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परमेश्‍वर का भय मानकर बुद्धिमान बनिए!

परमेश्‍वर का भय मानकर बुद्धिमान बनिए!

परमेश्‍वर का भय मानकर बुद्धिमान बनिए!

“यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है।”—नीतिवचन 9:10.

1. परमेश्‍वर का भय मानने के बारे में कई लोग क्या नहीं समझ पाते हैं?

 एक ज़माना था जब किसी के बारे में यह कहना तारीफ की बात समझी जाती थी कि वह परमेश्‍वर का भय मानता है। मगर आज, कई लोगों को यह बात दकियानूसी लगती है। वे यह नहीं समझ पाते कि ‘अगर परमेश्‍वर प्रेम है, तो मुझे उससे डरना क्यों चाहिए?’ ऐसे लोगों के लिए डर या भय एक बुरी भावना है, जिसके काबू में आकर एक इंसान अपनी सुध-बुध खो बैठता है। लेकिन परमेश्‍वर का भय सिर्फ एक भावना नहीं है। इसमें और भी कई बातें शामिल हैं जैसा कि हम इस लेख में देखेंगे।

2, 3. परमेश्‍वर का भय मानने का क्या मतलब है?

2 बाइबल के मुताबिक परमेश्‍वर का भय मानना एक अच्छी बात है और सभी में यह भय होना चाहिए। (यशायाह 11:3) इस भय का मतलब है, परमेश्‍वर के लिए गहरी श्रद्धा और विसमय की भावना होना और उसे नाराज़ न करने की ज़बरदस्त इच्छा रखना। (भजन 115:11) यह भय होने से एक इंसान, परमेश्‍वर के नैतिक स्तरों को कबूल करेगा और उनका सख्ती से पालन करेगा। इसके अलावा, उसमें सही-गलत के बारे में परमेश्‍वर के उसूलों को मानकर चलने की इच्छा भी होगी। एक किताब कहती है कि इस तरह का भय होना “बेहद ज़रूरी है, क्योंकि परमेश्‍वर की तरफ ऐसा रवैया रखने से ही एक इंसान बुद्धि से काम लेगा और हर बुराई से दूर रहेगा।” इसलिए परमेश्‍वर का वचन बिलकुल सही कहता है: “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है।”—नीतिवचन 9:10.

3 परमेश्‍वर का भय, इंसान की ज़िंदगी के कई पहलुओं से जुड़ा हुआ है। जैसे, इससे एक इंसान न सिर्फ बुद्धिमान हो जाता है बल्कि उसे खुशी, शांति, समृद्धि, लंबी उम्र, और आशा भी मिलती है। साथ ही, यहोवा पर उसका भरोसा भी बढ़ता है। (भजन 2:11; नीतिवचन 1:7; 10:27; 14:26; 22:4; 23:17, 18; प्रेरितों 9:31) इस भय का विश्‍वास और प्रेम जैसे गुण के साथ गहरा नाता है। दरअसल, इस भय का असर यहोवा और इंसानों के साथ हमारे रिश्‍ते पर पड़ता है। (व्यवस्थाविवरण 10:12; अय्यूब 6:14; इब्रानियों 11:7) परमेश्‍वर का भय होने से हमें पक्का यकीन होगा कि स्वर्ग में रहनेवाला, हमारा पिता हममें से हरेक की फिक्र करता है और हमारे पापों को माफ करने के लिए तैयार रहता है। (भजन 130:4) सिर्फ बुरे लोगों को जिन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं, परमेश्‍वर से खौफ खाने की ज़रूरत है, हमें नहीं। *इब्रानियों 10:26-31.

परमेश्‍वर का भय मानना कैसे सीखें

4. हम कैसे ‘यहोवा का भय मानना सीख’ सकते हैं?

4 ज़िंदगी में बुद्धि-भरे फैसले करने और परमेश्‍वर की आशीषें पाने के लिए उसका भय मानना ज़रूरी है। तो फिर, हम कैसे ‘यहोवा का भय मानना सीख’ सकते हैं? (व्यवस्थाविवरण 17:19) एक मदद है, बाइबल में “हमारी ही शिक्षा के लिये” दर्ज़ ऐसे ढेरों स्त्री-पुरुषों की मिसालें, जो परमेश्‍वर का भय मानते थे। (रोमियों 15:4) परमेश्‍वर का भय मानने का असल में क्या मतलब है, यह समझने के लिए आइए हम उन लोगों में से एक की मिसाल पर गौर करें। वह है, प्राचीन इस्राएल का राजा दाऊद।

5. भेड़ों को चराते वक्‍त, दाऊद ने यहोवा का भय मानना कैसे सीखा?

5 यहोवा ने इस्राएल के पहले राजा, शाऊल को ठुकरा दिया था क्योंकि वह परमेश्‍वर का भय मानने से ज़्यादा इंसान से खौफ खाने लगा था। (1 शमूएल 15:24-26) मगर दाऊद उससे कितना अलग था। उसकी पूरी ज़िंदगी से और यहोवा के साथ उसके करीबी रिश्‍ते से यह साफ पता चलता है कि वह सचमुच परमेश्‍वर का भय मानता था। बचपन में वह अकसर मैदानों में अपने पिता की भेड़ों को चराने जाता था। (1 शमूएल 16:11) इसके लिए दाऊद ने न जाने कितनी रातें, तारों से भरे आसमान के तले बितायी होंगी और आसमान को निहारते वक्‍त उसे यहोवा का भय समझने में मदद मिली होगी। हालाँकि उस वक्‍त, दाऊद को विश्‍व के बारे में बहुत कम समझ थी, फिर भी वह बिलकुल सही नतीजे पर पहुँचा। किस नतीजे पर? यही कि परमेश्‍वर हमारा आदर और उपासना पाने का हकदार है। बाद में उसने अपने एक गीत में लिखा: “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्‍त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?”—भजन 8:3, 4.

6. यहोवा की महानता देखकर दाऊद को कैसा लगा?

6 जब दाऊद ने देखा कि विशाल आकाश के आगे वह कुछ भी नहीं, तो इस बात ने उसके दिल पर गहरा असर किया। खौफ खाने के बजाय, वह यहोवा की स्तुति करने के लिए उकसाया गया: “आकाश ईश्‍वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है।” (भजन 19:1) यहोवा के लिए दाऊद के दिल में श्रद्धा होने की वजह से वह अपने परमेश्‍वर के और भी करीब आया। उस श्रद्धा ने उसके मन को उभारा कि वह परमेश्‍वर के सिद्ध मार्गों के बारे में सीखे और उन पर चले। ज़रा सोचिए, दाऊद ने किस भावना के साथ यह गीत गाया होगा: “तू महान्‌ और आश्‍चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्‍वर है। हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।”—भजन 86:10, 11.

7. गोलियत से लड़ने के लिए परमेश्‍वर के भय ने दाऊद की कैसे मदद की?

7 दाऊद की ज़िंदगी के एक वाकये पर ध्यान दीजिए। पलिश्‍तियों ने इस्राएल देश पर चढ़ाई कर दी थी। उनकी सेना में गोलियत नाम का एक सूरमा, साढ़े नौ फुट लंबा था। उसने इस्राएलियों को कुछ इस तरह से ललकारा: ‘मुझसे मुकाबला करने के लिए अपने किसी आदमी को भेज! अगर वह जीत जाए, तो हम तुम्हारी सेवा करेंगे।’ (1 शमूएल 17:4-10) शाऊल और उसकी पूरी सेना थर-थर काँपने लगी। मगर दाऊद बिलकुल नहीं डरा, क्योंकि उसे मालूम था कि इंसान चाहे कितना ही ताकतवर क्यों न हो, उसे सबसे बढ़कर यहोवा का भय मानना चाहिए। इसलिए उसने गोलियत से कहा: “मैं सेनाओं के यहोवा के नाम से तेरे पास आता हूं, . . . और यह समस्त मण्डली जान लेगी कि यहोवा तलवार वा भाले के द्वारा जयवन्त नहीं करता, इसलिये कि संग्राम तो यहोवा का है।” दाऊद ने अपने गोफन और एक ही पत्थर के वार से और सबसे बढ़कर, यहोवा की मदद से उस सूरमे को मार गिराया।—1 शमूएल 17:45-47.

8. बाइबल में परमेश्‍वर का भय माननेवालों की मिसालों से हम क्या सीखते हैं?

8 आज हमें भी शायद दाऊद की तरह बड़ी-से-बड़ी मुश्‍किलों या ताकतवर दुश्‍मनों का सामना करना पड़े। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? वही जो दाऊद और पुराने ज़माने के बाकी वफादार सेवकों ने किया था—परमेश्‍वर का भय मानना। परमेश्‍वर के भय में इतनी ताकत है कि वह हमारे अंदर से इंसान के डर को दूर कर सकता है। परमेश्‍वर के वफादार सेवक, नहेमायाह ने देखा कि विरोधी लोग, इस्राएलियों को डरा-धमका रहे थे। इसलिए उसने अपने इस्राएली भाइयों को यह कहकर उकसाया: ‘उन से मत डरो; प्रभु जो महान और भययोग्य है, उसी को स्मरण कर।’ (नहेमायाह 4:14) यहोवा की मदद से दाऊद, नहेमायाह और बाकी वफादार सेवक उन कामों को पूरा कर पाए जो उन्हें यहोवा से मिले थे। परमेश्‍वर का भय मानकर हम भी उससे मिली अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर सकते हैं।

परमेश्‍वर के भय की मदद से मुश्‍किलों का सामना करना

9. दाऊद ने किन हालात में परमेश्‍वर का भय मानना नहीं छोड़ा?

9 गोलियत को मारने के बाद, यहोवा ने दाऊद को और भी जीत दिलायी। यह देखकर शाऊल जलन से इस कदर भर गया कि पहले तो बेकाबू होकर उसने दाऊद को भाले से मारने की कोशिश की। फिर, उसने उसे मरवा डालने के लिए एक चाल चली। आखिर में, वह अपने साथ एक बड़ी सेना लेकर दाऊद को मारने के लिए निकल पड़ा। हालाँकि यहोवा ने दाऊद से वादा किया था कि वह इस्राएल का अगला राजा बनेगा, मगर दाऊद को कई सालों तक अपनी जान बचाकर भागना पड़ा, लड़ाई करनी पड़ी और राजा बनने के लिए यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करना पड़ा। इन हालात में दाऊद ने सच्चे परमेश्‍वर का भय मानना नहीं छोड़ा।—1 शमूएल 18:9, 11, 17; 24:2.

10. खतरनाक हालात का सामना करते वक्‍त, दाऊद ने कैसे दिखाया कि वह परमेश्‍वर का भय मानता है?

10 शाऊल से भागते वक्‍त, एक बार दाऊद गत नाम के एक पलिश्‍ती शहर में राजा अकीश के यहाँ पनाह लेने आया। गोलियत इसी शहर का रहनेवाला था। (1 शमूएल 21:10-15) राजा के नौकरों ने दाऊद को उनके देश का दुश्‍मन बताकर राजा के कान भर दिए। ऐसे खतरनाक हालात में दाऊद ने क्या किया? उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती की। (भजन 56:1-4, 11-13) हालाँकि उस हालात से बचने के लिए दाऊद ने पागल होने का नाटक किया, मगर वह जानता था कि असल में यहोवा ने उसके नाटक को सफल किया और उसे बचाया था। दाऊद ने यहोवा पर अपनी जान से भी ज़्यादा भरोसा और विश्‍वास रखकर दिखाया कि वह सही मायनों में परमेश्‍वर का भय मानता था।—भजन 34:4-6, 9-11.

11. समस्याओं के आने पर, हम दाऊद की तरह परमेश्‍वर का भय कैसे मान सकते हैं?

11 जब हम पर समस्याएँ आती हैं, तो हम भी दाऊद की तरह परमेश्‍वर का भय मान सकते हैं। कैसे? परमेश्‍वर ने मदद करने का जो वादा किया है, उस पर भरोसा रखने के ज़रिए। दाऊद ने कहा: “अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।” (भजन 37:5) इसका यह मतलब नहीं कि हम अपनी तरफ से कोई भी कोशिश किए बिना अपनी सारी समस्याएँ यहोवा पर डाल दें और यह उम्मीद करें कि वह उनका हल निकालेगा। दाऊद परमेश्‍वर से मदद माँगने के बाद, हाथ-पर-हाथ धरे बैठा नहीं रहा। यहोवा ने उसे जो ताकत और बुद्धि दी थी, उसने उनका इस्तेमाल किया और अपने मुश्‍किल हालात का सामना किया। मगर साथ ही, वह यह भी जानता था कि इंसान अपने बलबूते पर हरगिज़ कामयाब नहीं हो सकता। हमें भी दाऊद के नक्शेकदम पर चलना चाहिए। हमसे जितना बन पड़ता है, हमें करना चाहिए और उसके बाद मामला यहोवा पर छोड़ देना चाहिए। दरअसल, कई मामलों में तो हम यहोवा पर भरोसा रखने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते। खास ऐसे ही वक्‍त पर हमें परमेश्‍वर का भय मानना चाहिए। दाऊद के दिल से निकली इस बात से हम दिलासा पा सकते हैं: “यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता सिर्फ वे ही बना सकते हैं, जो उसका भय मानते हैं।”—भजन 25:14, NW.

12. हमें अपनी प्रार्थनाओं को हलकी बात क्यों नहीं समझना चाहिए, और हममें किस तरह का रवैया कभी नहीं होना चाहिए?

12 इसलिए हमें अपनी प्रार्थनाओं को और परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को हलकी बात नहीं समझना चाहिए। जब हम प्रार्थना में यहोवा के पास आते हैं, तो हमें “विश्‍वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों 11:6; याकूब 1:5-8) और जब वह हमारी मदद करता है, तो जैसे प्रेरित पौलुस ने सलाह दी, हमें ‘धन्यवादी बने रहना चाहिए।’ (कुलुस्सियों 3:15, 17) हमें कभी-भी उन लोगों की तरह नहीं होना चाहिए जिनके बारे में एक तजुरबेकार अभिषिक्‍त मसीही ने कहा: “वे सोचते हैं कि परमेश्‍वर स्वर्ग में एक बैरा की तरह है जो उनकी खिदमत में खड़ा है। जिस तरह चुटकी बजाकर किसी बैरे को बुलाया जाता है, उसी तरह वे चाहते हैं कि उनके माँगने से परमेश्‍वर उनकी मुराद फौरन पूरी कर दे। और जब उन्हें अपनी मुराद मिल जाती है, तो वे चाहते हैं कि परमेश्‍वर वहाँ से रफा-दफा हो जाए।” इस तरह के रवैए में परमेश्‍वर के भय की भारी कमी नज़र आती है।

जब कुछ समय के लिए परमेश्‍वर का भय नहीं होता

13. दाऊद किस मौके पर परमेश्‍वर की व्यवस्था को मानने से चूक गया?

13 दाऊद को मुसीबत की घड़ी में जब यहोवा से मदद मिली, तब वह और भी ज़्यादा परमेश्‍वर का भय मानने लगा और उस पर उसका भरोसा भी मज़बूत हुआ। (भजन 31:22-24) लेकिन गौर कीजिए कि तीन मौकों पर दाऊद में कुछ समय के लिए परमेश्‍वर का भय नहीं था और इसका अंजाम बहुत भयानक निकला। पहले मौके पर उसने यहोवा की वाचा के संदूक को यरूशलेम लाने के लिए एक बैलगाड़ी का इस्तेमाल किया, जबकि परमेश्‍वर की व्यवस्था में साफ लिखा था कि लेवियों को उसे अपने कंधे पर उठाना चाहिए था। इसलिए जब उज्जा ने, जो बैलगाड़ी के आगे-आगे चल रहा था, संदूक को गिरने से बचाने के लिए उसे पकड़ा, तो परमेश्‍वर ने उसके “दोष के कारण” वहीं पर उसे मार डाला। हालाँकि उज्जा ने बड़ा पाप किया, मगर देखा जाए तो इस बुरे हादसे के लिए दाऊद ज़िम्मेदार था। उसने परमेश्‍वर की व्यवस्था में दिए नियम को ठीक-ठीक नहीं माना था। परमेश्‍वर का भय मानने का मतलब है, उसके बताए तरीकों के मुताबिक काम करना।—2 शमूएल 6:2-9; गिनती 4:15; 7:9.

14. जब दाऊद ने इस्राएली सैनिकों की गिनती ली तो इसका क्या नतीजा निकला?

14 इसके बाद, शैतान के उकसाए जाने पर दाऊद ने इस्राएली सैनिकों की गिनती ली। (1 इतिहास 21:1) ऐसा करके उसने दिखाया कि कुछ समय के लिए उसमें परमेश्‍वर का भय नहीं था और नतीजा, 70,000 इस्राएलियों की मौत हुई। हालाँकि दाऊद को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ और उसने यहोवा से माफी माँगी, मगर उसे और उसके लोगों को इसका भारी अंजाम भुगतना पड़ा।—2 शमूएल 24:1-16.

15. किस वजह से दाऊद व्यभिचार का पाप कर बैठा?

15 एक और मौके पर दाऊद कुछ वक्‍त के लिए परमेश्‍वर का भय मानना भूल गया था। इसी वजह से उसने ऊरिय्याह की पत्नी, बतशेबा के साथ नाजायज़ संबंध रखा। दाऊद जानता था कि व्यभिचार करना, यहाँ तक कि किसी और की पत्नी का लालच करना, पाप है। (निर्गमन 20:14, 17) मुसीबत की शुरूआत तब हुई जब दाऊद ने बतशेबा को नहाते देखा। अगर दाऊद में परमेश्‍वर का सच्चा भय होता, तो वह फौरन अपनी आँखें फेर लेता और अपना ध्यान किसी और बात पर लगाता। मगर नहीं, दाऊद उस पर “आंख लगाए” रहा और उसे पाने की लालसा उस पर इस कदर हावी हो गयी कि उसमें परमेश्‍वर का भय नहीं रहा। (मत्ती 5:28, नयी हिन्दी बाइबिल; 2 शमूएल 11:1-4) दाऊद यहोवा के साथ अपने नज़दीकी रिश्‍ते को कुछ वक्‍त के लिए भूल गया था।—भजन 139:1-7.

16. अपने पाप के लिए दाऊद को क्या अंजाम भुगतना पड़ा?

16 बतशेबा के साथ दाऊद के नाजायज़ संबंध से उन्हें एक बेटा हुआ। इसके कुछ समय बाद, यहोवा ने दाऊद के पाप का परदाफाश करने के लिए अपने नबी नातान को भेजा। जब दाऊद को अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो वह दोबारा परमेश्‍वर का भय मानने लगा और उसने पश्‍चाताप किया। उसने यहोवा से भीख माँगी कि वह उसे अपने सामने से निकाल न दे और ना ही उस पर से अपनी पवित्र आत्मा हटा ले। (भजन 51:7, 11) यहोवा ने दाऊद को माफ कर दिया और उसकी सज़ा कम कर दी। मगर उसने दाऊद को अपने किए के सभी बुरे अंजामों से नहीं बचाया। दाऊद का बेटा मर गया और उसके बाद से उस पर और उसके परिवार पर दुःखों का कहर टूटा। कुछ समय के लिए परमेश्‍वर का भय न मानने की उसे क्या ही भारी कीमत चुकानी पड़ी!—2 शमूएल 12:10-14; 13:10-14; 15:14.

17. एक उदाहरण देकर समझाइए कि पाप से कैसे दुःख पहुँचता है।

17 आज भी, नैतिक मामलों में परमेश्‍वर का भय न मानने के बुरे अंजाम होते हैं और जिसका असर लंबे समय तक रहता है। एक मसीही पति ने विदेश में काम करते वक्‍त अपनी पत्नी से बेवफाई की थी। जब उसकी पत्नी को यह बात पता चली, तो ज़रा सोचिए उस पर कैसा पहाड़ टूट पड़ा होगा। सदमे और दुःख के मारे वह फूट-फूटकर रोने लगी। अपनी पत्नी का भरोसा दोबारा जीतने और उसका आदर पाने के लिए उस पति को अरसा लग जाएगा। ऐसे दुःख से बचा जा सकता है और इसके लिए परमेश्‍वर का भय मानना ज़रूरी है।—1 कुरिन्थियों 6:18.

परमेश्‍वर का भय हमें पाप करने से रोकता है

18. शैतान का मकसद क्या है और इसे पूरा करने के लिए वह कौन-सा तरीका इस्तेमाल करता है?

18 शैतान बड़ी तेज़ी से इस दुनिया के नैतिक आदर्शों को खत्म कर रहा है और वह खासकर सच्चे मसीहियों के दिलो-दिमाग को भ्रष्ट करना चाहता है। अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए, वह सबसे सीधा तरीका इस्तेमाल करता है। वह है, हमारी इंद्रियों पर खासकर हमारी आँखों और कानों पर बुरा असर डालना। (इफिसियों 4:17-19) जब अचानक आपका सामना अश्‍लील तसवीरों या अनैतिक लोगों से होता है या आप अश्‍लील बातें सुनते हैं, तो आप क्या करेंगे?

19. परमेश्‍वर के भय ने एक मसीही को गलत काम करने से कैसे बचाया?

19 आनड्रे * की मिसाल लीजिए। वह यूरोप में रहनेवाला एक मसीही प्राचीन, पिता और डॉक्टर है। जब आनड्रे को अस्पताल में रात को काम करना पड़ता था, तो उसके साथ काम करनेवाली डॉक्टर और नर्स बार-बार उसके तकिए पर प्रेम-पत्र चिपकातीं और उसे उनके साथ लैंगिक संबंध रखने का बुलावा देतीं। आनड्रे ने उनकी पेशकश के बारे में सोचने से भी इनकार कर दिया। यही नहीं, अपने आपको उस बुरे माहौल से दूर रखने के लिए उसने अपनी नौकरी ही बदल ली। परमेश्‍वर का भय मानने की वजह से आनड्रे ने बुद्धिमानी का काम किया और इससे उसे कई आशीषें मिलीं। उनमें से एक है कि आज वह अपने देश में, यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में पार्ट-टाइम सेवा करता है।

20, 21. (क) परमेश्‍वर का भय हमें पाप न करने में कैसे मदद देता है? (ख) अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?

20 गंदी बातों पर सोचते रहने से एक इंसान की मन की हालत भ्रष्ट हो जाती है। ऐसे में, जिस चीज़ पर उसका कोई हक नहीं बनता, उसे पाने के लिए वह यहोवा के साथ अपने अनमोल रिश्‍ते तक को ठुकराने के लिए तैयार हो जाता है। (याकूब 1:14, 15) लेकिन अगर हममें परमेश्‍वर का भय है तो हम ऐसे लोगों, जगहों, कामों और मनोरंजन से दूर रहेंगे जो हमें नैतिक मामलों में लापरवाह बना सकते हैं। इतना ही नहीं, ज़रूरत पड़ने पर हम ऐसे माहौल से उठकर भी चले आएँगे। (नीतिवचन 22:3) ऐसा करने के लिए हमें चाहे जो भी शर्मिंदगी झेलनी पड़े या त्याग करना पड़े, वह परमेश्‍वर का अनुग्रह पाने के आगे कुछ भी नहीं है। (मत्ती 5:29, 30) परमेश्‍वर का भय मानने का मतलब है कि हम जानबूझकर पोर्नोग्राफी जैसी अश्‍लीलता में न उलझें। इसके बजाय, हमें अपनी आँखों को ‘व्यर्थ वस्तुओं की ओर देखने से फेर देना’ चाहिए। अगर हम ऐसा करते हैं, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमें “ज़िंदा” (किताब-ए-मुकद्दस) रखेगा और हमारी हर ज़रूरत पूरी करेगा।—भजन 84:1; 119:37.

21 इसमें कोई दो राय नहीं कि परमेश्‍वर का भय मानना हमेशा बुद्धिमानी का काम है। इसके अलावा, हमें सच्ची खुशी भी मिलती है। (भजन 34:9) अगले लेख में इस बात को और अच्छी तरह समझाया गया है। (w06 8/1)

[फुटनोट]

^ फरवरी 8,1998 की सजग होइए! में लेख, “बाइबल का दृष्टिकोण: आप प्रेम के परमेश्‍वर का भय कैसे मान सकते हैं?” देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ नाम बदल दिया गया है।

क्या आप समझा सकते हैं?

• परमेश्‍वर का भय मानने में मसीहियों में क्या-क्या गुण होने चाहिए?

• परमेश्‍वर का भय कैसे इंसान के डर को दूर कर सकता है?

• हम कैसे दिखा सकते हैं कि प्रार्थना के बारे में हम सही नज़रिया रखते हैं?

• परमेश्‍वर का भय हमें पाप करने से कैसे रोक सकता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

यहोवा के हाथ की कारीगरी देखकर, दाऊद ने परमेश्‍वर का भय मानना सीखा

[पेज 24 पर तसवीरें]

जब अचानक आपको कोई गलत काम करने के लिए लुभाया जाता है, तब आप क्या करेंगे?