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मसीही बपतिस्मा पाने की माँगें पूरी करना

मसीही बपतिस्मा पाने की माँगें पूरी करना

मसीही बपतिस्मा पाने की माँगें पूरी करना

“अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है”?—प्रेरितों 8:36.

1, 2. फिलिप्पुस ने एक कूशी अधिकारी के साथ बातचीत कैसे शुरू की, और क्या दिखाता है कि वह आदमी आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाला था?

 यीशु की मौत के करीब एक-दो साल बाद, कूश देश का एक बड़ा अधिकारी यहोवा की उपासना करने के लिए यरूशलेम आया था। उसने रथ पर सवार होकर, तकरीबन 1,500 किलोमीटर का यह लंबा और थकाऊ सफर इसलिए तय किया क्योंकि यहोवा के लिए उसे गहरी श्रद्धा थी। और अब उपासना के बाद वह यरूशलेम के दक्षिण में, अज्जाह जानेवाले रास्ते से अपने देश लौट रहा था। क्योंकि सफर लंबा था, इसलिए वह अपने वक्‍त का सही इस्तेमाल करते हुए परमेश्‍वर का वचन पढ़ने लगा। यह भी उसके विश्‍वास का एक बढ़िया सबूत था। यहोवा ने इस नेकदिल इंसान पर गौर किया और अपने एक स्वर्गदूत को भेजकर शिष्य फिलिप्पुस से कहा कि वह जाकर उसे प्रचार करे।—प्रेरितों 8:26-28.

2 फिलिप्पुस के लिए उस अधिकारी के साथ बातचीत शुरू करना बहुत आसान था, क्योंकि वह अपने ज़माने के रिवाज़ के मुताबिक ज़ोर-ज़ोर से शास्त्र पढ़ रहा था। फिलिप्पुस ने सुन लिया कि वह यशायाह का चर्मपत्र पढ़ रहा है। तभी उसने एक आसान-सा सवाल पूछा जिससे उस अधिकारी की दिलचस्पी जाग उठी। उसने कहा: “तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?” इससे उन दोनों के बीच यशायाह 53:7, 8 को लेकर चर्चा शुरू हो गयी। इन आयतों पर चर्चा होने के बाद, फिलिप्पुस ने “उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया।”—प्रेरितों 8:29-35.

3, 4. (क) फिलिप्पुस ने कूशी अधिकारी को फौरन बपतिस्मा क्यों दिया? (ख) अब हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

3 कुछ ही समय के अंदर, वह कूशी अधिकारी समझ गया कि परमेश्‍वर के मकसद के पूरा होने में यीशु कितनी अहम भूमिका अदा करता है। उसने यह भी जाना कि उसे बपतिस्मा लेकर मसीह का एक चेला बनने की ज़रूरत है। इसलिए रास्ते में जब उस आदमी ने एक जगह पर काफी पानी देखा तो उसने फिलिप्पुस से पूछा: “अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है”? गौर कीजिए कि कूशी अधिकारी के हालात अलग थे। उसे परमेश्‍वर पर गहरी आस्था थी और वह पहले से यहूदी धर्म अपनाकर यहोवा की उपासना कर रहा था। इतना ही नहीं, अगर वह उस वक्‍त बपतिस्मा नहीं लेता तो उसे एक और मौके के लिए ज़्यादा समय तक इंतज़ार करना पड़ता। और सबसे अहम बात तो यह है कि वह समझ गया था कि परमेश्‍वर उससे क्या चाहता है। इसलिए वह फौरन और बिना किसी शर्त के परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना चाहता था। यही वजह है कि फिलिप्पुस ने खुशी-खुशी उस अधिकारी की गुज़ारिश पूरी की और उसे बपतिस्मा दिया। इसके बाद, वह अधिकारी “आनन्द करता हुआ अपने मार्ग चला गया।” अपने वतन लौटने के बाद, उसने पूरे जोश के साथ वहाँ खुशखबरी का प्रचार किया होगा।—प्रेरितों 8:36-39.

4 यह सच है कि समर्पण और बपतिस्मे का फैसला जल्दबाज़ी में या बिना सोचे-समझे नहीं लेना चाहिए। फिर भी, उस कूशी अधिकारी का किस्सा दिखाता है कि ऐसे भी कुछ लोग थे जिन्होंने परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई सुनने के फौरन बाद बपतिस्मा लिया था। * इसलिए अच्छा होगा कि हम आगे दिए इन सवालों पर गौर फरमाएँ: बपतिस्मा पाने के लिए एक इंसान को कैसी तैयारी करनी चाहिए? किन मामलों में बपतिस्मा पानेवाले की उम्र पर ध्यान देने की ज़रूरत है? बपतिस्मे से पहले उसे किस हद तक आध्यात्मिक तरक्की करनी चाहिए? और सबसे ज़रूरी सवाल, यहोवा क्यों चाहता है कि उसके सेवक बपतिस्मा लें?

एक गंभीर वादा

5, 6. (क) प्राचीन समय में, यहोवा के लोगों ने उसके प्यार के लिए कैसे कदर दिखायी? (ख) बपतिस्मा लेने पर हम यहोवा के साथ किस तरह के नज़दीकी रिश्‍ते का आनंद लेते हैं?

5 यहोवा ने इस्राएलियों को मिस्र से छुड़ाने के बाद, उनसे कहा कि वह उन्हें “निज सम्पत्ति” (NHT) के तौर पर अपनाकर उनसे प्यार करेगा, उन्हें महफूज़ रखेगा, और उन्हें एक “पवित्र जाति” ठहराएगा। मगर इन आशीषों को पाने के लिए ज़रूरी था कि इस्राएली यहोवा के प्यार की कदर करें और कुछ ठोस कदम उठाएँ। इस्राएलियों ने ऐसा ही किया। उन्होंने शपथ खायी कि “जो कुछ यहोवा ने कहा है,” वह सब हम करेंगे। इस तरह उन्होंने यहोवा के साथ एक वाचा बाँधी। (निर्गमन 19:4-9) पहली सदी में, यीशु ने अपने शिष्यों को आज्ञा दी थी कि वे सब जातियों के लोगों को चेला बनाएँ। जिन्होंने मसीह की शिक्षाओं को कबूल किया, उन्हें बपतिस्मा दिया गया था। यीशु मसीह पर विश्‍वास दिखाने और उसके बाद बपतिस्मा लेने से ही एक इंसान के लिए परमेश्‍वर के साथ अच्छा रिश्‍ता कायम करना मुमकिन होता।—मत्ती 28:19, 20; प्रेरितों 2:38, 41.

6 बाइबल में दर्ज़ इन वाकयों से पता चलता है कि यहोवा उन लोगों को आशीष देता है जो उसकी सेवा करने का वादा करते हैं और इसे हर हाल में पूरा करते हैं। समर्पण और बपतिस्मा, मसीहियों के लिए निहायत ज़रूरी कदम हैं जिससे उन्हें यहोवा की आशीष मिलती है। ये दोनों कदम उठाकर हम यह अटल फैसला करते हैं कि हम यहोवा के ही स्तरों को मानेंगे और उसके मार्गदर्शन पर चलेंगे। (भजन 48:14) बदले में, यहोवा मानो हमारा हाथ पकड़कर हमें सही राह पर ले चलता है।—भजन 73:23; यशायाह 30:21; 41:10, 13.

7. समर्पण और बपतिस्मे का फैसला, हमारा अपना फैसला क्यों होना चाहिए?

7 ये दोनों कदम उठाने के लिए एक इंसान को किस बात से प्रेरित होना चाहिए? यहोवा के लिए प्यार और उसकी सेवा करने की चाहत। किसी को भी बपतिस्मा इसलिए नहीं लेना चाहिए क्योंकि दूसरे कहते हैं कि उसे बाइबल का अध्ययन किए काफी समय हो गया है। ना ही इस वजह से कि उसके दोस्त बपतिस्मा ले रहे हैं। एक व्यक्‍ति के माँ-बाप या दूसरे प्रौढ़ मसीही शायद उसे समर्पण और बपतिस्मा के बारे में गहराई से सोचने का बढ़ावा दें, जो कि लाज़िमी है। पिन्तेकुस्त के दिन, प्रेरित पतरस ने भी अपने सुननेवालों को “बपतिस्मा ले[ने]” के लिए उकसाया था। (प्रेरितों 2:38) फिर भी याद रखिए कि समर्पण, परमेश्‍वर और हमारे बीच का ज़ाती मामला है, इसलिए कोई और हमारी तरफ से यह कदम नहीं उठा सकता। परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने का फैसला, हमारा अपना फैसला होना चाहिए।—भजन 40:8.

बपतिस्मे के लिए काफी पहले से तैयारी

8, 9. (क) बाइबल के मुताबिक, नन्हे-मुन्‍नों को बपतिस्मा देना क्यों गलत है? (ख) बपतिस्मा लेने से पहले, एक जवान को कैसी आध्यात्मिक तरक्की करने की ज़रूरत है?

8 क्या बच्चे, अपनी ज़िंदगी परमेश्‍वर को समर्पित करने के लिए सयानों की तरह सोच-समझकर फैसला कर सकते हैं? माना कि बाइबल, बपतिस्मे के लिए कोई उम्र तय नहीं करती। फिर भी एक बात पक्की है कि नन्हे-मुन्‍नों को बपतिस्मा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वे न तो विश्‍वास की बिना पर सही फैसले कर सकते हैं और ना ही परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित करने के काबिल होते हैं। (प्रेरितों 8:12) इतिहासकार, ऑगॉस्टॉस नेआनडर ने अपनी किताब, मसीही धर्म और चर्च का आम इतिहास (अँग्रेज़ी) में पहली सदी के मसीहियों के बारे में यह लिख: “शुरू में बपतिस्मा सिर्फ बालिग लोगों को दिया जाता था, क्योंकि सिर्फ वे ही इस बात को समझ सकते थे कि बपतिस्मा लेने और विश्‍वास ज़ाहिर करने के बीच गहरा ताल्लुक है।”

9 लेकिन जवान बच्चों के बारे में क्या? कुछ तो छोटी उम्र में ही परमेश्‍वर और उसके मकसद से जुड़ी बातें समझ लेते हैं और परमेश्‍वर जो चाहता है, उसे करने की इच्छा उनमें पैदा होती है। जबकि कुछ बच्चों को इसमें वक्‍त लगता है। मगर एक जवान को भी बपतिस्मे के काबिल बनने के लिए, उन्हीं माँगों को पूरा करने की ज़रूरत है जो बालिगों पर लागू होती हैं। यानी उसे चाहिए कि वह यहोवा के साथ एक निजी रिश्‍ता कायम करे, बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं की सही समझ हासिल करे और ठीक-ठीक जाने कि परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित करने से उस पर कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ आएँगी।

10. समर्पण और बपतिस्मे से पहले, एक इंसान को क्या-क्या कदम उठाने चाहिए?

10 यीशु ने अपने चेलों को बताया था कि वे नए लोगों को वे सारी बातें सिखाएँ जिनकी उसने आज्ञा दी थी। (मत्ती 28:20) तो नए लोगों को सबसे पहले बाइबल की सच्चाई का सही ज्ञान लेने की ज़रूरत है। तब उस ज्ञान की बिना पर वे यहोवा और उसके वचन, बाइबल पर विश्‍वास पैदा कर सकेंगे। (रोमियों 10:17; 1 तीमुथियुस 2:4; इब्रानियों 11:6) फिर जब बाइबल की सच्चाई उनके दिल पर असर करेगी, तो उनका दिल उन्हें पश्‍चाताप करने और अपने पुराने तौर-तरीकों को छोड़ने के लिए उभारेगा। (प्रेरितों 3:19) आखिरकार, वे आध्यात्मिक तरक्की के उस मुकाम पर पहुँचेंगे जब वे अपना जीवन यहोवा को समर्पित करने और यीशु का हुक्म मानते हुए बपतिस्मा लेने के लिए आगे बढ़ेंगे।

11. बपतिस्मे से पहले ही प्रचार काम में लगातार हिस्सा लेने की आदत डालना क्यों ज़रूरी है?

11 बपतिस्मे के काबिल बनने के लिए आध्यात्मिक तरक्की करने में एक और अहम कदम है, राज्य का सुसमाचार प्रचार करने में हिस्सा लेना। प्रचार का काम इन अंतिम दिनों में सबसे ज़रूरी काम है, जो यहोवा ने अपने लोगों को सौंपा है। (मत्ती 24:14) इसलिए बपतिस्मे की तरफ आगे बढ़नेवाले प्रचारक खुश हो सकते हैं कि उन्हें दूसरों को अपने विश्‍वास के बारे में बताने का सुअवसर मिला है। इसके अलावा, अगर वे इस काम में लगातार हिस्सा लेने की आदत डालें, तो बपतिस्मे के बाद भी वे नियमित तौर पर और पूरे जोश के साथ प्रचार कर पाएँगे।—रोमियों 10:9, 10, 14, 15.

क्या बपतिस्मा लेने से कोई बात आपको रोक रही है?

12. कुछ लोग बपतिस्मा लेने से क्यों कतराते हैं?

12 कुछ लोग बपतिस्मा लेने से शायद इसलिए कतराएँ, क्योंकि वे इसके साथ आनेवाली ज़िम्मेदारियों को कबूल करने से झिझकते हैं। वे जानते हैं कि अगर उन्हें यहोवा के स्तरों पर चलना है तो ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव करने पड़ेंगे। या उन्हें शायद डर हो कि बपतिस्मे के बाद क्या वे परमेश्‍वर की माँगों के मुताबिक चल पाएँगे या नहीं। कुछ तो शायद यह भी सोचें, “क्या पता, बपतिस्मे के बाद मैं कोई गलत काम कर बैठूँ, और मुझे कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया जाए।”

13. यीशु के दिनों में, कुछ लोग उसका चेला बनने से क्यों पीछे हटे?

13 यीशु के दिनों में कुछ लोग अपने सुख-चैन को पहली जगह देने, या यीशु से ज़्यादा पारिवारिक रिश्‍तों से लगाव होने की वजह से उसके चेले नहीं बनें। मिसाल के लिए, एक शास्त्री ने यीशु से कहा कि आप जहाँ-जहाँ जाएँगे, मैं भी आपके साथ आऊँगा। लेकिन जब यीशु ने उसे बताया कि उसे कभी-कभी सिर छिपाने की जगह तक नहीं मिलती है, तो वह उसका चेला बनने से पीछे हट गया क्योंकि उसे मुश्‍किलों-भरी ज़िंदगी जीना मंज़ूर नहीं था। जब यीशु ने उसका उपदेश सुननेवाले एक और आदमी से कहा कि वह उसके पीछे हो ले, तो उसने कहा कि उसे पहले अपने पिता को ‘गाड़ने’ की ज़िम्मेदारी पूरी करनी है। शायद यह आदमी यीशु का चेला बनने के लिए तब तक इंतज़ार करना चाहता था जब तक कि उसके पिता की मौत न होती और वह उसे दफनाने का फर्ज़ पूरा न कर देता। लेकिन अगर वह चाहता तो फौरन यीशु का चेला बन सकता था और समय आने पर अपना फर्ज़ पूरा कर सकता था। आखिर में, एक तीसरे आदमी ने यीशु से कहा कि उसका चेला बनने से पहले वह अपने घरवालों से “विदा” लेना चाहता है। यीशु ने कहा कि इस तरह टाल-मटोल करना ‘पीछे देखने’ के बराबर है। ये तीनों मामले दिखाते हैं कि जो लोग मसीही बनने की ज़िम्मेदारी से दूर भागना चाहते हैं, उनके पास कोई-न-कोई बहाना ज़रूर रहता है।—लूका 9:57-62.

14. (क) जब यीशु ने पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्‍ना को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनने का न्यौता दिया, तो उन्होंने क्या किया? (ख) यीशु का जूआ या ज़िम्मेदारी उठाने से हमें क्यों नहीं झिझकना चाहिए?

14 मगर पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्‍ना, उन आना-कानी करनेवालों से कितने अलग थे। बाइबल बताती है कि जब यीशु ने उनसे कहा कि वे उसके पीछे हो लें और मनुष्यों के पकड़नेवाले बनें, तो “वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” (मत्ती 4:19-22) इस तरह बेझिझक फैसला करने की वजह से उन्होंने अपनी ज़िंदगी में यीशु की इस बात की सच्चाई को अनुभव किया जो उसने बाद में उनसे कही थी: “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” (मत्ती 11:29, 30) तो यीशु हमें यकीन दिलाता है कि बपतिस्मा लेने से भले ही हम पर एक जूआ या मसीही ज़िम्मेदारी आती है, मगर इस ज़िम्मेदारी को निभाना सहज है और यह हमारे मन को विश्राम या गहरा सुकून देती है।

15. मूसा और यिर्मयाह की मिसालें कैसे दिखाती हैं कि हम यहोवा से मदद पाने का यकीन रख सकते हैं?

15 बपतिस्मा लेने पर आनेवाली ज़िम्मेदारी को निभाने में नाकाबिल महसूस करना स्वाभाविक है। मूसा और यिर्मयाह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। यहोवा ने जब उन्हें ज़िम्मेदारी सौंपी, तो शुरू में उन्हें लगा कि वे इसके काबिल नहीं हैं। (निर्गमन 3:11; यिर्मयाह 1:6) तब यहोवा ने कैसे उनकी हिम्मत बँधायी? उसने मूसा से कहा: ‘मैं निश्‍चय तेरे संग रहूंगा।’ और यिर्मयाह से उसने वादा किया: “तुझे छुड़ाने के लिये मैं तेरे साथ हूं।” (निर्गमन 3:12; यिर्मयाह 1:8) उसी तरह, हम भी यहोवा से मदद पाने का भरोसा रख सकते हैं। अगर हमें इस बात का डर सताता है कि हम अपने समर्पण के मुताबिक जी पाएँगे या नहीं, तो परमेश्‍वर के लिए प्यार और उस पर भरोसा हमें ऐसी भावनाओं पर काबू पाने में मदद देगा। प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा था: “प्रेम में भय नहीं होता, बरन सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है।” (1 यूहन्‍ना 4:18) अगर एक छोटे लड़के को अकेले कहीं जाना है तो शायद उसे डर लगेगा, लेकिन अगर उसका पिता उसके साथ है, तो उसका हाथ पकड़कर वह बेखौफ चल सकेगा। उसी तरह, अगर हम संपूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखकर उसके साथ-साथ चलें, तो ‘वह हमारे लिये सीधा मार्ग निकालेगा,’ ठीक जैसे उसने वादा किया है।—नीतिवचन 3:5, 6.

ऐसा अवसर जब गरिमा बनाए रखने की ज़रूरत है

16. बपतिस्मा देने के लिए, पानी में पूरी तरह डुबकी क्यों दी जाती है?

16 आम तौर पर बपतिस्मे से पहले, बाइबल पर आधारित एक भाषण दिया जाता है, जिसमें समझाया जाता है कि मसीही बपतिस्मे के क्या मायने हैं। फिर भाषण के आखिर में, बपतिस्मे के लिए तैयार लोगों से दो सवाल पूछे जाते हैं। वे इन सवालों का जवाब हाँ में देकर अपने विश्‍वास का सरेआम ऐलान करते हैं। (रोमियों 10:10; पेज 22 पर दिया बक्स देखिए।) इसके बाद, यीशु की तरह उन्हें पानी में पूरी तरह डुबकी देकर बपतिस्मा दिया जाता है। बाइबल दिखाती है कि यीशु अपने बपतिस्मे के बाद, “पानी में से ऊपर आया” या “पानी से निकलकर ऊपर आया” था। (मत्ती 3:16; मरकुस 1:10) इससे साफ है कि यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने यीशु को पूरी तरह पानी में डुबकी दी थी। * हमें पानी में पूरी तरह डुबोना इस बात की सही निशानी है कि हमने ज़िंदगी में बहुत बड़ा बदलाव किया है—एक तरह से हम मरकर दोबारा ज़िंदा हुए हैं, यानी अपनी बीती ज़िंदगी को खत्म करके, हमने यहोवा की सेवा में नए सिरे से ज़िंदगी शुरू की है।

17. बपतिस्मा लेनेवाले और दूसरे लोग, इस मौके की गरिमा कैसे बनाए रख सकते हैं?

17 बपतिस्मा एक खुशी का मौका भी है और गंभीर अवसर भी। बाइबल बताती है कि यरदन नदी में यूहन्‍ना से बपतिस्मा लेते वक्‍त यीशु प्रार्थना कर रहा था। (लूका 3:21, 22) यीशु के इस नमूने पर चलते हुए, आज बपतिस्मा लेनेवालों को भी इस मौके पर गरिमा से पेश आना चाहिए। साथ ही अपने पहनावे पर भी ध्यान देना चाहिए। जब बाइबल हमें रोज़मर्रा जीवन में सलीकेदार कपड़े पहनने की सलाह देती है, तो सोचिए कि अपने बपतिस्मे के वक्‍त हमें इस बात पर और कितना ध्यान देना चाहिए! (1 तीमुथियुस 2:9) और जो लोग बपतिस्मा देखने के लिए जाते हैं, उन्हें भी आदर से पेश आने की ज़रूरत है। कैसे? बपतिस्मे के भाषण को ध्यान से सुनने और बपतिस्मे के मौके पर कायदा बनाए रखने के ज़रिए।—1 कुरिन्थियों 14:40.

बपतिस्मा-शुदा चेलों को मिलनेवाली आशीषें

18, 19. बपतिस्मा लेने पर हमें कैसी बेजोड़ आशीषें मिलती हैं?

18 जब हम अपना जीवन परमेश्‍वर को समर्पित करते हैं और बपतिस्मा लेते हैं, तो हम एक बहुत ही खास परिवार का हिस्सा बन जाते हैं। सबसे पहले तो, यहोवा परमेश्‍वर हमारा पिता और मित्र बन जाता है। बपतिस्मे से पहले परमेश्‍वर के साथ हमारा कोई रिश्‍ता नहीं होता, मगर अब उसके साथ हमारा रिश्‍ता जुड़ जाता है। (2 कुरिन्थियों 5:19; कुलुस्सियों 1:20) मसीह के बलिदान की बिना पर, हम परमेश्‍वर के करीब आते हैं और वह भी हमारे करीब आता है। (याकूब 4:8) भविष्यवक्‍ता मलाकी समझाता है कि जो लोग परमेश्‍वर का नाम इस्तेमाल करते और धारण करते हैं, उन पर यहोवा खास ध्यान देता है, उनकी प्रार्थनाएँ सुनता है, और उनके नाम अपनी यादगार की किताब में दर्ज़ करता है। परमेश्‍वर ने कहा है: “वे लोग मेरे वरन मेरे निज भाग ठहरेंगे, और मैं उन से ऐसी कोमलता करूंगा जैसी कोई अपने सेवा करनेवाले पुत्र से करे।”—मलाकी 3:16-18.

19 बपतिस्मा लेने पर, हम भाइयों की बिरादरी का भी हिस्सा बन जाते हैं जो सारी दुनिया में फैली है। जब प्रेरित पतरस ने यीशु से पूछा कि उसके चेलों ने जो-जो त्याग किए हैं उनके बदले उन्हें क्या आशीषें मिलेंगी, तब यीशु ने वादा किया: “जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहिनों या पिता या माता या लड़केबालों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उस को सौ गुना मिलेगा: और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।” (मत्ती 19:29) इसके कई साल बाद, उसी पतरस ने अपने खत में “भाइयों” की एक बिरादरी का ज़िक्र किया जो पूरे “संसार में” फैल गयी थी। पतरस ने खुद इस बिरादरी से मिलनेवाली मदद और आशीषों का अनुभव किया था, और आज हम भी यही अनुभव कर सकते हैं।—1 पतरस 2:17; 5:9.

20. बपतिस्मा हमें कैसी शानदार आशा देता है?

20 इसके अलावा, यीशु ने कहा था कि जो लोग उसके चेले बनेंगे, वे ‘अनन्त जीवन के अधिकारी होंगे।’ जी हाँ, समर्पण और बपतिस्मा से हमें “सत्य जीवन को वश में कर” लेने की आशा मिलती है, यानी परमेश्‍वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा। (1 तीमुथियुस 6:19) वाकई, हमारे परिवार के और खुद के भविष्य के लिए इससे बढ़िया नींव और क्या हो सकती है? जब हमारी यह शानदार आशा पूरी होगी तब हम “अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते” रहेंगे।—मीका 4:5.

[फुटनोट]

^ पिन्तेकुस्त के दिन, तीन हज़ार यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवाले परदेशियों ने भी पतरस का भाषण सुनने के बाद फौरन बपतिस्मा लिया था। कूशी खोजे की तरह, वे भी परमेश्‍वर के वचन की बुनियादी शिक्षाओं और सिद्धांतों के बारे में पहले से जानते थे।—प्रेरितों 2:37-41.

^ वाइन्स्‌ एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेंट वर्ड्‌स्‌ के मुताबिक, यूनानी शब्द बापतिस्मा का मतलब है, “गोता लगाना, पूरी तरह पानी के अंदर जाना और फिर बाहर आना।”

क्या आप समझा सकते हैं?

• हमें यहोवा के प्यार की कैसे और क्यों कदर करनी चाहिए?

• बपतिस्मे से पहले, एक इंसान को किस हद तक आध्यात्मिक तरक्की करने की ज़रूरत है?

• हमें क्यों नाकाम होने या ज़िम्मेदारी कबूल करने के डर से बपतिस्मा लेने से पीछे नहीं हटना चाहिए?

• यीशु मसीह के बपतिस्मा-शुदा चेले कैसी आशीषों का आनंद उठा सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 26 पर तसवीर]

“अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है”?

[पेज 29 पर तसवीरें]

बपतिस्मा एक खुशी का मौका भी है और एक गंभीर अवसर भी