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यहोवा के संगठन की अच्छी बातों के लिए कदर दिखाइए

यहोवा के संगठन की अच्छी बातों के लिए कदर दिखाइए

यहोवा के संगठन की अच्छी बातों के लिए कदर दिखाइए

“हम तेरे भवन के . . . उत्तम उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे।—भजन 65:4.

1, 2. (क) मंदिर में उपासना के इंतज़ाम का परमेश्‍वर के लोगों पर क्या असर होता? (ख) मंदिर के निर्माण में दाऊद ने कैसे साथ दिया?

 प्राचीन इस्राएल का दाऊद, उन जाने-माने लोगों में से एक था जिनके बारे में इब्रानी शास्त्र में चर्चा की गयी है। वह एक चरवाहा, संगीतकार, भविष्यवक्‍ता और राजा था। उसे अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरा भरोसा था। दाऊद को यहोवा से गहरा लगाव था, इसलिए उसके दिल में यहोवा के लिए एक भवन बनाने की तमन्‍ना जागी। यह भवन या मंदिर पूरे इस्राएल में सच्ची उपासना की खास जगह होती। दाऊद जानता था कि मंदिर में उपासना के इंतज़ाम से परमेश्‍वर के लोगों को खुशियाँ और आशीषें मिलतीं। इसलिए दाऊद ने अपने गीत में गाया: “क्या ही धन्य है वह; जिसको तू [यहोवा] चुनकर अपने समीप आने देता है, कि वह तेरे आंगनों में बास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात्‌ तेरे पवित्र मन्दिर के उत्तम उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे।”—भजन 65:4.

2 मगर दाऊद को यहोवा का भवन बनाने की इजाज़त नहीं मिली। इसके बजाय, यह सम्मान उसके बेटे सुलैमान को मिला। हालाँकि मंदिर बनाने की दाऊद की बहुत तमन्‍ना थी, मगर वह इस बात को लेकर कुड़कुड़ाया नहीं कि यह सम्मान किसी और को दिया जा रहा है। उसकी सबसे बड़ी चिंता थी कि मंदिर को बनाया जाए, न कि उसे कौन बनवाएगा। इसलिए उसने पूरे दिल से इस काम का साथ दिया। कैसे? उसे यहोवा से मंदिर का जो नमूना मिला था, वह उसने अपने बेटे सुलैमान को दिया। इसके अलावा, दाऊद ने हज़ारों लेवियों को अलग-अलग समूहों में बाँटा ताकि वे मंदिर में सेवा कर सकें। साथ ही, उसने मंदिर के निर्माण के लिए ढेर सारा सोना-चाँदी भी दान किया।—1 इतिहास 17:1, 4, 11, 12; 23:3-6; 28:11, 12; 29:1-5.

3. परमेश्‍वर के सेवक, सच्ची उपासना के इंतज़ामों के लिए कैसा रवैया दिखाते हैं?

3 परमेश्‍वर का भवन जब बनकर तैयार हुआ, तो वफादार इस्राएलियों ने सच्ची उपासना के इंतज़ाम का साथ दिया। आज हम यहोवा के सेवक भी उपासना के उन इंतज़ामों का साथ देते हैं जो धरती पर मौजूद यहोवा के संगठन में किए जाते हैं। ऐसा करके हम दाऊद के जैसा रवैया दिखाते हैं। हम बात-बात पर शिकायत नहीं करते, बल्कि परमेश्‍वर के संगठन की अच्छी बातों पर ध्यान देते हैं। क्या आपने कभी उन अच्छी बातों के बारे में सोचा है जिनके लिए हमें इस संगठन का दिल से शुक्रगुज़ार होना चाहिए? आइए ऐसी ही कुछ बातों पर गौर करें।

अगुवाई लेनेवालों के शुक्रगुज़ार होना

4, 5. (क) “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” अपनी ज़िम्मेदारी कैसे निभाता है? (ख) कुछ साक्षी, आध्यात्मिक भोजन के बारे में कैसा महसूस करते हैं?

4 यीशु मसीह ने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को धरती पर अपनी संपत्ति का सरदार ठहराया है। इस दास वर्ग के शुक्रगुज़ार होने की आज हमारे पास कई जायज़ वजह हैं। वे वजह क्या-क्या हैं? अभिषिक्‍त मसीहियों से बना यह दास वर्ग प्रचार काम की अगुवाई करता है, उपासना के लिए सभाओं का इंतज़ाम करता है, और 400 से भी ज़्यादा भाषाओं में बाइबल साहित्य प्रकाशित करता है। सही “समय पर” दिए जानेवाले इस आध्यात्मिक “भोजन” का लाखों लोग आनंद लेते हैं और इसके लिए वे दिल से शुक्रगुज़ार हैं। (मत्ती 24:45-47) वाकई, इस भोजन के बारे में कुड़कुड़ाने की हमारे पास कोई वजह नहीं है।

5 एलफी नाम की एक बुज़ुर्ग यहोवा की साक्षी ने बरसों से दास वर्ग की किताबों-पत्रिकाओं में दी बाइबल की सलाह को माना है। इससे उसे काफी दिलासा और मदद मिली है। इसके लिए अपना एहसान ज़ाहिर करते हुए उसने लिखा: “अगर यहोवा का संगठन न होता, तो न जाने मेरा क्या होता?” पीटर और अर्मगार्ट, एक शादीशुदा जोड़ा है जो कई सालों से परमेश्‍वर की सेवा करता आया है। अर्मगार्ट उन तमाम किताबों-पत्रिकाओं के लिए कदर ज़ाहिर करती है, जो “यहोवा के संगठन ने प्यार और परवाह” दिखाते हुए तैयार की हैं। इनमें ऐसे साहित्य भी शामिल हैं जो खास नेत्रहीनों और बधिरों के लिए तैयार किए जाते हैं।

6, 7. (क) दुनिया-भर की कलीसियाओं में हो रहे कामों की देखरेख कैसे की जाती है? (ख) धरती पर यहोवा के संगठन के बारे में कुछ लोगों का क्या कहना है?

6 ‘विश्‍वासयोग्य दास’ का नुमाइंदा है, यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय। यह निकाय, चंद अभिषिक्‍त भाइयों से मिलकर बना है जो ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय में सेवा करते हैं। शासी निकाय, शाखा दफ्तरों में सेवा करने के लिए तजुरबेकार भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराता है। ये शाखा दफ्तर, दुनिया-भर में 98,000 से भी ज़्यादा कलीसियाओं में हो रहे कामों की देखरेख करते हैं। इन कलीसियाओं में उन भाइयों को प्राचीन और सहायक सेवक ठहराया जाता है जो बाइबल में दी माँगों को पूरा करते हैं। (1 तीमुथियुस 3:1-9, 12, 13) प्राचीन, परमेश्‍वर के झुंड की अगुवाई करते और उनकी प्यार से देखभाल करते हैं। हमारे लिए यह कितनी बड़ी आशीष है कि हम उस झुंड का हिस्सा हैं और वह प्यार और एकता देख पाते हैं जो दुनिया-भर में मसीही “भाइयों की बिरादरी” (NW) में पायी जाती है!—1 पतरस 2:17; 5:2, 3.

7 प्राचीनों के बारे में शिकायत करने के बजाय, भाई-बहन अकसर उनके प्यार और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए कदरदानी ज़ाहिर करते हैं। इसकी एक मिसाल है, बीरजिट जो एक मसीही पत्नी है और जिसकी उम्र 30 से 40 के बीच है। अपनी जवानी के दिनों में वह बुरी सोहबत में पड़ गयी थी और पाप करने ही वाली थी कि ऐन वक्‍त पर प्राचीनों और बाकी भाई-बहनों ने उसकी मदद की। कैसे? प्राचीनों ने उसे बाइबल से साफ सलाह देकर समझाया और बाकियों ने इस मुश्‍किल दौर में उसे सहारा दिया। इस वजह से वह एक खतरनाक हालात में पड़ने से बाल-बाल बची। अब इतने सालों बाद बीरजिट कैसा महसूस करती है? वह कहती है: “यहोवा का संगठन वाकई लाजवाब है, और मैं इस बात के लिए सच्चे दिल से एहसानमंद हूँ कि मैं आज भी इस संगठन का हिस्सा हूँ।” सत्रह साल का आनड्रेआस कहता है: “इसमें कोई शक नहीं कि यह वाकई यहोवा का संगठन है और पूरी दुनिया में इससे उम्दा संगठन और कोई नहीं।” क्या हमें इन अच्छी बातों के लिए यहोवा के संगठन का एहसान नहीं मानना चाहिए?

अगुवाई लेनेवाले असिद्ध हैं

8, 9. दाऊद के ज़माने के कुछ लोगों ने उसके साथ क्या किया था, और उनका बर्ताव देखकर दाऊद ने क्या किया?

8 बेशक, सच्ची उपासना में अगुवाई करने के लिए जिन भाइयों को ठहराया जाता है, वे सिद्ध नहीं हैं। वे सब गलतियाँ करते हैं और कुछ भाइयों में तो ऐसी कमज़ोरियाँ होती हैं जिन पर काबू पाने के लिए उन्हें लगातार मेहनत करनी पड़ती है। क्या हमें उनकी कमज़ोरियों को देखकर निराश हो जाना चाहिए? जी नहीं। प्राचीन इस्राएल में भी कुछ ऐसे लोग थे जो ज़िम्मेदारी के पद पर थे, फिर भी उन्होंने गंभीर पाप किए। इसकी एक मिसाल है, राजा शाऊल। उसके महल में जवान दाऊद को वीणा बजाने के लिए बुलाया गया था ताकि उसका संगीत सुनकर शाऊल का व्याकुल मन शांत हो जाए। मगर बाद में, शाऊल ने दाऊद को कई बार मार डालने की कोशिश की और आखिर में, दाऊद को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।—1 शमूएल 16:14-23; 18:10-12; 19:18; 20:32, 33; 22:1-5.

9 दूसरे इस्राएलियों ने भी दाऊद के साथ धोखा किया था। जैसे दाऊद के सेनापति, योआब ने अब्नेर का खून किया जो शाऊल का रिश्‍तेदार था। अबशालोम ने अपने पिता, दाऊद की राजगद्दी हड़पने के लिए उसके खिलाफ साज़िश रची। और दाऊद के सबसे भरोसेमंद सलाहकार, अहीतोपेल ने उसके साथ गद्दारी की। (2 शमूएल 3:22-30; 15:1-17, 31; 16:15, 21) इतना सबकुछ होने के बावजूद, दाऊद का मन कड़वा नहीं हुआ और ना ही वह अपने हालात पर कुड़कुड़ाया। इसके अलावा, उसने सच्ची उपासना भी नहीं छोड़ी। उलटा, वह मुसीबत की घड़ी में यहोवा को थामे रहा और वैसा ही बढ़िया रवैया दिखाया जैसा उसने शाऊल से भागते वक्‍त दिखाया था। उस वक्‍त दाऊद ने अपने एक गीत में कहा: “हे परमेश्‍वर, मुझ पर अनुग्रह कर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूं; और जब तक ये आपत्तियां निकल न जाएं, तब तक मैं तेरे पंखों के तले शरण लिए रहूंगा।”—भजन 57:1.

10, 11. गरट्रूट को अपनी जवानी में किस अनुभव से गुज़रना पड़ा, और अपने मसीही भाइयों की असिद्धताओं के बारे में उसने क्या कहा?

10 आज, हमारे पास यह शिकायत करने की कोई वजह नहीं है कि परमेश्‍वर के संगठन में फलाँ भाई या बहन धोखेबाज़ है। क्यों नहीं? क्योंकि न तो यहोवा, न उसके स्वर्गदूत और ना ही आध्यात्मिक चरवाहे, मसीही कलीसिया में धोखेबाज़ और दुष्ट लोगों को रहने देते हैं। बहरहाल, हमें उन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है जो हमारी असिद्धताओं और परमेश्‍वर के दूसरे सेवकों की असिद्धताओं की वजह से आती हैं।

11 गरट्रूट नाम की एक बहन ने बरसों तक यहोवा की उपासना की थी। जब वह जवान थी, तब उस पर यह झूठा इलज़ाम लगाया गया था कि वह पूरे समय की राज्य प्रचारक नहीं बल्कि एक धोखेबाज़ है। ऐसे में गरट्रूट ने क्या किया? क्या इस नाइंसाफी को लेकर वह कुड़कुड़ायी? जी नहीं। सन्‌ 2003 में, 91 साल की उम्र में अपनी मौत से कुछ समय पहले उसने अपने बीते दिनों को याद किया और कहा: “ऐसे अनुभवों से मैंने सीखा कि लोगों से गलतियाँ होती हैं, फिर भी इससे यहोवा का महान काम नहीं रुकता और अपने काम में वह हम जैसे असिद्ध इंसानों को इस्तेमाल करता है।” परमेश्‍वर के सेवकों की असिद्धताओं का सामना करने के लिए, गरट्रूट ने यहोवा से प्रार्थना की और दिल से उसकी मदद माँगी।

12. (क) पहली सदी के कुछ मसीहियों ने क्या बुरी मिसाल रखी थी? (ख) हमें किन चीज़ों पर अपना मन लगाना चाहिए?

12 वफादारी और भक्‍ति की बढ़िया मिसाल रखनेवाले मसीही भी असिद्ध होते हैं। इसलिए जब एक ज़िम्मेदार भाई गलती करता है, तो आइए हम “सब काम बिना कुड़कुड़ाए” करते रहें। (फिलिप्पियों 2:14) इस मामले में पहली सदी की मसीही कलीसिया के कुछ लोगों ने एक बुरी मिसाल रखी थी। अगर हम उनकी देखा-देखी करें तो यह कितने दुःख की बात होगी! शिष्य यहूदा के मुताबिक उन दिनों में झूठे शिक्षक, “प्रभुता को तुच्छ जानते [थे]; और ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहते [थे]।” इतना ही नहीं, ये पापी “असंतुष्ट” और “कुड़कुड़ानेवाले” थे। (यहूदा 8, 16) आइए हम उनके जैसे न बनें, बल्कि अपना मन उन अच्छी चीज़ों पर लगाएँ जो हमें ‘विश्‍वासयोग्य दास’ से मिलती हैं। ऐसा हो कि हम यहोवा के संगठन की अच्छी बातों की दिलो-जान से कदर करें और “सब काम बिना कुड़कुड़ाए” करें।

“यह बात नागवार है”

13. यीशु मसीह की शिक्षाएँ सुनकर कुछ चेलों ने कैसा रवैया दिखाया?

13 पहली सदी में, एक तरफ कुछ लोग ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराए भाइयों के खिलाफ कुड़कुड़ा रहे थे, तो दूसरी तरफ कुछ लोग यीशु की शिक्षाओं के खिलाफ बुड़बुड़ा रहे थे। यूहन्‍ना 6:48-69 में यीशु ने कहा: “जो मेरा मांस खाता, और मेरा लोहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है।” यीशु की ये बातें सुनकर “उसके चेलों में से बहुतों ने . . . कहा, कि यह बात नागवार है; इसे कौन सुन सकता है?” यीशु जानता था कि ‘उसके चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ा’ रहे थे। नतीजा यह हुआ कि “इस पर [उनमें] से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले।” लेकिन सभी चेले नहीं कुड़कुड़ाए थे। गौर कीजिए कि तब क्या हुआ जब यीशु ने 12 प्रेरितों से पूछा: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” इस पर प्रेरित पतरस ने जवाब दिया: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं। और हम ने विश्‍वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्‍वर का पवित्र जन तू ही है।”

14, 15. (क) ऐसा क्यों होता है कि एकाध साक्षी, मसीही शिक्षा के किसी पहलू से खिसिया जाते हैं? (ख) एमैन्यूएल से हम क्या सबक सीख सकते हैं?

14 आज हमारे समय में भी एकाध साक्षी, मसीही शिक्षा के कुछ पहलू से खिसिया जाते हैं और धरती पर यहोवा के संगठन के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि वे परमेश्‍वर के काम करने के तरीके को पूरी तरह समझ नहीं पाते हैं। हमारा सिरजनहार धीरे-धीरे अपने लोगों पर सच्चाई प्रकट करता है। तो ज़ाहिर-सी बात है कि समय-समय पर बाइबल की हमारी समझ में सुधार आएगा ही। यहोवा के ज़्यादातर लोग इन सुधारों से बेहद खुश होते हैं। सिर्फ कुछ साक्षी “अपने को बहुत धर्मी” समझते हैं और उन सुधारों को कबूल नहीं करते। (सभोपदेशक 7:16) शायद इसकी वजह उनका घमंड हो और कुछ लोगों को लगे कि उनकी अपनी सोच सही है। वजह चाहे जो भी हो, मगर एक बात बिलकुल साफ है। कुड़कुड़ाना खतरनाक है क्योंकि इससे हम वापस उसी दुनिया में जा सकते हैं और उन तौर-तरीकों को अपना सकते हैं जिन्हें हम पीछे छोड़ आए थे।

15 उदाहरण के लिए, एमैन्यूएल नाम के एक साक्षी भाई को “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के साहित्य में लिखी कुछ बातें गलत लगीं। (मत्ती 24:45) उसने मसीही साहित्य को पढ़ना बंद कर दिया और एक वक्‍त ऐसा आया जब उसने अपनी कलीसिया के प्राचीनों से कहा कि मैं अब से यहोवा का साक्षी नहीं रहना चाहता हूँ। मगर कुछ ही समय बाद, एमैन्यूएल को एहसास हुआ कि यहोवा के संगठन की दी शिक्षाएँ वाकई सही हैं। उसने दोबारा साक्षियों से संपर्क किया, अपनी गलती कबूल की और उसे यहोवा के साक्षी के नाते बहाल किया गया। नतीजा, उसकी ज़िंदगी में एक बार फिर खुशियाँ लौट आयीं।

16. अगर किसी मसीही शिक्षा को लेकर हमारे मन में संदेह है, तो उसे कैसे दूर किया जा सकता है?

16 अगर किसी मसीही शिक्षा को लेकर हमारे मन में संदेह उठने लगे और हम उस बारे में कुड़कुड़ाना चाहें, तब क्या? ऐसे में हमें सब्र रखना चाहिए। हो सकता है, आगे चलकर ‘विश्‍वासयोग्य दास’ अपने साहित्य में कुछ ऐसी जानकारी दे, जिससे हमें अपने सवालों के जवाब मिल जाएँ और हमारा संदेह दूर हो जाए। मसीही प्राचीनों से मदद माँगना भी बुद्धिमानी होगी। (यहूदा 22, 23) प्रार्थना, निजी अध्ययन और आध्यात्मिक सोच रखनेवाले भाई-बहनों के साथ संगति करने से भी हमें अपने संदेह को दूर करने में मदद मिल सकती है। साथ ही, बाइबल की उन सच्चाइयों के लिए भी हमारी कदर बढ़ सकती है, जो हमने यहोवा के ठहराए इंतज़ाम से सीखी हैं और जिनसे हमारा विश्‍वास भी मज़बूत होता है।

एक सही रवैया रखना

17, 18. कुड़कुड़ाने के बजाय हमें कैसा रवैया रखना चाहिए, और क्यों?

17 यह सच है कि असिद्ध इंसान, पैदाइशी पापी हैं और कुछ लोगों में खाहमखाह शिकायत करने का ज़बरदस्त रुझान होता है। (उत्पत्ति 8:21; रोमियों 5:12) लेकिन अगर हम बात-बात पर कुड़कुड़ाने लगें, तो हम यहोवा परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को दाँव पर लगा रहे हैं। इसलिए हमें इस रुझान को काबू में करने की ज़रूरत है।

18 कलीसिया में क्या हो रहा है क्या नहीं, इस बारे में कुड़कुड़ाने के बजाय हमें एक सही रवैया रखना चाहिए। इसके अलावा, हमें आध्यात्मिक कामों में अपना समय और ताकत लगानी चाहिए। इससे हमें खुशी मिलेगी, हम यहोवा के लिए अपनी भक्‍ति दिखा पाएँगे, संयमी होंगे और विश्‍वास में मज़बूत बने रहेंगे। (1 कुरिन्थियों 15:58; तीतुस 2:1-5) संगठन की बागडोर यहोवा के हाथ में है और यीशु अच्छी तरह जानता है कि हर कलीसिया में क्या हो रहा है, ठीक जैसे पहली सदी में उसे अच्छी तरह पता था। (प्रकाशितवाक्य 1:10, 11) इसलिए धीरज धरिए और परमेश्‍वर पर और कलीसिया के मुखिया, मसीह पर भरोसा रखिए। हो सकता है कि कलीसिया के किसी मामले से निपटने के लिए, ज़िम्मेदार भाइयों को इस्तेमाल किया जाए।—भजन 43:5; कुलुस्सियों 1:18; तीतुस 1:5.

19. जब तक पूरी धरती पर राज्य की हुकूमत शुरू नहीं होती, तब तक हमें किस बात पर अपना ध्यान लगाना चाहिए?

19 वह समय दूर नहीं जब इस दुष्ट दुनिया का अंत होगा और पूरी धरती पर मसीहाई राज्य की हुकूमत होगी। उस समय के आने तक यह कितना ज़रूरी है कि हममें से हरेक सही रवैया रखे! इससे हम अपने भाई-बहनों की खामियों पर ध्यान देने के बजाय उनकी खूबियों पर ध्यान देंगे। उनमें अच्छाइयाँ ढूँढ़ने से हमें खुशी मिलेगी। कुड़कुड़ाने से हम अपने मन का चैन खो देते हैं, जबकि दूसरों की अच्छाइयों को देखने से हमें हिम्मत मिलती है और हम आध्यात्मिक मायने में मज़बूत होते हैं।

20. एक अच्छा रवैया रखने से हमें क्या आशीषें मिलती हैं?

20 एक अच्छा रवैया होने से हम उन बेशुमार आशीषों को याद कर पाएँगे जो हमें यहोवा के संगठन से जुड़े रहने की वजह से मिली हैं। सारी दुनिया में यही एक संगठन है जो इस पूरे जहान के महाराजाधिराज का वफादार है। और आपको एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा की उपासना करने का सम्मान मिला है। ये बातें जानकर आप कैसा महसूस करते हैं? हम दुआ करते हैं कि आप भी दाऊद के जैसा रवैया रखेंगे जिसने अपने गीत में गाया: “हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे। क्या ही धन्य है वह; जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है, कि वह तेरे आंगनों में बास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात्‌ तेरे पवित्र मन्दिर के उत्तम उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे।”—भजन 65:2, 4. (w06 7/15)

क्या आपको याद है?

• हमें कलीसिया की अगुवाई करनेवालों के शुक्रगुज़ार क्यों होना चाहिए?

• जब ज़िम्मेदार भाई गलतियाँ करते हैं, तो हमारा रवैया कैसा होना चाहिए?

• शास्त्र की समझ में होनेवाले सुधारों के बारे में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए?

• संदेह दूर करने में क्या बात एक मसीही की मदद कर सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

दाऊद ने सुलैमान को मंदिर बनाने का नमूना दिया और जी-जान लगाकर सच्ची उपासना का साथ दिया

[पेज 16 पर तसवीर]

मसीही प्राचीन खुशी-खुशी आध्यात्मिक मदद देते हैं