स्वर्ग में और पृथ्वी पर जो है, उसे इकट्ठा करना
स्वर्ग में और पृथ्वी पर जो है, उसे इकट्ठा करना
‘यह उसकी सुमति के अनुसार है कि जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ वह मसीह में एकत्र करे।’—इफिसियों 1:9, 10.
1. स्वर्ग और पृथ्वी के बारे में यहोवा की “सुमति” क्या है?
पूरे विश्व में शांति! यही “शान्तिदाता परमेश्वर” यहोवा का शानदार मकसद है। (इब्रानियों 13:20) उसने ईश्वर-प्रेरणा से प्रेरित पौलुस को यह लिखने को कहा कि उसकी “सुमति” यह है कि “जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ [दोबारा] मसीह में इकट्ठा करे।” (इफिसियों 1:9, 10) लेकिन इस आयत में क्रिया, ‘दोबारा इकट्ठा करने’ का क्या मतलब है? बाइबल विद्वान जे. बी. लाइटफुट कहते हैं: “इन शब्दों का मतलब है, पूरे विश्व में शांति और एकता कायम होगी। ऐसे कोई तत्त्व नहीं रहेंगे जो विश्व में फूट पैदा करेंगे बल्कि सभी मसीह के साथ एकता की डोर से बँधे रहेंगे। पाप, मृत्यु, दुःख, नाकामी और तकलीफें सब मिट जाएँगी।”
“जो कुछ स्वर्ग में है”
2. इकट्ठा करने के लिए “जो कुछ स्वर्ग में है” वे क्या हैं?
2 प्रेरित पतरस ने चंद शब्दों में बताया कि सच्चे मसीहियों के पास क्या ही बढ़िया आशा है। उसने लिखा: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (2 पतरस 3:13) यहाँ जिस “नए आकाश” का वादा किया गया है, उसका मतलब एक नयी सरकार है यानी मसीहाई राज्य। पौलुस ने इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में कहा कि “जो कुछ स्वर्ग में है” उसे “मसीह में” इकट्ठा किया जाना है। वे क्या हैं? वे ऐसे कुछ लोग हैं जिन्हें मसीह के साथ स्वर्ग में राज करने के लिए चुना गया है। (1 पतरस 1:3, 4) ये 1,44,000 अभिषिक्त मसीही, “पृथ्वी पर से” और “मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं” ताकि वे मसीह के स्वर्गीय राज्य में उसके संगी वारिस बनें।—प्रकाशितवाक्य 5:9, 10; 14:3, 4; 2 कुरिन्थियों 1:21; इफिसियों 1:11; 3:6.
3. यह क्यों कहा जा सकता है कि धरती पर रहते हुए भी अभिषिक्त मसीही ‘स्वर्गीय स्थानों में बैठे’ हैं?
3 अभिषिक्त मसीही, यहोवा के आध्यात्मिक पुत्र बनने के लिए, पवित्र आत्मा के ज़रिए नए सिरे से जन्म लेते हैं। (यूहन्ना 1:12, 13; 3:5-7) और क्योंकि यहोवा ने उन्हें “पुत्र” के नाते गोद लिया है, वे रिश्ते में यीशु के भाई लगते हैं। (रोमियों 8:15; इफिसियों 1:5) इसलिए, धरती पर रहते हुए भी बाइबल उनके बारे में यह कहती है कि वे ‘मसीह यीशु में उसके साथ उठाए, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठे’ हुए हैं। (इफिसियों 1:3; 2:6) कैसे? वे आध्यात्मिक रूप से ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं क्योंकि उन पर ‘प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी है’ जो स्वर्ग में रखी ‘उनकी मीरास का बयाना है।’ (इफिसियों 1:13, 14; कुलुस्सियों 1:5) तो फिर “जो कुछ स्वर्ग में है” वे अभिषिक्त मसीही हैं, जिनकी संख्या यहोवा ने पहले से तय कर रखी है और जिन्हें इकट्ठा किया जाना है।
इकट्ठा करने का काम शुरू होता है
4. “जो कुछ स्वर्ग में है” उसे इकट्ठा करने का काम कब और कैसे शुरू हुआ?
4 यहोवा के “प्रबन्ध” या मामलों को सँभालने के तरीके के मुताबिक ‘समयों के पूरा होने’ पर “जो कुछ स्वर्ग में है,” उसे इकट्ठा करने का काम शुरू किया जाना था। (इफिसियों 1:10) वह समय, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन आया। उस दिन प्रेरितों और चेलों के एक समूह पर पवित्र आत्मा उँडेली गयी, जिसमें स्त्री-पुरुष दोनों शामिल थे। (प्रेरितों 1:13-15; 2:1-4) यह इस बात का सबूत था कि नयी वाचा लागू हो गयी है। इस घटना से मसीही कलीसिया का और एक नयी आध्यात्मिक जाति का जन्म हुआ जिसे ‘परमेश्वर का इस्राएल’ कहा जाता है।—गलतियों 6:16; इब्रानियों 9:15; 12:23, 24.
5. यहोवा ने पैदाइशी इस्राएल की जगह लेने के लिए एक नयी “जाति” की सृष्टि क्यों की?
5 हालाँकि पैदाइशी इस्राएलियों के साथ व्यवस्था-वाचा बाँधी गयी थी, मगर उससे “याजकों का राज्य और पवित्र जाति” नहीं बन पायी, जो स्वर्ग में सदा तक सेवा करती। (निर्गमन 19:5, 6) इसलिए यीशु ने यहूदी धर्मगुरुओं से कहा: “परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।” (मत्ती 21:43) वह जाति, अभिषिक्त मसीहियों से बना आध्यात्मिक इस्राएल है, जिनके साथ नयी वाचा बाँधी गयी है। इन मसीहियों को प्रेरित पतरस ने लिखा: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो। तुम पहिले तो कुछ भी नहीं थे, पर अब परमेश्वर की प्रजा हो।” (1 पतरस 2:9, 10) पैदाइशी इस्राएल अब यहोवा के साथ वाचा में बँधे लोग नहीं रहे। (इब्रानियों 8:7-13) जैसे यीशु ने कहा था, मसीहाई राज्य का हिस्सा बनने का अनोखा मौका उनसे ले लिया गया और आध्यात्मिक इस्राएल के 1,44,000 सदस्यों को दिया गया।—प्रकाशितवाक्य 7:4-8.
राज्य की वाचा में शामिल करना
6, 7. यीशु ने आत्मा से अभिषिक्त अपने भाइयों के साथ कौन-सी खास वाचा बाँधी और यह उनके लिए क्या मायने रखती है?
6 यीशु ने जिस रात अपनी मौत के स्मारक की शुरूआत की, उस रात उसने अपने वफादार प्रेरितों को बताया: “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया [“मेरे साथ राज्य की वाचा बाँधी,” NW] है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता [“तुम्हारे साथ वाचा बाँधता,” NW] हूं, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पिओ; बरन सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।” (लूका 22:28-30) यीशु ने यहाँ एक खास वाचा का ज़िक्र किया। उसने यह वाचा, आत्मा से अभिषिक्त अपने उन 1,44,000 भाइयों के साथ बाँधी है जो “प्राण देने तक विश्वासी” रहते हैं और ‘विजयी’ साबित होते हैं।—प्रकाशितवाक्य 2:10; 3:21.
7 यह वाचा अभिषिक्त जनों के उस छोटे-से समूह के लिए क्या मायने रखती है? यही कि वे हाड़-माँस के इंसानों से उलट, धरती पर हमेशा की ज़िंदगी जीने की सारी आशा त्याग देते हैं। वे स्वर्ग में मसीह के साथ राज करेंगे और सिंहासन पर बैठकर मानवजाति का न्याय करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 20:4, 6) आइए अब हम बाइबल से कुछ और वचन देखें जो सिर्फ अभिषिक्त जनों पर लागू होते हैं और जो दिखाते हैं कि “अन्य भेड़ें” क्यों स्मारक के प्रतीकों को खा-पी नहीं सकती हैं।—यूहन्ना 10:16, NW.
8. स्मारक की रोटी खाने से अभिषिक्त क्या दिखाते हैं? (पेज 23 पर दिए बक्स देखिए।)
8 अभिषिक्त जन, मसीह के दुःखों में भागी होते हैं और वैसी मौत मरने को तैयार हैं, जैसी यीशु को मिली थी। पौलुस जो खुद एक अभिषिक्त था, उसने कहा कि वह कोई भी त्याग करने को तैयार है जिससे वह ‘मसीह को पाने, उसको और उसके जी उठने की सामर्थ्य को तथा उसके साथ दुखों में सहभागी होने के मर्म को जान सके।’ (NHT) जी हाँ, पौलुस ‘उस की मृत्यु के समान’ मौत मरने को तैयार था। (फिलिप्पियों 3:8, 10) बहुत-से अभिषिक्त मसीहियों ने अपने शरीर में यीशु के “दुःखभोग तथा मृत्यु का अनुभव” किया है।—2 कुरिन्थियों 4:10, बुल्के बाइबल।
9. स्मारक की रोटी, किस तरह की देह की निशानी है?
9 प्रभु के संध्या भोज की शुरूआत करते वक्त यीशु ने कहा था: “यह मेरी देह है।” (मरकुस 14:22) यहाँ यीशु अपने सचमुच के शरीर की बात कर रहा था, जिस पर जल्द ही बहुत चोटें बरसायी जातीं और जो खून से लथपथ होनेवाला था। बगैर खमीर की रोटी, उस शरीर की एकदम सही निशानी थी। क्यों? क्योंकि बाइबल में खमीर को पाप या बुराई की निशानी बताया जाता है। (मत्ती 16:4, 11, 12; 1 कुरिन्थियों 5:6-8) यीशु सिद्ध था और उसकी इंसानी देह में कोई पाप नहीं था। वह अपनी इसी सिद्ध देह को प्रायश्चित बलिदान के तौर पर भेंट करता। (इब्रानियों 7:26; 1 यूहन्ना 2:2) उसके बलिदान से सभी वफादार मसीहियों को फायदा होता, फिर चाहे वे स्वर्ग में जीने की आशा रखते हों या धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी की।—यूहन्ना 6:51.
10. स्मारक में दाखमधु लेनेवाले किस तरह ‘मसीह के लोहू के सहभागी’ बनते हैं?
10 स्मारक के वक्त, अभिषिक्त मसीही जो दाखमधु लेते हैं, उस दाखमधु के बारे में पौलुस ने लिखा: “वह धन्यवाद का कटोरा, जिस पर हम धन्यवाद करते हैं, क्या मसीह के लोहू की सहभागिता नहीं?” (1 कुरिन्थियों 10:16) दाखमधु लेनेवाले अभिषिक्त जन किस तरह ‘मसीह के लोहू के सहभागी’ बनते हैं? इसका यह मतलब नहीं कि वे यीशु के साथ मिलकर छुड़ौती बलिदान देते हैं, क्योंकि खुद उन्हें छुड़ौती की ज़रूरत है। बल्कि वे यह विश्वास करके सहभागी बनते हैं कि मसीह के लहू में उनका उद्धार करने की ताकत है। इससे उनके पाप माफ किए जाते हैं और उन्हें स्वर्गीय जीवन के लिए धर्मी करार किया जाता है। (रोमियों 5:8, 9; तीतुस 3:4-7) मसीह के बहाए लहू की बदौलत ही उसके संगी वारिस यानी 1,44,000 जन, “पवित्र” ठहरते हैं और ‘पवित्र लोग’ होने के लिए पाप से शुद्ध किए जाते हैं। (इब्रानियों 10:29; दानिय्येल 7:18, 27; इफिसियों 2:19) जी हाँ, मसीह ने अपने बहाए लहू से “हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है। और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया; और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं।”—प्रकाशितवाक्य 5:9, 10.
11. स्मारक का दाखमधु पीने से अभिषिक्त जन क्या दिखाते हैं?
11 यीशु ने जब अपनी मौत के स्मारक की शुरूआत की, तो उसने अपने वफादार प्रेरितों को दाखमधु का प्याला थमाया और उनसे कहा: “तुम सब इस में से पीओ। क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है।” (मत्ती 26:27, 28) जिस तरह बैलों और बकरों के लहू से परमेश्वर और इस्राएल जाति के बीच व्यवस्था-वाचा पक्की की गयी थी, उसी तरह यीशु के लहू से यहोवा ने नयी वाचा को पक्का किया। यहोवा ने सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन यह वाचा आध्यात्मिक इस्राएल के साथ बाँधी थी। (निर्गमन 24:5-8; लूका 22:20; इब्रानियों 9:14, 15) इसलिए जब अभिषिक्त जन दाखमधु पीते हैं, जो ‘वाचा के लहू’ की निशानी है, तो वे दिखाते हैं कि उन्हें नयी वाचा में शामिल किया गया है और वे उससे फायदा पा रहे हैं।
12. अभिषिक्त जन कैसे मसीह की मृत्यु का बपतिस्मा लेते हैं?
12 स्मारक के वक्त, अभिषिक्त जनों को एक और बात याद करायी जाती है। वह क्या है? यीशु ने अपने वफादार चेलों से कहा था: “जो कटोरा मैं पीने पर हूं, तुम पीओगे; और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूं, उसे लोगे।” (मरकुस 10:38, 39) बाद में प्रेरित पौलुस ने बताया कि अभिषिक्त मसीही “[यीशु] की मृत्यु का बपतिस्मा” लेते हैं। (रोमियों 6:3) कैसे? वे त्याग की ज़िंदगी जीते हैं। उनकी मृत्यु एक त्याग है क्योंकि वे धरती पर हमेशा की ज़िंदगी जीने की हर इच्छा से इनकार कर देते हैं। इन अभिषिक्त जनों के लिए मसीह की मृत्यु का बपतिस्मा तब जाकर पूरा होता है, जब जीवन भर वफादार रहने के बाद उनकी मौत पर उन्हें आत्मिक प्राणियों के नाते जिलाया जाता है ताकि वे स्वर्ग में मसीह के साथ “राज्य” कर सकें।—2 तीमुथियुस 2:10-12; रोमियों 6:5; 1 कुरिन्थियों 15:42-44, 50.
रोटी और दाखमधु को लेना
13. धरती पर जीने की आस रखनेवाले, स्मारक के प्रतीकों को क्यों नहीं खाते या पीते, मगर वे स्मारक पर किसलिए हाज़िर होते हैं?
13 तो जैसा कि हमने देखा, स्मारक के वक्त दाखमधु और रोटी को लेने में ये सारी बातें शामिल हैं। इसलिए ज़ाहिर-सी बात है कि धरती पर जीने की आस रखनेवालों के लिए इन्हें खाना-पीना मुनासिब नहीं होगा। धरती पर रहने की आशा रखनेवाले जानते हैं कि वे मसीह की देह के अभिषिक्त सदस्य नहीं हैं और ना ही उस नयी वाचा के भागीदार हैं जो यहोवा ने यीशु मसीह के संगी राजाओं के साथ बाँधी है। क्योंकि “कटोरा” नयी वाचा की निशानी है, इसलिए सिर्फ उस वाचा के सदस्य ही दाखमधु और रोटी खा-पी सकते हैं। जो लोग धरती पर परमेश्वर के राज्य के अधीन सिद्ध होने और हमेशा की ज़िंदगी पाने की उम्मीद करते हैं, वे न तो यीशु की मृत्यु का बपतिस्मा लेते हैं और ना ही उन्हें स्वर्ग में उसके साथ हुकूमत करने के लिए बुलाया जाता है। अगर वे स्मारक के प्रतीकों को खाते या पीते हैं, तो यह गलत होगा क्योंकि वे उसके हकदार नहीं हैं। इसलिए वे उन प्रतीकों को नहीं लेते मगर आदर दिखाते हुए स्मारक में दर्शकों के नाते हाज़िर ज़रूर होते हैं। किसलिए? यहोवा के उन उपकारों का शुक्रिया-अदा करने के लिए जो उसने अपने बेटे के ज़रिए किए हैं। उसका एक उपकार है, मसीह के बहाए लहू के आधार पर हमें अपने पापों की माफी देना।
14. रोटी और दाखमधु लेने से अभिषिक्त जनों को कैसे आध्यात्मिक मज़बूती मिलती है?
14 बचे हुए अभिषिक्त मसीहियों पर अंतिम मुहर लगाने का काम पूरा होनेवाला है। जब तक धरती पर अभिषिक्त जनों की ज़िंदगी खत्म नहीं होती, तब तक स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने से उन्हें आध्यात्मिक मज़बूती मिलती रहती है। इससे वे महसूस करते हैं कि वे और उनके अभिषिक्त भाई-बहन मसीह की देह में एक हैं। स्मारक की रोटी और दाखमधु उन्हें याद दिलाते हैं कि उन्हें मरते दम तक वफादार रहना है।—2 पतरस 1:10, 11.
“जो कुछ पृथ्वी पर है” उन्हें इकट्ठा करना
15. अभिषिक्त मसीहियों को कौन समर्थन दे रहे हैं?
15 सन् 1935 से बढ़ती तादाद में “अन्य भेड़ें” अभिषिक्त जनों को समर्थन दे रही हैं। ये भेड़ें, “छोटे झुण्ड” से नहीं हैं और वे धरती पर हमेशा की ज़िंदगी जीने की आशा रखती हैं। (यूहन्ना 10:16, NW; लूका 12:32; जकर्याह 8:23) ये लोग मसीह के भाइयों के वफादार साथी बन गए हैं और सारी दुनिया में ‘राज्य का सुसमाचार’ प्रचार करने में उनकी बहुत मदद कर रहे हैं। (मत्ती 24:14; 25:40) ऐसा करके वे अपने आप को ‘भेड़’ साबित कर रहे हैं और जब यीशु दुनिया का न्याय करने आएगा, तो वह इन भेड़ों को दया दिखाएगा और अपनी “दाहिनी ओर” बिठाएगा। (मत्ती 25:33-36, 46) मसीह के लहू पर विश्वास रखकर वे उस “बड़ी भीड़” का हिस्सा बनते हैं जो “बड़े क्लेश” से बचकर पार होगी।—प्रकाशितवाक्य 7:9-14.
16. “जो कुछ पृथ्वी पर है” उनमें किन्हें शामिल किया जाएगा और इन सभी को ‘परमेश्वर की सन्तान’ बनने का कैसा मौका दिया जाएगा?
16 जब 1,44,000 में से बचे हुए अभिषिक्त जनों पर अंतिम मुहर लग चुकी होगी, तब धरती पर शैतान की दुष्ट व्यवस्था को मिटाने के लिए विनाश की “हवाओं” को छोड़ दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 7:1-4) मसीह और उसके साथी राजाओं और याजकों के हज़ार साल की हुकूमत के दौरान, बड़ी भीड़ में और भी लोग शामिल किए जाएँगे। ये ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनका पुनरुत्थान किया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 20:12, 13) इन लोगों को भी मसीहाई राजा, यीशु मसीह की प्रजा बनकर हमेशा के लिए धरती पर जीने का मौका दिया जाएगा। हज़ार साल की हुकूमत के अंत में, “जो कुछ पृथ्वी पर है,” यानी इन लोगों पर एक आखिरी परीक्षा लायी जाएगी। उस परीक्षा में जो वफादार साबित होंगे, उन्हें धरती पर “परमेश्वर की सन्तानों” के नाते गोद लिया जाएगा।—इफिसियों 1:10; रोमियों 8:21; प्रकाशितवाक्य 20:7, 8.
17. यहोवा का मकसद कैसे पूरा होगा?
17 इस तरह, यहोवा अपने बुद्धिमान “प्रबन्ध” या काम करने के तरीके से ‘जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ मसीह में एकत्र करने’ का अपना मकसद पूरा कर चुका होगा। उस वक्त, स्वर्ग और धरती के सभी बुद्धिमान प्राणी एक होकर शांति से रहेंगे और खुशी-खुशी उस महान परमेश्वर यहोवा की धर्मी हुकूमत के अधीन रहेंगे जो अपने हर मकसद को अंजाम देता है।
18. स्मारक में हाज़िर होने से अभिषिक्त जनों और उनके साथियों को कैसे फायदा होगा?
18 इस साल अप्रैल 12, 2006 को जब अभिषिक्त जनों की छोटी संख्या और उनके लाखों साथी यानी अन्य भेड़, एक-साथ इकट्ठा होंगी तो उन्हें क्या ही हौसला मिलेगा! वे यीशु की इस आज्ञा को मानते हुए उसकी मौत का स्मारक मनाएँगे: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (लूका 22:19) आइए हाज़िर होनेवाले हम सभी यह याद रखें कि यहोवा ने अपने प्यारे बेटे, यीशु मसीह के ज़रिए हमारे लिए क्या-कुछ किया है!
दोहराने के लिए
• स्वर्ग में और पृथ्वी पर जो कुछ है, उनके बारे में यहोवा का मकसद क्या है?
• “जो कुछ स्वर्ग में है” क्या हैं और उन्हें कैसे इकट्ठा किया गया है?
• “जो कुछ पृथ्वी पर है” वह क्या है और उनके आगे क्या आशा है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 23 पर बक्स]
“मसीह की देह”
पहले कुरिन्थियों 10:16, 17 में जब पौलुस चर्चा कर रहा था कि रोटी, मसीह के उन भाइयों के लिए क्या अहमियत रखती है जो आत्मा से अभिषिक्त हैं, तो उसने एक खास मायने से “देह” का ज़िक्र किया। उसने कहा: “वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या वह मसीह की देह की सहभागिता नहीं? इसलिये, कि एक ही रोटी है सो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं: क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं।” अभिषिक्त मसीही जब स्मारक की रोटी खाते हैं, तो ऐलान करते हैं कि वे अभिषिक्त जनों की कलीसिया के साथ एकता में बँधे हैं। यह कलीसिया एक देह के समान है जिसका सिर मसीह है।—मत्ती 23:10; 1 कुरिन्थियों 12:12, 13, 18.
[पेज 23 पर तसवीरें]
सिर्फ अभिषिक्त जन ही क्यों रोटी खाते और दाखमधु पीते हैं?
[पेज 25 पर तसवीर]
यहोवा के प्रबंध के ज़रिए स्वर्ग और पृथ्वी के सभी प्राणियों को एक किया जाएगा