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अपने नाम से पहचाने जाने का हक

अपने नाम से पहचाने जाने का हक

अपने नाम से पहचाने जाने का हक

हर इंसान को यह हक है कि उसे एक नाम दिया जाए जिससे लोग उसे पहचानें। ताहिती द्वीप की मिसाल लीजिए, यहाँ के पंजीकरण दफ्तर में ऐसे बच्चों को भी एक नाम दिया जाता है जिनके पैदा होते ही उनके माँ-बाप उन्हें छोड़कर चले जाते हैं। इन लावारिस बच्चों की पहचान के लिए उन्हें एक नाम के साथ-साथ कुलनाम भी दिया जाता है।

बेशक, हरेक को अपने नाम से पहचाने जाने का हक है। मगर एक शख्स है जिससे यह हक छीना गया है। ताज्जुब की बात तो यह है कि उसी से “स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है”! वह शख्स कोई और नहीं बल्कि हमारा “पिता” और परमेश्‍वर है। (इफिसियों 3:14, 15) बाइबल हमें उसका नाम बताती है, मगर बहुत-से लोग उसे उसके नाम से पुकारना नहीं चाहते। इसके बजाय वे उसे “परमेश्‍वर,” “प्रभु,” या “सनातन ईश्‍वर” जैसी उपाधियों से पुकारते हैं। अब सवाल यह है कि परमेश्‍वर का नाम क्या है? भजनहार इसका जवाब देता है: “केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।”—भजन 83:18.

ऊपर बताए ताहिती द्वीप में, करीब दो सौ साल पहले ‘लंदन मिशनरी सोसाइटी’ ने कुछ मिशनरी भेजे। वहाँ लोग कई देवी-देवताओं की पूजा करते थे। और उनके हर देवता का अपना एक नाम था। इनमें सबसे खास देवता थे, आरो और तआरोआ। लेकिन मिशनरी चाहते थे कि लोग यह जानें कि बाइबल का परमेश्‍वर उनके देवताओं से अलग है। इसलिए वे परमेश्‍वर का नाम बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने लगे, जिसे ताहिती भाषा में येहोवा कहा जाता है।

इस वजह से यह नाम काफी जाना-माना नाम हो गया और लोग अपनी रोज़मर्रा की बातचीत और चिट्ठियों में इसका इस्तेमाल करने लगे। यहाँ तक कि ताहिती के राजा पोमारे द्वितीय ने भी अपनी कई चिट्ठियों में परमेश्‍वर के नाम का ज़िक्र किया। इस बात का सबूत यहाँ दिखायी गयी उसकी एक चिट्ठी से मिलता है। अँग्रेज़ी में लिखी यह चिट्ठी, ‘ताहिती द्वीप-समूह के अजायबघर’ में रखी गयी है। इससे पता चलता है कि उस ज़माने के लोग बेझिझक परमेश्‍वर को उसके नाम से पुकारते थे। यही नहीं, सन्‌ 1835 में तैयार की गयी ताहिती भाषा की पहली बाइबल में भी परमेश्‍वर का नाम यहोवा हज़ारों बार आता है।

[पेज 32 पर तसवीर]

राजा पोमारे द्वितीय

[पेज 32 पर चित्र का श्रेय]

राजा और चिट्ठी: Collection du Musée de Tahiti et de ses Îles, Punaauia, Tahiti