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भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ

भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ

यहोवा का वचन जीवित है

भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ

भजनहार ने अपनी एक प्रार्थना में परमेश्‍वर से पूछा: “क्या कबर में तेरी करुणा का, और विनाश की दशा में तेरी सच्चाई का वर्णन किया जाएगा?” (भजन 88:11) इसका बिलकुल सीधा-सा जवाब है—नहीं। बगैर ज़िंदगी के हम यहोवा की स्तुति नहीं कर सकते। जीने के लिए इससे बढ़िया वजह और क्या हो सकती है कि हम यहोवा की स्तुति करें और यह ज़िंदगी जो हमें मिली है, उसके लिए हमें यहोवा का धन्यवाद और उसकी स्तुति करनी चाहिए।

भजन 73 से 106 के गीतों से बना तीसरा और चौथा भाग, हमें सिरजनहार की महिमा करने और उसके नाम की स्तुति करने की ढेरों वजह देते हैं। इन भजनों पर मनन करने से ‘परमेश्‍वर के वचन’ के लिए हमारी कदरदानी बढ़ेगी। इतना ही नहीं, हमें यह प्रेरणा भी मिलेगी कि हम पहले से ज़्यादा और उम्दा तरीके से परमेश्‍वर की स्तुति करें। (इब्रानियों 4:12) आइए सबसे पहले हम भजन संहिता के तीसरे भाग पर गौर करें।

“परमेश्‍वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है”

(भजन 73:1–89:52)

तीसरे संग्रह के पहले 11 भजन, आसाप की या उसके घराने के लोगों की रचनाएँ हैं। पहला भजन समझाता है कि किस बात ने आसाप को गलत सोच में पड़ने और सच्चाई से भटकने से बचाया। वह कहता है: “परमेश्‍वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है।” (भजन 73:28) भजन 74, यरूशलेम के विनाश के गम में रचा एक शोकगीत है। भजन 75, 76 और 77 में यहोवा को एक धर्मी न्यायी, नम्र लोगों का उद्धारकर्ता और प्रार्थनाओं का सुननेवाला कहा गया है। भजन 78, मूसा के ज़माने से लेकर दाऊद के ज़माने तक इस्राएलियों की दास्तान दोहराता है। भजन 79, मंदिर के विनाश पर दुःख ज़ाहिर करता है। भजन 80, परमेश्‍वर के लोगों के बहाल होने के लिए की गयी एक दुआ है। भजन 81, यहोवा की आज्ञा मानने का बढ़ावा देता है। भजन 82 और 83, दुष्ट न्यायियों और परमेश्‍वर के दुश्‍मनों पर न्यायदंड लाने के लिए परमेश्‍वर से की गयी एक प्रार्थना है।

कोरह-वंशियों का एक भजन कहता है: “मेरा प्राण यहोवा के आंगनों की अभिलाषा करते करते मूर्छित हो चला।” (भजन 84:2) भजन 85, परमेश्‍वर से की गयी एक प्रार्थना है कि वह बंधुआई से लौटनेवालों को आशीष दे। यह भजन इस बात पर ज़ोर देता है कि आध्यात्मिक आशीषें, सुख-सुविधा जैसी आशीषों से कहीं ज़्यादा मोल रखती हैं। भजन 86 में दाऊद परमेश्‍वर से कहता है कि वह उसकी रक्षा करे और उसे अपना मार्ग दिखाए। भजन 87, सिय्योन और वहाँ पैदा होनेवालों के बारे में रचा एक गीत है और भजन 88, यहोवा से की गयी एक बिनती है। भजन 89 बताता है कि कैसे यहोवा ने दाऊद के साथ वाचा बाँधकर उसे अपनी निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी। इस भजन को एतान ने रचा था जो सुलैमान के दिनों के चार बुद्धिमान लोगों में से एक था।—1 राजा 4:31.

बाइबल सवालों के जवाब पाना:

73:9, NHT—किस मायने में दुष्टों ने “अपना मुंह स्वर्ग के विरुद्ध खोला है, और उनकी जीभ पृथ्वी पर चलती-फिरती है”? दुष्टों को स्वर्ग में या पृथ्वी पर किसी के लिए कोई आदर नहीं है। इसलिए वे परमेश्‍वर की निंदा करने से ज़रा-भी नहीं हिचकिचाते और इंसानों को भी बदनाम करने से नहीं डरते।

74:13, 14—यहोवा ने कब ‘जल में मगरमच्छों के सिरों को फोड़ दिया और लिव्यातानों के सिर टुकड़े टुकड़े कर दिए’? “मिस्र के राजा फिरौन” को ‘नील नदी के मध्य पड़ा हुआ विशाल मगरमच्छ’ कहा जाता है। (यहेजकेल 29:3, NHT) लिव्यातान का मतलब, फिरौन के ताकतवर सैनिक हो सकते हैं। यहोवा ने उनके सिर के टुकड़े-टुकड़े तब किए जब उसने इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद करते वक्‍त, फिरौन और उसकी सेना को नाश कर दिया था।

75:4, 5, 10—शब्द “सींग” का क्या मतलब है? जानवर का सबसे शक्‍तिशाली हथियार, उसका सींग होता है। इसलिए, शब्द “सींग” अधिकार या ताकत को दर्शाता है। यहोवा अपने लोगों के सींगों को ऊँचा करता है जिससे वे ऊपर उठाए जाते हैं, जबकि वह ‘दुष्टों के सींगों को काट डालता है।’ हमें खबरदार किया गया है कि हम ‘अपना सींग ऊँचा न करें,’ यानी हम घमंड से फूल न जाएँ। यहोवा लोगों को ऊपर उठाता है, इसलिए हमें यह मानकर चलना चाहिए कि कलीसिया में ज़िम्मेदारी का पद वही सौंपता है।—भजन 75:7.

76:10—यह कैसे हो सकता है कि “मनुष्य की जलजलाहट” यहोवा की स्तुति का कारण होगा? जब यहोवा अपने सेवक पर, यानी हम पर इंसान की जलजलाहट आने देता है, तो इसका नतीजा अच्छा निकल सकता है। वह कैसे? हम पर जो मुश्‍किलें आती हैं, उनसे हम किसी-न-किसी तरीके से निखारे जाते हैं। यहोवा हम पर सिर्फ उतनी ही तकलीफें आने देता है, जितनी हमें तालीम पाने के लिए ज़रूरी हैं। (1 पतरस 5:10) ‘जो जलजलाहट रह जाती है, उसे परमेश्‍वर खुद रोकता है।’ लेकिन तब क्या, अगर हमें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़े? इससे भी यहोवा की स्तुति होती है, क्योंकि जब दूसरे देखते हैं कि हम मौत तक यहोवा के वफादार रहते हैं, तो वे भी परमेश्‍वर की महिमा करने लग सकते हैं।

78:24, 25, NHT—मन्‍ना को “स्वर्ग से अन्‍न” और “स्वर्गदूतों की रोटी” क्यों कहा गया है? इन शब्दों का यह मतलब नहीं कि मन्‍ना स्वर्गदूतों का भोजन था। मन्‍ना को “स्वर्ग से अन्‍न” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह स्वर्ग से गिरा था। (भजन 105:40) और इसे “स्वर्गदूतों की रोटी” शायद इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भोजन परमेश्‍वर ने मुहैया कराया था, जो अपने स्वर्गदूतों के साथ स्वर्ग में रहता है। (भजन 11:4) या यह भी हो सकता है कि यहोवा ने इस्राएलियों को मन्‍ना देने के लिए स्वर्गदूतों का इस्तेमाल किया हो।

82:1, 6—“ईश्‍वर” और “परमप्रधान के पुत्र” किसे कहा गया है? दोनों शब्द, इस्राएल के न्यायियों के लिए इस्तेमाल किए गए हैं। उन्हें ऐसा कहना मुनासिब है, क्योंकि वे परमेश्‍वर की तरफ से बोलते थे और उसका फैसला सुनाते थे।—यूहन्‍ना 10:33-36.

83:2—‘सिर उठाने’ का क्या मतलब है? इसका मतलब है, अधिकार चलाने या कोई कदम उठाने के लिए मुस्तैद होना। आम तौर पर यह कदम विरोध करने, लड़ने या किसी को दबाने के लिए उठाया जाता है।

हमारे लिए सबक:

73:2-5, 18-20, 25, 28. हमें दुष्टों को फलता-फूलता देखकर डाह नहीं करनी चाहिए और ना ही उनकी तरह बुराई की राह पर चलना चाहिए। दुष्ट, फिसलनेवाले स्थानों में खड़े हैं। उनका “सत्यानाश” ज़रूर होगा। लेकिन फिलहाल, असिद्ध इंसानों की हुकूमत में दुष्टता को मिटाना नामुमकिन है। इसलिए इसे जड़ से उखाड़ने की कोशिश करना बेकार है। दुष्टता का सामना करने के लिए हमें आसाप की तरह “परमेश्‍वर के समीप” रहना चाहिए और उसके साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाने पर अपना पूरा ध्यान लगाना चाहिए।

73:3, 6, 8, 27. हमें हर वक्‍त घमंड, अहंकार, ठट्ठा करने और बेईमानी से बचे रहना चाहिए, फिर चाहे ऐसा करने में हमें अपना फायदा क्यों न नज़र आए।

73:15-17. अगर हमें कुछ समझना मुश्‍किल लगे, तो हमें इसका ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए। दूसरों को “ये बातें” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) बताकर हम सिर्फ उनका मन कच्चा करेंगे। इसके बजाय, यह ज़रूरी है कि हम उलझन में डालनेवाली उन बातों पर शांति से मनन करें और कटे-कटे रहने के बजाय मसीही भाई-बहनों की संगति में रहकर उन उलझनों को दूर करने की कोशिश करें।—नीतिवचन 18:1.

73:21-24, NHT. दुष्टों की खुशहाली देखकर “मन कड़ुवा” करना ऐसा है मानो निर्बुद्धि जानवरों जैसा व्यवहार करना। इस तरह का व्यवहार बिना सोचे-समझे और जज़बातों में आकर किया जाता है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। उलटा, हमें यहोवा की सम्मति या सलाह को मानकर चलना चाहिए और यह भरोसा रखना चाहिए कि वह ‘हमारा दाहिना हाथ थाम लेगा’ और हमें सहारा देगा। इसके अलावा, यहोवा ‘हमें महिमा में ग्रहण करेगा,’ यानी वह हमारे साथ एक करीबी रिश्‍ता जोड़ेगा।

77:6. अगर हम आध्यात्मिक सच्चाइयों को अच्छी तरह खोजना और उन पर ध्यान करना चाहते हैं, तो हमें अध्ययन और मनन के लिए समय निकालना चाहिए। यह कितना ज़रूरी है कि हम अकेले में कुछ पल बिताने के लिए समय निकालें!

79:9. यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है, खासकर तब जब उनका ताल्लुक उसके नाम के पवित्र किए जाने से होता है।

81:13, 16. यहोवा की सुनने और उसके मार्गों पर चलने से बेशुमार आशीषें मिलती हैं।—नीतिवचन 10:22.

82:2,5. टेढ़ा न्याय होने से “पृथ्वी की पूरी नीव” हिल जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो नाइंसाफी की वजह से समाज में उथल-पुथल मच जाती है।

84:1-4, 10-12. भजनहारों ने परमेश्‍वर की उपासना के भवन के लिए जो कदरदानी दिखायी और उसकी सेवा में मिले खास मौके के लिए जो संतोष की भावना ज़ाहिर की, वे हमारे लिए क्या ही बेहतरीन मिसाल हैं।

86:5, NHT. हम यहोवा का कितना एहसान मान सकते हैं कि वह “क्षमा करने को तत्पर रहता है”! वह इंसान का मन टटोलता रहता है और अगर उसको कोई भी सबूत मिले कि फलाँ इंसान अपने पाप पर बहुत शर्मिंदा है, तो वह फौरन उसे दया दिखाता है।

87:5, 6. धरती पर फिरदौस में जो लोग ज़िंदगी पाएँगे, क्या उन्हें उन लोगों के नाम मालूम होंगे जो पुनरुत्थान पाकर स्वर्ग जा चुके हैं? इन आयतों से तो लगता है कि ऐसा मुमकिन है।

88:13,14. अगर हम किसी समस्या के बारे में प्रार्थना करते हैं, मगर हमें उसका तुरंत जवाब नहीं मिलता, तो इसका यह मतलब नहीं कि यहोवा हमारी प्रार्थना नहीं सुनता। शायद वह यह देखना चाहता है कि हमारी भक्‍ति कितनी सच्ची है।

“उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो!”

(भजन 90:1–106:48)

भजनों के चौथे संग्रह में यहोवा का गुणगान करने की ढेरों वजहों पर गौर कीजिए। भजन 90 में मूसा कहता है कि “सनातन राजा” यहोवा के सामने इंसान की ज़िंदगी बस पल-भर की है। (1 तीमुथियुस 1:17) भजन 91:2 में मूसा यहोवा को ‘अपना शरणस्थान, और गढ़’ कहता है, यानी जो उसे सच्ची सुरक्षा दे सकता है। अगले कुछ भजन, परमेश्‍वर के लाजवाब गुणों, उसके ऊँचे विचारों और आश्‍चर्यकर्मों के बारे में बताते हैं। तीन भजन इन शब्दों से शुरू होते हैं: “यहोवा राजा हुआ है।” (भजन 93:1; 97:1; 99:1) यहोवा को हमारा रचनाकार बताकर भजनहार हमें यह करने का बुलावा देता है: “उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो।”—भजन 100:4.

यहोवा का भय माननेवाले राजा को किस तरह हुकूमत करना चाहिए? भजन 101 इसका जवाब देता है, जिसे राजा दाऊद ने रचा था। अगला भजन हमें बताता है कि यहोवा “लाचार की प्रार्थना की ओर मुंह करता है, और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता।” (भजन 102:17) भजन 103, यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा और दया की ओर हमारा ध्यान खींचता है। फिर अगले भजन में भजनहार धरती पर परमेश्‍वर की बहुत-सी रचनाओं का ज़िक्र करते हुए कहता है: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है।” (भजन 104:24) चौथे भाग के आखिरी दो भजन, यहोवा के आश्‍चर्यकर्मों के लिए उसका गुणगान करते हैं।—भजन 105:2, 5; 106:7, 22.

बाइबल सवालों के जवाब पाना:

91:1, 2हम कैसे ‘परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठे’ रह सकते हैं? यह छाया हुआ स्थान, एक ऐसी दशा है जिसमें रहकर हम आध्यात्मिक नुकसान से हिफाज़त पाते हैं। जो परमेश्‍वर पर भरोसा नहीं रखते, उन्हें यह हिफाज़त नहीं मिलती है। हम यहोवा को अपना शरणस्थान और गढ़ मानकर, उसे सारे जहान का महाराजा बताकर उसका गुणगान करके, और राज्य का सुसमाचार सुनाकर, यहोवा के छाए हुए स्थान में बैठे रह सकते हैं। हम वहाँ आध्यात्मिक रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि हमें यकीन है कि यहोवा हमारी मदद करने को हरदम तैयार रहता है।—भजन 90:1.

92:12—धर्मी लोग किस मायने में ‘खजूर की नाईं फूलते फलते’ हैं? खजूर के पेड़ की एक खासियत यह है कि उसमें बहुत सारे फल लगते हैं। एक धर्मी इंसान, खजूर के पेड़ के समान होता है, क्योंकि वह यहोवा की नज़रों में खरा होता है और लगातार ‘अच्छे फल’ लाता है। इन फलों में उसके अच्छे काम भी शामिल हैं।—मत्ती 7:17-20.

हमारे लिए सबक:

90:7, 8, 13, 14. हमारे गलत कामों से हमेशा सच्चे परमेश्‍वर के साथ हमारा रिश्‍ता खराब होता है। और हम चाहकर भी अपने पापों को परमेश्‍वर से नहीं छिपा सकते। लेकिन, अगर हम सच्चा पश्‍चाताप दिखाएँ और अपना गलत रास्ता छोड़ दें, तो यहोवा हम पर दोबारा अनुग्रह करेगा और “हमें अपनी करुणा से तृप्त” करेगा।

90:10, 12. ज़िंदगी बहुत छोटी है, इसलिए हमें “अपने दिन गिनने” चाहिए। कैसे? “बुद्धि से भरा मन” (NHT) पाने से, यानी हमें अपनी ज़िंदगी के बचे हुए दिनों को यूँ ही बरबाद नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें इस तरह इस्तेमाल करना चाहिए जिससे यहोवा खुश हो। ऐसा करने के लिए हमें आध्यात्मिक बातों को पहली जगह देनी चाहिए और अपने समय का सोच-समझकर इस्तेमाल करना चाहिए।—इफिसियों 5:15, 16; फिलिप्पियों 1:10.

90:17. यहोवा से यह प्रार्थना करना गलत नहीं कि वह “हमारे हाथों के काम को दृढ़” करे और प्रचार में हमारी मेहनत पर आशीष दे।

92:14, 15. परमेश्‍वर के वचन का गहरा अध्ययन करने और यहोवा के लोगों के साथ लगातार मेल-जोल रखने से, बुज़ुर्ग जन “रस भरे और लहलहाते रहेंगे,” यानी आध्यात्मिक मायने में मज़बूत बने रहेंगे। इतना ही नहीं, वे कलीसिया के लिए एक अनमोल आशीष भी साबित होंगे।

94:19. हमारी ‘चिन्ताओं’ का कारण चाहे जो भी हो, मगर बाइबल में दिए “आश्‍वासन” (नयी हिन्दी बाइबिल) को पढ़ने और उस पर मनन करने से हमें दिलासा मिल सकता है।

95:7, 8. बाइबल की सलाह को सुनने, उस पर ध्यान देने और उसे खुशी-खुशी मानने से हम अपने हृदय को कठोर करने से बचाते हैं।—इब्रानियों 3:7, 8.

106:36, 37. ये आयतें दिखाती हैं कि मूर्तिपूजा का ताल्लुक पिशाचों या दुष्टात्माओं को बलिदान चढ़ाने से है। इसका मतलब है कि जो इंसान मूर्तियों का इस्तेमाल करता है, वह दुष्टात्माओं की जकड़ में आ सकता है। इसलिए बाइबल हमसे गुज़ारिश करती है: “अपने आप को मूरतों से बचाए रखो।”—1 यूहन्‍ना 5:21.

“याह की स्तुति करो!”

भजन संहिता के चौथे भाग के आखिरी तीन भजन इस सलाह के साथ खत्म होते हैं: “याह की स्तुति करो!” चौथे भाग का आखिरी भजन इसी सलाह के साथ शुरू भी होता है। (भजन 104:35; 105:45; 106:1, 48) दरअसल ये शब्द, “याह की स्तुति करो!” भजन संहिता के चौथे भाग में कई बार आते हैं।

जैसा कि हमने देखा, यहोवा की स्तुति करने की हमारे पास ढेरों वजह हैं। भजन 73 से 106 में हमारे मनन के लिए कई बातें दी गयी हैं और इनसे स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता के लिए हमारा दिल एहसान से उमड़ने लगता है। उसने अब तक हमारे लिए जो कुछ किया है और भविष्य में जो करेगा, क्या उन सबके बारे में सोचकर हम तन-मन से “याह की स्तुति” करने के लिए उभारे नहीं जाते? (w06 7/15)

[पेज 4 पर तसवीर]

आसाप की तरह “परमेश्‍वर के समीप” रहकर हम भी दुष्टता का सामना कर सकते हैं

[पेज 5 पर तसवीर]

लाल समुद्र में फिरौन को मुँह की खानी पड़ी

[पेज 5 पर तसवीर]

क्या आप जानते हैं कि मन्‍ना को “स्वर्गदूतों की रोटी” क्यों कहा जाता है?

[पेज 6 पर तसवीर]

हमारी ‘चिन्ताओं’ को दूर करने में क्या बात हमारी मदद करती है?