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बाइबल के सिद्धांतों पर चलकर सुख पाइए

बाइबल के सिद्धांतों पर चलकर सुख पाइए

बाइबल के सिद्धांतों पर चलकर सुख पाइए

क्या आपने कभी एक नन्हे बच्चे को दूध पीने के बाद, माँ की गोद में चैन की नींद सोते देखा है? वह क्या ही खुश और संतुष्ट नज़र आता है! अगर हमें भी उस बच्चे की तरह खुशी और सुख का मीठा आभास होता तो कितना अच्छा होता, है ना? मगर, ज़्यादातर लोगों को ऐसा सुख कहाँ मिलता है, और अगर मिलता भी है तो सिर्फ पल-भर के लिए। ऐसा क्यों है?

क्योंकि हम सब असिद्ध हैं और इस वजह से हम अकसर गलतियाँ कर बैठते हैं, ऊपर से हमें दूसरों की कमियाँ भी बरदाश्‍त करनी पड़ती हैं। इसके अलावा, हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जिसे बाइबल ‘अन्तिम दिन’ कहती है और जिस दौरान “कठिन समय” होता। (2 तीमुथियुस 3:1-5) हालाँकि हम बचपन में मिले सुख की चंद हसीन यादों को संजोए रखते हैं, फिर भी इस “कठिन समय” की वजह से आज हम ज़बरदस्त दबाव का सामना करते हैं। ऐसे हालात में क्या सुख पाना मुमकिन है?

गौर कीजिए, बाइबल कहती है कि अन्तिम दिनों में समय कठिन होगा, यह नहीं कि इस समय का सामना करना नामुमकिन होगा। हम बाइबल के सिद्धांतों पर चलकर इस कठिन समय का सामना कर सकते हैं। हो सकता है कि हम अपनी हर समस्या का हल न कर पाएँ, मगर हाँ, बाइबल के सिद्धांतों पर अमल करने से हमें कुछ हद तक सुख ज़रूर मिलेगा। आइए हम बाइबल के ऐसे तीन सिद्धांतों की जाँच करें।

अपने बारे में सही नज़रिया रखिए

सुख पाने के लिए, हमें अपनी और दूसरों की हदों के बारे में सही नज़रिया रखना चाहिए। रोम के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में, प्रेरित पौलुस ने कहा: “सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं।” (रोमियों 3:23) यहोवा की महिमा के ऐसे कई पहलू हैं जो हमारी समझ से परे हैं। इसकी एक मिसाल है, उत्पत्ति 1:31 में दी गयी यह सीधी-सी सच्चाई: “परमेश्‍वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।” यहोवा जब चाहे पीछे मुड़कर अपने काम को देखकर कह सकता है कि ‘वह बहुत ही अच्छा था।’ मगर कोई भी इंसान अपने हर काम के बारे में ऐसा नहीं कह सकता। इसलिए अपनी हदों को कबूल करना, सुख पाने की तरफ पहला कदम है। लेकिन सुख पाने के लिए एक और चीज़ की भी ज़रूरत है। पहले, हमें यह समझना चाहिए कि फलाँ मामले में यहोवा का क्या नज़रिया है और फिर उस नज़रिए को कबूल करना चाहिए।

रोमियों 3:23 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “पाप” किया गया है, उसके मूल शब्द का मतलब है, “निशाने से चूक जाना।” इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। मान लीजिए कि एक आदमी तीरंदाज़ी प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है। उसका इनाम जीतने का बड़ा अरमान है। उसके पास तीन तीर हैं। वह पहला तीर चलाता है जो निशाने से एक मीटर की दूरी पर जाकर लगता है। वह दूसरी बार और भी अच्छी तरह से निशाना बाँधकर तीर चलाता है, मगर फिर भी एक फुट [30 cm] की दूरी से चूक जाता है। अब वह पूरा ध्यान लगाकर तीसरा तीर छोड़ता है और तीर निशाने से बस एक इंच [2 cm] की दूरी पर जाकर लगता है। हालाँकि उसका आखिरी तीर निशाने के बहुत पास है, फिर भी सच यह है कि वह निशाने से चूक गया है।

हम सभी उस तीरंदाज़ की तरह हैं, जिसे सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है। कभी-कभी हम बुरी तरह ‘निशाने से चूक’ जाते हैं। और कई बार हम निशाने के बिलकुल पास होते हैं, फिर भी निशाने से चूक जाते हैं। हम मायूस हो जाते हैं, क्योंकि लाख कोशिशों के बावजूद हम नाकाम रहते हैं। अब आइए एक बार फिर उस तीरंदाज़ की मिसाल पर गौर करें।

वह तीरंदाज़ मायूस होकर वापस लौटने लगता है, क्योंकि इनाम जीतने का उसका अरमान टूट चुका है। अचानक, खेल को आयोजित करनेवाला अधिकारी उसे आवाज़ लगाता है और उसे इनाम देते हुए कहता है: “मैं आपको यह इनाम देना चाहता हूँ क्योंकि आप मुझे अच्छे लगे। मैंने देखा है कि आपने जी-जान लगाकर खूब कोशिश की।” इस पर वह तीरंदाज़ खुशी से उछल पड़ता है!

खुशी से उछलना! जी हाँ, जिन लोगों को परमेश्‍वर से हमेशा की सिद्ध ज़िंदगी का “बरदान” मिलेगा, उनमें से हर कोई ऐसा ही महसूस करेगा। (रोमियों 6:23) इसके बाद, उनका हर काम एकदम बढ़िया होगा। वे फिर कभी ‘निशाने से नहीं चूकेंगे।’ उन्हें ज़िंदगी से पूरा-पूरा सुख मिलेगा। लेकिन उस समय के आने तक, अगर हम यही नज़रिया हमेशा अपने मन में बनाए रखें, तो हम अपने और दूसरों के बारे में अच्छा महसूस करेंगे।

याद रखिए कि हर काम के लिए वक्‍त लगता है

यह एक हकीकत है कि हर काम के लिए वक्‍त लगता है। लेकिन, क्या आपने गौर किया है कि कुछ हालात में सुख पाना बहुत ही मुश्‍किल हो जाता है? जैसे, जब आप कुछ घटने का इंतज़ार कर रहे हैं मगर उसमें उम्मीद से ज़्यादा वक्‍त लग रहा है, या फिर एक मुश्‍किल हालात इतने लंबे समय तक रहता है जितनी आपने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। लेकिन कई लोग हैं जो ऐसे हालात में भी अपना सुख बरकरार रख पाए। यीशु की ही मिसाल लीजिए।

धरती पर आने से पहले, यीशु जब स्वर्ग में था तो वह परमेश्‍वर की आज्ञा मानने में एक उम्दा मिसाल था। फिर भी, बाइबल कहती है कि उसने इस धरती पर आकर “आज्ञा माननी सीखी।” वह कैसे? “दुख उठा उठाकर।” स्वर्ग से यीशु ने लोगों को दुःख-तकलीफों से तड़पते देखा था, मगर उसने खुद कभी दुःख नहीं सहा था। लेकिन जब वह धरती पर आया, तब खासकर यरदन नदी में बपतिस्मा लेने के बाद से लेकर गुलगुता नाम की जगह पर मार डाले जाने तक, उसने कई दर्द और परीक्षाएँ झेलीं। हालाँकि हमें इस बात की पूरी जानकारी नहीं है कि इस मामले में यीशु कैसे ‘सिद्ध बना,’ मगर हम यह ज़रूर जानते हैं कि आज्ञा माननी सीखने में उसे ज़रूर वक्‍त लगा होगा।—इब्रानियों 5:8, 9.

यीशु अपनी परीक्षाओं का सामना करने में इसलिए कामयाब रहा, क्योंकि उसने “उस आनन्द” के बारे में मनन किया “जो उसके आगे धरा था।” वह “आनन्द” था, उसकी वफादारी के लिए उसे दिया जानेवाला इनाम। (इब्रानियों 12:2) फिर भी, ऐसा वक्‍त भी था जब उसने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर . . . प्रार्थनाएं और बिनती की।” (इब्रानियों 5:7) हम भी शायद कभी-कभी इस तरह प्रार्थना करें। यहोवा हमारी ऐसी प्रार्थनाओं के बारे में कैसा महसूस करता है? वही आयत दिखाती है कि यहोवा ने यीशु की “सुनी।” उसी तरह, परमेश्‍वर हमारी भी बिनती सुनेगा। भला क्यों?

क्योंकि यहोवा हमारी हदें जानता है और वह हमारी मदद करता है। हर इंसान की बरदाश्‍त करने की एक हद होती है। अफ्रीका के बेनिन देश में एक कहावत है: “बहुत ज़्यादा पानी में तो मेंढक भी आखिर में डूब जाएगा।” यहोवा हमसे बेहतर जानता है कि बरदाश्‍त करने की हमारी ताकत कब जवाब दे देनेवाली है। वह प्यार से ‘हम पर दया और अनुग्रह’ करता है, “जो आवश्‍यकता के समय हमारी सहायता” करते हैं। (इब्रानियों 4:16) उसने यीशु और दूसरे बेशुमार लोगों को इस तरह मदद दी है। आइए देखें कि मोनिका नाम की लड़की ने कैसे परमेश्‍वर की इस मदद का अनुभव किया।

मोनिका बचपन से ही बेफिक्र, ज़िंदादिल और हँसमुख लड़की है। सन्‌ 1968 में जब उसकी उम्र 20-22 की थी, तब उसे यह जानकर बहुत झटका लगा कि उसे ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ नाम की बीमारी है, जिससे आम तौर पर शरीर के कुछ अंगों को लकवा मार जाता है। इससे मोनिका की पूरी ज़िंदगी बदल गयी और उसे अपनी पूरे समय की सेवा जारी रखने के लिए बड़े-बड़े बदलाव करने पड़े। मोनिका को पता था कि उसकी बीमारी लंबे समय तक रहेगी और धीरे-धीरे बढ़ती जाएगी। सोलह साल बाद, उसने कहा: “मेरी बीमारी का आज तक कोई इलाज नहीं ढूँढ़ा गया है और शायद ही कभी ढूँढ़ा जाएगा। यह बीमारी सिर्फ तभी दूर होगी जब परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था इस धरती पर सबकुछ नया कर देगी।” उसने कबूल किया कि इस बीमारी से जूझना उसके लिए आसान नहीं था। उसने कहा: “हालाँकि मेरे दोस्त मुझसे कहते हैं कि मैंने हँसना-मुस्कराना नहीं भूला है और पहले की तरह खुश रहती हूँ, . . . फिर भी मेरे सबसे करीबी दोस्त जानते हैं कि जब मैं रोती हूँ तो आँसुओं का तार बँध जाता है।”

फिर भी, वह कहती है: “मैंने सब्र से काम लेना और सेहत में ज़रा-सा भी सुधार होते देखकर खुश होना सीखा है। यहोवा के साथ मेरा रिश्‍ता और भी मज़बूत हुआ है, क्योंकि खुद के तजुरबे से मैंने जाना कि इंसान अपने बल पर बीमारियों से नहीं लड़ सकता। सिर्फ यहोवा ही है जो हमारी हर बीमारी को पूरी तरह दूर कर सकता है।” यहोवा की मदद से, मोनिका ने अपना सुख आज भी बरकरार रखा है और पूरे समय की सेवा में बिताए 40 से भी ज़्यादा सालों को याद करके वह खुश होती है।

यह सच है कि मोनिका जिस हालात से गुज़र रही है, उससे जूझना कोई आसान बात नहीं है। लेकिन अगर आप कबूल करें कि ऐसी भी कुछ बातें हैं जिसे दूर होने के लिए उम्मीद से ज़्यादा वक्‍त लग सकता है, तो आपको यकीनन ज़्यादा सुख मिलेगा। मोनिका की तरह, आप भी यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ‘आवश्‍यकता के समय आपकी सहायता’ ज़रूर करेगा।

दूसरों के साथ अपनी बराबरी मत कीजिए—ऐसे लक्ष्य रखिए जो आप हासिल कर सकते हैं

हर इंसान अलग-अलग है। आप भी अलग हैं, आप जैसा कोई दूसरा इंसान नहीं है। हिंदी में एक कहावत है: “पाँचों उँगलियाँ एक जैसी नहीं होतीं।” इसलिए एक उँगली की बराबरी दूसरी से करना बेवकूफी होगी। उसी तरह, क्या आप चाहेंगे कि यहोवा आपकी बराबरी किसी दूसरे इंसान के साथ करें? हरगिज़ नहीं। और वह कभी ऐसा करेगा भी नहीं। मगर देखा गया है कि लगभग सभी इंसानों में अपनी बराबरी दूसरों के साथ करने की फितरत होती है और इससे उनका सुख-चैन छिन सकता है। ध्यान दीजिए कि कैसे यीशु ने इस बात को समझाने के लिए एक बड़ा ही ज़बरदस्त दृष्टांत दिया, जो मत्ती 20:1-16 में दर्ज़ है।

यीशु ने एक “स्वामी” के बारे में बताया, जिसे अपनी दाख की बारी में काम करने के लिए मज़दूरों की ज़रूरत थी। उसे कुछ बेरोज़गार आदमी मिले जिन्हें उसने “सवेरे,” यानी 6 बजे काम पर लगाया। उन दिनों मज़दूरों को दिन के 12 घंटे काम करने के लिए एक दीनार दिया जाता था और इसी मज़दूरी के लिए वे बेरोज़गार लोग काम करने को तैयार हो गए। वे सभी आदमी बेशक खुश थे कि उन्हें काम भी मिल गया और उतनी मज़दूरी भी जितनी उन दिनों आम मज़दूरों को मिलती थी। बाद में, स्वामी को बेरोज़गार लोगों के और भी कई समूह मिले और उन्हें भी उसने अलग-अलग समय पर काम पर लगा दिया, जैसे कुछ को सुबह 9 बजे, कुछ को दोपहर 12 और 3 बजे और कुछ को तो शाम 5 बजे भी। इनमें से कोई भी पूरे दिन काम नहीं करता। और जहाँ तक इनकी मज़दूरी की बात थी, तो स्वामी ने वादा किया कि “जो कुछ ठीक है,” वह उन्हें देगा। इस पर मज़दूर राज़ी हो गए।

दिन ढल जाने के बाद, स्वामी ने अपने भंडारी को हुक्म दिया कि वह सभी को उनकी मज़दूरी दे दे। उसने यह भी कहा कि वह सभी मज़दूरों को इकट्ठा करे और जिन लोगों को आखिर में काम पर लगाया गया था, सबसे पहले उन्हें मज़दूरी दे। आखिरी समूह के मज़दूरों ने सिर्फ एक घंटे काम किया था, मगर हैरानी की बात है कि उन्हें पूरे दिन की मज़दूरी दी गयी। हम कल्पना कर सकते हैं कि इसके बाद दूसरों में क्या ही ज़बरदस्त चर्चा शुरू हो गयी होगी। जिन मज़दूरों ने पूरे 12 घंटे काम किया था, वे इस नतीजे पर पहुँचे कि उन्हें ज़्यादा मज़दूरी मिलेगी। लेकिन उन्हें भी एक-एक दीनार मिला।

इस पर उन्होंने क्या किया? उन्हें “जब [एक-एक दीनार] मिला, तो वे गृहस्थ [या, स्वामी] पर कुड़कुड़ा के कहने लगे। कि इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया, और तू ने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जिन्हों ने दिन भर का भार उठाया और घाम सहा?”

लेकिन स्वामी ने इस हालात को एक अलग नज़रिए से देखा। उसने कहा कि वे जितनी मज़दूरी के लिए काम करने को राज़ी हुए थे, उतनी उन्हें दी गयी है, उससे कम नहीं। जबकि दूसरों के मामले में ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई थी, बल्कि उसने खुद उन्हें पूरे दिन के काम की मज़दूरी देने का फैसला किया। और इसकी बेशक उन मज़दूरों ने भी उम्मीद नहीं की थी। असल में, किसी को भी कम मज़दूरी नहीं मिली, जितनी तय की गयी थी उतनी ही मिली। दरअसल, ज़्यादातर लोगों को तो उम्मीद से ज़्यादा मज़दूरी मिली। इसलिए आखिर में, स्वामी ने पूछा: “क्या उचित नहीं कि मैं अपने माल से जो चाहूं सो करूं?”

अब ज़रा सोचिए, अगर भंडारी ने सुबह 6 बजे काम करनेवाले मज़दूरों को सबसे पहले मज़दूरी दी होती तो क्या वे अपने पैसे लेकर खुशी-खुशी चले नहीं जाते? बेशक चले जाते। मगर उन्होंने उस वक्‍त कुड़कुड़ाना शुरू किया जब उन्होंने देखा कि दूसरों ने कम घंटे काम किया फिर भी उन्हें उतनी ही मज़दूरी दी गयी जितनी कि उन्हें। इस तरह उन्होंने अपना सुख खो दिया। वे इतने गुस्सा हुए कि उसी स्वामी के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे, जिनके वे पहले एहसानमंद थे क्योंकि उसने उन्हें काम दिया था।

यह दृष्टांत साफ दिखाता है कि जब हम खुद की बराबरी दूसरों से करते हैं, तो इसका क्या अंजाम होता है। अगर आप यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते के बारे में गहराई से सोचेंगे और इस बात के लिए एहसानमंद होंगे कि वह आपको कैसी आशीषें देता है, तो आप सुखी होंगे। अपने हालात की तुलना दूसरों से मत कीजिए। अगर आपको लगता है कि यहोवा ने दूसरों की खातिर ज़्यादा करने का फैसला किया है, तो उनकी खुशियों में शरीक होइए।

मगर हाँ, एक बात है जिसकी यहोवा आपसे उम्मीद करता है। वह क्या? गलतियों 6:4 कहता है: “हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब . . . अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।” दूसरे शब्दों में कहें, तो यहोवा चाहता है कि आप ऐसे लक्ष्य रखें जिन्हें हासिल करना आपके बस में है। पहले इसकी योजना बनाइए और फिर उसके मुताबिक काम कीजिए। अगर आप ऐसे लक्ष्य रखते हैं जिन्हें हासिल करना आपके बस में है और उन्हें हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं, तो आपको “घमण्ड करने का अवसर” मिलेगा। इस तरह आपको सुख मिलेगा।

भविष्य में मिलनेवाली आशीषें

ये तीन सिद्धांत, जिन पर अभी हमने चर्चा की, दिखाते हैं कि जब हम बाइबल के सिद्धांतों पर चलते हैं, तो असिद्धता और इन अंतिम दिनों में जीने के बावजूद, हमें सुख मिलता है। रोज़ाना बाइबल की पढ़ाई करते वक्‍त, क्यों न आप इस तरह के सिद्धांत खोजने की कोशिश करें? ये सिद्धांत या तो आपको साफ-साफ लिखे हुए मिल सकते हैं या फिर दृष्टांतों में छिपे हो सकते हैं।

अगर आपको लगता है कि आप अपना सुख खो रहे हैं, तो इसकी वजह जानने की कोशिश कीजिए। फिर ऐसे सिद्धांत ढूँढ़िए जो हालात को सुधारने में आपकी मदद कर सके। मिसाल के लिए, आप “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र”—सच्चा और फायदेमंद * ब्रोशर के पेज 22-24 की जाँच कर सकते हैं। इसमें नीतिवचन किताब के बारे में चर्चा की गयी है और वहाँ आप पाएँगे कि 12 शीर्षकों के तहत, ढेर सारे सिद्धांत और सलाह दी गयी हैं। द वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स * और सीडी-रॉम पर वॉचटावर लाइब्रेरी * से भी आपको बढ़िया जानकारी मिल सकती है। अगर आप इनका लगातार इस्तेमाल करेंगे, तो आप व्यवहारिक सिद्धांत ढूँढ़ने में पक्के हो जाएँगे।

वह दिन दूर नहीं जब यहोवा सही मन रखनेवाले लोगों को फिरदौस में हमेशा की सिद्ध ज़िंदगी देगा। तब उनकी ज़िंदगी में सुख-ही-सुख होगा।

[फुटनोट]

^ इन्हें यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ इन्हें यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ इन्हें यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं।”—रोमियों 3:23

[पेज 13 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

यीशु ने “दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी।”—इब्रानियों 5:8, 9

[पेज 15 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।”—गलतियों 6:4