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‘जाकर लोगों को चेला बनाओ और उन्हें बपतिस्मा दो’

‘जाकर लोगों को चेला बनाओ और उन्हें बपतिस्मा दो’

‘जाकर लोगों को चेला बनाओ और उन्हें बपतिस्मा दो’

“इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें . . . बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।”—मत्ती 28:19, 20.

1. इस्राएल जाति ने सीनै पहाड़ के पास क्या फैसला लिया?

 लगभग 3,500 साल पहले, इस्राएलियों की पूरी जाति ने सीनै पहाड़ के पास इकट्ठा होकर परमेश्‍वर के सामने एक शपथ खायी। उन्होंने सरेआम यह ऐलान किया: “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।” तब से इस्राएली लोग परमेश्‍वर की समर्पित जाति और उसकी “निज सम्पत्ति” (NHT) बन गए। (निर्गमन 19:5, 8; 24:3) अब उन्होंने यहोवा पर आस लगायी कि वह हर पल उनकी हिफाज़त करेगा, और वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस देश में बसे रहेंगे जहाँ “दूध और मधु की धाराएं बहती हैं।”—लैव्यव्यवस्था 20:24.

2. आज इंसान, परमेश्‍वर के साथ कैसा रिश्‍ता कायम कर सकते हैं?

2 लेकिन जैसे भजनहार आसाप बताता है, इस्राएलियों ने “परमेश्‍वर की वाचा पूरी नहीं की, और उसकी व्यवस्था पर चलने से इनकार” कर दिया। (भजन 78:10) उन्होंने वह शपथ पूरी नहीं की जो उनके बाप-दादों ने यहोवा परमेश्‍वर के सामने ली थी। नतीजा, इस्राएल जाति ने परमेश्‍वर के साथ अपना खास रिश्‍ता गँवा दिया। (सभोपदेशक 5:4; मत्ती 23:37, 38) इसलिए यहोवा ने इस्राएल जाति को ठुकराकर, ‘अन्यजातियों पर कृपादृष्टि की ताकि उन में से अपने नाम के लिये एक लोग बना ले।’ (प्रेरितों 15:14) और आज इन अंतिम दिनों में, वह ‘एक बड़ी भीड़’ को इकट्ठा कर रहा है “जिसे कोई गिन नहीं सकता” और जिसके लोग “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से” हैं। इस भीड़ के लोग खुशी-खुशी यह कबूल करते हैं: हमारे “उद्धार के लिये हमारे परमेश्‍वर का जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने का जय-जय-कार हो।”—प्रकाशितवाक्य 7:9, 10.

3. अगर एक इंसान परमेश्‍वर के साथ निजी रिश्‍ता कायम करना चाहता है, तो उसे क्या कदम उठाने की ज़रूरत है?

3 परमेश्‍वर के साथ ऐसा अनमोल रिश्‍ता कायम करने के लिए ज़रूरी है कि एक इंसान अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करे और अपना समर्पण सबके सामने ज़ाहिर करने के लिए पानी में बपतिस्मा ले। समर्पण और बपतिस्मे का कदम उठाना, यीशु की इस आज्ञा का पालन करना है जो उसने अपने चेलों को दी थी: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती 28:19, 20) इस्राएलियों के समर्पण करने से पहले, मूसा ने उन्हें “वाचा की पुस्तक” पढ़कर सुनायी थी। (निर्गमन 24:3, 7, 8) इसलिए वे अच्छी तरह जानते थे कि खुद को, यहोवा को समर्पित करने से उन पर क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ आएँगी। उसी तरह, आज बपतिस्मा लेने से पहले एक इंसान को परमेश्‍वर की मरज़ी के बारे में बाइबल से सही जानकारी लेने की ज़रूरत है।

4. बपतिस्मे के काबिल बनने के लिए एक इंसान को क्या करने की ज़रूरत है? (ऊपर दिया बक्स भी शामिल कीजिए।)

4 यीशु ने अपने शिष्यों को न सिर्फ चेला बनाने की हिदायत दी, बल्कि यह भी कहा कि उनको ‘वे सब बातें मानना सिखाएँ, जिनकी उसने आज्ञा दी है।’ इससे साफ है, यीशु चाहता था कि उसके चेले सबसे पहले विश्‍वास की एक मज़बूत बुनियाद डालें, उसके बाद बपतिस्मा लें। (मत्ती 7:24, 25; इफिसियों 3:17-19) इसलिए बपतिस्मे के काबिल बनने से पहले, ज़्यादातर लोग कई महीनों तक या फिर एक-दो साल तक बाइबल का अध्ययन करते हैं। यह दिखाता है कि उन्होंने जल्दबाज़ी में या आधी-अधूरी जानकारी लेकर बपतिस्मा नहीं लिया है। इसके अलावा, बपतिस्मे के वक्‍त उनसे दो बुनियादी सवाल पूछे जाते हैं जिनका वे ‘हाँ’ में जवाब देते हैं। यीशु ने ज़ोर देकर कहा था कि ‘हमारी बात हां की हां और की न’ होनी चाहिए, इसलिए हम सबके लिए यह जानना ज़रूरी है कि बपतिस्मा लेनेवालों से पूछे जानेवाले दोनों सवालों के क्या मायने हैं। आइए हम इन सवालों की बारीकी से जाँच करें।—मत्ती 5:37.

पश्‍चाताप और समर्पण

5. बपतिस्मे के लिए हाज़िर व्यक्‍ति से जो पहला सवाल किया जाता है, उसमें किन दो ज़रूरी कदमों पर ज़ोर दिया गया है?

5 बपतिस्मे के लिए हाज़िर व्यक्‍ति से पहले यह सवाल पूछा जाता है: क्या आपने अपने पापों का पश्‍चाताप किया है और यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए अपनी ज़िंदगी उसे समर्पित की है? यह सवाल दिखाता है कि बपतिस्मे से पहले एक इंसान को दो ज़रूरी कदम उठाने की ज़रूरत है। वे हैं, पश्‍चाताप और समर्पण।

6, 7. (क) बपतिस्मा लेने की ख्वाहिश रखनेवाले हर किसी को पश्‍चाताप क्यों करना चाहिए? (ख) पश्‍चाताप के बाद, एक इंसान को क्या-क्या बदलाव करने की ज़रूरत है?

6 बपतिस्मा लेने से पहले एक इंसान को पश्‍चाताप क्यों करना चाहिए? प्रेरित पौलुस इसकी वजह बताता है: “हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे।” (इफिसियों 2:3) जी हाँ, परमेश्‍वर की मरज़ी के बारे में सही ज्ञान पाने से पहले, हम इस दुनिया के मुताबिक जीते थे, उसके उसूलों और स्तरों को मानते थे। हमारी ज़िंदगी पर इस संसार के ईश्‍वर शैतान का कब्ज़ा था। (2 कुरिन्थियों 4:4) मगर जब हमने जाना कि परमेश्‍वर की मरज़ी क्या है, तो हमने पक्का इरादा कर लिया कि अब से हम “मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं बरन परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार” जीएँगे।—1 पतरस 4:2.

7 अपनी ज़िंदगी में ऐसा बदलाव करने की वजह से हमने ढेरों आशीषें पायी हैं। सबसे बड़ी आशीष है, यहोवा के साथ अनमोल रिश्‍ता। दाऊद ने कहा कि यहोवा के साथ एक रिश्‍ता कायम करना ऐसा है मानो हमें उसके “तम्बू” में रहने और उसके “पवित्र पर्वत” पर बसने का न्यौता मिला है। (भजन 15:1) सोचिए तो, यह हमारे लिए कितना बड़ा सम्मान है! ज़ाहिर है कि यहोवा परमेश्‍वर यूँ ही हर किसी को यह न्यौता नहीं देता, बल्कि सिर्फ उन्हीं को यह मौका देता है ‘जो खराई से चलते हैं, धर्म के काम करते हैं और अपने हृदय से सच बोलते हैं।’ (भजन 15:2) इन माँगों को पूरा करने के लिए, हम सभी को शायद अपने अंदर कुछ बदलाव करने पड़े, अपने चालचलन में और अपनी शख्सियत में भी। हमें किस हद तक बदलाव करना होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सच्चाई सीखने से पहले हम कैसी ज़िंदगी जीते थे। (1 कुरिन्थियों 6:9-11; कुलुस्सियों 3:5-10) लेकिन क्या चीज़ हमें इस तरह के बदलाव करने के लिए उकसाती है? पश्‍चाताप। यानी हम अपनी बीती ज़िंदगी पर गहरा दुःख महसूस करते हैं और अटल फैसला करते हैं कि आइंदा हम वही करेंगे जो यहोवा को मंज़ूर है। ऐसे पश्‍चाताप का नतीजा यह है कि हमारी ज़िंदगी की पूरी तरह कायापलट हो जाती है। अब से हम पहले की तरह अपने स्वार्थ के लिए और दुनियावी तरीके से जीने के बजाय, ऐसी ज़िंदगी जीते हैं जिससे परमेश्‍वर खुश होता है।—प्रेरितों 3:19.

8. हम कैसे अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करते हैं, और इसका बपतिस्मे के साथ क्या ताल्लुक है?

8 बपतिस्मा लेनेवालों से जो पहला सवाल किया जाता है, उसका अगला भाग कहता है: क्या आपने यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए अपनी ज़िंदगी उसे समर्पित की है? समर्पण एक बेहद ज़रूरी कदम है जो बपतिस्मे से पहले उठाया जाना चाहिए। समर्पण का मतलब है, प्रार्थना में यहोवा को अपने दिल की ख्वाहिश बताना कि यीशु मसीह के ज़रिए हम अपनी पूरी ज़िंदगी यहोवा के हवाले कर रहे हैं। (रोमियों 14:7, 8; 2 कुरिन्थियों 5:15) इसके बाद से यहोवा हमारी ज़िंदगी का मालिक बन जाता है, और हम यीशु की तरह खुशी-खुशी यहोवा की मरज़ी पर चलते हैं। (भजन 40:8; इफिसियों 6:6) यहोवा से समर्पण का वादा करना एक गंभीर मामला है, और यह ज़िंदगी में सिर्फ एक ही बार किया जाता है। हम परमेश्‍वर को यह समर्पण अकेले में करते हैं, लेकिन बपतिस्मे के दिन हम सरेआम इस बात को ज़ाहिर करते हैं कि हमने स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता को अपनी ज़िंदगी समर्पित की है।—रोमियों 10:10.

9, 10. (क) परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में क्या शामिल है? (ख) नात्ज़ी अधिकारियों ने भी कैसे इस बात को माना कि हमने परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित किया है?

9 यीशु के नक्शेकदम पर चलते हुए परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में क्या शामिल है? यीशु ने अपने चेलों को बताया था: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले।” (मत्ती 16:24) इस आयत में यीशु ने साफ-साफ बताया है कि हमें तीन काम करने की ज़रूरत है। पहला, हमें खुद से “इन्कार” करना होगा। दूसरे शब्दों में, अपने स्वार्थ और अपनी पापी इच्छाओं को ठुकराना होगा और यहोवा की सलाह और उसके निर्देशों को मानना होगा। दूसरा, हमें “अपना क्रूस” यानी यातना स्तंभ उठाना होगा। यीशु के ज़माने में यातना स्तंभ को बेइज़्ज़ती और ज़ुल्म सहने की निशानी माना जाता था। यातना स्तंभ उठाने का मतलब है, इस बात को कबूल करना कि मसीही होने के नाते खुशखबरी की खातिर हमें कभी-कभी मुश्‍किलें सहनी पड़ सकती हैं। (2 तीमुथियुस 1:8) लेकिन दुनिया चाहे हमारी खिल्ली उड़ाए या हमारी निंदा करे, मगर हम मसीह की तरह ‘लज्जा की कुछ चिन्ता नहीं करते,’ क्योंकि हम जानते हैं कि ये सारे ज़ुल्म सहकर हम परमेश्‍वर को खुश कर रहे हैं। (इब्रानियों 12:2) तीसरा, हमें यीशु के ‘पीछे हो लेना’ है, यानी लगातार उसके नक्शेकदम पर चलना है।—भजन 73:26; 119:44; 145:2.

10 गौरतलब बात है कि हमारे कुछ दुश्‍मनों ने भी इस बात को माना है कि हम यहोवा के साक्षियों ने सिर्फ परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए खुद को समर्पित किया है। इसकी एक मिसाल लीजिए। जर्मनी के नात्ज़ियों के बुकनवॉल्ड यातना शिविर में कैद साक्षियों ने जब अपने विश्‍वास से मुकरने से इनकार कर दिया, तो उन्हें एक लिखित बयान पर दस्तखत करने को कहा गया। बयान में लिखा था: “मैं अब भी एक समर्पित बाइबल विद्यार्थी हूँ और मैंने यहोवा से जो शपथ खायी है, उसे किसी भी हाल में नहीं तोड़ूँगा।” बेशक, यहोवा के सभी समर्पित और वफादार सेवकों का यही अटल इरादा है!—प्रेरितों 5:32.

यहोवा का एक साक्षी कहलाना

11. बपतिस्मा लेने पर एक इंसान को कौन-सा बड़ा सम्मान मिलता है?

11 बपतिस्मे के लिए हाज़िर व्यक्‍ति से पूछे जानेवाले दूसरे सवाल का एक भाग कहता है: क्या आप इस बात को समझते हैं कि बपतिस्मा लेने के बाद से आप यहोवा के साक्षी कहलाए जाएँगे? बपतिस्मे के बाद, एक इंसान यहोवा का ठहराया हुआ सेवक बन जाता है और उसका नाम धारण करता है। यह एक बड़े सम्मान की बात है, साथ ही एक बड़ी ज़िम्मेदारी भी है। इसके अलावा, बपतिस्मा लेनेवाले को हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा भी मिलती है, बशर्ते वह अंत तक यहोवा का वफादार बना रहे।—मत्ती 24:13.

12. यहोवा का नाम धारण करने का सम्मान पाने के साथ-साथ हम पर क्या ज़िम्मेदारी आती है?

12 इसमें कोई शक नहीं कि सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर, यहोवा का नाम धारण करना अपने आप में एक अनोखा सम्मान है, जो बहुत कम लोगों को मिलता है। भविष्यवक्‍ता मीका ने कहा था: “सब राज्यों के लोग तो अपने अपने देवता का नाम लेकर चलते हैं, परन्तु हम लोग अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।” (मीका 4:5) मगर इस सम्मान के साथ-साथ हम पर एक ज़िम्मेदारी भी आती है। हमें अपनी ज़िंदगी इस तरह से जीने की कोशिश करनी चाहिए जिससे यहोवा का नाम रोशन हो। जैसे पौलुस ने रोम के मसीहियों को याद दिलाया था, एक मसीही दूसरों को जो सिखाता है, उसके मुताबिक अगर खुद काम नहीं करेगा, तो परमेश्‍वर की “निन्दा” हो सकती है यानी उसके नाम पर कलंक लग सकता है।—रोमियों 2:21-24.

13. यहोवा के समर्पित सेवकों पर उसके बारे में गवाही देने की ज़िम्मेदारी क्यों है?

13 जब कोई यहोवा का एक साक्षी बनता है, तो वह अपने परमेश्‍वर के बारे में दूसरों को गवाही देने की ज़िम्मेदारी भी कबूल करता है। प्राचीन समय में यहोवा ने अपनी समर्पित जाति, इस्राएल को यह ज़िम्मेदारी दी थी। उन्हें उसके साक्षी होकर इस बात की गवाही देनी थी कि अनादिकाल से अनंतकाल तक सिर्फ यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है। (यशायाह 43:10-12, 21) मगर उन्होंने यह ज़िम्मेदारी नहीं निभायी, जिसकी वजह से आखिरकार यहोवा ने उनको पूरी तरह ठुकरा दिया। आज, यहोवा के नाम की गवाही देने का सुअवसर हम सच्चे मसीहियों को मिला है, जिसका हमें बड़ा गर्व है। हम यहोवा के नाम की गवाही इसलिए देते हैं, क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं और वह दिन देखने के लिए तरस रहे हैं कि जब उसके नाम से कलंक मिट जाएगा। स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता और उसके मकसद के बारे में जब हम सच्चाई जानते हैं, तो भला हम दूसरों को इसकी गवाही दिए बिना चुप कैसे रह सकते हैं? हमें प्रेरित पौलुस की तरह अपनी ज़िम्मेदारी का पूरा एहसास है, जिसने कहा था: “यह तो मेरे लिये अवश्‍य है; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं, तो मुझ पर हाय।”—1 कुरिन्थियों 9:16.

14, 15. (क) आध्यात्मिक तरक्की करने में यहोवा का संगठन कैसे हमारी मदद करता है? (ख) आध्यात्मिक तौर पर हमारी मदद करने के लिए क्या-क्या इंतज़ाम किए गए हैं?

14 बपतिस्मे के लिए हाज़िर लोगों से पूछा जानेवाला दूसरा सवाल, उनकी एक और ज़िम्मेदारी का उन्हें ध्यान दिलाता है। वह है, यहोवा के संगठन के साथ मिलकर काम करना जो उसकी आत्मा के निर्देशों पर चलता है। हम यहोवा की सेवा अकेले नहीं कर सकते। हमें “भाइयों” की पूरी बिरादरी की मदद, उनके सहारे और उनकी हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत है। (1 पतरस 2:17; 1 कुरिन्थियों 12:12, 13) परमेश्‍वर का संगठन हमारी आध्यात्मिक उन्‍नति में एक अहम भूमिका अदा करता है। यह हमें बाइबल की समझ देनेवाली ढेरों किताबें-पत्रिकाएँ देता है, जिनकी मदद से हमारा सही ज्ञान बढ़ता है, समस्याओं का बुद्धिमानी से सामना कर पाते हैं और परमेश्‍वर के साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता बनाए रखते हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चे के खाने-पीने का पूरा खयाल रखती है और उसकी अच्छी देखभाल करती है, उसी तरह “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” भी हमारे लिए वक्‍त पर, बहुतायत में आध्यात्मिक भोजन देता है ताकि हम आध्यात्मिक मायने में तरक्की करते जाएँ।—मत्ती 24:45-47; 1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 8.

15 यहोवा के लोगों को हर हफ्ते होनेवाली सभाओं में, ज़रूरी तालीम और हौसला दिया जाता है ताकि उन्हें अपनी वफादारी बनाए रखने में मदद मिले। (इब्रानियों 10:24, 25) जैसे, ‘परमेश्‍वर की सेवा स्कूल’ हमें लोगों से बात करना सिखाता है, और ‘सेवा सभा’ में हमें राज्य का संदेश कुशलता से पेश करने की ट्रेनिंग दी जाती है। सभाओं में हाज़िर होने और बाइबल साहित्य का निजी अध्ययन करने से हम देख पाते हैं कि यहोवा की आत्मा किस तरह उसके संगठन को चला रही है। नियमित तौर पर किए जानेवाले इन इंतज़ामों के ज़रिए, परमेश्‍वर हमें खतरों से सावधान करता है, कुशल सेवक बनने की तालीम देता है और आध्यात्मिक मायने में जागते रहने में मदद देता है।—भजन 19:7, 8, 11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:6, 11; 1 तीमुथियुस 4:13.

बपतिस्मा लेने के लिए सही प्रेरणा

16. अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करने के लिए क्या बात हमें प्रेरित करती है?

16 तो जैसा कि हमने देखा, बपतिस्मे के लिए हाज़िर लोगों से पूछे जानेवाले दोनों सवाल इस बात की तरफ उनका ध्यान खींचते हैं कि पानी में बपतिस्मा लेने के क्या मायने हैं और इससे उन पर क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ आती हैं। तो फिर एक इंसान को किस बात से प्रेरित होकर बपतिस्मा लेने का फैसला करना चाहिए? हम बपतिस्मा लेकर यीशु के चेले इसलिए नहीं बनते क्योंकि कोई हमें ऐसा करने के लिए मजबूर करता है, बल्कि इसलिए कि यहोवा हमें अपनी तरफ ‘खींचता’ है। (यूहन्‍ना 6:44) “परमेश्‍वर प्रेम है,” इसलिए वह किसी पर दबाव नहीं डालता कि वे उसकी आज्ञा मानें, बल्कि चाहता है कि वे उससे प्यार होने की वजह से उसकी सेवा करें। (1 यूहन्‍ना 4:8) जब हम यहोवा के मनभावने गुणों के बारे में सीखते हैं और खुद अनुभव करते हैं कि वह किस तरह से हमारे साथ पेश आता है, तो हम खुद उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। यहोवा ने हमारी खातिर अपने एकलौते बेटे को कुरबान कर दिया है और हमें भविष्य में एक खुशहाल ज़िंदगी देने का वादा किया है। (यूहन्‍ना 3:16) यह सब हमारे मन को प्रेरित करता है कि हम अपनी ज़िंदगी यहोवा के हवाले कर दें, यानी उसे समर्पित कर दें।—नीतिवचन 3:9; 2 कुरिन्थियों 5:14, 15.

17. हमने अपनी ज़िंदगी किस चीज़ के लिए समर्पित नहीं की है?

17 हम अपनी ज़िंदगी किसी काम या मकसद को पूरा करने के लिए नहीं, बल्कि यहोवा को समर्पित करते हैं। परमेश्‍वर अपने लोगों को जो काम सौंपता है, वह समय के साथ-साथ बदलता रहता है, मगर उनका समर्पण कभी नहीं बदलता। मिसाल के लिए, इब्राहीम को जो काम दिया गया था, वह यिर्मयाह को दिए काम से एकदम अलग था। (उत्पत्ति 13:17, 18; यिर्मयाह 1:6, 7) मगर उन दोनों ने यहोवा का दिया काम पूरा किया, क्योंकि वे उससे प्यार करते थे और वफादारी से उसकी मरज़ी पूरी करना चाहते थे। आज अंत के इस समय में, मसीह के सभी बपतिस्मा-शुदा चेले उसकी आज्ञा के मुताबिक राज्य की खुशखबरी सुनाते और चेला बनाने का काम करते हैं। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) प्रचार का यह काम तन-मन से करना दिखाता है कि हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से प्यार करते हैं और हमारी ज़िंदगी सचमुच उसे समर्पित है।—1 यूहन्‍ना 5:3.

18, 19. (क) बपतिस्मा लेकर हम क्या ऐलान करते हैं? (ख) अगले लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

18 इसमें दो राय नहीं कि बपतिस्मा हमारे लिए आशीषों के झरोखे खोल देता है, मगर हमें यह कदम बहुत सोच-समझकर उठाना चाहिए। (लूका 14:26-33) बपतिस्मा इतना गंभीर फैसला है कि अपनी बाकी सभी ज़िम्मेदारियों से ज़्यादा हमें उसी को अहमियत देनी चाहिए। (लूका 9:62) जब हम बपतिस्मा लेते हैं, तो असल में हम सबके सामने यह ऐलान करते हैं कि “यह परमेश्‍वर सदा सर्वदा हमारा परमेश्‍वर है, वह मृत्यु तक हमारी अगुवाई करेगा।”—भजन 48:14.

19 पानी में बपतिस्मा लेने से जुड़े और भी कुछ सवाल हैं, जिन पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी। बपतिस्मा लेने से कतराने के लिए क्या एक इंसान के पास कुछ वाजिब कारण हो सकते हैं? क्या बपतिस्मा लेने की कोई उम्र होती है? बपतिस्मे के मौके पर, हम सभी किस तरह गरिमा बनाए रख सकते हैं?

क्या आप समझा सकते हैं?

• हर मसीही को बपतिस्मा लेने से पहले पश्‍चाताप करने की ज़रूरत क्यों है?

• परमेश्‍वर को अपना समर्पण करने में क्या-क्या शामिल है?

• यहोवा का नाम धारण करने के सम्मान के साथ, हम पर क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ आती हैं?

• बपतिस्मा लेने का फैसला करने के लिए हमें किस बात से प्रेरित होना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 22 पर बक्स/तसवीर]

बपतिस्मा लेनेवालों से पूछे जानेवाले दो सवाल

यीशु मसीह के बलिदान पर विश्‍वास करते हुए, क्या आपने अपने पापों का पश्‍चाताप किया है और यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए अपनी ज़िंदगी उसे समर्पित की है?

क्या आप इस बात को समझते हैं कि समर्पण करने और बपतिस्मा लेने से, आप यहोवा की पवित्र आत्मा के निर्देश पर चलनेवाले उसके संगठन का भाग बन जाएँगे और यहोवा के एक साक्षी कहलाए जाएँगे?

[पेज 23 पर तसवीर]

समर्पण, प्रार्थना में यहोवा से किया एक गंभीर वादा है

[पेज 25 पर तसवीर]

प्रचार काम में हिस्सा लेकर हम दिखाते हैं कि हमने अपना जीवन परमेश्‍वर को समर्पित किया है