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खुशी पाने के लिए एक भरोसेमंद मदद

खुशी पाने के लिए एक भरोसेमंद मदद

खुशी पाने के लिए एक भरोसेमंद मदद

“खुशी पाने की कोशिश करना” हर इंसान का अधिकार है। यह बात, अमरीका के कानून बनानेवालों ने ‘स्वतंत्रता के घोषणा पत्र’ में कही थी। मगर किसी लक्ष्य को पाने की कोशिश करने और उसे पा लेने में फर्क है। मिसाल के लिए, आज बहुत-से नौजवान मनोरंजन और खेल की दुनिया में दौलत और शोहरत पाने की कोशिश करते हैं। मगर उनमें से कितनों को अपना लक्ष्य पाने में कामयाबी मिली है? “कामयाबी पाने की गुंजाइश बहुत कम होती है।” यह बात एक ऐसे मशहूर गायक ने कही, जो अच्छी तरह जानता है कि एक कामयाब संगीतकार बनने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं।

अगर आपको भी लगता है कि खुशी पाने में आपको कामयाबी नहीं मिलेगी, तो दिल छोटा मत कीजिए। आप खुशी पा सकते हैं, बशर्ते आप उसे सही तरीके से पाने की कोशिश करें। ऐसा क्यों कहा जा सकता है? पिछले लेख में आपने पढ़ा कि यहोवा को “आनंदित परमेश्‍वर” कहा गया है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) यहोवा ने बाइबल में ऐसी सलाह और मदद दी है जिसे कबूल करने से खुशी पाने की आपकी कोशिश बेकार नहीं जाएगी, या दूसरे शब्दों में कहें तो आपको निराशा हाथ नहीं लगेगी। इसके अलावा, यहोवा आपको उन दुःखों से भी उबरने में मदद दे सकता है जो आम तौर पर हर इंसान को भोगने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, आइए देखें कि जब आपके किसी अज़ीज़ की मौत हो जाती है, तो ऐसे में यहोवा आपको क्या दिलासा देता है।

जब हमारा कोई अज़ीज़ मर जाए

क्या मौत से किसी को खुशी मिल सकती है? बिलकुल नहीं। जब मौत हमला करती है, तो एक हँसता-खेलता परिवार उजड़ जाता है। यह माँ-बाप को उनके बच्चों से और बच्चों को उनके माँ-बाप से छीन लेती है। यह एक ऐसी आफत है जो दो दोस्तों की गहरी दोस्ती तोड़ देती है और इससे बिरादरियों में आतंक-सा छा जाता है।

ज़ाहिर है कि मौत से दुःखों का कहर टूट पड़ता है। मगर कुछ लोग इस हकीकत से इनकार करते हैं, और अपनी बातों से दिखाते हैं कि वे मौत को एक आशीष मानते हैं। उदाहरण के लिए, अगस्त 2005 में मेक्सिको की खाड़ी में कटरीना नाम का एक भयंकर तूफान आया जिसने कई लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। गौर कीजिए कि उनमें से एक आदमी को मिट्टी देते वक्‍त एक पादरी ने क्या कहा: “कटरीना ने उसकी जान नहीं ली, बल्कि ईश्‍वर ने उसे अपने पास बुला लिया है।” एक और मौके पर जब एक स्त्री की मौत हुई, तो अस्पताल की एक कर्मचारी ने नेक इरादे से उसकी बेटी से कहा कि दुःखी मत हो, आपकी माँ को भगवान्‌ ने स्वर्ग में अपने पास बुला लिया है। उसकी बातों से बेटी को दिलासा मिलने के बजाय और भी चोट पहुँची, और वह यह कहकर रो पड़ी: “क्यों, उसने क्यों मम्मी को मुझसे छीन लिया?”

इससे साफ पता चलता है कि इस तरह की गलत धारणाएँ, गम में डूबे लोगों को सांत्वना नहीं देतीं। क्यों? क्योंकि ये धारणाएँ मौत के बारे में सच्चाई बयान नहीं करतीं। और-तो-और ये परमेश्‍वर को ऐसा ज़ालिम बताती हैं जो दर्दनाक मौत लाकर परिवारों और दोस्तों से उनके अज़ीज़ों को छीन लेता है। इसलिए लोग उसे सांत्वना देनेवाला परमेश्‍वर नहीं मानते बल्कि मौत के लिए उसे कसूरवार ठहराते हैं। मगर परमेश्‍वर का वचन, मौत के बारे में सच्चाई बताता है।

बाइबल मौत को एक दुश्‍मन कहती है। उसमें मौत को एक ऐसा राजा बताया गया है जो इंसानों पर राज करता है। (रोमियों 5:17; 1 कुरिन्थियों 15:26) यह दुश्‍मन इतना शक्‍तिशाली है कि इसके आगे किसी का बस नहीं चलता। मरनेवाला हर इंसान उन अनगिनत लोगों में शुमार हो जाता है जो मौत के हाथों शिकस्त खा चुके हैं। बाइबल की यह सच्चाई जानकर हम समझ पाते हैं कि क्यों हमारे अज़ीज़ों के मरने पर हम दुःखी और लाचार महसूस करते हैं और यह भी कि ऐसी भावनाओं से लगभग हर इंसान गुज़रता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या परमेश्‍वर, दुश्‍मन मौत के ज़रिए हमारे अज़ीज़ों को अपने पास बुला लेता है? आइए देखें कि बाइबल इस सवाल का क्या जवाब देती है।

सभोपदेशक 9:5, 10 में बाइबल कहती है: “मरे हुए कुछ भी नहीं जानते . . . क्योंकि अधोलोक [इब्रानी में, “शीओल”] में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्‍ति न ज्ञान और न बुद्धि है।” शीओल क्या है? शीओल का मतलब है, कब्र जहाँ मरने के बाद सभी इंसान जाते हैं। कब्र में, मरे हुए न तो काम कर सकते हैं, न चल-फिर सकते हैं, न कुछ महसूस कर सकते हैं और ना ही कुछ सोच सकते हैं। उनकी हालत गहरी नींद में सोए एक इंसान की तरह है जिसे कोई होश नहीं रहता कि उसके आस-पास क्या हो रहा है। * इस तरह बाइबल से हमें साफ पता चलता है कि परमेश्‍वर हमारे मरे हुए अज़ीज़ों को अपने पास, स्वर्ग में नहीं बुला लेता है। बल्कि मरने पर वे कब्र में अचेत पड़े रहते हैं।

मरे हुए अचेत हैं, इस सच्चाई को खुद यीशु ने अपने मित्र, लाजर की मौत के वक्‍त पुख्ता किया था। उसने मौत की तुलना नींद से की। अगर मरने पर लाजर सचमुच सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के पास स्वर्ग गया होता, तो क्या यीशु उसे वापस धरती पर ज़िंदा करता, जहाँ उसे एक-न-एक-दिन दोबारा मरना पड़ता? नहीं। ऐसा करना लाजर के लिए प्यार दिखाना नहीं होता। यीशु जानता था कि लाजर स्वर्ग नहीं गया था, बल्कि कब्र में अचेत पड़ा हुआ था। इसलिए बाइबल बताती है कि यीशु लाजर की कब्र के पास गया और ज़ोर से पुकार लगायी: “हे लाजर, निकल आ।” आगे क्या हुआ, इस बारे में बाइबल कहती है: “जो मर गया था, वह . . . निकल आया।” लाजर फिर से जीने लगा।—यूहन्‍ना 11:11-14, 34, 38-44.

बाइबल में दर्ज़ इस वाकये से हम समझ सकते हैं कि परमेश्‍वर, मौत का इस्तेमाल करके इंसानों को स्वर्ग में नहीं उठा लेता। इसलिए हम परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता जोड़ सकते हैं क्योंकि हमें मालूम है कि वह मौत के लिए ज़िम्मेदार नहीं। हम यह भी भरोसा रख सकते हैं कि दुश्‍मन मौत हम पर जो दुःख और कहर ढाती है, उसे यहोवा बखूबी समझता है। इसके अलावा बाइबल, मरे हुओं की हालत के बारे में जो सच्चाई बताती है, उससे साबित होता है कि उन्हें नरक की आग में तड़पाया नहीं जाता, मगर वे कब्र में बेसुध पड़े रहते हैं। इसलिए जब हम अपने मरे हुओं को याद करते हैं, तो हमारे मन में परमेश्‍वर के लिए नफरत नहीं होगी कि उसने हमारे अज़ीज़ों को हमसे छीन लिया है। ना ही हमें इस बात की चिंता होगी कि हमारे मरे हुए कहाँ हैं। इतना ही नहीं, बाइबल के ज़रिए यहोवा हमें और भी सांत्वना देता है।

आशा से खुशी मिलती है

अब तक हमने शास्त्र के जिन वचनों पर चर्चा की, उनसे पता चलता है कि आशा और सच्ची खुशी का एक-दूसरे से गहरा नाता है। बाइबल में “आशा” शब्द को जिस तरह इस्तेमाल किया गया है, उसका मतलब है, पूरे यकीन के साथ भलाई की उम्मीद करना। यह जानने के लिए कि आशा से हमें अभी खुशी कैसे मिल सकती है, आइए एक बार फिर उस किस्से पर नज़र डालें जिसमें यीशु ने चमत्कार करके लाजर को दोबारा ज़िंदा किया था।

यीशु ने यह चमत्कार क्यों किया, इसकी कम-से-कम दो वजह थीं। पहली वजह थी, लाजर की बहनों मार्था और मरियम का, साथ ही उसके दोस्तों का गम दूर करना। लाजर को ज़िंदा देखकर वे खुशी से फूले नहीं समाए होंगे। अब एक बार फिर, वे अपने प्यारे लाजर को देख सकते थे, उससे बातें कर सकते थे। मगर यीशु ने मार्था को इस चमत्कार की दूसरी और सबसे अहम वजह बतायी: “क्या मैं ने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्‍वास करेगी, तो परमेश्‍वर की महिमा को देखेगी।” (यूहन्‍ना 11:40) जे. बी. फिलिप्स के द न्यू टेस्टामैंट इन मॉर्डन इंग्लिश में इस वचन के आखिरी शब्दों का अनुवाद इस तरह से किया गया है: “वह अद्‌भुत काम जो परमेश्‍वर कर सकता है।” यीशु ने लाजर का पुनरुत्थान करके उस अद्‌भुत काम की एक झलक दिखायी, जो यहोवा परमेश्‍वर भविष्य में बड़े पैमाने पर करनेवाला है। ‘परमेश्‍वर के इस अद्‌भुत काम’ के बारे में यहाँ और भी कुछ बातें बतायी गयी हैं।

यूहन्‍ना 5:28 में यीशु ने कहा: “इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।” इसका मतलब है कि हमारे जो अज़ीज़ और बाकी जितने भी मरे हुए लोग शीओल में हैं, उन सबको दोबारा ज़िंदा किया जाएगा। प्रेरितों 24:15 उस शानदार घटना के बारे में और जानकारी देता है: “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” इससे ज़ाहिर होता है कि ‘अधर्मियों’ को भी ज़िंदा किया जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो जिन लोगों ने अपने जीते-जी, न तो यहोवा को जाना और ना ही उसकी सेवा की, उन्हें भी भविष्य में परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने का मौका दिया जाएगा।

यह पुनरुत्थान कहाँ होगा? भजन 37:29 कहता है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” सोचिए तो इसका क्या मतलब है। इसका मतलब है कि मौत ने जिन अज़ीज़ों को आपसे छीन लिया है, उनका इसी धरती पर पुनरुत्थान होगा और आप उनसे दोबारा मिल पाएँगे। भविष्य में अपने अज़ीज़ों के साथ हँसी-खुशी वक्‍त बिताने की आशा के बारे में सोचकर, लाज़िमी है कि आपका दिल मारे खुशी के गदगद हो उठेगा।

यहोवा आपको खुश देखना चाहता है

अब तक हमने ऐसे दो तरीकों पर गौर किया है जिनसे यहोवा आपकी खुशी बढ़ा सकता है, फिर चाहे आप मुश्‍किलों से क्यों न जूझ रहे हों। पहला, वह बाइबल के ज़रिए आपको ऐसा ज्ञान और मार्गदर्शन देता है, जिससे आप मुसीबतों का सामना करने में कामयाब हो सकें। बाइबल की सलाह आपको न सिर्फ मौत के गम से उबरने में, बल्कि पैसों की तंगी और खराब सेहत जैसी समस्याओं का सामना करने में भी मदद दे सकती है। यह आपको समाज में हो रहे अन्याय और राजनैतिक उथल-पुथल जैसे हालात को सहने की ताकत दे सकती है। और अगर आप बाइबल की दिखायी राह पर चलें, तो आप दूसरी परेशानियों का भी सामना कर सकते हैं।

दूसरा, बाइबल का अध्ययन करने से आपको ऐसी बढ़िया आशा मिलती है जिसके आगे इंसानी संगठन की दी गयी हर आशा फीकी पड़ जाती है। बाइबल की इस आशा में पुनरुत्थान की आशा भी शामिल है। प्रकाशितवाक्य 21:3, 4 में इस बारे में और भी कुछ बातें बतायी गयी हैं: “परमेश्‍वर आप [मनुष्यों] के साथ रहेगा . . . और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” इसका मतलब है कि आपकी ज़िंदगी में दुःख के जितने भी कारण हैं, वे सब बहुत जल्द और हमेशा के लिए मिटा दिए जाएँगे। बाइबल के वादे ज़रूर पूरे होंगे और उन वादों से आपको भी फायदा पहुँच सकता है। आगे बेहतर समय आनेवाला है, यह जानकर ही आज हमें कितनी राहत मिलती है! और यह भी जानकर हमें कितनी राहत और खुशी मिलती है कि मरने पर इंसानों को हमेशा के लिए तड़पाया नहीं जाता।

आशा के बारे में अच्छी तरह समझने के लिए आइए मारीआ की मिसाल लें। कई साल पहले उसने अपने पति को कैंसर से एक दर्दनाक मौत मरते देखा था। वह पति की मौत के सदमे से उबर भी न पायी थी कि उसके सिर पर एक और मुसीबत टूट पड़ी। पैसों की तंगी की वजह से उसे और उसकी तीन बेटियों को अपना खानदानी घर छोड़ना पड़ा। दो साल बाद मारीआ को पता चला कि उसे भी कैंसर है। उसने दो बड़े ऑपरेशन करवाए और अपनी बीमारी की वजह से उसे हर दिन बहुत दर्द सहना पड़ता है। इन मुश्‍किलों के बावजूद वह हमेशा खुश रहती है और दूसरों को हौसला देती है। वह अपनी खुशी कैसे बरकरार रख पाती है?

मारीआ कहती है: “जब मेरे सामने कोई समस्या आती है, तो मैं उसके बारे में ज़्यादा सोचने की कोशिश नहीं करती। मैं अपने आपसे ऐसे सवाल नहीं करती जैसे, ‘यह मेरे साथ ही क्यों होना था? मुझे ही यह तकलीफ क्यों झेलनी पड़ती है? क्या बीमारी को मैं ही सूझी थी?’ इस तरह की गलत सोच मुझे थका सकती है। इसलिए ऐसी सोच रखने के बजाय, मैं अपनी ताकत यहोवा की सेवा करने और दूसरों की मदद करने में लगाती हूँ। इससे मुझे खुशी मिलती है।”

आशा से मारीआ को किस तरह मदद मिली है? वह इसी आशा के सहारे जी रही है कि भविष्य में यहोवा, इंसान की सारी बीमारियों और समस्याओं को दूर करेगा। जब मारीआ अपने इलाज के लिए अस्पताल जाती है, तो वह कैंसर के उन मरीज़ों को भी यह आशा देती है जो शायद अपनी बीमारी की वजह से निराश हों। मारीआ की ज़िंदगी में आशा की क्या अहमियत है? वह कहती है: “मैं अकसर बाइबल में इब्रानियों 6:19 की आयत के बारे में सोचती हूँ जहाँ पर पौलुस आशा को हमारे प्राण के लिए लंगर बताता है। उस लंगर के बगैर हम एक ऐसे जहाज़ की तरह होंगे जो तूफान के थपेड़े खाकर डूब जाता है। लेकिन अगर हम अपनी आशा को मज़बूती से थामे रहें, तो ज़िंदगी में आनेवाले तूफानों का सामना करते वक्‍त भी हम नहीं टूटेंगे।” मारीआ “अनन्त जीवन की आशा” से अपनी खुशी बरकरार रख पाती है ‘जिस की प्रतिज्ञा उस परमेश्‍वर ने की है जो झूठ बोल नहीं सकता।’ यह आशा आपकी भी खुशी बरकरार रख सकती है।—तीतुस 1:2.

बाइबल का अध्ययन करने से आप, अपनी मुश्‍किलों के बावजूद सच्ची खुशी पा सकते हैं। लेकिन शायद आप सोचें कि क्या इस अध्ययन से आपको सचमुच कोई फायदा होगा? बेशक होगा। यहोवा के साक्षी बाइबल से आपको ऐसे सवालों के जवाब देंगे जिन्हें जानकर आपको सच्ची खुशी मिलेगी। जब आप उस आशा के पूरा होने की आस लगाते हैं जो यहोवा ने दी है, तो आप उन लोगों की तरह खुश हो सकते हैं जिनके बारे में बताया गया है: “वे हर्ष और आनन्द पाएंगे और शोक और लम्बी सांस का लेना जाता रहेगा।”—यशायाह 35:10. (w06 6/15)

[फुटनोट]

^ इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका (2003) शीओल के बारे में कहती है कि यह “एक ऐसी जगह है जहाँ न तो दुःख भोगना पड़ता है, ना ही सुख और जहाँ न तो सज़ा दी जाती है, ना ही इनाम।”

[पेज 5 पर तसवीर]

सिर्फ बाइबल की सच्चाई जानकर ही हमारा दुःख हलका हो सकता है

[पेज 7 पर तसवीर]

बाइबल में दी गयी पुनरुत्थान की आशा से आपको खुशी मिल सकती है