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“मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!”

“मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!”

“मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!”

“अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।”—भजन 119:97.

1, 2. (क) भजन 119 के लेखक ने किन हालात का सामना किया था? (ख) ऐसे में उसने कैसा रवैया दिखाया, और क्यों?

 भजन 119 के लेखक ने कड़ी परीक्षा का सामना किया था। घमंडी लोगों ने, जिन्हें परमेश्‍वर की व्यवस्था के लिए कोई कदर नहीं थी, उसका मज़ाक उड़ाया और उस पर झूठे इलज़ाम लगाकर उसे बदनाम किया। हाकिमों ने मिलकर उसके खिलाफ साज़िश रची और उसे बहुत सताया। यहाँ तक कि दुष्ट लोगों ने उसे घेरकर जान से मार डालने की धमकी भी दी। इन सारी मुश्‍किलों से उसका “जीव उदासी के मारे गल चला” था। (भजन 119:9, 23, 28, 51, 61, 69, 85, 87, 161) इसके बावजूद, भजनहार ने अपने गीत में गाया: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।”—भजन 119:97.

2 आप शायद पूछें: “आखिर, भजनहार को परमेश्‍वर की व्यवस्था से कैसे सुकून मिला?” उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा उसकी परवाह करता है और इसी बात ने उसे सँभाले रखा। साथ ही, परमेश्‍वर की व्यवस्था को लागू करने से उसे कई फायदे मिले, इसलिए दुश्‍मनों के विरोध के बावजूद भी वह खुश था। वह जानता था कि यहोवा ने उसके साथ भलाई की है। और-तो-और, व्यवस्था की हिदायतों को मानने से भजनहार अपने दुश्‍मनों से कहीं ज़्यादा बुद्धिमान बना और उसकी जान भी बची। साथ ही, उसे मन की शांति और साफ विवेक मिला।—भजन 119:1, 9, 65, 93, 98, 165.

3. आज, मसीहियों के लिए परमेश्‍वर के उसूलों के मुताबिक जीना एक चुनौती क्यों है?

3 आज भी, परमेश्‍वर के कुछ सेवकों को ऐसी कड़ी परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है जिनमें उनके विश्‍वास की परख होती है। लेकिन हमें शायद भजनहार की तरह जान का खतरा न हो, फिर भी हम “कठिन समय” में जी रहे हैं। हर दिन हमारा ऐसे कई लोगों के साथ उठना-बैठना होता है जिन्हें परमेश्‍वर के स्तरों के लिए रत्ती-भर भी परवाह नहीं होती। अपनी ख्वाहिशें पूरी करना और धन-दौलत कमाना ही उनका लक्ष्य होता है। वे मगरूर होते हैं और किसी की भी इज़्ज़त नहीं करते। (2 तीमुथियुस 3:1-5) मसीही जवानों को भी अच्छा चालचलन बनाए रखने के लिए हर रोज़ कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे माहौल में, यहोवा के लिए प्यार और उसके उसूलों से गहरा लगाव बनाए रखना एक चुनौती हो सकती है। अब सवाल यह है कि हम खुद को कैसे बचाए रख सकते हैं?

4. भजनहार ने परमेश्‍वर की व्यवस्था के लिए गहरा लगाव कैसे पैदा किया, और आज मसीही भी ऐसा कैसे कर सकते हैं?

4 ज़िंदगी में आनेवाले दबावों का सामना करने में, भजनहार को किस बात से मदद मिली? वह परमेश्‍वर की व्यवस्था का दिल लगाकर अध्ययन करने और उस पर मनन करने में काफी समय बिताता था। इस तरह, उसे व्यवस्था से गहरा लगाव हो गया। इसलिए उसने भजन 119 की लगभग हर आयत में यहोवा की व्यवस्था के कुछ पहलुओं का ज़िक्र किया। * आज मसीही, मूसा की उस कानून-व्यवस्था के अधीन नहीं हैं जो परमेश्‍वर ने प्राचीन इस्राएल जाति को दी थी। (कुलुस्सियों 2:14) मगर इसमें दिए सिद्धांत अब भी उनके लिए फायदेमंद हैं। जिस तरह इन सिद्धांतों से भजनहार को दिलासा मिला, उसी तरह आज इनसे परमेश्‍वर के उन सेवकों को भी दिलासा मिल सकता है जो नए ज़माने की मुश्‍किलों से जूझ रहे हैं।

5. हम मूसा की व्यवस्था के किन नियमों पर गौर करेंगे?

5 आइए अब हम मूसा की कानून-व्यवस्था के सिर्फ तीन नियमों पर गौर करें और देखें कि इनसे हमें क्या बढ़ावा मिल सकता है। ये हैं: सब्त का नियम, बीनने का नियम और लालच से दूर रहने की आज्ञा। इन नियमों पर चर्चा करते वक्‍त हम पाएँगे कि अगर हम अपने दिनों के दबावों और समस्याओं का सामना करने में कामयाब होना चाहते हैं, तो हरेक नियम के पीछे दिए सिद्धांतों को समझना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है।

अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत को पूरा करना

6. हम सभी इंसानों की बुनियादी ज़रूरतें क्या हैं?

6 हम इंसानों को बहुत-सी ज़रूरतों के साथ बनाया गया है। जैसे, अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए इंसान को खाने-पीने और एक घर की ज़रूरत होती है। यही नहीं, उसे अपनी “आध्यात्मिक ज़रूरत” को भी पूरा करना होता है और इसी से उसे सच्ची खुशी मिलती है। (मत्ती 5:3, NW) यहोवा, इस पैदाइशी ज़रूरत को पूरा करना इतना ज़रूरी समझता था कि उसने इस्राएलियों को आज्ञा दी थी कि वे हफ्ते का एक पूरा दिन कोई काम न करें बल्कि सारा वक्‍त परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े कामों में लगाएँ।

7, 8. (क) परमेश्‍वर ने सब्त के दिन को बाकी दिनों से कैसे अलग किया था? (ख) सब्त का क्या मकसद था?

7 सब्त का इंतज़ाम, इस बात पर ज़ोर देता था कि परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने के लिए वक्‍त बिताना ज़रूरी है। बाइबल में “सब्त” का ज़िक्र पहली बार मन्‍ना के बंदोबस्त के सिलसिले में आता है। वीराने में इस्राएलियों से कहा गया था कि चमत्कार के ज़रिए उन्हें जो मन्‍ना दिया जा रहा है, उसे वे हफ्ते के सिर्फ छः दिन इकट्ठा करें और छठवें दिन “दो दिन का भोजन” इकट्ठा करें, क्योंकि सातवें दिन उन्हें कोई मन्‍ना नहीं दिया जाएगा। सातवाँ दिन “यहोवा के लिए पवित्र सब्त” था और इस दिन हरेक इस्राएली को अपनी जगह पर बैठे रहना था। (निर्गमन 16:13-30, NHT) बाद में, जब इस्राएलियों को दस आज्ञा दी गयीं तो उनमें से एक यह थी कि सब्त के दिन वे कुछ भी काम न करें। परमेश्‍वर ने इस दिन को पवित्र ठहराया था, इसलिए जो कोई इसे नहीं मनाता था उसे मौत की सज़ा दी जाती थी।—निर्गमन 20:8-11; गिनती 15:32-36.

8 सब्त का नियम दिखाता था कि यहोवा को अपने लोगों की सेहत और आध्यात्मिक खैरियत की कितनी फिक्र है। यीशु ने कहा था: “सब्त का दिन मनुष्य के लिये बनाया गया है।” (मरकुस 2:27) इस दिन, इस्राएली न सिर्फ आराम फरमाते थे बल्कि उन्हें अपने सिरजनहार के करीब आने और उसके लिए अपना प्यार दिखाने का मौका भी मिलता था। (व्यवस्थाविवरण 5:12) यह दिन खासकर आध्यात्मिक कामों के लिए अलग किया गया था। पूरा परिवार साथ मिलकर परमेश्‍वर की उपासना और उससे प्रार्थना करते थे, साथ ही वे उसकी व्यवस्था पर मनन भी करते थे। सब्त का नियम इस्राएलियों के बचाव के लिए था ताकि वे अपना सारा वक्‍त और ताकत, ऐशो-आराम की चीज़ों को बटोरने में न लगा दें। यह नियम उन्हें याद दिलाता था कि यहोवा के साथ उनका रिश्‍ता, उनकी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है। यीशु ने इसी अटल सच्चाई को दोहराते हुए कहा: “लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।”—मत्ती 4:4.

9. सब्त के इंतज़ाम से मसीही क्या सबक सीखते हैं?

9 हालाँकि आज परमेश्‍वर के लोगों से यह माँग नहीं की जाती कि वे सब्त का दिन मनाएँ, मगर इस नियम के पीछे जो सिद्धांत दिया गया है, वह अब भी उन पर लागू होता है। (कुलुस्सियों 2:16) क्या यह नियम हमें याद नहीं दिलाता कि उन कामों को सबसे ज़्यादा अहमियत दी जानी चाहिए जो हमें परमेश्‍वर के और भी करीब लाते हैं? हमें कभी-भी धन-दौलत कमाने या मनोरंजन करने में इतना नहीं डूब जाना चाहिए कि आध्यात्मिक कामों के लिए हमारे पास वक्‍त ही न बचे। (इब्रानियों 4:9, 10) इसलिए हम शायद खुद से पूछें: “मैं अपनी ज़िंदगी में किस बात को पहली जगह देता हूँ? क्या मैं बाइबल का अध्ययन करने, प्रार्थना करने, मसीही सभाओं में हाज़िर होने और राज्य का सुसमाचार प्रचार करने को अहमियत देता हूँ? या क्या मेरा सारा वक्‍त दूसरे कामों में चला जाता है?” अगर हम आध्यात्मिक बातों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो यहोवा हमें यकीन दिलाता है कि हमें ज़िंदगी की ज़रूरतों के लिए कभी मोहताज नहीं होना पड़ेगा।—मत्ती 6:24-33.

10. आध्यात्मिक कामों के लिए वक्‍त निकालने से हमें क्या फायदा होता है?

10 जब हम बाइबल और उसके साहित्य का अध्ययन करने, साथ ही उनमें दिए संदेश पर गहराई से सोचने में वक्‍त बिताते हैं, तो यह हमें यहोवा के और भी करीब आने में मदद देता है। (याकूब 4:8) सूज़न की ही मिसाल लीजिए। वह करीब 40 साल से बिना नागा बाइबल का अध्ययन करने के लिए अलग से समय तय करती आयी है। वह कबूल करती है कि शुरू-शुरू में उसे अध्ययन करने में कोई मज़ा नहीं आता था, बल्कि यह उसके लिए एक बोझिल काम था। मगर वह जितना ज़्यादा पढ़ने लगी, उसे उतना ज़्यादा मज़ा आने लगा। और आज, जब वह किसी वजह से अध्ययन नहीं कर पाती है तो उसे बड़ा दुःख होता है। वह कहती है: “अध्ययन से मुझे यहोवा को जानने में मदद मिली है और अब वह मेरे लिए पिता जैसा है। मुझे उस पर पूरा भरोसा है और मैं प्रार्थना में बेझिझक उससे बात करती हूँ। यह देखकर मेरा दिल भर आता है कि यहोवा अपने सेवकों से कितना प्यार करता है। यह भी कि उसे मेरी कितनी परवाह है और कैसे उसने मेरी मदद की है।” सचमुच, इससे बड़ी खुशी हमें और किस बात से मिल सकती है कि हम भी हर दिन अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत को पूरा करें!

बीनने के बारे में परमेश्‍वर का नियम

11. बीनने के इंतज़ाम में क्या शामिल था?

11 मूसा की व्यवस्था का एक और नियम दिखाता है कि परमेश्‍वर को अपने लोगों की खैरियत की परवाह थी। वह नियम, बीनने के इंतज़ाम के बारे में था। यहोवा ने यह आज्ञा दी थी कि जब एक इस्राएली किसान अपने खेत में फसल की कटाई करता है, तो उसे ज़रूरतमंदों को बची हुई फसल को बीनने या इकट्ठा करने की इजाज़त देनी चाहिए। किसानों से कहा गया था कि वे अपने खेत के कोने-कोने तक कटाई न करें, ना ही दाख की बारी का दाना-दाना और ना ही जैतून पेड़ों का सारा फल तोड़ लें। गेहूँ की जो बालें खेत में भूल से छूट जाती थीं, उन्हें दोबारा उठाना मना था। बीनने का इंतज़ाम गरीबों, परदेशियों, अनाथों और विधवाओं की खातिर किया गया प्यार-भरा इंतज़ाम था। यह सच है कि बीनने के लिए इन मोहताज लोगों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी, मगर कम-से-कम उन्हें दूसरों के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ता था।—लैव्यव्यवस्था 19:9, 10; व्यवस्थाविवरण 24:19-22; भजन 37:25.

12. बीनने के इंतज़ाम से किसानों को क्या मौका मिला?

12 लेकिन बीनने के नियम में यह नहीं बताया गया था कि एक किसान को ज़रूरतमंदों के लिए अपने खेत का ठीक-ठीक कितना हिस्सा छोड़ना था। यह तय करने का हक किसानों को दिया गया था कि वे अपने खेत के किनारों का बड़ा हिस्सा छोड़ेंगे या छोटा। इस तरह यहोवा ने इस्राएलियों को दरियादिल होना सिखाया था। इस इंतज़ाम के ज़रिए इस्राएली के पास यह दिखाने का मौका था कि वे अपने अन्‍नदाता के एहसानमंद हैं, जिसने उन्हें अच्छी फसल दी है। बाइबल कहती है: “जो दरिद्र पर अनुग्रह करता, वह [अपने बनानेवाले की] महिमा करता है।” (नीतिवचन 14:31) बोअज़ नाम के एक इस्राएली ने ऐसा ही किया था। उसने रूत नाम की एक विधवा पर कृपा की, जो उसके खेत में बीनने आती थी और उसके लिए ऐसा इंतज़ाम किया ताकि वह ज़्यादा-से-ज़्यादा बालें इकट्ठी कर सकें। बोअज़ की इस दरियादिली के लिए, यहोवा ने उस पर आशीषों की बौछार की।—रूत 2:15, 16; 4:21, 22; नीतिवचन 19:17.

13. बीनने के पुराने नियम से हम क्या सबक सीखते हैं?

13 बीनने के नियम के पीछे जो सिद्धांत है, वह अब भी नहीं बदला है। यहोवा आज भी अपने सेवकों से उम्मीद करता है कि वे दरियादिल बनें और खासकर ज़रूरतमंदों की मदद करें। हम जितना ज़्यादा दिल खोलकर देंगे, हमें उससे कहीं ज़्यादा आशीषें मिलेंगी। यीशु ने कहा था: “दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।”—लूका 6:38.

14, 15. हम दरियादिली कैसे दिखा सकते हैं, और इससे हमें साथ ही उन लोगों को क्या फायदा होता है जिनकी हम मदद करते हैं?

14 प्रेरित पौलुस ने हमें उकसाया है कि हम “सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्‍वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:10) इसलिए जब भी हमारे मसीही भाई-बहन अपने विश्‍वास की परीक्षा का सामना करते हैं, तो हमें उन्हें बाइबल से ज़रूरी सलाह और दिलासा देना चाहिए। इसके अलावा, कुछ लोगों को शायद व्यावहारिक तरीकों से मदद की ज़रूरत पड़े, जैसे राज्य घर ले जाने में या कुछ खरीदारी करने में। क्या आपकी कलीसिया में कोई बुज़ुर्ग, बीमार या ऐसे दूसरे लोग हैं, जो बिस्तर से उठ नहीं सकते? अगर हाँ, तो क्यों न आप उनसे मुलाकात करके उनका हौसला बढ़ाएँ या कोई और तरीके से उनकी मदद करें? इस मदद से उन्हें खुशी होगी। अगर हम यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि ऐसे भाई-बहनों की ज़रूरतें क्या हैं, तो शायद यहोवा हमारे ज़रिए उनकी प्रार्थनाओं का जवाब दे। हालाँकि दूसरों के लिए परवाह दिखाना एक मसीही ज़िम्मेदारी है, मगर ऐसा करने से मदद देनेवाले को भी फायदा पहुँचता है। अपने साथी उपासकों के लिए सच्चा प्यार दिखाने से हमें बड़ी खुशी और गहरा संतोष मिलता है। साथ ही, यहोवा भी हमसे खुश होता है।—नीतिवचन 15:29.

15 मसीही, एक और अहम तरीके से दरियादिली दिखाते हैं: वे दूसरों को परमेश्‍वर के मकसद के बारे में बताने में अपना वक्‍त और ताकत लगाते हैं। (मत्ती 28:19, 20) जिन मसीहियों ने दूसरों को अपना जीवन यहोवा को समर्पित करने में मदद दी है, उन्होंने यीशु के इन शब्दों की सच्चाई को महसूस किया है: “लेने से देने में अधिक सुख है।”—प्रेरितों 20:35, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

लालच से दूर रहिए

16, 17. दसवीं आज्ञा में क्या मना किया गया था, और क्यों?

16 अब आइए हम परमेश्‍वर की व्यवस्था के एक और नियम पर गौर करें। वह है, दस आज्ञाओं की आखिरी आज्ञा जिसमें लालच से दूर रहने को कहा गया था। इस आज्ञा में बताया गया था: “तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी की स्त्री का लालच करना, और न किसी के दास-दासी, वा बैल गदहे का, न किसी की किसी वस्तु का लालच करना।” (निर्गमन 20:17) कोई भी इंसान ऐसा कानून बनाकर उसे लागू नहीं करवा सकता क्योंकि वह दूसरों का दिल नहीं पढ़ सकता। दरअसल, यह दसवीं आज्ञा साबित करती है कि परमेश्‍वर की व्यवस्था, इंसान की बनायी कानून-व्यवस्था से कहीं ज़्यादा ऊँची थी। यह इस्राएलियों को याद दिलाती थी कि उन्हें खुद यहोवा के सामने अपना लेखा देना है, जो दिल में छिपी इच्छाओं को पढ़ सकता है। (1 शमूएल 16:7) इसके अलावा, यह आज्ञा दिखाती है कि बहुत-से बुरे कामों की असली जड़ क्या है।—याकूब 1:14.

17 लालच से दूर रहने की आज्ञा से परमेश्‍वर के लोगों को यह बढ़ावा मिला कि वे धन-दौलत के पीछे न भागे, लोभ न करें और अपनी ज़िंदगी के हालात के बारे में न कुड़कुड़ाए। यह उन्हें चोरी या अनैतिक कामों के फँदों से भी बचाती थी। आज, हम शायद ऐसे लोग की सराहना करें जिनके पास अच्छी-खासी धन-दौलत है या वे कुछ मामलों में हमसे ज़्यादा कामयाब हैं। ऐसे में, अगर हम अपनी सोच पर काबू न रखें तो उनकी कामयाबी देखकर हम आसानी से निराश हो सकते हैं, यहाँ तक कि उनसे जलने भी लग सकते हैं। बाइबल कहती है कि लालच, “निकम्मे मन” का आईना होता है। इसलिए अच्छा होगा कि हम हर तरह की लालच से दूर रहें।—रोमियों 1:28-30.

18. आज दुनिया में किन बातों का बढ़ावा दिया जाता है, और इसके क्या बुरे अंजाम हो सकते हैं?

18 आज दुनिया में हर कहीं ऐशो-आराम की चीज़ों के पीछे भागने और दूसरों से होड़ लगाने का बढ़ावा दिया जाता है। व्यापार जगत, इश्‍तहारों के ज़रिए लोगों में नयी-से-नयी चीज़ें खरीदने की लालसा पैदा करता है और उन्हें यकीन दिलाता है कि वे तभी खुश रह सकते हैं जब वे इन चीज़ों को हासिल करेंगे। यहोवा की व्यवस्था में इसी रवैए की निंदा की गयी थी। इसी से मिलता-जुलता एक और रवैया है जिसकी व्यवस्था में निंदा की गयी थी, वह है किसी भी कीमत पर दूसरे से आगे बढ़ना और रुपए-पैसा बटोरना। इस बारे में प्रेरित पौलुस ने खबरदार किया था: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्‍वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—1 तीमुथियुस 6:9, 10.

19, 20. (क) यहोवा के नियमों से प्यार करनेवाले के लिए, कौन-सी बातें ज़रूरी हैं? (ख) अगले लेख में किस बारे में चर्चा की जाएगी?

19 यहोवा के नियमों से प्यार करनेवाले, ऐशो-आराम की चीज़ों के पीछे भागने के खतरों को अच्छी तरह जानते हैं और इनसे दूर रहते हैं। मिसाल के लिए, भजनहार ने यहोवा से प्रार्थना में कहा: “मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे। तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये हजारों रुपयों और मुहरों से भी उत्तम है।” (भजन 119:36, 72) अगर हम भी भजनहार की तरह इस सच्चाई पर यकीन करते हैं, तो हम एक सही नज़रिया बनाए रख पाएँगे और धन-दौलत के मोह, लोभ और ज़िंदगी में अपने हालात पर कुड़कुड़ाने के फंदों से बचे रहेंगे। जी हाँ, परमेश्‍वर की “भक्‍ति” ही सबसे बड़ी कमाई है, न कि सुख-सुविधा की चीज़ें जमा करना।—1 तीमुथियुस 6:6.

20 प्राचीन समय में, यहोवा ने मूसा के ज़रिए जो व्यवस्था दी थी, उससे इस्राएलियों को बहुत फायदे हुए। और आज, इस मुश्‍किल दौर में व्यवस्था के पीछे दिए सिद्धांत हमारे लिए उतने ही फायदेमंद है। हम जितना ज़्यादा इन सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करेंगे, उतना ज़्यादा इनके लिए हमारी कदर बढ़ेगी और इनसे हमारा गहरा लगाव होगा। साथ ही, हमें बेहद खुशी भी मिलेगी। व्यवस्था से हम बहुत-से ज़रूरी सबक सीख सकते हैं। ये सबक कितने अनमोल हैं, यह हम बाइबल के किरदारों की ज़िंदगी और उनके अनुभवों से देख सकते हैं। ऐसे ही कुछ किरदारों की चर्चा अगले लेख में की जाएगी। (w06 6/15)

[फुटनोट]

^ इस भजन की 4 आयतों को छोड़, बाकी 172 आयतों में यहोवा की आज्ञाओं, धर्ममय नियमों, व्यवस्था, उपदेशों, विधियों, चितौनियों, वचन और मार्गों के बारे में बताया गया है।

आप कैसे जवाब देंगे?

भजन 119 के लेखक को क्यों यहोवा की व्यवस्था से गहरा लगाव था?

• सब्त के इंतज़ाम से मसीहियों को क्या सीख मिलती है?

• परमेश्‍वर की व्यवस्था में दिए बीनने के नियम से, हम क्या अनमोल सबक सीखते हैं?

• लालच के बारे दी आज्ञा से कैसे हमारी हिफाज़त होती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

सब्त का नियम, किस बात पर ज़ोर देता था?

[पेज 15 पर तसवीर]

बीनने के नियम से हम क्या सबक सीखते हैं?