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खराई की राह पर चलने से मिलनेवाली खुशियाँ

खराई की राह पर चलने से मिलनेवाली खुशियाँ

खराई की राह पर चलने से मिलनेवाली खुशियाँ

“यहोवा के वरदान से जो धन मिलता है, उसके साथ वह कोई दु:ख नहीं जोड़ता।”—नीतिवचन 10:22, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

1, 2. हमें क्यों सावधान रहना चाहिए कि आनेवाले कल की चिंता में हम पूरी तरह डूब न जाएँ?

 “हम अकसर आनेवाले कल की चिंता में इतने डूबे रहते हैं कि . . . आज हमारे पास जो है उसका मज़ा नहीं ले पाते।” ये शब्द एक अमरीकी दार्शनिक के हैं। देखा जाए तो बच्चों के बारे में यह बात सौ-फीसदी सच है। उन्हें लगता है कि बड़ा होना कितना अच्छा होता है। उनके हिसाब से जो काम बड़े कर सकते हैं वे बच्चे नहीं कर सकते। इस वजह से वे बचपन का पूरा मज़ा नहीं ले पाते, और देखते-ही-देखते बचपन उनके हाथ से निकल जाता है।

2 कभी-कभी हम यहोवा के सेवक भी इसी तरह सोचते हैं। आइए देखें कि हमारे साथ यह कैसे हो सकता है। हम सब उस दिन को देखने के लिए तरसते हैं जब परमेश्‍वर धरती को फिरदौस बनाने का अपना वादा पूरा करेगा। हम बड़ी बेसब्री से उस ज़िंदगी की राह तक रहे हैं जब बीमारी, बुढ़ापा, दर्द और तकलीफें नहीं रहेंगी। इन आशीषों की आस लगाए रहना अच्छी बात है। लेकिन, बढ़िया सेहत पाने और शरीर के दुःख-दर्द से छुटकारा पाने की उम्मीद ही अगर हमारे दिलो-दिमाग पर छायी रहे और हम उन आध्यात्मिक आशीषों को न देख पाएँ जो परमेश्‍वर आज हमें दे रहा है, तो क्या यह दुःख की बात नहीं होगी? खासकर अगर नयी दुनिया उस वक्‍त के अंदर नहीं आती जैसा हमने सोचा था, तो हम निराश हो जाएँगे और हमारा ‘मन शिथिल होगा क्योंकि हमारी आशा पूरी होने में विलम्ब हुआ है।’ (नीतिवचन 13:12) ज़िंदगी की समस्याएँ हमें निराशा और मायूसी की अंधेरी खाई में धकेल सकती हैं। ऐसे में मुश्‍किलों का सामना करने के बजाय, हम शायद शिकायत करने की आदत बना लें। अगर हम चाहते हैं कि हमारे साथ ऐसा न हो, तो हमें अपनी मौजूदा आशीषों के लिए एहसानमंद होना चाहिए और उन्हें हर पल याद रखना चाहिए।

3. इस लेख में हम किस बात पर ध्यान देंगे?

3 नीतिवचन 10:22 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कहता है: “यहोवा के वरदान से जो धन मिलता है, उसके साथ वह कोई दु:ख नहीं जोड़ता।” आज यहोवा के सेवकों की आध्यात्मिक खुशहाली क्या ऐसा वरदान नहीं जिसे पाकर हमें खुश होना चाहिए? आइए हम अपने आध्यात्मिक धन से मिलनेवाली कुछ आशीषों पर ध्यान दें और देखें कि ये हमारे लिए क्या मायने रखती हैं। यहोवा ने ‘खराई से चलनेवाले अपने धर्मी’ लोगों पर जो करम किए हैं, आइए कुछ वक्‍त के लिए उनके बारे में सोचें। इससे हमारा यह इरादा और भी पक्का होगा कि हम अपने स्वर्गीय पिता की सेवा खुशी-खुशी करते रहेंगे।—नीतिवचन 20:7.

हमारी ज़िंदगी को खुशियों से भरनेवाले ‘वरदान’

4, 5. बाइबल की किस शिक्षा को आप खास तौर पर पसंद करते हैं, और क्यों?

4 हमने बाइबल की शिक्षाओं का सही-सही ज्ञान पाया है। आम तौर पर ईसाईजगत के सभी धर्म बाइबल को मानने का दावा करते हैं। मगर बाइबल जो सिखाती है उस पर वे एकमत नहीं होते। एक ही ईसाई समूह के लोग बाइबल की शिक्षाओं के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं। उनकी हालत यहोवा के सेवकों से कितनी अलग है! जी हाँ, हम यहोवा के सेवक चाहे किसी भी देश, संस्कृति या जाति के हों, हम सभी सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करते हैं जिसे हम उसके नाम से जानते हैं। हमारे लिए वह कोई अनजाना त्रियेक ईश्‍वर नहीं है। (व्यवस्थाविवरण 6:4; भजन 83:18; मरकुस 12:29) हम यह भी जानते हैं कि सारे जहान पर परमेश्‍वर के हुकूमत करने के हक का मसला बहुत जल्द सुलझाया जाएगा और हमें भी अपनी खराई बनाए रखने की ज़रूरत है क्योंकि हम भी उस मसले में शामिल हैं। हम मरे हुओं के बारे में सच्चाई जानते हैं और इसलिए हमें ऐसे परमेश्‍वर का खौफ नहीं सताता जो लोगों के हिसाब से इंसानों को नरक की आग में तड़पाता है या उन्हें पापों से शुद्ध करने के लिए परगेट्री जैसी जगह भेज देता है।—सभोपदेशक 9:5, 10.

5 यही नहीं, हमें यह जानकर भी खुशी मिलती है कि हम अपने आप ही विकासवाद से वजूद में नहीं आ गए। बल्कि हम परमेश्‍वर की रचना हैं और उसी के स्वरूप में बनाए गए हैं। (उत्पत्ति 1:26; मलाकी 2:10) भजनहार ने अपने परमेश्‍वर की महिमा करते हुए गीत गाया: “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्‌भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्‍चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।”—भजन 139:14.

6, 7. आपकी या जिन लोगों को आप जानते हैं उनकी ज़िंदगी में आपने कौन-से बदलाव देखे हैं जिनका अच्छा अंजाम निकला है?

6 हमने नुकसानदेह आदतों से छुटकारा पाया है। सिगरेट पीने, बहुत ज़्यादा शराब पीने और नाजायज़ लैंगिक संबंध रखने के खतरों के बारे में रेडियो, टी.वी. और दूसरे तरीकों से लोगों को आगाह किया जाता है। मगर लोग ऐसी चेतावनियों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। लेकिन, जब एक नेक इंसान को पता चलता है कि सच्चा परमेश्‍वर ऐसे कामों से सख्त नफरत करता है और जब लोग ऐसे काम करते हैं तो उसे दुःख होता है, तब क्या होता है? उस नेक इंसान का दिल उससे कहता है कि वह ऐसे कामों से पूरी तरह नाता तोड़ ले। (यशायाह 63:10; 1 कुरिन्थियों 6:9, 10; 2 कुरिन्थियों 7:1; इफिसियों 4:30) हालाँकि वह नेकदिल इंसान, यहोवा परमेश्‍वर को खुश करने के लिए ऐसे काम छोड़ देता है, मगर उसे और भी कई फायदे होते हैं। जैसे उसकी सेहत सुधरती है और उसे मन की शांति मिलती है।

7 बुरी आदतें छोड़ना कई लोगों के लिए बहुत मुश्‍किल होता है। फिर भी, हर साल हज़ारों लोग अपनी बुरी आदतें छोड़ रहे हैं। वे यहोवा को अपना समर्पण करते हैं और पानी में बपतिस्मा लेते हैं। इस तरह वे सब लोगों पर ज़ाहिर करते हैं कि उन्होंने ऐसे काम करना छोड़ दिया है जिनसे परमेश्‍वर नाराज़ होता है। उन्हें देखकर हम सबकी भी हिम्मत बढ़ती है। हमारा यह पक्का इरादा और भी मज़बूत होता है कि हम ऐसे काम हरगिज़ नहीं करेंगे जो परमेश्‍वर की नज़र में पाप हैं और जिनसे हमारा नुकसान होता है।

8. बाइबल की कौन-सी सलाह परिवार को सुखी बनाती है?

8 सुखी परिवार। आज बहुत-से देशों में परिवार बिखरते जा रहे हैं। कई परिवार तलाक की वजह से टूटकर बिखर जाते हैं और मासूम बच्चे अपने माँ या बाप से जुदा होने के सदमे को बरदाश्‍त नहीं कर पाते। यूरोप के कुछ देशों में हर पाँच परिवारों में से एक परिवार में या तो सिर्फ माँ है या पिता, जो अकेले बच्चों की देखरेख कर रहे हैं। अपने परिवार के मामले में, यहोवा ने हमें खराई की राह पर चलने में कैसे मदद दी है? ज़रा इफिसियों 5:22–6:4 पढ़िए और गौर कीजिए कि परमेश्‍वर के वचन में पति, पत्नी और बच्चों के लिए कितनी बढ़िया सलाह दी गयी है। इन आयतों में और बाइबल की दूसरी आयतों में जो लिखा है, उस पर अमल करने से शादी का बंधन बेशक मज़बूत होगा, बच्चों की सही तरह से परवरिश करने में मदद मिलेगी और इस तरह परिवार की खुशी बढ़ेगी। क्या यह एक ऐसी आशीष नहीं जिससे हमें खुश होना चाहिए?

9, 10. भविष्य के बारे में हमारा नज़रिया दुनिया के नज़रिए से कैसे अलग है?

9 हमें यकीन है कि दुनिया की समस्याएँ बहुत जल्द दूर होंगी। विज्ञान और टैक्नॉलॉजी की तरक्की और कई नेताओं की नेक कोशिशों के बावजूद दुनिया की बड़ी-बड़ी समस्याओं का कोई हल नहीं निकल पाया है। ‘वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम’ नाम की संस्था के संस्थापक, क्लाउस श्‍वाप ने हाल ही में कहा कि “दुनिया के आगे मौजूद चुनौतियाँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं और उन्हें सुलझाने का वक्‍त कम होता जा रहा है।” उन्होंने बताया कि ये “ऐसी आफतें हैं जो किसी भी देश को नहीं बख्शतीं, जैसे आतंकवाद, पर्यावरण का बिगड़ना और अर्थ-व्यवस्था का लड़खड़ाना।” श्‍वाप ने आखिर में कहा: “आज ऐसा वक्‍त आ गया है, जब दुनिया को हकीकत का सामना करना होगा और सबको मिलकर और जल्द-से-जल्द कार्रवाई करनी होगी।” इक्कीसवीं सदी के साल जैसे-जैसे निकल रहे हैं, इंसान का भविष्य और ज़्यादा अंधकारमय दिखायी दे रहा है।

10 मगर हमें यह जानकर कितनी खुशी होती है कि यहोवा ने एक ऐसा इंतज़ाम किया है जो इंसान की सारी समस्याओं को सुलझा सकता है। वह है, परमेश्‍वर का मसीहाई राज्य! इस राज्य के ज़रिए सच्चा परमेश्‍वर ‘लड़ाइयों को मिटा देगा’ और ‘बहुत शान्ति’ ले आएगा। (भजन 46:9; 72:7) अभिषिक्‍त राजा, यीशु मसीह ‘दोहाई देनेवाले दरिद्र का, और दुःखी मनुष्य का उद्धार करेगा। वह कंगाल के प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा।’ (भजन 72:12-14) मसीह के राज्य में, खाने की कोई कमी नहीं होगी। (भजन 72:16) यहोवा हमारी “आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” (प्रकाशितवाक्य 21:4) यह राज्य स्वर्ग में शुरू हो चुका है और बहुत जल्द इस धरती की हर समस्या को सुलझाने के लिए कदम उठानेवाला है।—दानिय्येल 2:44; प्रकाशितवाक्य 11:15.

11, 12. (क) क्या मौज-मस्ती से हमेशा कायम रहनेवाली खुशी मिलती है? समझाइए। (ख) सच्ची खुशी किससे मिलती है?

11 हम जानते हैं कि सच्ची खुशी कैसे मिलती है। असल में सच्ची खुशी किससे मिलती है? एक मनोवैज्ञानिक ने कहा कि खुशी तीन बातों से मिलती है—मौज-मस्ती, काम-काज (अपने काम-काज से या परिवार के साथ मिलकर कुछ करने से) और कोई अच्छा काम (खुद का नहीं बल्कि दूसरों का भला) करने से। इन तीनों में से उसने मौज-मस्ती को सबसे कम अहमियत दी और कहा: “यह खबर दरअसल सारी दुनिया को बतायी जानी चाहिए, क्योंकि बहुत-से लोग मानते हैं कि मौज-मस्ती ही ज़िंदगी है।” इस बारे में बाइबल क्या कहती है?

12 प्राचीन इस्राएल के राजा सुलैमान ने कहा: “मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जाँचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है। मैं ने हँसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है?” (सभोपदेशक 2:1, 2) बाइबल दिखाती है कि मौज-मस्ती करने से बस दो पल की खुशी हासिल होती है। लेकिन काम-काज से मिलनेवाली खुशी के बारे में क्या? हमारे पास सबसे बेहतरीन काम है और वह है, राज्य का प्रचार करना और चेले बनाना। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) बाइबल में उद्धार का जो संदेश दिया है, उसे दूसरों को सुनाने से हम एक ऐसा काम करते हैं जिससे न सिर्फ हमारी, बल्कि उनकी भी जान बचेगी जो हमारी बात सुनते हैं। (1 तीमुथियुस 4:16) इस काम में “परमेश्‍वर के सहकर्मी” होने के नाते, हम खुद यह महसूस करते हैं कि “लेने से देने में अधिक सुख है।” (1 कुरिन्थियों 3:9; प्रेरितों 20:35, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इस काम की वजह से हमारी ज़िंदगी को मकसद मिलता है और हमारे सिरजनहार को मौका मिलता है कि शैतान इब्‌लीस के तानों का जवाब दे। (नीतिवचन 27:11) यकीनन, यहोवा ने हमें दिखाया है कि ईश्‍वरीय भक्‍ति से सच्ची और हमेशा तक कायम रहनेवाली खुशी मिलती है।—1 तीमुथियुस 4:8.

13. (क) परमेश्‍वर की सेवा स्कूल किस तरह हमारे लिए एक आशीष साबित हुआ है? (ख) आपको परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से क्या फायदा हुआ है?

13 हम एक ज़रूरी और बढ़िया कार्यक्रम के ज़रिए तालीम पा रहे हैं। गेरहार्त, यहोवा के साक्षियों की कलीसिया में एक प्राचीन की हैसियत से सेवा कर रहा है। अपना बचपन याद करते हुए वह कहता है: “जब मैं छोटा था, तो मुझे बात करने में बड़ी मुश्‍किल होती थी। अगर मैं किसी वजह से परेशान होता, तो मैं साफ-साफ नहीं बोल पाता था और हकलाने लगता था। मैं बहुत मायूस हो गया और यह मानने लगा कि मैं कभी दूसरों की तरह नहीं बोल पाऊँगा। मम्मी-पापा ने बोलने में मदद करने के लिए मुझे एक कोर्स भी करवाया मगर उनकी कोशिशों का कोई फायदा नहीं हुआ। खराबी मेरे बोलने के अंगों में नहीं बल्कि मेरे सोचने के तरीके में थी। ऐसे में, यहोवा के एक बेहतरीन इंतज़ाम से मुझे फायदा हुआ। वह है, परमेश्‍वर की सेवा स्कूल। इस स्कूल में दाखिल होने से मुझे बोलने की हिम्मत मिली। मैंने स्कूल से मिलनेवाले हर सुझाव पर अमल करने की पूरी-पूरी कोशिश की। इससे मुझे बहुत फायदा हुआ! मैं ज़्यादा आराम से अपनी बात कहने लगा, मेरी मायूसी दूर हो गयी और प्रचार में मैं ज़्यादा अच्छी तरह हिस्सा लेने लगा। अब मैं जन भाषण भी दे पाता हूँ। मैं यहोवा का दिल से एहसानमंद हूँ जिसने इस स्कूल के ज़रिए मुझे नयी ज़िंदगी दी।” यहोवा हमें तालीम देता है ताकि हम उसका काम अच्छी तरह कर पाएँ। क्या ऐसी तालीम से हमें खुशी नहीं मिलती?

14, 15. मुसीबत के वक्‍त में किस तरह की मदद फौरन मिलती है? उदाहरण देकर समझाइए।

14 हमने यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम किया है और दुनिया-भर के भाइयों का सहारा भी पाया है। जर्मनी में रहनेवाली कात्रीन ने जब दक्षिण-पश्‍चिम एशिया में आए एक खतरनाक भूकंप और उसकी वजह से उठीं सुनामी लहरों के बारे में सुना तो उसका सुख-चैन छिन गया। जब यह कहर टूटा तो उसकी बेटी थाइलैंड में थी। बत्तीस घंटों तक कात्रीन यह पता नहीं लगा पायी कि उसकी बेटी ज़िंदा भी है या नहीं। मरनेवालों की गिनती घंटे-दर-घंटे बढ़ती जा रही थी। आखिरकार कात्रीन को फोन आया कि उसकी बेटी सही-सलामत है। यह सुनकर उसकी जान में जान आयी!

15 परेशानी और कशमकश की उन घड़ियों में कात्रीन को किस बात से मदद मिली? वह लिखती है: “मैं लगभग सारा वक्‍त यहोवा से प्रार्थना करती रही। मैंने बार-बार देखा कि इससे मुझे कितनी हिम्मत और मन की शांति मिली। यही नहीं, मेरे प्यारे मसीही भाई-बहन मुझसे मिलने आए और उन्होंने भी मेरी हिम्मत बढ़ायी।” (फिलिप्पियों 4:6, 7) सोचिए, अगर कात्रीन प्रार्थना के ज़रिए यहोवा से मदद न माँग पाती और उसे आध्यात्मिक भाई-बहनों का सहारा न मिलता, तो परेशानी का वह वक्‍त कैसे कटता! यहोवा और उसके बेटे के साथ हमारा करीबी रिश्‍ता और मसीही भाईचारे का नज़दीकी साथ ऐसी अनमोल और अनोखी आशीषें हैं जो हमें कहीं और नहीं मिलेंगी। इसलिए हमें इन आशीषों के लिए दिलो-जान से एहसानमंद होना चाहिए!

16. पुनरुत्थान की आशा की अहमियत समझाने के लिए एक अनुभव बताइए।

16 हमें अपने मरे हुए अज़ीज़ों से दोबारा मिलने की उम्मीद है। (यूहन्‍ना 5:28, 29) मत्तीआस नाम के एक नौजवान की परवरिश साक्षी परिवार में हुई थी। मगर उसने अपनी आशीषों की कभी कदर नहीं की और जब वह लड़का ही था तब मसीही कलीसिया से धीरे-धीरे दूर हो गया। अब वह लिखता है: “मैं ने अपने पापा के साथ कभी गहरी और गंभीर बातों पर चर्चा नहीं की थी। कई बार मेरा उनके साथ झगड़ा भी हुआ। फिर भी, पापा चाहते थे कि मैं एक अच्छी ज़िंदगी जीऊँ। वे मुझसे बहुत प्यार करते थे, मगर मैं उस वक्‍त उनके प्यार को समझ नहीं पाया। सन्‌ 1996 में जब पिताजी बहुत बीमार हो गए, तो मैं उनके बिस्तर के सिरहाने बैठा फूट-फूटकर रो रहा था। पापा का हाथ मेरे हाथ में था और मैं उन्हें बताना चाहता था कि मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूँ और मैं भी उनसे बहुत-बहुत प्यार करता हूँ। मगर वे मेरी आवाज़ सुन नहीं सकते थे। फिर कुछ समय की बीमारी के बाद वे चल बसे। जब पापा का पुनरुत्थान होगा, तब अगर मुझे उनसे मिलने का मौका मिला, तो जो मैं पहले नहीं कर पाया वह तब ज़रूर करूँगा। और पापा को यह जानकर ज़रूर खुशी होगी कि मैं अब एक प्राचीन हूँ और अपनी पत्नी के साथ पायनियर सेवा कर रहा हूँ।” वाकई, पुनरुत्थान की आशा हमारे लिए कितनी बड़ी आशीष है!

“वह कोई दु:ख नहीं जोड़ता”

17. यहोवा की आशीषों पर ध्यान लगाने से हमें कैसे मदद मिलती है?

17 स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के बारे में यीशु मसीह ने कहा: “वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।” (मत्ती 5:45) अगर यहोवा परमेश्‍वर अधर्मियों और दुष्टों को आशीषें देता है, तो जो खराई की राह पर चल रहे हैं उन्हें वह और कितनी ज़्यादा आशीषें देगा! भजन 84:11 कहता है: “जो लोग खरी चाल चलते हैं, उन से [यहोवा] कोई अच्छा पदार्थ रख न छोड़ेगा।” जब हम इस बात पर ध्यान लगाते हैं कि परमेश्‍वर ने किस खास तरीके से हमारी देखभाल और परवाह की है, तो हमारा दिल एहसानमंदी और खुशी से भर जाता है!

18. (क) यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा आशीष के साथ कभी दुःख नहीं देता? (ख) परमेश्‍वर के कई वफादार सेवकों पर दुःख-तकलीफें क्यों आती हैं?

18 “यहोवा के वरदान” से ही उसके लोगों को आध्यात्मिक धन हासिल हुआ है। और हमें पूरा यकीन है कि “उसके साथ वह कोई दु:ख नहीं जोड़ता।” (नीतिवचन 10:22, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अगर ऐसा है तो फिर परमेश्‍वर के कई वफादार सेवकों पर इतनी परीक्षाएँ और मुसीबतें क्यों आती हैं और इनकी वजह से उन्हें इतना दुःख-दर्द क्यों सहना पड़ता है? हम तीन खास वजहों से दुःख-तकलीफों और मुसीबतों का सामना करते हैं। (1) हमारा अपना पापी स्वभाव। (उत्पत्ति 6:5; 8:21; याकूब 1:14, 15) (2) शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ। (इफिसियों 6:11, 12) (3) यह दुष्ट संसार। (यूहन्‍ना 15:19) यहोवा हमारे साथ बुरा होने की इजाज़त देता है, मगर वह खुद हमारे साथ बुरा नहीं करता। सच तो यह है कि “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है।” (याकूब 1:17) यहोवा आशीषों के साथ कभी दुःख नहीं देता।

19. खराई की राह पर चलते रहनेवालों को भविष्य में क्या मिलेगा?

19 आध्यात्मिक खुशहाली के लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा के करीब आएँ। जब हम यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता जोड़ लेते हैं, तो हम ‘आगे के लिये एक अच्छी नेव डालते हैं, कि सत्य जीवन को,’ जी हाँ, हमेशा की ज़िंदगी को “वश में कर लें।” (1 तीमुथियुस 6:12, 17-19) परमेश्‍वर की नयी दुनिया में, हमें आध्यात्मिक धन के साथ-साथ शारीरिक आशीषें भी मिलेंगी। उस दुनिया में, “यहोवा की सुनने[वालों]” को असली ज़िंदगी हासिल होगी। (व्यवस्थाविवरण 28:2) तो फिर, आइए हम अपना यह इरादा और भी मज़बूत करें कि हम खराई की राह पर खुशी-खुशी चलते रहेंगे।

आपने क्या सीखा?

• आनेवाले कल की चिंता में डूबे रहना क्यों अक्लमंदी नहीं है?

• आज हम किन आशीषों का आनंद उठा रहे हैं?

• परमेश्‍वर के वफादार सेवकों पर दुःख-तकलीफें क्यों आती हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]