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‘जीवन को चुन ले कि तू जीवित रहे’

‘जीवन को चुन ले कि तू जीवित रहे’

‘जीवन को चुन ले कि तू जीवित रहे’

“मैंने तुम्हारे सामने जीवन तथा मृत्यु, और आशिष तथा शाप रखा है, अतः जीवन को चुन ले कि तू . . . जीवित रहे।”—व्यवस्थाविवरण 30:19, NHT.

1, 2. किन मायनों में इंसान को परमेश्‍वर के स्वरूप में बनाया गया था?

 परमेश्‍वर ने कहा: “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं।” यह बात बाइबल के सबसे पहले अध्याय में दर्ज़ है। इसके बाद, जैसा उत्पत्ति 1:26, 27 बताता है: “परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्पन्‍न किया।” इसलिए पहला इंसान, धरती पर दूसरी सारी सृष्टि से जुदा था। वह अपने सिरजनहार की तरह था, यानी उसमें परमेश्‍वर की तरह सोचने-समझने, साथ ही प्रेम, बुद्धि, न्याय और शक्‍ति ज़ाहिर करने की काबिलीयत थी। उसे विवेक दिया गया था ताकि वह सोच-समझकर ऐसे फैसले कर सके जिनसे उसे खुद फायदा होता और स्वर्ग में रहनेवाला उसका पिता भी खुश होता। (रोमियों 2:15) चंद शब्दों में कहें तो आदम को आज़ाद मरज़ी का मालिक बनाया गया था। यहोवा ने धरती पर अपने बेटे, आदम को ध्यान से देखने के बाद कहा: ‘देखो, यह बहुत ही अच्छा है।’—उत्पत्ति 1:31; भजन 95:6.

2 आदम की संतान होने के नाते, हम भी परमेश्‍वर के स्वरूप और उसकी समानता में बने हैं। लेकिन क्या वाकई हमें अपनी मरज़ी से चुनाव करने की आज़ादी दी गयी है? बिलकुल। हालाँकि यहोवा परमेश्‍वर के पास भविष्य जानने की काबिलीयत है, फिर भी वह पहले से यह मुकर्रर नहीं कर देता कि हर इंसान कैसे-कैसे काम करेगा और उसे इसके क्या-क्या अंजाम भुगतने पड़ेंगे। उसने धरती पर जीनेवाले अपने बच्चों की तकदीर पहले से नहीं लिख रखी है। हमें अपनी आज़ाद मरज़ी का इस तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए जिससे कि हम सही चुनाव कर सकें। यह समझने के लिए आइए हम सबसे पहले इस्राएल जाति से एक सबक सीखें।—रोमियों 15:4.

इस्राएलियों को चुनाव करने की आज़ादी थी

3. दस आज्ञाओं में से पहली आज्ञा क्या थी, और वफादार इस्राएलियों ने कैसे इस आज्ञा को मानने का चुनाव किया?

3 यहोवा ने इस्राएलियों से कहा था: “तेरा परमेश्‍वर यहोवा, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात्‌ मिस्र देश में से निकाल लाया है, वह मैं हूं।” (व्यवस्थाविवरण 5:6) इन शब्दों पर भरोसा रखने की इस्राएलियों के पास हर वजह मौजूद थी, क्योंकि सा.यु.पू. 1513 में यहोवा ने ही उन्हें मिस्र की गुलामी से बहुत ही हैरतअँगेज़ तरीके से छुड़ाया था। उसने मूसा के ज़रिए उन्हें जो दस आज्ञाएँ दीं, उनमें से पहली आज्ञा यह थी: “तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्‍वर करके न मानना।” (निर्गमन 20:1, 3) उस मौके पर, इस्राएल जाति ने इस आज्ञा को मानने का चुनाव किया। उन्होंने अपनी मरज़ी से सिर्फ यहोवा की उपासना और भक्‍ति की।—निर्गमन 20:5; गिनती 25:11.

4. (क) मूसा ने इस्राएलियों के सामने क्या चुनाव रखा? (ख) आज हमारे सामने क्या चुनाव है?

4 इसके करीब 40 साल बाद, मूसा ने इस्राएल जाति की नयी पीढ़ी को ज़ोर देकर याद दिलाया कि उनके सामने क्या चुनाव रखा है। उसने कहा: “आज मैं स्वर्ग तथा पृथ्वी को तुम्हारे विरुद्ध साक्षी ठहराता हूं कि मैंने तुम्हारे सामने जीवन तथा मृत्यु, और आशिष तथा शाप रखा है, अतः जीवन को चुन ले कि तू अपनी सन्तान सहित जीवित रहे।” (व्यवस्थाविवरण 30:19, NHT) इस्राएलियों की तरह हमारे सामने भी चुनाव है। जी हाँ, हम या तो हमेशा की ज़िंदगी की आस देखते हुए यहोवा की वफादारी से सेवा करने का चुनाव कर सकते हैं, या फिर उसकी आज्ञा तोड़कर इसके अंजाम भुगतने का चुनाव कर सकते हैं। आइए ऐसी दो मिसालों पर गौर करें जिनमें लोगों ने दो अलग-अलग चुनाव किए।

5, 6. यहोशू ने क्या चुनाव किया, और इसका क्या नतीजा निकला?

5 सामान्य युग पूर्व 1473 में, यहोशू इस्राएलियों की अगुवाई करके उन्हें वादा-ए-मुल्क में ले गया। अपनी मौत से पहले, उसने ज़ोरदार शब्दों में पूरी जाति से यह बिनती की: “यदि यहोवा की सेवा करनी तुम्हें बुरी लगे, तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे, चाहे उन देवताओं की जिनकी सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, और चाहे एमोरियों के देवताओं की सेवा करो जिनके देश में तुम रहते हो।” फिर अपने परिवार के बारे में उसने आगे कहा: “मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूंगा।”—यहोशू 24:15.

6 कुछ समय पहले, यहोवा ने यहोशू को मज़बूत रहने और हिम्मत रखने का बढ़ावा दिया था। उसने यह भी हिदायत दी थी कि उसे परमेश्‍वर की व्यवस्था से कभी नहीं मुकरना चाहिए, बल्कि व्यवस्था की किताब को दिन रात पढ़कर उस पर ध्यान करना चाहिए, तभी वह अपने सब कामों में सफल होगा। (यहोशू 1:7, 8) यहोशू ने परमेश्‍वर के कहे मुताबिक काम किया और नतीजा, उसे कामयाबी मिली। यहोवा की बात मानने का चुनाव करके यहोशू को ढेरों आशिषें मिलीं। वह कहता है: “जितनी भलाई की बातें यहोवा ने इस्राएल के घराने से कही थीं उन में से कोई बात भी न छूटी; सब की सब पूरी हुई।”—यहोशू 21:45.

7. यशायाह के दिनों में कुछ इस्राएलियों ने क्या चुनाव किया, और इसका क्या अंजाम निकला?

7 इसके उलट, ध्यान दीजिए कि करीब 700 साल बाद इस्राएलियों ने क्या चुनाव किया। उस वक्‍त तक, बहुत-से इस्राएली झूठे धर्म के रीति-रिवाज़ों को मानने लगे थे। मिसाल के लिए, साल के आखिरी दिन लोग एक दावत के लिए जमा होते थे और मेज़ पर तरह-तरह का लज़ीज़ खाना और नया दाखमधु सजाया जाता था। यह कोई परिवार की दावत नहीं थी, बल्कि एक धार्मिक समारोह था जिसमें दो झूठे देवताओं का सम्मान किया जाता था। भविष्यवक्‍ता यशायाह ने लिखा कि परमेश्‍वर इस विश्‍वासघात को किस नज़र से देखता है: “तुम जो यहोवा को त्याग देते और मेरे पवित्र पर्वत को भूल जाते हो, जो भाग्य देवता के लिये मेज़ पर भोजन की वस्तुएं सजाते और भावी देवी के लिये मसाला मिला हुआ दाखमधु भर देते हो।” उनका मानना था कि अगले साल की अच्छी फसल, उन्हें यहोवा की आशीष से नहीं बल्कि “भाग्य देवता” और “भावी देवी” को खुश करने से मिलेगी। उन्होंने अपनी मरज़ी से और जानबूझकर परमेश्‍वर के खिलाफ जाने का चुनाव किया, और इस तरह खुद अपना भविष्य तय कर लिया। परमेश्‍वर ने उनसे कहा: “मैं तुम्हें गिन गिनकर तलवार का कौर बनाऊंगा, और तुम सब घात होने के लिये झुकोगे; क्योंकि, जब मैं ने तुम्हें बुलाया तुम ने उत्तर न दिया, जब मैं बोला, तब तुम ने मेरी न सुनी; वरन जो मुझे बुरा लगता है वही तुम ने नित किया, और जिस से मैं अप्रसन्‍न होता हूं, उसी को तुम ने अपनाया।” (यशायाह 65:11, 12) इस्राएलियों ने गलत चुनाव करके अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। और भाग्य और भावी देवी-देवता उन्हें नाश होने से नहीं बचा पाए।

सही चुनाव करना

8. व्यवस्थाविवरण 30:20 के मुताबिक, सही चुनाव करने के लिए क्या ज़रूरी है?

8 जब मूसा ने इस्राएलियों को जीवन चुनने के लिए उकसाया, तो उसने बताया कि इसके लिए उन्हें ये तीन कदम उठाने की ज़रूरत है: “अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानो, और उस से लिपटे रहो।” (व्यवस्थाविवरण 30:20) आइए हम एक-एक करके इनकी जाँच करें ताकि हम अपनी ज़िंदगी में सही चुनाव कर सकें।

9. हम यहोवा के लिए अपना प्यार कैसे दिखा सकते हैं?

9 अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करो: हम यहोवा की सेवा करने का चुनाव इसलिए करते हैं, क्योंकि हमें उससे प्यार है। इस्राएलियों से सीखे सबक को ध्यान में रखते हुए, हम लैंगिक अनैतिकता के फँदों से खबरदार रहते हैं और ऐसे तौर-तरीकों से दूर रहते हैं जिनकी वजह से हम धन-दौलत की मोह-माया में फँस सकते हैं। (1 कुरिन्थियों 10:11; 1 तीमुथियुस 6:6-10) हम यहोवा की सेवा में लवलीन रहते हैं और उसकी विधियों को मानते हैं। (यहोशू 23:8; भजन 119:5, 8) वादा-ए-मुल्क में कदम रखने से पहले, मूसा ने इस्राएलियों को यह बढ़ावा दिया: “सुनो, मैं ने तो अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार तुम्हें विधि और नियम सिखाए हैं, कि जिस देश के अधिकारी होने जाते हो उस में तुम उनके अनुसार चलो। सो तुम उनको धारण करना और मानना; क्योंकि और देशों के लोगों के साम्हने तुम्हारी बुद्धि और समझ इसी से प्रगट होगी।” (व्यवस्थाविवरण 4:5, 6) आज हमारे सामने यह मौका है कि हम यहोवा की मरज़ी पूरी करने को अपने जीवन में पहली जगह देकर यह दिखाएँ कि हम उससे प्यार करते हैं। अगर हम ऐसा करने का चुनाव करेंगे, तो यहोवा हमें ज़रूर आशीषें देगा।—मत्ती 6:33.

10-12. नूह के दिनों में जो हुआ उस पर गौर करने से हम क्या सबक सीखते हैं?

10 परमेश्‍वर की बात मानो: नूह ‘धर्म का प्रचारक’ था। (2 पतरस 2:5) जलप्रलय से पहले के ज़माने में, लगभग सभी इंसान अपनी ज़िंदगी में इतने खोए हुए थे कि उन्होंने नूह की चेतावनी पर “कोई ध्यान नहीं दिया।” (NW) नतीजा? ‘जल-प्रलय आकर उन सब को बहा ले गया।’ यीशु ने पहले से सावधान कर दिया था कि ‘मनुष्य के पुत्र के आने’ के समय, यानी हमारे दिनों में भी हालात ऐसे ही होंगे। नूह के दिनों में जो हुआ, वह आज के उन लोगों के लिए क्या ही कड़ी चेतावनी है जो परमेश्‍वर के संदेश को अनसुना करने का चुनाव करते हैं।—मत्ती 24:39.

11 जो लोग, आज परमेश्‍वर के सेवकों के ज़रिए दी जानेवाली चेतावनियों का मज़ाक उड़ाते हैं और उन्हें अनसुना करते हैं, उनका यह समझना ज़रूरी है कि ऐसा करने का क्या अंजाम होगा। ऐसे हँसी-ठट्ठा करनेवालों के बारे में प्रेरित पौलुस ने कहा: “वे तो जान बूझकर यह भूल गए, कि परमेश्‍वर के वचन के द्वारा से आकाश प्राचीन काल से वर्तमान है और पृथ्वी भी जल में से बनी और जल में स्थिर है। इन्हीं के द्वारा उस युग का जगत जल में डूब कर नाश हो गया। पर वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिये रखे हैं, कि जलाए जाएं; और वह भक्‍तिहीन मनुष्यों के न्याय और नाश होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे।”—2 पतरस 3:3-7.

12 नूह और उसका परिवार, उन भक्‍तिहीन लोगों की तरह नहीं थे, बल्कि उन्होंने बिलकुल अलग चुनाव किया। “विश्‍वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चितौनी पाकर भक्‍ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया।” नूह ने चेतावनी को मानकर अपने परिवार को नाश होने से बचा लिया। (इब्रानियों 11:7) आइए हम भी परमेश्‍वर के संदेश को सुनने के लिए तत्पर हों और फिर पूरे दिल से उस पर अमल करें।—याकूब 1:19, 22-25.

13, 14. (क) ‘यहोवा से लिपटे रहना’ क्यों ज़रूरी है? (ख) हम खुद को ‘हमारे कुम्हार,’ यहोवा के हवाले कैसे कर सकते हैं ताकि वह हमें ढाल सके?

13 यहोवा से लिपटे रहो: ‘जीवन को चुनने और जीवित रहने’ के लिए हमें न सिर्फ यहोवा की सुनना और उसे प्यार करना चाहिए बल्कि हमें ‘उससे लिपटे भी रहना’ चाहिए, यानी उसकी मरज़ी पूरी करने में लगे रहना चाहिए। यीशु ने कहा था: “धीरज से तुम अपने प्राणों को बचाए रखोगे।” (लूका 21:19) दरअसल, इस मामले में हम क्या चुनाव करते हैं, उससे हमारे दिल में क्या है, यह ज़ाहिर होता। नीतिवचन 28:14 कहता है: “जो मनुष्य निरन्तर प्रभु का भय मानता रहता है वह धन्य है; परन्तु जो अपना मन कठोर कर लेता है वह विपत्ति में पड़ता है।” इसकी एक मिसाल है, प्राचीन मिस्र का फिरौन। जैसे-जैसे एक-के-बाद-एक दस विपत्तियाँ मिस्र देश पर पड़ीं, वैसे-वैसे फिरौन, परमेश्‍वर का भय मानने के बजाय अपना मन कठोर करता गया। यहोवा ने फिरौन को नाफरमानी करने के लिए कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की, बल्कि उस घमंडी शासक को चुनाव करने का मौका दिया। हालाँकि फिरौन ने परमेश्‍वर की आज्ञा नहीं मानी, फिर भी यहोवा का मकसद पूरा हुआ, जैसे कि हम प्रेरित पौलुस की बात से जान सकते हैं। उसने समझाया कि फिरौन के बारे में यहोवा का क्या नज़रिया था: “मैं ने तुझे इसी लिये खड़ा किया है, कि तुझ में अपनी सामर्थ दिखाऊं, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृथ्वी पर हो।”—रोमियों 9:17.

14 इस्राएलियों को फिरौन की गुलामी से छुटकारा मिलने के सदियों बाद, भविष्यवक्‍ता यशायाह ने कहा: “हे यहोवा, तू हमारा पिता है; देख, हम तो मिट्टी हैं, और तू हमारा कुम्हार है, हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं।” (यशायाह 64:8) जब हम परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते हैं और उसमें सीखी बातों पर अमल करते हैं, तो एक तरह से हम खुद को यहोवा के हवाले कर रहे होते हैं ताकि वह हमें ढाल सके। इस तरह हम धीरे-धीरे नया मनुष्यत्व धारण करते हैं। हम और भी नरम और मुलायम मिट्टी की तरह बनते जाते हैं और इससे यहोवा के साथ पूरी वफादारी से लिपटे रहना आसान हो जाता है क्योंकि हम उसे खुश करना चाहते हैं।—इफिसियों 4:23, 24; कुलुस्सियों 3:8-10.

‘तुम्हें उनको सिखाना होगा’

15. व्यवस्थाविवरण 4:9 के मुताबिक, मूसा ने इस्राएलियों को कौन-सी दो ज़िम्मेदारियाँ याद दिलायी?

15 जब इस्राएल जाति वादा-ए-मुल्क में कदम रखने के लिए तैयार थी, तब मूसा ने उनसे कहा: “यह अत्यन्त आवश्‍यक है कि तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपनी आंखों से देखीं उनको भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना।” (व्यवस्थाविवरण 4:9) इस्राएलियों को यहोवा की आशीष पाने के लिए और जिस देश में वे जानेवाले थे वहाँ फलने-फूलने के लिए, यहोवा से मिली दो ज़िम्मेदारियाँ पूरी करनी थीं। एक, उन्हें उन शानदार बातों को नहीं भूलना था जो यहोवा ने उनकी आँखों के सामने की थीं और दूसरी, उन्हें अपनी आनेवाली पीढ़ियों को वे सब बातें सिखानी थीं। अगर आज हम परमेश्‍वर के सेवक, ‘जीवन को चुनना और जीवित रहना’ चाहते हैं, तो हमें भी यही करने की ज़रूरत है। हमने अपनी आँखों से यहोवा को हमारी खातिर क्या-क्या करते देखा है?

16, 17. (क) गिलियड से तालीम पाए मिशनरी राज्य के प्रचार काम में क्या-क्या हासिल कर पाए हैं? (ख) क्या आप उन भाई-बहनों के बारे में बता सकते हैं जिन्होंने अपना जोश बरकरार रखा है?

16 हमें यह देखकर बेहद खुशी होती है कि कैसे यहोवा ने हमारे प्रचार और चेले बनाने के काम पर आशीष दी है। सन्‌ 1943 में वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड के शुरू होने से लेकर आज तक, मिशनरी कई देशों में चेले बनाने के काम को ज़ोर-शोर से करने में आगे रहे हैं। हालाँकि इस स्कूल के शुरू के ग्रेजुएट भाई-बहन, आज काफी बूढ़े हो गए हैं और उनकी सेहत खराब रहती है, फिर भी राज्य के प्रचार के लिए उनका जोश बरकरार है। इसकी एक बढ़िया मिसाल है, मेरी ऑलसन, जो सन्‌ 1944 में गिलियड से ग्रेजुएट हुई। उसने पहले युरुग्वे में, फिर कोलम्बिया में और आज वह पोर्टो रिको में मिशनरी सेवा कर रही है। हालाँकि ढलती उम्र के साथ आनेवाली समस्याओं की वजह से बहन ऑलसन ज़्यादा नहीं कर पाती है, फिर भी प्रचार के लिए उसका जोश ठंडा नहीं हुआ है। बहन ने स्पैनिश भाषा सीखी है, इसलिए वह हर हफ्ते समय निकालकर दूसरे भाई-बहनों के साथ प्रचार काम में जाती है।

17 नैन्सी पोर्टर जो आज एक विधवा है, वह सन्‌ 1947 की एक गिलियड ग्रेजुएट है। वह अभी-भी बहामाज़ में मिशनरी सेवा कर रही है। वह भी प्रचार काम में पूरी तरह लगी हुई है। बहन पोर्टर की जीवन कहानी में लिखा है: “खासकर दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाने से मुझे खुशी मिलती है। सेवकाई की वजह से मैं आध्यात्मिक कामों की एक सारणी बना पाई हूँ जिसकी वजह से मेरी ज़िंदगी व्यवस्थित है और मुझे अपनी परिस्थितियों का सामना करने की ताकत भी मिली है।” * जब बहन पोर्टर और दूसरे वफादार सेवक अपने बीते कल को याद करते हैं, तो यहोवा ने उनके लिए जो कुछ किया वे उसे कभी नहीं भूलते। हमारे बारे में क्या? क्या हम इस बात के लिए एहसानमंद हैं कि यहोवा ने कैसे हमारे इलाके में हो रहे राज्य के काम पर आशीष दी है?—भजन 68:11.

18. मिशनरियों की जीवन कहानियाँ पढ़कर हम क्या सीख सकते हैं?

18 मुद्दतों से परमेश्‍वर की सेवा करनेवाले इन भाई-बहनों ने जो काम किया और अभी कर रहे हैं, उसे देखकर हमें बेहद खुशी मिलती है। इन बुज़ुर्गों की जीवन कहानियाँ पढ़कर हमें हौसला मिलता है, क्योंकि जब हम देखते हैं कि यहोवा ने इन वफादार जनों के लिए क्या किया है, तो उसकी सेवा करते रहने का हमारा इरादा और मज़बूत होता है। क्या आप हमेशा प्रहरीदुर्ग में छपी इन दिलचस्प कहानियों को पढ़ते हैं और उन पर मनन करते हैं?

19. मसीही माता-पिता प्रहरीदुर्ग में छपी जीवन कहानियों का कैसे अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं?

19 मूसा ने इस्राएलियों को याद दिलाया था कि यहोवा ने उनके लिए जो कुछ किया था, उसे उन्हें नहीं भूलना था, बल्कि ज़िंदगी-भर याद रखना था। मूसा ने यह भी कहा: “तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना।” (व्यवस्थाविवरण 4:9) सच्ची कहानियों की एक खासियत है कि ये दिल को छू जाती हैं। बढ़ते जवानों को बढ़िया आदर्शों की ज़रूरत होती है। कुँवारी बहनें, बुज़ुर्ग वफादार बहनों की मिसाल से बहुत-से सबक सीख सकती हैं जिनकी जीवन कहानियाँ प्रहरीदुर्ग में छापी जाती हैं। भाई-बहन, अपने देश के विदेशी भाषा बोलनेवाले इलाके में सेवा करके सुसमाचार सुनाने के काम में ज़्यादा हिस्सा ले सकते हैं। इसके अलावा, मसीही माता-पिता क्यों न आप वफादार गिलियड मिशनरियों और दूसरे भाई-बहनों के अनुभव का इस्तेमाल करके अपने बच्चों को पूरे समय की सेवा का चुनाव करने का बढ़ावा दें?

20. “जीवन को चुन” लेने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?

20 तो फिर हममें से हरेक जन कैसे “जीवन को चुन” सकता है? हम अपनी आज़ाद मरज़ी के बेहतरीन तोहफे का इस तरीके से इस्तेमाल करेंगे जिससे यह ज़ाहिर हो कि हम यहोवा से प्यार करते हैं और जब तक वह हमें उसकी सेवा करने का खास मौका दे रहा है तब तक हम अपना भरसक करते रहेंगे। जैसा मूसा ने कहा था: “क्योंकि [यहोवा] तेरा जीवन और तेरे लिए दीर्घायु है।”—व्यवस्थाविवरण 30:19, 20.

[फुटनोट]

^ जून 15, 2001 की प्रहरीदुर्ग के पेज 23-7 में छपा लेख, “गहरे सदमे के बावजूद ज़िंदगी से खुश और एहसानमंद” देखिए।

क्या आपको याद है?

• दो अलग-अलग चुनाव करनेवालों की मिसालों से आपने क्या सीखा है?

• “जीवन को चुन” लेने के लिए हमें कौन-से कदम उठाने चाहिए?

• हमें कौन-सी दो ज़िम्मेदारियों को पूरा करने का बढ़ावा दिया गया है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 26 पर तसवीर]

‘मैंने तुम्हारे सामने जीवन तथा मृत्यु रखी है’

[पेज 29 पर तसवीर]

नूह और उसके परिवार ने यहोवा की बात मानी, इसलिए उनका उद्धार हुआ

[पेज 30 पर तसवीर]

मेरी ऑलसन

[पेज 30 पर तसवीर]

नैन्सी पोर्टर