भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ
यहोवा का वचन जीवित है
भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ
यहोवा के सेवक होने के नाते, हम जानते हैं कि हमें ज़िंदगी में कई आज़माइशों से गुज़रना होगा। प्रेरित पौलुस ने लिखा था: “जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:12) इन आज़माइशों और ज़ुल्मों को सहने और इस तरह परमेश्वर की तरफ अपनी खराई बनाए रखने में क्या बात हमारी मदद करेगी?
भजनों के पाँच संग्रहों का दूसरा संग्रह। भजन 42 से 72 के गीतों से बना यह संग्रह दिखाता है कि अगर हम आज़माइशों का सामना करने में कामयाब होना चाहते हैं, तो हमें यहोवा पर पूरा भरोसा रखना चाहिए और छुटकारा पाने के लिए उसके वक्त का इंतज़ार करना चाहिए। है ना यह हमारे लिए एक अनमोल सबक! जी हाँ, परमेश्वर के वचन की बाकी सभी किताबों की तरह, भजन संहिता किताब के दूसरे भाग का संदेश, आज भी “जीवित, और प्रबल” है।—इब्रानियों 4:12.
यहोवा हमारा “शरणस्थान और बल है”
एक लेवी बंधुआई में पड़ा है। वह बहुत दुःखी है, क्योंकि वह यहोवा के मंदिर में जाकर उसकी उपासना नहीं कर सकता। वह अपने मन को तसल्ली देते हुए कहता है: “हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह।” (भजन 42:5, 11; 43:5) यह बार-बार दोहरायी आयत, भजन 42 और 43 के तीन छंदों को एक कविता में जोड़ती है। भजन 44, यहूदा देश की तरफ से की गयी एक फरियाद है क्योंकि यह देश बड़ी मुसीबत में है। शायद यह फरियाद, राजा हिजकिय्याह के समय में की गयी थी जब अश्शूरी सेना उस देश पर हमला करने की धमकी दे रही थी।
भजन 45 एक राजा की शादी के बारे में गाया एक गीत है, जो दरअसल मसीहाई राजा के बारे में एक भविष्यवाणी है। इसके बाद के तीन भजनों में यहोवा को “हमारा शरणस्थान और बल,” “सारी पृथ्वी के ऊपर महाराजा” और एक “ऊंचा गढ़” बताया गया है। (भजन 46:1; 47:2; 48:3) भजन 49 में क्या ही निराले ढंग से दिखाया गया है कि कोई भी इंसान “अपने भाई को किसी भांति छुड़ा नहीं सकता”! (भजन 49:7) दूसरे संग्रह के पहले आठ भजनों को लिखने का श्रेय कोरह के बेटों को दिया गया है। नौवाँ भजन, यानी भजन 50 आसाप की रचना है।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
44:19—‘गीदड़ों का स्थान’ क्या था? भजनहार शायद किसी जंग के मैदान की बात कर रहा था, जहाँ मारे गए लोगों की लाशों को गीदड़ खा जाते थे।
45:13, 14क—वह “राजकुमारी” कौन है जो “राजा के पास पहुंचाई जाएगी”? वह राजकुमारी, “युग युग के राजा” यहोवा परमेश्वर की बेटी है। (प्रकाशितवाक्य 15:3) वह महिमा से भरपूर 1,44,000 मसीहियों की कलीसिया को दर्शाती है, जिन्हें यहोवा अपनी आत्मा से अभिषेक करके अपने बच्चों के नाते गोद लेता है। (रोमियों 8:16) यहोवा की इस “राजकुमारी” को, जो एक ‘दुल्हिन के समान अपने पति के लिये सिंगार किए हुए है,’ अपने दूल्हे, मसीहाई राजा के पास लाया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य 21:2.
45:14ख, 15—“कुमारियां” किन्हें दर्शाती हैं? कुमारियाँ, सच्चे उपासकों से बनी “बड़ी भीड़” है, जो बचे हुए अभिषिक्त जनों के साथ मिल जाते हैं और उनका साथ देते हैं। वे आनेवाले “बड़े क्लेश” से ज़िंदा बचेंगे, इसलिए वे उस वक्त धरती पर मौजूद होंगे जब स्वर्ग में मसीहाई राजा की शादी पूरी होगी। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 13, 14) उस मौके पर वे “आनन्दित और मगन” होंगे।
45:16—इसका मतलब क्या है कि राजा के पितरों के स्थान पर पुत्र होंगे? जब यीशु धरती पर पैदा हुआ था, तब उसके इंसानी बाप-दादे थे। मगर जब वह अपनी हज़ार साल की हुकूमत के दौरान उन्हीं बाप-दादों को ज़िंदा करेगा, तो वे उसके पुत्र ठहरेंगे। उनमें से कुछ को “सारी पृथ्वी पर हाकिम” ठहराया जाएगा।
50:2—यरूशलेम को “परम सुन्दर” क्यों कहा गया है? इसलिए नहीं कि यह शहर दिखने में खूबसूरत था, बल्कि इसलिए कि यहोवा ने इस शहर का इस्तेमाल किया था। उसने इसी जगह पर अपना मंदिर बनवाया और उसे अपने अभिषिक्त राजा की राजधानी ठहरायी, और इस तरह इस जगह की शोभा बढ़ायी।
हमारे लिए सबक:
42:1-3. जिस तरह एक हरिणी सूखे इलाके में पानी के लिए तरसती है, उसी तरह एक लेवी यहोवा के लिए तरसता है। यहोवा के मंदिर में जाकर उसकी उपासना न कर पाने की वजह से वह इतना दुःखी था कि ‘उसके आंसू दिन और रात उसका आहार’ बन गए थे, यानी उसकी भूख ही मिट गयी थी। क्या हमें अपने मसीही भाई-बहनों के साथ मिलकर यहोवा की उपासना करने के मौके के लिए दिल में कदरदानी नहीं पैदा करनी चाहिए?
42:4, 5, 11; 43:3-5. अगर किसी वजह से, जिस पर हमारा कोई बस नहीं, हम कुछ समय के लिए मसीही कलीसिया से जुदा हो जाते हैं, तो ऐसे में बीते समय के दौरान हमें कलीसिया के साथ संगति करने की जो खुशी मिली थी, उसकी यादें हमें थाम सकती है। हालाँकि शुरू-शुरू में ये यादें हमारी तनहाई का दर्द बढ़ा सकती हैं, मगर ये हमें इस बात का एहसास भी दिला सकती हैं कि यहोवा हमारा शरणस्थान है और राहत पाने के लिए हमें उस पर आस लगाए रखने की ज़रूरत है।
46:1-3. हम पर चाहे मुसीबत का कोई भी पहाड़ क्यों न टूट पड़े, हमें परमेश्वर पर पूरा भरोसा रखना चाहिए कि वह “हमारा शरणस्थान और बल है।”
50:16-19. जो कोई छल की बातें कहता और बुरे काम करता है, उसे परमेश्वर की तरफ से गवाही देने का कोई हक नहीं है।
50:20. बड़े शौक से दूसरों की खामियों का ढिंढोरा पीटने के बजाय, हमें उन्हें नज़रअंदाज़ कर देना चाहिए।—कुलुस्सियों 3:13.
“हे मेरे मन, परमेश्वर के साम्हने चुपचाप रह”
भजनों का यह भाग, दाऊद की दिल से की गयी प्रार्थना के साथ शुरू होता है, जो उसने बतशेबा के साथ पाप करने के बाद की थी। भजन 52 से 57 दिखाते हैं कि यहोवा उन लोगों को छुटकारा दिलाएगा जो अपना बोझ उस पर डाल देते हैं और उद्धार के लिए उस पर आस लगाते हैं। और जैसे भजन 58-64 में बयान किया गया है, दाऊद ने अपनी सभी मुसीबतों से गुज़रते वक्त, यहोवा को अपना शरणस्थान बनाया। उसने अपने एक गीत में गाया: “हे मेरे मन, परमेश्वर के साम्हने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है।”—भजन 62:5.
अपने छुड़ानेवाले के साथ करीबी रिश्ता होने की वजह से हमारे अंदर यह प्रेरणा जागनी चाहिए कि हम ‘उसके नाम की महिमा का भजन गाएँ।’ (भजन 66:2) भजन 65 में यहोवा को उदार अन्नदाता, भजन 67 और 68 में छुटकारे के काम करनेवाला परमेश्वर, और भजन 70 और 71 में उसे अपने लोगों का छुड़ानेवाला कहा गया है।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
51:12—दाऊद ने खुद को सँभालने के लिए किसकी “उदार” या तत्पर “आत्मा” की गुज़ारिश की? यह तत्पर आत्मा, दाऊद की मदद करने की यहोवा की तत्परता नहीं है और ना ही यह यहोवा की पवित्र आत्मा है। इसके बजाय, यह दाऊद की अपनी आत्मा, या उसके मन का रुझान है। उसने परमेश्वर से गुज़ारिश की कि वह उसके मन में सही काम करने की तमन्ना डाले।
53:1—जो इंसान, परमेश्वर के वजूद को मानने से इनकार कर देता है, उसे “मूढ़” क्यों कहा गया है? यहाँ मूढ़ता का मतलब यह नहीं कि एक इंसान में बुद्धि की कमी है, बल्कि यह कि वह नैतिक रूप से मूढ़ है। इसका सबूत हमें भजन 53:1-4 से मिलता है, जहाँ लिखा है कि परमेश्वर को न मानने की वजह से किस तरह लोगों के नैतिक आदर्शों में भारी गिरावट आयी है।
58:3-5—दुष्ट लोग किस मायने में साँप जैसे हैं? वे दूसरों के बारे में जो झूठ बोलते हैं, वे साँप के ज़हर की तरह हैं। जिस तरह ज़हर से एक इंसान की मौत हो जाती है, उसी तरह झूठी बातों से एक इंसान की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाती है। जैसे ‘एक नाग अपने कान बन्द कर लेता है,’ वैसे ही दुष्ट लोग सही निर्देशन या ताड़ना सुनने से इनकार कर देते हैं।
58:7—दुष्ट लोग कैसे “घुलकर बहते हुए पानी के समान हो” जाते हैं? हो सकता है यह आयत लिखते वक्त दाऊद, वादा-ए-मुल्क की कुछ नदियों की घाटी में बहते पानी के बारे में सोच रहा था। जब एक बड़ा सैलाब आता है, तो ऐसी घाटियाँ पानी से भर जाती हैं और नदियाँ उमड़ने लगती हैं। मगर जब सैलाब खत्म हो जाता है, तो घाटियों का पानी भी झटपट गायब हो जाता है। दाऊद बिनती कर रहा था कि दुष्ट लोग भी इसी तरह झटपट गायब हो जाएँ।
68:13—यह कैसे हो सकता है कि ‘कबूतरी के पंख चान्दी से और पर पीले सोने से मढ़े हुए हैं’? नीले-भूरे रंग के ऐसे कई कबूतर हैं जिनके कुछ-कुछ पंखों पर सतरंगी चमक होती है। सूरज की सुनहरी रोशनी में उनके पंख, धातु की तरह जगमगाते हैं। दाऊद शायद जंग जीतकर लौटनेवाले इस्राएली योद्धाओं की तुलना ऐसे ही एक कबूतर के साथ कर रहा था, जो पूरी ताकत के साथ उड़ान भरता है और बहुत ही शानदार दिखता है। कुछ विद्वान कहते हैं कि कबूतर का मतलब एक कलाकृति भी हो सकती है जिसे कब्ज़ा की गयी जगह से एक इनाम के तौर पर उठाकर लाया गया हो। चाहे जो भी हो, एक बात तय है कि दाऊद इस आयत में उन फतहों की तरफ इशारा कर रहा था, जो यहोवा ने अपने लोगों को उनके दुश्मनों के खिलाफ दिलायी थीं।
68:18 (बुल्के बाइबिल)—ये ‘मनुष्य’ कौन हैं जिन्हें “शुल्क-स्वरूप ग्रहण किया” गया है? ये उन लोगों में से कुछ पुरुष थे जिन्हें वादा-ए-मुल्क के नाश के बाद, बंदी बनाकर ले गए थे। इन पुरुषों को बाद में लेवियों की मदद करने का काम सौंपा गया था।—एज्रा 8:20.
68:30—‘नरकटों में रहनेवाले बनैले पशुओं को झिड़क देने’ की गुज़ारिश का क्या मतलब है? दाऊद ने जंगली जानवरों का इस्तेमाल, यहोवा के लोगों के दुश्मनों को दर्शाने के लिए किया था। इस तरह उसने परमेश्वर से गुज़ारिश की कि वह उन्हें झिड़क दे, यानी उन्हें काबू में रखे ताकि वे उसके लोगों को ज़्यादा नुकसान न पहुँचा सकें।
69:23—‘शत्रुओं की कटि को निरन्तर कंपाते रहने’ का मतलब क्या है? हमारी कटि में जो माँस-पेशियाँ हैं, वे बोझा उठाने और ढोने जैसे भारी काम करने के लिए ज़रूरी हैं। इसलिए कटि के अस्थिर होने का मतलब है, ताकत की कमी। तो दाऊद ने यह प्रार्थना की कि उसके दुश्मनों से उनकी ताकत छीन ली जाए।
हमारे लिए सबक:
51:1-4, 17. यह ज़रूरी नहीं कि पाप करने की वजह से हम यहोवा परमेश्वर से दूर चले जाएँगे। अगर हम पश्चाताप करें, तो हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि वह हम पर दया ज़रूर करेगा।
51:5, 7-10. अगर हमने कोई पाप किया है, तो हम यहोवा से माफी माँग सकते हैं, क्योंकि हमें पाप विरासत में मिला है। इसके अलावा, हमें यह भी प्रार्थना करनी चाहिए कि यहोवा हमें शुद्ध करे, दोबारा उसके साथ एक अच्छा रिश्ता कायम करने में मदद दे, हमारे दिल से पाप करने की इच्छा निकाल दे, और एक स्थिर आत्मा दे।
51:18. दाऊद के पापों की वजह से पूरी जाति खतरे में पड़ गयी थी। इसलिए उसने परमेश्वर से बिनती की कि वह प्रसन्न होकर सिय्योन की भलाई करे। उसी तरह, जब हम पाप करते हैं तो इससे परमेश्वर और कलीसिया के नाम पर कलंक लगता है। इसलिए हमें परमेश्वर से प्रार्थना करने की ज़रूरत है कि वह इस नुकसान की भरपाई करे।
52:8. हम “परमेश्वर के भवन में हरे जलपाई के वृक्ष के समान” हो सकते हैं, यानी उसके करीब रह सकते हैं और उसकी सेवा में अच्छे फल ला सकते हैं। वह कैसे? उसकी आज्ञाएँ मानकर और उसके अनुशासन को कबूल करने के लिए तैयार रहकर।—इब्रानियों 12:5, 6.
55:4, 5, 12-14, 16-18. जब दाऊद के अपने बेटे, अबशलोम ने उसके खिलाफ साज़िश रची और जब अहीतोपेल ने, जिसकी हर सलाह पर वह बहुत भरोसा करता था, उसके साथ गद्दारी की, तो उसके दिल को बहुत ठेस पहुँची। मगर फिर भी, यहोवा पर उसका विश्वास ज़रा भी नहीं डगमगाया। हम भी चाहे कितने ही दर्द या पीड़ाओं से गुज़र रहे हों, हमें कभी-भी परमेश्वर पर अपने विश्वास को कमज़ोर होने नहीं देना चाहिए।
55:22. हम यहोवा पर अपना बोझ कैसे डाल सकते हैं? इन तरीकों से: (1) जिस बात की चिंता हमें खायी जा रही है, उसके बारे में प्रार्थना करके, (2) उसके वचन और संगठन से मार्गदर्शन माँगकर और उनकी मदद लेकर, और (3) खुद के हालात को सुधारने के लिए जितना हमसे बन पड़ता है, उतना करने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश करके।—नीतिवचन 3:5, 6; 11:14; 15:22; फिलिप्पियों 4:6, 7.
56:8. यहोवा न सिर्फ हमारे हालात से वाकिफ होता है, बल्कि ऐसे हालात में हमारे दिल पर क्या बीत रही है, इस बारे में भी वह जानता है।
62:11. परमेश्वर को शक्ति के लिए किसी बाहरी स्रोत पर निर्भर करने की ज़रूरत नहीं है। वह खुद शक्ति का स्रोत है। जी हाँ, “सामर्थ्य परमेश्वर [ही] का है।”
63:3. परमेश्वर की “करुणा जीवन से भी उत्तम है,” क्योंकि इसके बिना ज़िंदगी बेमतलब की है। इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि हम यहोवा के साथ दोस्ती करें।
63:6. रात का समय, मनन करने के लिए बहुत ही बढ़िया वक्त होता है, क्योंकि तब माहौल शांत रहता है और ध्यान भटकने की गुंजाइश भी नहीं रहती।
64:2-4. नुकसानदेह गपशप से एक बेकसूर इंसान का अच्छा नाम खाक में मिल सकता है। हमें न तो ऐसी गपशप में शरीक होना चाहिए, ना ही इसे फैलाना चाहिए।
69:4. शांति बनाए रखने के लिए, कभी-कभी हमारे लिए समझदारी इसी में होती है कि हम दूसरों को ‘दें’ यानी माफी माँगे, फिर चाहे हमें पूरा यकीन क्यों न हो कि गलती हमारी नहीं है।
70:1-5. मुसीबत के वक्त, जब हम यहोवा से मदद की भीख माँगते हैं, तो वह हमारी सुनता है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:17; याकूब 1:13; 2 पतरस 2:9) हो सकता है वह हमारी तकलीफ को न हटाए, फिर भी वह हमें इसका सामना करने के लिए बुद्धि और धीरज धरने के लिए ताकत ज़रूर देगा। वह हमें सामर्थ से बाहर परीक्षा में पड़ने नहीं देगा।—1 कुरिन्थियों 10:13; इब्रानियों 10:36; याकूब 1:5-8.
71:5, 17. दाऊद की हिम्मत और ताकत का राज़ यह था कि उसने बचपन से ही यहोवा पर भरोसा रखना शुरू कर दिया था। जी हाँ, पलिश्ती दानव जैसे गोलियत का मुकाबला करने से भी बहुत पहले। (1 शमूएल 17:34-37) बच्चों और जवानों को हर मामले में यहोवा पर पूरा भरोसा रखना चाहिए।
‘सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण हो’
भजनों के दूसरे संग्रह के आखिरी गीत, यानी भजन 72 में सुलैमान की हुकूमत के बारे में बताया गया है। इससे हमें इस बात की झलक मिलती है कि मसीहा की हुकूमत के दौरान धरती पर कैसे हालात होंगे। उस भजन में इन बेहतरीन आशीषों का क्या ही खूबसूरत ब्यौरा दिया गया है: चारों तरफ शांति होगी, हिंसा और अत्याचार का नामो-निशान नहीं रहेगा, और धरती पर बहुत-सा अन्न होगा। क्या हम उन लोगों में से एक होंगे जो इस समाँ और राज्य की दूसरी आशीषों का लुत्फ उठाएँगे? हम उनमें से एक हो सकते हैं, बशर्ते हम भजनहार की तरह यहोवा पर आस लगाएँ और उसे अपना शरणस्थान और बल बनाएँ।
“दाऊद की प्रार्थनाएं” इन शब्दों से ‘समाप्त होती हैं’: “धन्य है, यहोवा परमेश्वर जो इस्राएल का परमेश्वर है; आश्चर्य कर्म केवल वही करता है। उसका महिमायुक्त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी। आमीन फिर आमीन।” (भजन 72:18-20) आइए हम भी दाऊद की तरह पूरे तन-मन से यहोवा को धन्य कहें और महिमा से भरपूर उसके नाम का गुणगान करें।
[पेज 9 पर तसवीर]
क्या आप जानते हैं कि “राजकुमारी” किसे दर्शाती है?
[पेज 10, 11 पर तसवीर]
यरूशलेम को “परम सुन्दर” कहा गया है। क्या आप जानते हैं क्यों?