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बच्चों की परवरिश करने के लिए भरोसेमंद सलाह

बच्चों की परवरिश करने के लिए भरोसेमंद सलाह

बच्चों की परवरिश करने के लिए भरोसेमंद सलाह

रूथ उस वक्‍त को याद करती है जब वह पहली बार माँ बननेवाली थी। वह कहती है: “तब मैं 19 साल की थी, और अपने परिवार और करीबी रिश्‍तेदारों से बहुत दूर रहती थी। मैं बहुत घबरायी हुई थी क्योंकि मुझे माँ बनने के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था।” माँ-बाप की एकलौती संतान होने की वजह से रूथ ने माँ बनने के बारे में ज़्यादा सोचा नहीं था। ऐसे में, वह भरोसेमंद सलाह के लिए किसके पास जा सकती थी?

दूसरी तरफ जैन नाम का एक पिता, जिसके दो बच्चे अब बड़े हो गए हैं, बीते दिनों के बारे में कहता है: “शुरू-शुरू में मुझे पूरा भरोसा था कि मैं अपने बच्चों की परवरिश करने के काबिल हूँ। लेकिन बहुत जल्द मुझे एहसास हुआ कि उनकी परवरिश में आनेवाली समस्याओं का सामना करना मुझे नहीं आता था।” चाहे कुछ माता-पिता रूथ की तरह महसूस करें या जैन की तरह, सवाल यह है कि वे अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए किससे मदद ले सकते हैं?

आज बहुत-से माता-पिता सलाह के लिए इंटरनेट पर जाते हैं। लेकिन, आप शायद सोच रहे होंगे कि उसमें दी सलाह पर कितना भरोसा किया जा सकता है। आपका ऐसा सोचना वाजिब है क्योंकि क्या पता, कौन आपको इंटरनेट पर सलाह दे रहा है और खुद उसे अपने बच्चों की परवरिश करने में कितनी कामयाबी मिली है। बेशक आपको इन मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इसका सीधा असर आपके परिवार पर पड़ सकता है। जैसा कि हमने पिछले लेख में देखा था, कभी-कभी विशेषज्ञों की सलाह भी निराश कर देती है। तो फिर, आप किससे सलाह माँग सकते हैं?

बच्चों की परवरिश के बारे में सबसे उम्दा सलाह सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर ही दे सकता है, क्योंकि उसी ने पहले परिवार की शुरूआत की थी। (इफिसियों 3:15) दरअसल उसे ही सही मायनों में विशेषज्ञ कहा जा सकता है। वह अपने वचन, बाइबल में भरोसेमंद और कारगर सलाह देता है जिन्हें लागू करने से अच्छे नतीजे मिलते हैं। (भजन 32:8; यशायाह 48:17, 18) लेकिन उन सलाहों को मानना हमारी ज़िम्मेदारी है।

माता-पिता को क्या करना चाहिए जिससे कि उनके बच्चे समझदार बनें और परमेश्‍वर का भय मानना सीखें? यही सवाल कई माता-पिताओं से पूछा गया और उनके जवाब यहाँ दिए गए हैं। उनका कहना है कि बाइबल के सिद्धांतो को लागू करने से ही उन्हें कामयाबी मिली है। वे इस नतीजे पर पहुँचे कि आज भी बाइबल की सलाह उतनी ही भरोसेमंद है जितनी कि तब थी, जब बाइबल लिखी गयी थी।

बच्चों के साथ वक्‍त बिताइए

कैथरन दो बच्चों की माँ है। जब उससे पूछा गया कि बाइबल की किस सलाह से उसे सबसे ज़्यादा फायदा हुआ है, तो उसने तुरंत व्यवस्थाविवरण 6:7 का हवाला दिया। यह आयत कहती है: “तू [बाइबल के सिद्धांत] अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” कैथरन कहती है कि इस आयत में दी सलाह से उसे एहसास हुआ कि उसे अपने बच्चों के साथ वक्‍त बिताना चाहिए।

आप शायद सोचें: ‘यह कहना तो आसान है, पर करना मुश्‍किल।’ आज बहुत-से परिवारों में घर का खर्चा चलाने के लिए माँ और पिता दोनों को नौकरी करनी पड़ती है। जब माता-पिता को फुरसत के दो पल नहीं मिलते, तो भला वे अपने बच्चों को समय कैसे दे सकते हैं? टॉरलिफ, जिसका बेटा अब खुद एक पिता है, कहता है कि अपने बच्चों को समय देने के लिए व्यवस्थाविवरण 6:7 की सलाह मानना ज़रूरी है। उस सलाह के मुताबिक, अगर आप अपने बच्चों को हर जगह अपने साथ ले जाएँ, तो उनसे बातें करने के आपको ढेरों मौके मिलेंगे। टॉरलिफ पुराने दिनों को याद करता है: “जब घर पर कोई काम करना होता था, तब मैं और मेरा बेटा साथ-मिलकर उसे पूरा करते थे। हम पूरे परिवार के साथ बाहर घूमने जाते और खाना भी साथ मिलकर खाते थे।” इसका नतीजा क्या हुआ? टॉरलिफ कहता है: “हमारे बेटे को हमसे अपने दिल की बात कहने में कभी कोई झिझक महसूस नहीं हुई।”

लेकिन तब क्या जब माता-पिता और बच्चों में खुलकर बातचीत नहीं होती और अगर होती भी है, तो वे एक-दूसरे को अपनी बातों से चोट पहुँचाते हैं? ऐसा अकसर तब होता है जब बच्चे जवान होने लगते हैं। इस समस्या का भी यही उपाय है, उनके साथ ज़्यादा-से-ज़्यादा वक्‍त बिताना। कैथरन का पति, कॆन उन दिनों को याद करता है जब उनकी बेटी किशोरावस्था के मुश्‍किल दौर से गुज़र रही थी। तब उसे अपने पापा से शिकायत थी कि वे उसकी बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। बहुत-से किशोरों को अपने माँ-बाप से यही शिकायत रहती है। ऐसे में कॆन क्या कर सकता था? वह कहता है: “मैंने फैसला किया कि मैं अपनी बेटी के साथ ज़्यादा-से-ज़्यादा समय बिताऊँगा। इस दौरान मैंने उसके विचारों, उसकी भावनाओं और परेशानियों के बारे में उससे बातें की। इससे उसकी शिकायत दूर हो गयी।” (नीतिवचन 20:5) लेकिन कॆन मानता है कि यह तरीका इसलिए सफल हुआ क्योंकि उनके घर में हमेशा खुलकर बातचीत होती थी। वह कहता है: “शुरू से अपनी बेटी के साथ मेरा एक अच्छा रिश्‍ता था, इसलिए उसे लगा कि वह अपने पापा से बेझिझक अपने दिल की बात कह सकती है।”

हाल ही में किए एक अध्ययन से एक दिलचस्प बात सामने आयी है। अध्ययन के मुताबिक माता-पिताओं के मुकाबले किशोरों में यह शिकायत करने की गुंजाइश तीन गुना ज़्यादा होती है कि माँ-बाप और बच्चे एक-दूसरे के साथ ज़्यादा वक्‍त नहीं बिताते। तो क्यों न बाइबल की सलाह को मानकर चलें? चाहे आप आराम कर रहे हों या काम, घर पर बैठे हों या कहीं जा रहे हों, चाहे सुबह का वक्‍त हो या रात का—हर मौके पर अपने बच्चों को ज़्यादा-से-ज़्यादा समय देने की कोशिश कीजिए। अगर हो सके तो, जहाँ कहीं भी आप जाते हैं उन्हें अपने साथ ले जाइए। व्यवस्थाविवरण 6:7 से साफ पता चलता है कि अपने बच्चों के साथ समय बिताना निहायत ज़रूरी है।

उन्हें अच्छे आदर्श सिखाइए

मारयो दो बच्चों का पिता है। वह ऊपर दी सलाह से मिलती-जुलती एक सलाह देता है: “अपने बच्चों को ढेर सारा प्यार दीजिए और उन्हें पढ़कर सुनाइए।” लेकिन ऐसा आपको सिर्फ अपने बच्चे की दिमागी काबिलीयत बढ़ाने के लिए नहीं करना चाहिए। बल्कि आपको उन्हें सही-गलत में फर्क करना भी सिखाना चाहिए। मारयो आगे कहता है: “इसका अच्छा तरीका है, अपने बच्चों के साथ बाइबल से अध्ययन करना।”

इसलिए, बाइबल माता-पिताओं को सलाह देती है: “पिताओ, अपने बच्चों को क्रोध न दिलाओ, वरन्‌ प्रभु की शिक्षा, और अनुशासन में उन का पालन-पोषण करो।” (इफिसियों 6:4, NHT) आज बहुत-से परिवारों में, माता-पिता अपने बच्चों को सही-गलत के बारे में शिक्षा देना ज़रूरी नहीं समझते। कुछ माता-पिता मानते हैं कि जब बच्चे बड़े हो जाएँगे, तो वे खुद-ब-खुद सीख जाएँगे कि उन्हें किन आदर्शों पर चलना है। लेकिन क्या इस बात में आपको कोई तुक नज़र आता है? जिस तरह छोटे बच्चों को तंदुरुस्त होने के लिए सही पोषण की ज़रूरत होती है, उसी तरह उनके दिलो-दिमाग को भी सही शिक्षा की ज़रूरत होती है। अगर आप अपने बच्चों को नैतिक आदर्श नहीं सिखाएँगे, तो फिर वे अपने स्कूल के साथियों, टीचरों या टी.वी. पर दिखाए लोगों से सीखेंगे।

बाइबल, माता-पिताओं की मदद कर सकती है ताकि वे अपने बच्चों को सही-गलत में फर्क करना सिखा सकें। (2 तीमुथियुस 3:16, 17) जेफ एक तजुरबेकार मसीही प्राचीन है और उसने अपने दो बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया है। वह बच्चों को सही आदर्श सिखाने के लिए बाइबल का इस्तेमाल करने की सलाह देता है। वह कहता है: “बाइबल का इस्तेमाल करने से बच्चे समझ पाते हैं कि किसी मामले के बारे में न सिर्फ उनके मम्मी-पापा, बल्कि सबसे बढ़कर यहोवा कैसा महसूस करता है। हमने गौर किया है कि बाइबल में दिलो-दिमाग पर गहरा असर करने की अनोखी ताकत है। जब हमें अपने किसी बच्चे की गलत सोच या बर्ताव को ठीक करना होता था, तो हम समय निकालकर बाइबल से एक वचन ढूँढ़ते थे। फिर हम अकेले में उसे वह वचन पढ़ने को कहते थे। अकसर ऐसा होता था कि वचन पढ़ने के बाद उसे अपनी गलती का एहसास हो जाता था और उसकी आँखों से आँसू बहने लगते थे। हम यह देखकर हैरान रह जाते थे। सचमुच, बाइबल ने हमारे बच्चों पर जितना गहरा असर किया, उतना शायद ही हमारे बोलने या कुछ करने से होता।”

इब्रानियों 4:12 समझाता है: ‘परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।’ लिहाज़ा, बाइबल का संदेश उन लोगों की विचारधारा और अनुभव नहीं हैं जिन्हें परमेश्‍वर ने बाइबल को लिखने के लिए प्रेरित किया था। बल्कि इसमें दिया संदेश हमें बताता है कि नैतिक मामलों के बारे में परमेश्‍वर की सोच क्या है। इसीलिए बाइबल में दी सलाह, दूसरी सलाहों से बिलकुल अलग है। अपने बच्चों को बाइबल से सिखाकर आप, उन्हें मामलों को परमेश्‍वर की नज़र से देखने में मदद करते हैं। बाइबल का इस्तेमाल करने से आपकी दी हुई तालीम असरदार साबित होती है और आप अपने बच्चे के दिल तक पहुँचने में कामयाब होते हैं।

कैथरन, जिसका पहले ज़िक्र किया गया है, इस बात से पूरी तरह सहमत है। वह कहती है: “मामला जितना मुश्‍किल होता था, उतना ही ज़्यादा हम परमेश्‍वर के वचन से सलाह लेते थे। ऐसा करने से मामला जल्द ही निपट जाता था!” क्यों न आप, अपने बच्चों को सही-गलत के बारे में सिखाते वक्‍त, बाइबल का ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेमाल करें?

कोमलता दिखाइए

बच्चों की परवरिश करने में प्रेरित पौलुस एक और फायदेमंद और ज़रूरी सलाह देता है। उसने अपने मसीही भाइयों को उकसाया: “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो।” (फिलिप्पियों 4:5) बेशक इसका मतलब है कि हमारी कोमलता हमारे बच्चों पर भी प्रगट हो। और याद रखिए कोमलता में ‘ऊपर से आने वाले ज्ञान’ या परमेश्‍वर की बुद्धि झलकती है।—याकूब 3:17.

अपने बच्चों को तालीम देने में कोमलता का गुण कैसे काम आता है? हालाँकि हम अपने बच्चों की पूरी-पूरी मदद करते हैं, मगर हम उन्हें अपनी मुट्ठी में बंद नहीं रखना चाहते। उदाहरण के लिए मारयो, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था और जो यहोवा का एक साक्षी है, याद करता है: “हमने हमेशा अपने बच्चों को बपतिस्मा लेने, पूरे समय की सेवा करने और दूसरे आध्यात्मिक लक्ष्य हासिल करने का बढ़ावा दिया था। लेकिन हमने उन्हें साफ-साफ बता दिया था कि सही वक्‍त आने पर उन्हें खुद फैसला करना होगा कि क्या वे उन लक्ष्यों को हासिल करेंगे।” इसका नतीजा क्या हुआ? आज उनके दोनों बच्चे पूरे समय की सेवा कर रहे हैं।

बाइबल, कुलुस्सियों 3:21 में पिताओं को खबरदार करती है: “अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए।” कैथरन को यह आयत बेहद पसंद है। जब एक माँ या पिता के सब्र का बाँध टूटने लगता है, तो वह बड़ी आसानी से अपने बच्चों से नाराज़ हो सकता है और उनसे हद-से-ज़्यादा की माँग कर सकता है। लेकिन कैथरन कहती है: “आप खुद से जितना उम्मीद करते हैं, उतना अपने बच्चों से उम्मीद मत कीजिए।” कैथरन भी यहोवा की एक साक्षी है और वह कहती है: “कोशिश कीजिए कि यहोवा की सेवा करने में आपके बच्चों को खुशी मिले।”

जेफ, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहता है: “यह तब की बात थी जब हमारे बच्चे बड़े हो रहे थे। मेरे एक अच्छे दोस्त ने मुझसे कहा कि उसके बच्चे उससे जो भी माँगते थे, उसे अकसर ‘ना’ कहना पड़ता था। इससे उनके बच्चे निराश हो जाते थे और उन्हें लगता था कि उन्हें कोई छूट नहीं दी जाती। ऐसी नौबत हमारे बच्चों के साथ न आए, इसके लिए उसने सलाह दी कि जहाँ तक सही हो, बच्चे आपसे जो माँगते हैं, उसे पूरा करने की कोशिश कीजिए।”

जेफ ने कहा: “हमें उसकी सलाह अच्छी लगी। हम ऐसे मौके ढूँढ़ने लगे जिससे कि हमारे बच्चे दूसरों के साथ मिलकर कुछ मज़ा कर सकते थे और जिससे हमें कोई एतराज़ नहीं होता था। इसलिए हम अपने बच्चों से कहते थे: ‘क्या तुम्हें मालूम है कि फलाँ-फलाँ यह करने जा रहा है या कहीं घूमने जा रहा है? तुम भी उसके साथ क्यों नहीं जाते?’ या अगर बच्चे खुद हमसे कहते कि उन्हें कहीं घूमने जाना है, तो थके-हारे होने के बावजूद हम उनके साथ जाते थे। हम ऐसा सिर्फ इसलिए करते थे क्योंकि हम उनका दिल तोड़ना नहीं चाहते थे। कोमलता दिखाने का यही मतलब है कि हम निष्पक्ष हों, दूसरों का लिहाज़ करें, और बाइबल सिद्धांतों को तोड़े बगैर दूसरों की मानें।

भरोसेमंद सलाह से फायदा पाइए

इस लेख में बताए बहुत-से माता-पिता अब दादा-दादी, नाना-नानी बन चुके हैं। उन्हें यह देखकर बेहद खुशी होती है कि बाइबल के इन्हीं सिद्धांतों से अब उनके बच्चों को भी कामयाब माता-पिता बनने में मदद मिली है। क्या आप बाइबल की सलाह से फायदा पाएँगे?

जब रूथ, जिसका ज़िक्र लेख की शुरूआत में किया गया था, माँ बनी तब उसे और उसके पति को लगा कि उनकी मदद करनेवाला कोई नहीं था। लेकिन ऐसी बात बिलकुल नहीं थी क्योंकि उनके पास परमेश्‍वर के वचन, बाइबल की बढ़िया सलाह मौजूद थी। यहोवा के साक्षियों ने बाइबल की समझ देनेवाली कई बेहतरीन किताबें तैयार की हैं जिनसे माता-पिताओं को मदद मिल सकती है। कुछ किताबें हैं, बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक, महान शिक्षक से सीखिए (अँग्रेज़ी), युवाओं के प्रश्‍न—व्यावहारिक उत्तर, और वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा। रूथ का पति, टॉरलिफ कहता है: “आज माता-पिताओं की मदद करने के लिए बाइबल में सलाहों का भंडार पाया जाता है। अगर वे उसका सही-सही इस्तेमाल करें, तो वे हर हालात में अपने बच्चों की परवरिश कर पाएँगे।” (w06 11/01)

[पेज 5 पर बक्स/तसवीर]

विशेषज्ञ क्या कहते हैं . . . मगर बाइबल क्या कहती है

प्यार जताने के बारे में:

डॉ. जॉन ब्रॉडस वॉटसन ने शिशु और बच्चे की मनोवैज्ञानिक देखभाल (1928, अँग्रेज़ी) पत्रिका में माता-पिताओं को सख्ती से यह हिदायत दी: अपने बच्चों को “कभी गले से न लगाइए और ना ही उन्हें चूमिए”। “उन्हें अपनी गोद में कभी मत उठाइए।” लेकिन हाल के कुछ सालों में, डॉ. विरा लेन और डॉ. डॉरथी मॉलीनो ने पत्रिका, हमारे बच्चे (मार्च 1999, अँग्रेज़ी) में यह बात कही: “अध्ययन दिखाते हैं कि अगर नन्हे-मुन्‍नों को गले से लगाया नहीं जाता और उन्हें लाड़-प्यार नहीं किया जाता, तो ऐसे बच्चे सही से नहीं बढ़ पाते हैं।”

इसके उलट, यशायाह 66:12 बताता है कि परमेश्‍वर, एक माँ की तरह अपने लोगों के लिए प्यार दिखाता है। उसी तरह, जब कुछ लोगों ने अपने बच्चों को यीशु के पास लाना चाहा, तो उसके चेलों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। यीशु ने चेलों को फटकारते हुए कहा: “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो।” फिर “उस ने उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।”—मरकुस 10:14, 16.

अच्छे आदर्श सिखाने के बारे में:

सन्‌ 1969 की न्यू यॉर्क टाइम्स मैगज़ीन के एक लेख में, डॉ. ब्रूनो बेटलहाइम ने ज़ोर देकर कहा कि एक बच्चा “ज़िंदगी से जो सीखता है, उसके मुताबिक उसे अपनी राय कायम करने का अधिकार है। [उसके माँ-बाप] को उसे [नसीहत देने] की कोई ज़रूरत नहीं कि उसे क्या करना चाहिए, क्या नहीं।” मगर इसके लगभग 30 साल बाद, लेखक डॉ. रॉबर्ट कोल्स ने अपनी किताब, बच्चों को सही-गलत की कितनी समझ है (1997, अँग्रेज़ी) में यह कबूल किया: “बच्चों को चाहिए कि कोई उन्हें जीने का मकसद बताए और सही दिशा दिखाए। उन्हें आदर्शों की ज़रूरत है” जो सिर्फ उनके माता-पिता और बड़े-बुज़ुर्ग उन्हें दे सकते हैं।

नीतिवचन 22:6 माता-पिताओं को उकसाता है: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।” यहाँ जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “शिक्षा” किया गया है, उसका मतलब “शुरू करना” भी है। और इस वचन में इसका मतलब है, शिशु को उसकी पहली शिक्षा देना शुरू करना। इसलिए माता-पिताओं को बढ़ावा दिया जाता है कि वे छुटपन से ही अपने बच्चों को सही आदर्श सिखाना शुरू करें। (2 तीमुथियुस 3:14, 15) छुटपन के उन अहम सालों में बच्चे जो बातें सीखते हैं, वे उन्हें कभी नहीं भूलेंगे।

अनुशासन देने के बारे में:

डॉ. जेम्स डॉबसन ने अपनी किताब ज़िद्दी बच्चा (1978, अँग्रेज़ी) में लिखा: “जब एक प्यार करनेवाली माँ या पिता अपने बच्चे की गलती की सज़ा देने के लिए उस पर हाथ उठाता है, तो बच्चा वह गलत काम दोबारा नहीं करता।” दूसरी तरफ, डॉ. बेंजमिन स्पॉक ने एक लेख में यह कहा, जो कि उसकी मशहूर किताब, बच्चे और उनकी देखभाल (1998, अँग्रेज़ी) के सातवें संस्करण से तैयार किया गया था: “मार पड़ने पर बच्चे को लगता है कि मारनेवाला उससे बड़ा और ज़्यादा ताकतवर है, इसलिए वह कुछ भी कर सकता है, फिर चाहे उसका ऐसा करना सही हो या गलत।”

अनुशासन देने के बारे में बाइबल कहती है: “छड़ी और डांट से बुद्धि प्राप्त होती है।” (नीतिवचन 29:15) लेकिन हर बच्चे को अनुशासन देने के लिए मारना ज़रूरी नहीं होता। नीतिवचन 17:10 हमें बताता है: “एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता।”

[तसवीर]

बच्चे के दिल तक पहुँचने के लिए बाइबल का इस्तेमाल कीजिए

[पेज 7 पर तसवीर]

समझदार माता-पिता अपने बच्चों के लिए मनोरंजन का इंतज़ाम करते हैं