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“तेरी चितौनियां मेरा सुखमूल . . . हैं”

“तेरी चितौनियां मेरा सुखमूल . . . हैं”

“तेरी चितौनियां मेरा सुखमूल . . . हैं”

“जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं।”—रोमियों 15:4.

1. यहोवा हमें अपनी चितौनियाँ किन-किन तरीकों से देता है, और हमें उनकी ज़रूरत क्यों है?

 यहोवा अपने लोगों को चितौनियाँ देता है ताकि वे मुश्‍किलों से भरे इस दौर में आनेवाले दबावों का सामना कर सकें। कुछ चितौनियाँ हमें तब मिलती हैं जब हम बाइबल पढ़ते हैं, तो कुछ हमें, मसीही सभाओं के दौरान दी जानेवाली जानकारी या फिर हाज़िर भाई-बहनों के जवाबों से मिलती हैं। अकसर ये चितौनियाँ हमारे लिए नयी नहीं होतीं। हम पहले भी इन्हें पढ़ या सुन चुके होते हैं। फिर भी, हमें यहोवा के उद्देश्‍यों, नियमों और हिदायतों के बारे में लगातार याद दिलाया जाना ज़रूरी है क्योंकि हमें भूलने की आदत होती है। हमें परमेश्‍वर की चितौनियों के लिए उसके एहसानमंद होना चाहिए। क्योंकि ये चितौनियाँ, हमें हमेशा याद दिलाती हैं कि हमने परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक जीने का फैसला क्यों किया था और इस तरह ये हमारा हौसला बढ़ाती हैं। इसलिए भजनहार ने अपने गीत में यहोवा से कहा: “तेरी चितौनियां मेरा सुखमूल . . . हैं।”—भजन 119:24.

2, 3. (क) यहोवा ने बाइबल के किरदारों की कहानियों को हमारे दिनों तक क्यों बरकरार रखा है? (ख) इस लेख में बाइबल के कौन-कौन-से वाकयों पर ध्यान दिया जाएगा?

2 हालाँकि परमेश्‍वर का वचन कई सदियों पहले लिखा गया था, मगर यह आज भी उतना ही प्रबल है। (इब्रानियों 4:12) इसमें बाइबल के किरदारों की सच्ची दास्तान दी गयी हैं। हालाँकि बाइबल के ज़माने से लेकर आज तक, दस्तूरों और लोगों के सोचने के तरीके में काफी बदलाव आया है, मगर उस ज़माने की समस्याओं और आज की समस्याओं में कोई खास बदलाव नहीं आया है। बाइबल में कई दिल छू लेनेवाली कहानियाँ आज तक हमारे फायदे के लिए बरकरार रखी गयी हैं। जैसे, इसमें ऐसे लोगों की मिसालें दी गयी हैं जो यहोवा से प्यार करते थे और जिन्होंने मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी उसकी सेवा करना नहीं छोड़ा। बाइबल में दर्ज़ दूसरे किस्सों से हमें पता चलता है कि परमेश्‍वर किस तरह के चालचलन से नफरत करता है। यहोवा ने अच्छी और बुरी मिसाल रखनेवाले लोगों के किस्से बाइबल में इसलिए दर्ज़ करवाए हैं ताकि हम उन्हें याद रखकर उनसे ज़रूरी सबक सीख सकें। यही बात प्रेरित पौलुस ने अपनी पत्री में लिखी: “जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।”—रोमियों 15:4.

3 आइए बाइबल से ऐसे तीन वाकयों पर ध्यान दें: शाऊल के साथ दाऊद का बर्ताव, हनन्याह और सफीरा की कहानी और पोतीपर की पत्नी के साथ यूसुफ का व्यवहार। इनमें से हरेक वाकया हमें अनमोल सबक सिखाता है।

परमेश्‍वर के इंतज़ामों के वफादार रहना

4, 5. (क) राजा शाऊल और दाऊद को लेकर कौन-से हालात उठ खड़े हुए थे? (ख) शाऊल की नफरत को देखकर दाऊद ने क्या किया?

4 राजा शाऊल यहोवा का वफादार न रहा और इसलिए वह यहोवा के लोगों पर हुकूमत करने के काबिल न रहा। यही वजह है कि परमेश्‍वर ने उसे ठुकरा दिया और शमूएल नबी को आज्ञा दी कि वह दाऊद को इस्राएल का अगला राजा बनने के लिए उसका अभिषेक करे। जब दाऊद ने युद्ध के मैदान में अपनी बहादुरी और कौशल का सबूत दिया और लोगों ने उसकी वाह-वाही की, तो शाऊल उसे अपना दुश्‍मन समझने लगा। कई बार तो उसने दाऊद को जान से मारने की कोशिश की। मगर हर बार दाऊद बच गया, क्योंकि यहोवा उसके साथ था।—1 शमूएल 18:6-12, 25; 19:10, 11.

5 दाऊद को कई सालों तक मजबूरन एक भगोड़ा बनकर जीना पड़ा। जब उसे शाऊल को मारने का एक मौका मिला, तब उसके साथियों ने यह कहकर उसे बढ़ावा दिया कि यहोवा ने उसके दुश्‍मन को उसके हाथ में सौंप दिया है। मौका होते हुए भी दाऊद ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। क्यों? क्योंकि वह यहोवा का वफादार था और शाऊल के ओहदे की वह दिल से इज़्ज़त करता था। आखिर शाऊल परमेश्‍वर के लोगों का अभिषिक्‍त राजा था। अगर यहोवा ने शाऊल को इस्राएल का राजा ठहराया था, तो ज़रूरत पड़ने पर उसे राजा के पद से हटा भी सकता था। दाऊद ने अपने साथियों को समझाया कि शाऊल को मारने का उसे कोई अधिकार नहीं था। दाऊद ने शाऊल के दिल में जल रही नफरत की आग को बुझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। फिर आखिरकार उसने कहा: “यहोवा ही उसको मारेगा; वा वह अपनी मृत्यु से मरेगा; वा वह लड़ाई में जाकर मर जाएगा। यहोवा न करे कि मैं अपना हाथ यहोवा के अभिषिक्‍त पर बढ़ाऊं।”—1 शमूएल 24:3-15; 26:7-20.

6. दाऊद और शाऊल की कहानी पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

6 इस वाकये से हम एक अहम सबक सीखते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि मसीही कलीसिया में कुछ समस्याएँ क्यों आती हैं? हो सकता है, एक व्यक्‍ति कुछ इस तरह बर्ताव कर रहा हो जो एक मसीही को शोभा नहीं देता। शायद वह कोई बड़ा पाप न कर रहा हो, मगर फिर भी उसका बर्ताव आपको परेशान करता है। ऐसे में आपको क्या करना चाहिए? उस मसीही के लिए आपकी फिक्र और यहोवा के लिए वफादारी आपको उभारेगी कि आप प्यार से उसे उसकी गलती समझने में मदद दें। ऐसा करने का आपका मकसद होना चाहिए अपने भाई को जीत लेना। लेकिन तब क्या अगर आपकी कोशिशों के बावजूद वह आपकी बात नहीं मानता? तब शायद आप मामले को यहोवा पर छोड़ देने का फैसला करें। आखिर दाऊद ने भी तो यही किया था।

7. जब हम किसी अन्याय या भेदभाव के शिकार होते हैं, तब दाऊद की तरह हमें क्या करना चाहिए?

7 या शायद आप समाज में हो रहे अन्याय या धर्म के नाम पर किए जा रहे भेदभाव के शिकार हों। हो सकता है, आप इन समस्याओं को मिटाने के लिए कुछ न कर सकें। ऐसे हालात से जूझना बहुत मुश्‍किल हो सकता है, मगर दाऊद ने अन्याय सहते वक्‍त जो किया, उससे हम कुछ सबक सीख सकते हैं। दाऊद के लिखे भजन दिल को छू जाते हैं। उसमें उसने यहोवा को दुहाई दी कि वह उसे शाऊल के हाथों पड़ने न दे। साथ ही, उसने यहोवा के लिए अपनी वफादारी बयान की और उसके नाम की महिमा के लिए अपनी फिक्र भी ज़ाहिर की। (भजन 18:1-6, 25-27, 30-32, 48-50; 57:1-11) हालाँकि शाऊल बरसों तक दाऊद के साथ अन्याय करता रहा, मगर फिर भी दाऊद परमेश्‍वर का वफादार बना रहा। हमें भी यहोवा के और उसके संगठन के वफादार बने रहना चाहिए, फिर चाहे हमें कितने ही अन्याय क्यों न सहने पड़ें और लोग हमारे साथ कैसा भी सलूक क्यों न करें। हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारे हालात से बेखबर नहीं है।—भजन 86:2.

8. जब मोज़म्बिक में यहोवा के साक्षियों की वफादारी परखी गयी, तब उन्होंने क्या किया?

8 अगर आज की बात करें, तो परीक्षाओं के दौर में परमेश्‍वर की तरफ अपनी वफादारी बनाए रखने में मोज़म्बिक के मसीहियों ने एक बेहतरीन मिसाल पेश की है। सन्‌ 1984 में, एक उग्रवादी दल के हथियारबंद सदस्यों ने उनके गाँवों पर एक-के-बाद-एक कई हमले किए। उन्होंने वहाँ लूट-मार की, घरों को जलाया, और मार-काट भी की। सच्चे मसीही अपनी हिफाज़त के लिए कुछ न कर सके। इन उग्रवादियों ने गाँववालों को अपने दल में भर्ती होने या दूसरे तरीकों से दल की मदद करने के लिए ज़बरदस्ती की। मगर यहोवा के साक्षियों ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया, क्योंकि ऐसा करना उनके मसीही निष्पक्षता के खिलाफ था। इस इनकार से दल के सदस्यों का गुस्सा और भी भड़क उठा। हालाँकि उस भयानक दौर में कम-से-कम 30 साक्षी मारे गए, मगर मौत का आतंक भी परमेश्‍वर के लोगों की वफादारी को नहीं तोड़ सका। * दाऊद की तरह, उन्होंने अन्याय को सहा और आखिरकार जीत उन्हीं की हुई।

चितौनी जो हमें देती है चेतावनी

9, 10. (क) बाइबल में दी कुछ लोगों की मिसालों से हम कैसे फायदा पा सकते हैं? (ख) हनन्याह और सफीरा ने जो किया, वह गलत क्यों था?

9 बाइबल में कुछ लोगों की मिसालें हमारे लिए एक चेतावनी हैं कि हम वह काम न करें जो उन्होंने किया था। वाकई बाइबल में ऐसे कई लोगों का ज़िक्र मिलता है जिन्होंने गलत काम किए थे और उनका उन्हें बुरा सिला मिला था। इनमें परमेश्‍वर के कुछ सेवक भी शामिल हैं। (1 कुरिन्थियों 10:11) ऐसा ही एक किस्सा हनन्याह और सफीरा नाम के एक शादीशुदा जोड़े का है। वे पहली सदी में यरूशलेम की मसीही कलीसिया के सदस्य थे।

10 सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के बाद, कुछ नए चेले प्रेरितों की संगति का फायदा उठाने के लिए यरूशलेम में ही रुक गए थे। इसलिए उनकी ज़रूरतों का खयाल रखने के लिए कलीसिया के कुछ सदस्यों ने अपनी ज़मीन-जायदाद बेचकर पैसे इकट्ठे किए, ताकि किसी को भी किसी चीज़ की कमी न हो। (प्रेरितों 2:41-45) हनन्याह और सफीरा ने भी अपनी ज़मीन बेच दी, मगर मिले हुए पैसों का एक भाग ही प्रेरितों को दिया और कहने लगे कि हम अपना सारा पैसा दान कर रहे हैं। बात यह नहीं थी कि हनन्याह और सफीरा ने कितना दान दिया था। वे जितना चाहे दान कर सकते थे, कम या ज़्यादा। मगर बात यह थी कि उन्होंने बेईमानी की और उनकी नीयत में खोट थी। वे दरअसल प्रेरितों की नज़रों में छा जाना चाहते थे और जितना कर रहे थे, उससे ज़्यादा करने का दिखावा करना चाहते थे। मगर पवित्र आत्मा की प्रेरणा से प्रेरित पतरस ने उनकी बेईमानी और कपट का पर्दाफाश किया और यहोवा ने उन्हें वहीं मार डाला।—प्रेरितों 5:1-10.

11, 12. (क) ईमानदारी के बारे में बाइबल में दी कुछ चितौनियों की मिसाल दीजिए। (ख) ईमानदारी की राह पर चलने से क्या फायदे होते हैं?

11 लोगों के सामने अपनी अच्छी तसवीर पेश करने के लिए अगर कभी हमारा मन करे कि हम झूठ बोलें, तो ऐसा हो कि हनन्याह और सफीरा की कहानी एक चितौनी बनकर हमें ऐसा करने से खबरदार करे। हम इंसान को धोखा दे सकते हैं, यहोवा को नहीं। (इब्रानियों 4:13) बाइबल हमें बार-बार एक-दूसरे के साथ ईमानदारी से पेश आने को उकसाती है। क्योंकि झूठ बोलनेवालों का नाश किया जाएगा और उनके लिए नयी दुनिया में कोई जगह नहीं होगी। (नीतिवचन 14:2; प्रकाशितवाक्य 21:8; 22:15) आखिर क्यों? इसकी वजह साफ है। वह यह कि झूठ को बढ़ावा देनेवाला कोई और नहीं, खुद शैतान इब्‌लीस है।—यूहन्‍ना 8:44.

12 ईमानदारी की राह पर चलने के ढेरों फायदे हैं। जैसे, हमारा विवेक शुद्ध रहता है और हम दूसरों का भरोसा जीतते हैं। ऐसा कई बार हुआ है कि साक्षियों की ईमानदारी को देखकर उन्हें नौकरी पर रखा गया है या उनकी नौकरी बरकरार रही है। मगर सबसे बड़ा फायदा यह है कि ईमानदारी से हम सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के दोस्त बन सकते हैं।—भजन 15:1, 2.

चरित्र बेदाग रखना

13. यूसुफ ने खुद को किस हालात में पाया, और उस वक्‍त उसने क्या किया?

13 कुलपिता याकूब के बेटे, यूसुफ को 17 साल की उम्र में गुलामी करने के लिए बेच दिया गया था। इसके बाद वह मिस्र के मंत्री, पोतीपर के घराने में काम करने लगा। यूसुफ देखने में बड़ा सजीला नौजवान था। इसलिए उसके स्वामी की पत्नी उस पर फिदा हो गयी। पोतीपर की पत्नी उसके साथ लैंगिक संबंध रखना चाहती थी और हर दिन वह यह कहकर उसके पीछे पड़ती: “मेरे साथ सो।” यूसुफ अपने परिवार से दूर एक ऐसे देश में था जहाँ उसे कोई नहीं जानता था। वह चाहता तो इस औरत के साथ संबंध रख सकता था और किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होती। मगर फिर भी, उसने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, एक दिन जब पोतीपर की पत्नी ने उसे पकड़ने की कोशिश की, तो यूसुफ वहाँ से भाग खड़ा हुआ।—उत्पत्ति 37:2, 18-28; 39:1-12.

14, 15. (क) यूसुफ की कहानी पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए? (ख) एक मसीही बहन क्यों इस बात के लिए शुक्रगुज़ार है कि उसने परमेश्‍वर की चितौनियों को माना?

14 यूसुफ एक ऐसे परिवार में पला-बढ़ा था जो यहोवा का भय मानता था। वह जानता था कि ऐसे दो लोगों के बीच लैंगिक संबंध रखना जो पति-पत्नी नहीं हैं, सरासर गलत है। उसने पोतीपर की पत्नी से कहा: “मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्‍वर के विरोध में कैसे पाप कर सकता हूं”? (NHT) यूसुफ इस नतीजे पर कैसे पहुँचा? शायद उसे पता था कि परमेश्‍वर ने अदन के बाग में इंसानों के लिए यह स्तर ठहराया था कि एक पुरुष की एक ही पत्नी हो। (उत्पत्ति 2:24) यूसुफ ने उस हालात में जो किया, उस पर मनन करने से आज परमेश्‍वर के लोगों को फायदा पहुँच सकता है। कुछ देशों में, लैंगिक संबंध रखने के मामले में इस कदर छूट दी जाती है कि जो जवान अनैतिक काम करने से इनकार करते हैं, उनके दोस्त उनका मज़ाक उड़ाते हैं। बड़ों की बात लें, तो उनमें नाजायज़ संबंध रखना एक मामूली बात हो गयी है। इसलिए यूसुफ की कहानी हमारे लिए सही वक्‍त पर दी गयी चितौनी है। परमेश्‍वर का स्तर बदला नहीं है। वह आज भी व्यभिचार और परस्त्रीगमन को पाप मानता है। (इब्रानियों 13:4) जिन लोगों ने दबाव में आकर नाजायज़ संबंध रखे हैं, वे कबूल करते हैं कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है और उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। इससे एक इंसान को कई बुरे नतीजे भुगतने पड़ते हैं, जैसे अपनी ही नज़रों में गिर जाना, ज़मीर का कचोटना, ईर्ष्या, अनचाहा गर्भ और लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारियाँ लगना। बाइबल की यह चितौनी बिलकुल सच है कि जो इंसान व्यभिचार करता है, वह “अपनी ही देह के विरुद्ध पाप करता है।”—1 कुरिन्थियों 5:9-12; 6:18; नीतिवचन 6:23-29, 32.

15 जेनी * एक अविवाहित साक्षी है जो यहोवा की चितौनियों के लिए शुक्रगुज़ार है। उसकी नौकरी की जगह पर एक सहकर्मी ने, जो दिखने में रूपवान था, उस पर डोरे डालने की कोशिश की। मगर जब जेनी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया, तो वह उसे आकर्षित करने की और भी ज़्यादा कोशिशें करने लगा। जेनी कबूल करती है: “अपना चरित्र बेदाग रखना मुझे मुश्‍किल लगने लगा, क्योंकि जब कोई आदमी आप पर ध्यान देता है, तो आपको अच्छा लगता ही है।” मगर जेनी को एहसास हुआ कि वह शख्स कई स्त्रियों के साथ लैंगिक संबंध रख चुका था, और जेनी को भी अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था। जेनी ने ठान लिया था कि वह उसका विरोध करेगी, मगर जब उसका इरादा कमज़ोर पड़ने लगा, तो उसने वफादार बनी रहने के लिए यहोवा से गिड़गिड़ाकर मदद माँगी। जेनी ने पाया कि जो बातें उसने बाइबल और मसीही साहित्य की खोजबीन करके सीखी थीं, वे उसके लिए चितौनियों की तरह थीं और इससे उसे सावधान रहने में मदद मिली। उनमें से एक चितौनी थी, यूसुफ और पोतीपर की पत्नी की कहानी। जेनी आखिर में कहती है: “जब तक मैं खुद को याद दिलाती रहूँ कि मैं यहोवा से कितना प्यार करती हूँ, तब तक मुझे कोई डर नहीं है कि मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्‍वर के विरोध में पाप करूँगी।”

परमेश्‍वर की चितौनियों को मानिए!

16. बाइबल में दर्ज़ लोगों की कहानियों के बारे में दोबारा पढ़ने और उन पर मनन करने से हमें कैसे फायदा पुहँच सकता है?

16 हम सभी यहोवा के स्तरों के लिए अपनी कदर बढ़ा सकते हैं। कैसे? यह समझने की कोशिश करने के ज़रिए कि क्यों यहोवा ने कुछ वाकयों को बाइबल में आज तक हमारे लिए बरकरार रखा है। ये वाकये हमें क्या सिखाते हैं? बाइबल के किरदारों के किन गुणों या स्वभावों की हमें नकल करनी चाहिए और किनसे दूर रहना चाहिए? परमेश्‍वर के वचन में सैकड़ों लोगों की कहानियाँ दर्ज़ हैं। यहोवा की हिदायतों से प्रेम करनेवाले, अगर ज़िंदगी देनेवाली बुद्धि की लालसा करें, तो उन्हें फायदा पहुँच सकता है। इसमें उन मिसालों से मिलनेवाले सबक भी शामिल हैं, जो यहोवा ने अपने वचन में हमारे लिए सही-सलामत रखे हैं। इस पत्रिका में उन लोगों के बारे में अकसर ऐसे लेख आते हैं, जिनकी कहानियाँ हमें कुछ-न-कुछ सिखाती हैं। क्यों न वक्‍त निकालकर उन लेखों को दोबारा पढ़ें?

17. आप यहोवा की चितौनियों के बारे में कैसा महसूस करते हैं, और क्यों?

17 हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हो सकते हैं कि वह उन लोगों के लिए प्यार और परवाह दिखाता है जो उसकी मरज़ी पर चलने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं! जिस तरह बाइबल में बताए स्त्री-पुरुष सिद्ध नहीं थे, उसी तरह हम भी सिद्ध नहीं हैं। मगर उनके कामों का लिखा ब्यौरा हमारे लिए एक अनमोल खज़ाना है। यहोवा की चितौनियों को मानने से हम बड़ी-बड़ी गलतियाँ करने से बच सकते हैं। साथ ही, धार्मिकता के मार्ग पर चलनेवालों की बढ़िया मिसालों से सीखकर हम भी उनकी तरह बन सकते हैं। अगर हम ऐसा करें, तो हम भी भजनहार की तरह महसूस करेंगे: “क्या ही धन्य हैं वे जो [यहोवा की] चितौनियों को मानते हैं, और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं! मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूं, और उन से बहुत प्रीति रखता आया हूं।”—भजन 119:2, 167. (w06 6/15)

[फुटनोट]

^ 1996 इयरबुक ऑफ जेहोवाज़ विटनॆसॆस के पेज 160-2 देखिए।

^ नाम बदल दिया गया है।

आप क्या जवाब देंगे?

• दाऊद ने शाऊल की तरफ जो रवैया दिखाया, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

• हनन्याह और सफीरा का वाकया हमें क्या सबक सिखाता है?

• यूसुफ की कहानी पर खासकर आज हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीर]

दाऊद ने शाऊल को मारने की इजाज़त क्यों नहीं दी?

[पेज 19 पर तसवीर]

हनन्याह और सफीरा के किस्से से हम क्या सीखते हैं?

[पेज 20 पर तसवीर]

नाजायज़ संबंध रखने की पेशकश को ठुकराने में किस बात ने यूसुफ की मदद की?