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तुम्हारे हाथ मज़बूत हों

तुम्हारे हाथ मज़बूत हों

तुम्हारे हाथ मज़बूत हों

“नबियों के माध्यम से इन दिनों मेरा सन्देश सुननेवाले लोगो! तुम्हारे हाथ मजबूत हों।”—जकर्याह 8:9, नयी हिन्दी बाइबिल।

1, 2. हाग्गै और जकर्याह की किताबों पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

 हाग्गै और जकर्याह ने अपनी भविष्यवाणियाँ करीब 2,500 साल पहले लिखी थीं, फिर भी ये भविष्यवाणियाँ आपकी ज़िंदगी के लिए खास मायने रखती हैं। बाइबल की इन किताबों में जो लिखा है, वह बीते ज़माने की महज़ कहानियाँ नहीं हैं। बल्कि ये उन सारी ‘बातों’ में शामिल हैं जो ‘पहले से हमारी ही शिक्षा के लिए लिखी गयी थीं।’ (रोमियों 15:4) इन किताबों के ज़्यादातर वाकये पढ़ने पर हमें वे घटनाएँ याद आती हैं जो सन्‌ 1914 में स्वर्ग में परमेश्‍वर का राज्य स्थापित होने के बाद से घट रही हैं।

2 प्रेरित पौलुस ने बताया कि प्राचीन समय में परमेश्‍वर के लोगों के साथ क्या-क्या हुआ और उन्हें किन-किन हालात से गुज़रना पड़ा, उसके बाद उसने यह कहा: “ये सब बातें, जो उन पर पड़ीं, दृष्टान्त की रीति पर थीं: और वे हमारी चितावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं।” (1 कुरिन्थियों 10:11) इसलिए आप शायद सोचें: ‘हाग्गै और जकर्याह की किताबें हमारे दिनों के लिए क्या अहमियत रखती हैं?’

3. हाग्गै और जकर्याह की भविष्यवाणियों का खास संदेश क्या था?

3 पिछले लेख में बताया गया था कि हाग्गै और जकर्याह ने उस दौरान भविष्यवाणी की जब यहूदी, बाबुल की बंधुआई से छूटकर अपने वतन वापस आए थे जो परमेश्‍वर ने उन्हें दिया था। हाग्गै और जकर्याह की भविष्यवाणियों का खास संदेश था, मंदिर को दोबारा बनाना। यहूदियों ने सा.यु.पू. 536 में मंदिर की नींव डाली थी। हालाँकि इस मौके पर कुछ बुज़ुर्ग यहूदी, पुराने मंदिर को याद करके दुःखी हो गए थे, मगर ज़्यादातर यहूदी “आनन्द के मारे ऊंचे शब्द से जय जयकार कर रहे थे।” लेकिन, आज हमारे समय में इससे भी अहम घटना घटी है। वह क्या है?—एज्रा 3:3-13.

4. पहले विश्‍वयुद्ध के फौरन बाद क्या हुआ?

4 पहले विश्‍वयुद्ध के फौरन बाद, यहोवा के अभिषिक्‍त जनों को बड़े बाबुल की गुलामी से आज़ाद किया गया था। यह एक ठोस सबूत था कि यहोवा उनके साथ है। इससे पहले ऐसा लग रहा था कि ईसाईजगत के धर्म-गुरु और उनके सियासी दोस्त, बाइबल विद्यार्थियों के प्रचार और सिखाने के काम को हमेशा के लिए बंद करवाने में कामयाब हो गए थे। (एज्रा 4:8, 13, 21-24) मगर सन्‌ 1919 में प्रचार करने और चेले बनाने के इस काम के आगे जितनी भी रुकावटें थीं, उन सबको यहोवा परमेश्‍वर ने हटा दिया। उसके बाद के सालों से लेकर आज तक प्रचार का काम बढ़ता ही गया है और इसे कोई भी रोक नहीं पाया है।

5, 6. जकर्याह 4:7 किस शानदार काम के पूरा होने की तरफ इशारा करता है?

5 यहोवा के आज्ञा माननेवाले सेवक यह यकीन रख सकते हैं कि आज भी यहोवा प्रचार और सिखाने के काम में उनके साथ है। जकर्याह 4:7 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) में हम पढ़ते हैं: “वह मंदिर को बनायेगा और जब अन्तिम पत्थर उस स्थान पर रखा जाएगा तब लोग चिल्ला उठेंगे–‘सुन्दर! अति सुन्दर।’” यह भविष्यवाणी हमारे समय में किस शानदार काम के पूरा होने की तरफ इशारा करती है?

6 जकर्याह 4:7 उस समय की तरफ इशारा करता है जब सारे जहान के महाराजाधिराज यहोवा परमेश्‍वर के आत्मिक मंदिर के आँगन में यानी धरती पर सच्ची उपासना बुलंदी पर पहुँचेगी। आत्मिक मंदिर, यहोवा का वह इंतज़ाम है जिसमें लोग, मसीह यीशु के प्रायश्‍चित बलिदान की बिनाह पर यहोवा की उपासना करते हैं। यह सच है कि यह महान आत्मिक मंदिर सा.यु. पहली सदी से वजूद में है, मगर इसके आँगन में यानी धरती पर सच्ची उपासना का बुलंदी पर पहुँचना अभी बाकी है। फिलहाल, इस मंदिर के आँगन में लाखों लोग परमेश्‍वर की सेवा कर रहे हैं। यीशु मसीह के हज़ार साल के राज के दौरान इन्हें और पुनरुत्थान पानेवाले लाखों लोगों को सिद्धता तक लाया जाएगा। हज़ार साल के आखिर में, साफ-सुथरी धरती पर सिर्फ परमेश्‍वर के सच्चे उपासक रह जाएँगे।

7. हमारे दिनों में सच्ची उपासना को बुलंदी तक पहुँचाने में यीशु का क्या हाथ है, और इससे हमारा हौसला क्यों बढ़ना चाहिए?

7 सामान्य युग पूर्व 515 में राज्यपाल जरुब्बाबेल और महायाजक यहोशू की निगरानी में मंदिर बनकर तैयार हो गया था। जकर्याह 6:12, 13 (NHT) बताता है कि सच्ची उपासना को बुलंदी तक पहुँचाने के लिए यीशु भी जरुब्बाबेल और यहोशू के जैसा काम करेगा। उस भविष्यवाणी में लिखा है: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है: उस मनुष्य को देख जिसका नाम शाख [“अंकुर,” फुटनोट] है क्योंकि वह वहां से फूट निकलेगा जहां वह है, और वही यहोवा के मन्दिर को बनाएगा। . . . वह आदर भी पाएगा, तथा उसके सिंहासन पर बैठकर शासन करेगा। इस प्रकार, वह अपने सिंहासन पर याजक भी होगा।” आज यीशु स्वर्ग में है और उसने दाऊद के राजवंश की शाख को बढ़ाया है। जब खुद यीशु राज्य के काम को बढ़ावा दे रहा है, तो क्या किसी की मजाल है कि वह इसे आगे बढ़ने से रोक सके? बिलकुल नहीं! क्या इस बात से हमारा हौसला नहीं बढ़ना चाहिए कि हम अपनी सेवा में लगे रहें और हर दिन की चिंताओं को इसके आड़े न आने दें?

सबसे पहला, सबसे ज़रूरी

8. आत्मिक मंदिर के काम को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देना क्यों ज़रूरी है?

8 अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारे साथ हो और हम पर आशीषें बरसाए, तो यह ज़रूरी है कि हम आत्मिक मंदिर के काम को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत दें। हमें उन यहूदियों की तरह नहीं होना चाहिए जो कहते थे कि मंदिर बनाने का अभी “समय नहीं आया है।” इसके बजाय, हमें याद रखना चाहिए कि हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। (हाग्गै 1:2; 2 तीमुथियुस 3:1) यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि उसके वफादार चेले राज्य की खुशखबरी सुनाने और चेले बनाने के काम में लगे रहेंगे। हमें खबरदार रहना चाहिए कि हम अपनी इस अनमोल सेवा की तरफ कभी लापरवाही न दिखाएँ। सन्‌ 1919 में, प्रचार और सिखाने का वह काम दोबारा शुरू किया गया जो संसार के विरोध की वजह से कुछ वक्‍त के लिए रुक गया था। यह काम अब तक पूरा नहीं हुआ है, मगर यकीन रखिए यह हर हाल में पूरा होकर रहेगा!

9, 10. यहोवा की आशीष पाने के लिए क्या करना ज़रूरी है और हमारे लिए इसके क्या मायने हैं?

9 हम अकेले या एक समूह के तौर पर इस काम को जितनी लगन से करते रहेंगे, हमें उतनी ही ज़्यादा आशीषें मिलेंगी। गौर कीजिए, यहोवा ने यहूदियों से क्या वादा किया था जिससे हम भी हिम्मत पा सकते हैं। जैसे ही यहूदी एक बार फिर तन-मन से यहोवा की उपासना करने लगे और मंदिर का काम दोबारा ज़ोर-शोर से होने लगा तो यहोवा ने कहा: “आज के दिन से मैं तुम को आशीष देता रहूंगा।” (हाग्गै 2:19) एक बार फिर, हर तरह से परमेश्‍वर का अनुग्रह उन पर होगा। गौर कीजिए कि परमेश्‍वर अपने वादे के मुताबिक उन्हें क्या-क्या आशीषें देगा: “अब शान्ति के समय की उपज अर्थात्‌ दाखलता फला करेगी, पृथ्वी अपनी उपज उपजाया करेगी, और आकाश से ओस गिरा करेगी; क्योंकि मैं अपनी इस प्रजा के बचे हुओं को इन सब का अधिकारी कर दूंगा।”—जकर्याह 8:9-13.

10 यहोवा ने उन यहूदियों को न सिर्फ आध्यात्मिक आशीषें दीं बल्कि शारीरिक सुख-सुविधाओं की भी आशीष दी। उसी तरह, हमें यहोवा से जो काम मिला है अगर हम उसे खुशी-खुशी और जी-जान लगाकर करेंगे तो वह हमें भी आशीषें देगा। वह कैसी आशीषें देगा? हमारे बीच शांति होगी, चैन-अमन होगा, हम खुशहाल होंगे और आध्यात्मिक मायने में तरक्की करेंगे। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि परमेश्‍वर से आशीष पाते रहने के लिए ज़रूरी है कि हम आत्मिक मंदिर में उसका काम ठीक उसी तरीके से करें जिस तरीके से यहोवा इसे करवाना चाहता है।

11. हम कैसे अपनी जाँच खुद कर सकते हैं?

11 अभी वक्‍त है कि हम ‘अपने अपने चालचलन पर ध्यान करें।’ (हाग्गै 1:5,7) हमें कुछ समय निकालकर यह जाँच करनी चाहिए कि हम ज़िंदगी में किन बातों को सबसे ज़रूरी मानते हैं। आज हम जितना ज़्यादा यहोवा के नाम की महिमा करेंगे और उसके आत्मिक मंदिर के काम में बढ़ते जाएँगे, उतना ज़्यादा वह हम पर आशीष देगा। आप खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं गैर-ज़रूरी बातों को ज़रूरी समझने लगा हूँ? मेरे बपतिस्मे के वक्‍त यहोवा, उसकी सच्चाई और उसके काम के लिए मुझमें जितना जोश था, क्या आज भी उतना ही जोश है? क्या मेरा ध्यान ऐशो-आराम की ज़िंदगी पाने पर इस कदर लगा हुआ है कि यहोवा और उसके राज्य से मेरा ध्यान हट गया है? क्या इंसान का डर, या लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे इसका डर मुझे यहोवा के नाम की महिमा करने और आत्मिक मंदिर का काम करने से रोक रहा है?’—प्रकाशितवाक्य 2:2-4.

12. हाग्गै 1:6, 9 हमें यहूदियों के किन हालात के बारे में बताता है?

12 हम यह हरगिज़ नहीं चाहते कि परमेश्‍वर अपनी आशीषें इसलिए रोक ले क्योंकि हम उसके नाम की महिमा करने की ज़िम्मेदारी को सही तरह से नहीं निभा रहे। याद कीजिए कि बाबुल से लौटे यहूदियों ने मंदिर को दोबारा बनाने की शुरूआत तो अच्छी की, मगर बाद में जैसा हाग्गै 1:9 (नयी हिन्दी बाइबिल) कहता है, वे सब “अपना-अपना घर बनाने में व्यस्त हो” गए। वे अपनी रोज़-ब-रोज़ की ज़रूरतें पूरी करने और अपनी ज़िंदगी में इस कदर डूब गए थे कि उन्होंने मंदिर का काम अधूरा छोड़ दिया। इसीलिए वे ‘थोड़ा ही काटते’ थे यानी उनके पास खाने-पीने को काफी नहीं था और ठंड से बचने के लिए पूरे गर्म कपड़े भी नहीं थे। (हाग्गै 1:6) यहोवा ने अपनी आशीषें रोक ली थीं। क्या हम इससे कोई सबक सीख सकते हैं?

13, 14. हाग्गै 1:6, 9 से मिलनेवाले सबक को हम कैसे लागू कर सकते हैं और यह सबक क्यों हमारे लिए ज़रूरी है?

13 यहोवा की आशीष पाते रहने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने सुख की खोज में न लग जाएँ और इस वजह से यहोवा की उपासना में लापरवाह न हो जाएँ। क्या आपको भी ऐसा ही नहीं लगता? ऐसे हर काम या शौक से हमें दूर रहना चाहिए जिसकी वजह से हमारा ध्यान बँट सकता है। जैसे दौलत के पीछे भागना, रातों-रात अमीर बनने की तरकीबें आज़माना, इस संसार में एक बढ़िया करियर पाने के लिए ऊँची तालीम हासिल करने में रात-दिन लगा देना या कुछ ऐसे काम करना जिनमें आपको अपनी काबिलीयत से कुछ कर दिखाने का संतोष मिलता है।

14 इस तरह के काम अपने आप में गलत नहीं हैं। लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि हमेशा की ज़िंदगी को ध्यान में रखकर देखें तो ये सारे ‘मरे हुए काम’ हैं। (इब्रानियों 9:14) वह कैसे? ये काम आध्यात्मिक मायने में बेजान और बेकार काम हैं। अगर एक इंसान ऐसे कामों में लगा रहता है, तो इनकी वजह से आध्यात्मिक मायने में उसकी मौत हो सकती है यानी यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता खत्म हो सकता है। प्रेरितों के दिनों में चंद अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ ऐसा ही हुआ था। (फिलिप्पियों 3:17-19) और आज हमारे समय में भी कुछ लोगों के साथ ऐसा हुआ है। आप खुद शायद ऐसे कुछ लोगों को जानते हों जिनका ध्यान धीरे-धीरे मसीही कामों से भटक गया और जो कलीसिया से भी बहक गए। और अब वे यहोवा की सेवा दोबारा शुरू करने के लिए बिलकुल भी रुझान नहीं दिखा रहे। हम यही दुआ करते हैं कि ऐसे लोग यहोवा के पास लौट आएँ। मगर इस हकीकत को बदला नहीं जा सकता कि “मरे हुए कामों” के पीछे भागने से एक इंसान, यहोवा की मंज़ूरी और आशीष खो सकता है। आप समझ सकते हैं कि ऐसा अगर किसी के साथ हो तो कितने दुःख की बात है। वह इंसान परमेश्‍वर की आत्मा से पैदा होनेवाले फल जैसे खुशी और शांति गँवा बैठेगा। और सोचिए, अगर वह प्यार करनेवाले मसीही भाईचारे की संगति छोड़ दे, तो उसे कितना नुकसान होगा!—गलतियों 1:6; 5:7, 13, 22-24.

15. हाग्गै 2:14 कैसे दिखाता है कि परमेश्‍वर की उपासना हम जिस तरीके से करते हैं वह कितनी गंभीर बात है?

15 यह बात कितनी गंभीर है, इसे समझने के लिए गौर कीजिए कि यहोवा ने हाग्गै 2:14 में उन यहूदियों के बारे में क्या कहा जो यहोवा के उपासना के भवन को बनाने के बजाय अपने-अपने घर बनाने या उन्हें सजाने में लगे हुए थे। “यहोवा की यही वाणी है, कि मेरी दृष्टि में यह प्रजा और यह जाति वैसी ही है, और इनके सब काम भी वैसे हैं; और जो कुछ वे वहां चढ़ाते हैं, वह भी अशुद्ध है।” यरूशलेम में वेदी पर यहूदियों ने आधे-अधूरे मन से जितने भी बलिदान चढ़ाए, यहोवा ने उन्हें ठुकरा दिया क्योंकि उन्होंने सच्ची उपासना को दरकिनार कर दिया था।—एज्रा 3:3.

भरोसा दिलाया गया कि परमेश्‍वर हमारे साथ है

16. जकर्याह को जो दर्शन दिए गए थे, उनके मुताबिक यहूदियों को क्या भरोसा दिलाया गया था?

16 जिन यहूदियों ने परमेश्‍वर की आज्ञा मानकर मंदिर का काम दोबारा शुरू किया था, उन्हें भरोसा दिलाया गया कि यहोवा उनके साथ है। कैसे? जकर्याह को मिले आठ दर्शनों के ज़रिए। पहले दर्शन में यहोवा ने गारंटी दी कि अगर यहूदी, मंदिर का काम यूँ ही जारी रखेंगे, तो मंदिर ज़रूर बनकर तैयार होगा और यरूशलेम और यहूदा में हर तरफ खुशहाली होगी। (जकर्याह 1:8-17) दूसरे दर्शन में वादा किया गया कि सच्ची उपासना का विरोध करनेवाली सारी सरकारें मिटा दी जाएँगी। (जकर्याह 1:18-21) बाकी दर्शनों में यकीन दिलाया गया कि जब यहूदी, मंदिर का निर्माण कर रहे होंगे, तो परमेश्‍वर उन्हें हर खतरे से बचाए रखेगा, और जब मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा तो बहुत-सी दूसरी जातियों के लोग यहोवा की उपासना करने के लिए यहाँ उमड़ पड़ेंगे, देश में सच्ची शांति और सुरक्षा होगी, परमेश्‍वर के काम में आनेवाली पहाड़ जैसी बाधाएँ दूर कर दी जाएँगी, दुष्टता का सफाया होगा और स्वर्गदूत यहोवा के काम की निगरानी और उसके लोगों की हिफाज़त करेंगे। (जकर्याह 2:5, 11; 3:10; 4:7; 5:6-11; 6:1-8) जब परमेश्‍वर ने इतने सारे दर्शनों के ज़रिए भरोसा दिलाया कि वह उनके साथ है, तो वाजिब है कि आज्ञा माननेवाले यहूदियों ने अपने जीने के तौर-तरीके में फेरबदल किया और दोबारा उस काम पर ध्यान लगाया जिसके लिए यहोवा ने उन्हें गुलामी से छुड़ाया था।

17. हमें जिन बातों का यकीन दिलाया गया है, उन्हें ध्यान में रखते हुए हमें अपने आपसे क्या पूछना चाहिए?

17 आज हमें भी पूरा यकीन है कि सच्ची उपासना की जीत हर हाल में होगी। इसलिए हमें भी यहोवा के उपासना के भवन के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए और उसमें काम करने के लिए हमारे अंदर जोश भर आना चाहिए। अपने आप से पूछिए: ‘अगर मैं यह मानता हूँ कि यही वक्‍त है जब राज्य का सुसमाचार प्रचार करने और चेले बनाने का काम किया जाना है, तो मैं ज़िंदगी में जो करना चाहता हूँ और मेरे जीने के तरीके से क्या मेरा यह यकीन दिखायी देता है? क्या मैं परमेश्‍वर के भविष्यवाणी के वचन का अध्ययन करने में काफी समय बिताता हूँ, उस पर दिन-रात ध्यान लगाए रहता हूँ और उसके बारे में अपने मसीही भाइयों और दूसरे लोगों के साथ बात करता हूँ?’

18. जकर्याह अध्याय 14 के मुताबिक भविष्य में क्या होनेवाला है?

18 जकर्याह ने अपनी भविष्यवाणी में बड़े बाबुल के विनाश के बाद, हरमगिदोन की लड़ाई होने का ज़िक्र किया। हम पढ़ते हैं: “लगातार एक ही दिन होगा जिसे यहोवा ही जानता है, न तो दिन होगा, और न रात होगी, परन्तु सांझ के समय उजियाला होगा।” जी हाँ, यहोवा का दिन, धरती पर उसके दुश्‍मनों के लिए काली, भयानक रात जैसा होगा! मगर यहोवा के वफादार उपासकों के लिए वह वक्‍त लगातार उजियाले और आशीषों का वक्‍त होगा। जकर्याह ने यह भी बताया कि यहोवा की नयी दुनिया में हर चीज़ उसकी पवित्रता का ऐलान करेगी। फिर, परमेश्‍वर के महान आत्मिक मंदिर में होनेवाली सच्ची उपासना के सिवा धरती पर किसी और किस्म की उपासना नहीं होगी। (जकर्याह 14:7, 16-19) यह क्या ही बढ़िया वादा है! हम भविष्यवाणियों को पूरा होते और यहोवा की हुकूमत को बुलंद होते देखेंगे। वाकई वह दिन यहोवा का दिन होगा और अब तक का सबसे बेजोड़ दिन होगा!

सदा तक मिलनेवाली आशीषें

19, 20. जकर्याह 14:8, 9 कैसे आपका हौसला बढ़ाता है?

19 यहोवा की हुकूमत शानदार तरीके से बुलंद होने के बाद, शैतान और उसकी दुष्टात्माओं को अथाह कुंड में डाल दिया जाएगा, यानी वे ऐसी हालत में होंगे कि इंसानों का कुछ बिगाड़ नहीं सकेंगे। (प्रकाशितवाक्य 20:1-3, 7) उसके बाद मसीह के हज़ार साल का राज शुरू होगा और इस दौरान इंसानों को ढेरों आशीषें मिलेंगी। जकर्याह 14:8, 9 कहता है: “उस समय यरूशलेम से बहता हुआ जल फूट निकलेगा उसकी एक शाखा पूरब के ताल और दूसरी पच्छिम के समुद्र की ओर बहेगी, और धूप के दिनों में और जाड़े के दिनों में भी बराबर बहती रहेंगी। तब यहोवा सारी पृथ्वी का राजा होगा; और उस समय एक ही यहोवा और उसका नाम भी एक ही माना जाएगा।”

20 ‘बहते हुए जल’ या ‘जीवन के जल की नदी’ का मतलब यहोवा के वे इंतज़ाम हैं जिनकी मदद से इंसान हमेशा की ज़िंदगी पा सकेंगे। यह जल मसीहाई राज्य के सिंहासन से लगातार बहता रहेगा। (प्रकाशितवाक्य 22:1, 2) यहोवा के उपासकों की एक बड़ी भीड़ को, जो हरमगिदोन से ज़िंदा बचेगी, इस जल से फायदा होगा क्योंकि उन्हें आदम से विरासत में मिली मौत की सज़ा से आज़ाद किया जाएगा। यहाँ तक कि मरे हुए भी पुनरुत्थान पाएँगे और जीवन के जल से फायदा पाएँगे। इस तरह सारी धरती पर यहोवा की हुकूमत का एक नया दौर शुरू होगा। धरती पर जीनेवाला हर इंसान यह कबूल करेगा कि यहोवा ही सारे जहान का मालिक है और सिर्फ वही उपासना पाने का हकदार है।

21. हमें क्या करने की ठान लेनी चाहिए?

21 हाग्गै और जकर्याह ने जो भविष्यवाणियाँ की थीं और इनमें से जो-जो अब तक पूरी हुई हैं, उनसे हमें ठोस वजह मिलती है कि परमेश्‍वर के आत्मिक मंदिर के आँगन यानी इस धरती पर हमें जो काम दिया गया है, उसमें हम आगे बढ़ते रहें। जब तक सच्ची उपासना बुलंदी तक नहीं पहुँचायी जाती, आइए हम दिलो-जान से राज्य के काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते रहें। जकर्याह 8:9 (नयी हिन्दी बाइबिल) यह कहकर हमें उकसाता है: “नबियों के माध्यम से इन दिनों मेरा सन्देश सुननेवाले लोगो! तुम्हारे हाथ मजबूत हों।”

क्या आपको याद है?

• हाग्गै और जकर्याह के ज़माने से मिलती-जुलती कौन-सी घटनाएँ हमारे दिनों में घटी हैं, जिसकी वजह से ये दोनों किताबें हमारे लिए मायने रखती हैं?

• हमारी ज़िंदगी में सबसे पहला और ज़रूरी काम क्या होना चाहिए, इस बारे में हाग्गै और जकर्याह की किताबें क्या सबक देती हैं?

• हाग्गै और जकर्याह की भविष्यवाणियों की चर्चा करने से हमें भविष्य के बारे में क्या भरोसा मिलता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 26 पर तसवीर]

हाग्गै और जकर्याह ने यहूदियों को जी-जान लगाकर काम करने और इस तरह आशीष पाने के लिए उकसाया

[पेज 27 पर तसवीरें]

क्या आप ‘अपना घर बनाने में व्यस्त’ हैं?

[पेज 28 पर तसवीर]

यहोवा ने आशीष देने का वादा किया था और उसने दी भी