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हमारे राजा मसीह की सेवा वफादारी से करना

हमारे राजा मसीह की सेवा वफादारी से करना

हमारे राजा मसीह की सेवा वफादारी से करना

“उसको ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, कि देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्‍न-भिन्‍न भाषा बोलनेवाले सब उसके अधीन हों।”—दानिय्येल 7:14.

1, 2. हम कैसे जानते हैं कि मसीह को सा.यु. 33 में पूरी दुनिया पर राज्य करने का अधिकार नहीं दिया गया था?

 क्या कोई राजा अपनी प्रजा की खातिर जान दे सकता है और फिर दोबारा ज़िंदा होकर राज कर सकता है? क्या कोई राजा धरती पर रहकर अपनी प्रजा की वफादारी और उनका भरोसा जीत सकता है और फिर स्वर्ग से उन पर राज कर सकता है? सिर्फ एक ही शख्स ऐसा कर सका है और वह है, यीशु मसीह। इतना ही नहीं, वह इससे भी बढ़कर बहुत कुछ कर सका है। (लूका 1:32, 33) यीशु की मौत, उसके जी उठने और स्वर्ग वापस जाने के कुछ समय बाद, यानी सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, परमेश्‍वर ने उसे “सब वस्तुओं पर शिरोमणि [“सरदार,” हिन्दुस्तानी बाइबल] ठहराकर कलीसिया को दे दिया।” (इफिसियों 1:20-22; प्रेरितों 2:32-36) इस तरह, यीशु को छोटे पैमाने पर हुकूमत करने का अधिकार दिया गया था। और उसकी पहली प्रजा थी, आत्मा से अभिषिक्‍त मसीही जिन्हें आत्मिक इस्राएल या ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ कहा जाता है।—गलतियों 6:16; कुलुस्सियों 1:13.

2 हम कैसे जानते हैं कि सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त में यीशु को पूरी दुनिया पर राज्य करने का अधिकार नहीं दिया गया था? क्योंकि उसके करीब 30 साल बाद, प्रेरित पौलुस ने बताया कि यीशु, ‘परमेश्‍वर के दहिने बैठा है और उसी समय से इस की बाट जोह रहा है, कि उसके बैरी उसके पांवों के नीचे की पीढ़ी बनें।’ (इब्रानियों 10:12, 13) फिर सा.यु. पहली सदी के आखिर में, बुज़ुर्ग प्रेरित यूहन्‍ना ने भविष्य का एक दर्शन देखा कि पूरे विश्‍व के महाराजाधिराज, यहोवा ने मसीह यीशु को अपने नए स्वर्गीय राज्य का राजा ठहराया। (प्रकाशितवाक्य 11:15; 12:1-5) आज इस बात के ढेरों सबूत हैं कि यह घटना सन्‌ 1914 में हुई थी। वाकई उसी साल यीशु स्वर्ग में मसीहाई राज्य का राजा बना था। *

3. (क) सन्‌ 1914 से, राज्य के सुसमाचार में कौन-सी रोमांचक खबर शामिल हो गयी है? (ख) हम खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं?

3 सन्‌ 1914 से, राज्य के सुसमाचार में एक और रोमांचक खबर शामिल हो गयी है। वह क्या है? यही कि यीशु, परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य का राजा बन गया है और आज “अपने शत्रुओं के बीच” अपने अधिकार का इस्तेमाल करके अपनी प्रजा के काम-काज की अगुवाई कर रहा है। (भजन 110:1, 2; मत्ती 24:14; प्रकाशितवाक्य 12:7-12) धरती पर उसकी वफादार प्रजा भी दिखा रही है कि वह यीशु के अधिकार को मानती है। वह कैसे? बाइबल सिखाने के काम में जुटकर, जो दुनिया-भर में चलाया जा रहा है। यह काम इतिहास में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। (दानिय्येल 7:13, 14; मत्ती 28:18) आत्मा से अभिषिक्‍त मसीही, जो ‘राज्य की सन्तान’ हैं, “मसीह के राजदूत” बनकर सेवा करते हैं। और इस काम में उनके वफादार साथी हैं, मसीह की “अन्य भेड़ें” जिनकी तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और जो परमेश्‍वर के राज्य के उपराजदूत हैं। (मत्ती 13:38; 2 कुरिन्थियों 5:20; यूहन्‍ना 10:16, NW) यह तो रही समूह की बात, लेकिन हममें से हरेक को जाँच करने की ज़रूरत है कि क्या मैं दिल से मसीह के अधिकार को मानता हूँ। हम खुद से ये सवाल पूछ सकते हैं: क्या मैं हर हाल में उसका वफादार रहता हूँ? हम एक ऐसे राजा को अपनी वफादारी कैसे दिखा सकते हैं जो स्वर्ग में है? इन सवालों के जवाब पाने से पहले, आइए गौर करें कि हमें क्यों मसीह के वफादार रहना चाहिए।

राजा की अच्छाई, प्रजा की वफादारी

4. धरती पर अपनी सेवा के दौरान यीशु ने क्या-क्या किया था?

4 मसीह ने हमारे लिए जो कुछ किया है, उसके लिए अपनी एहसानमंदी दिखाने के लिए हम उसके वफादार रहते हैं। साथ ही उसके बेमिसाल गुणों की वजह से भी हमें उसके वफादार रहने की प्रेरणा मिलती है। (1 पतरस 1:8) जब यीशु धरती पर था, तो उसने भूखों को खाना खिलाया, बीमारों को चंगा किया, अंधों, अपंगों, बधिरों और गूंगों को ठीक किया। यहाँ तक कि उसने मरे हुओं को भी दोबारा ज़िंदा किया। इस तरह उसने एक छोटे पैमाने पर दिखाया कि भविष्य में धरती पर हुकूमत करते वक्‍त वह क्या-क्या करेगा। (मत्ती 15:30, 31; लूका 7:11-16; यूहन्‍ना 6:5-13) इसके अलावा, धरती पर यीशु की ज़िंदगी के बारे में जानने से हमें पता चलता है कि हमारे इस राजा में क्या-क्या गुण हैं। उसका सबसे खास गुण है, दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाला प्यार। (मरकुस 1:40-45) माना जाता है कि फ्रांसीसी सम्राट, नेपोलियन बोनपार्ट ने एक बार कहा था: “सिकंदर, कैसर, शार्लमेन और मैंने अपनी सल्तनत कैसे खड़ी की है? बल से। सिर्फ यीशु मसीह ही ऐसी हस्ती थी जिसने प्यार की बुनियाद पर अपना राज्य खड़ा किया और आज, सदियों बाद भी लाखों लोग उसके लिए मर-मिटने को तैयार हैं।”

5. यीशु के स्वभाव में ऐसा क्या था कि लोग उसकी ओर खिंचे चले आए?

5 यीशु नम्र और मन में दीन था। उसके इसी स्वभाव की वजह से बोझ से दबे हुए लोग उसकी ओर खिंचे चले आते थे और उसका उपदेश सुनकर वे ताज़गी महसूस करते थे। (मत्ती 11:28-30) यहाँ तक कि बच्चे भी बेझिझक उसके पास चले आते थे। समझ रखनेवाले दीन लोग अपना सबकुछ छोड़कर उसके चेले बन गए। (मत्ती 4:18-22; मरकुस 10:13-16) यीशु, स्त्रियों का आदर और लिहाज़ करता था। उसके इसी व्यवहार से परमेश्‍वर का भय माननेवाली बहुत-सी स्त्रियाँ उसकी शिष्य बनीं और वफादार रहीं। कइयों ने तो यीशु की सेवा करने के लिए अपना समय, अपनी ताकत और जो कुछ उनके पास था, वह लगा दिया।—लूका 8:1-3.

6. लाजर की मौत पर यीशु ने कैसे दिखाया कि उसमें कोमल भावनाएँ हैं?

6 मसीह में कोमल भावनाएँ भी थीं। यह हम उस वाकये से देख सकते हैं जब उसके अज़ीज़ दोस्त, लाजर की मौत हुई। लाजर की बहनें, मरियम और मार्था को शोक करता देख, यीशु खुद को रोक नहीं पाया। वह भी तड़प उठा और “रो पड़ा।” हालाँकि उसे मालूम था कि कुछ ही देर में वह लाजर को ज़िंदा करनेवाला है, फिर भी उसकी मौत से यीशु बहुत “दुखी हुआ।” यीशु का प्यार और उसकी करुणा ने उसे उकसाया कि वह लाजर को ज़िंदा करने के लिए वह अधिकार इस्तेमाल करे जो उसे परमेश्‍वर से मिला था।—यूहन्‍ना 11:11-15, 33-35, 38-44, NHT.

7. यीशु क्यों हमारी वफादारी का हकदार है? (कृपया पेज 31 पर बक्स भी देखिए।)

7 जब हम सीखते हैं कि यीशु को सच्चाई से कितना प्यार था, और कपट और बुराई से उसे कितनी घृणा थी, तो क्या हमारा दिल श्रद्धा और विस्मय से नहीं भर जाता? बेशक। उसने दो बार, बड़ी हिम्मत के साथ लालची व्यापारियों को मंदिर से खदेड़ दिया। (मत्ती 21:12, 13; यूहन्‍ना 2:14-17) इसके अलावा, जब वह धरती पर इंसान बनकर जीया तो उसने हर किस्म की मुसीबतें झेलीं। इस तरह उसने खुद उन दबावों और समस्याओं का सामना किया जिनका हम सामना करते हैं। (इब्रानियों 5:7-9) यीशु यह भी जानता था कि नफरत और नाइंसाफी का शिकार होना क्या होता है। (यूहन्‍ना 5:15-18; 11:53, 54; 18:38–19:16) आखिरकार, वह अपने पिता की इच्छा पूरी करने और अपनी प्रजा को हमेशा की ज़िंदगी देने के लिए बेखौफ होकर दर्दनाक मौत सहने को तैयार हो गया। (यूहन्‍ना 3:16) क्या मसीह के ये गुण आपको उसकी सेवा वफादारी से करते रहने के लिए नहीं उकसाते? (इब्रानियों 13:8; प्रकाशितवाक्य 5:6-10) लेकिन मसीह की प्रजा बनने के लिए हमें क्या करना होगा?

प्रजा बनने की माँगें

8. मसीह की प्रजा बनने की क्या माँगें हैं?

8 ज़रा इस उदाहरण पर गौर कीजिए: किसी दूसरे देश में बसने के लिए आम तौर पर एक इंसान को कुछ बुनियादी माँगें पूरी करनी पड़ती हैं। जैसे, उसका चरित्र अच्छा होना चाहिए और उसे स्वास्थ्य से जुड़ी कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। ठीक उसी तरह, मसीह की प्रजा बनने की कुछ माँगें हैं। जैसे एक इंसान को ऊँचे नैतिक स्तर मानने चाहिए और आध्यात्मिक मायने में सेहतमंद होना चाहिए।—1 कुरिन्थियों 6:9-11; गलतियों 5:19-23.

9. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम मसीह के वफादार हैं?

9 यीशु मसीह पूरे हक से अपनी प्रजा से यह भी माँग करता है कि वह उसके और उसके राज्य की वफादार रहे। उसकी प्रजा के लोग कैसे दिखा सकते हैं कि वे उसके वफादार हैं? उन शिक्षाओं पर चलकर जो धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने सिखायी थीं। जैसे, वे दौलत या ऐशो-आराम की चीज़ों के पीछे भागने के बजाय, राज्य के कामों और परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं। (मत्ती 6:31-34) वे हरदम मसीह के जैसे गुण दिखाने की कोशिश करते हैं, तब भी जब ऐसा करना आसान नहीं होता। (1 पतरस 2:21-23) यही नहीं, मसीह की प्रजा के लोग उसके आदर्श पर चलकर हमेशा आगे आकर दूसरों की भलाई करने की कोशिश करते हैं।—मत्ती 7:12; यूहन्‍ना 13:3-17.

10. (क) परिवार और (ख) कलीसिया में, मसीह को वफादारी कैसे दिखायी जा सकती है?

10 यीशु के चेले एक और तरीके से उसे अपनी वफादारी दिखाते हैं और वह है, अपने परिवार में उसके जैसे गुण दिखाकर। मिसाल के लिए जब एक पति अपने बीवी-बच्चों के संग उसी तरह पेश आता है जिस तरह यीशु अपनी कलीसिया के साथ पेश आता है, तो वह खुद को अपने स्वर्गीय राजा का वफादार साबित करता है। (इफिसियों 5:25, 28-30; 6:4; 1 पतरस 3:7) पत्नी अपने पवित्र चालचलन से और “नम्रता और मन की दीनता” जैसे गुण दिखाकर मसीह के लिए वफादारी दिखाती है। (1 पतरस 3:1-4; इफिसियों 5:22-24) और बच्चे, मसीह की तरह अपने माता-पिता का कहना मानकर अपनी वफादारी दिखाते हैं। जब यीशु छोटा था, उसने अपने माता-पिता का कहना माना इसके बावजूद कि वे असिद्ध थे, मगर वह सिद्ध था। (लूका 2:51, 52; इफिसियों 6:1) इसके अलावा, मसीह की प्रजा कलीसिया में भी उसे वफादारी दिखाती है। कैसे? ‘भाइयों से प्रेम करने, कृपालु और दयालु’ (NHT) बनने में वे यीशु के नक्शेकदम पर चलने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। वे मसीह के जैसे ‘नम्र बनने, बुराई के बदले बुराई न करने; और न गाली के बदले गाली देने’ में अपना भरसक करते हैं।—1 पतरस 3:8, 9; 1 कुरिन्थियों 11:1.

कायदे-कानून माननेवाली प्रजा

11. मसीह की प्रजा किन व्यवस्थाओं के अधीन रहती है?

11 जो लोग एक नए देश के नागरिक बनना चाहते हैं, वे उस देश के कायदे-कानून को मानते हैं। उसी तरह यीशु की प्रजा “मसीह की व्यवस्था” पर चलती है। यानी वह उसकी शिक्षाओं और आज्ञाओं के मुताबिक जीती है। (गलतियों 6:2) वे लोग खासकर प्रेम की “राज्य व्यवस्था” को मानकर अपनी वफादारी दिखाते हैं। (याकूब 2:8) इन व्यवस्थाओं के अधीन रहने का क्या मतलब है?

12, 13. हम वफादारी दिखाते हुए “मसीह की व्यवस्था” के अधीन कैसे रहते हैं?

12 मसीह की प्रजा के लोग असिद्ध हैं और उनमें कमज़ोरियाँ हैं। (रोमियों 3:23) इसलिए सभी को “भाईचारे की निष्कपट प्रीति” बढ़ाते रहने की ज़रूरत है ताकि वे ‘तन मन लगाकर एक दूसरे से अधिक प्रेम रख’ सकें। (1 पतरस 1:22) “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो,” तो भी मसीहियों को ‘एक दूसरे की सह लेना [चाहिए] और एक दूसरे के अपराध क्षमा कर’ देने चाहिए। ऐसा करके वे मसीह की व्यवस्था को मानते हैं और अपनी वफादारी दिखाते हैं। इस व्यवस्था पर चलने से, उन्हें दूसरों की खामियों पर ध्यान देने के बजाय, उनकी खूबियाँ ढूँढ़ने में मदद मिलती है और इस तरह वे एक-दूसरे के लिए अपना प्यार बढ़ा पाते हैं। क्या आप ऐसे लोगों के बीच रहकर खुश नहीं, जो हमारे राजा के वफादार हैं और उसके अधीन रहकर एक-दूसरे को ऐसा प्रेम दिखाते हैं जो “एकता का सिद्ध बन्ध[न]” है? (NHT)—कुलुस्सियों 3:13, 14.

13 इसके अलावा, यीशु ने समझाया कि उसने प्यार की जो मिसाल रखी है, वह उस प्यार से कहीं बढ़कर है जो लोग आम तौर पर एक-दूसरे को दिखाते हैं। (यूहन्‍ना 13:34, 35) अगर हम सिर्फ उन लोगों को प्यार दिखाते हैं जो हमसे प्यार करते हैं, तो हम कोई “बड़ा काम” नहीं कर रहे हैं। ऐसा प्यार अधूरा होता है और उसमें कई कमियाँ होती हैं। इसलिए यीशु ने उकसाया कि हम प्यार दिखाने में उसके पिता की मिसाल पर चलें, जो उसूलों के मुताबिक प्यार दिखाता है। और यह प्यार दिखाने का मतलब है, अपने दुश्‍मनों और सतानेवालों से भी प्रेम रखना। (मत्ती 5:46-48) इसी प्रेम की वजह से परमेश्‍वर के राज्य की प्रजा सबसे खास काम करने में लगी रहती है। यह काम क्या है?

वफादारी परखी जाती है

14. प्रचार का काम इतना ज़रूरी क्यों है?

14 आज, परमेश्‍वर के राज्य की प्रजा को एक बेहद ज़रूरी काम सौंपा गया है। वह है, ‘परमेश्‍वर के राज्य की गवाही देना।’ (प्रेरितों 28:23) यह काम इसलिए ज़रूरी है क्योंकि मसीहाई राज्य ही यहोवा की हुकूमत को बुलंद करेगा। (1 कुरिन्थियों 15:24-28) परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करने से हम सुननेवालों को इस राज्य की प्रजा बनने का मौका देते हैं। और-तो-और, यह संदेश सुनने के बाद लोग जो रवैया दिखाते हैं, वह एक कसौटी बन जाती है जिसकी बिनाह पर हमारा राजा मसीह उनका न्याय करेगा। (मत्ती 24:14; 2 थिस्सलुनीकियों 1:6-10) इसलिए मसीह की आज्ञा मानकर दूसरों को राज्य का संदेश सुनाना, अपनी वफादारी दिखाने का एक खास तरीका है।—मत्ती 28:18-20.

15. मसीहियों की वफादारी क्यों परखी जाती है?

15 मगर शैतान, प्रचार काम को रोकने की हर मुमकिन कोशिश करता है। इसके अलावा, इंसानी सरकारें मसीह के उस अधिकार को मानने से इनकार करती हैं जो परमेश्‍वर ने उसे दिया है। (भजन 2:1-3, 6-8) इसलिए यीशु ने अपने चेलों को आगाह किया: “दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता, . . . यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे।” (यूहन्‍ना 15:20) इसलिए, मसीह के चेले ऐसी आध्यात्मिक लड़ाई लड़ रहे हैं जिसमें उनकी वफादारी परखी जाती है।—2 कुरिन्थियों 10:3-5; इफिसियों 6:10-12.

16. राज्य की प्रजा “जो परमेश्‍वर का है” वह “परमेश्‍वर को” कैसे देती है?

16 परमेश्‍वर के राज्य की प्रजा अपने अनदेखे राजा के वफादार रहने के साथ-साथ, इंसानी सरकारों का भी आदर करती है। (तीतुस 3:1, 2) यीशु ने कहा था: “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्‍वर का है परमेश्‍वर को दो।” (मरकुस 12:13-17) इसलिए मसीह की प्रजा, सरकार के उन कानूनों को मानती है जो परमेश्‍वर के कानून के खिलाफ नहीं हैं। (रोमियों 13:1-7) लेकिन जब उन्हें परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ने को कहा जाता है, तो वे पहली सदी के मसीहियों की मिसाल पर चलते हैं। जब यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत ने यीशु के चेलों को परमेश्‍वर के कानूनों के खिलाफ जाकर प्रचार काम बंद करने का हुक्म सुनाया, तो उन्होंने आदर से मगर पक्के इरादे के साथ कहा: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों 1:8; 5:27-32.

17. जब हमारी वफादारी की परख होती है, तो हम क्यों उसका सामना साहस के साथ कर पाते हैं?

17 बेशक जब मसीह की प्रजा को सताया जाता है, तब ऐसे में अपने राजा के वफादार बने रहने के लिए साहस की ज़रूरत होती है। मगर यीशु ने उनके बारे में कहा था: “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है।” (मत्ती 5:11, 12) मसीह के शुरू के चेलों ने खुद अनुभव किया कि यह बात एकदम सच है। राज्य का प्रचार करते रहने के लिए उन्हें कोड़ों से मारा गया, मगर इसके बाद भी वे खुश थे, क्योंकि वे “उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे। और प्रति दिन मन्दिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है न रुके।” (प्रेरितों 5:41, 42) हम आपको शाबाशी देते हैं कि आप मुश्‍किलों, बीमारियों, अपने अज़ीज़ों की मौत का गम सहने या विरोध के बावजूद ऐसी वफादारी दिखाते हैं, जैसी शुरू के चेलों ने दिखायी थी।—रोमियों 5:3-5; इब्रानियों 13:6.

18. पुन्तियुस पीलातुस से यीशु ने जो कहा, उससे क्या पता चलता है?

18 यीशु जब धरती पर था तो उसने रोमी हाकिम पुन्तियुस पीलातुस से कहा: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं।” (यूहन्‍ना 18:36) यीशु के इन शब्दों से साफ पता चलता है कि उसके राज्य की प्रजा न तो किसी के खिलाफ हथियार उठाती है, न ही दुनिया के लड़ाई-झगड़ों में किसी का पक्ष लेती है। वे दुनिया के मामलों में पूरी तरह निष्पक्ष रहते हैं और इस तरह अपने ‘शान्ति के राजकुमार’ यीशु को वफादारी दिखाते हैं।—यशायाह 2:2-4; 9:6, 7.

वफादार प्रजा के लिए सदा तक रहनेवाले इनाम

19. मसीह की प्रजा को क्यों इतना भरोसा है कि उनका भविष्य उज्ज्वल होगा?

19 ‘राजाओं के राजा’ मसीह की प्रजा को पूरा भरोसा है कि उनका भविष्य उज्ज्वल होगा। उन्हें उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है जब बहुत जल्द राजा यीशु अपना अधिकार और अपनी ताकत दिखाकर दुश्‍मनों का खात्मा कर देगा। (प्रकाशितवाक्य 19:11–20:3; मत्ती 24:30) आत्मा से अभिषिक्‍त, ‘राज्य की वफादार सन्तान’ में से जो जन अब भी इस धरती पर मौजूद हैं, वे उस घड़ी का इंतज़ार कर रहे हैं जब उन्हें स्वर्ग में अपनी अनमोल विरासत हासिल होगी यानी वे राजाओं की हैसियत से मसीह के साथ राज करेंगे। (मत्ती 13:38; लूका 12:32) मसीह की ‘अन्य भेड़ें’ उस दिन की बड़ी आस लगाए हुए हैं जब उनका राजा उन्हें कबूल करते हुए कहेगा: “हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य [में धरती पर फिरदौस] के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है।” (यूहन्‍ना 10:16, NW; मत्ती 25:34) इसलिए आइए, राज्य की प्रजा का हरेक जन यह ठान ले कि वह अपने राजा मसीह की सेवा वफादारी से करता रहेगा।

[फुटनोट]

^ बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब का अतिरिक्‍त लेख, “सन्‌ 1914—बाइबल की भविष्यवाणी का अहम साल,” पेज 215-18 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

क्या आप समझा सकते हैं?

• मसीह क्यों हमारी वफादारी का हकदार है?

• मसीह की प्रजा कैसे दिखाते हैं कि वे उसके वफादार हैं?

• हम क्यों अपने राजा, मसीह के वफादार रहना चाहते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 31 पर बक्स]

मसीह के और भी बेमिसाल गुण

निष्पक्षतायूहन्‍ना 4:7-30.

करुणामत्ती 9:35-38; 12:18-21; मरकुस 6:30-34.

दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाला प्यारयूहन्‍ना 13:1; 15:12-15.

वफादारीमत्ती 4:1-11; 28:20; मरकुस 11:15-18.

हमदर्दीमरकुस 7:32-35; लूका 7:11-15; इब्रानियों 4:15, 16.

कोमलतामत्ती 15:21-28.

[पेज 29 पर तसवीर]

एक-दूसरे के लिए प्यार दिखाकर हम “मसीह की व्यवस्था” के अधीन रहते हैं और अपनी वफादारी दिखाते हैं

[पेज 31 पर तसवीरें]

क्या मसीह के गुण आपको उसकी सेवा वफादारी से करने के लिए उकसाते हैं?