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‘तुमने अय्यूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है’

‘तुमने अय्यूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है’

‘तुमने अय्यूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है’

“तुम ने ऐयूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करुणा और दया प्रगट होती है।”—याकूब 5:11.

1, 2. पोलैंड में एक जोड़े ने किस आज़माइश का सामना किया?

 हॉरॉल्ट ऑप्ट, उत्तरी पोलैंड के डान्टसिग शहर (अब गडान्टस्क) का रहनेवाला था। उसे यहोवा का साक्षी बने एक साल भी नहीं हुए थे, जब हिटलर की सेना ने उसके शहर पर कब्ज़ा कर लिया। फिर क्या था, सच्चे मसीहियों का वहाँ जीना दुश्‍वार हो गया, यहाँ तक कि उनकी जान के भी लाले पड़ गए। गेस्टापो (खुफिया पुलिस) ने हॉरॉल्ट को पकड़ लिया और उसे एक दस्तावेज़ पर दस्तखत करने के लिए ज़बरदस्ती की, जिस पर लिखा था कि वह अपना धर्म छोड़ रहा है। मगर उसने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। इसके लिए उसे जेल में डाला गया। कुछ हफ्तों बाद, उसे ज़ाकसनहाउज़न के यातना शिविर भेजा गया जहाँ उसे कई बार धमकियाँ दी गयीं और बुरी तरह पीटा गया। फिर एक अफसर ने हॉरॉल्ट को दाह-गृह की चिमनी दिखाते हुए धमकाया: “बस 14 दिन की मोहलत देता हूँ। इसके बाद भी अगर तू ने अपना विश्‍वास नहीं छोड़ा, तो मैं तुझे सीधे तेरे यहोवा के पास पहुँचा दूँगा।”

2 जब हॉरॉल्ट को गिरफ्तार किया गया तब उसकी पत्नी, एलज़ा अपनी दूध-पीती बच्ची की देखभाल कर रही थी जो सिर्फ दस महीने की थी। मगर गेस्टापो ने एलज़ा पर कोई रहम नहीं किया। कुछ ही समय के बाद, उन्होंने उसकी बच्ची को उससे छीन लिया और एलज़ा को ऑश्‍विट्‌ज़ के यातना शिविर भेज दिया जिसे मौत का शिविर कहा जाता था। इन सब हालात के बावजूद, एलज़ा और हॉरॉल्ट दोनों ज़िंदा बच गए। उन्होंने मुसीबतों में कैसे धीरज रखा, इस बारे में आप अप्रैल 15, 1980 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में पढ़ सकते हैं। हॉरॉल्ट लिखता है: “परमेश्‍वर पर मेरे विश्‍वास की वजह से, मुझे कुल मिलाकर 14 साल यातना शिविरों और दूसरी जेलों में सज़ा काटनी पड़ी। एक बार किसी ने मुझसे पूछा: ‘इन सारी तकलीफों को झेलने में क्या आपकी पत्नी ने आपकी मदद की?’ मैंने कहा, बिलकुल! मुझे शुरू से मालूम था कि कुछ भी हो जाए, वह अपने विश्‍वास के साथ कभी समझौता नहीं करनेवाली और इस बात ने मुझे बहुत हिम्मत दी। मैं यह भी जानता था कि एलज़ा मेरा मरा मुँह देखना पसंद करेगी बजाय यह सुनने के कि मैं अपने विश्‍वास से समझौता करके आज़ाद हो गया हूँ। . . . एलज़ा ने कई सालों तक जर्मनी के यातना शिविरों में बहुत-सी तकलीफें सहीं।”

3, 4. (क) किन लोगों की मिसालों से मसीहियों को धीरज धरने का हौसला मिल सकता है? (ख) बाइबल हमसे यह गुज़ारिश क्यों करती है कि अय्यूब के साथ जो हुआ, हम उसकी जाँच करें?

3 जी हाँ, ज़ुल्म सहना कोई आसान बात नहीं। और बहुत-से यहोवा के साक्षी इस बात के गवाह हैं। इसलिए बाइबल सभी मसीहियों को सलाह देती है: “जिन भविष्यद्वक्‍ताओं ने प्रभु के नाम से बातें कीं, उन्हें दुख उठाने और धीरज धरने का एक आदर्श समझो।” (याकूब 5:10) सदियों से, परमेश्‍वर के कई सेवकों पर बिना वजह ज़ुल्म ढाए गए। इन सेवकों यानी ‘गवाहों के बड़े बादल’ ने हमारे आगे जो बढ़िया मिसालें रखी हैं, उनसे हौसला पाकर हम अपनी मसीही दौड़ में धीरज के साथ दौड़ पाएँगे।—इब्रानियों 11:32-38; 12:1.

4 बाइबल बताती है कि अय्यूब, धीरज धरने में एक अनोखी मिसाल था। याकूब ने लिखा: “देखो, हम धीरज धरनेवालों को धन्य कहते हैं: तुम ने ऐयूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करुणा और दया प्रगट होती है।” (याकूब 5:11) अय्यूब के साथ जो हुआ, वह हमें इस बात की झलक देता कि वफादार लोगों को, जिन पर यहोवा की आशीष है, भविष्य में क्या इनाम मिलनेवाला है। सबसे बढ़कर, इससे हमें उन सच्चाइयों के बारे में पता चलता जो हमें मुसीबतों से गुज़रने में मदद देती हैं। अय्यूब की किताब हमें इन सवालों के जवाब देती है: जब हम पर परीक्षा आती है, तो हमें क्यों अहम मसलों को समझने की कोशिश करनी चाहिए? परीक्षाओं में धीरज धरने के लिए, कौन-से गुण और रवैया हमारी मदद करेंगे? हम उन मसीही भाई-बहनों को कैसे हौसला दे सकते हैं जो दुःख झेलते हैं?

अहम मसलों को अच्छी तरह समझना

5. जब हम तकलीफों या परीक्षाओं का सामना करते हैं, तो हमें किस अहम मसले को मन में रखने की ज़रूरत है?

5 मुसीबत की घड़ी में, आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत बने रहने के लिए हमें अहम मसलों को समझने की ज़रूरत है। वरना, हमारी समस्याएँ हमें आध्यात्मिक मायने में अंधा कर सकती हैं। सबसे अहम मसला है, परमेश्‍वर का वफादार रहना। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता हमसे एक ऐसी अपील करता है जिसे हममें से हरेक को अपने मन में गाँठ बाँध लेना चाहिए: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।” (नीतिवचन 27:11) वाकई, यह हमारे लिए क्या ही बड़े सम्मान की बात है! हमारी कमज़ोरियों और असिद्धताओं के बावजूद हम अपने सिरजनहार का मन आनंदित कर सकते हैं। मगर कैसे? जब यहोवा के लिए प्यार की खातिर हम तकलीफों और परीक्षाओं में भी डटे रहते हैं, तब हम यहोवा को खुश कर पाते हैं। जी हाँ, सच्चा मसीही प्यार सब बातों में धीरज धरता है और कभी नहीं टलता।—1 कुरिन्थियों 13:7, 8.

6. शैतान किस तरह यहोवा को ताने मारता है, और वह किस हद तक ऐसा करता है?

6 अय्यूब की किताब में शैतान की साफ पहचान दी गयी है कि वही है जो यहोवा को ताने मारता रहता है। इसमें यह भी बताया गया है कि परमेश्‍वर के इस दुश्‍मन में, जिसे कोई इंसान नहीं देख सकता, बुराई कूट-कूटकर भरी है और वह बस यही चाहता है कि किसी भी तरह परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते को तोड़ दे। जैसा अय्यूब के साथ हुई घटना दिखाती है कि शैतान ने असल में, यहोवा के सभी सेवकों पर यह इलज़ाम लगाया है कि वे सिर्फ अपने फायदे के लिए परमेश्‍वर की सेवा करते हैं। वह यह भी साबित करने पर तुला हुआ है कि परमेश्‍वर के लिए उनका प्यार ठंडा पड़ सकता है। शैतान, हज़ारों साल से यहोवा को ताने मारता आया है। जब शैतान को स्वर्ग से खदेड़ दिया गया, तब स्वर्ग से एक आवाज़ आयी कि शैतान “हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला” है और वह “रात दिन हमारे परमेश्‍वर के साम्हने” उन पर इलज़ाम लगाता है। (प्रकाशितवाक्य 12:10) जी हाँ, हम वफादार रहकर और धीरज धरकर साबित कर सकते हैं कि शैतान के इलज़ाम बेबुनियाद हैं।

7. शारीरिक कमज़ोरी से लड़ने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है?

7 हमें याद रखना चाहिए कि इब्‌लीस, हम पर आनेवाले हर क्लेश का फायदा उठाएगा ताकि हमें यहोवा से दूर ले जा सके। याद कीजिए कि उसने यीशु को कब लुभाया? जब वह कई दिनों तक उपवास करने की वजह से भूखा था। (लूका 4:1-3) मगर यीशु आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत था, इसलिए वह शैतान की पेशकश को ठोकर मार सका। उसी तरह, यह कितना ज़रूरी है कि हम आध्यात्मिक ताकत के ज़रिए अपनी शारीरिक कमज़ोरी से लड़ें, फिर चाहे ये बीमारी या बुढ़ापे की वजह से क्यों न आएँ। हालाँकि ‘हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश होता जाता है,’ फिर भी हम हिम्मत नहीं हारते क्योंकि “हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है।”—2 कुरिन्थियों 4:16.

8. (क) निराश कर देनेवाली भावनाएँ कैसे हमें कमज़ोर कर सकती हैं? (ख) यीशु कैसी मनसा रखता था?

8 इसके अलावा, निराश कर देनेवाली भावनाएँ, यहोवा की उपासना करने के हमारे इरादे को कमज़ोर कर सकती हैं। मिसाल के लिए, एक भाई शायद सोचे: ‘आखिर, यहोवा ने मुझ पर ये हालात आने ही क्यों दिए हैं?’ या जब किसी भाई के साथ बुरा सलूक किया जाता है, तो वह पूछ सकता है: ‘वह भाई मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता है?’ इस तरह की भावनाओं की वजह से, हम अहम मसलों को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं और बस अपने ही हालात पर पूरा ध्यान देने लग सकते हैं। अय्यूब भी ऐसी भावनाओं का शिकार हुआ था। जिस तरह अपनी बीमारी से अय्यूब का हाल-बेहाल हो गया था, उसी तरह झूठी दलीलें देनेवाले अपने दोस्तों से वह इतना खीज उठा कि इसका उसकी भावनाओं पर बुरा असर पड़ा। (अय्यूब 16:20; 19:2) प्रेरित पौलुस ने यह भी बताया कि लंबे समय तक मन में नाराज़गी पालने से “शैतान को अवसर” मिल सकता है। (इफिसियों 4:26, 27) इसलिए मसीहियों को दूसरों पर अपना गुस्सा नहीं उतारना चाहिए और ना ही खुद के साथ हुई नाइंसाफी पर हद-से-ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। इसके बजाय, अच्छा होगा अगर वे यीशु की मिसाल पर चलकर ‘अपने आप को सच्चे न्यायी [यहोवा परमेश्‍वर] के हाथ में सौंप’ दें। (1 पतरस 2:21-23) यीशु की जैसी “मनसा” रखने से हमें शैतान के हमलों से बचने में बड़ी मदद मिल सकती है।—1 पतरस 4:1.

9. हमारे बोझ को उठाने या परीक्षाओं का सामना करने के बारे में परमेश्‍वर ने हमें क्या यकीन दिलाया है?

9 सबसे बढ़कर, हमें अपने मन में यह खयाल कभी नहीं आने देना चाहिए कि हम पर आयीं तकलीफों का मतलब है कि परमेश्‍वर हमसे नाराज़ है। इसी गलतफहमी की वजह से अय्यूब के दिल को बहुत ठेस पहुँची, खासकर तब जब उसके दोस्त, जो सिर्फ नाम के वास्ते हमदर्द साथी थे, उसे कड़वी बातें कह रहे थे। (अय्यूब 19:21, 22) बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “न तो बुरी बातों से परमेश्‍वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।” (याकूब 1:13) इसके बजाय, यहोवा वादा करता है कि हम पर चाहे कोई भी मुसीबत क्यों न आए, उसका बोझ उठाने में वह हमारी मदद ज़रूर करेगा और हमें हर परीक्षा से बाहर निकलने का रास्ता भी दिखाएगा। (भजन 55:22; 1 कुरिन्थियों 10:13) इसलिए मुश्‍किल-भरे दौर में परमेश्‍वर के करीब आने से, हम उन बातों को अहमियत दे पाएँगे जो पहली जगह पर आनी चाहिए और शैतान का डटकर सामना करने में कामयाब होंगे।—याकूब 4:7, 8.

धीरज धरने में मदद

10, 11. (क) किस बात ने अय्यूब को धीरज धरने में मदद दी? (ख) अच्छे विवेक से अय्यूब को कैसे मदद मिली?

10 अय्यूब की हालत बहुत खस्ता थी। उसके झूठे ‘शान्तिदाताओं’ ने उस पर गलत इलज़ाम लगाए और ऊपर से वह खुद इस कशमकश में था कि आखिर, उस पर इतनी मुसीबतें क्यों आयी हैं। मगर इन सबके बावजूद, उसने अपनी खराई बनाए रखी। अय्यूब के धीरज से हम क्या सीख सकते हैं? बेशक, अय्यूब के धीरज धरने की सबसे बड़ी वजह थी कि वह यहोवा का वफादार था। ‘वह परमेश्‍वर का भय मानता था और बुराई से परे रहता था।’ (अय्यूब 1:1) यही उसके जीने का तरीका था। उसने यहोवा से मुँह फेरने की बात को ठुकरा दिया, तब भी जब उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्यों उस पर अचानक मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। अय्यूब का मानना था कि चाहे अच्छा वक्‍त हो या बुरा, उसे परमेश्‍वर की सेवा करते रहना चाहिए।—अय्यूब 1:21; 2:10.

11 अय्यूब को एक और बात से दिलासा मिला, वह था उसका साफ विवेक। एक बार जब उसे लगा कि उसके मरने का वक्‍त आ गया है, तो उसे इस बात से बड़ा सुकून मिला कि उसने दूसरों की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वह यहोवा के धर्मी स्तरों पर बना रहा और हर तरह की झूठी उपासना से दूर रहा।—अय्यूब 31:4-11, 26-28.

12. जब एलीहू ने अय्यूब को मदद दी, तब अय्यूब ने क्या किया?

12 मगर यह भी एक सच है कि अय्यूब को कुछ मामलों में अपनी सोच को सुधारने की ज़रूरत थी। इसलिए जब परमेश्‍वर ने उसे ताड़ना दी, तो उसने नम्रता से उसे कबूल किया। यह एक और वजह थी जिससे वह अपनी परीक्षा में धीरज धर सका। जब यहोवा ने एलीहू के ज़रिए अय्यूब को बुद्धि-भरी सलाह दी, तो उसने उसे ध्यान से सुना और उसके मुताबिक काम किया। उसने अपनी गलती मानते हुए कहा: “मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा। . . . मुझे अपने ऊपर घृणा आती है और मैं धूलि और राख में पश्‍चात्ताप करता हूं।” (अय्यूब 42:3, 6) अपनी दर्दनाक बीमारी में भी अय्यूब इस बात से खुश था कि उसकी सोच के सुधारे जाने की वजह से वह यहोवा के और भी करीब आ सका। उसने कहा: “मैं जानता हूं कि तू [यहोवा] सब कुछ कर सकता है।” (अय्यूब 42:2) जब यहोवा ने अय्यूब को अपनी शान और महानता का ब्यौरा दिया, तो वह साफ समझ पाया कि सिरजनहार के सामने वह एक अदना-सा इंसान है।

13. दया दिखाने से अय्यूब को कैसे फायदा हुआ?

13 अय्यूब ने दया की एक बेजोड़ मिसाल रखी। झूठी तसल्ली देनेवालों ने उसके दिल को कितनी गहरी चोट पहुँचायी, फिर भी जब यहोवा ने उसे उनकी खातिर प्रार्थना करने के लिए कहा, तो उसने वैसा ही किया। उसके बाद, यहोवा ने अय्यूब को उसकी अच्छी सेहत लौटा दी। (अय्यूब 42:8, 10) इससे साफ पता चलता है कि कड़वाहट से नहीं, बल्कि प्यार और दया की भावना से हमें धीरज धरने में मदद मिलती है। मन से नाराज़गी निकाल देने से, हमें आध्यात्मिक तौर पर ताज़गी और यहोवा से आशीष भी मिलती है।—मरकुस 11:25.

बुद्धिमान सलाहकार जो हमें धीरज धरने में मदद देते हैं

14, 15. (क) दूसरों के दिल में लगे ज़ख्म को भरने के लिए, एक सलाहकार में कौन-से गुण होने चाहिए? (ख) समझाइए कि एलीहू, अय्यूब की मदद करने में क्यों कामयाब था।

14 अय्यूब की कहानी से हमें एक और सबक मिलता है कि बुद्धिमान सलाहकार, अनमोल होते हैं। ऐसे लोग ‘विपत्ति के दिन भाई बन जाते हैं।’ (नीतिवचन 17:17) मगर जैसा अय्यूब का वाकया दिखाता है कि कुछ सलाहकार दिल में लगे ज़ख्म को भरने के बजाय, उस पर और भी नमक छिड़कते हैं। एक अच्छे सलाहकार को एलीहू की तरह हमदर्द, आदर और लिहाज़ दिखानेवाला होना चाहिए। कई बार प्राचीन और दूसरे प्रौढ़ मसीहियों को ऐसे भाई-बहनों की सोच को सुधारना पड़ता है जो अपनी समस्याओं के बोझ तले दबे होते हैं। ऐसे में ये सलाहकार, अय्यूब की किताब से बहुत कुछ सीख सकते हैं।—गलतियों 6:1; इब्रानियों 12:12, 13.

15 एलीहू ने जिस तरह मामले को निपटाया उससे हमें कई बढ़िया सबक मिलते हैं। उसने बोलने से पहले, सब्र के साथ अय्यूब के तीन दोस्तों की झूठी दलीलें सुनीं। (अय्यूब 32:11; नीतिवचन 18:13) उसने अय्यूब को उसके नाम से बुलाया और एक दोस्त की तरह उससे गुज़ारिश की। (अय्यूब 33:1) एलीहू उन तीन झूठी तसल्ली देनेवालों की तरह नहीं था जो खुद को अय्यूब से बड़ा समझते थे। इसके बजाय, उसने कहा: “मैं भी मिट्टी का बना हुआ हूं।” एलीहू बिना सोचे-समझे ऐसी कोई भी बात नहीं कहना चाहता था जिससे अय्यूब की तकलीफ और बढ़ जाए। (अय्यूब 33:6, 7; नीतिवचन 12:18) इसलिए उसने अय्यूब के बीते चालचलन के लिए उसकी निंदा नहीं की, बल्कि उसकी धार्मिकता के लिए उसकी तारीफ की। (अय्यूब 33:32) सबसे बढ़कर, एलीहू ने मामले को यहोवा की नज़र से देखा और उसने अय्यूब को इस सच्चाई पर ध्यान देने में मदद दी कि यहोवा कभी नाइंसाफी नहीं करता। (अय्यूब 34:10-12) उसने अय्यूब को बढ़ावा दिया कि वह अपनी धार्मिकता को साबित करने के बजाय, यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करे। (अय्यूब 35:2; 37:14, 23) मसीही प्राचीन और दूसरे भाई-बहन बेशक इससे बढ़िया सबक सीख सकते हैं।

16. अय्यूब को झूठी तसल्ली देनेवाले उसके तीन दोस्त कैसे शैतान के हाथ की कठपुतली बनें?

16 एलीहू की बुद्धि-भरी सलाह और एलीपज, बिलदद और सोपर की तीखी बातों में ज़मीन-आसमान का फर्क था। यहोवा ने उन तीनों से कहा: “तुम लोगों ने . . . मेरे विषय में सच नहीं कहा।” (अय्यूब 42:7, बुल्के बाइबिल) चाहे उन्होंने यह दावा क्यों न किया हो कि उनके इरादे नेक हैं, फिर भी वे जिस तरह से पेश आए उससे साफ था कि वे वफादार दोस्त नहीं बल्कि शैतान के हाथ की कठपुतली थे। शुरू से ही इन तीनों ने अंदाज़ा लगाया कि अय्यूब पर आयी मुसीबतों के लिए वह खुद दोषी है। (अय्यूब 4:7, 8; 8:6; 20:22, 29) एलीपज ने कहा कि परमेश्‍वर को अपने सेवक पर कोई भरोसा नहीं और चाहे हम धर्मी हों या ना हों, इससे उसे कोई मतलब नहीं। (अय्यूब 15:15; 22:2, 3) यहाँ तक कि उसने अय्यूब पर ऐसे कामों का इलज़ाम लगाया जो उसने नहीं किए थे। (अय्यूब 22:5, 9) मगर इसके बिलकुल उलट, एलीहू ने अय्यूब को आध्यात्मिक मदद दी और एक प्यार करनेवाले सलाहकार का हमेशा यही मकसद होता है।

17. आज़माइशों से गुज़रते वक्‍त, हमें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए?

17 धीरज धरने के बारे में, हम अय्यूब की किताब से एक और सबक सीख सकते हैं। वह है, हमारा प्यारा परमेश्‍वर हमारी हालात पर गौर करता है और वह कई तरीकों से हमें मदद देने के काबिल है और ऐसा करना चाहता भी है। शुरू में हमने एलज़ा ऑप्ट के बारे में पढ़ा था। उसने आखिर में क्या कहा, ज़रा उस पर गहराई से सोचिए: “मेरी गिरफ्तारी से पहले, मैंने एक साक्षी बहन की चिट्ठी पढ़ी थी। उसमें यह लिखा था कि जब हम कड़ी परीक्षा से गुज़रते हैं, तो परमेश्‍वर की आत्मा की मदद से हम शांत बने रहते हैं। मैंने सोचा कि उसने कुछ ज़्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर लिखा है। मगर जब मैं खुद आज़माइशों से गुज़री तो मैंने महसूस किया कि उसकी बात एकदम सच है। परमेश्‍वर की आत्मा वाकई आपको शांत बने रहने में मदद देती है। अगर आपने यह कभी महसूस नहीं किया तो इसकी कल्पना करना आपको मुश्‍किल लगेगा। मगर मेरे साथ यह सचमुच में हुआ है। वाकई, यहोवा हमारी मदद करता है।” एलज़ा यह नहीं बता रही थी कि भविष्य में यहोवा क्या करेगा या हज़ारों साल पहले, अय्यूब के दिन में उसने क्या किया था, बल्कि वह हमारे वक्‍त की बात कर रही थी। जी हाँ, आज “यहोवा हमारी मदद करता है!”

खुश है वह इंसान जो धीरज धरता है

18. धीरज धरने से अय्यूब को क्या फायदे हुए?

18 हममें से शायद ही कुछ लोगों को अय्यूब की तरह बड़ी मुसीबतों से गुज़रना पड़े। मगर चाहे इस दुनिया में हम पर किसी भी तरह की परीक्षा आए, हमारे पास अय्यूब के जैसी खराई बनाए रखने की हर वजह मौजूद है। दरअसल, धीरज धरने से अय्यूब को और भी फायदे हुए। उसकी शख्सियत में और भी निखार आया और इस मायने वह पूरा और सिद्ध हुआ। (याकूब 1:2-4) यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता और भी मज़बूत हुआ। अय्यूब खुद इस बात को पुख्ता करते हुए कहता है: “मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं।” (अय्यूब 42:5) इस तरह, शैतान झूठा साबित हुआ क्योंकि वह अय्यूब की खराई नहीं तोड़ पाया। हज़ारों साल बाद भी यहोवा ने अपने सेवक, अय्यूब को धार्मिकता की मिसाल बताया। (यहेजकेल 14:14) यही नहीं, अय्यूब की खराई और उसके धीरज से आज भी परमेश्‍वर के लोगों को वफादार बने रहने का बढ़ावा मिलता है।

19. आपको क्यों लगता है कि धीरज धरना फायदेमंद है?

19 पहली सदी में जब याकूब ने मसीहियों को धीरज के बारे लिखा, तो उसने यह भी बताया कि इससे कैसा संतोष मिलता है। उसने अय्यूब का उदाहरण देकर मसीहियों को याद दिलाया कि यहोवा अपने वफादार सेवकों को ढेरों आशीषें देता है। (याकूब 5:11) हम अय्यूब 42:12 में पढ़ते हैं: “यहोवा ने अय्यूब के पिछले दिनों में उसको अगले दिनों से अधिक आशीष दी।” अय्यूब ने जो कुछ खोया था, परमेश्‍वर ने उसे उसका दुगना दिया। साथ ही, वह एक लंबी उम्र और खुशी की ज़िंदगी जीया। (अय्यूब 42:16, 17) उसी तरह, इस व्यवस्था के आखिरी दिनों में हम जो भी तकलीफें या मुसीबतें झलते हैं, वे सब परमेश्‍वर की नयी दुनिया में मिट जाएँगी और फिर कभी याद भी नहीं आएँगी। (यशायाह 65:17; प्रकाशितवाक्य 21:4) हमने अय्यूब के धीरज के बारे में सुना है और ठान लिया है कि यहोवा की मदद से हम उसकी मिसाल पर चलेंगे। बाइबल वादा करती है: “धन्य [“खुश,” NW] है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता [“धीरज धरता,” NW] है; क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करनेवालों को दी है।”—याकूब 1:12. (w06 8/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• हम यहोवा का मन कैसे आनंदित कर सकते हैं?

• हमें क्यों अपने मन में यह खयाल कभी नहीं आने देना चाहिए कि हम पर आयीं तकलीफों का मतलब है कि परमेश्‍वर हमसे नाराज़ है?

• किन बातों ने अय्यूब को धीरज धरने में मदद दी?

• अपने मसीही भाई-बहनों को मज़बूत करने में, हम एलीहू की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर तसवीर]

एक अच्छा सलाहकार हमदर्दी, आदर और लिहाज़ दिखाता है

[पेज 17 पर तसवीरें]

एलज़ा और हॉरॉल्ट ऑप्ट