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वे परमेश्‍वर की चुनी हुई जाति में पैदा हुए

वे परमेश्‍वर की चुनी हुई जाति में पैदा हुए

वे परमेश्‍वर की चुनी हुई जाति में पैदा हुए

“यहोवा ने . . . तुझ को चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा . . . ठहरे।”—व्यवस्थाविवरण 7:6.

1, 2. यहोवा ने अपने लोगों की खातिर क्या महान काम किए, और उसने इस्राएलियों के साथ एक रिश्‍ता कायम करने के लिए क्या किया?

 सामान्य युग पूर्व 1513 में, यहोवा ने धरती पर अपने सेवकों यानी इस्राएलियों के साथ एक नया रिश्‍ता जोड़ा था। उसी साल परमेश्‍वर ने विश्‍वशक्‍ति मिस्र का घमंड तोड़कर, इस्राएलियों को उसकी गुलामी से आज़ाद कराया था। इस तरह वह इस्राएल का छुड़ानेवाला और मालिक बना। लेकिन उन्हें छुड़ाने से पहले, उसने मूसा से कहा: “इस्राएलियों से कह, कि मैं यहोवा हूं, और तुम को मिस्रियों के बोझों के नीचे से निकालूंगा, और उनके दासत्व से तुम को छुड़ाऊंगा, और अपनी भुजा बढ़ाकर और भारी दण्ड देकर तुम्हें छुड़ा लूंगा, और मैं तुम को अपनी प्रजा बनाने के लिये अपना लूंगा, और मैं तुम्हारा परमेश्‍वर ठहरूंगा।”—निर्गमन 6:6, 7; 15:1-7, 11.

2 परमेश्‍वर ने इस्राएलियों को मिस्र से आज़ाद कराने के बाद, उनके साथ एक वाचा बाँधी और इस तरह उनके बीच एक खास रिश्‍ता कायम हुआ। उस समय से, परमेश्‍वर ने धरती पर किसी इंसान, परिवार या कुल के साथ रिश्‍ता रखने के बजाय लोगों के एक संगठन या जाति के साथ रिश्‍ता रखा। (निर्गमन 19:5, 6; 24:7) उसने उन्हें रोज़मर्रा की ज़िंदगी के बारे में और सबसे बढ़कर, उपासना के मामले में कानून दिए। मूसा ने उनसे कहा: “देखो, कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसका देवता उसके ऐसे समीप रहता हो जैसा हमारा परमेश्‍वर यहोवा, जब कि हम उस को पुकारते हैं? फिर कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसके पास ऐसी धर्ममय विधि और नियम हों, जैसी कि यह सारी व्यवस्था जिसे मैं आज तुम्हारे साम्हने रखता हूं?”—व्यवस्थाविवरण 4:7, 8.

साक्षियों से बनी जाति में पैदा होना

3, 4. इस्राएल जाति को किस खास मकसद से वजूद में लाया गया था?

3 सदियों बाद, यहोवा ने अपने नबी यशायाह के ज़रिए इस्राएलियों को याद दिलाया कि उनकी जाति को एक खास मकसद से वजूद में लाया गया है। यशायाह ने उनसे कहा: “हे इस्राएल तेरा रचनेवाला, और हे याकूब, तेरा सृजनहार यहोवा अब यों कहता है, मत डर, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है; मैं ने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है। क्योंकि मैं यहोवा तेरा परमेश्‍वर हूं, इस्राएल का पवित्र मैं तेरा उद्धारकर्त्ता हूं। . . . मेरे पुत्रों को दूर से और मेरी पुत्रियों को पृथ्वी की छोर से ले आओ; हर एक को जो मेरा कहलाता है, जिसको मैं ने अपनी महिमा के लिये सृजा, जिसको मैं ने रचा और बनाया है। यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैं ने . . . चुना है। . . . इस प्रजा को मैं ने अपने लिये बनाया है कि वे मेरा गुणानुवाद करें।”—यशायाह 43:1, 3, 6, 7, 10, 21.

4 इस्राएली यहोवा के लोग कहलाए जाते थे, इसलिए उन्हें उसके साक्षी बनकर सभी जातियों को यह गवाही देनी थी कि यहोवा ही पूरे जहान का मालिक है। उन्हें साबित करना था कि वे ‘यहोवा की महिमा के लिये सृजे’ गए लोग हैं। उन्हें ‘यहोवा का गुणानुवाद’ करना था, यानी उसने छुटकारे के जो शानदार काम किए थे, उनका ऐलान करके उसके पवित्र नाम को रोशन करना था। चंद शब्दों में कहें तो उन्हें एक जाति के तौर पर यहोवा का साक्षी बनना था।

5. इस्राएल किस मायने में एक समर्पित जाति थी?

5 सामान्य युग पूर्व 11वीं सदी में, राजा सुलैमान ने बयान किया कि यहोवा ने इस्राएल को दूसरी जातियों से अलग किया है। उसने प्रार्थना में यहोवा से कहा: “तू ने इन लोगों को अपना निज भाग होने के लिये पृथ्वी की सब जातियों से अलग किया है।” (1 राजा 8:53) यही नहीं, हरेक इस्राएली का भी यहोवा के साथ एक खास रिश्‍ता था। बहुत समय पहले मूसा ने उनसे कहा था: “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के पुत्र हो; . . . क्योंकि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिये एक पवित्र समाज है।” (व्यवस्थाविवरण 14:1, 2) इसलिए इस्राएलियों के बच्चों को अपना जीवन यहोवा को समर्पित करने की कोई ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि वे एक ऐसी जाति में पैदा हुए जो पहले से ही परमेश्‍वर को समर्पित थी। (भजन 79:13; 95:7) हर नयी पीढ़ी को यहोवा की व्यवस्था सिखायी जाती थी और उनसे यह माँग की जाती थी कि वे इसका सख्ती से पालन करें क्योंकि वे यहोवा के साथ एक वाचा में बँधे हुए थे।—व्यवस्थाविवरण 11:18, 19.

चुनाव करने की आज़ादी

6. हरेक इस्राएली को क्या चुनाव करना था?

6 हालाँकि सभी इस्राएली एक समर्पित जाति में पैदा हुए थे, मगर उन्हें यहोवा की सेवा करने का निजी फैसला करना था। जब वे वादा-ए-मुल्क में दाखिल होनेवाले थे, तब मूसा ने उनसे कहा: “मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे साम्हने इस बात की साक्षी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें; इसलिये अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानो, और उस से लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घजीवन यही है, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याक़ूब, तेरे पूर्वजों को देने की शपथ खाई थी उस देश में तू बसा रहेगा।” (व्यवस्थाविवरण 30:19, 20) इससे ज़ाहिर है कि हर इस्राएली को अपनी मरज़ी से यहोवा से प्रेम करने, उसकी बात मानने और उससे लिपटे रहने का चुनाव करना था। साथ ही, उसे अपने चुनाव के अंजामों को भुगतने के लिए भी तैयार रहना था।—व्यवस्थाविवरण 30:16-18.

7. यहोशू की मौत के बाद क्या हुआ?

7 यहोवा के वफादार रहने या उसके साथ बेवफाई करने के चुनाव से क्या नतीजे निकलते हैं? यह न्यायियों के दौर की शुरूआत से पहले और उसके बाद में हुई घटनाओं से साफ देखा जा सकता है। इस दौर से पहले, इस्राएली यहोशू की अच्छी मिसाल पर चले थे और इसके लिए उन्हें ढेरों आशीषें मिली थीं। बाइबल कहती है: “यहोशू के जीवन भर, और उन वृद्ध लोगों के जीवन भर जो यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और देख चुके थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे कैसे बड़े काम किए हैं, इस्राएली लोग यहोवा की सेवा करते रहे।” मगर यहोशू की मौत के कुछ समय बाद जब न्यायियों का दौर शुरू हुआ, तो “जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उस ने इस्राएल के लिये किया था। इसलिये इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है।” (न्यायियों 2:7, 10, 11) इससे पता चलता है कि नयी पीढ़ी के इन लोगों को, जिन्हें ज़िंदगी में कम तजुरबा था, अपनी विरासत की ज़रा भी कदर नहीं थी। उनकी विरासत क्या थी? उस समर्पित जाति का हिस्सा होना जिसकी खातिर परमेश्‍वर यहोवा ने गुज़रे कल में कई महान काम किए थे।—भजन 78:3-7, 10, 11.

अपने समर्पण के मुताबिक जीना

8, 9. (क) वह क्या इंतज़ाम था जिसके ज़रिए इस्राएलियों ने यह दिखाया कि वे यहोवा के समर्पित हैं? (ख) जिन लोगों ने अपनी मरज़ी से भेंट चढ़ायीं, उन्हें क्या इनाम मिला?

8 यहोवा ने अपने लोगों को कई मौके दिए ताकि वे जाति के तौर पर किए अपने समर्पण के मुताबिक जी सकें। जैसे, परमेश्‍वर की कानून-व्यवस्था के तहत इस्राएलियों को बलिदान और भेंट चढ़ानी थीं। इनमें से कुछ भेंट वे अपनी मरज़ी से चढ़ा सकते थे और कुछ उन्हें नियम के मुताबिक चढ़ानी ज़रूरी थीं। (इब्रानियों 8:3) अपनी मरज़ी से चढ़ायी जानेवाली कुछ भेंट थीं, होमबलि, अन्‍नबलि और मेलबलि। ये भेंट, यहोवा की मंज़ूरी पाने और उसे अपना एहसान ज़ाहिर करने के लिए चढ़ायी जाती थीं।—लैव्यव्यवस्था 7:11-13.

9 इन भेंटों से यहोवा बेहद खुश होता था। होमबलि और अन्‍नबलि के बारे में कहा जाता था कि ये “यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्धित हवन ठह[रती]” थीं। (लैव्यव्यवस्था 1:9; 2:2) मेलबलि में पशु का लहू और उसकी चर्बी परमेश्‍वर को अर्पित की जाती थी, जबकि उसके बचे हुए भाग को याजक और बलि चढ़ानेवाला दोनों खाते थे। यह ऐसा था मानो याजक, बलि चढ़ानेवाला और यहोवा एक ही मेज पर साथ बैठकर भोजन कर रहे हैं, और उनके बीच मेल और अच्छा रिश्‍ता है। कानून-व्यवस्था में लिखा था: “जब तुम यहोवा के लिये मेलबलि करो, तब ऐसा बलिदान करना जिससे मैं तुम से प्रसन्‍न हो जाऊं।” (लैव्यव्यवस्था 19:5) हालाँकि सभी इस्राएली जन्म से ही यहोवा के समर्पित थे, फिर भी उनमें से कइयों ने अपनी मरज़ी से भेंट चढ़ाकर यह दिखाया कि वे सचमुच यहोवा को अपना परमेश्‍वर मानते हैं। ऐसे लोगों से यहोवा “प्रसन्‍न” हुआ और उसने उन्हें भरपूर आशीषें दीं।—मलाकी 3:10.

10. यशायाह और मलाकी के दिनों में, यहोवा ने अपनी नाराज़गी कैसे ज़ाहिर की?

10 मगर अकसर समर्पित जाति, इस्राएल ने यहोवा के साथ बेवफाई की। यहोवा ने अपने नबी यशायाह के ज़रिए उनसे कहा: “मेरे लिये होमबलि करने को तू मेम्ने नहीं लाया और न मेलबलि चढ़ाकर मेरी महिमा की है। देख, मैं ने अन्‍नबलि चढ़ाने की कठिन सेवा तुझ से नहीं कराई।” (यशायाह 43:23) इसके अलावा, कुछ लोग ऐसे थे जो यहोवा को बलिदान चढ़ा तो रहे थे, मगर वे ऐसा न तो दिल से और ना ही परमेश्‍वर के प्यार की खातिर कर रहे थे। इसलिए परमेश्‍वर की नज़रों में उनके बलिदानों की कोई कीमत नहीं थी। मिसाल के लिए, यशायाह के ज़माने के करीब 300 साल बाद, जब मलाकी नबी था तब इस्राएली ऐसे जानवरों की बलि चढ़ा रहे थे जिनमें दोष था। इसलिए मलाकी ने उनसे कहा: “सेनाओं के यहोवा का यह वचन है, मैं तुम से कदापि प्रसन्‍न नहीं हूं, और न तुम्हारे हाथ से भेंट ग्रहण करूंगा। . . . तुम ने . . . अत्याचार से प्राप्त किए हुए और लंगड़े और रोगी पशु की भेंट ले आते हो! क्या मैं ऐसी भेंट तुम्हारे हाथ से ग्रहण करूं? यहोवा का यही वचन है।”—मलाकी 1:10, 13; आमोस 5:22.

समर्पित जाति को ठुकराया गया

11. इस्राएलियों को क्या मौका दिया गया था?

11 जब इस्राएली यहोवा की समर्पित जाति बनी, तब परमेश्‍वर ने यह वादा किया था: “यदि तुम निश्‍चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा को पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है। और तुम मेरी दृष्टि में याजकों का राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे।” (निर्गमन 19:5, 6) वादा किया गया मसीहा इसी जाति में प्रकट होता और इसके लोगों को परमेश्‍वर के राज्य के सदस्य बनने का पहला मौका देता। (उत्पत्ति 22:17, 18; 49:10; 2 शमूएल 7:12, 16; लूका 1:31-33; रोमियों 9:4, 5) मगर ज़्यादातर इस्राएली समर्पण के अपने वादे से मुकर गए। (मत्ती 22:14) उन्होंने मसीहा को ठुकरा दिया और आखिर में उसे मार डाला।—प्रेरितों 7:51-53.

12. यहोवा ने अपनी समर्पित जाति, इस्राएल को ठुकरा दिया था, यह बताने के लिए यीशु ने क्या कहा?

12 अपनी मौत से कुछ दिन पहले, यीशु ने यहूदी धर्म-गुरुओं से कहा: “क्या तुम ने कभी पवित्र शास्त्र में यह नहीं पढ़ा, कि जिस पत्थर का राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था, वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया? यह प्रभु की ओर से हुआ, और हमारे देखने में अद्‌भुत है, इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि परमेश्‍वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।” (मत्ती 21:42, 43) और यह दिखाने के लिए कि यहोवा ने अपनी समर्पित जाति को ठुकरा दिया है, यीशु ने कहा: “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम; तू जो भविष्यद्वक्‍ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थरवाह करता है, कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूं, परन्तु तुम ने न चाहा। देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।”—मत्ती 23:37, 38.

एक नयी समर्पित जाति

13. यिर्मयाह के दिनों में यहोवा ने कौन-सी भविष्यवाणी की थी?

13 भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के दिनों में, यहोवा ने अपने लोगों के बारे में एक नयी बात बतायी। वह क्या थी? हम पढ़ते हैं: “फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आनेवाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बान्धूंगा। वह उस वाचा के समान न होगी जो मैं ने उनके पुरखाओं से उस समय बान्धी थी जब मैं उनका हाथ पकड़कर उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया, क्योंकि यद्यपि मैं उनका पति था, तौभी उन्हों ने मेरी वह वाचा तोड़ डाली। परन्तु जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बान्धूंगा, वह यह है: मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्‍वर ठहरूंगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, यहोवा की यह वाणी है।”—यिर्मयाह 31:31-33.

14. यहोवा की नयी समर्पित जाति कब वजूद में आयी, और उसकी बुनियाद क्या थी? यह नयी जाति कौन थी?

14 इस नयी वाचा की बुनियाद सा.यु. 33 में डाली गयी थी जब यीशु ने मरने के बाद, स्वर्ग लौटकर अपने पिता को अपने बहाए गए लहू की कीमत पेश की। (लूका 22:20; इब्रानियों 9:15, 24-26) लेकिन इस वाचा की शुरूआत तभी हुई जब उसी साल पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा उँडेली गयी और एक नयी जाति यानी “परमेश्‍वर के इस्राएल” का जन्म हुआ। (गलतियों 6:16; रोमियों 2:28, 29; 9:6; 11:25, 26) अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखते हुए प्रेरित पतरस ने ऐलान किया: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्‍वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्‌भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो। तुम पहिले तो कुछ भी नहीं थे, पर अब परमेश्‍वर की प्रजा हो।” (1 पतरस 2:9, 10) यहोवा और पैदाइशी इस्राएलियों के बीच का खास रिश्‍ता खत्म हो चुका था। सामान्य युग 33 में, यहोवा ने उन्हें छोड़कर, मसीही कलीसिया यानी आत्मिक इस्राएल पर अपना अनुग्रह किया। यह एक ऐसी “जाति” थी जो मसीहाई राज्य का ‘फल ला रही थी।’—मत्ती 21:43.

हरेक को समर्पण करना था

15. सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, पतरस के सुननेवालों को क्या ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा लेना था?

15 सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त से, हर यहूदी और गैर-यहूदी को अपनी ज़िंदगी परमेश्‍वर को समर्पित करनी थी और फिर, उसे “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा” लेना था। * (मत्ती 28:19) पिन्तेकुस्त के दिन, बहुत-से यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवालों ने सुसमाचार को कबूल किया था। उनसे प्रेरित पतरस ने कहा: “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।” (प्रेरितों 2:38) इन लोगों को न सिर्फ यह ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा लेना था कि उन्होंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया है बल्कि यह भी कि उन्होंने कबूल किया है कि यीशु के ज़रिए ही यहोवा उनके पापों को माफ करेगा। उन्हें दिल से यह मानना था कि यीशु, यहोवा का ठहराया हुआ महायाजक, उनका अगुवा और मसीही कलीसिया का मुखिया है।—कुलुस्सियों 1:13, 14, 18.

16. पौलुस के दिनों में, सही मन रखनेवाले यहूदी और गैर-यहूदी कैसे आत्मिक इस्राएल के सदस्य बनें?

16 सालों बाद, प्रेरित पौलुस ने कहा: “पहिले दमिश्‍क के, फिर यरूशलेम के रहनेवालों को, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियों को समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्‍वर की ओर फिर कर मन फिराव के योग्य काम करो।” (प्रेरितों 26:20) पौलुस ने यहूदी और गैर-यहूदी लोगों को यकीन दिलाया कि यीशु ही मसीहा था, और फिर उन्हें अपनी ज़िंदगी परमेश्‍वर को समर्पित करने और बपतिस्मा लेने में मदद दी। (प्रेरितों 16:14, 15, 31-33; 17:3, 4; 18:8) ये नए चेले परमेश्‍वर की ओर फिरकर आत्मिक इस्राएल के सदस्य बनें।

17. मुहर लगाने का कौन-सा काम बहुत जल्द पूरा होनेवाला है, और इसके साथ-साथ कौन-सा दूसरा काम तेज़ी से हो रहा है?

17 आज, आत्मिक इस्राएल के बचे हुए लोगों पर अंतिम मुहर लगाने का काम बहुत जल्द पूरा होनेवाला है। इसके बाद, “चार स्वर्गदूत” जो “बड़े क्लेश” की हवाओं को कसकर थामे हुए हैं, उन्हें इन हवाओं को छोड़ने का हुक्म दिया जाएगा। इस बीच “बड़ी भीड़” के लोगों को, जिन्हें धरती पर हमेशा जीने की आशा है, इकट्ठा करने का काम बड़ी तेज़ी से हो रहा है। ‘अन्य भेड़’ के इन लोगों ने “मेम्ने के लोहू” पर विश्‍वास किया है और यहोवा को अपना जीवन समर्पित करके बपतिस्मा लिया है। (प्रकाशितवाक्य 7:1-4, 9-15; 22:17; यूहन्‍ना 10:16, NW; मत्ती 28:19, 20) इनमें ऐसे बहुत-से जवान हैं जिनकी परवरिश मसीही माँ-बाप ने की है। क्या आप उन जवानों में से एक हैं? अगर हाँ, तो बेशक आपको अगला लेख दिलचस्प लगेगा। (w06 7/1)

[फुटनोट]

^ मई 15, 2003 की प्रहरीदुर्ग, पेज 30-1 देखिए।

दोबारा विचार करने के लिए सवाल

• जवान इस्राएलियों को अपना जीवन यहोवा को समर्पित करने की ज़रूरत क्यों नहीं थी?

• इस्राएली कैसे दिखा सकते थे कि वे अपने समर्पण के मुताबिक जी रहे थे?

• यहोवा ने अपनी समर्पित जाति, इस्राएल को क्यों ठुकरा दिया, और उसकी जगह कौन-सी नयी जाति ने ली?

• सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त से, यहूदियों और गैर-यहूदियों को आत्मिक इस्राएल के सदस्य बनने के लिए क्या करना पड़ा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 22 पर तसवीर]

इस्राएलियों के बच्चे, जन्म से ही परमेश्‍वर की चुनी हुई जाति के सदस्य थे

[पेज 25 पर तसवीर]

हर इस्राएली को खुद चुनाव करना था कि वह परमेश्‍वर की सेवा करेगा या नहीं

[पेज 25 पर तसवीर]

अपनी मरज़ी से भेंट चढ़ाने के इंतज़ाम से इस्राएली, यहोवा के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करते थे

[पेज 26 पर तसवीर]

सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के बाद, मसीह के हरेक चेले को अपना जीवन परमेश्‍वर को समर्पित करना था और इसे ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा लेना था