‘तुम्हारे निवेदन परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं’
‘तुम्हारे निवेदन परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं’
“हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं।”—फिलिप्पियों 4:6.
1. हमें किसके साथ बात करने का खास सम्मान मिला है, और यह क्यों एक अनोखी बात है?
मान लीजिए, आप अपने देश के राष्ट्रपति से मिलने की गुज़ारिश करते हैं। हो सकता है, राष्ट्रपति के दफ्तर से आपको कुछ जवाब आए, मगर उससे मिलने और बात करने की इजाज़त शायद ही आपको मिले। लेकिन दुनिया के सभी शासकों से महान और इस पूरे विश्व के मालिक और महाराजाधिराज, यहोवा परमेश्वर से हम जब चाहे और जहाँ चाहे बात कर सकते हैं। और वह धर्मियों की प्रार्थनाएँ ज़रूर सुनता है। (नीतिवचन 15:29) है ना, यह एक अनोखी बात! तो क्या हमें इस बात का एहसान नहीं मानना चाहिए और क्या हमें हर दिन “प्रार्थना के सुननेवाले,” यहोवा से बात नहीं करनी चाहिए?—भजन 65:2.
2. अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं को कबूल करे, तो हमें क्या करने की ज़रूरत है?
2 फिर भी, कोई शायद पूछे: ‘परमेश्वर किस तरह की प्रार्थनाओं को कबूल करता है?’ बाइबल बताती है कि अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं को कबूल करे, तो हमें क्या करने की ज़रूरत है। यह कहती है: “विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों 11:6) जैसे कि पिछले लेख में समझाया गया था, परमेश्वर के पास आने की एक ज़रूरी माँग है, विश्वास। जी हाँ, परमेश्वर उन लोगों की प्रार्थनाओं को सुनता और जवाब देता है, जो विश्वास के साथ उसके पास आते हैं, सही काम करते हैं, साथ ही सच्चे दिल से और सही भावना के साथ प्रार्थना करते हैं।
3. (क) जैसे प्राचीन समय के वफादार लोगों की प्रार्थनाएँ दिखाती हैं, हम अपनी प्रार्थना में किन शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं? (ख) अलग-अलग किस्म की प्रार्थनाएँ क्या हैं?
3 प्रेरित पौलुस ने अपने दिनों के मसीहियों को उकसाया: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं।” (फिलिप्पियों 4:6, 7) बाइबल में ऐसे बहुत-से लोगों की मिसालें दर्ज़ हैं जिन्होंने प्रार्थना में यहोवा को अपनी चिंताएँ बतायी थीं। इनमें से कुछ लोग थे, हन्ना, एलिय्याह, हिजकिय्याह और दानिय्येल। (1 शमूएल 2:1-10; 1 राजा 18:36, 37; 2 राजा 19:15-19; दानिय्येल 9:3-21) हमें उनकी मिसालों पर चलना चाहिए। इसके अलावा, गौर कीजिए कि पौलुस ने बताया कि प्रार्थना अलग-अलग किस्म की हो सकती है। उसने धन्यवाद की प्रार्थना का ज़िक्र किया। इसमें हम उन बातों के लिए अपना एहसान ज़ाहिर करते हैं जो परमेश्वर हमारे लिए करता है। धन्यवाद की प्रार्थना में हम कभी-कभी परमेश्वर की स्तुति भी करते हैं। एक और किस्म की प्रार्थना है, बिनती। इसका मतलब है, नम्रता और दिल की गहराई से याचना करना। इसके अलावा, हम निवेदन भी कर सकते हैं यानी हम खास बात की दरखास्त कर सकते हैं। (लूका 11:2, 3) जब हम इनमें से किसी एक तरीके से स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से प्रार्थना करते हैं, तो वह बेहद खुश होता है और हमारी प्रार्थना कबूल करता है।
4. हालाँकि यहोवा जानता है कि हमारी ज़रूरतें क्या हैं, फिर भी हमें उससे निवेदन क्यों करना चाहिए?
4 कुछ लोग शायद पूछें, ‘क्या यहोवा पहले से नहीं जानता कि हमारी ज़रूरतें क्या हैं?’ बेशक जानता है। (मत्ती 6:8, 32) तो फिर वह क्यों चाहता है कि हम उससे अपनी ज़रूरतों के बारे में निवेदन करें? इसे समझने के लिए, यह मिसाल लीजिए: एक दुकानदार, अपने कुछ ग्राहकों को तोहफे देने की पेशकश रखता है। मगर तोहफा पाने के लिए, ग्राहकों को दुकानदार के पास आकर उससे तोहफा माँगने की ज़रूरत है। जो ग्राहक ऐसा नहीं करना चाहते, वे दिखाते हैं कि उन्हें तोहफे की कोई कदर नहीं। उसी तरह, अगर हम यहोवा से अपनी ज़रूरतों के बारे में निवेदन न करें, तो यह दिखाएगा कि यहोवा से मिलनेवाली चीज़ों के लिए हममें कोई कदर नहीं है। यीशु ने कहा था: “मांगो तो पाओगे।” (यूहन्ना 16:24) माँगने से हम यहोवा पर अपना भरोसा दिखाते हैं कि वह हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा।
हमें किस तरह परमेश्वर के पास आना चाहिए?
5. हमें क्यों यीशु के नाम से प्रार्थना करनी चाहिए?
5 यहोवा ने प्रार्थना के बारे में ढेर सारे कायदे-कानून नहीं बनाए हैं, जिनका हमें सख्ती से पालन करना चाहिए। फिर भी, हमें यह जानने की ज़रूरत है कि उसके पास आने का सही तरीका क्या है। और यह जानकारी बाइबल में दी गयी है। मिसाल के लिए, यीशु ने अपने चेलों को सिखाया: “यदि [तुम] पिता से कुछ मांगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा।” (यूहन्ना 16:23) यहोवा हमसे माँग करता है कि हम यीशु के नाम से प्रार्थना करें। ऐसा करने से हम कबूल करते हैं कि सिर्फ यीशु के ज़रिए ही परमेश्वर सभी इंसानों को आशीषें देगा।
6. प्रार्थना करते वक्त, हमें किस तरीके से खड़ा होना या बैठना चाहिए?
6 प्रार्थना करते वक्त, हमें किस तरीके से खड़ा होना या बैठना चाहिए? बाइबल में ऐसा कुछ नहीं बताया गया है कि हमें किसी खास मुद्रा में रहकर प्रार्थना करनी चाहिए ताकि हमारी प्रार्थनाएँ सुनी जाएँ। (1 राजा 8:22; नहेमायाह 8:6; मरकुस 11:25; लूका 22:41) अहम बात तो यह है कि हमें सच्चे दिल से और सही भावना के साथ प्रार्थना करनी चाहिए।—योएल 2:12, 13.
7. (क) “आमीन” का मतलब क्या है? (ख) प्रार्थना में कब आमीन कहना सही है?
7 प्रार्थना में “आमीन” कहने के बारे में क्या? बाइबल दिखाती है कि प्रार्थना के आखिर में आमीन कहना बिलकुल सही है, खासकर जब हम कई लोगों के सामने प्रार्थना करते हैं। (भजन 72:19; 89:52) इब्रानी शब्द आमीन का मूल अर्थ है, “ऐसा ही हो।” मैकक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया के मुताबिक, प्रार्थना के आखिर में “आमीन” कहना, यह “पुख्ता करता है कि प्रार्थना में कही तमाम बातें सच हैं, और आप उन बातों के पूरा होने के लिए परमेश्वर से अपील करते हैं।” इसलिए प्रार्थना करनेवाला जब आखिर में “आमीन” कहता है, तो वह ज़ाहिर करता है कि उसने जो कुछ कहा वह सच्चे दिल से कहा है। और जब एक मसीही, पूरी कलीसिया की तरफ से प्रार्थना करने के बाद आखिर में आमीन कहता है, तो सुननेवाले भी मन में या फिर ज़ोर से “आमीन” कह सकते हैं। ऐसा करके वे दिखाते हैं कि वे उस प्रार्थना से एकदम सहमत हैं।—1 कुरिन्थियों 14:16.
8. हम कभी-कभी याकूब या इब्राहीम की तरह कैसे प्रार्थना कर सकते हैं, और ऐसी प्रार्थनाओं के ज़रिए हम परमेश्वर को क्या ज़ाहिर करते हैं?
8 परमेश्वर कभी-कभी यह देखना चाहता है कि हम जिस मामले के बारे में प्रार्थना करते हैं, उसे पूरा होते देखने के लिए हमारी इच्छा कितनी गहरी है। इसलिए वह शायद हमारी प्रार्थनाओं का फौरन जवाब न दे। ऐसे में, हमें प्राचीन समय के याकूब की तरह बनना पड़ सकता है जिसने आशीष पाने के लिए सारी रात एक स्वर्गदूत से कुश्ती लड़ी। (उत्पत्ति 32:24-26) या कुछ हालात में हमें इब्राहीम जैसा बनना पड़े। इब्राहीम ने अपने भतीजे, लूत और सदोम में रहनेवाले कोई भी धर्मी इंसान की खातिर यहोवा से बार-बार मिन्नत की। (उत्पत्ति 18:22-33) उसी तरह हम शायद यहोवा को उसके न्याय, निरंतर प्रेम-कृपा और दया का वास्ता देकर उन बातों के बारे में फरियाद करें जो हमारे दिल को अज़ीज़ हों।
हम किस बारे में प्रार्थना कर सकते हैं?
9. प्रार्थना करते वक्त, हमें किन बातों को अहमियत देनी चाहिए?
9 याद कीजिए कि पौलुस ने कहा था: “हर एक बात में तुम्हारे निवेदन . . . परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं।” (फिलिप्पियों 4:6) यह आयत दिखाती है कि हम ज़िंदगी के लगभग हर पहलू के बारे में प्रार्थना कर सकते हैं। लेकिन हमें सबसे पहले यहोवा के नाम और उसके मकसद से जुड़ी बातों के बारे में प्रार्थना करनी चाहिए। इस मामले में दानिय्येल एक बढ़िया मिसाल था। जब इस्राएली अपने किए की सज़ा भुगत रहे थे, तब दानिय्येल ने यहोवा से दया की भीख माँगी और कहा: ‘हे मेरे परमेश्वर, अपने नाम के निमित्त विलम्ब न कर।’ (दानिय्येल 9:15-19) क्या हम भी अपनी प्रार्थनाओं में ज़ाहिर करते हैं कि हम यहोवा के नाम के पवित्र किए जाने और उसकी मरज़ी पूरी होने को अहमियत देते हैं?
10. हम कैसे जानते हैं कि प्रार्थना में अपने लिए गुज़ारिश करना गलत नहीं है?
10 लेकिन प्रार्थना में अपने लिए गुज़ारिश करना भी गलत नहीं है। उदाहरण के लिए, हम परमेश्वर की गूढ़ बातों को समझने के लिए प्रार्थना कर सकते हैं, ठीक जैसे भजनहार ने इन शब्दों में की थी: “मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूंगा और पूर्ण मन से उस पर चलूंगा।” (भजन 119:33, 34; कुलुस्सियों 1:9, 10) धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात, यीशु ने ‘उससे प्रार्थनाएं और बिनती की जो उसे मृत्यु से बचा सकता था।’ (इब्रानियों 5:7) इस तरह, उसने दिखाया कि खतरों या आज़माइशों का सामना करते वक्त परमेश्वर से ताकत के लिए प्रार्थना करना सही है। इसके अलावा, यीशु ने जब अपने चेलों को आदर्श प्रार्थना सिखायी, तो उसने पापों की माफी और हर दिन के भोजन का भी ज़िक्र किया और ये बातें हमारी ज़िंदगी से जुड़ी हुई हैं।
11. प्रार्थना कैसे हमें गलत कामों में फँसने से बचा सकती है?
11 यीशु ने आदर्श प्रार्थना में यह गुज़ारिश करना भी सिखाया: “हमें परीक्षा में न ला; परन्तु बुराई से बचा।” (मत्ती 6:9-13) बाद में, उसने यह सलाह दी: “जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।” (मत्ती 26:41) जब हमें गलत कामों के लिए लुभाया जाता है, तब हमें प्रार्थना करने की सख्त ज़रूरत होती है। हो सकता है, नौकरी की जगह पर या स्कूल में हमें बाइबल सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ करने के लिए लुभाया जाए। जो साक्षी नहीं हैं, वे हमें गलत कामों में शरीक होने के लिए फुसला सकते हैं। शायद हमें कुछ ऐसा करने को कहा जाए जो नैतिक उसूलों के खिलाफ हो। ऐसे हालात का सामना करने के लिए, हमें यीशु की सलाह मानकर परमेश्वर से मदद के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ताकि हम गलत कामों में न फँसें। यह प्रार्थना हमें न सिर्फ किसी परीक्षा के दौरान, बल्कि उससे बहुत पहले भी करनी चाहिए।
12. किन चिंताओं की वजह से हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं, और हम उससे क्या उम्मीद रख सकते हैं?
12 आज, परमेश्वर के सेवकों को तरह-तरह के दबाव और चिंताएँ आ घेरती हैं। बहुतों की चिंता की वजह, बीमारी और मानसिक तनाव होते हैं। चारों तरफ खून-खराबा देखकर हमारा जीना दूभर हो जाता है। पैसे की तंगी की वजह से गुज़ारा करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन जब हम इन चिंताओं को लेकर यहोवा के पास आते हैं, तो वह हमारी बात ध्यान से सुनता है। क्या यह जानकर हमारे दिल को सुकून नहीं मिलता? यहोवा के बारे में भजन 102:17 कहता है: “वह लाचार की प्रार्थना की ओर मुंह करता है, और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता।”
13. (क) किन निजी मामलों के बारे में प्रार्थना करना सही है? (ख) ऐसी एक प्रार्थना की मिसाल दीजिए।
13 दरअसल, ऐसे किसी भी मामले के बारे में प्रार्थना करना सही है, जिसका असर यहोवा के साथ हमारे रिश्ते पर या हमारी उपासना पर पड़ता है। (1 यूहन्ना 5:14) क्या आप शादी या नौकरी के बारे में, या फिर अपनी सेवा बढ़ाने की सोच रहे हैं? तो बेझिझक यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको सही फैसला करने में मदद दे। फिलीपींस में रहनेवाली एक जवान स्त्री की मिसाल लीजिए, जो पूरे समय की सेवा तो करना चाहती थी मगर उसे एक समस्या थी। अपना गुज़ारा करने के लिए उसके पास नौकरी नहीं थी। वह कहती है: “एक शनिवार को मैंने यहोवा से प्रार्थना की कि मैं पायनियर बनना चाहती हूँ। उसी दिन, प्रचार में मुझे एक लड़की मिली। मैंने उसे एक किताब पेश की। अचानक उस लड़की ने मुझसे कहा: ‘सोमवार की सुबह आपको सबसे पहले मेरे स्कूल में आना चाहिए।’ मैंने पूछा: ‘क्यों?’ उसने जवाब दिया कि उसके स्कूल को एक कर्मचारी की सख्त ज़रूरत है। सोमवार के दिन, मैं उस लड़की के स्कूल गयी और मुझे फौरन नौकरी पर रख लिया गया। यह सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि मैं दंग रह गयी।” दुनिया-भर के बेशुमार साक्षियों को भी ऐसा ही अनुभव हुआ है। इसलिए प्रार्थना में अपने दिल की बात, परमेश्वर को बताने से कभी मत हिचकिचाइए!
जब हम पाप करते हैं, तब क्या?
14, 15. (क) पाप करने पर भी एक इंसान को प्रार्थना करना क्यों नहीं बंद करना चाहिए? (ख) अपनी प्रार्थनाओं के अलावा, किसकी प्रार्थना एक इंसान को आध्यात्मिक रूप से चंगा होने में मदद देगी?
14 अगर एक इंसान पाप करता है, तो प्रार्थना उसकी कैसे मदद कर सकती है? कुछ लोग पाप करने पर इतना शर्मिंदा महसूस करते हैं कि वे प्रार्थना करना बंद कर देते हैं। लेकिन ऐसा करना अक्लमंदी नहीं है। इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण लीजिए। हवाई अड्डे पर एक ‘कंट्रोल टावर’ होता है जहाँ बैठे अधिकारी, हवाई जहाज़ की उड़ान के दौरान ज़मीन से हिदायतें देते हैं। इसलिए हवाई जहाज़ चलानेवाले पायलट जानते हैं कि अगर वे गुम हो जाएँ तो इन अधिकारियों से बात करने पर उन्हें मदद मिल सकती है। लेकिन मान लीजिए, एक पायलट गुम होने पर इतना शर्मिंदा महसूस करता है कि वह कंट्रोल टावर के अधिकारियों से संपर्क ही नहीं करता। इससे क्या हो सकता है? एक बहुत ही भयानक हादसा! उसी तरह, अगर एक इंसान पाप करने पर, परमेश्वर से प्रार्थना करने से हिचकिचाता है तो उसे और भी भारी नुकसान हो सकता है। उसे अपने पाप पर इस कदर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए कि वह यहोवा से प्रार्थना करना ही बंद कर दे। दरअसल, परमेश्वर गंभीर पाप करनेवालों को न्यौता देता है कि वे उससे प्रार्थना करें। यशायाह नबी ने अपने दिनों के पापियों को उकसाया कि वे यहोवा को पुकारें, क्योंकि “वह पूरी रीति से . . . क्षमा करेगा।” (यशायाह 55:6, 7) लेकिन हाँ, ‘यहोवा को मनाने से’ पहले एक इंसान को नम्र बनने, पाप का रास्ता छोड़ने और सच्चे दिल से पश्चाताप करने की ज़रूरत है।—भजन 119:58; दानिय्येल 9:13.
15 जब कोई पाप करता है, तो प्रार्थना करना एक और वजह से ज़रूरी हो जाता है। प्रार्थना से उसे दोबारा परमेश्वर के साथ अपने टूटे रिश्ते को जोड़ने में मदद मिलती है। शिष्य याकूब ने ऐसे ही एक शख्स के बारे में कहा कि वह “कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे . . . उसके लिये प्रार्थना करें। . . . और प्रभु उस को उठाकर खड़ा करेगा।” (याकूब 5:14, 15) यह तो ज़रूरी है कि एक इंसान प्रार्थना में यहोवा के सामने अपना पाप कबूल करे, मगर वह प्राचीनों से उसकी तरफ से प्रार्थना करने के लिए भी कह सकता है। इससे उसे आध्यात्मिक रूप से चंगा होने में मदद मिलेगी।
प्रार्थनाओं के जवाब
16, 17. (क) यहोवा कैसे प्रार्थनाओं का जवाब देता है? (ख) कौन-से अनुभव दिखाते हैं कि प्रार्थना और प्रचार काम का गहरा ताल्लुक है?
16 यहोवा प्रार्थनाओं का जवाब कैसे देता है? वह कुछ प्रार्थनाओं का जवाब फौरन देता है और यह साफ ज़ाहिर भी होता है। (2 राजा 20:1-6) लेकिन कुछ प्रार्थनाओं का जवाब वह तुरंत नहीं देता और कई बार वह ऐसे तरीके से जवाब देता है कि हमें मालूम ही नहीं पड़ता। ऐसे में हमें बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करने की ज़रूरत पड़ सकती है, ठीक उस विधवा की तरह जिसके बारे में यीशु ने एक दृष्टांत में बताया कि वह बार-बार एक न्यायी के पास गयी। (लूका 18:1-8) मगर हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि जब हम यहोवा की मरज़ी के मुताबिक उससे प्रार्थना करेंगे, तो वह यह कभी नहीं कहेगा: “मुझे तंग मत कर।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन)—लूका 11:5-9.
17 यहोवा के लोगों ने कई मामलों में देखा है कि परमेश्वर उनकी प्रार्थनाओं का जवाब ज़रूर देता है। उन्हें ऐसा तजुरबा अकसर प्रचार में हुआ है। मिसाल के लिए, फिलीपींस में दो मसीही बहनें, एक दूर-दराज़ इलाके में बाइबल साहित्य बाँट रही थीं। जब उन्होंने एक औरत को ट्रैक्ट दिया, तो उसकी आँखें भर आयीं। उसने बताया: “कल रात ही मैंने भगवान् से प्रार्थना की थी कि मुझे बाइबल के बारे में सीखना है और वह मेरे पास किसी को भेजे। मुझे लगता है कि उसने मेरी प्रार्थना सुन ली।” कुछ ही समय बाद, यह औरत राज्य घर में होनेवाली सभाओं में आने लगी। दक्षिण-पूर्वी एशिया के एक और इलाके में, एक मसीही भाई कड़ी सुरक्षावाली इमारत में प्रचार करने से घबरा रहा था। मगर फिर उसने यहोवा से प्रार्थना की, हिम्मत जुटायी और वह इमारत में घुसा। उसने एक घर का दरवाज़ा खटखटाया और एक जवान स्त्री बाहर आयी। जब भाई ने अपने आने की वजह बतायी तो वह रोने लगी। उस स्त्री ने बताया कि उसे यहोवा के साक्षियों की तलाश थी और उसने परमेश्वर से प्रार्थना की थी कि वह साक्षियों को ढूँढ़ने में उसकी मदद करे। भाई ने खुशी-खुशी उसकी मुलाकात वहाँ की कलीसिया के यहोवा के साक्षियों से करवायी।
18. (क) जब हमें अपनी प्रार्थनाओं के जवाब मिलते हैं, तब हमें क्या करना चाहिए? (ख) अगर हम प्रार्थना करने के हर मौके का फायदा उठाएँ, तो हम किस बात को सच होते देखेंगे?
18 प्रार्थना वाकई एक बढ़िया इंतज़ाम है। और यहोवा हमारी प्रार्थनाओं को सुनने और उनका जवाब देने के लिए तैयार है। (यशायाह 30:18, 19) मगर हमें ध्यान देना चाहिए कि वह कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है। क्यों? क्योंकि कई बार वह इस तरह से जवाब देता है जिसकी हमने शायद ही उम्मीद की हो। फिर भी, जब हमें एहसास होता है कि उसने हमारी प्रार्थना सुन ली है, तो हमें उसका धन्यवाद और उसकी स्तुति करना कभी नहीं भूलना चाहिए। (1 थिस्सलुनीकियों 5:18) और-तो-और, प्रेरित पौलुस की यह सलाह हमेशा याद रखिए: “हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं।” जी हाँ, परमेश्वर से बात करने के हर मौके का फायदा उठाइए। तब आप पौलुस की इस बात को हमेशा सच होते देखेंगे, जो उसने उन लोगों के बारे में कही थी जिन्हें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब मिलता है: “परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को . . . सुरक्षित रखेगी।”—फिलिप्पियों 4:6, 7. (w06 9/1)
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
• अलग-अलग किस्म की प्रार्थनाएँ क्या हैं?
• हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए?
• हम किस बारे में प्रार्थना कर सकते हैं?
• जब एक इंसान पाप करता है, तो प्रार्थना कैसे उसकी मदद करती है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 29 पर तसवीरें]
दिल से की गयी प्रार्थनाएँ, हमें गलत कामों में फँसने से बचाती हैं
[पेज 31 पर तसवीरें]
प्रार्थना के ज़रिए हम परमेश्वर को अपना एहसान ज़ाहिर करते हैं, अपनी चिंताएँ बताते हैं और उससे निवेदन भी करते हैं