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अय्यूब—धीरज और खराई की एक बेहतरीन मिसाल

अय्यूब—धीरज और खराई की एक बेहतरीन मिसाल

अय्यूब—धीरज और खराई की एक बेहतरीन मिसाल

“क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि [पूरी धरती पर] उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।”—अय्यूब 1:8.

1, 2. (क) अय्यूब पर अचानक एक-के-बाद-एक कौन-सी मुसीबतें आयीं? (ख) बताइए कि इससे पहले अय्यूब की ज़िंदगी कैसी थी?

 बहुत समय पहले की बात है। एक आदमी था जिसके पास सबकुछ था, दौलत, शोहरत, अच्छी सेहत और एक हँसता-खेलता परिवार। मगर फिर अचानक, उस पर एक-के-बाद-एक तीन मुसीबतें आयीं और उसका सबकुछ लुट गया। देखते-ही-देखते, उसकी सारी संपत्ति छिन गयी और वह एकदम कंगाल हो गया। फिर एक बड़ी और भयानक आँधी में उसके सारे बच्चे मारे गए। कुछ ही समय बाद, उसे एक घिनौनी और दर्दनाक बीमारी हो गयी। उसके सिर से लेकर पैर के तलवों तक फोड़े निकल आए। अब तक आपने शायद अंदाज़ा लगा ही लिया होगा कि हम किसकी बात कर रहे हैं। जी हाँ, वह आदमी था अय्यूब। बाइबल में उसके नाम की एक किताब भी है, जिसका खास किरदार वही है।—अय्यूब, अध्याय 1 और 2.

2 अय्यूब ने मुसीबतों के वक्‍त आहें भरते हुए कहा: “भला होता, कि मेरी दशा बीते हुए महीनों की सी होती।” (अय्यूब 3:3; 29:2) सच, जब बुरा वक्‍त आता है, तो कौन गुज़रे कल को याद नहीं करता? अय्यूब ने भी अपने बीते दिनों को याद किया, जब वह एक अच्छी ज़िंदगी जी रहा था। उस पर कोई मुश्‍किल नहीं आयी थी। बड़े-बड़े लोग उसकी इज़्ज़त करते थे, यहाँ तक कि उससे सलाह-मशविरा करने आते थे। (अय्यूब 29:5-11) उसके पास बेशुमार दौलत थी, मगर उसने उसे कभी ज़्यादा अहमियत नहीं दी। (अय्यूब 31:24, 25, 28) जब कभी वह किसी विधवा या अनाथ बच्चे को तकलीफ में देखता, तो उसकी मदद ज़रूर करता था। (अय्यूब 29:12-16) और वह हमेशा अपनी पत्नी का वफादार बना रहा।—अय्यूब 31:1, 9, 11.

3. यहोवा की नज़र में अय्यूब कैसा इंसान था?

3 अय्यूब खराई से चलता था, क्योंकि वह परमेश्‍वर की उपासना करता था। उसके बारे में यहोवा ने कहा: “[पूरी धरती पर] उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।” (अय्यूब 1:1, 8) मगर इसके बावजूद, मुसीबतों ने अय्यूब की खुशहाल ज़िंदगी को तबाह कर दिया। उसने मेहनत करके जो कुछ जमा किया था, वह सब पल-भर में खत्म हो गया। उसे दर्द, चिंता और निराशा की भावनाओं ने आ घेरा और अब, उसकी असली परीक्षा होती कि वह अंदर से कैसा इंसान है।

4. अय्यूब की परीक्षा पर गौर करना क्यों फायदेमंद है?

4 बेशक, परमेश्‍वर के सेवकों में सिर्फ अय्यूब ही ऐसा शख्स नहीं है जो भयानक हादसों से गुज़रा था। आज भी ऐसे कई मसीही हैं जो उसकी तरह मुश्‍किलों का सामना करते हैं। इसलिए हम सभी के लिए इन दो सवालों पर गौर करना ज़रूरी है: जब हम पर कोई मुसीबत आती है, तो अय्यूब की परीक्षा को याद करने से हमें कैसे मदद मिल सकती है? इससे हम उन लोगों को हमदर्दी दिखाने के बारे क्या सीखते हैं, जो तकलीफ में होते हैं?

वफादारी का मसला और खराई की परीक्षा

5. शैतान के मुताबिक, अय्यूब परमेश्‍वर की सेवा किस नियत से कर रहा था?

5 अय्यूब के किस्से में एक अनोखी बात है। उसे पता नहीं था कि शैतान ने परमेश्‍वर की सेवा करने की उसकी नियत पर सवाल उठाया है। उस वक्‍त, जब स्वर्ग में परमेश्‍वर के आगे सारे स्वर्गदूत हाज़िर हुए तब यहोवा ने अय्यूब के अच्छे गुणों की तारीफ की। मगर तभी शैतान ने कहा: “क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा?” इस तरह शैतान ने दावा किया कि अय्यूब अपने मतलब के लिए परमेश्‍वर की सेवा कर रहा है। मगर यह कहकर उसने सिर्फ अय्यूब पर ही नहीं बल्कि परमेश्‍वर के सभी सेवकों की वफादारी पर भी उँगली उठायी। फिर शैतान ने अय्यूब के बारे में यहोवा से कहा: “अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।”—अय्यूब 1:8-11.

6. शैतान ने कौन-सा अहम मसला खड़ा किया?

6 यह एक अहम मसला था। शैतान ने अदन के बाग में यहोवा के हुकूमत करने के तरीके पर सवाल किया था। क्या परमेश्‍वर वाकई प्यार से पूरे विश्‍व पर हुकूमत कर सकता है? या क्या शैतान का यह दावा सच साबित होगा कि आखिर में, परमेश्‍वर के सब सेवक स्वार्थी बन जाएँगे? इन अहम सवालों का जवाब देने के लिए यहोवा ने अय्यूब को चुना जिसकी खराई और वफादारी पर उसे पूरा यकीन था। उसने शैतान को इजाज़त दी कि वह अय्यूब को आज़माकर देख ले। फिर शैतान ने अय्यूब पर एक-के-बाद-एक मुसीबतें लायीं। जब वह दो बार उसकी खराई तोड़ने में नाकाम रहा, तो फिर उसने अय्यूब को दर्दनाक बीमारी से पीड़ित किया। शैतान ने दावा किया: “खाल के बदले खाल, परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।”—अय्यूब 2:4.

7. अय्यूब की तरह, आज परमेश्‍वर के सेवकों को किन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है?

7 हालाँकि आज ज़्यादातर मसीहियों को उतने दुःख झेलने नहीं पड़ते जितने अय्यूब को झेलने पड़े थे, फिर भी उन्हें दूसरे किस्म की तकलीफों का सामना करना पड़ता है। जैसे, कई मसीही ज़ुल्म के शिकार होते हैं या वे पारिवारिक समस्याओं का सामना करते हैं। पैसों की तंगी या खराब सेहत जैसी समस्याओं का एक मसीही पर काफी बुरा असर हो सकता है। इसके अलावा, कुछ मसीहियों ने अपने विश्‍वास की खातिर अपनी जान तक कुरबान की है। मगर ऐसे में, हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि हम पर आनेवाली हर मुसीबत शैतान ही लाता है। दरअसल, कभी-कभी हम खुद गलती कर बैठते हैं और अपने लिए समस्या खड़ी कर लेते हैं, या हमें कोई खानदानी बीमारी होने की वजह से काफी दर्द और तकलीफ सहनी पड़ती है। (गलतियों 6:7) इसके अलावा, बुढ़ापे के साथ आनेवाली समस्याएँ हम सब पर आती हैं और कुदरती आफतें भी हम पर अपना कहर ढा सकती हैं। बाइबल साफ-साफ बताती है कि फिलहाल, यहोवा चमत्कार करके अपने लोगों को ऐसी मुसीबतों से नहीं बचाता।—सभोपदेशक 9:11.

8. शैतान, हम पर आनेवाली मुसीबतों का कैसे फायदा उठा सकता है?

8 हालाँकि हम पर आनेवाली हर मुसीबत के लिए शैतान ज़िम्मेदार नहीं, फिर भी वह इसका फायदा उठाकर हमारे विश्‍वास को कमज़ोर कर सकता है। प्रेरित पौलुस ने अपनी एक तकलीफ के बारे में यह बताया कि उसके “शरीर में एक कांटा चुभाया गया अर्थात्‌ शैतान का एक दूत” उसे ‘घूसे मारते’ रहता था। (2 कुरिन्थियों 12:7) पौलुस के शरीर का काँटा चाहे नज़र का धुँधलापन जैसी समस्या रही हो या कुछ और, वह जानता था कि शैतान उस समस्या और उससे होनेवाली मायूसी का फायदा उठाकर, उसकी खुशी छीन सकता है और उसकी खराई भी तोड़ सकता है। (नीतिवचन 24:10) शैतान, आज परमेश्‍वर के सेवकों का विरोध करने या उन्हें सताने के लिए परिवार के लोगों, स्कूल के साथियों, यहाँ तक कि तानाशाही सरकारों को भड़का सकता है।

9. जब हम पर कोई मुसीबत आती है या ज़ुल्म किए जाते हैं, तो हमें क्यों हैरान नहीं होना चाहिए?

9 हम इन समस्याओं का सामना करने में कैसे कामयाब हो सकते हैं? यह याद रखकर कि इनसे हमें यहोवा के लिए अपना प्यार दिखाने और यह भी ज़ाहिर करने का मौका मिलता है कि हमने उसकी हुकूमत के अधीन रहने की ठान ली है। (याकूब 1:2-4) चाहे हमारी परेशानी की वजह जो भी हो, अगर हम यह बखूबी समझें कि हमें परमेश्‍वर का वफादार रहना है, तो हम आध्यात्मिक मायने में मज़बूत बने रहेंगे। प्रेरित पतरस ने मसीहियों को लिखा: “हे प्रियो, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझकर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है।” (1 पतरस 4:12) पौलुस ने भी समझाया: “जितने मसीह यीशु में भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:12) शैतान आज भी यहोवा के साक्षियों की खराई पर सवाल उठाता है, ठीक जैसे उसने अय्यूब के मामले में किया था। इतना ही नहीं, बाइबल दिखाती है कि इन अंतिम दिनों में शैतान, परमेश्‍वर के लोगों पर पहले से ज़्यादा हमले कर रहा है।—प्रकाशितवाक्य 12:9, 17.

गलतफहमी और कुछ बुरी नसीहत

10. अय्यूब किस बात से बेखबर था?

10 अय्यूब को एक और बात पता नहीं थी जो आज हमें पता है। वह इस बात से बेखबर था कि आखिर उस पर मुसीबतों का पहाड़ क्यों टूटा है। इसलिए वह एक गलतफहमी का शिकार हो गया। उसने कहा: “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया।” (अय्यूब 1:21) शायद शैतान ने ही अय्यूब के दिल में यह बात बिठाने की कोशिश की होगी कि यह सब परमेश्‍वर का किया-धरा है।

11. समझाइए कि मुसीबत की घड़ी में अय्यूब ने कैसा महसूस किया?

11 हालाँकि अय्यूब ने अपनी पत्नी के कहने पर परमेश्‍वर को नहीं कोसा, मगर वह अंदर-ही-अंदर काफी टूट चुका था। (अय्यूब 2:9, 10) उसने कहा: ‘बुरे लोगों की हालत मुझसे लाख गुना बेहतर है।’ (अय्यूब 21:7-9) उसके मन में यह सवाल भी ज़रूर खटका होगा कि ‘आखिर परमेश्‍वर मुझे किस बात की सज़ा दे रहा है?’ कई बार तो वह बस मर जाना चाहता था। उसने अपना दुखड़ा रोते हुए कहा: “भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता, और जब तक तेरा कोप ठंढा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता।”—अय्यूब 14:13.

12, 13. अय्यूब के तीन दोस्तों ने उससे जो कहा, उसका उस पर क्या असर हुआ?

12 अय्यूब का हाल सुनकर उसके तीन दोस्त उससे मिलने आए ताकि वे ‘उसके संग मिलकर विलाप करें और उसको शान्ति दें।’ (अय्यूब 2:11) मगर ये दोस्त अय्यूब को तसल्ली देने के बजाय, “निकम्मे शान्तिदाता” ठहरे। (अय्यूब 16:2) वे अय्यूब की तकलीफों को सुनकर, उसके दिल के बोझ को हलका कर सकते थे, मगर ऐसा करने के बजाय उन्होंने कड़वी बातें कहकर उसकी दुखती रग पर हाथ रखा। साथ ही, उसकी उलझन को और भी बढ़ा दिया।—अय्यूब 19:2; 26:2.

13 ऐसे हालात में अय्यूब ने ज़रूर खुद से ये सवाल पूछे होंगे: ‘आखिर यह सब मेरे ही साथ क्यों हो रहा है? मेरा कसूर क्या है?’ इस बारे में, अय्यूब के दोस्तों ने उसे जो दलीलें दीं वे सरासर गलत थीं। उनके मुताबिक, अय्यूब ने ज़रूर कोई गंभीर पाप किया होगा जिसकी सज़ा वह भुगत रहा था। उसके एक दोस्त, एलीपज ने कहा: “क्या . . . कोई निर्दोष भी कभी नाश हुआ है? . . . मेरे देखने में तो जो पाप को जोतते और दुःख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।”—अय्यूब 4:7, 8.

14. जब हम पर या दूसरों पर मुसीबत आती है, तो फौरन इस नतीजे पर पहुँचना क्यों सही नहीं होगा कि यह बुरे कामों का फल है?

14 माना कि अगर हम आत्मा के बजाय शरीर के लिए बोएँगे, तो हम पर समस्याएँ आएँगी। (गलतियों 6:7, 8) मगर इस मौजूदा व्यवस्था में हमारे अच्छे चालचलन के बावजूद भी, हम पर मुश्‍किलें आ सकती हैं। और-तो-और, कोई यह नहीं कह सकता कि बेकसूरों पर कोई तकलीफ नहीं आती। यीशु मसीह को ही लीजिए। वह “निर्मल, और पापियों से अलग” था, फिर भी उसे यातना स्तंभ पर दर्दनाक मौत मरना पड़ा था। (इब्रानियों 7:26) और प्रेरित याकूब को भी अपने विश्‍वास की खातिर शहीद होना पड़ा था। (प्रेरितों 12:1, 2) एलीपज और दूसरे साथियों की झूठी दलीलें सुनकर अय्यूब ने अपने भले नाम पर लगे कलंक को मिटाने और खुद को बेकसूर साबित करने के लिए सफाई पेश की। मगर इसके बाद भी, वे उस पर इलज़ाम लगाते गए कि वह अपनी करनी का फल भुगत रहा है। ऐसे में अय्यूब के मन में यह शक पैदा हुआ होगा कि यहोवा उसके साथ नाइंसाफी कर रहा है।—अय्यूब 34:5; 35:2.

मुसीबतों का सामना करने में मदद

15. दुःख-तकलीफों का सामना करने में किस तरह की सोच हमारी मदद करेगी?

15 क्या हम अय्यूब से सबक सीख सकते हैं? कई बार जब हमारे साथ हादसे होते हैं, या हमें बीमारियों या ज़ुल्मों का सामना करना पड़ता है, तो हम सोच सकते हैं कि ये सब हमारे साथ ही क्यों होता है दूसरों के साथ क्यों नहीं। (भजन 73:3-12) ऐसे में, हमें अपने आपसे ये बुनियादी सवाल पूछने चाहिए: ‘क्या मैं परमेश्‍वर से इतना प्यार करता हूँ कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं उसकी सेवा करता रहूँगा? क्या मैं यहोवा को यह मौका देने के लिए तरसता हूँ कि वह अपने “निन्दा करनेवाले को उत्तर” दे सके?’ (नीतिवचन 27:11; मत्ती 22:37) चाहे दूसरे बिना सोचे-समझे कुछ भी कहें, हमें उनकी बातों में आकर स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता पर कभी शक नहीं करना चाहिए। एक वफादार मसीही बहन, जिसने कई सालों तक एक गंभीर बीमारी की वजह से तकलीफें सहीं, बताती है: “मैं जानती हूँ कि यहोवा मेरे साथ जो भी होने की इजाज़त देता है, उसे मैं सह सकती हूँ। मैं जानती हूँ कि हमेशा की तरह इस बार भी वह मुझे सहने की ताकत देगा।”

16. परमेश्‍वर का वचन, आज़माइशों का सामना करनेवालों को कैसे मदद देता है?

16 अय्यूब को शैतान की चालें पता नहीं थीं, मगर आज हम “उस की युक्‍तियों से अनजान नहीं” हैं। (2 कुरिन्थियों 2:11) इसके अलावा, हमारे पास व्यावहारिक बुद्धि का भंडार है। बाइबल में उन वफादार स्त्री-पुरुषों की कहानियाँ दर्ज़ हैं जो तरह-तरह की आज़माइशों से गुज़रे थे। इनमें से एक था, प्रेरित पौलुस जिसने दूसरे मसीहियों के मुकाबले सबसे ज़्यादा दुःख झेले थे। उसने लिखा: “जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।” (रोमियों 15:4) यूरोप में एक साक्षी को दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, अपने मसीही विश्‍वास की वजह से जेल की सज़ा काटनी पड़ी। उसने बाइबल हासिल करने के बदले में अपने तीन दिन के खाने का सौदा किया। वह कहता है: “यह बयान करने के लिए मेरे पास अलफाज़ नहीं कि वह सौदा कितना बढ़िया साबित हुआ! हालाँकि मुझे भूखा रहना पड़ा, मगर बाइबल की आध्यात्मिक खुराक ने मुझे उन मुश्‍किल-भरे दौर में सँभाले रखा। मुझे ही नहीं बल्कि दूसरों को भी। आज तक मैंने उस बाइबल को सँभालकर रखा है।”

17. हमें धीरज धरने में मदद देने के लिए, परमेश्‍वर ने क्या इंतज़ाम किए हैं?

17 बाइबल से मिलनेवाली शांति के अलावा, हमारे पास बाइबल अध्ययन में मदद देनेवाली ढेरों किताबें-पत्रिकाएँ हैं जो हमें समस्याओं से जूझने के लिए बढ़िया निर्देशन देती हैं। अगर आप वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स में देखें, तो आपको एक ऐसे मसीही भाई या बहन की दास्तान मिल सकती है जिसने आपके जैसी परीक्षा का सामना किया हो। (1 पतरस 5:9) यह भी अच्छा होगा अगर आप हमदर्दी दिखानेवाले प्राचीनों या दूसरे प्रौढ़ मसीहियों को अपने हालात के बारे में बताएँ, क्योंकि हो सकता है कि वे आपकी मदद कर सकें। सबसे बढ़कर, आप इस बात का पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा अपनी पवित्र आत्मा से आपकी मदद ज़रूर करेगा, इसलिए प्रार्थना के ज़रिए उसके पास जाइए। ध्यान दीजिए, पौलुस ने शैतान के ‘घूसों’ से खुद का कैसे बचाव किया था? उसने परमेश्‍वर की ताकत पर भरोसा रखना सीखा था। (2 कुरिन्थियों 12:9, 10) उसने लिखा: “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलिप्पियों 4:13.

18. मसीही भाई-बहन दूसरों का ढाढ़स कैसे बँधा सकते हैं?

18 तो फिर मदद हाज़िर है और इसका फायदा उठाने से आपको कभी नहीं झिझकना चाहिए। एक नीतिवचन कहता है: “यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्‍ति बहुत कम है।” (नीतिवचन 24:10) जैसे दीमक, लकड़ी से बने घर को खोखला कर देती है, वैसे ही निराशा की भावना एक मसीही की खराई को कमज़ोर कर सकती है। इस खतरे से बचने के लिए, यहोवा ने हमें एक मदद दी है। वह है, परमेश्‍वर के दूसरे वफादार सेवक। जिस रात यीशु को गिरफ्तार किया गया था, उसी रात एक स्वर्गदूत ने आकर उसे मज़बूत किया। (लूका 22:43) जब पौलुस को बंदी बनाकर रोम ले जाया जा रहा था, तो रास्ते में अप्पियुस के चौक और तीन-सराय पर बहुत-से भाई उससे मिलने आए। उन्हें देखकर “पौलुस ने परमेश्‍वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बान्धा।” (प्रेरितों 28:15) जर्मनी की एक साक्षी बहन को आज भी याद है कि जब उसे रावन्सब्रूक यातना शिविर में डाला गया, तब उसे दूसरे साक्षियों से कैसे मदद मिली। उस समय वह एक किशोर थी और बहुत सहमी हुई थी। वह याद करते हुए बताती है: “वहाँ पहुँचते ही, एक मसीही बहन मेरे पास आयी और उसने तहेदिल से मेरा स्वागत किया। एक और वफादार बहन ने मेरा बहुत खयाल रखा और वह मेरी आध्यात्मिक माँ बनी, क्योंकि उसने मुझे यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करने में मदद दी।”

“विश्‍वासी रह”

19. अय्यूब को किस बात ने मदद दी जिससे वह शैतान की कोशिशों का विरोध कर पाया?

19 यहोवा ने अय्यूब को ‘अपनी खराई पर बने’ रहनेवाला इंसान बताया। (अय्यूब 2:3) हालाँकि अय्यूब बहुत ही निराश था और इस बात से अनजान था कि उस पर मुसीबतें क्यों आयीं, फिर भी वह वफादारी के मसले में कभी नहीं डगमगाया। उसे अपनी खराई की ज़िंदगी से मुँह मोड़ना कतई गवारा नहीं था। उसने ठान लिया था: “जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूंगा।”—अय्यूब 27:5.

20. धीरज धरना क्यों फायदेमंद है?

20 अगर हम भी अय्यूब की तरह पक्के इरादे के साथ यहोवा की सेवा करें, तो हम पर चाहे किसी भी तरह की आज़माइश, विरोध या मुसीबत क्यों न आए, हम हर हाल में अपनी खराई बनाए रख पाएँगे। यीशु ने स्मुरना की कलीसिया से कहा था: “जो दुख तुझ को झेलने होंगे, उन से मत डर: क्योंकि देखो, शैतान तुम में से कितनों को जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश [मुश्‍किलें, परेशानियाँ, या ज़ुल्म] उठाना होगा: प्राण देने तक विश्‍वासी रह; तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।”—प्रकाशितवाक्य 2:10.

21, 22. मुश्‍किलों के दौरान धीरज धरते वक्‍त, हमें किस बात से दिलासा मिल सकता है?

21 इस व्यवस्था में, जिसका शासक शैतान है, हमारे धीरज और हमारी खराई की परख ज़रूर होगी। मगर जैसा ऊपर यीशु ने हमें यकीन दिलाया है कि भविष्य की आस लगाते हुए हमें किसी भी बात से डरने की कोई ज़रूरत नहीं। सबसे ज़रूरी बात यह है कि हम अंत तक विश्‍वासी बने रहें। पौलुस ने कहा कि ‘क्लेश पल भर का’ है, जबकि यहोवा ने हमें जो “महिमा” या इनाम देने का वादा किया है, वह “बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त” है। (2 कुरिन्थियों 4:17, 18) अय्यूब ने अपनी परीक्षा से पहले और बाद में जितनी खुशियों का लुत्फ उठाया, उसके मुकाबले उसकी तकलीफें भी बस पल भर की थीं।—अय्यूब 42:16.

22 इसके बावजूद, हमारी ज़िंदगी में ऐसे दौर आ सकते हैं जब हमें लगे कि हमारी परीक्षाओं का कोई अंत नहीं और हमारा दुःख सहने से बाहर है। अगले लेख में हम देखेंगे कि अय्यूब के साथ जो हुआ, उससे हम धीरज धरने के बारे में और क्या सीख सकते हैं। हम यह भी देखेंगे कि हम किन तरीकों से उन लोगों को मज़बूत कर सकते हैं जो मुश्‍किलों का सामना करते हैं। (w06 8/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• अय्यूब की खराई को लेकर, शैतान ने क्या अहम मसला खड़ा किया?

• मुसीबतें आने पर हमें क्यों हैरान नहीं होना चाहिए?

• यहोवा धीरज धरने में हमारी कैसे मदद करता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 11 पर तसवीरें]

खोजबीन करने, प्रौढ़ मसीहियों से बात करने, और दिल खोलकर प्रार्थना करने से हमें धीरज धरने में मदद मिलती है