अपने पड़ोसी से प्रेम रखने का क्या मतलब है
अपने पड़ोसी से प्रेम रखने का क्या मतलब है
“तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।”—मत्ती 22:39.
1. हम यह कैसे दिखाते हैं कि हमें परमेश्वर से प्यार है?
यहोवा अपने उपासकों से क्या माँग करता है? इस सवाल का जवाब यीशु की कही एक बात से मिलता है, जो उसने बड़े ही ज़बरदस्त मगर चंद सरल शब्दों में बतायी थी। उसने कहा कि सबसे बड़ी आज्ञा है, यहोवा से अपने सारे मन, प्राण, बुद्धि और शक्ति से प्रेम रखना। (मत्ती 22:37; मरकुस 12:30) जैसा हमने पिछले लेख में देखा, परमेश्वर से प्यार करने का मतलब है, उसके प्यार के बदले में उसकी आज्ञा मानना और उसके नियमों पर चलना। परमेश्वर से प्यार करनेवालों के लिए उसकी मरज़ी पूरी करना एक बोझ नहीं, बल्कि ऐसा करने में उन्हें बेहद खुशी मिलती है।—भजन 40:8; 1 यूहन्ना 5:2, 3.
2, 3. हमें अपने पड़ोसी से प्यार करने की आज्ञा पर क्यों ध्यान देना चाहिए, और इससे कौन-से सवाल उठते हैं?
2 यीशु ने सबसे बड़ी आज्ञा बताने के बाद, उससे जुड़ी एक दूसरी आज्ञा के बारे में बताया। उसने कहा: “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (मत्ती 22:39) अब आइए हम इस आज्ञा पर ध्यान दें और ऐसा करना हमारे लिए सही भी है। क्यों? क्योंकि हम जिस दौर में जी रहे हैं, उसमें ज़्यादातर लोग स्वार्थी हो गए हैं और उन्हें गलत चीज़ों से प्यार है। प्रेरित पौलुस ने ईश्वर-प्रेरणा से “अन्तिम दिनों” का ब्यौरा देते हुए लिखा कि लोग एक-दूसरे से नहीं, बल्कि खुद से, पैसों से और सुखविलास से प्यार करेंगे। बहुत-से लोग “स्नेहरहित” (NHT) हो जाएँगे, या जैसा बाइबल का एक अनुवाद कहता है कि उनमें “वह प्यार नहीं होगा जो परिवार में अपनों के बीच होता है।” (2 तीमुथियुस 3:1-4) यीशु मसीह ने भी भविष्यवाणी की थी: “बहुत-से लोग . . . एक दूसरे से विश्वासघात और एक दूसरे से घृणा करेंगे। . . . बहुतों का प्रेम ठंडा पड़ जाएगा।”—मत्ती 24:10, 12.
3 ध्यान दीजिए, यीशु ने यह नहीं कहा कि सभी का प्रेम ठंडा पड़ जाएगा। क्योंकि परमेश्वर से प्यार करनेवाले लोग हमेशा से रहे हैं और उन्होंने परमेश्वर से वैसा ही प्यार किया है जैसा वह चाहता है और जिसका वह हकदार भी है। यही नहीं, ऐसे लोग आगे भी हमेशा रहेंगे। परमेश्वर से सच्चा प्यार करनेवाले लोग, दूसरों को परमेश्वर के नज़रिए से देखने की कोशिश करते हैं। मगर अब सवाल ये हैं: हमारा पड़ोसी कौन है जिससे हमें प्यार करना चाहिए? हम अपने पड़ोसी के लिए प्यार कैसे दिखा सकते हैं? इन दो अहम सवालों का जवाब जानने में बाइबल हमारी मदद कर सकती है।
मेरा पड़ोसी कौन है?
4. लैव्यव्यवस्था के 19वें अध्याय के मुताबिक, यहूदियों को किन लोगों से प्रेम रखना था?
4 यीशु ने जब फरीसी को बताया कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा है, तो वह असल में इस्राएलियों को दिए एक खास नियम का ज़िक्र कर रहा था। यह नियम लैव्यव्यवस्था 19:18 में दर्ज़ है। इसी अध्याय में, यहूदियों से कहा गया था कि उन्हें न सिर्फ अपने संगी इस्राएलियों को बल्कि दूसरे लोगों को भी अपना पड़ोसी समझना चाहिए। आयत 34 कहती है: “जो परदेशी तुम्हारे संग रहे वह तुम्हारे लिये देशी के समान हो, और उस से अपने ही समान प्रेम रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे।” यह आयत साफ दिखाती है कि इस्राएलियों को गैर-यहूदी, खासकर यहूदी धर्म अपनानेवाले परदेशियों के साथ प्यार से पेश आना था।
5. यहूदी अपने पड़ोसी से प्रेम रखने के बारे में क्या मानते थे?
5 लेकिन इस मामले में, यीशु के दिनों के यहूदी धर्म-गुरुओं की सोच अलग थी। उनमें से कुछ यह सिखाते थे कि यहूदियों को सिर्फ अपने भाई-बंधुओं को ही अपना “दोस्त” और “पड़ोसी” मानना चाहिए और गैर-यहूदियों से उन्हें नफरत करनी चाहिए। वे यह भी दलील देते थे कि जो धर्मी हैं, उन्हें अधर्मियों को तुच्छ समझना चाहिए। एक किताब कहती है: “ऐसे माहौल में नफरत की चिंगारी न भड़के ऐसा तो हो ही नहीं सकता था। आखिरकार, इसे हवा देनेवाली कई वजह जो मौजूद थीं।”
6. पड़ोसी से प्यार करने के बारे में समझाते वक्त, यीशु ने कौन-से दो मुद्दे बताए?
6 इसलिए यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में इस बात पर रोशनी डाली कि हमारा पड़ोसी कौन है, जिससे हमें प्यार करना चाहिए। उसने कहा: “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो। जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।” (मत्ती 5:43-45) गौर कीजिए कि यहाँ यीशु ने दो मुद्दे बताए। पहला, यहोवा अच्छे-बुरे, सभी लोगों को उदारता दिखाता है और उन पर कृपा भी करता है। दूसरा, हमें उसकी मिसाल पर चलना चाहिए।
7. हम दयालु सामरी की कहानी से क्या सबक सीखते हैं?
7 दूसरे मौके पर एक यहूदी ने, जो कानून-व्यवस्था का ज्ञानी था, यीशु से पूछा: “मेरा पड़ोसी कौन है?” इस पर यीशु ने उसे एक दयालु सामरी की कहानी सुनायी। वह सामरी सफर पर था कि उसे रास्ते में एक यहूदी पड़ा मिला, जिसका सबकुछ डाकुओं ने लूट लिया था और उसे मार-पीटकर अधमरा छोड़ गए थे। हालाँकि उस ज़माने में यहूदी, सामरियों को नीचा देखते थे, फिर भी इस सामरी ने यहूदी आदमी के घाव बाँधे और उसे एक मुसाफिरखाने में ले गया जहाँ उसकी देखभाल हो सके। इस कहानी से हम क्या सबक सीखते हैं? यही कि हमारी जाति, देश या धर्म के लोगों के अलावा, दूसरे लोग भी हमारे पड़ोसी हैं जिनसे हमें प्यार करना चाहिए।—लूका 10:25, 29, 30, 33-37.
अपने पड़ोसी से प्रेम रखने का क्या मतलब है
8. पड़ोसी के लिए प्यार कैसे दिखाया जाना था, इस बारे में लैव्यव्यवस्था अध्याय 19 क्या कहता है?
8 पड़ोसी के लिए प्यार ठीक परमेश्वर के लिए हमारे प्यार की तरह है, यह एक भावना नहीं बल्कि इसे कामों से दिखाया जाता है। इस बात को और भी अच्छी तरह समझने के लिए, आइए हम लैव्यव्यवस्था के 19वें अध्याय की जाँच करें, जिसकी आयत 18 में परमेश्वर के लोगों को अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखने की आज्ञा दी गयी थी। इस अध्याय की बाकी आयतें बताती हैं कि इस्राएलियों को हुक्म दिया गया था कि वे अपने खेत की फसल का कुछ हिस्सा, दीन या मुसीबत के मारों और परदेशियों के लिए छोड़ दें। उन्हें चोरी करने, कपट करने, या झूठ बोलने की सख्त मनाही थी। उन्हें न्यायिक मामलों में कोई पक्षपात नहीं करना था। वे अपने पड़ोसियों को ज़रूरत पड़ने पर ताड़ना दे सकते थे, मगर उन्हें इस बात का खास ध्यान रखना था कि वे “अपने मन में एक दूसरे के प्रति बैर न र[खें]।” इस तरह के और भी कई नियम उन्हें दिए गए थे, मगर इन सबका निचोड़ यही था कि वे “एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम र[खें]।”—लैव्यव्यवस्था 19:9-11, 15, 17, 18.
9. यहोवा ने इस्राएलियों को दूसरी जातियों से दूरी बनाए रखने का आदेश क्यों दिया?
9 हालाँकि इस्राएलियों को दूसरों के लिए प्रेम रखना था, मगर साथ ही उन्हें ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखनी थी जो झूठे देवी-देवताओं को पूजते थे। यहोवा ने उन्हें पहले से ही खबरदार कर दिया था कि इस बुरी संगति के क्या-क्या खतरे हैं और इसके क्या अंजाम हो सकते हैं। मिसाल के लिए, वादा किए देश में बसी जिन जातियों को उन्हें पूरी तरह बेदखल करना था, उनके बारे में यहोवा ने यह आदेश दिया था: “न उन से ब्याह शादी करना, न तो अपनी बेटी उनके बेटे को ब्याह देना, और न उनकी बेटी को अपने बेटे के लिये ब्याह लेना। क्योंकि वे तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएंगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवाएंगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़क उठेगा, और वह तुझ को शीघ्र सत्यानाश कर डालेगा।”—व्यवस्थाविवरण 7:3, 4.
10. हमें किन लोगों के साथ दोस्ती करने से दूर रहना चाहिए?
10 उसी तरह, आज मसीही ऐसे लोगों के साथ दोस्ती करने से दूर रहते हैं जिनकी सोहबत में पड़कर उनका विश्वास कमज़ोर हो सकता है। (1 कुरिन्थियों 15:33) हमसे साफ-साफ कहा गया है: “अविश्वासियों” यानी जो मसीही कलीसिया के सदस्य नहीं हैं, उनके “साथ असमान जूए में न जुतो।” (2 कुरिन्थियों 6:14) इतना ही नहीं, हमें यह कड़ी सलाह दी गयी है: ‘केवल प्रभु में विवाह करो।’ (1 कुरिन्थियों 7:39) मगर फिर भी, हमें उन लोगों को नफरत-भरी नज़र से नहीं देखना चाहिए जो यहोवा को नहीं मानते हैं। आखिरकार, मसीह ने पापी इंसानों के लिए अपनी जान कुरबान की थी। और-तो-और, आज ऐसे कई लोग हैं जो पहले बुरे काम करते थे, मगर उन्होंने अपने तौर-तरीके बदले हैं और परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप किया है।—रोमियों 5:8; 1 कुरिन्थियों 6:9-11.
11. जो लोग यहोवा की सेवा नहीं करते, उन्हें प्यार दिखाने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है, और क्यों?
11 जो लोग परमेश्वर की सेवा नहीं करते, उन्हें प्यार दिखाने का सबसे बढ़िया तरीका है, यहोवा की मिसाल पर चलना। हालाँकि वह दुष्टता से सख्त नफरत करता है, मगर वह सभी इंसानों को निरंतर प्रेम-कृपा दिखाता है। कैसे? वह उन्हें बुराई का मार्ग छोड़ने और हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका देता है। (यहेजकेल 18:23) यहोवा ‘चाहता है कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।’ (2 पतरस 3:9) उसकी इच्छा है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (1 तीमुथियुस 2:4) इसीलिए यीशु ने अपने चेलों को “सब जातियों के लोगों को” प्रचार करने, सिखाने और ‘चेला बनाने’ का काम सौंपा। (मत्ती 28:19, 20) इस काम में हिस्सा लेकर हम परमेश्वर और पड़ोसी, दोनों के लिए प्यार दिखाते हैं। ऐसा करने से हम अपने दुश्मनों के लिए भी प्यार दिखा पाते हैं!
अपने मसीही भाई-बहनों के लिए प्यार
12. प्रेरित यूहन्ना ने आध्यात्मिक भाई-बहनों से प्यार करने के बारे में क्या लिखा?
12 प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:10) जी हाँ, हम मसीहियों का यह फर्ज़ बनता है कि हम अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों के लिए प्यार दिखाएँ। यह प्यार दिखाना कितना ज़रूरी है? इस बारे में प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; . . . यदि कोई कहे, कि मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूं; और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है: क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता।” (1 यूहन्ना 3:15; 4:20) वाकई, यूहन्ना के ये शब्द “हत्यारा” और “झूठा” क्या ही ज़ोरदार हैं! यीशु ने इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल शैतान इब्लीस के लिए किया था। (यूहन्ना 8:44) बेशक, हम हरगिज़ नहीं चाहेंगे कि ये नाम हमें भी दिए जाएँ!
13. हम किन तरीकों से अपने भाई-बहनों के लिए प्यार दिखा सकते हैं?
13 सच्चे मसीही ‘आपस में प्रेम रखना, परमेश्वर से सीखते हैं।’ (1 थिस्सलुनीकियों 4:9) हमें सिर्फ “वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम” करना चाहिए। (1 यूहन्ना 3:18) हमारा “प्रेम निष्कपट” होना चाहिए। (रोमियों 12:9) यह हमें कृपा दिखाने, माफ करने, करुणा दिखाने और धीरज धरने के लिए उकसाता है। साथ ही, यह हमें दूसरों से जलने, शेखी मारने, घमंड करने और स्वार्थ से दूर रहने में भी मदद देता है। (1 कुरिन्थियों 13:4, 5; इफिसियों 4:32) प्रेम हमें “एक दूसरे के दास बन[ने]” यानी सेवा करने के लिए उभारता है। (गलतियों 5:13) यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि वे आपस में वैसा ही प्रेम रखें, जैसा उसने उनसे रखा था। (यूहन्ना 13:34) इसलिए एक मसीही को ज़रूरत की घड़ी में भाई-बहनों की खातिर अपनी जान देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
14. हम परिवार में प्यार कैसे दिखा सकते हैं?
14 मसीही परिवार में सभी को, खासकर पति-पत्नी को एक-दूसरे से प्यार करना चाहिए। उनके बीच का रिश्ता इतना करीबी होता है कि पौलुस ने कहा: “पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम र[खें]।” उसने यह भी लिखा: “जो [पति] अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है।” (इफिसियों 5:28) पौलुस ने पाँच आयतों के बाद, फिर से यही सलाह दोहरायी। एक पति जो अपनी पत्नी से प्यार करता है, वह मलाकी के दिनों के उन इस्राएलियों की तरह नहीं बनेगा, जिन्होंने अपनी-अपनी पत्नियों के साथ विश्वासघात किया था। (मलाकी 2:14) इसके बजाय, वह अपनी पत्नी की दिल से कदर करेगा और उससे वैसा ही प्यार करेगा जैसा मसीह, कलीसिया से करता है। उसी तरह, एक पत्नी जो अपने पति से प्यार करती है, वह उसका आदर करेगी।—इफिसियों 5:25, 29-33.
15. भाईचारे के प्रेम का जीता-जागता सबूत देखकर, कुछ लोगों ने क्या कहा और क्या कदम उठाया?
15 वाकई, कलीसिया के भाई-बहनों के बीच जो प्यार होता है, वही सच्चे मसीहियों की पहचान है। यीशु ने कहा था: “यदि [तुम] आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:35) हमारा यही प्यार दूसरे लोगों को उस परमेश्वर की तरफ खींचता है जिससे हम प्यार करते हैं और जिसके हम साक्षी हैं। इसकी एक मिसाल लीजिए। मोज़म्बिक देश से मिली एक रिपोर्ट में, एक साक्षी परिवार ने बताया: “हमने आज तक ऐसा तूफान नहीं देखा था। दोपहर को अचानक तेज़ आँधी चलने लगी जिसके फौरन बाद ज़ोरों की बारिश होने लगी और ओले भी बरसने लगे। तेज़ हवा से नरकट से बना हमारा घर तहस-नहस हो गया और जस्ते से बनी हमारी छत उड़ गयी। तूफान थमने के बाद, आस-पास की कलीसियाओं से कई भाई आए और उन्होंने हमारे घर को दोबारा बनाने में मदद दी। यह देखकर हमारे पड़ोसी हैरान रह गए और कहने लगे: ‘आपका धर्म कितना अच्छा है! हमें तो आज तक अपने चर्च से कोई मदद नहीं मिली।’ हमने उन्हें अपनी बाइबल से यूहन्ना 13:34, 35 दिखाया। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे कई पड़ोसी अब बाइबल का अध्ययन कर रहे हैं।”
अलग-अलग लोगों से निजी तौर पर प्यार करना
16. समूह के तौर पर और अलग-अलग लोगों से निजी तौर पर प्यार करने में क्या फर्क है?
16 समूह के तौर पर लोगों से प्यार करना आसान है। लेकिन अलग-अलग लोगों से निजी तौर पर प्यार करना मुश्किल हो सकता है। जैसे, कुछ लोग सिर्फ खैराती संगठनों को दान देकर कहते हैं कि हमें अपने पड़ोसी से प्यार है। असल में यह कहना तो बड़ा आसान होता है, मगर हकीकत में उनसे प्यार करना उतना ही मुश्किल होता है। खासकर ऐसे इंसान से प्यार करना जो हमारे साथ काम करता है, मगर उसे हमारी कोई परवाह नहीं। या हमारे घर के पास रहनेवाला कोई इंसान जो हमें एक आँख नहीं भाता। या एक ऐसा दोस्त जिसने हमें निराश किया है।
17, 18. यीशु ने लोगों से निजी तौर पर प्यार कैसे दिखाया, और उसने ऐसा किस मकसद से किया?
17 अलग-अलग लोगों से निजी तौर पर प्यार करने के मामले में, हम यीशु से सीख सकते हैं, जिसने उम्दे तरीके से परमेश्वर के गुण ज़ाहिर किए थे। हालाँकि वह जगत का पाप उठा ले जाने के लिए धरती पर आया था, फिर भी उसने लोगों के लिए निजी तौर पर प्यार दिखाया। जैसे, उसने एक बीमार स्त्री और एक कोढ़ी को चंगा किया, साथ ही एक बच्ची को दोबारा ज़िंदा किया। (मत्ती 9:20-22; मरकुस 1:40-42; 7:26, 29, 30; यूहन्ना 1:29) उसी तरह, हर दिन मिलनेवाले अलग-अलग लोगों के साथ हम जिस तरह से पेश आते हैं, उससे हम दिखा सकते हैं कि हमें अपने पड़ोसी से प्यार है।
18 लेकिन हमें एक बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हम अपने पड़ोसियों से तभी प्यार कर पाएँगे, जब हमें परमेश्वर से प्यार होगा। हालाँकि यीशु ने गरीबों की मदद की, बीमारों को चंगा किया और भूखों को खिलाया, मगर इन सारे भलाई के काम करने और लोगों को सिखाने का उसका मकसद था, उन्हें यहोवा के साथ मेल-मिलाप करने में मदद देना। (2 कुरिन्थियों 5:19) यीशु ने जो कुछ किया परमेश्वर की महिमा के लिए किया। (1 कुरिन्थियों 10:31) वह कभी नहीं भूला कि वह परमेश्वर का नुमाइंदा है, इसलिए उसके कामों से या तो उसके प्यारे पिता का नाम रोशन हो सकता है या उसकी बदनामी हो सकती है। यीशु की मिसाल पर चलकर, हम भी अपने पड़ोसियों के लिए सच्चा प्यार दिखा पाएँगे और साथ ही, दुष्ट संसार का हिस्सा बनने से दूर रह पाएँगे।
हम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कैसे रख सकते हैं?
19, 20. अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखने का क्या मतलब है?
19 यीशु ने कहा: “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” यह लाज़िमी है कि हर इंसान खुद का खयाल रखता है और अपना आत्म-सम्मान बनाए रखता है। अगर यह सच न होता, तो यीशु की आज्ञा कोई मायने नहीं रखती। लेकिन खुद से सही हद तक प्यार करने का मतलब यह नहीं कि हम अपस्वार्थी या खुदगर्ज़ बन जाए, जैसा प्रेरित पौलुस ने 2 तीमुथियुस 3:2 में लिखा था। इसके बजाय, इसका मतलब है, खुद के बारे में सही नज़रिया बनाए रखना। बाइबल के एक विद्वान ने कहा: ‘खुद से प्यार करने की एक हद होती है। यह न तो इतनी ज़्यादा होनी चाहिए कि हम खुद को “भगवान्” समझने लगें और ना ही इतनी कम कि हम अपने आपको “धूल” समझने लगें।’
20 दूसरों से अपने समान प्रेम रखने का मतलब है कि हम लोगों को उस नज़र से देखें जिस नज़र से हम चाहते हैं कि वे हमें देखें। साथ ही, हमें उनसे वैसा ही बर्ताव करना चाहिए जैसा हम उनसे उम्मीद करते हैं। यीशु ने कहा: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (मत्ती 7:12) ध्यान दीजिए कि यीशु ने यह नहीं कहा कि हम बीती-बातों को याद करें कि दूसरे हमारे साथ किस तरह पेश आए थे और फिर उसके मुताबिक उनसे व्यवहार करें। इसके बजाय, हमें सोचना चाहिए कि हम दूसरों से कैसे बर्ताव की उम्मीद रखते हैं, और फिर वैसा ही उनके साथ बर्ताव करें। एक और गौरतलब बात है कि यीशु ने यह नहीं बताया कि ऐसा व्यवहार सिर्फ अपने दोस्तों और कलीसिया के भाई-बहनों के साथ किया जाना चाहिए। इसलिए शायद उसने “मनुष्य” शब्द का इस्तेमाल यह ज़ाहिर करने के लिए किया होगा कि हमें सभी से ऐसा बर्ताव करना चाहिए।
21. दूसरों के लिए हमारा प्यार क्या दिखाएगा?
21 अगर हमारे दिल में पड़ोसी के लिए प्रेम होगा, तो हम कोई भी बुरा काम करने से दूर रहेंगे। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “यह कि व्यभिचार न करना, हत्या न करना; चोरी न करना; लालच न करना; और इन को छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता।” (रोमियों 13:9, 10) अगर हममें यह प्रेम होगा, तो हम दूसरों का भला करने के तरीके ढूँढ़ेंगे। दूसरों के लिए हमारा प्यार दिखाएगा कि हम यहोवा परमेश्वर से भी प्यार करते हैं, जिसने हम सभी इंसानों को अपने स्वरूप में बनाया है।—उत्पत्ति 1:26. (w06 12/01)
आप क्या जवाब देंगे?
• हमें किन लोगों से प्यार करना चाहिए, और क्यों?
• हम उन लोगों के लिए प्यार कैसे दिखा सकते हैं, जो यहोवा की सेवा नहीं करते?
• आध्यात्मिक भाई-बहनों के लिए हमारे दिल में जो प्यार होना चाहिए, उसके बारे में बाइबल क्या कहती है?
• अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखने का क्या मतलब है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 28 पर तसवीर]
“मेरा पड़ोसी कौन है?”
[पेज 30 पर तसवीर]
यीशु हर इंसान से निजी तौर पर प्यार करता है