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“प्रार्थना के सुननेवाले” के पास कैसे आएँ

“प्रार्थना के सुननेवाले” के पास कैसे आएँ

“प्रार्थना के सुननेवाले” के पास कैसे आएँ

“हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे।”—भजन 65:2.

1. क्या बात इंसानों को धरती के दूसरे जीवित प्राणियों से अलग करती है, और इससे हमें क्या मौका मिलता है?

 धरती पर हज़ारों जीवित प्राणी हैं, मगर उनमें से सिर्फ इंसान में ही अपने सिरजनहार की उपासना करने की काबिलीयत है। केवल इंसानों को अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत का एहसास रहता है और उनमें इसे पूरा करने की तमन्‍ना भी होती है। इसी काबिलीयत की वजह से हमें स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के साथ एक निजी रिश्‍ता कायम करने का सुनहरा मौका मिलता है।

2. पाप की वजह से, परमेश्‍वर के साथ इंसान के रिश्‍ते पर क्या बुरा असर पड़ा?

2 सिरजनहार ने इंसान को अपने साथ बात करने के काबिल बनाया है। आदम और हव्वा को सिद्ध बनाया गया था, यानी उनमें कोई पाप नहीं था। इसलिए वे बेझिझक परमेश्‍वर के पास आकर उससे बात कर सकते थे, ठीक जैसे एक बच्चा बेखटके अपने पिता के पास जाकर उससे बात करता है। लेकिन जब आदम और हव्वा ने पाप किया, तो उन्होंने इस शानदार मौके को हाथ से गँवा दिया। उन्होंने परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़कर उसके साथ अपने करीबी रिश्‍ते को खो दिया। (उत्पत्ति 3:8-13, 17-24) तो क्या इसका यह मतलब हुआ कि आदम की असिद्ध संतान फिर कभी परमेश्‍वर के साथ बात नहीं कर सकती? जी नहीं। यहोवा ने उन्हें अपने पास आने की इजाज़त दी है, मगर एक शर्त पर। वह यह कि वे उसकी कुछ खास माँगें पूरी करें। ये माँगें क्या हैं?

परमेश्‍वर के पास आने की माँगें

3. असिद्ध इंसानों को परमेश्‍वर के पास कैसे आना चाहिए, और कौन-सी मिसाल से यह बात साफ ज़ाहिर होती है?

3 परमेश्‍वर उन असिद्ध इंसानों से क्या माँग करता है, जो उसके पास आकर उससे बात करना चाहते हैं? यह जानने के लिए, आइए हम आदम के बेटे, कैन और हाबिल के साथ हुई एक घटना पर गौर करें। उन दोनों ने परमेश्‍वर के लिए बलिदान चढ़ाकर उसके पास आने की कोशिश की। मगर परमेश्‍वर ने सिर्फ हाबिल का बलिदान कबूल किया, जबकि उसने कैन के बलिदान को ठुकरा दिया। (उत्पत्ति 4:3-5) आखिर, उनके बलिदानों में क्या फर्क था? इब्रानियों 11:4 कहता है: “विश्‍वास ही से हाबील ने कैन से उत्तम बलिदान परमेश्‍वर के लिये चढ़ाया; और उसी के द्वारा उसके धर्मी होने की गवाही भी दी गई।” इससे साफ ज़ाहिर है कि परमेश्‍वर के पास आने की एक माँग है, विश्‍वास। इसके अलावा, एक और माँग के बारे में हम यहोवा की इस बात से जान सकते हैं, जो उसने कैन से कही थी: “यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी?” जी हाँ, अगर कैन खुद को बदलकर भलाई के काम करता और फिर परमेश्‍वर के पास आता, तो वह उसे ज़रूर मंज़ूर करता। मगर कैन ने परमेश्‍वर की सलाह नहीं मानी। इसके बजाय, उसने अपने भाई, हाबिल को मार डाला और नतीजा, उसे उस जगह से बेदखल कर दिया गया जहाँ उसका परिवार रहता था। (उत्पत्ति 4:7-12) इससे साफ है, इंसान की शुरूआत से ही इस बात पर ज़ोर दिया गया कि परमेश्‍वर के पास आने के लिए विश्‍वास का होना, साथ ही भलाई के काम करना ज़रूरी है।

4. परमेश्‍वर के पास आने के लिए, हमें कौन-सी बात कबूल करने की ज़रूरत है?

4 अगर हम परमेश्‍वर के पास आना चाहते हैं, तो इस बात को कबूल करना ज़रूरी है कि हम पापी हैं। सभी इंसान पाप करते हैं और पाप, परमेश्‍वर के पास आने में एक बड़ी रुकावट है। यिर्मयाह नबी ने इस्राएल के बारे लिखा: “हम ने तो अपराध [किया है] . . . तू ने अपने को मेघ से घेर लिया है कि तुझ तक प्रार्थना न पहुंच सके।” (विलापगीत 3:42, 44) इंसान के पापी होने के बावजूद, परमेश्‍वर ने शुरू से खुशी-खुशी उन लोगों की प्रार्थनाएँ कबूल कीं, जो विश्‍वास और सही भावना के साथ उसके पास आए और उसकी आज्ञाएँ मानीं। (भजन 119:145) इनमें से कुछ लोग कौन थे, और उनकी प्रार्थनाओं से हम क्या सीख सकते हैं?

5, 6. इब्राहीम से हम परमेश्‍वर के पास आने के बारे में क्या सीख सकते हैं?

5 ऐसा ही एक शख्स था, इब्राहीम। जब वह परमेश्‍वर के पास आया, तो परमेश्‍वर ने उसे कबूल किया। हम ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे ‘मेरा मित्र’ कहा। (यशायाह 41:8, NHT) इब्राहीम से हम परमेश्‍वर के पास आने के बारे में क्या सीख सकते हैं? इस वफादार कुलपिता ने यहोवा से एक वारिस माँगा: “मैं तो निर्वंश हूं, . . . सो तू मुझे क्या देगा?” (उत्पत्ति 15:2, 3; 17:18) एक और मौके पर, जब परमेश्‍वर ने उसे बताया कि वह सदोम और अमोरा के दुष्टों को उनके किए की सज़ा देनेवाला है, तब इब्राहीम ने अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए पूछा कि किन लोगों को बचाया जाएगा। (उत्पत्ति 18:23-33) उसने दूसरों की खातिर परमेश्‍वर से फरियाद भी की। (उत्पत्ति 20:7,17) इसके अलावा हाबिल की तरह, इब्राहीम ने कई बार प्रार्थना करने के साथ-साथ परमेश्‍वर के लिए बलिदान भी चढ़ाए।—उत्पत्ति 22:9-14.

6 इन सभी मौकों पर, इब्राहीम ने बिना हिचकिचाए और खुलकर यहोवा से बात की। मगर साथ ही, वह नम्र बना रहा और उसने हमेशा याद रखा कि वह अपने सिरजनहार के सामने कुछ भी नहीं है। गौर कीजिए कि उत्पत्ति 18:27 में उसने यहोवा से कितने आदर के साथ बात की: “हे प्रभु, सुन, मैं तो मिट्टी और राख हूं; तौभी मैं ने इतनी ढिठाई की कि तुझ से बातें करूं।” क्या हमें भी ऐसा बढ़िया रवैया नहीं दिखाना चाहिए? बेशक!

7. प्राचीन समय के कुलपिताओं ने किन-किन मामलों के बारे में यहोवा से प्रार्थनाएँ की थीं?

7 प्राचीन समय के कुलपिताओं ने तरह-तरह के मामलों के बारे में प्रार्थनाएँ कीं, और यहोवा ने उनकी सुनीं। जैसे, याकूब ने अपनी एक प्रार्थना में शपथ खायी। उसने पहले परमेश्‍वर से मदद माँगी और फिर पूरी गंभीरता के साथ वादा किया: “जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्‍य ही तुझे दिया करूंगा।” (उत्पत्ति 28:20-22) कुछ समय बाद जब वह अपने भाई से मिलने जा रहा था, तब उसने हिफाज़त के लिए यहोवा से गिड़गिड़ाकर मिन्‍नत की: “मेरी बिनती सुनकर मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से बचा: मैं तो उस से डरता हूं।” (उत्पत्ति 32:9-12) कुलपिता अय्यूब अपने परिवार की तरफ से यहोवा के पास आता और बलिदान चढ़ाता था। जब उसके तीन साथियों ने गलत बातें कहकर पाप किया, तब अय्यूब ने उनकी खातिर परमेश्‍वर से प्रार्थना की और “यहोवा ने अय्यूब की प्रार्थना ग्रहण की।” (अय्यूब 1:5; 42:7-9) ये सभी वाकये दिखाते हैं कि हम अपनी प्रार्थनाओं में किन-किन मामलों को शामिल कर सकते हैं। हमें यह भी देखने को मिलता है कि यहोवा उन लोगों की प्रार्थनाओं को कबूल करने को तैयार रहता है जो सही ढंग से उसके पास आते हैं।

व्यवस्था वाचा के मुताबिक

8. व्यवस्था वाचा के मुताबिक, लोगों की तरफ से कौन परमेश्‍वर से बात करते थे?

8 यहोवा ने इस्राएल जाति को मिस्र की गुलामी से छुड़ाने के बाद, उसे अपनी कानून-व्यवस्था दी। उस व्यवस्था में लिखा था कि लोगों को ठहराए हुए याजकवर्ग के ज़रिए ही परमेश्‍वर के पास आना है। कुछ लेवियों को, लोगों के ऊपर याजक ठहराया गया था। मगर जब पूरी जाति को लेकर कोई अहम मसला उठ खड़ा होता, तो उस वक्‍त लेवी नहीं बल्कि इस्राएलियों का नुमाइंदा परमेश्‍वर से बात करता था। यह नुमाइंदा कभी एक राजा होता था, तो कभी एक नबी। (1 शमूएल 8:21, 22; 14:36-41; यिर्मयाह 42:1-3) मिसाल के लिए, मंदिर के समर्पण के वक्‍त राजा सुलैमान ने दिल की गहराई से यहोवा से प्रार्थना की। और यहोवा ने यह दिखाने के लिए कि उसने सुलैमान की प्रार्थना कबूल की है, मंदिर को अपने तेज से भर दिया और कहा: “जो प्रार्थना इस स्थान में की जाएगी, उस पर . . . मेरे कान लगे रहेंगे।”—2 इतिहास 6:12–7:3, 15.

9. मंदिर के पवित्रस्थान में सही तरीके से यहोवा के पास आने के लिए क्या माँग की गयी थी?

9 यहोवा ने इस्राएल जाति को जो कानून-व्यवस्था दी, उसमें उसने पवित्रस्थान में सही तरीके से अपने पास आने की एक माँग भी शामिल की। वह माँग क्या थी? उसमें महायाजक को आज्ञा दी गयी थी कि वह रोज़ जानवरों की बलि चढ़ाने के अलावा, दो बार यानी सुबह-शाम यहोवा के सामने सुगंधित धूप जलाया करे। कुछ समय बाद, याजक भी हर दिन यह सेवा करने लगे। लेकिन उन्हें सिर्फ प्रायश्‍चित के दिन यह सेवा नहीं करनी थी। अगर याजक धूप जलाकर यहोवा के लिए श्रद्धा दिखाने से चूक जाते, तो वह उनकी सेवा से कतई खुश नहीं होता।—निर्गमन 30:7, 8; 2 इतिहास 13:11.

10, 11. हमारे पास क्या सबूत है कि यहोवा ने एक-एक इंसान की प्रार्थनाएँ कबूल की थीं?

10 क्या प्राचीन इस्राएल में लोग सिर्फ ठहराए गए नुमाइंदों के ज़रिए ही परमेश्‍वर के पास आ सकते थे? जी नहीं। बाइबल बताती है कि यहोवा को एक-एक इंसान की प्रार्थनाओं को कबूल करने में खुशी मिली थी। मंदिर के समर्पण की अपनी प्रार्थना में, सुलैमान ने यहोवा से फरियाद की: ‘यदि कोई मनुष्य वा तेरी सारी प्रजा इस्राएल, गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाए; तो तू अपने स्वर्गीय निवासस्थान से उनकी सुन लेना।’ (2 इतिहास 6:29, 30) लूका की किताब में दर्ज़ एक रिकॉर्ड बताता है कि जब यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का पिता, जकरयाह मंदिर के पवित्रस्थान में धूप जला रहा था, तब “बाहर” आम लोगों की एक बड़ी भीड़ “प्रार्थना कर रही थी।” इससे पता चलता है कि उस वक्‍त, यह एक आम दस्तूर बन चुका था कि जब भी सोने की वेदी पर यहोवा को धूप चढ़ाया जाता, तो लोग पवित्रस्थान के बाहर जमा होकर प्रार्थना करते थे।—लूका 1:8-10.

11 इसलिए जब लोगों ने यहोवा के पास आने के लिए सही तरीका अपनाया, तब यहोवा ने खुशी-खुशी उनकी प्रार्थनाएँ कबूल कीं, फिर चाहे एक नुमाइंदा पूरी जाति के लिए प्रार्थना कर रहा हो या एक इंसान खुद के लिए। आज, हम व्यवस्था वाचा के अधीन नहीं हैं। फिर भी, प्राचीन इस्राएल के लोग जिस तरीके से परमेश्‍वर के पास आते थे, उससे हम प्रार्थना के बारे में कुछ अहम सबक सीख सकते हैं।

मसीही इंतज़ाम के मुताबिक

12. मसीहियों के लिए यहोवा के पास आने का क्या इंतज़ाम किया गया है?

12 आज हम एक ऐसे इंतज़ाम के अधीन हैं जिसकी शुरूआत मसीह ने की थी। हमारे समय में सचमुच का ऐसा कोई मंदिर नहीं है जिसमें याजक परमेश्‍वर के लोगों की तरफ से प्रार्थना करते हैं या जिसकी तरफ मुड़कर हम खुद परमेश्‍वर से बिनती कर सकते हैं। फिर भी, यहोवा ने हमारे लिए एक ऐसा इंतज़ाम किया है जिसके ज़रिए हम उसके पास आ सकते हैं। वह इंतज़ाम क्या है? सामान्य युग 29 में जब मसीह का अभिषेक हुआ और उसे महायाजक ठहराया गया, तब उसी पल से एक आत्मिक मंदिर ने काम करना शुरू कर दिया था। * यह आत्मिक मंदिर, उपासना में यहोवा के पास आने का एक नया इंतज़ाम था और इसकी बुनियाद थी, यीशु मसीह का प्रायश्‍चित बलिदान।—इब्रानियों 9:11, 12.

13. यरूशलेम के मंदिर और आत्मिक मंदिर की एक मिलती-जुलती बात क्या है, जो प्रार्थना से जुड़ी है?

13 यरूशलेम के मंदिर की बहुत-सी बातें, आत्मिक मंदिर के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाती हैं। उन पहलुओं में से एक है, प्रार्थना। (इब्रानियों 9:1-10) मिसाल के लिए, मंदिर के पवित्रस्थान में धूप की वेदी पर सुबह-शाम जो धूप जलाया जाता था, वह आज किस बात को दर्शाता है? प्रकाशितवाक्य किताब कहती है: “धूप . . . पवित्र लोगों की प्रार्थनाएं हैं।” (प्रकाशितवाक्य 5:8; 8:3, 4) दाऊद ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा: “मेरी प्रार्थना तेरे साम्हने सुगन्ध धूप . . . ठहरे!” (भजन 141:2) तो फिर, मसीही इंतज़ाम में सुगंधित धूप का मतलब है, यहोवा से की गयी ऐसी प्रार्थनाएँ और स्तुति जो उसे मंज़ूर हैं।—1 थिस्सलुनीकियों 3:10.

14, 15. (क) अभिषिक्‍त मसीही और (ख) ‘अन्य भेड़’ के लोग जिस तरीके से यहोवा के पास आते हैं, उसके बारे में क्या कहा जा सकता है?

14 इस आत्मिक मंदिर में कौन लोग, परमेश्‍वर के पास आ सकते हैं? यरूशलेम के मंदिर के भीतरी आँगन में सेवा करने का सम्मान याजकों और लेवियों, दोनों को मिला था, मगर पवित्रस्थान में दाखिल होने की इजाज़त सिर्फ याजकों को दी गयी थी। आत्मिक मंदिर का भीतरी आँगन और पवित्रस्थान, उन अभिषिक्‍त मसीहियों की अनोखी आध्यात्मिक हालत को दर्शाता है, जिन्हें स्वर्ग में जाने की आशा है। इसी हालत के रहते हुए, वे परमेश्‍वर से प्रार्थना और उसकी महिमा कर पाते हैं।

15 लेकिन ‘अन्य भेड़’ के लोगों के बारे में क्या जिन्हें इसी धरती पर जीने की आशा है? (यूहन्‍ना 10:16, NW) यशायाह नबी ने बताया था कि “अन्त के दिनों में” बहुत-सी जातियों के लोग यहोवा की उपासना करने के लिए आएँगे। (यशायाह 2:2, 3) उसने यह भी लिखा कि “परदेशी” भी यहोवा के साथ मिल जाएँगे। यह दिखाने के लिए कि वह उन्हें कबूल करने को तैयार है, परमेश्‍वर ने कहा: “उनको मैं . . . अपने प्रार्थना के भवन में आनन्दित करूंगा।” (यशायाह 56:6, 7) इस बारे में और भी ब्यौरेदार जानकारी, प्रकाशितवाक्य 7:9-15 में दी गयी है। इस ब्यौरे में “हर एक जाति” से निकले लोगों की एक ऐसी “बड़ी भीड़” के बारे में बताया गया है, जो आत्मिक मंदिर के बाहरी आँगन में खड़े रहकर “दिन रात” परमेश्‍वर की उपासना और उससे प्रार्थना करती है। आज परमेश्‍वर के सेवकों के लिए यह क्या ही दिलासे की बात है कि वे बेझिझक यहोवा के पास आ सकते हैं और यह पक्का यकीन रख सकते हैं कि वह उनकी प्रार्थनाएँ ज़रूर सुनता है!

परमेश्‍वर कौन-सी प्रार्थनाओं को कबूल करता है?

16. शुरू के मसीहियों की प्रार्थनाओं से हम क्या सीख सकते हैं?

16 शुरू के मसीही लगातार प्रार्थना करनेवाले लोग थे। मगर वे किन विषयों के बारे में प्रार्थना करते थे? मसीही प्राचीनों ने परमेश्‍वर से निर्देशन माँगा ताकि वे काबिल पुरुषों का चुनाव कर सकें और उन्हें संगठन की ज़िम्मेदारियाँ सौंप सकें। (प्रेरितों 1:24, 25; 6:5, 6) इपफ्रास ने अपने संगी विश्‍वासियों के लिए प्रार्थना की। (कुलुस्सियों 4:12) यरूशलेम की कलीसिया के मसीहियों ने कैद में बंद, पतरस के लिए दुआ की। (प्रेरितों 12:5) शुरू के मसीहियों ने परमेश्‍वर से गुज़ारिश की कि वह उन्हें विरोध के बावजूद प्रचार करते रहने की हिम्मत दे। उन्होंने यहोवा से दरखास्त की: “हे प्रभु, उन की धमकियों को देख; और अपने दासों को यह बरदान दे, कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएं।” (प्रेरितों 4:23-30) शिष्य याकूब ने मसीहियों को उकसाया कि जब भी वे किसी आज़माइश से गुज़रें, तो यहोवा से बुद्धि के लिए गुज़ारिश करें। (याकूब 1:5) क्या आप भी ऐसे मामलों के बारे में यहोवा से प्रार्थना करते हैं?

17. यहोवा किन लोगों की प्रार्थनाओं को कबूल करता है?

17 परमेश्‍वर सभी प्रार्थनाओं को कबूल नहीं करता। इसलिए अगर हम चाहते हैं कि वह हमारी प्रार्थनाओं को कबूल करे, तो हमें क्या करने की ज़रूरत है? पुराने ज़माने में, यहोवा ने जिन वफादार लोगों की प्रार्थनाएँ सुनीं, उन्होंने सच्चे दिल से और सही भावना के साथ बिनती की। उन्होंने परमेश्‍वर पर विश्‍वास दिखाया और इसे ज़ाहिर करने के लिए भलाई के काम भी किए। इसलिए आज हम यकीन रख सकते हैं कि अगर हम भी इन वफादार लोगों की मिसाल पर चलकर यहोवा से प्रार्थना करें, तो वह हमारी ज़रूर सुनेगा।

18. अगर एक मसीही चाहता है कि परमेश्‍वर उसकी प्रार्थनाएँ सुने, तो उसे कौन-सी माँग पूरी करने की ज़रूरत है?

18 इसके अलावा, मसीहियों को एक और माँग पूरी करनी है। इस बारे में प्रेरित पौलुस ने कहा: ‘उस ही के द्वारा हमारी एक आत्मा में पिता के पास पहुंच होती है।’ जब पौलुस ने “उस ही के द्वारा” लिखा, तो वह किसकी तरफ इशारा कर रहा था? यीशु मसीह की तरफ। (इफिसियों 2:13, 18) जी हाँ, हम बेझिझक पिता के पास सिर्फ यीशु के ज़रिए आ सकते हैं।—यूहन्‍ना 14:6; 15:16; 16:23, 24.

19. (क) यहोवा को कब इस्राएलियों के धूप से घिन आती थी? (ख) हम क्या कर सकते हैं ताकि हमारी प्रार्थनाएँ यहोवा के लिए सुगंधित धूप की तरह हों?

19 जैसे पहले भी बताया गया था, इस्राएली याजक जो धूप जलाते थे, वह आज परमेश्‍वर के वफादार सेवकों की उन प्रार्थनाओं को दर्शाता है जो परमेश्‍वर को मंज़ूर हैं। मगर कभी-कभी यहोवा को इस्राएलियों के धूप से घिन आती थी। भला क्यों? क्योंकि वे एक तरफ मंदिर में धूप जलाते थे, तो दूसरी तरफ मूर्तियों के आगे सिजदा करते थे। (यहेजकेल 8:10, 11) उसी तरह, आज जो लोग यहोवा की सेवा करने का दावा करते हैं, मगर साथ ही उसके नियम के खिलाफ काम करते हैं, उनकी प्रार्थनाओं से यहोवा को मानो बू आती है। (नीतिवचन 15:8) इसलिए आइए हम अपनी ज़िंदगी के हर दायरे में शुद्धता बनाए रखें, ताकि हमारी प्रार्थनाएँ हमेशा परमेश्‍वर के लिए सुगंधित धूप की तरह हों। यहोवा उन लोगों की प्रार्थनाएँ सुनकर खुश होता है, जो उसके धर्मी मार्गों पर चलते हैं। (यूहन्‍ना 9:31) लेकिन प्रार्थना से जुड़े कुछ सवाल अब भी बाकी हैं। जैसे, हमें परमेश्‍वर से प्रार्थना कैसे करनी चाहिए? हम किस बारे में प्रार्थना कर सकते हैं? और परमेश्‍वर कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है? इन और इस तरह के और भी सवालों की चर्चा अगले लेख में की जाएगी। (w06 9/1)

[फुटनोट]

^ मई 15, 2001 की प्रहरीदुर्ग का पेज 27 देखिए।

क्या आप समझा सकते हैं?

• असिद्ध इंसान परमेश्‍वर के पास उस तरीके से कैसे आ सकते हैं, जो उसे मंज़ूर हो?

• प्रार्थना के मामले में, हम प्राचीन समय के कुलपिताओं की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

• हम शुरू के मसीहियों की प्रार्थनाओं से क्या सीखते हैं?

• हमारी प्रार्थनाएँ कब परमेश्‍वर के लिए सुगंधित धूप की तरह होती हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

परमेश्‍वर ने क्यों हाबिल के बलिदान को कबूल किया, मगर कैन के नहीं?

[पेज 24 पर तसवीर]

“मैं तो मिट्टी और राख हूं”

[पेज 25 पर तसवीर]

“उसका दशमांश मैं अवश्‍य ही तुझे दिया करूंगा”

[पेज 26 पर तसवीर]

क्या आपकी प्रार्थनाएँ, यहोवा के लिए सुगंधित धूप की तरह हैं