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बीमारी के बावजूद खुशी-खुशी सेवा करना

बीमारी के बावजूद खुशी-खुशी सेवा करना

जीवन कहानी

बीमारी के बावजूद खुशी-खुशी सेवा करना

वारनावस स्पेट्‌स्यॉटीस की ज़ुबानी

सन्‌ 1990 को 68 साल की उम्र में मेरे पूरे शरीर को लकवा मार गया। फिर भी, आज मैं पिछले 15 सालों से साइप्रस द्वीप पर खुशी-खुशी पूरे समय की सेवा कर रहा हूँ। आप शायद सोच रहे होंगे कि अपनी बीमारी के बावजूद मैं यहोवा की सेवा में अपना जोश कैसे बनाए रख पाता हूँ? मुझे किस बात से हिम्मत मिली है?

मेरा जन्म 11 अक्टूबर, 1922 में हुआ था। हम कुल मिलकर नौ भाई-बहन हैं, चार भाई और पाँच बहनें। हम साइप्रस के सीलॉफागू गाँव में रहते थे। हालाँकि मेरे माता-पिता के पास पैसों की कमी नहीं थी मगर इतने बड़े परिवार का पेट पालना आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें खेत में काफी मेहनत करनी पड़ती थी।

पिताजी का नाम, आनडॉनीस था। वे स्वभाव से पढ़ने के शौकीन थे और नयी-नयी बातें जानने की उनमें ललक थी। यह घटना उस समय की है जब मैं पैदा ही हुआ था। एक दिन पिताजी किसी काम के सिलसिले में गाँव के अध्यापक से मिलने गए। वहाँ उन्होंने बाइबल विद्यार्थियों (उन दिनों यहोवा के साक्षी इसी नाम से जाने जाते थे) का एक परचा देखा जिसका शीर्षक था, लोगों के लिए समाचार (अँग्रेज़ी)। वे परचा उठाकर पढ़ने लगे और देखते-ही-देखते उसमें पूरी तरह खो गए। इसका नतीजा यह हुआ कि पूरे साइप्रस द्वीप में पिताजी और उनके एक दोस्त, आन्थ्रेआस क्रीस्टू ऐसे पहले लोग थे जिन्होंने यहोवा के साक्षियों के साथ मेल-जोल रखना शुरू किया।

विरोध के बावजूद तरक्की

वक्‍त के गुज़रते, पिताजी और आन्थ्रेआस ने यहोवा के साक्षियों से, बाइबल की समझ देनेवाली और भी किताबें मँगवायीं। उन किताबों से वे बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने लगे और बहुत जल्द वे गाँव के दूसरे लोगों को भी उन सच्चाइयों के बारे में बताने लगे। ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों और कुछ लोगों को, जो यहोवा के साक्षियों को पसंद नहीं करते थे, उनका इस तरह प्रचार करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा। इस वजह से वे पिताजी और आन्थ्रेआस का कड़ा विरोध करने लगे।

लेकिन गाँव के कई लोग इन दो बाइबल शिक्षकों की बहुत इज़्ज़त करते थे। पिताजी के बारे में सब जानते थे कि वे नरम स्वभाव के और दरियादिल हैं। अकसर वे गरीब परिवारों की मदद करते थे। कभी-कभी तो वे रात के अँधेरे में चुपचाप घर से निकलकर ज़रूरतमंद परिवारों के दरवाज़े पर गेहूँ या रोटी रख आते थे। ऐसा निःस्वार्थ प्यार देखकर गाँव के लोगों पर इन दो प्रचारकों के संदेश का अच्छा असर होने लगा।—मत्ती 5:16.

कुछ ही समय में करीब 12 लोगों ने बाइबल के संदेश में दिलचस्पी दिखायी। जब सच्चाई के बारे में उनकी समझ बढ़ी, तो उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें घरों में, एक समूह के तौर पर इकट्ठा होकर बाइबल का अध्ययन करना चाहिए। सन्‌ 1934 के आस-पास ग्रीस से एक पूरे समय के सेवक साइप्रस आए। उनका नाम नीकॉस माथेआकीस था। उन्होंने सीलॉफागू के समूह से मुलाकात की। भाई माथेआकीस ने समूह को संगठित होने में और उन्हें बाइबल की बेहतर समझ पाने में मदद दी। ऐसा करते वक्‍त उन्होंने जल्दी हिम्मत नहीं हारी बल्कि भाइयों के साथ प्यार और सब्र से पेश आए। यह समूह आगे चलकर साइप्रस में यहोवा के साक्षियों की पहली कलीसिया बना।

धीरे-धीरे मसीही काम बढ़ता चला गया और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग, बाइबल की सच्चाइयाँ अपनाने लगे। यह बढ़ोतरी देखकर भाइयों को लगा कि अगर वे ऐसी जगह का इंतज़ाम कर सकें जहाँ वे नियमित रूप से सभाएँ चला सकते हैं, तो कितना अच्छा होगा। मेरे बड़े भाई, जॉर्ज और भाभी एलेनी ने सभा चलाने के लिए अपनी अनाज की कोठरी दी जो उनके घर के पास ही थी। कोठरी की मरम्मत की गयी और उसका नक्शा ही बदल दिया गया ताकि उसमें सभाएँ चलायी जा सकें। इस तरह यह कोठरी, द्वीप का सबसे पहला राज्य घर बनी। भाइयों की खुशी का ठिकाना न था! यही नहीं, इससे और भी बढ़िया तरक्की हुई!

सच्चाई की राह पर चलने का फैसला करना

सन्‌ 1938 में, 16 साल की उम्र में मैंने सोच लिया था कि मैं एक बढ़ई बनूँगा। इसलिए पिताजी ने मुझे साइप्रस की राजधानी, निकोसिया भेजा और भाई नीकॉस माथेआकीस के साथ मेरे रहने का इंतज़ाम किया। यह इंतज़ाम उन्होंने बहुत सोच-समझकर किया था। भाई माथेआकीस में सच्चाई के लिए कमाल का जोश था और उनका दिल बहुत बड़ा था। आज भी द्वीप के कई लोग इस वफादार भाई के जोश और उनकी दरियादिली को याद करते हैं। दरअसल उन दिनों, साइप्रस में हरेक मसीही में भाई माथेआकीस के जैसा जोश और हिम्मत होना ज़रूरी था।

भाई माथेआकीस ने बाइबल का गहरा ज्ञान पाने और आध्यात्मिक तरक्की करने में मेरी बहुत मदद की। उनके साथ रहते वक्‍त मैं हरेक सभा में हाज़िर होता था जो उन्हीं के घर में रखी जाती थीं। उस वक्‍त, पहली बार मुझे एहसास हुआ कि यहोवा के लिए मेरा प्यार बढ़ रहा है। मैंने ठान लिया था कि मैं यहोवा के साथ एक गहरा रिश्‍ता बनाऊँगा। कुछ ही महीनों बाद मैंने भाई माथेआकीस से पूछा कि क्या मैं आपके साथ प्रचार के लिए आ सकता हूँ? यह सन्‌ 1939 की बात है।

फिर कुछ समय बाद, मैं अपने परिवार से मिलने घर आया। पिताजी के साथ थोड़ा वक्‍त बिताने पर मेरा विश्‍वास और भी मज़बूत हुआ कि मैंने सच्चाई पा ली है और मुझे अपने जीने का मकसद मिल गया है। सितंबर 1939 में दूसरा विश्‍वयुद्ध शुरू हो गया था। मेरी उम्र के कई जवान युद्ध में लड़ने के लिए गए मगर मैंने फैसला किया कि मैं बाइबल की आज्ञाओं को मानकर निष्पक्ष रहूँगा। (यशायाह 2:4; यूहन्‍ना 15:19) उसी साल, मैंने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया और सन्‌ 1940 में बपतिस्मा लिया। मैंने पहली बार महसूस किया कि अब मुझे इंसान का कोई डर नहीं है।

सन्‌ 1948 में मैंने एफ्प्रपीआ से शादी की। हमारे चार बच्चे हुए। जल्द ही हमने समझ लिया कि अगर हम “प्रभु [यहोवा] की शिक्षा और अनुशासन में [अपने बच्चों का] पालन पोषण” करना चाहते हैं, तो हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। (इफिसियों 6:4, NHT) हम दिन-रात यहोवा से यही प्रार्थना करते थे और हमारी कोशिश भी रहती थी कि हम अपने बच्चों के दिल में उसके लिए गहरा प्यार पैदा कर सकें और उन्हें उसके कानूनों और सिद्धांतों को मानना सिखा सकें।

खराब सेहत की वजह से आयी चुनौती

सन्‌ 1964 में, जब मैं 42 साल का हुआ तो अचानक मेरा दायाँ हाथ और पैर सुन्‍न होने लगे। फिर धीरे-धीरे शरीर का बायाँ हिस्सा भी सुन्‍न होने लगा। जाँच करने पर पता चला कि मुझे मांसपेशी की एक लाइलाज बीमारी (जिसे मसल अट्रोफी कहा जाता है) हो गयी है। इस बीमारी में आगे चलकर, एक इंसान के पूरे शरीर को लकवा मार जाता है। यह खबर सुनते ही मुझे ज़बरदस्त धक्का लगा। यह सब इतनी जल्द और अचानक हो गया कि पता ही नहीं चला! मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं सोचने लगा: ‘यह सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है? मुझे किस गुनाह की सज़ा दी जा रही है?’ लेकिन धीरे-धीरे मैं अपनी बीमारी के सदमे से उबरने लगा। मगर फिर मुझे कई चिंताओं ने आ घेरा। रह-रहकर मेरे मन में सैकड़ों सवाल उमड़ रहे थे। क्या मेरा पूरा शरीर बेकार हो जाएगा और मुझे दूसरों के सहारे जीना पड़ेगा? मैं इस बीमारी के साथ कैसे जी पाऊँगा? क्या मैं अपने बीवी-बच्चों के लिए दो वक्‍त की रोटी जुटा पाऊँगा? यह सब सोचकर मैं अंदर-ही-अंदर बिलख रहा था।

ज़िंदगी के इस नाज़ुक मोड़ पर मुझे यहोवा की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा महसूस हुई। मैंने यहोवा से प्रार्थना की और दिल खोलकर उसे अपनी सारी चिंताएँ और परेशानियाँ बतायीं। मैं रात-दिन रो-रोकर यहोवा को पुकारता था। जल्द ही मुझे सुकून महसूस हुआ। वाकई, फिलिप्पियों 4:6, 7 के शब्दों से मेरा मन कितना हलका हुआ। वहाँ लिखा है: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।”

लकवे के साथ जीना

मेरी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गयी। मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने नए हालात के साथ जीने में जल्द-से-जल्द फेरबदल करने होंगे। अपनी बीमारी की वजह से मैं बढ़ई का काम नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने तय किया कि मैं कोई दूसरा काम करूँगा जिसमें ज़्यादा ताकत का इस्तेमाल न करना पड़े और मैं अपने परिवार के लिए रोज़ी-रोटी भी जुटा सकूँ। शुरू-शुरू में, मैंने एक छोटी-सी मोटरगाड़ी पर आइसक्रीम बेचने का काम किया। मगर करीब छः साल बाद मुझे यह काम छोड़ना पड़ा क्योंकि मेरी बीमारी की वजह से मुझे पहिया कुर्सी (व्हीलचेयर) के सहारे जीना पड़ा। तब मैंने कुछ छोटे-मोटे काम हाथ में लिए।

सन्‌ 1990 के बाद से मेरी सेहत इतनी बिगड़ गयी कि मैं कोई भी काम-धंधा नहीं कर सकता हूँ। और अब मैं पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हूँ, यहाँ तक कि मैं मामूली-से-मामूली काम भी बिना मदद के नहीं कर पाता हूँ। मुझे बिस्तर पर लेटने, नहाने और कपड़े पहनने में मदद चाहिए। मसीही सभाओं में जाने के लिए, पहले मुझे पहिए कुर्सी में कार तक ले जाया जाता है, फिर मुझे कार में बिठाया जाता। जब मैं राज्य घर पहुँचता हूँ, तो मुझे कार से वापस पहिया कुर्सी पर बिठाकर अंदर ले जाया जाता है। सभा के दौरान मेरे पैरों के पास बिजली का हीटर रखा जाता है ताकि मेरे पैर गरम रह सकें।

मैं चल-फिर नहीं सकता, फिर भी मैं सभी सभाओं में बिना नागा हाज़िर होता हूँ। क्योंकि मैं जानता हूँ कि यही वह जगह है जहाँ यहोवा हमें सिखाता है। और सभाओं में अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों के साथ रहने से मुझे सच्ची सुरक्षा मिलती है और उनसे मुझे बहुत मदद और हौसला भी मिलता है। (इब्रानियों 10:24, 25) आध्यात्मिक मायने में प्रौढ़ भाई भी लगातार मुझसे मिलने आते हैं और उनसे मुझे बहुत हिम्मत मिलती है। मैं सचमुच दाऊद की तरह महसूस करता हूँ जिसने कहा था: “मेरा कटोरा उमण्ड रहा है।”—भजन 23:5.

इन सालों के दौरान मेरी प्यारी पत्नी ने मेरा पूरा-पूरा साथ निभाया। मेरे बच्चों ने भी मेरी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछले कई सालों से वे मेरी रोज़-बरोज़ की ज़रूरतों को पूरा करते आए हैं। उनका काम आसान नहीं और वक्‍त के गुज़रते उनके लिए मेरी देखभाल करना और भी मुश्‍किल होता जा रहा है। उन्होंने धीरज धरने और मेरी देखरेख में खुद को लगा देने की बेहतरीन मिसाल कायम की है। यहोवा से मेरी यही दुआ है कि वह उन्हें आशीष देता रहे।

यहोवा ने अपने सेवकों को मज़बूत करने के लिए एक और शानदार इंतज़ाम किया है। वह है प्रार्थना। (भजन 65:2) इन गुज़रे सालों के दौरान यहोवा ने मेरी दिल से निकली बिनतियों का जवाब दिया है। उसने मुझे विश्‍वास में बने रहने की ताकत दी है। खासकर जब मैं बहुत मायूस हो जाता हूँ, तो प्रार्थना करने से मुझे राहत मिलती है और मैं अपनी खुशी बरकरार रख पाता हूँ। यहोवा से लगातार बातें करने से मुझे ताज़गी मिलती है और उसकी सेवा करते रहने का मेरा इरादा बुलंद हो जाता है। मुझे पक्का यकीन है कि यहोवा अपने सेवकों की दुआएँ ज़रूर सुनता है और उन्हें मन की शांति देता है।—भजन 51:17; 1 पतरस 5:7.

सबसे बढ़कर, जब भी मैं यह सोचता हूँ कि यीशु मसीह की हुकूमत में फिरदौस में जीनेवालों को परमेश्‍वर चंगा करेगा, तो मेरी जान में जान आ जाती है। उस शानदार आशा के बारे में सोचकर मेरी आँखों से खुशी के आँसू बहने लगते हैं और ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ है।—भजन 37:11, 29; लूका 23:43; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4.

पूरे समय की सेवा करना

सन्‌ 1991 में, बहुत सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि अगर मैं अपनी हालत पर रोते रहना नहीं चाहता, तो मुझे अपने आपको किसी-न-किसी काम में लगाना होगा। और इससे बढ़िया काम और क्या हो सकता है कि मैं राज्य का अनमोल सुसमाचार लोगों को सुनाऊँ। इसलिए उसी साल, मैंने पूरे समय की सेवा शुरू की।

मैं चल-फिर नहीं सकता, इसलिए मैं ज़्यादातर वक्‍त चिट्ठियाँ लिखकर गवाही देता हूँ। मगर लिखना मेरे लिए आसान नहीं है, इसके लिए मुझे बहुत कोशिश करनी पड़ती है। बीमारी की वजह से मेरा हाथ इतना कमज़ोर हो गया कि कलम पकड़ना भी भारी लगता है। इसके बावजूद, प्रार्थना और लगन से आज मैं 15 से भी ज़्यादा सालों से चिट्ठियाँ लिखकर गवाही दे रहा हूँ। मैं फोन पर भी लोगों को गवाही देता हूँ। जब भी मेरे रिश्‍तेदार, दोस्त और पड़ोसी मुझसे मिलने आते, तो मैं उन्हें नयी दुनिया और फिरदौस के बारे में बताने का कोई भी मौका नहीं गँवाता हूँ।

इस वजह से मुझे कई अच्छे अनुभव हुए हैं। मैंने अपने एक पोते के साथ करीब 12 साल पहले बाइबल का अध्ययन किया था। आज मुझे यह देखकर बेहद खुशी होती है कि वह आध्यात्मिक तरक्की कर रहा है और बाइबल की सच्चाई की दिलो-जान से कदर करता है। बाइबल से तालीम पाए उसके विवेक ने उसे उकसाया कि वह मसीही निष्पक्षता बनाए रखने में वफादार और अटल रहे।

मुझे खासकर तब बहुत खुशी होती है जब कोई मेरी चिट्ठी का जवाब देता है और बाइबल के बारे में ज़्यादा जानना चाहता है। कभी-कभी कुछ लोग बाइबल साहित्य की गुज़ारिश करते हैं। मिसाल के लिए, एक स्त्री ने फोन करके मुझे शुक्रिया कहा क्योंकि उसके पति को मैंने जो चिट्ठी लिखी थी, उसे पढ़कर पति को बहुत हौसला मिला। इस स्त्री को भी मेरी चिट्ठी दिलचस्प लगी। नतीजा यह हुआ कि उस स्त्री और उसके पति के साथ मेरे घर पर कई बार, बाइबल पर चर्चा हुई।

एक सुनहरे भविष्य की आशा

इन सालों के दौरान, मैंने साइप्रस द्वीप में राज्य प्रचारकों की गिनती में बढ़ोतरी होते देखी है। मेरे भाई जॉर्ज के घर के पास जो छोटा-सा राज्य घर था, उसे कई बार तोड़कर बड़ा किया गया है। अब यह उपासना की एक खूबसूरत जगह है और इसे यहोवा के साक्षियों की दो कलीसियाएँ इस्तेमाल करती हैं।

पिताजी की मौत, सन्‌ 1943 में 52 साल की उम्र में हुई थी। उनके जाने का गम तो मुझे था ही मगर वे क्या ही शानदार विरासत छोड़ गए! उनके आठ बच्चों ने सच्चाई को अपना लिया और वे अब भी यहोवा की सेवा कर रहे हैं। सीलॉफागू गाँव में, जहाँ पिताजी का जन्म हुआ था, वहाँ और आस-पास के गाँवों में फिलहाल तीन कलीसियाएँ हैं और कुल मिलाकर 230 राज्य के प्रचारक हैं।

ऐसे अच्छे नतीजे देखकर मेरे दिल को बड़ी खुशी मिली है। आज मेरी उम्र 83 साल की है और मुझे भजनहार के शब्दों पर पूरा यकीन है: “जवान सिंहों को तो घटी होती और वे भूखे भी रह जाते हैं; परन्तु यहोवा के खोजियों को किसी भली वस्तु की घटी न होवेगी।” (भजन 34:10) मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है जब यशायाह 35:6 की भविष्यवाणी हकीकत बन जाएगी: “तब लंगड़ा हरिण की सी चौकड़िया भरेगा।” उस वक्‍त के आने तक मेरा यह इरादा बुलंद है कि मैं अपनी बीमारी के बावजूद यहोवा की खुशी-खुशी सेवा करता रहूँगा।

[पेज 17 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

तुर्की

सूरिया

लबानोन

साइप्रस

निकोसिया

सीलॉफागू

भूमध्य सागर

[पेज 17 पर तसवीर]

सीलॉफागू का पहला राज्य घर, जिसे आज भी इस्तेमाल किया जा रहा है

[पेज 18 पर तसवीर]

सन्‌ 1946 में और आज, एफ्प्रपीआ के साथ

[पेज 20 पर तसवीर]

मुझे फोन पर और चिट्ठियाँ लिखकर गवाही देने से खुशी होती है