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परमेश्‍वर का भय मानकर खुश रहिए!

परमेश्‍वर का भय मानकर खुश रहिए!

परमेश्‍वर का भय मानकर खुश रहिए!

“क्या ही धन्य है वह पुरुष जो यहोवा का भय मानता है।”—भजन 112:1.

1, 2. यहोवा का भय मानने से हमें क्या मिलेगा?

 खुशी इतनी आसानी से नहीं मिलती। सच्ची खुशी तभी हासिल होती है जब हम सही चुनाव करते हैं और जो गलत है, उसे ठुकराकर सही काम करते हैं। हमारे सिरजनहार यहोवा ने हमें जीने का सबसे बेहतरीन तरीका सिखाने के लिए अपना वचन बाइबल दिया है। यहोवा की हिदायतें पाने और उस पर चलने के ज़रिए हम यहोवा का भय मानते हैं। और जब हम ऐसा करते हैं, तब हमें सच्ची खुशी और सच्चा संतोष मिलता है।—भजन 23:1; नीतिवचन 14:26.

2 इस लेख में हम बाइबल के और आज के ज़माने के कुछ उदाहरणों पर गौर करेंगे और देखेंगे कि कैसे यहोवा के लिए सच्चा भय, एक इंसान को गलत काम को ठुकराने की ताकत देता है और सही काम करने की हिम्मत बढ़ाता है। हम देखेंगे कि अगर हम परमेश्‍वर का भय मानें, तो राजा दाऊद की तरह हमारा मन हमें गलत रास्ते से लौटने के लिए उभारेगा और ऐसा करने से हमें खुशी मिलेगी। इसके अलावा, हम यह भी देखेंगे कि यहोवा का भय वाकई एक अनमोल विरासत है जो माता-पिता अपने बच्चों को दे सकते हैं। सचमुच, परमेश्‍वर का वचन हमें यकीन दिलाता है: “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो यहोवा का भय मानता है।”—भजन 112:1.

खोई हुई खुशियों को दोबारा पाना

3. किस वजह से दाऊद अपने पापों से उबर पाया?

3 हमने पिछले लेख में देखा कि दाऊद खासकर तीन मौकों पर परमेश्‍वर का सच्चा भय मानने से चूक गया और उसने पाप किया। फिर भी, यहोवा से ताड़ना मिलने पर उसने जो रवैया दिखाया, उससे पता चलता है कि वह सचमुच परमेश्‍वर का भय माननेवाला इंसान था। परमेश्‍वर के लिए श्रद्धा और आदर होने की वजह से उसने अपनी गलती कबूल की, अपने गलत रास्ते को छोड़ दिया और दोबारा यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम किया। हालाँकि सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि दूसरों को भी उसके पापों का अंजाम भुगतना पड़ा, मगर उसे अपने किए पर सच्चा पछतावा था। इसलिए यहोवा ने उसका साथ नहीं छोड़ा और उस पर लगातार आशीषें बरसाता रहा। वाकई, दाऊद की मिसाल से आज उन मसीहियों को हिम्मत मिलती है जो गंभीर पाप कर बैठते हैं।

4. परमेश्‍वर का भय कैसे एक इंसान की खुशियाँ लौटा सकता है?

4 ज़ॉन्या की मिसाल लीजिए। * हालाँकि वह पूरे समय की सेवा कर रही थी, फिर भी वह बुरी सोहबत में पड़कर गलत काम कर बैठी। इस वजह से उसे कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया गया। जब ज़ॉन्या को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने यहोवा के साथ अपने टूटे रिश्‍ते को दोबारा जोड़ने के लिए कड़ी मेहनत की। कुछ समय बाद, उसे कलीसिया में बहाल किया गया। इन सबके दौरान ज़ॉन्या ने यहोवा की सेवा करने की अपनी ख्वाहिश बनाए रखी। आगे चलकर, उसने दोबारा पूरे समय की सेवा शुरू की। बाद में, उसने एक अच्छी मिसाल रखनेवाले मसीही प्राचीन से शादी की और आज उसके साथ खुशी-खुशी कलीसिया में सेवा कर रही है। हालाँकि ज़ॉन्या को बेहद अफसोस है कि कुछ वक्‍त के लिए वह मसीही मार्ग से भटक गयी थी, मगर उसे इस बात की खुशी है कि परमेश्‍वर के भय ने उसे दोबारा सही रास्ते पर लौट आने में मदद दी।

पाप करने से तो दुःख भोगना अच्छा

5, 6. समझाइए कि कैसे और क्यों दाऊद ने दो मौकों पर शाऊल की जान बख्श दी।

5 बेशक एक व्यक्‍ति के लिए परमेश्‍वर का भय मानकर पाप न करना ही अच्छा है। दाऊद के मामले में यह बात सच साबित हुई। एक दफा, शाऊल अपने तीन हज़ार सैनिकों के साथ दाऊद का पीछा करते-करते एक गुफा में घुस गया। उसी गुफा में दाऊद और उसके साथी छिपे हुए थे। दाऊद के साथियों ने उसे उकसाया कि वह शाऊल को वहीं ढेर कर दे। उनकी राय में, यहोवा ही दाऊद को अपने जानी दुश्‍मन को मारने का मौका दे रहा था। मगर दाऊद ने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, वह चुपके से शाऊल के पास आया और उसने उसके बागे की छोर को काट लिया। हालाँकि दाऊद ने शाऊल को छुआ तक नहीं, फिर भी अपनी इस छोटी-सी हरकत के लिए उसका ज़मीर उसे कचोटने लगा। क्यों? क्योंकि दाऊद परमेश्‍वर का भय मानता था। उसने गुस्से से पागल अपने साथियों को यह कहकर समझाया: “यहोवा न करे कि मैं अपने प्रभु से जो यहोवा का अभिषिक्‍त है ऐसा काम करूं।” *1 शमूएल 24:1-7.

6 एक और मौके पर, शाऊल और उसके आदमी रात को डेरा डाले हुए थे। और “यहोवा की ओर से उन में भारी नींद समा गई थी।” तब दाऊद और उसका दिलेर भानजा अबीशै, दबे पाँव डेरे के बीचों-बीच आ पहुँचे और शाऊल के पास आ खड़े हुए। अबीशै, शाऊल को वहीं खत्म कर देना चाहता था। मगर दाऊद ने उसे रोककर पूछा: “यहोवा के अभिषिक्‍त पर हाथ चलाकर कौन निर्दोष ठहर सकता है?”—1 शमूएल 26:9, 12.

7. किस बात ने दाऊद को पाप करने से रोका?

7 दो बार मौका मिलने पर भी दाऊद ने शाऊल को क्यों नहीं मारा? क्योंकि उसे शाऊल का डर नहीं था, बल्कि वह यहोवा का भय मानता था। इसी भय की वजह से वह पाप करने के बजाय दुःख भोगने के लिए तैयार हुआ। (इब्रानियों 11:25) उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा अपने लोगों की और खुद उसकी भी परवाह करता है। दाऊद जानता था कि अगर वह परमेश्‍वर की बात मानेगा और उस पर भरोसा रखेगा, तो उसे ढेरों खुशियाँ और आशीषें मिलेंगी। लेकिन अगर वह परमेश्‍वर की नहीं सुनेगा, तो वह परमेश्‍वर की मंज़ूरी खो देगा। (भजन 65:4) दाऊद यह भी जानता था कि परमेश्‍वर अपने ठहराए वक्‍त पर और अपने तरीके से शाऊल को राजा के पद से हटा देगा और दाऊद को राजा बनाकर अपना वादा ज़रूर पूरा करेगा।—1 शमूएल 26:10.

परमेश्‍वर का भय मानने से खुशियाँ मिलती हैं

8. मुश्‍किलों में दाऊद ने जो किया, उससे हम क्या सीखते हैं?

8 मसीही होने के नाते, हम उम्मीद कर सकते हैं कि लोग हमारी हँसी-ठट्ठा करेंगे, हम पर ज़ुल्म ढाएँगे और हमें आज़माइशों का सामना करना पड़ेगा। (मत्ती 24:9; 2 पतरस 3:3) कभी-कभी शायद अपने मसीही भाइयों के साथ ही कुछ मुश्‍किलें खड़ी हो जाएँ। मगर हम जानते हैं कि यहोवा सबकुछ देखता है और हमारी प्रार्थनाएँ भी सुनता है, और सही वक्‍त पर वह अपनी इच्छा के मुताबिक मामलों को निपटाएगा। (रोमियों 12:17-21; इब्रानियों 4:16) इसलिए, अपने विरोधियों से डरने के बजाय, हम परमेश्‍वर का भय मानेंगे और उस पर भरोसा रखेंगे कि वही हमें उनसे छुड़ाएगा। दाऊद की तरह, हम अपने विरोधियों से बदला नहीं लेते, और ना ही हम तकलीफों से बचने के लिए धर्मी सिद्धांतों के साथ समझौता करते हैं। ऐसा रास्ता अपनाने से आखिर में हमें खुशियाँ मिलती हैं। वह कैसे?

9. मिसाल देकर बताइए कि कैसे सताए जाने के बावजूद, परमेश्‍वर का भय एक इंसान को खुशी दे सकता है।

9 अफ्रीका में लंबे समय से मिशनरी सेवा करनेवाला एक भाई कहता है: “मैं हमेशा उस बहन और उसकी किशोर बेटी को याद करता हूँ जिन्होंने अपनी मसीही निष्पक्षता बनाए रखने के लिए राजनीति के पार्टी कार्ड खरीदने से साफ इनकार कर दिया। इसलिए मर्दों की एक भीड़ ने उनके साथ बहुत बुरी तरह से बदतमीज़ी की और फिर उन्हें घर जाने के लिए कहा। रास्ते में माँ अपनी रोती हुई बेटी को दिलासा देती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उनके साथ यह सब क्यों हुआ। हालाँकि उस वक्‍त वे खुश नहीं थे, मगर उनका ज़मीर साफ था। बाद में, वे इस बात से खुश थे कि उन्होंने परमेश्‍वर की आज्ञा मानी। अगर उन्होंने पार्टी कार्ड खरीद लिया होता, तो वह भीड़ खुशी से पागल हो गयी होती। वे आदमी, उन्हें सॉफ्ट ड्रिंक खरीदकर देते और उनके आस-पास नाचते-झूमते हुए उन्हें घर तक पहुँचाते। मगर उस माँ-बेटी को यह बात खाए जाती कि उन्होंने समझौता किया है और इससे उन्हें बहुत-बहुत दुःख होता।” वाकई, परमेश्‍वर के लिए उनके भय ने उन्हें इस कड़वे अनुभव से बचाया।

10, 11. परमेश्‍वर का भय मानने की वजह से एक स्त्री को क्या अच्छे नतीजे मिले?

10 परमेश्‍वर का भय दिखाने से उस वक्‍त भी हमें खुशी मिलती है जब हमारे सामने यह परीक्षा आती है कि हम जीवन की पवित्रता का आदर करेंगे या नहीं। मॆरी की मिसाल लीजिए। जब मॆरी का तीसरा बच्चा उसके गर्भ में था, तब डॉक्टर ने उसे गर्भपात करवाने की सलाह दी। उसने कहा: “तुम्हारी हालत बहुत नाज़ुक है। किसी भी वक्‍त हालत बिगड़ सकती है और 24 घंटे के अंदर तुम्हारी जान तक जा सकती है। और बच्चे की भी मौत हो सकती है। हालात चाहे जो भी हो, इसकी कोई गारंटी नहीं कि बच्चा बिलकुल स्वस्थ पैदा होगा।” उस वक्‍त मॆरी, यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन कर रही थी, मगर उसका बपतिस्मा नहीं हुआ था। वह कहती है: “फिर भी, मैंने यहोवा की सेवा करने का फैसला कर लिया था और मैंने ठान लिया था कि चाहे जो हो जाए, मैं उसकी आज्ञा नहीं तोड़ूँगी।”—निर्गमन 21:22, 23.

11 अपनी गर्भावस्था के दौरान मॆरी, बाइबल का अध्ययन करने और अपने परिवार की देखभाल करने में लगी रही। आखिरकार बच्चे का जन्म हुआ। मॆरी कहती है: “हालाँकि पहले दो बच्चों के मुकाबले इस बच्चे को जन्म देते वक्‍त मुझे ज़्यादा तकलीफ हुई, मगर इसके अलावा, कोई बड़ी समस्या पैदा नहीं हुई।” जी हाँ, परमेश्‍वर का भय मानने की वजह से मॆरी का विवेक शुद्ध बना रहा। जल्द ही उसका बपतिस्मा हुआ। जैसे-जैसे वह बच्चा बड़ा हुआ, उसने भी परमेश्‍वर का भय मानना सीखा। आज वह यहोवा के साक्षियों के एक शाखा दफ्तर में सेवा कर रहा है।

‘यहोवा में शक्‍ति पाइए’

12. परमेश्‍वर के भय ने दाऊद को कैसे शक्‍ति दी?

12 यहोवा के लिए दाऊद के भय ने उसे सिर्फ गलत काम करने से नहीं रोका, बल्कि मुश्‍किल हालात में सोच-समझकर फौरन कदम उठाने की शक्‍ति भी दी। एक साल और चार महीने तक दाऊद और उसके आदमियों ने शाऊल से बचते-बचाते पलिश्‍तियों की एक बस्ती, सिकलग में पनाह ली। (1 शमूएल 27:5-7) एक बार जब दाऊद और उसके आदमी कहीं गए हुए थे, तब अमालेकी हमलावरों ने सिकलग नगर को आग में झोंक दिया और सभी आदमियों के बीवी-बच्चों और भेड़-बकरियों को उठाकर ले गए। जब दाऊद और उसके आदमी लौटे, तो जो हुआ वह देखकर वे फूट-फूटकर रोने लगे। देखते-ही-देखते दाऊद के आदमियों का क्रोध दाऊद पर भड़क उठा और वे उस पर पत्थरवाह करने की बात करने लगे। यह जानकर दाऊद बहुत दुःखी हुआ, मगर इसके बावजूद उसने हार नहीं मानी। (नीतिवचन 24:10) परमेश्‍वर के भय की वजह से उसने यहोवा से मदद माँगी और ‘यहोवा में शक्‍ति पाई।’ (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) फिर परमेश्‍वर की मदद से दाऊद और उसके आदमियों ने अमालेकियों का पीछा किया और जो उनका था, सबकुछ वापस ले लिया।—1 शमूएल 30:1-20.

13, 14. परमेश्‍वर के भय ने एक मसीही को सही फैसला करने में कैसे मदद दी?

13 आज परमेश्‍वर के सेवक भी ऐसे हालात का सामना करते हैं जिनमें उन्हें यहोवा पर भरोसा रखने की और फौरन कदम उठाने के लिए हिम्मत की ज़रूरत पड़ती है। क्रिस्टीना की मिसाल पर गौर कीजिए। वह जवानी से यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करती आयी थी। मगर वह बड़े-बड़े प्रोग्राम में पियानो बजानेवाली बनना चाहती थी। अपना यह ख्वाब पूरा करने के लिए उसने कड़ी मेहनत की। इसके अलावा, उसे प्रचार करने में झिझक महसूस होती थी, इसलिए वह बपतिस्मे के साथ आनेवाली ज़िम्मेदारियों से डरती थी। मगर जैसे-जैसे क्रिस्टीना, परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करती गयी, उसे बाइबल की ताकत का एहसास होने लगा। वह यहोवा का भय मानना सीखने लगी। उसे इस बात का एहसास हुआ कि यहोवा चाहता है कि उसके सेवक अपने सारे मन, प्राण, बुद्धि, और शक्‍ति से उससे प्रेम करें। (मरकुस 12:30) और इस बात ने उसे यहोवा को अपना जीवन समर्पित करने और बपतिस्मा लेने के लिए उकसाया।

14 क्रिस्टीना ने आध्यात्मिक तरक्की करने के लिए यहोवा से मदद माँगी। वह बताती है: “मैं जानती थी कि बड़े-बड़े प्रोग्राम में पियानो बजानेवालों को हर वक्‍त जगह-जगह घूमना पड़ता है और उन्हें साल में कम-से-कम 400 प्रोगाम में पियानो बजाना पड़ता है। इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं टीचर की नौकरी करूँगी। इससे मेरा गुज़ारा भी हो जाएगा और मैं पूरे समय की सेवा भी कर पाऊँगी।” उस वक्‍त क्रिस्टीना को पहले से ही एक कॉन्ट्रैक्ट मिल चुका था। वह देश के सबसे मशहूर हॉल में अपना पहला शो करनेवाली थी। क्रिस्टीना याद करती है: “वह मेरा पहला और आखिरी शो था।” इसके बाद, क्रिस्टीना ने एक मसीही प्राचीन से शादी कर ली। आज वे दोनों यहोवा के साक्षियों के एक शाखा दफ्तर में सेवा कर रहे हैं। क्रिस्टीना खुश है कि यहोवा ने उसे सही फैसला करने की ताकत दी। वह इसलिए भी खुश है कि अब वह अपना समय और दमखम उसकी सेवा में इस्तेमाल कर पाती है।

एक अनमोल विरासत

15. दाऊद अपने बच्चों को कौन-सी अनमोल विरासत देना चाहता था, और यह उसने कैसे किया?

15 दाऊद ने लिखा: “हे लड़को, आओ, मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा।” (भजन 34:11) एक पिता होने के नाते, दाऊद का पक्का इरादा था कि अपने बच्चों को एक अनमोल विरासत दे, और वह था यहोवा के लिए सही किस्म का और सच्चा भय। अपनी बातों और अपने कामों से उसने दिखाया कि यहोवा से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। वह अपने सेवकों से हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करता, और ना ही वह इस ताक में रहता है कि कब उसके सेवक गलती करें और वह उन्हें इसकी सज़ा दे। इसके बजाय, दाऊद ने ज़ाहिर किया कि यहोवा एक ऐसा पिता है जो धरती पर अपने बच्चों से प्यार करता है, उनकी परवाह करता है और उनके गुनाहों को माफ करता है। इसलिए उसने पूछा: “अपनी भूलचूक का हिसाब कौन रख सकता है?” फिर अपना यकीन ज़ाहिर करते हुए कि यहोवा लगातार हमारी गलतियाँ नहीं ढूँढ़ता है, उसने आगे कहा: “मुझे उन पापों से निर्दोष ठहरा जिनसे मैं बेखबर हूँ!” दाऊद को पूरा यकीन था कि अगर वह परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने में अपना भरसक करे, तो उसकी बातें और विचार यहोवा को भाएँगे।—भजन 19:12, 14, बाइंगटन।

16, 17. माता-पिता अपने बच्चों को यहोवा का भय मानना कैसे सिखा सकते हैं?

16 दाऊद, आज के माता-पिताओं के लिए एक अच्छी मिसाल है। रैल्फ अपने छोटे भाई के साथ यहोवा के साक्षियों के एक शाखा दफ्तर में सेवा करता है। वह कहता है: “हमारे माता-पिता ने हमें इस तरह पाल-पोसकर बड़ा किया कि सच्चाई में बने रहना हमारे लिए बोझ नहीं था, बल्कि उससे हमें खुशी मिलती थी। जब हम छोटे थे, तब वे हमें कलीसिया के कामों से जुड़ी बातचीत में शामिल करते थे। इस तरह, हममें सच्चाई के लिए उतना ही जोश पैदा हुआ जितना कि उनमें था। उन्होंने हमें सिखाया कि हम यहोवा की सेवा में बहुत कुछ कर सकते हैं। दरअसल कई सालों तक हमारा परिवार ऐसे देश में रहा जहाँ राज्य प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है और हमने वहाँ नयी कलीसियाएँ शुरू करने में भी मदद दी।

17 “हम सच्चाई की राह में इसलिए नहीं बने रहे कि हमें ढेरों नियम दिए गए थे। मगर हमने देखा कि हमारे माता-पिता के लिए यहोवा एक असल, बहुत ही दयालु और परवाह करनेवाला परमेश्‍वर था। उन्होंने यहोवा को करीब से जानने और उसे खुश करने की कोशिश की। परमेश्‍वर के लिए उनके दिल में जो सच्चा भय और प्यार था, उससे भी हमने बहुत कुछ सीखा। जब हम कोई गलती करते थे, तब भी वे हमें यह महसूस नहीं कराते थे कि यहोवा हमसे प्यार नहीं करता, और ना ही वे गुस्से में आकर हम पर कड़ी पाबंदियाँ लगाते थे। इसके बजाय, वे अकसर ठंडे दिमाग से हमसे बात करते और हमें इस तरह समझाने की कोशिश करते कि बात हमारे दिल में घर कर जाए। कभी-कभी तो माँ की आँखों में आँसू भी आ जाते थे। उनकी मेहनत रंग लायी। उनकी बातों और कामों से हमने सीखा कि यहोवा का भय मानना बहुत ही अच्छी बात है, और उसके साक्षी कहलाना बोझ नहीं मगर खुशी की बात है।”—1 यूहन्‍ना 5:3.

18. सच्चे परमेश्‍वर का भय मानने से हमें क्या हासिल होगा?

18 ‘दाऊद के अन्तिम वचनों’ में हम पढ़ते हैं: “जो मनुष्यों पर धार्मिकता से शासन करता है, जो परमेश्‍वर के भय में शासन करता है, वह प्रात:काल के प्रकाश के समान है जब सूर्य उदय होता है।” (2 शमूएल 23:1, 3, 4, NHT) दाऊद का बेटा और अगला राजा, सुलैमान शायद समझ गया था कि उसका पिता क्या कहना चाहता था, इसलिए उसने यहोवा से बिनती की कि वह उसे “आज्ञा माननेवाला हृदय” (NW) और ‘भले बुरे को परखने’ की काबिलीयत दे। (1 राजा 3:9) सुलैमान जान गया कि यहोवा का भय मानने से ही बुद्धि और खुशी मिलती है। बाद में, उसने सभोपदेशक की अपनी किताब का निचोड़ इस तरह दिया: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है। क्योंकि परमेश्‍वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा।” (सभोपदेशक 12:13, 14) अगर हम इस सलाह को मानेंगे, तो वाकई हम पाएँगे कि “नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल” सिर्फ बुद्धि और खुशी ही नहीं, बल्कि “धन, महिमा और जीवन [भी] होता है।”—नीतिवचन 22:4.

19. क्या करने से हम “यहोवा के भय” को समझ पाएँगे?

19 बाइबल की और आज के ज़माने की मिसालों से हमने देखा कि परमेश्‍वर के लिए सही किस्म का भय होने से उसके सच्चे सेवकों को खुशी मिली है। ऐसा भय होने से हम उन कामों से दूर रहेंगे जिनसे परमेश्‍वर नफरत करता है। इतना ही नहीं यह भय हमें अपने दुश्‍मनों का डटकर मुकाबला करने की हिम्मत देगा और परीक्षाओं और मुश्‍किलों को सहने की ताकत देगा। इसलिए आइए हम सब, जवान और बुज़ुर्ग, परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन करने, सीखी हुई बातों पर मनन करने और लगातार प्रार्थना में यहोवा के करीब आने के लिए कड़ी मेहनत करें। ऐसा करने से हम न सिर्फ “परमेश्‍वर का ज्ञान” पाएँगे, बल्कि “यहोवा के भय” को भी समझेंगे।—नीतिवचन 2:1-5. (w06 8/1)

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिए गए हैं।

^ यह शायद दाऊद के उन अनुभवों में से एक था जिनकी वजह से उसने भजन 57 और 142 को रचा।

क्या आप समझा सकते हैं?

परमेश्‍वर का भय कैसे

• एक इंसान को गंभीर पाप से उबरने में मदद दे सकता है?

• एक इंसान को परीक्षाओं और ज़ुल्मों के बावजूद खुशी दे सकता है?

• हमें परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने के लिए ताकत दे सकता है?

• हमारे बच्चों के लिए एक अनमोल विरासत साबित हो सकता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 29 पर तसवीरें]

परमेश्‍वर का भय एक ऐसी अनमोल विरासत है जो माता-पिता अपने बच्चों को दे सकते हैं