्च जलाने से वह गड्ढा बंद नहीं होता बल्कि साफ नज़र आता है। उसी तरह परमेश्‍वर के वचन से मिलनेवाली ज्योति, खतरों को दूर नहीं करती मगर उन्हें पहचानने और उनसे बचकर रहने में हमारी मदद करती है, ताकि हम बढ़ते प्रकाश के मार्ग पर चलते रहें। इसलिए, आइए हम यहोवा के भविष्यवाणी के वचनों पर ध्यान देते रहें, जो ‘अंधेरे में चमकते हुए एक दीपक’ की तरह हैं।—2 पतरस 1:19, NHT.

क्या आपको याद है?

• यहोवा ने धरती पर अपने संगठन के कामकाज के तरीके में क्या-क्या सुधार किए हैं?

• बढ़ते उजियाले से बाइबल की शिक्षाओं की क्या साफ समझ मिली है?

• आपने खुद अपनी आँखों से किन बदलावों को होते देखा है, और उन्हें कबूल करने में किस बात ने आपकी मदद की है?

• आप क्यों दिनोंदिन बढ़ते उजियाले के मार्ग पर चलते रहना चाहते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 27 पर तसवीरें]

सन्‌ 1922 के सीडर पॉइंट, ओहायो के अधिवेशन ने बाइबल विद्यार्थियों में परमेश्‍वर का काम करने का नया जोश पैदा किया

[पेज 29 पर तसवीर]

सन्‌ 1950 में भाई एन. एच. नॉर के हाथों रिलीज़ हुआ “न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द क्रिस्चन ग्रीक स्क्रिप्चर्स्‌”

[पेज 26 पर चित्र का श्रेय]

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