इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

कुड़कुड़ाने से दूर रहिए

कुड़कुड़ाने से दूर रहिए

कुड़कुड़ाने से दूर रहिए

“सब काम बिना कुड़कुड़ाए . . . किया करो।”—फिलिप्पियों 2:14.

1, 2. प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी और कुरिन्थुस के मसीहियों को क्या सलाह दी थी, और क्यों?

 पहली सदी में प्रेरित पौलुस ने ईश्‍वर-प्रेरणा से फिलिप्पी की मसीही कलीसिया को एक खत लिखा। खत में उसने उस शहर के भाई-बहनों की दरियादिली और जोश की बहुत तारीफ की और उनके अच्छे कामों के बारे में अपनी खुशी भी ज़ाहिर की। फिर भी, पौलुस ने उन्हें याद दिलाया कि वे “सब काम बिना कुड़कुड़ाए . . . किया” करें। (फिलिप्पियों 2:14) आखिर उसने उन्हें यह सलाह क्यों दी?

2 पौलुस जानता था कि कुड़कुड़ाने का खतरनाक अंजाम हो सकता है। इसी खतरे के बारे में उसने कुछ साल पहले कुरिन्थुस की कलीसिया को आगाह किया था। उसने इस्राएलियों की मिसाल दी और बताया कि उन्होंने वीराने में भटकते वक्‍त, कई तरीकों से यहोवा को बार-बार क्रोध दिलाया था। जैसे, मूर्तिपूजा, व्यभिचार और बुरी वस्तुओं का लालच करके, यहोवा को परखकर और गौर कीजिए, कुड़कुड़ाकर भी। पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीहियों को इस्राएलियों की मिसालों से सबक लेने का बढ़ावा दिया। उसने लिखा: “न तुम कुड़कुड़ाओ, जिस रीति से उन में से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करनेवाले के द्वारा नाश किए गए।”—1 कुरिन्थियों 10:6-11.

3. कुड़कुड़ाने के विषय पर आज हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

3 हम यहोवा के सेवक भी फिलिप्पी कलीसिया की तरह भले कामों के लिए जोश दिखाते हैं और एक-दूसरे से प्यार करते हैं। (यूहन्‍ना 13:34, 35) फिर भी, अगर आज हम कुड़कुड़ाने के उन बुरे अंजामों से बचना चाहते हैं जो बीते ज़माने में परमेश्‍वर के लोगों ने भुगते थे, तो हमें इस सलाह को दिल से मानना चाहिए: “सब काम बिना कुड़कुड़ाए . . . किया करो।” आइए सबसे पहले कुड़कुड़ाने के बारे में बाइबल में दी मिसालों पर गौर करें। उसके बाद हम चर्चा करेंगे कि हम कुड़कुड़ाने और उसके बुरे अंजामों से बचने के लिए क्या कर सकते हैं।

एक बुरी मंडली यहोवा पर बुड़बुड़ाती है

4. वीराने में कई दफा इस्राएली किस वजह से कुड़कुड़ाने लगे थे?

4 जिस इब्रानी शब्द का मतलब ‘कुड़कुड़ाना, बुड़बुड़ाना या शिकायत करना’ है, उस शब्द का इस्तेमाल बाइबल में उन घटनाओं के लिए किया गया है, जो इस्राएलियों के साथ 40 साल के दौरान वीराने में घटी थीं। कई दफा ऐसा हुआ कि इस्राएली अपने हालात से खुश नहीं थे, और उन्होंने कुड़कुड़ाकर असंतोष की भावना ज़ाहिर की। मिसाल के लिए, मिस्र की गुलामी से छुड़ाए जाने के कुछ ही हफ्तों बाद, “इस्राएलियों की सारी मण्डली मूसा और हारून के विरुद्ध बकझक करने लगी।” वे खाने को लेकर शिकायत करने लगे और कहने लगे: “जब हम मिस्र देश में मांस की हांडियों के पास बैठकर मनमाना भोजन खाते थे, तब यदि हम यहोवा के हाथ से मार डाले भी जाते तो उत्तम वही था; पर तुम हम को इस जंगल में इसलिये निकाल ले आए हो कि इस सारे समाज को भूखों मार डालो।”—निर्गमन 16:1-3.

5. जब इस्राएलियों ने शिकायत की, तो दरअसल वे किस पर बुड़बुड़ा रहे थे?

5 इस्राएलियों की इस शिकायत में रत्ती-भर भी सच्चाई नहीं थी। यहोवा ने वीराने में उनकी ज़रूरतें पूरी की थीं। उसने उन्हें खाने-पीने की चीज़ें मुहैया कराकर उनके लिए अपना प्यार दिखाया था। उनके भूखों मरने का तो सवाल ही नहीं उठता। मगर असंतोष की भावना की वजह से इस्राएली यहोवा के उन उपकारों को भूल गए और उन्होंने ज़रा-सी बात का बतंगड़ बना दिया और बुड़बुड़ाने लगे। हालाँकि उनकी शिकायत मूसा और हारून के खिलाफ थी, मगर यहोवा की नज़र में वे दरअसल उस पर बुड़बुड़ा रहे थे। इसलिए मूसा ने इस्राएलियों से कहा: “तुम जो [यहोवा] पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं? तुम्हारा बुड़बुड़ाना हम पर नहीं यहोवा ही पर होता है।”—निर्गमन 16:4-8.

6, 7. गिनती 14:1-3 के मुताबिक इस्राएलियों का रवैया किस तरह बदल गया था?

6 इस घटना के कुछ ही समय बाद, इस्राएली एक बार फिर कुड़कुड़ाए। यह तब की बात है जब मूसा ने वादा किए देश का भेद लेने के लिए 12 आदमियों को भेजा। उनमें से दस ने लौटकर उस देश के बारे में बुरी रिपोर्ट दी। इसका नतीजा क्या हुआ? “सब इस्राएली मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे; और सारी मण्डली उन से कहने लगी, कि भला होता कि हम मिस्र ही में मर जाते! वा इस जंगल ही में मर जाते! और यहोवा हम को उस देश [कनान] में ले जाकर क्यों तलवार से मारवाना चाहता है? हमारी स्त्रियां और बालबच्चे तो लूट में चले जाएंगे; क्या हमारे लिये अच्छा नहीं कि हम मिस्र देश को लौट जाएं?”—गिनती 14:1-3.

7 इस्राएलियों का रवैया किस कदर बदल चुका था! शुरू-शुरू में जब यहोवा ने उन्हें मिस्र से आज़ाद किया था और उन्हें लाल समुद्र में अपने दुश्‍मनों से बचाया था, तो उनका दिल एहसान से भर गया था। उन्होंने अपना एहसान ज़ाहिर करने के लिए यहोवा की स्तुति में एक गीत भी गाया था। (निर्गमन 15:1-21) मगर जब उन्हें वीराने में थोड़ी-बहुत परेशानी झेलनी पड़ी और उनमें कनानियों का डर समाया, तो उनके एहसान की भावना को मिटने में ज़रा-भी वक्‍त न लगा। और उनमें असंतोष की भावना पैदा हो गयी। अपनी आज़ादी के लिए यहोवा को धन्यवाद देने के बजाय, वे उसे दोष देने लगे कि वह उन्हें अच्छी चीज़ों से दूर रख रहा है। इसलिए उनका कुड़कुड़ाना इस बात का सबूत था कि उनमें यहोवा के इंतज़ामों के लिए कदर नहीं थी। इस वजह से यहोवा ने कहा: “यह बुरी मण्डली मुझ पर बुड़बुड़ाती रहती है, उसको मैं कब तक सहता रहूं?”—गिनती 14:27; 21:5.

पहली सदी में कुड़कुड़ाने की मिसालें

8, 9. मसीही यूनानी शास्त्र में दर्ज़ कुड़कुड़ाने की कुछ मिसालें बताइए।

8 ऊपर बतायी कुड़कुड़ाने की मिसालों से हमने देखा कि कैसे इस्राएल जाति ने अपने असंतोष की भावना को खुल्लम-खुल्ला ज़ाहिर किया। लेकिन मसीही यूनानी शास्त्र में कुछ ऐसे लोगों की मिसालें दी गयी हैं जिन्होंने शिकायत तो की मगर खुलेआम नहीं। जैसे, सा.यु. 32 में जब यीशु मसीह झोपड़ियों का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम आया, तो “लोगों में उसके विषय में चुपके चुपके बहुत सी बातें हुईं।” (यूहन्‍ना 7:12, 13, 32) ये लोग यीशु के बारे में कानाफूसी कर रहे थे। कुछ कह रहे थे कि वह एक भला इंसान है, तो दूसरे इस बात से इनकार कर रहे थे।

9 एक और मौके पर यीशु और उसके चेले, चुंगी लेनेवाले लेवी या मत्ती के घर मेहमान बनकर आए थे। तब “फरीसी और उन के शास्त्री उस के चेलों से यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, कि तुम चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?” (लूका 5:27-30) इसके कुछ समय बाद, गलील के “यहूदी [यीशु] पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिये कि उस ने कहा था; कि जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूं।” यह सुनकर यीशु के कुछ चेले भी नाराज़ हो गए और कुड़कुड़ाने लगे।—यूहन्‍ना 6:41, 60, 61.

10, 11. यूनानी बोलनेवाले यहूदी क्यों कुड़कुड़ाए, और शिकायत पर जिस तरह कार्रवाई की गयी, उससे आज के मसीही प्राचीन क्या सीखते हैं?

10 कुड़कुड़ाने की इस घटना पर ध्यान दीजिए जिसका अंजाम अच्छा निकला। सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त में दूसरे देशों से आए बहुत-से लोग मसीही बने। ये नए चेले अपने देश लौटने के बजाय यहूदिया में ही रुक गए और मसीही भाई-बहनों की संगति का लुत्फ उठाने लगे। वे अपनी चीज़ें मिल-बाँटकर इस्तेमाल करते थे। मगर कुछ समय बाद, भोजन को लेकर उनमें एक मसला खड़ा हो गया। बाइबल बताती है: “यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानियों पर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रति दिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती।”—प्रेरितों 6:1.

11 यूनानी बोलनेवाले यहूदियों और इस्राएलियों के कुड़कुड़ाने में फर्क था। इन यहूदियों के कुड़कुड़ाने की यह वजह नहीं थी कि वे अपने हालात से असंतुष्ट थे। उन्हें अपनी नहीं बल्कि उन विधवाओं की फिक्र थी जिनकी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा था। इसलिए यह देखकर वे चुप न रह सके। इसके अलावा, इन शिकायत करनेवालों ने कलीसिया में फूट पैदा करने की कोशिश नहीं की और ना ही उन्होंने यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाने की जुर्रत की। उन्होंने प्रेरितों से अपनी शिकायत की और बदले में प्रेरितों ने फौरन कार्रवाई की, क्योंकि उनकी शिकायत जायज़ थी। प्रेरितों ने आज के मसीही प्राचीनों के लिए क्या ही बढ़िया मिसाल पेश की! इन आध्यात्मिक चरवाहों को भी ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसे न हों कि “कंगाल की पुकार सुनकर कान बन्द कर” लें।—नीतिवचन 21:13, NHT; प्रेरितों 6:2-6.

खबरदार, कुड़कुड़ाना ज़ंग की तरह खतरनाक है

12, 13. (क) उदाहरण देकर समझाइए कि कुड़कुड़ाने का क्या असर होता है। (ख) एक सेवक किन वजहों से कुड़कुड़ाने लग सकता है?

12 अब तक हमने बाइबल की जिन मिसालों की चर्चा की, उनमें से ज़्यादातर मिसालें यही दिखाती हैं कि कुड़कुड़ाने की वजह से परमेश्‍वर के लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ी। इसलिए हमें गंभीरता से सोचना चाहिए कि आज कुड़कुड़ाने से क्या नुकसान हो सकता है। इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण पर गौर कीजिए। कई तरह की धातुओं में अकसर ज़ंग लगने का खतरा होता है। अगर शुरू में ही ज़ंग को छुड़ाया न जाए, तो धीरे-धीरे पूरी धातु को ज़ंग खा जाएगा। और फिर वह धातु किसी काम की नहीं रह जाएगी। ज़्यादातर मशीनों का इस्तेमाल इसलिए बंद नहीं किया जाता कि उनमें कोई खराबी आ जाती है, बल्कि इसलिए कि वे पूरी तरह ज़ंग खा जाती हैं और इस्तेमाल के लायक नहीं रहतीं। इस उदाहरण का कुड़कुड़ाने के साथ क्या ताल्लुक है?

13 जिस तरह कुछ धातुओं में अकसर ज़ंग लगने का खतरा होता है, उसी तरह असिद्ध इंसानों में शिकायती रवैया होने का खतरा होता है। हमें अपने अंदर यह रवैया शुरू में ही ताड़ लेना चाहिए। जिस तरह ज़ंग लगने की गुंजाइश हवा में नमी और खारेपन की वजह से बढ़ जाती है, उसी तरह मुसीबतों के आने पर हमारे कुड़कुड़ाने की गुंजाइश बढ़ जाती है। आम तौर पर जिन छोटी-छोटी बातों को हम बरदाश्‍त कर लेते हैं, तनाव में होने पर हम उन्हीं बातों को लेकर बखेड़ा खड़ा कर देते हैं। इस दुनिया के अंतिम दिनों में हालात बदतर होते जा रहे हैं। ऐसे में, शायद यहोवा के एक सेवक को शिकायत करने की कई वजह नज़र आएँ। (2 तीमुथियुस 3:1-5) हो सकता है कि वजह बहुत मामूली हों, जैसे किसी की कमज़ोरी या काबिलीयतों को देखकर चिढ़ना, या दूसरे को सेवा की जो ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं वह देखकर मन-ही-मन कुढ़ना। ये कुछ वजह हैं जिनसे एक सेवक कुड़कुड़ाने लग सकता है।

14, 15. शिकायती रवैए को काबू में करना क्यों ज़रूरी है?

14 हमारे चिढ़ने या कुढ़ने की वजह चाहे जो भी हो, अगर हम अपने शिकायती रवैए को काबू में न करें, तो हो सकता है कि आगे चलकर हमारे अंदर असंतोष की भावना बढ़ने लगे और कुड़कुड़ाना हमारी आदत बन जाए। इसमें कोई शक नहीं कि कुड़कुड़ाना, यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते को खतरे में डाल सकता है। इससे हम यहोवा के खिलाफ पाप करने लग सकते हैं। याद कीजिए जब वीराने में इस्राएली अपने हालात पर कुड़कुड़ाए, तो वे इस हद तक गिर गए कि यहोवा को इसके लिए दोषी ठहराने लगे। (निर्गमन 16:8) हम उनके जैसा कभी न बनें!

15 पूरी धातु पर ज़ंगरोधक पेंट लगाने या ज़ंग के दाग-धब्बों को साफ करने से ज़ंग लगने का खतरा नहीं होता। उसी तरह, अगर हम पाते हैं कि हमारे अंदर शिकायती रवैया है, तो उसे काबू में करने के लिए हम यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं और फौरन अपने अंदर सुधार ला सकते हैं। कैसे?

मामलों को यहोवा की नज़र से देखिए

16. शिकायती रवैए पर काबू पाने के लिए हमें क्या करते रहना होगा?

16 जब हम कुड़कुड़ाते हैं, तब हम अपना पूरा ध्यान खुद पर और अपनी तकलीफों पर लगा देते हैं, और यह बात भूल जाते हैं कि यहोवा के साक्षी होने के नाते हमें कितनी बढ़िया आशीषें मिली हैं। अगर हम अपने शिकायती रवैए पर काबू पाना चाहते हैं, तो हमें इन आशीषों को हमेशा याद करते रहना होगा। ये आशीषें क्या हैं? हममें से हरेक को यहोवा का नाम धारण करने का बड़ा सुअवसर मिला है। (यशायाह 43:10) हम उसके साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम कर सकते हैं, और “प्रार्थना के सुननेवाले” यहोवा से किसी भी वक्‍त बात कर सकते हैं। (भजन 65:2; याकूब 4:8) हमारी ज़िंदगी को एक मकसद मिला है, क्योंकि हम विश्‍व की हुकूमत के मसले को समझते हैं और इस बात को याद रखते हैं कि परमेश्‍वर की तरफ अपनी खराई बनाए रखना हमारे लिए एक सम्मान है। (नीतिवचन 27:11) हमें राज्य का सुसमाचार सुनाने में बिना नागा हिस्सा लेने की भी आशीष मिली है। (मत्ती 24:14) और यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करने से हमें शुद्ध विवेक मिला है। (यूहन्‍ना 3:16) ये आशीषें यहोवा के हर सेवक को मिलती हैं, फिर चाहे हमें ज़िंदगी में अलग-अलग हालात या मुश्‍किलों का सामना क्यों न करना पड़े।

17. शिकायत करने की जायज़ वजह होने पर भी हमें मामलों को यहोवा की नज़र से क्यों देखना चाहिए?

17 हमें मामलों को सिर्फ अपनी नज़र से ही नहीं, बल्कि यहोवा की नज़र से भी देखने की कोशिश करनी चाहिए। भजनहार दाऊद ने अपने गीत में कहा: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे।” (भजन 25:4) अगर हमारे पास शिकायत करने की जायज़ वजह है, तो यहोवा भी इससे अच्छी तरह वाकिफ है। वह चाहे तो मामले को फौरन निपटा सकता है। मगर फिर भी, वह कभी-कभी मुश्‍किल हालात को चलने देता है। क्यों? शायद वह देखता है कि हमें अपने अंदर सब्र, धीरज, विश्‍वास और सहनशीलता जैसे बढ़िया गुण पैदा करने की ज़रूरत है।—याकूब 1:2-4.

18, 19. मिसाल देकर बताइए कि दिक्कतों के बावजूद शिकायत न करने का क्या अच्छा असर होता है।

18 दिक्कतों के बावजूद शिकायत न करने से हम एक बेहतर इंसान बनते हैं। इतना ही नहीं, जब दूसरे हमारे अच्छे बर्ताव को देखते हैं, तो उन पर भी अच्छा असर होता है। मिसाल के लिए, सन्‌ 2003 में हंगरी में एक अधिवेशन रखा गया था। उसमें हाज़िर होने के लिए यहोवा के साक्षियों के एक समूह ने जर्मनी से एक बस किराए पर लिया। बस का ड्राइवर साक्षी नहीं था, और ना ही वह इन साक्षियों के साथ दस दिन बिताना चाहता था। मगर सफर के खत्म होते-होते, साक्षियों के बारे में उसकी राय पूरी तरह बदल चुकी थी। यह कैसे हुआ?

19 सफर के दौरान साक्षियों को कई दिक्कतें आयीं, मगर उन्होंने एक बार भी शिकायत नहीं की। यह देखकर ड्राइवर ने कहा कि उसके बस में अब तक सफर करनेवालों में यह समूह सबसे उम्दा समूह था! उसने यह भी वादा किया कि अगली बार जब साक्षी उसके घर प्रचार करने आएँगे, तो वह उन्हें अंदर बुलाएगा और ध्यान से उनकी बात सुनेगा। ‘सब काम बिना कुड़कुड़ाए करके’ इन साक्षियों ने ड्राइवर पर क्या ही बढ़िया छाप छोड़ी!

एक-दूसरे को माफ करने से एकता बढ़ती है

20. हमें क्यों एक-दूसरे को माफ करना चाहिए?

20 अगर हमें किसी मसीही भाई या बहन से शिकायत हो, तब क्या? अगर मामला संगीन है, तो हमें मत्ती 18:15-17 में दर्ज़ यीशु के सिद्धांतों पर चलना चाहिए। मगर ऐसा हर बार करना ज़रूरी नहीं होता, क्योंकि ज़्यादातर शिकायतें तो छोटी-मोटी होती हैं। ऐसे हालात में क्यों ना माफ करने के मौके का फायदा उठाएँ और माफ करें? पौलुस ने लिखा: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।” (कुलुस्सियों 3:13, 14) क्या हम माफ करने के लिए तैयार रहते हैं? ज़रा इस बात पर गौर कीजिए। क्या यहोवा के पास हमारे खिलाफ शिकायत करने की वजह है? बिलकुल है। फिर भी वह हमें बार-बार करुणा दिखाता है और माफ करता है। तो क्या हमें भी दूसरों को माफ नहीं करना चाहिए?

21. कुड़कुड़ाने का सुननेवालों पर कैसा असर पड़ सकता है?

21 हमारी शिकायत चाहे जो भी हो, मगर कुड़कुड़ाने से मामला निपट तो नहीं जाएगा। जिस इब्रानी शब्द का मतलब “कुड़कुड़ाना” है, उसका एक और मतलब है “गुर्राना।” जो इंसान कुड़कुड़ाता रहता है और रुकने का नाम नहीं लेता, ज़ाहिर है कि हम ऐसे इंसान के इर्द-गिर्द रहना पसंद नहीं करते और उससे दूर रहने की कोशिश करते हैं। अगर हम भी इसी तरह कुड़कुड़ाएँ या गुर्राएँ तो सुननेवाले शायद हमारे भी इर्द-गिर्द रहना पसंद न करें और हमसे दूर भागने की कोशिश करें। सबके सामने कुड़कुड़ाकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने से शायद हम किसी का ध्यान खींच पाएँ, मगर इससे हम कभी उसका दिल नहीं जीत पाएँगे।

22. एक लड़की ने यहोवा के साक्षियों के बारे में क्या कहा?

22 एक-दूसरे को माफ करने से एकता बढ़ती है। यही एकता यहोवा के लोगों को दिलो-जान से प्यारी है। (भजन 133:1-3) यूरोप के एक देश में, यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर को एक खत आया। वह खत उसी देश की 17 साल की एक कैथोलिक लड़की ने लिखा था, जिसमें उसने साक्षियों की तारीफ में कहा: “मेरे खयाल से सिर्फ यही एक ऐसा संगठन है जिसमें सच्ची एकता पायी जाती है। इसके सदस्य एक-दूसरे से नफरत नहीं करते, वे स्वार्थी, असहनशील या मतलबी नहीं हैं और उनमें किसी तरह की फूट नहीं है।”

23. अगले लेख में हम किस बात पर चर्चा करेंगे?

23 सच्चे परमेश्‍वर यहोवा के उपासक होने के नाते हमें जितनी भी आध्यात्मिक आशीषें मिलती हैं, उनके लिए अगर हम एहसानमंद हैं, तो हम एकता को बढ़ावा देंगे और अपने ज़ाती मामलों में दूसरों के खिलाफ कुड़कुड़ाने से दूर रहेंगे। अगला लेख इस बात पर चर्चा करेगा कि कैसे परमेश्‍वर के गुण दिखाने से हम कुड़कुड़ाने के एक और भी खतरनाक रूप से बच सकते हैं। और वह है धरती पर मौजूद यहोवा के संगठन के खिलाफ कुड़कुड़ाना। (w06 7/15)

क्या आपको याद है?

• कुड़कुड़ाने में क्या शामिल है?

• कुड़कुड़ाने का क्या असर होता है, इस बात को समझाने के लिए क्या उदाहरण दिया जा सकता है?

• कुड़कुड़ाने के रवैए पर काबू पाने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

• अगर हम माफ करने के लिए तैयार रहते हैं, तो इससे हम कुड़कुड़ाने से कैसे दूर रहेंगे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8 पर तसवीर]

इस्राएली दरअसल यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ा रहे थे!

[पेज 10 पर तसवीर]

क्या आप मामलों को यहोवा की नज़र से देखने की कोशिश करते हैं?

[पेज 11 पर तसवीरें]

एक-दूसरे को माफ करने से एकता बढ़ती है