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यहोवा अपनी भेड़ों की देखभाल के लिए चरवाहों को तालीम देता है

यहोवा अपनी भेड़ों की देखभाल के लिए चरवाहों को तालीम देता है

यहोवा अपनी भेड़ों की देखभाल के लिए चरवाहों को तालीम देता है

“बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं।”—नीतिवचन 2:6.

1, 2. बपतिस्मा-शुदा भाई कलीसिया में ज़्यादा ज़िम्मेदारी पाने के काबिल बनने की कोशिश क्यों करते हैं?

 “जब मुझे प्राचीन बनाया गया तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा।” यह कहना है निक का जो अब सात साल से एक अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी निभा रहा है। वह आगे कहता है: “यह ज़िम्मेदारी मेरे लिए बहुत बड़ी आशीष थी और मैं चाहता था कि इसके ज़रिए मैं यहोवा की और ज़्यादा सेवा करूँ। मुझे लगा कि यहोवा ने मुझ पर जो दया की है, और उसके एहसानों से मैं जिस कदर दबा हुआ हूँ, उसके बदले मुझे भी उसके लिए कुछ करना चाहिए। मेरी यह भी तमन्‍ना थी कि कलीसिया के लोगों की जहाँ तक हो सके मदद करूँ, वैसे ही जैसे दूसरे प्राचीनों ने मेरी मदद की है।” निक खुश तो बहुत था, मगर उसे घबराहट भी हो रही थी। वह कहता है: “जब मुझे प्राचीन की ज़िम्मेदारी मिली तब मेरी उम्र 30 से कम थी। इसलिए मैं घबरा रहा था कि कलीसिया की अच्छी देखभाल करने के लिए जिस हुनर की, जैसी समझ और अक्लमंदी की ज़रूरत होती है, वह मुझमें नहीं है।”

2 यहोवा जिन भाइयों को अपने झुंड की रखवाली करने के लिए चुनता है, उनके पास खुश होने के बहुत से कारण हैं। प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों को खुशी का एक कारण याद दिलाया जब उसने यीशु के इन शब्दों का हवाला दिया: “लेने से देने में अधिक सुख है।” (प्रेरितों 20:35, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) एक सहायक सेवक या एक प्राचीन की हैसियत से सेवा करके, बपतिस्मा-शुदा भाई यहोवा को और कलीसिया को बहुत कुछ देते हैं। जैसे, सहायक सेवक कलीसिया की देखरेख के काम में प्राचीनों का हाथ बँटाते हैं। ये सेवक, दूसरी कई ज़िम्मेदारियाँ भी सँभालते हैं जिनमें अकसर उनका काफी समय खर्च होता है मगर ये काम बहुत ज़रूरी भी होते हैं। ऐसे भाई, परमेश्‍वर और लोगों के लिए प्यार की खातिर ही ऐसी सेवा करते हैं जिससे बहुतों को फायदा होता है।—मरकुस 12:30, 31.

3. कुछ लोग कलीसिया में ज़िम्मेदारी के काबिल बनने की कोशिश करने से क्यों कतराते हैं?

3 लेकिन, एक ऐसे बपतिस्मा-शुदा भाई के बारे में क्या कहा जाए, जो एक सहायक सेवक और प्राचीन बनने की ज़िम्मेदारी से कतराता है, क्योंकि उसे लगता है कि वह इन ज़िम्मेदारियों को निभाने के काबिल नहीं है? निक की तरह उसे शायद इस बात से घबराहट होती हो कि उसमें एक कामयाब चरवाहा बनने का हुनर नहीं है। क्या आप भी उन बपतिस्मा-शुदा भाइयों में से एक हैं जो ऐसा सोचते हैं? ऐसी चिंता लाज़मी भी है। क्योंकि भेड़ों की रखवाली के लिए ठहराए गए चरवाहे उनके साथ जिस तरह पेश आते हैं, उसका हिसाब यहोवा इन चरवाहों से लेगा। यीशु ने कहा था: “जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत मांगा जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से बहुत मांगेंगे।”—लूका 12:48.

4. यहोवा जिन्हें अपनी भेड़ों की देखरेख करने के लिए ठहराता है, वह उनकी मदद कैसे करता है?

4 यहोवा जिन्हें सेवक और प्राचीन ठहराता है, क्या वह उनसे उम्मीद करता है कि ज़िम्मेदारी का यह भार वे बिना किसी मदद के खुद ही उठाएँ? जी नहीं। इसके बजाय वह उन्हें ऐसे कारगर तरीकों से मदद देता है कि वे न सिर्फ नाम के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँ बल्कि ऐसा करने से खुशी भी पाएँ। जैसा कि पिछले लेख में चर्चा की गयी थी, यहोवा इन भाइयों को अपनी पवित्र आत्मा देता है, जिसके फल उनकी मदद करते हैं कि भेड़ों की देखरेख कोमलता से करें। (प्रेरितों 20:28; गलतियों 5:22, 23) इसके अलावा, यहोवा उन्हें बुद्धि, ज्ञान और समझ भी देता है। (नीतिवचन 2:6) वह कैसे? आइए ऐसे तीन तरीकों की चर्चा करें जिनसे यहोवा उन लोगों को तालीम देता है, जिन्हें उसने अपनी भेड़ों की देखरेख करने के लिए ठहराया है।

तजुरबेकार चरवाहों से मिलनेवाली तालीम

5. पतरस और यूहन्‍ना कामयाब चरवाहे क्यों थे?

5 जब प्रेरित पतरस और यूहन्‍ना, महासभा के सामने खड़े थे तो दुनिया के हिसाब से पढ़े-लिखे और अक्लमंद न्यायियों ने उन्हें “अनपढ़ और साधारण मनुष्य” समझा। बेशक, उन्हें पढ़ना-लिखना तो आता था मगर उन्होंने रब्बियों से तालीम पाकर शास्त्र का अध्ययन नहीं किया था। फिर भी, पतरस, यूहन्‍ना और दूसरे चेलों ने इस बात का सबूत दिया था कि वे काबिल शिक्षक हैं, क्योंकि उनकी बातें सुननेवालों में से बहुतों ने विश्‍वास किया। ये मामूली इंसान, इतने उम्दा तरीके से सिखानेवाले कैसे बन गए? पतरस और यूहन्‍ना की बातें सुनने के बाद सभा ने “पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।” (प्रेरितों 4:1-4, 13) यह सच है कि इस तरह सिखाने में पवित्र आत्मा ने उनकी मदद की। (प्रेरितों 1:8) पर आध्यात्मिक मायने में वे अंधे न्यायी भी साफ देख सकते थे कि यीशु ने इन लोगों को तालीम दी थी। जब यीशु धरती पर था, तब उसने अपने प्रेरितों को ना सिर्फ भेड़ जैसे लोगों को ढूँढ़कर इकट्ठा करना सिखाया बल्कि यह भी सिखाया कि जब ये भेड़ें कलीसिया का हिस्सा बन जाएँ तो चरवाहे की तरह इनकी रखवाली कैसे करनी चाहिए।—मत्ती 11:29; 20:24-28; 1 पतरस 5:4.

6. यीशु और पौलुस ने दूसरों को तालीम देने में क्या मिसाल कायम की?

6 यीशु अपने पुनरुत्थान के बाद भी उन चेलों को तालीम देता रहा जिन्हें उसने चरवाहे ठहराया था। (प्रकाशितवाक्य 1:1; 2:1–3:22) इनमें से एक था, पौलुस। यीशु ने खुद उसे चुना और अपनी निगरानी में उसे तालीम दिलवायी। (प्रेरितों 22:6-10) पौलुस इस तालीम के लिए दिल से एहसानमंद था और उसने जो सीखा था वही आगे दूसरे प्राचीनों को भी सिखाया। (प्रेरितों 20:17-35) जैसे, उसने तीमुथियुस को तालीम देने में काफी समय लगाया और मेहनत की ताकि वह परमेश्‍वर की सेवा में ऐसा “काम करनेवाला” बने “जो लज्जित होने न पाए।” (2 तीमुथियुस 2:15) यह दोनों दोस्ती के मज़बूत बंधन में बँध गए थे। इससे पहले पौलुस ने तीमुथियुस के बारे में लिखा था: “जैसा पुत्र पिता के साथ करता है, वैसा ही उस ने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साथ परिश्रम किया।” (फिलिप्पियों 2:22) पौलुस ने तीमुथियुस को या किसी और को अपना चेला बनाने की कोशिश कभी नहीं की। इसके बदले, उसने मसीही भाई-बहनों को उकसाया कि वे ‘उसकी सी चाल चलें जैसा वह मसीह की सी चाल चलता है।’—1 कुरिन्थियों 11:1.

7, 8. (क) कौन-सा अनुभव दिखाता है कि जब प्राचीन यीशु और पौलुस की मिसाल पर चलते हैं, तो अच्छे नतीजे निकलते हैं? (ख) प्राचीनों को ऐसे भाइयों की तालीम कब शुरू करनी चाहिए जो आगे चलकर सहायक सेवक और प्राचीन बनेंगे?

7 यीशु और पौलुस की मिसाल पर चलते हुए, कई तजुरबेकार चरवाहों ने बपतिस्मा-शुदा भाइयों को तालीम देने की ज़िम्मेदारी हाथ ली है और इसके अच्छे नतीजे मिले हैं। चैड के अनुभव पर गौर कीजिए। वह एक ऐसे परिवार में पला-बढ़ा जहाँ सभी लोग सच्चाई में नहीं थे। मगर हाल ही में वह प्राचीन बना। वह कहता है: “बरसों से, कई अनुभवी प्राचीनों ने मुझे आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद दी है। मेरे पिता सच्चाई में नहीं थे इसलिए उन प्राचीनों ने मुझ में खास दिलचस्पी दिखायी और मेरे आध्यात्मिक पिता बने। उन्होंने गवाही देने में मुझे तालीम देने के लिए मेरे साथ प्रचार में जाने का वक्‍त निकाला और बाद में खासकर एक प्राचीन ने मुझे कलीसिया में जो ज़िम्मेदारी मिली थी उसे सँभालने की तालीम दी।”

8 जैसा कि चैड का अनुभव दिखाता है, अच्छी समझ रखनेवाले चरवाहे बहुत पहले से ऐसे भाइयों को तालीम देना शुरू कर देते हैं, जो आगे जाकर सहायक सेवक और प्राचीन बन सकते हैं। फिर चाहे उस वक्‍त ये भाई इन ज़िम्मेदारियों के बिलकुल भी काबिल न हों। ऐसा ज़रूरी क्यों है? क्योंकि बाइबल के मुताबिक यह बेहद ज़रूरी है कि जो भाई सहायक सेवक और प्राचीन की ज़िम्मेदारी के लिए चुने जाएँ, वे इन ज़िम्मेदारियों को हासिल करने से पहले ही मसीही उसूलों के मुताबिक जीते हों और परमेश्‍वर की सेवा जी-जान से करते हों। वे ‘पहिले परखे जाने’ चाहिए।—1 तीमुथियुस 3:1-10.

9. अनुभवी चरवाहों पर क्या ज़िम्मेदारी है, और क्यों?

9 अगर बपतिस्मा-शुदा भाई परखे जाने हैं, तो लाज़िमी है कि उन्हें पहले तालीम दी जाए। इसे समझने लिए एक उदाहरण लीजिए: अगर स्कूल में एक विद्यार्थी से कहा जाए कि उसे एक मुश्‍किल परीक्षा देनी है, मगर इस परीक्षा के लिए टीचर ने उसे कोई खास तालीम नहीं दी, तो क्या वह यह परीक्षा पास कर पाएगा? शायद वह फेल हो जाएगा। इसलिए, ज़रूरी है कि उसे पूरी तालीम मिले। लेकिन अच्छा टीचर वह होता है जो विद्यार्थियों को सिर्फ परीक्षा में पास होने के लिए नहीं सिखाता, बल्कि यह भी सिखाता है कि जो जानकारी उन्होंने हासिल की है, उसे काम में कैसे लाएँ। इसी तरह, जी-जान लगाकर सिखानेवाले प्राचीन बपतिस्मा-शुदा भाइयों को खास तालीम के ज़रिए ऐसे गुण बढ़ाने में मदद करते हैं, जो ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराए गए भाइयों में होने ज़रूरी हैं। वे ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं करते ताकि इन भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद के लिए चुने जाने में मदद दें, बल्कि इसलिए करते हैं ताकि उन्हें झुंड की अच्छी देखभाल करने के काबिल बनने में मदद दें। (2 तीमुथियुस 2:2) बेशक, जिन भाइयों का बपतिस्मा हो चुका है, उन्हें भी अपनी तरफ से मेहनत करनी चाहिए और वे तमाम गुण बढ़ाने की जी-जान से कोशिश करनी चाहिए जो एक सहायक सेवक या प्राचीन बनने के लिए ज़रूरी हैं। (तीतुस 1:5-9) फिर भी, अगर तजुरबेकार प्राचीन ऐसे भाइयों को खुशी-खुशी तालीम दें जो कलीसिया में ज़िम्मेदारी के काबिल बनने के लिए मेहनत कर रहे हैं, तो वे उन्हें जल्द-से-जल्द तरक्की करने में मदद दे सकते हैं।

10, 11. कलीसिया के चरवाहे दूसरे भाइयों को ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ सँभालने की तालीम कैसे दे सकते हैं?

10 तजुरबेकार चरवाहे किन खास तरीकों से दूसरों को कलीसिया में ज़िम्मेदारियाँ सँभालने की तालीम दे सकते हैं? सबसे पहले, उन्हें कलीसिया के भाइयों में सच्ची दिलचस्पी लेनी चाहिए। उनके साथ अकसर प्रचार में जाना चाहिए और “सत्य के वचन को ठीक रीति” से काम में लाने में उनकी मदद करनी चाहिए। (2 तीमुथियुस 2:15) अनुभवी चरवाहे उन भाइयों को दूसरों की सेवा करने से मिलनेवाली खुशियों के बारे में बताते हैं और परमेश्‍वर की सेवा में लक्ष्य रखने और उन तक पहुँचने से खुद उन्हें जो सुख मिलता है उसके बारे में बताते हैं। वे प्यार से और साफ शब्दों में सुधार करने के खास सुझाव भी देते हैं, जिन पर काम करने से एक भाई “झुंड के लिये आदर्श” बन सकता है।—1 पतरस 5:3, 5.

11 जब एक भाई को सहायक सेवक की ज़िम्मेदारी दी जाती है, तो समझदार चरवाहे उसे सिखाना जारी रखते हैं। ब्रूस ने 50 साल से एक प्राचीन की हैसियत से सेवा की है। वह कहता है: “जब एक भाई को सहायक सेवक की ज़िम्मेदारी मिलती है, तो मैं उसके साथ बैठकर, विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमास दास की दी हुई हिदायतों के बारे में चर्चा करता हूँ। हम ऐसी हिदायतें भी पढ़ते हैं जो खास उसकी ज़िम्मेदारी के बारे में हैं और फिर मैं उसके साथ तब तक काम करता हूँ जब तक वह अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह समझ नहीं लेता।” जब एक सहायक सेवक अपने काम में तजुरबा हासिल करता है, तो उसे चरवाहे की ज़िम्मेदारी निभाने की तालीम भी दी जा सकती है। ब्रूस आगे कहता है: “जब मैं किसी सहायक सेवक को अपने साथ रखवाली भेंट पर ले जाता हूँ, तो मैं उसे ऐसे खास वचन चुनने में मदद देता हूँ, जो उस व्यक्‍ति या परिवार का हौसला बढ़ाएँगे, जिनसे हम मिलने जाते हैं। अगर एक सेवक को कामयाब चरवाहा बनना है, तो उसके लिए यह सीखना बहुत ज़रूरी है कि बाइबल की आयतें कैसे इस तरीके से इस्तेमाल करे कि सुननेवाले के दिल में उमंग जगाए।”—इब्रानियों 4:12; 5:14.

12. तजुरबेकार चरवाहे, नए प्राचीनों को कैसे तालीम दे सकते हैं?

12 जिस भाई को हाल ही में चरवाहे की ज़िम्मेदारी मिली हो, उसे भी और ज़्यादा तालीम से फायदा मिल सकता है। निक, जिसका हमने पहले भी ज़िक्र किया था, कहता है: “दो बुज़ुर्ग प्राचीनों की तालीम से मुझे बहुत बढ़िया मदद मिली। इन भाइयों को पता होता था कि कुछ मामलों में आम तौर पर क्या किया जाना चाहिए। वे हमेशा बड़े सब्र के साथ मेरी बात सुनते थे और उस पर गंभीरता से सोच-विचार करते थे—फिर चाहे वे उस बात से सहमत न हों। कलीसिया के भाई-बहनों के साथ वे जिस तरह नम्रता और आदर के साथ पेश आते थे, उस पर ध्यान देने से मैंने बहुत कुछ सीखा है। इन प्राचीनों को देखकर मेरे मन में यह बात अच्छी तरह बैठ गयी कि समस्याओं को सुलझाते वक्‍त या दूसरों की हिम्मत बढ़ाते वक्‍त बाइबल का अच्छी तरह इस्तेमाल करने की कला आना बहुत ज़रूरी है।”

परमेश्‍वर के वचन से तालीम

13. (क) एक कामयाब चरवाहा बनने के लिए एक भाई के लिए क्या ज़रूरी है? (ख) यीशु ने क्यों कहा: “मेरा उपदेश मेरा नहीं” है?

13 बेशक, परमेश्‍वर के वचन, बाइबल में ऐसे नियम, सिद्धांत और मिसालें हैं जो एक चरवाहे के लिए ज़रूरी हैं ताकि वह “सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।” (2 तीमुथियुस 3:16, 17) एक भाई ने शायद स्कूल-कॉलेज में अच्छी शिक्षा हासिल की हो, लेकिन एक कामयाब चरवाहा बनने के लिए यह ज़रूरी है कि उसे बाइबल का अच्छा ज्ञान हो और वह इसे सही तरह से काम में भी लाए। यीशु की मिसाल पर गौर कीजिए। इस धरती पर यीशु जैसा ज्ञानवान, समझदार और बुद्धिमान चरवाहा और कोई नहीं हुआ, मगर उसने भी कभी यहोवा की भेड़ों को सिखाते वक्‍त अपनी समझ का सहारा नहीं लिया। उसने कहा: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” यीशु ने सारा श्रेय अपने स्वर्गीय पिता को क्यों दिया? उसने कहा: “जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बड़ाई चाहता है।”—यूहन्‍ना 7:16, 18.

14. चरवाहे कैसे खुद अपनी बड़ाई कराने की कोशिश नहीं करते?

14 वफादार चरवाहे खुद अपनी बड़ाई कराने की कोशिश नहीं करते। सलाह देते वक्‍त और हिम्मत बँधाते वक्‍त, वे अपनी बुद्धि के हिसाब से नहीं बोलते बल्कि परमेश्‍वर के वचन का इस्तेमाल करते हैं। वे इस बात को समझते हैं कि चरवाहे की ज़िम्मेदारी भेड़ों को “मसीह का मन” हासिल करने में मदद देना है न कि प्राचीनों का मन। (1 कुरिन्थियों 2:14-16) आइए एक मिसाल लें। अगर एक प्राचीन किसी जोड़े की शादीशुदा ज़िंदगी की समस्याओं को सुलझाने में मदद दे रहा है और वह बाइबल के सिद्धांतों और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की तरफ से छापी गयी जानकारी के बजाय अपने तजुरबे के हिसाब से उन्हें सलाह देता है, तो क्या होगा? (मत्ती 24:45) वह शायद उन्हें ऐसी सलाह दे जो उस देश के रीति-रिवाज़ों के हिसाब से सही हो या उसे जितनी जानकारी है बस उसी पर आधारित हो। माना कि कुछ रीति-रिवाज़ अपने आपमें गलत नहीं होते, और उस प्राचीन ने अपनी ज़िंदगी में शायद बहुत तजुरबा भी हासिल किया हो। मगर भेड़ों को सबसे ज़्यादा फायदा तब होता है जब चरवाहे उन्हें यीशु की आवाज़ और यहोवा के वचन सुनने का बढ़ावा देते हैं, न कि इंसानों के विचार या दुनियावी रीति-रिवाज़ मानने का।—भजन 12:6; नीतिवचन 3:5, 6.

“विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से तालीम

15. यीशु ने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को क्या काम सौंपा है, और दास वर्ग की कामयाबी का एक कारण क्या है?

15 प्रेरित पतरस, यूहन्‍ना और पौलुस, ये सभी चरवाहे उस समूह के सदस्य थे जिसे यीशु ने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कहा। इस दास वर्ग में यीशु के वे भाई हैं जिनका पवित्र आत्मा से अभिषेक हुआ है और जिन्हें मसीह के साथ स्वर्ग में राज करने की आशा है। (प्रकाशितवाक्य 5:9, 10) आज इस व्यवस्था के आखिरी दिनों में, इस धरती पर बाकी बचे मसीह के भाइयों की गिनती बहुत कम रह गयी है और आगे भी यह कम होती जाएगी। मगर, जो काम यीशु ने उन्हें सौंपा था, यानी अंत आने से पहले राज्य के सुसमाचार का प्रचार, वह काम तो पहले से कहीं ज़्यादा दुनिया के कोने-कोने तक फैल गया है। ऐसे में भी, दास वर्ग बहुत कामयाब रहा है। हम ऐसा क्यों कहते हैं? क्योंकि उन्होंने ‘अन्य भेड़’ के लोगों को तालीम दी है ताकि वे प्रचार करने और सिखाने के काम में उनका हाथ बँटाएँ। (यूहन्‍ना 10:16, NW; मत्ती 24:14; 25:40) आज प्रचार का ज़्यादातर काम यही वफादार अन्य भेड़ें कर रही हैं।

16. दास वर्ग चुने गए भाइयों को तालीम कैसे देता है?

16 दास वर्ग, यह तालीम कैसे देता है? पहली सदी में, दास वर्ग के कुछ नुमाइंदों को अधिकार दिया गया था कि वे कलीसिया में अध्यक्ष या प्राचीन की ज़िम्मेदारी के लिए भाइयों को तालीम दें और चुनें, और फिर ये अध्यक्ष कलीसिया में भेड़ों को तालीम देते। (1 कुरिन्थियों 4:17) आज भी ऐसा ही है। दास वर्ग का नुमाइंदा है, शासी निकाय। शासी निकाय आत्मा से अभिषिक्‍त प्राचीनों का छोटा समूह है। यह निकाय अपने नुमाइंदों को अधिकार देता है कि दुनिया-भर की हज़ारों-हज़ार कलीसियाओं में वे सहायक सेवकों और प्राचीनों को तालीम दें और उन्हें इस ज़िम्मेदारी के लिए चुनें। इसके अलावा, शासी निकाय ऐसे स्कूलों का इंतज़ाम करता है जहाँ शाखा समिति के सदस्यों, सफरी अध्यक्षों, प्राचीनों और सहायक सेवकों को तालीम दी जाती है कि भेड़ों की देखरेख करने का सबसे बेहतरीन तरीका क्या है। खतों, प्रहरीदुर्ग के लेखों और यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए संगठित * जैसी दूसरी किताबों से और भी हिदायतें दी जाती हैं।

17. (क) यीशु ने दास वर्ग पर भरोसा कैसे दिखाया है? (ख) आध्यात्मिक चरवाहे कैसे दिखा सकते हैं कि उन्हें दास वर्ग पर भरोसा है?

17 यीशु को दास वर्ग पर इतना भरोसा था कि उसने उन्हें “अपनी सारी संपत्ति” पर, जी हाँ धरती पर अपने सारे आध्यात्मिक काम-काज पर देखरेख के लिए ठहराया। (मत्ती 24:47) जिन्हें कलीसिया में चरवाहे ठहराया गया है, वे भी शासी निकाय से मिली हिदायतों को मानकर यह साबित करते हैं कि उन्हें भी दास वर्ग पर भरोसा है। जी हाँ, जब चरवाहे दूसरों को तालीम देते हैं, जब वे परमेश्‍वर के वचन से खुद तालीम पाने के लिए तैयार रहते हैं और जब वे दास वर्ग से मिलनेवाली तालीम के मुताबिक काम करते हैं, तब वे झुंड में एकता को बढ़ावा देते हैं। हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं, जिसने ऐसे भाइयों को तालीम दी है जो मसीही कलीसिया में हर जन की दिल से परवाह करते हैं!

[फुटनोट]

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

आप क्या जवाब देंगे?

• अनुभवी आध्यात्मिक चरवाहे दूसरों को तालीम कैसे देते हैं?

• चरवाहे अपने विचारों के आधार पर क्यों नहीं सिखाते?

• चरवाहे दास वर्ग पर भरोसा कैसे दिखाते हैं और वे ऐसा क्यों करते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 24, 25 पर तसवीरें]

मसीही चरवाहे कलीसिया के जवान भाइयों को तालीम देते हैं

[पेज 26 पर तसवीरें]

“विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमास दास” प्राचीनों को बेहिसाब तालीम देता है