गरीबी—सूरते हाल
गरीबी—सूरते हाल
वीसेनटा * नाम का एक गरीब आदमी, ब्राज़ील के साउँ पाउलू शहर में रहता है। वह अकसर सड़क पर एक भारी ठेला खींचता हुआ दिखायी देता है। वह दिन-भर गत्ता, धातु और प्लास्टिक जैसे कबाड़ बटोरता है। फिर जब अँधेरा होने लगता है, तो वह एक सड़क के किनारे अपना ठेला रोकता है और उसके नीचे गत्ता डालकर सो जाता है। बस-गाड़ियों की शोरगुल से उसकी नींद बिलकुल नहीं टूटती। वीसेनटा शुरू से गरीब नहीं था। एक वक्त था जब उसके पास नौकरी थी, अपना एक घर था और परिवार भी। मगर फिर उसका सबकुछ छिन गया। और आज दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए उसे एड़ियाँ रगड़नी पड़ती है।
दुःख की बात है कि यह सिर्फ वीसेनटा की कहानी नहीं है। दुनिया में लाखों लोग हैं, जो घोर तंगहाली में जीते हैं। गरीब देशों में बहुत-से लोगों को मजबूरन अपनी सारी ज़िंदगी या तो सड़कों पर या फिर झुग्गी-झोंपड़ियों में बितानी पड़ती है। जगह-जगह दूध पीते बच्चे को गोद में लिए औरतें, लँगड़े-लूले और अंधे, भीख माँगते नज़र आते हैं। यही नहीं, छोटे-छोटे बच्चे भी पैसे-दो-पैसे कमाने के लिए, ट्रैफिक सिगनल पर रुकी गाड़ियों की तरफ दौड़कर टॉफियाँ बेचते दिखायी देते हैं।
आखिर इतनी गरीबी क्यों है? इसका जवाब देना आसान नहीं। ब्रिटेन की एक पत्रिका, दि इकोनोमिस्ट कहती है: “आज इंसान के पास पहले से कहीं ज़्यादा दौलत, चिकित्सा के बारे में जानकारी, तकनीकी हुनर, और बुद्धि है, जिनकी मदद से गरीबी को मिटाया जा सकता है।” इस तरक्की की बदौलत बहुत-से लोगों को फायदा हुआ है। जैसे, कई गरीब देशों में बड़े-बड़े शहरों की सड़कें, नयी चमचमाती गाड़ियों से भरी पड़ी हैं। कई शॉपिंग सैंटर (बड़ी-बड़ी जगह जहाँ पर एक-साथ कई दुकानें पायी जाती हैं) में नए-से-नए यंत्र बेचे जाते हैं। इन्हें खरीदने के लिए हमेशा लोगों की भीड़ लगी होती है। ब्राज़ील के दो शॉपिंग
सैंटरों ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए एक नया तरीका अपनाया। वे दिसंबर 23 से 24, 2004 तक पूरी रात खुले रहे। एक सैंटर ने तो अपने ग्राहकों का मन बहलाने के लिए कुछ नर्तकों को भाड़े पर रखा। यह तरकीब इतनी कामयाब रही कि उस सैंटर में लगभग 5,00,000 लोग खरीदारी करने आए!लेकिन इस तरह के फायदे सिर्फ कुछ अमीर लोग उठा पाते हैं, जबकि बहुत-से लोगों की इतनी हैसियत नहीं कि वे इस तरह ऐश कर सकें। अमीर-गरीब के बीच का बड़ा फासला देखकर, कई लोग इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि गरीबी को मिटाने की सख्त ज़रूरत है। ब्राज़ील की एक पत्रिका वेज़ॉ ने कहा: “इस साल [2005 में] दुनिया के सभी नेताओं को इस अहम विषय पर बातचीत करनी चाहिए कि गरीबी को कैसे मिटाया जाए।” वेज़ॉ ने यह भी रिपोर्ट दी कि एक नया कार्यक्रम, ‘मार्शल प्लैन’ शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया है। * इस योजना का मकसद है, सबसे गरीब देशों, खासकर अफ्रीका के देशों की मदद करना। इस तरह के प्रस्ताव से शायद हमें लगे कि गरीबी की समस्या का हल किया जा रहा है, मगर गौर कीजिए कि उसी पत्रिका ने आगे क्या कहा: “यह यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि इन योजनाओं के अच्छे नतीजे निकलेंगे या नहीं, और ऐसा कहने की कई वजह हैं। आज ज़्यादातर देश ऐसी योजनाओं के लिए दान देने से इसलिए पीछे हटते हैं, क्योंकि जिन लोगों के लिए दान दिया जाता है, उन तक वे पैसे पहुँचते ही नहीं हैं।” यह वाकई बड़े दुःख की बात है कि भ्रष्टाचार और पेचीदा सरकारी कायदे-कानूनों की वजह से सरकारों, अंतराष्ट्रीय संगठनों और लोगों के दिए दान के ज़्यादातर पैसे ज़रूरतमंद लोगों तक नहीं पहुँचते।
यीशु जानता था कि गरीबी की समस्या लंबे अरसे तक चलती रहेगी। तभी तो उसने कहा था: “कंगाल तुम्हारे साथ सदा रहते हैं।” (मत्ती 26:11) लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि धरती पर गरीबी हमेशा तक बनी रहेगी? क्या इन हालात को सुधारने के लिए कुछ किया जा सकता है? मसीही, गरीबों की मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं?
[फुटनोट]
^ नाम बदल दिया गया है।
^ ‘मार्शल प्लैन’ का यह कार्यक्रम अमरीका ने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शुरू किया था, ताकि वह इसके ज़रिए यूरोप को अपनी आर्थिक हालत सुधारने में मदद दे सके।