यहोवा दुःख से पीड़ित लोगों को मुक्त करता है
यहोवा दुःख से पीड़ित लोगों को मुक्त करता है
“धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है।”—भजन 34:19.
1, 2. एक वफादार मसीही को किस समस्या का सामना करना पड़ा, और हम भी क्यों इस तरह की भावनाओं का सामना करते हैं?
के को * नाम की एक जवान स्त्री, 20 से भी ज़्यादा सालों से यहोवा की साक्षी है। वह कुछ वक्त के लिए एक पायनियर, या पूरे समय की राज्य प्रचारक भी रह चुकी है। यह खास सेवा उसे दिलो-जान से प्यारी थी। लेकिन हाल ही में, केको के अंदर मायूसी और अकेलेपन की भावना घर करने लगी। वह कहती है: “मैं हर घड़ी बस रोती ही रहती थी।” इन भावनाओं पर काबू पाने के लिए केको निजी अध्ययन में और भी समय बिताने लगी। वह कहती है: “फिर भी, मैं उन भावनाओं को दूर नहीं कर पायी। मैं इतनी निराश हो गयी थी कि मैं बस मर जाना चाहती थी।”
2 क्या आपने भी कभी इस तरह की निराश करनेवाली भावनाओं का सामना किया है? यहोवा के साक्षी होने के नाते, आपके पास खुश होने की ढेरों वजह हैं। क्योंकि परमेश्वर की सेवा में “आज के समय और आने वाले जीवन के लिये दिया गया आशीर्वाद समाया हुआ है।” (1 तीमुथियुस 4:8, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) फिलहाल, आप आध्यात्मिक फिरदौस में जी रहे हैं! लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि आपको सभी दुःखों और पीड़ाओं से महफूज़ रखा जाता है? जी नहीं! बाइबल कहती है: ‘धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती हैं।’ (भजन 34:19) यह कोई ताज्जुब की बात नहीं क्योंकि “सारा संसार उस दुष्ट [शैतान इब्लीस] के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्ना 5:19) इसलिए किसी-न-किसी तरह से हम सब, शैतान की हुकूमत का असर महसूस करते हैं।—इफिसियों 6:12.
दुःखों और पीड़ाओं का असर
3. बाइबल से, परमेश्वर के उन सेवकों की मिसालें बताइए जिन्हें बहुत ही मायूस कर देनेवाले हालात से गुज़रना पड़ा था।
3 अगर कोई दुःख हमें लंबे समय तक परेशान करता है, तो हम ज़िंदगी से हार मान सकते हैं। (नीतिवचन 15:15) धर्मी अय्यूब की मिसाल लीजिए। जब वह घोर आज़माइशों से गुज़र रहा था, तब उसने कहा: “मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्न होता है, वह थोड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है।” (अय्यूब 14:1) अय्यूब की खुशी छिन गयी थी। कुछ वक्त के लिए उसे यह भी लगा कि यहोवा ने उसे अकेला छोड़ दिया है। (अय्यूब 29:1-5) अय्यूब के अलावा, परमेश्वर के दूसरे सेवकों को भी घोर पीड़ाओं से गुज़रना पड़ा था। बाइबल बताती है कि हन्ना बेऔलाद थी, इसलिए “दु:ख के कारण [उस] का प्राण कटु हो गया था।” (1 शमूएल 1:9-11, नयी हिन्दी बाइबिल) परिवार के किसी हालात से परेशान रिबका ने कहा: ‘मैं जीवन से ऊब गई हूं।’ (उत्पत्ति 27:46, नयी हिन्दी बाइबिल) अपने पापों के बारे में सोचकर दाऊद ने कहा: “दिन भर मैं शोक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं।” (भजन 38:6) ये चंद मिसालें साफ दिखाती हैं कि मसीही युग से पहले के ज़माने में परमेश्वर का भय माननेवाले स्त्री-पुरुषों को बहुत ही मायूस कर देनेवाले हालात से गुज़रना पड़ा था।
4. यह ताज्जुब की बात क्यों नहीं कि आज भी मसीही कलीसियाओं में ‘हताश प्राणी’ पाए जाते हैं?
4 मसीहियों के बारे में क्या? पहली सदी में, प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीकियों की कलीसिया को यह बताना ज़रूरी समझा कि वे ‘हताश प्राणियों को सांत्वना’ दें। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW) एक किताब कहती है कि यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘हताश प्राणियों’ किया गया है, उसका मतलब ऐसे लोग हो सकते हैं “जो ज़िंदगी की परेशानियों की वजह से कुछ समय के लिए निराश हो जाते हैं।” पौलुस के शब्दों से ज़ाहिर होता है कि थिस्सलुनीकियों की कलीसिया में आत्मा से अभिषिक्त कुछ मसीही निराश थे। इसलिए ताज्जुब नहीं कि आज भी मसीही कलीसियाओं में हताश प्राणी पाए जाते हैं। मगर वे हताश क्यों हो जाते हैं? आइए इसकी तीन वजहों पर गौर करें।
हमारी असिद्धता हमें दुःखी कर सकती है
5, 6. रोमियों 7:22-25 से आपको क्या दिलासा मिलता है?
5 सच्चे मसीहियों को अपने पापी होने का बड़ा दुःख है। वे उन कुकर्मियों की तरह नहीं हैं, जो “सुन्न होकर” बुराई करने में लगे रहते हैं। (इफिसियों 4:19) वे शायद पौलुस की तरह महसूस करें, जिसने लिखा था: “मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।” फिर पौलुस ने दुःखी होकर कहा: “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं!”—रोमियों 7:22-24.
6 क्या आपने कभी पौलुस की तरह महसूस किया है? अपनी कमज़ोरियों का पूरा-पूरा एहसास होना गलत नहीं, क्योंकि इससे आपके दिलो-दिमाग में यह बात बैठ जाएगी कि पाप करना कितना गंभीर मामला है। और इससे बुराई को ठुकराने का आपका इरादा भी बुलंद होगा। मगर अपनी कमज़ोरियों को लेकर आपको हद-से-ज़्यादा दुःखी नहीं होना चाहिए। पौलुस ने ऊपर जो दुःख ज़ाहिर किया था, उसके तुरंत बाद उसने कहा: “मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं”! (रोमियों 7:25) जी हाँ, पौलुस को यकीन था कि यीशु के बहाए लहू से उसे आदम के पाप से छुटकारा मिल सकता है।—रोमियों 5:18.
7. क्या बात याद रखने से एक इंसान, पाप करने की अपनी कमज़ोरी से बहुत दुःखी नहीं होगा?
7 अगर आप, अपनी असिद्धता की वजह से बहुत दोषी महसूस करते हैं, तो आप प्रेरित यूहन्ना के इन शब्दों से हिम्मत पा सकते हैं: “यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात् धार्मिक यीशु मसीह। और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, बरन सारे जगत के पापों का भी।” (1 यूहन्ना 2:1, 2) अगर आप इस बात को लेकर बहुत दुःखी हैं कि आपमें पाप करने की कमज़ोरी है, तो हमेशा याद रखिए कि यीशु, सिद्ध इंसानों के लिए नहीं बल्कि पापियों के लिए मरा था। वाकई, “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।”—रोमियों 3:23.
8, 9. हमें खुद को दोषी ठहरानेवाली भावनाओं को क्यों ठुकराना चाहिए?
8 मान लीजिए, आपने गुज़रे वक्त में कोई गंभीर पाप किया हो। बेशक इस बारे में आपने यहोवा से बार-बार प्रार्थना की होगी। आपको मसीही प्राचीनों से भी आध्यात्मिक मदद मिली होगी। (याकूब 5:14, 15) आपको अपने किए पर सच्चा पछतावा था, इसलिए आपको कलीसिया से बहिष्कृत नहीं किया गया। या, शायद कुछ वक्त के लिए आप परमेश्वर के संगठन से दूर चले गए थे, मगर बाद में आपने पश्चाताप किया और दोबारा यहोवा के सामने शुद्ध ठहरे। आपके मामले में इन दोनों में से चाहे जो भी हालात सच साबित हुआ हो, लेकिन यह मुमकिन है कि अपने गुज़रे पाप को याद करके आप दुःखी हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो याद रखिए कि यहोवा, सच्चे दिल से पश्चाताप करनेवालों को “पूरी रीति से” माफ करता है। (यशायाह 55:7) इसके अलावा, यहोवा नहीं चाहता कि आप यह सोचें कि आप बहुत बुरे हैं और आप जैसे पापी का कुछ नहीं हो सकता। मगर शैतान तो यही चाहता है कि आप ऐसा सोचें। (2 कुरिन्थियों 2:7, 10, 11) शैतान का विनाश तय है क्योंकि वह इसी लायक है, मगर वह आपको भी यह महसूस कराना चाहता है कि आप नाश होने के लायक हैं। (प्रकाशितवाक्य 20:10) आपके विश्वास को तोड़ने के लिए यह शैतान की चाल है। उसे अपनी चाल में कामयाब होने मत दीजिए। (इफिसियों 6:11) इसके बजाय, जिस तरह आप दूसरे मामलों में शैतान का मुकाबला करते आए हैं, इस मामले में भी ‘उसका साम्हना कीजिए।’—1 पतरस 5:9.
9 प्रकाशितवाक्य 12:10 में, शैतान को अभिषिक्त मसीहियों यानी “हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला” कहा गया है। वह परमेश्वर के सामने ‘रात दिन उन पर दोष लगाता’ है। इस आयत पर मनन करने से आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि यहोवा आप पर दोष नहीं लगाता। दरअसल असली गुनहगार है शैतान और उसको इससे बड़ी खुशी और क्या मिल सकती है कि आप खुद को कोसें और दोषी ठहराएँ। (1 यूहन्ना 3:19-22) अगर आप अपनी खामियों को लेकर इस कदर दुःखी हो जाते हैं कि आप यहोवा की सेवा छोड़ना चाहें, तो ऐसे दुःख से क्या फायदा? शैतान को मौका मत दीजिए कि वह यहोवा के साथ आपके रिश्ते को तोड़ दे। शैतान यही चाहता है कि आप इस हकीकत को नज़रअंदाज़ कर दें कि यहोवा “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय” है। उसे ऐसा मत करने दीजिए।—निर्गमन 34:6.
परमेश्वर की सेवा में, पहले जितना न कर पाने से हम निराश हो सकते हैं
10. हमारी सीमाओं की वजह से किस तरह हमारी हिम्मत टूटने लगती है?
10 कुछ मसीही अपनी सीमाओं की वजह से परमेश्वर की सेवा में ज़्यादा नहीं कर पाते और इसलिए वे निराश हो जाते हैं। क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है? शायद गंभीर बीमारी, ढलती उम्र, या दूसरे हालात की वजह से आप प्रचार में उतना न कर पाते हों जितना पहले करते थे। यह सच है कि मसीहियों को बढ़ावा दिया गया है कि वे परमेश्वर की सेवा के लिए समय निकालें। (इफिसियों 5:15, 16) लेकिन तब क्या अगर ऊपर बतायी वजहों से आप सेवा में ज़्यादा नहीं कर पाते हैं, और इससे आपकी हिम्मत टूटने लगती है?
11. गलतियों 6:4 में दर्ज़ पौलुस की सलाह हमें क्या करने में मदद देती है?
11 बाइबल हमसे गुज़ारिश करती है कि हम आलसी न बनें बल्कि “उन का अनुकरण क[रें], जो विश्वास और धीरज के द्वारा प्रतिज्ञाओं के वारिस होते हैं।” (इब्रानियों 6:12) हम ऐसा तभी कर सकते हैं जब हम उनकी बढ़िया मिसाल का अध्ययन करें और उनके जैसा विश्वास दिखाने की कोशिश करें। लेकिन अगर हम दूसरों से अपनी बराबरी करके यह नतीजा निकालें कि हम कुछ भी अच्छा नहीं कर रहे हैं, तो ऐसी बराबरी करने का कोई फायदा नहीं होगा। इसलिए हमें पौलुस की इस सलाह को मानना चाहिए: “हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।”—गलतियों 6:4.
12. यहोवा की सेवा में हमारे पास खुशियाँ मनाने की क्या वजह है?
12 अगर मसीही किसी बड़ी बीमारी की वजह से बहुत कम सेवा कर पाते हैं, तो ऐसे में भी उनके पास खुशियाँ मनाने की अच्छी वजह है। बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।” (इब्रानियों 6:10) हो सकता है आपकी ज़िंदगी में, ऐसे हालात पैदा हो गए हों जो आपके बस में नहीं और जिनकी वजह से आप यहोवा की सेवा में पहले जितना नहीं कर पाते हैं। दिल छोटा मत कीजिए। यहोवा की मदद से, आप मसीही सेवा के कुछ पहलुओं में ज़्यादा-से-ज़्यादा समय लगा सकते हैं। जैसे, टेलीफोन या खत के ज़रिए गवाही देना। यकीन मानिए, आप यहोवा की जो तन-मन से सेवा करते हैं, साथ ही उसके और इंसानों के लिए जो प्यार दिखाते हैं, उसे वह कभी नहीं भूलेगा और उसके लिए ज़रूर आपको आशीष देगा।—मत्ती 22:36-40.
“कठिन समय” हमें पस्त कर सकता है
13, 14. (क) किन तरीकों से “कठिन समय” हमें दुःख से पीड़ित कर सकता है? (ख) आज परिवारों में दिली मुहब्बत की कमी कैसे नज़र आती है?
13 हालाँकि हम परमेश्वर की धर्मी नयी दुनिया में जीने की आस लगाते हैं, मगर फिलहाल हम “कठिन समय” में जी रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) फिर भी, हम तसल्ली पा सकते हैं कि आज जो निराश करनेवाली घटनाएँ घट रही हैं, वे इस बात का इशारा हैं कि बहुत जल्द हमें इनसे छुटकारा मिलनेवाला है। लेकिन इस हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारे चारों तरफ के हालात का हम पर असर पड़ता है। मिसाल के तौर पर, अगर आप बेरोज़गार हैं, तब क्या? शायद नौकरी मिलना मुश्किल हो। और जैसे-जैसे महीने गुज़रते हैं, आप सोचने लग सकते हैं कि क्या यहोवा को मेरी बुरी हालत की खबर है या क्या वह मेरी प्रार्थनाओं को सुनता है? या शायद आप ऐसा तब महसूस करें जब आपके साथ किसी तरह का भेद-भाव या अन्याय किया जाता है। यहाँ तक कि अखबार की सूर्खियों में बदचलनी के बारे में पढ़कर आप शायद धर्मी लूत की तरह महसूस करें, जो लोगों के अशुद्ध चालचलन या बदचलनी को देखकर “बहुत दुखी” (“पस्त,” यंग का पवित्र बाइबल का शाब्दिक अनुवाद, अँग्रेज़ी) हो गया था।—2 पतरस 2:7.
14 अंतिम दिनों का एक खास पहलू है जिसे हम नज़रअंदाज नहीं कर सकते। इस बारे में बाइबल बताती है कि बहुत-से लोग “दिली मुहब्बत से खाली” होंगे। (2 तीमुथियुस 3:3, हिन्दुस्तानी बाइबल) यह दिली मुहब्बत परिवारों में होना चाहिए, मगर उसी की आज भारी कमी नज़र आती है। किताब, परिवार में हिंसा (अँग्रेज़ी) कहती है: “सबूत दिखाते हैं कि जिन लोगों का खून किया जाता है, जिन्हें मारा-पीटा जाता है, जिनकी भावनाओं को चोट पहुँचायी जाती है या जिनके साथ लैंगिक दुर्व्यवहार किया जाता है, वो अकसर पराए नहीं, बल्कि उनके अपने ही ऐसा करते हैं।” किताब आगे कहती है: “जिस जगह से लोगों को प्यार और सुरक्षा मिलनी चाहिए, वही जगह आज कुछ बड़ों और बच्चों के लिए दुनिया की सबसे खतरनाक जगह बन गयी है।” जिन लोगों के घर का माहौल ऐसा है, वे आगे चलकर चिंता और निराशा के शिकार हो सकते हैं। अगर आपके साथ ऐसा हुआ है, तब क्या?
15. किस मायने में यहोवा का प्यार किसी भी इंसान के प्यार से कहीं बढ़कर है?
15 भजनहार दाऊद ने गाया: “मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।” (भजन 27:10) यह जानकर हमें कितना ढाढ़स मिलता है कि यहोवा का प्यार किसी भी इंसानी माता या पिता के प्यार से कहीं बढ़कर है! हालाँकि माता-पिता का प्यार न मिलना, उनके हाथों बुरा सलूक सहना या उनका हमें बेसहारा छोड़ देना बहुत दर्दनाक होता है, मगर यहोवा हमारे लिए प्यार और परवाह दिखाना बंद नहीं करता। (रोमियों 8:38, 39) याद रखिए कि परमेश्वर उन लोगों को अपनी ओर खींचता है जिनसे वह प्यार करता है। (यूहन्ना 3:16; 6:44) इंसान आपके साथ चाहे कैसा भी व्यवहार क्यों न करें, स्वर्ग में रहनेवाला आपका पिता, आपसे बेहद प्यार करता है!
मायूसी को दूर करने के कारगर कदम
16, 17. मायूस होने पर एक इंसान अपनी आध्यात्मिक ताकत बनाए रखने के लिए क्या कर सकता है?
16 मायूसी का सामना करने के लिए आप कुछ कारगर कदम उठा सकते हैं। उदाहरण के लिए, आध्यात्मिक कामों का एक शेड्यूल बनाइए और उसे मानकर चलिए। जैसे, परमेश्वर के वचन पर मनन करना, खासकर ऐसे वक्त पर जब निराशा की भावनाएँ आपको आ घेरती हैं। भजनहार ने एक गीत में अपनी भावनाएँ इस तरह ज़ाहिर कीं: “जब मैं ने कहा, कि मेरा पांव फिसलने लगा है, तब हे यहोवा, तेरी करुणा ने मुझे थाम लिया। जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है। ” (भजन 94:18, 19) बिना नागा बाइबल पढ़ने से आप, परमेश्वर की दी शांति की बातों और उसके हिम्मत बँधानेवाले विचारों को अपने मन में भर पाएँगे।
17 प्रार्थना भी एक बहुत ज़रूरी कदम है। जब आप अपने दिल की बात शब्दों में बयान नहीं कर पाते, तब भी यहोवा जानता है कि आप क्या कहना चाहते हैं। (रोमियों 8:26, 27) भजनहार ने यह भरोसा दिलाया: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।”—भजन 55:22.
18. निराशा से जूझ रहा एक इंसान, कौन-से कारगर कदम उठा सकता है?
18 कुछ लोग क्लिनिकल डिप्रेशन (निराशा) * की वजह से दुःखी हो जाते हैं। अगर आपको भी यह डिप्रेशन है, तो उस समय के बारे में सोचने की कोशिश कीजिए जब परमेश्वर की नयी दुनिया में “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” (यशायाह 33:24) लेकिन अगर आपको लगता है कि निराशा के काले बादल नहीं छट रहे हैं, तो फिर डाक्टर से सलाह-मशविरा करना अच्छा होगा। (मत्ती 9:12) यह भी ज़रूरी है कि आप, अपनी सेहत का खयाल रखें। सही खान-पान और कसरत मददगार साबित हो सकती है। भरपूर आराम लेने का भी ध्यान रखिए। देर रात तक टेलीविजन मत देखिए, और ऐसे मनोरंजन से दूर रहिए जो आपके शरीर और दिलो-दिमाग को थका सकता है। सबसे बढ़कर, ऐसे कामों में लगे रहिए जिनसे परमेश्वर खुश होता है! हालाँकि अभी वह वक्त नहीं है जब यहोवा “सब आंसू पोंछ डालेगा,” मगर यहोवा आपको अपनी मायूसी का सामना करने में मदद ज़रूर देगा।—प्रकाशितवाक्य 21:4; 1 कुरिन्थियों 10:13.
“परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे” रहना
19. यहोवा उन लोगों से क्या वादा करता है जो दुःख से पीड़ित हैं?
19 यह सच है कि धर्मी पर बहुत-सी विपत्तियाँ आती हैं, मगर बाइबल हमें यकीन दिलाती है कि “यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है।” (भजन 34:19) परमेश्वर यह कैसे करता है? जब प्रेरित पौलुस ने बार-बार यहोवा से बिनती की कि वह उसके ‘शरीर का कांटा’ दूर करे, तो यहोवा ने जवाब दिया: “मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है।” (2 कुरिन्थियों 12:7-9) यहोवा ने पौलुस से क्या वादा किया, और वह आपसे क्या वादा करता है? यही कि वह फौरन दुःखों को दूर नहीं करेगा, बल्कि उन्हें सहने की ताकत देगा।
20. पहला पतरस 5:6, 7 के मुताबिक आज़माइशों से गुज़रते वक्त, हमें क्या यकीन दिलाया गया है?
20 प्रेरित पतरस ने लिखा: “परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।” (1 पतरस 5:6, 7) यहोवा को आपकी परवाह है, इसलिए वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा। आज़माइशों के वक्त भी वह आपके साथ रहेगा और आपकी मदद करेगा। याद रखिए कि वफादार मसीही “परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे” हैं। जब हम यहोवा की सेवा करते हैं, तो वह हमें धीरज धरने की ताकत देता है। अगर हम उसके वफादार बने रहें, तो कोई भी चीज़ यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को हमेशा के लिए नहीं बिगाड़ सकती। इसलिए आइए हम यहोवा की तरफ अपनी खराई बनाए रखें, ताकि हम परमेश्वर के वादे के मुताबिक उसकी नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पा सकें। और वह दिन भी देख सकें जब यहोवा दुःख से पीड़त लोगों को हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा दिलाएगा! (w06 7/15)
[फुटनोट]
^ नाम बदल दिया गया है।
^ क्लिनिकल डिप्रेशन कोई मामूली निराशा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें निराशा की भावना बहुत बढ़ जाती है और यह पीछा नहीं छोड़ती है। ज़्यादा जानकारी के लिए, अक्टूबर 15,1988 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 25-9; नवंबर 15,1988 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 21-4; और सितंबर 1,1996 की प्रहरीदुर्ग के पेज 30-1 देखिए।
क्या आपको याद है?
• यहोवा के सेवकों को भी पीड़ाओं का सामना क्यों करना पड़ता है?
• परमेश्वर के कुछ लोग किन वजहों से हताश हो जाते हैं?
• यहोवा हमें अपनी चिंताओं से जूझने में कैसे मदद करता है?
• हम किस तरह “परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे” रहते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 17 पर तसवीरें]
आज़माइशों के बावजूद, यहोवा के लोगों के पास खुश रहने की वजह है
[पेज 20 पर तसवीर]
यहोवा की तन-मन से सेवा करने का एक तरीका है, टेलीफोन से गवाही देना