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हमने यहोवा की सेवा करने की ठान ली

हमने यहोवा की सेवा करने की ठान ली

जीवन कहानी

हमने यहोवा की सेवा करने की ठान ली

राइमो क्वोकानेन की ज़ुबानी

सन्‌ 1939 में पूरे यूरोप में दूसरा विश्‍वयुद्ध छिड़ गया और सोवियत संघ ने हमारे देश, फिनलैंड पर धावा बोला। उस वक्‍त, मेरे पिताजी सेना में भर्ती हो गए। कुछ समय बाद, रूस के लड़ाकू विमानों ने हमारे शहर पर बमबारी शुरू कर दी। तब माँ ने मुझे नानी के घर भेज दिया ताकि मैं वहाँ महफूज़ रहूँ।

सन्‌ 1971 के दौरान, मैं पूर्वी अफ्रीका के युगाण्डा देश में एक मिशनरी था। एक दिन जब मैं घर-घर प्रचार में था तो मैंने बहुत-से लोगों को अपने सामने से भागते हुए देखा। फिर जैसे ही मैंने गोलियाँ चलने की आवाज़ सुनी तो मैं भी वहाँ से उलटे पैर अपने घर की तरफ भागा। जब गोलियों की आवाज़ और भी पास आती सुनायी पड़ी तो मैं रास्ते के पास, एक बड़े नाले में कूद गया। अंधाधुंध गोलीबारी के बीच, मैं नाले में घुटनों के बल चलते हुए जैसे-तैसे अपने घर पहुँचा।

दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, हमें मजबूरन खतरनाक हालात का सामना करना पड़ा था। लेकिन जब पूर्वी अफ्रीका में लड़ाई हो रही थी तब मेरे और मेरी पत्नी के सामने वहाँ से भाग निकलने का मौका था, फिर भी हमने वहीं रहने का खतरा मोल लिया। आप शायद सोचें हमने ऐसा क्यों किया। क्योंकि हमने ठान लिया था कि हम यहोवा की सेवा करेंगे।

परमेश्‍वर की सेवा करने का बढ़ावा

मेरा जन्म सन्‌ 1934 में फिनलैंड के शहर, हेलसिंकी में हुआ था। मेरे पिताजी एक रंगसाज़ थे। एक दिन उन्हें यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर की रंगाई का काम मिला। जब वे वहाँ गए तो साक्षियों ने उन्हें अपनी कलीसिया की सभाओं के बारे में बताया। घर लौटने पर पिताजी ने माँ से उन सभाओं का ज़िक्र किया। हालाँकि माँ ने पिताजी की बात सुनकर एकदम सभाओं में जाना शुरू नहीं किया, मगर कुछ वक्‍त बाद वह अपनी नौकरी की जगह पर एक साक्षी स्त्री से बाइबल पर चर्चा करने लगी। देखते-ही-देखते, माँ बाइबल से सीखी बातों को लागू करने लगी। फिर सन्‌ 1940 में वह बपतिस्मा लेकर यहोवा की एक साक्षी बन गयी।

इसी दौरान, मैं अपनी नानी के घर पर रह रहा था जो शहर से काफी दूर था। इसलिए हेलसिंकी से माँ ने यहोवा के साक्षियों के विश्‍वासों के बारे में नानी और मौसी को चिट्ठियाँ लिखना शुरू किया। वे दोनों दिलचस्पी दिखाने लगीं और जो कुछ सीखती, मुझे बताती थीं। यहोवा के साक्षियों के सफरी सेवक, नानी के घर पर हमसे मिलने आया करते और हमारी हौसला-अफज़ाई करते थे। मगर उस वक्‍त तक मैंने परमेश्‍वर की सेवा करने का कोई फैसला नहीं किया था।

यहोवा की सेवा करने की तालीम शुरू

सन्‌ 1945 में दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद, मैं वापस हेलसिंकी में अपने घर लौट आया। माँ मुझे अपने साथ यहोवा के साक्षियों की सभाओं में ले जाने लगी। मगर कभी-कभी सभाओं में जाने के बजाय, मैं फिल्म देखने चला जाता था। जब भी मैं ऐसा करता, तो माँ बाद में सभाओं में सुनी बातें मुझे बताती और हमेशा इसी बात पर ज़ोर देती थी: हरमगिदोन बहुत करीब है। धीरे-धीरे मुझे यकीन हो चला कि वाकई हरमगिदोन दूर नहीं। फिर मैं बिना नागा सभाओं में हाज़िर होने लगा। जैसे-जैसे बाइबल की सच्चाई के बारे में मेरी समझ बढ़ती गयी, कलीसिया के कामों में हिस्सा लेने की मेरी इच्छा भी ज़ोर पकड़ने लगी।

मुझे सबसे ज़्यादा सम्मेलन और अधिवेशन अच्छे लगते थे। सन्‌ 1948 में, मेरी नानी के घर के पास एक ज़िला अधिवेशन रखा गया। उस वक्‍त मैं वहाँ गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने गया था, इसलिए मैं अधिवेशन में हाज़िर हुआ। वहाँ मैं अपने एक दोस्त से मिला जो बपतिस्मा लेनेवाला था। उसने मुझसे कहा कि तुम भी बपतिस्मा क्यों नहीं ले लेते? मैंने कहा कि मैं अपना स्विमसूट नहीं लाया हूँ। फिर उसने कहा कि कोई बात नहीं, मेरे बपतिस्मे के बाद तुम मेरा स्विमसूट पहन लेना। मैंने कहा, ठीक है। इस तरह जून 27, 1948 को 13 साल की उम्र में मैंने बपतिस्मा ले लिया।

अधिवेशन के बाद, माँ के कुछ दोस्तों ने उसे बताया कि मैंने बपतिस्मा ले लिया है। यह सुनकर वह हैरान रह गयी। अगली बार जब मैं, माँ से मिला तो वह जानना चाहती थी कि मैंने उसे बताए बिना इतना बड़ा कदम कैसे उठाया। मैंने बताया कि मैं बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ समझता हूँ और मुझे इस बात का भी एहसास है कि मैं जिस तरीके से अपनी ज़िंदगी जीऊँगा उसके लिए मैं यहोवा के सामने जवाबदेह हूँ।

मेरा इरादा और भी बुलंद हुआ

कलीसिया के भाइयों की मदद से, परमेश्‍वर की सेवा करने का मेरा इरादा और भी बुलंद हुआ। वे मुझे अपने साथ घर-घर के प्रचार में ले जाते थे। मुझे लगभग हर हफ्ते की सभाओं में कुछ-न-कुछ भाग पेश करने की भी ज़िम्मेदारी देते थे। (प्रेरितों 20:20) सोलह साल की उम्र में, मैंने अपना पहला जन भाषण दिया। फिर कुछ समय बाद, मुझे कलीसिया में बाइबल अध्ययन सेवक ठहराया गया। यहोवा की सेवा में ये सारी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हुए, मैं तजुरबा हासिल करता गया। मगर मेरी एक कमज़ोरी थी जिस पर काबू पाने के लिए मैं अब भी संघर्ष कर रहा था। वह थी, लोगों का डर।

उन दिनों अधिवेशन के जन भाषण की घोषणा करने के लिए हम बड़े-बड़े साइन बोर्ड पहना करते थे, जिन्हें ‘प्लकार्ड’ कहा जाता था। हर प्लकार्ड दो साइन बोर्ड से बना होता था जिन्हें फीते से जोड़ा जाता था और इन्हीं फीतों के सहारे बोर्ड को कंधों पर लटकाया जाता था। ये बोर्ड इतने बड़े होते थे कि आगे और पीछे से पूरा शरीर ढक जाता था। इसलिए कुछ लोग हमें ‘सैंडविच आदमी’ कहते थे।

एक बार मैं साइन बोर्ड पहने सड़क के एक मोड़ पर खड़ा था, जहाँ बहुत कम लोग आ-जा रहे थे। तभी अचानक मैंने अपनी क्लास के कुछ साथियों को अपनी तरफ आते देखा। मेरे सामने से गुज़रते वक्‍त उन्होंने मुझे इस तरह घूर-घूरकर देखा कि मैं डर गया। तब मैंने हिम्मत के लिए मन-ही-मन यहोवा से प्रार्थना की और बोर्ड पहने अपनी जगह पर खड़ा रहा। इस तरह मैं अपने डर पर काबू रख पाया। इस वाकये से मेरा विश्‍वास इतना मज़बूत हुआ कि मैं आनेवाली एक और बड़ी आज़माइश का सामना कर पाया। वह थी, अपनी मसीही निष्पक्षता बनाए रखना।

कुछ वक्‍त बाद, मुझे और दूसरे कई जवान भाइयों को सेना में भर्ती होने का सरकारी हुक्मनामा आया। हम फौज की छावनी तो गए, मगर हमने वहाँ के अफसरों को पूरे आदर के साथ बताया कि हम सेना में भर्ती नहीं होंगे। फिर क्या था, हमें फौरन हिरासत में ले लिया गया और कुछ ही समय बाद अदालत के सामने लाया गया। उस अदालत ने हमें छः महीने की कैद की सज़ा सुनायी। मगर हमें जेल में 14 महीने गुज़ारने पड़े क्योंकि जो 8 महीने हमें सेना में बिताने थे, वे हमारी सज़ा में जोड़ दिए गए।

जेल में हम सभी भाई हर दिन बाइबल पर चर्चा करते थे। इन 14 महीनों में हममें से ज़्यादातर ने कम-से-कम दो बार पूरी बाइबल पढ़ ली थी। रिहा होने तक, यहोवा की सेवा करने का हमारा इरादा पहले से और भी ज़्यादा बुलंद हो चुका था। आज भी उन जवान भाइयों में से कई जन पूरी वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं।

जेल से रिहा होने के बाद, मैं अपने माता-पिता के पास लौट आया। कुछ ही दिनों के अंदर, मेरी मुलाकात वेरा नाम की एक साक्षी से हुई जिसका हाल ही में बपतिस्मा हुआ था। वह सच्चाई में बहुत जोशीली थी। हमने सन्‌ 1957 में शादी कर ली।

वो शाम जिसने हमारी ज़िंदगी बदल दी

एक शाम, जब शाखा दफ्तर से आए कुछ ज़िम्मेदार भाइयों से हमने मुलाकात की, तो उनमें से एक ने हमसे पूछा कि क्या आप सर्किट काम करना चाहेंगे? सारी रात प्रार्थना करने के बाद, अगले दिन सुबह मैंने शाखा दफ्तर को फोन लगाया और कहा कि हम तैयार हैं। पूरे समय की सेवा कबूल करने के लिए मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी जिसमें मुझे मोटी तनख्वाह मिलती थी। मगर यह कुरबानी देने के लिए हम तैयार थे, क्योंकि हमने ठान लिया था कि हम अपनी ज़िंदगी में परमेश्‍वर के राज्य को पहली जगह देंगे। हमने अपना सफरी काम दिसंबर 1957 में शुरू किया। उस वक्‍त मैं 23 साल का था और वेरा 19 की। हमें तीन साल तक, फिनलैंड की कलीसियाओं का दौरा करके वहाँ के भाई-बहनों का हौसला बढ़ाने का सुअवसर मिला।

सन्‌ 1960 के आखिर में मुझे ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क के ‘वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड’ में हाज़िर होने का न्यौता मिला। स्कूल के बाद, मुझे और फिनलैंड से आए दो और भाइयों को शाखा दफ्तर चलाने के सिलसिले में दस महीने की खास ट्रेनिंग दी गयी। इस दौरान हमारी पत्नियाँ फिनलैंड में ही रहकर वहाँ के शाखा दफ्तर में सेवा करती रहीं।

गिलियड का कोर्स खत्म होने से कुछ वक्‍त पहले, भाई नेथन एच. नॉर ने मुझे अपने दफ्तर में बुलाया। उन दिनों भाई नॉर दुनिया-भर में हो रहे यहोवा के साक्षियों के काम की देखरेख करते थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं और मेरी पत्नी मालागासी गणराज्य में, जो आज मेडागास्कर के नाम से जाना जाता है, मिशनरी सेवा करना चाहेंगे? मैंने वेरा को खत लिखकर पूछा कि इस बारे में वो क्या सोचती है। उसने फौरन अपना जवाब “हाँ” में भेजा। फिर जब मैं फिनलैंड वापस गया, तो हम मेडागास्कर जाने की तैयारियों में जुट गए।

खुशियाँ और निराशा

जनवरी 1962 में, हम हवाई-जहाज़ से मेडागास्कर की राजधानी, आनटानानारीवो पहुँचे। हम लोम चमड़े की बनी टोपियाँ और मोटे-मोटे कोट पहने हुए थे क्योंकि जब हम फिनलैंड से रवाना हुए तो वहाँ ज़ोरदार सर्दी पड़ रही थी। मगर मेडागास्कर में इतनी गरमी थी कि हमने झटपट अपना पहनावा बदला। हमारा पहला मिशनरी घर एक छोटा-सा मकान था जिसमें सिर्फ एक सोने का कमरा था। और यहाँ पहले से एक मिशनरी जोड़ा रह रहा था, इसलिए मैं और वेरा बरामदे में सोते थे।

हमने मेडागास्कर की एक सरकारी भाषा, फ्रांसीसी सीखना शुरू किया। यह हमारे लिए आसान नहीं था क्योंकि फ्रांसीसी सिखानेवाली बहन, कारबॉनो हमें अँग्रेज़ी में यह भाषा सिखाती थी जबकि वेरा को अँग्रेज़ी नहीं आती थी। इसलिए बहन कारबॉनो जो कुछ सिखाती, उसे मैं फिनिश भाषा में अनुवाद करके वेरा को समझाता था। फिर बाद में जब हमने गौर किया कि वेरा, फ्रांसीसी व्याकरण के नियम स्वीडिश भाषा में ज़्यादा अच्छी तरह समझती है तो मैं उसे स्वीडिश में समझाने लगा। देखते-ही-देखते हम फ्रांसीसी भाषा सीखने में अच्छी तरक्की करने लगे और फिर हमने मेडागास्कर के आम लोगों की भाषा, मालागासी सीखना शुरू किया।

मेडागास्कर में मेरे सबसे पहले बाइबल विद्यार्थी को सिर्फ मालागासी आती थी। उस आदमी को सिखाते वक्‍त, मैं पहले अपनी फिनिश बाइबल में आयतें खोलता था और फिर उस आदमी को अपनी मालागासी बाइबल में वही आयतें ढूँढ़ने में मदद करता था। मगर मैं आयतों को बहुत अच्छी तरह समझा नहीं पाता था क्योंकि मुझे भाषा ठीक से नहीं आती थी। इसके बावजूद, उस आदमी के दिल में बाइबल की सच्चाई को जड़ पकड़ने में देर नहीं लगी। उसने तरक्की की और बपतिस्मा ले लिया।

सन्‌ 1963 में यहोवा के साक्षियों के ब्रुकलिन मुख्यालय से भाई मिल्टन हैनशल, मेडागास्कर का दौरा करने आए। कुछ ही समय बाद, यहाँ एक नया शाखा दफ्तर खोला गया और मुझे शाखा अध्यक्ष ठहराया गया। इसके अलावा, मैं पहले से सर्किट और ज़िला अध्यक्ष का काम कर रहा था। मेडागास्कर में सेवा करते वक्‍त हमें ढेरों आशीषें मिलीं। सन्‌ 1962 से 1970 तक, यहाँ राज्य प्रचारकों की गिनती 85 से बढ़कर 469 हो गयी।

सन्‌ 1970 में, एक दिन प्रचार से लौटने पर हमने देखा कि हमारे दरवाज़े पर एक सरकारी फरमान लगा हुआ है। उसमें लिखा था कि यहोवा के साक्षियों के सभी मिशनरियों को गृह मंत्री के दफ्तर में हाज़िर होना है। वहाँ जाने पर हमें एक अधिकारी ने बताया कि सरकार ने हमें फौरन देश छोड़ने का हुक्म दिया है। जब मैंने पूछा कि मेरा जुर्म क्या है, तो उसने कहा: “जनाब क्वोकानेन, आपने कोई जुर्म नहीं किया है।”

फिर मैंने कहा: “हम पिछले आठ सालों से यहाँ रह रहे हैं। अब यही हमारा घर है। हम ऐसे अचानक, और वह भी बिना किसी वजह के कैसे जा सकते हैं?” मगर लाख कोशिशों के बावजूद, उन्होंने हमारी एक न सुनी। आखिरकार, सभी मिशनरियों को एक हफ्ते के अंदर देश छोड़ना ही पड़ा। शाखा दफ्तर पर ताला लग गया। इसके बाद, वहीं के एक भाई ने प्रचार काम की देखरेख की। उस समय ब्रुकलिन मुख्यालय ने हमें युगाण्डा जाकर सेवा करने को कहा। फिर मेडागास्कर के हमारे प्यारे भाई-बहनों को अलविदा कहकर हम युगाण्डा के लिए रवाना हो गए।

एक नयी शुरूआत

मेडागास्कर छोड़ने के कुछ दिन बाद, हम युगाण्डा की राजधानी, कम्पाला पहुँचे। यहाँ आते ही हमने लुगाण्डा भाषा सीखनी शुरू की। यह भाषा बहुत ही मीठी है और सुनने में ऐसा लगता है मानो कोई मधुर गीत गा रहा हो। मगर इसे सीखना उतना ही मुश्‍किल है। दूसरे मिशनरियों ने वेरा को लुगाण्डा सिखाने से पहले अँग्रेज़ी सिखायी। अँग्रेज़ी में प्रचार करने की वजह से हमें यहाँ काफी अच्छे नतीजे मिले।

कम्पाला की तपती गरमी और नमी की वजह से वेरा की सेहत बिगड़ने लगी। इसलिए हमें युगाण्डा के अमबारारा नाम के कसबे में भेजा गया, जहाँ कम्पाला के मुकाबले गरमी कम पड़ती है। हम यहाँ के पहले साक्षी थे। प्रचार में पहले ही दिन हमें एक अच्छा अनुभव हुआ। एक घर पर जब मैं एक आदमी को गवाही दे रहा था, तो उसकी पत्नी रसोई-घर से बाहर आकर हमारी बात बड़े ध्यान से सुनने लगी। उसका नाम मारग्रेट था। वेरा ने उसके साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया और वह अच्छी तरक्की करने लगी। बाद में उसने बपतिस्मा लिया और एक जोशीली प्रचारक बनी।

सड़कों पर लड़ाई

सन्‌ 1971 में गृह-युद्ध छिड़ गया जिससे युगाण्डा में चारों तरफ खलबली मच गयी। एक दिन तो अमबारारा में हमारे मिशनरी घर से थोड़ी ही दूर पर लड़ाई छिड़ गयी। यही वो समय था जब लेख की शुरूआत में बताया वाकया मेरे साथ हुआ।

जब मैं पूरा रास्ता नाले में घुटनों के बल चलते हुए और सैनिकों से बचते-छिपते मिशनरी घर पहुँचा, तो देखा कि वेरा पहले से ही घर पहुँच चुकी थी। हमने छिपने के लिए घर के एक कोने में फर्नीचर और गद्दियों से एक “किले” जैसी जगह बनायी। एक हफ्ते तक हम घर से बाहर नहीं निकले, बल्कि दिन-भर रेडियो में समाचार सुनते रहे। जब भी हमें दीवारों से टकराती गोलियों की आवाज़ सुनायी पड़ती, तो हम और भी दुबककर अपने किले में छिप जाते। रात को हम बत्ती नहीं जलाते थे ताकि किसी को पता न चले कि हम घर में हैं। एक दफा तो सैनिक हमारे घर के सामने आकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे। मगर हम बिलकुल नहीं हिले बल्कि मन-ही-मन यहोवा से प्रार्थना करते रहे। लड़ाई खत्म होने के बाद, पड़ोसियों ने आकर हमारा शुक्रिया अदा किया और कहा कि तुम्हारे परमेश्‍वर, यहोवा ने ही हमारी हिफाज़त की है और हमने कहा कि हम भी यही मानते हैं।

इसके बाद काफी दिन तक माहौल शांत रहा। फिर एक दिन सुबह हमने रेडियो पर यह चौंका देनेवाली घोषणा सुनी: युगाण्डा की सरकार ने यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगा दी है और सभी साक्षियों को हुक्म दिया जाता है कि उन्हें वापस अपने पुराने धर्म को मानना चाहिए। मैंने इस बारे में सरकारी अधिकारियों से बात की, मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए मैं राष्ट्रपति, ईडी आमीन के दफ्तर गया और मैंने रिसेप्शनिस्ट से कहा कि मैं उनसे मिलना चाहता हूँ। मगर उसने कहा कि राष्ट्रपति जी अभी व्यस्त हैं। मैंने कई बार उनके दफ्तर के चक्कर काटे, मगर मुझे एक बार भी उनसे मिलने नहीं दिया गया। आखिरकार, जुलाई 1973 में हमें युगाण्डा छोड़ना पड़ा।

गए एक साल के लिए, पर रहे दस साल

युगाण्डा के अपने प्यारे भाइयों से बिछड़ते वक्‍त, एक बार फिर हम पर वही उदासी छा गयी जो हमने मेडागास्कर के भाइयों से जुदा होते वक्‍त महसूस की थी। यहाँ से हमें सेनेगल में जाकर सेवा करने के लिए कहा गया था। मगर वहाँ जाने से पहले हम फिनलैंड गए। वहाँ पहुँचने पर हमें बताया गया कि हमें सेनेगल नहीं जाना है बल्कि यहीं फिनलैंड में रहकर सेवा करनी है। यह सुनकर हमें ऐसा लगा कि अब शायद हमें और मिशनरी सेवा के लिए नहीं भेजा जाएगा। फिनलैंड में हमने खास पायनियर सेवा की और बाद में, मुझे दोबारा सर्किट अध्यक्ष ठहराया गया।

सन्‌ 1990 में, मेडागास्कर में हमारे काम की तरफ विरोध कम हो गया। इसलिए ब्रुकलिन के मुख्यालय ने हमसे पूछा कि क्या हम एक साल वहाँ सेवा करने के लिए जाना चाहेंगे? यह सुनकर तो हमें यकीन ही नहीं हुआ। हमें वहाँ जाने की बड़ी तमन्‍ना थी, मगर हमारे सामने दो समस्याएँ थीं। एक, मेरे बुज़ुर्ग पिता को देखभाल की ज़रूरत थी और दूसरी, वेरा की तबियत खराब रहती थी। पिताजी नवंबर 1990 में चल बसे जिसका मुझे बहुत दुःख हुआ। मगर जब वेरा की तबियत में सुधार होने लगा, तो हमने सोचा कि शायद हम दोबारा मिशनरी सेवा शुरू कर सकेंगे। सितंबर 1991 में हम वापस मेडागास्कर गए।

हमें मेडागास्कर में एक साल के लिए भेजा गया था, मगर हम वहाँ दस साल रहे। उस दौरान प्रचारकों की गिनती 4,000 से बढ़कर 11,600 हो गयी। मैंने मिशनरी सेवा का बहुत आनंद उठाया। मगर कभी-कभी यह सोचकर मैं मायूस हो जाता था कि कहीं मैं अपनी पत्नी की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ तो नहीं कर रहा हूँ, उसकी सेहत पर ध्यान देने और उसे प्यार और सहारा देने में चूक तो नहीं रहा हूँ। मगर यहोवा ने हम दोनों को उसकी सेवा जारी रखने की ताकत दी है। आखिरकार, सन्‌ 2001 में हम फिनलैंड आ गए और तब से हम यहाँ के शाखा दफ्तर में सेवा कर रहे हैं। परमेश्‍वर के राज्य के कामों के लिए आज भी हमारा जोश बरकरार है, और हम अफ्रीका की मीठी यादों को सँजोए हुए हैं। हमने यह ठान लिया है कि यहोवा हमें जहाँ सेवा करने को कहेगा, वहाँ हम उसकी मरज़ी पूरी करते रहेंगे।—यशायाह 6:8.

[पेज 12 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

फिनलैंड

यूरोप

[पेज 14 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

अफ्रीका

मेडागास्कर

[पेज 15 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

अफ्रीका

युगाण्डा

[पेज 14 पर तसवीर]

हमारी शादी का दिन

[पेज 14, 15 पर तसवीरें]

सन्‌ 1960 में, फिनलैंड में सर्किट काम से लेकर . . .

. . . सन्‌ 1962 में, मेडागास्कर में मिशनरी सेवा तक

[पेज 16 पर तसवीर]

आज वेरा के साथ