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‘तू आनन्द ही करना’

‘तू आनन्द ही करना’

‘तू आनन्द ही करना’

‘तू अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिए पर्ब्ब मानते रहना और आनन्द ही करना।’—व्यवस्थाविवरण 16:15.

1. (क) शैतान ने कौन-से मसले उठाए? (ख) यहोवा ने आदम और हव्वा के बगावत करने के बाद क्या भविष्यवाणी की?

 जब शैतान ने आदम और हव्वा को उनके सिरजनहार के खिलाफ बगावत करने के लिए बहकाया, तब उसने दो अहम मसले उठाए। पहला, उसने यहोवा के सत्यवादी होने पर और उसकी हुकूमत करने का तरीका बिलकुल सही है, इस पर सवाल खड़ा किया। दूसरा, उसने यह कहा कि इंसान सिर्फ अपने मतलब के लिए यहोवा की सेवा करता है। यह दूसरा मसला अय्यूब के ज़माने में जाकर और भी खुलकर सामने आया। (उत्पत्ति 3:1-6; अय्यूब 1:9, 10; 2:4, 5) मगर अदन के बाग में ही यहोवा ने इन मसलों को सुलझाने के लिए फौरन कदम उठाया। उसने आदम और हव्वा को बेदखल करने से पहले, भविष्यवाणी की कि कैसे वह इन मसलों को सुलझाएगा। उसने बताया कि एक “वंश” आएगा जिसकी एड़ी को डसा जाएगा और बाद में, वह वंश शैतान के सिर को कुचल डालेगा।—उत्पत्ति 3:15.

2. उत्पत्ति 3:15 की भविष्यवाणी के पूरे होने के बारे में, यहोवा कैसे रोशनी डालता गया?

2 समय के गुज़रते, यहोवा अदन के बाग में की अपनी भविष्यवाणी पर रोशनी डालता गया। इस तरह उसने दिखाया कि भविष्यवाणी की हरेक बात ज़रूर पूरी होगी। उदाहरण के लिए, परमेश्‍वर ने इब्राहीम से कहा कि “वंश” उसके खानदान से आएगा। (उत्पत्ति 22:15-18) फिर इब्राहीम के पोते, याकूब से इस्राएल के बारह गोत्र निकलें। सामान्य युग पूर्व 1513 में जब ये सभी गोत्र मिलकर एक जाति बनें, तो यहोवा ने उन्हें अपनी कानून-व्यवस्था दी। इस व्यवस्था में तरह-तरह के सालाना पर्व भी शामिल थे। प्रेरित पौलुस ने कहा कि ये सारे पर्व “आनेवाली बातों की छाया हैं।” (कुलुस्सियों 2:16, 17; इब्रानियों 10:1) इन पर्वों से इस बात की झलक मिलती थी कि यहोवा कैसे वंश के बारे में अपना मकसद पूरा करेगा। इसलिए इन्हें मनाने पर पूरे इस्राएल देश में खुशी की लहर दौड़ जाती थी। इन पर्वों पर गौर करने से हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा कि यहोवा के वादे ज़रूर पूरे होंगे।

वंश आता है

3. वादा किया गया वंश कौन था, और उसकी एड़ी को कैसे डसा गया?

3 यहोवा की पहली भविष्यवाणी करने के चार हज़ार से भी ज़्यादा सालों बाद, वादा किया गया वंश आया। वह वंश, यीशु था। (गलतियों 3:16) यीशु एक सिद्ध इंसान था। उसने मौत तक अपनी खराई बनाए रखी और इस तरह साबित किया कि शैतान के इलज़ाम झूठे हैं। इसके अलावा, यीशु निष्पाप था, इसलिए उसकी कुरबानी बहुत कीमती थी। इसके ज़रिए उसने आदम और हव्वा की वफादार संतानों को पाप और मौत से छुटकारा दिलाया। यीशु का यातना स्तंभ पर मारा जाना, वंश की ‘एड़ी को डसना’ था।—इब्रानियों 9:11-14.

4. यीशु के बलिदान को कैसे दर्शाया गया था?

4 यीशु की मौत सा.यु. 33 के निसान 14 को हुई थी। * इस्राएल में, हर साल निसान 14 को फसह का पर्व मनाया जाता था। यह बहुत ही खुशी का दिन होता था। इस दिन इस्राएली अपने-अपने परिवार के साथ इकट्ठा भोजन करते थे। भोजन के लिए, एक मेम्ना पकाया जाता था जिसमें कोई दोष नहीं होता था। इस तरह, वे याद करते थे कि सा.यु.पू. 1513 के निसान 14 को इस्राएल के पहिलौठों को बचाने में मेम्ने के लहू की कितनी खास भूमिका थी; वहीं दूसरी तरफ मौत के फरिश्‍ते ने मिस्र के सभी पहिलौठों को मौत के घाट उतारा था। (निर्गमन 12:1-14) फसह का मेम्ना, यीशु को दर्शाता था। इस बारे में प्रेरित पौलुस ने कहा: “हमारा . . . फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।” (1 कुरिन्थियों 5:7) फसह के मेम्ने के लहू की तरह, यीशु का बहाया गया लहू भी कई लोगों को उद्धार दिलाता है।—यूहन्‍ना 3:16, 36.

“मुर्दों में . . . पहिला फल हुआ”

5, 6. (क) यीशु का पुनरुत्थान कब हुआ, और काननू-व्यवस्था में दिए किस पर्व से इसकी झलक मिलती थी? (ख) यीशु के पुनरुत्थान से उत्पत्ति 3:15 की भविष्यवाणी का पूरा होना कैसे मुमकिन हुआ?

5 यीशु की मौत के तीसरे दिन, उसे दोबारा ज़िंदा किया गया ताकि वह अपने पिता को अपने बलिदान की कीमत पेश कर सके। (इब्रानियों 9:24) उसके पुनरुत्थान की झलक, एक दूसरे पर्व से मिलती थी। निसान 14 के अगले दिन (निसान 15) से अखमीरी रोटी का पर्व शुरू होता था। निसान 16 को इस्राएली अपने जौ के पक्के खेत की पहली उपज का पूला, याजक के पास लाते थे ताकि वह उसे यहोवा के सामने हिलाए। इस्राएल में, जौ की फसल साल की पहली फसल होती थी। (लैव्यव्यवस्था 23:6-14) इसलिए सा.यु. 33 के निसान 16 को जब यहोवा ने यीशु का पुनरुत्थान किया, तो यह बिलकुल सही दिन था। दरअसल शैतान, परमेश्‍वर के इस ‘विश्‍वासयोग्य और सच्चे गवाह’ को हमेशा के लिए खामोश कर देना चाहता था। लेकिन परमेश्‍वर ने उसके मंसूबों को नाकाम कर दिया। उसने यीशु को एक आत्मिक प्राणी के तौर पर ज़िंदा किया और उसे अमर जीवन दिया।—प्रकाशितवाक्य 3:14; 1 पतरस 3:18.

6 यीशु उन लोगों में से ‘पहिला फल हुआ, जो सो गए थे।’ (1 कुरिन्थियों 15:20) हालाँकि यीशु से पहले भी लोगों का पुनरुत्थान हुआ था, मगर वे बाद में फिर से मर गए। जबकि यीशु पुनरुत्थान पाने के बाद दोबारा नहीं मरा। इसके बजाय, वह स्वर्ग लौटकर यहोवा के दाहिने हाथ जा बैठा और उस वक्‍त का इंतज़ार करने लगा, जब यहोवा उसे स्वर्गीय राज्य का राजा बनाता। (भजन 110:1; प्रेरितों 2:32, 33; इब्रानियों 10:12, 13) आज यीशु, राजा बन चुका है, इसलिए वह सबसे बड़े दुश्‍मन शैतान का सिर कुचलने, साथ ही उसके वंश को हमेशा के लिए नाश करने को तैयार है।—प्रकाशितवाक्य 11:15, 18; 20:1-3, 10.

इब्राहीम के वंश के दूसरे सदस्य

7. अठवारों का पर्व क्या था?

7 यीशु ही वह वंश था जिसका वादा अदन के बाग में किया गया था और उसी के ज़रिए यहोवा, भविष्य में “शैतान के कामों को नाश क[रेगा]।” (1 यूहन्‍ना 3:8) लेकिन जब यहोवा ने इब्राहीम से बात की, तब उसने ज़ाहिर किया था कि उसके “वंश” में एक-से-ज़्यादा लोग होंगे। उसने बताया था कि उसकी संतान “आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान” होगी। (उत्पत्ति 22:17, आर.ओ.वी.) इब्राहीम के “वंश” के दूसरे सदस्य के आने की झलक एक तीसरे पर्व से मिलती थी। निसान 16 से ठीक पचास दिन बाद, इस्राएली बड़ी खुशियों के साथ अठवारों का पर्व मनाते थे। इस पर्व के बारे में व्यवस्था में यह लिखा था: “सातवें विश्रामदिन के दूसरे दिन तक पचास दिन गिनना, और पचासवें दिन यहोवा के लिये नया अन्‍नबलि चढ़ाना। तुम अपने घरों में से एपा के दो दसवें अंश मैदे [“आटे,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] की दो रोटियां हिलाने की भेंट के लिये ले आना; वे ख़मीर के साथ पकाई जाएं, और यहोवा के लिये पहिली उपज ठहरें।” *लैव्यव्यवस्था 23:16, 17, 20.

8. सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन क्या अनोखी घटना घटी?

8 जब यीशु धरती पर था तो अठवारों का पर्व, पिन्तेकुस्त (यह एक यूनानी शब्द से निकला है, जिसका मतलब है “पचासवाँ”) के नाम से जाना जाता था। सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, महान महायाजक यानी पुनरुत्थान पाए यीशु मसीह ने यरूशलेम में इकट्ठा 120 चेलों के छोटे समूह पर पवित्र आत्मा उँडेली। इस तरह वे परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त बेटे और यीशु मसीह के भाई बनें। (रोमियों 8:15-17) वे एक नयी जाति बनें जिसे ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ कहा गया। (गलतियों 6:16) आगे चलकर इस जाति की छोटी-सी संख्या धीरे-धीरे बढ़कर 1,44,000 हो जाती।—प्रकाशितवाक्य 7:1-4.

9, 10. अभिषिक्‍त मसीही की कलीसिया को पिन्तेकुस्त के दिन में कैसे दर्शाया गया था?

9 अभिषिक्‍त मसीहियों की कलीसिया को खमीर के साथ पकायी दो रोटियों से दर्शाया गया था जो हर पिन्तेकुस्त के दिन यहोवा के सामने हिलायी जाती थीं। रोटी में खमीर इस बात की निशानी था कि अभिषिक्‍त होने पर भी उनमें विरासत से मिला पाप मौजूद होता। मगर वे यीशु के छुड़ौती बलिदान की बिना पर यहोवा के पास आ सकते थे। (रोमियों 5:1, 2) लेकिन दो रोटियों को क्यों हिलाया जाता था? इसका शायद यह मतलब था कि परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त बेटों को दो समूहों से इकट्ठा किया जाता—पहले यहूदियों से और फिर अन्यजातियों से।—गलतियों 3:26-29; इफिसियों 2:13-18.

10 पिन्तेकुस्त के दिन चढ़ायी जानेवाली दो रोटियाँ, गेहूँ की पहली उपज से बनायी जाती थीं। उसी तरह, आत्मा से जन्मे अभिषिक्‍त मसीहियों को परमेश्‍वर की “सृष्टि की हुई वस्तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल” कहा गया है। (याकूब 1:18) सबसे पहले उन्हें यीशु के बहाए गए लहू की बिना पर अपने पापों की माफी मिली है। इस वजह से स्वर्ग में उनके लिए अमर जीवन पाना मुमकिन हुआ है, जहाँ वे यीशु के साथ उसके राज्य में हुकूमत करेंगे। (1 कुरिन्थियों 15:53; फिलिप्पियों 3:20, 21; प्रकाशितवाक्य 20:6) स्वर्गीय पुत्रों की हैसियत से, वे बहुत जल्द “लोहे का राजदण्ड लिए हुए [जाति जाति के लोगों] पर राज्य” करेंगे। साथ ही, वे ‘शैतान को अपने पांवों से कुचलने’ में हिस्सा लेंगे। (प्रकाशितवाक्य 2:26, 27; रोमियों 16:20) प्रेरित यूहन्‍ना ने अभिषिक्‍त मसीहियों के बारे में कहा: “ये वे ही हैं जो मेमने के पीछे पीछे जहां कहीं वह जाता है चलते हैं। ये परमेश्‍वर और मेमने के लिए प्रथम फल होने को मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं।”—प्रकाशितवाक्य 14:4, NHT.

वह दिन जिसमें छुटकारे पर खास ध्यान दिलाया जाता था

11, 12. (क) प्रायश्‍चित्त के दिन क्या किया जाता था? (ख) बछड़े और बकरों के बलिदानों से इस्राएल जाति को क्या फायदे होते थे?

11 एतानीम नाम के महीने (जिसे बाद में तिशरी कहा जाने लगा) के दसवें दिन, इस्राएली एक पर्व मनाते थे जो यह दिखाता था कि यीशु के छुड़ौती बलिदान की कीमत से क्या-क्या फायदे होंगे। * यह पर्व प्रायश्‍चित्त का दिन होता था। इस दिन, पूरी इस्राएल जाति इकट्ठा होती थी और उनके पापों को ढाँपने के लिए बलिदान चढ़ाए जाते थे।—लैव्यव्यवस्था 16:29, 30.

12 प्रायश्‍चित्त के दिन, महायाजक एक बछड़े की बलि चढ़ाता था और फिर उसके थोड़े लहू को परमपवित्र में ले जाकर वाचा के संदूक के ढक्कन के सामने सात बार छिड़कता था। यह ऐसा था मानो महायाजक यहोवा के आगे बलिदान का लहू पेश कर रहा है। महायाजक यह बलिदान अपने और “अपने घराने” के, साथ ही याजकों और लेवियों के पापों के लिए चढ़ाता था। इसके बाद, वह दो बकरे लेता था। एक को वह “साधारण जनता के लिए” पापबलि के तौर पर चढ़ाता था और उसका भी कुछ लहू परमपवित्र में ले जाकर वाचा के संदूक के ढक्कन के सामने छिड़कता था। फिर वह दूसरे बकरे के सिर पर अपने हाथ रखकर इस्राएलियों के पापों का अंगीकार करता था और उसे वीराने में ज़िंदा छोड़ देता था। इस तरह, बकरा लाक्षणिक तौर पर इस्राएल जाति का पाप उठा ले जाता था।—लैव्यव्यवस्था 16:3-16, 21, 22.

13. प्रायश्‍चित्त के दिन महायाजक जो भी काम करता था, वह कैसे यीशु की भूमिका को दर्शाता है?

13 प्रायश्‍चित्त के दिन महायाजक जो भी काम करता था, वह इस बात को दर्शाता था कि महान महायाजक, यीशु मसीह अपने लहू की कीमत से पापों की माफी दिलाएगा। सबसे पहले, उसके लहू से 1,44,000 अभिषिक्‍त मसीहियों से बने “आत्मिक घर” को फायदा पहुँचा है। उन्हें धर्मी करार दिया गया है और वे यहोवा की नज़रों में शुद्ध ठहरे हैं। (1 पतरस 2:5; 1 कुरिन्थियों 6:11) यह बात बछड़े की बलि से दर्शायी गयी थी। इस तरह अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए स्वर्गीय विरासत पाने का रास्ता खुल गया। इसके अलावा, यीशु के लहू से उन लाखों लोगों को भी फायदा हुआ है, जो उस पर विश्‍वास करते हैं। यह बात बकरे की बलि से दर्शायी गयी थी। इन लाखों लोगों को धरती पर हमेशा की ज़िंदगी विरासत में दी जाएगी जिसे आदम और हव्वा ने गवाँ दिया था। (भजन 37:10,11) अपने बहाए गए लहू की बिना पर यीशु इंसानों के पाप को उठा ले जाता है, ठीक जैसे ज़िंदा बकरा लाक्षणिक तौर पर इस्राएलियों के पाप को विराने में उठा ले जाता था।—यशायाह 53:4, 5.

यहोवा के सामने आनंद मनाना

14, 15. झोंपड़ियों के पर्व के दौरान क्या किया जाता था, और इससे इस्राएलियों को क्या याद दिलाया जाता था?

14 प्रायश्‍चित्त के दिन के बाद, इस्राएली झोंपड़ियों का पर्व मनाते थे। यह पर्व साल के सभी पर्वों से सबसे ज़्यादा खुशियों-भरा होता था। (लैव्यव्यवस्था 23:34-43) यह पर्व एतानीम के महीने की 15 से 21 तारीख तक मनाया जाता था और 22 को महासभा के साथ खत्म होता था। यह पर्व इस बात की निशानी था कि फसल इकट्ठा करने का काम पूरा हो चुका है और अब समय है कि वे यहोवा की अपार भलाई के लिए उसे धन्यवाद दें। इसलिए यहोवा ने पर्व माननेवालों को यह आज्ञा दी थी: “तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरी सारी बढ़ती में और तेरे सब कामों में तुझ को आशीष देगा; तू आनन्द ही करना।” (व्यवस्थाविवरण 16:15) वाकई पर्व के दौरान इस्राएल में क्या ही खुशियों का समाँ होता होगा!

15 पर्व के दौरान, इस्राएली सात दिन झोंपड़ियों में रहते थे। इस तरह उन्हें याद दिलाया जाता था कि उनके पूर्वज एक वक्‍त वीराने में झोंपड़ियों में रहा करते थे। पर्व के दौरान, उन्हें इस बात पर मनन करने का बढ़िया मौका मिलता था कि कैसे यहोवा एक पिता की तरह उनकी देखभाल करता है। (व्यवस्थाविवरण 8:15, 16) साथ ही, अमीर-गरीब सभी इस्राएली एक तरह की झोंपड़ियों में रहते थे। यह उन्हें याद दिलाता था कि पर्व के दौरान वे सब बराबर हैं।—नहेमायाह 8:14-16.

16. झोंपड़ियों का पर्व क्या दर्शाता था?

16 झोंपड़ियों का पर्व, कटनी का पर्व होता था और यह फसल बटोरने की खुशी में मनाया जाता था। यह पर्व इस बात को दर्शाता था कि यीशु मसीह पर विश्‍वास ज़ाहिर करनेवालों को इकट्ठा किया जाएगा। उनका इकट्ठा किया जाना सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन शुरू हुआ था। उस दिन यीशु के 120 चेलों का अभिषेक किया गया था और वे “याजकों का पवित्र समाज” बने थे। जैसे इस्राएली कुछ दिन झोंपड़ियों में रहते थे, वैसे ही अभिषिक्‍त जन यह जानते हैं कि वे इस दुष्ट संसार में “यात्री” हैं। उनकी आशा स्वर्ग में जीने की है। (1 पतरस 2:5, 11) अभिषिक्‍त मसीहियों को इकट्ठा किया जाने का यह काम “अन्तिम दिनों” में पूरा होगा, जब 1,44,000 के आखिरी जनों को इकट्ठा किया जा चुका होगा।—2 तीमुथियुस 3:1.

17, 18. (क) क्या बात दिखाती है कि अभिषिक्‍त मसीहियों के अलावा दूसरों को भी यीशु के बलिदान से फायदा होता है? (ख) झोंपड़ियों के लाक्षणिक पर्व से आज किन्हें फायदा हो रहा है, और यह खुशियों-भरा पर्व कब खत्म होगा?

17 यह ध्यान देने लायक बात है कि झोंपड़ियों के पर्व के दौरान 70 बछड़ों की बलि चढ़ायी जाती थी। (गिनती 29:12-34) नंबर 70, 7 का 10 गुना करने पर मिलता है। बाइबल में, नंबर 7 स्वर्ग की सिद्धता को और नंबर 10 धरती की सिद्धता को दर्शाता है। इसका मतलब यह हुआ कि यीशु के छुड़ौती बलिदान से मानवजाति के उन सभी 70 परिवारों के वफादार लोगों को फायदा पहुँचेगा, जो नूह से निकले थे। (उत्पत्ति 10:1-29) इसलिए हमारे समय में अभिषिक्‍त जनों के अलावा, सभी जातियों के उन वफादार लोगों को भी इकट्ठा किया जा रहा है जो यीशु पर विश्‍वास ज़ाहिर करते हैं और जिन्हें धरती पर फिरदौस में हमेशा जीने की आशा है।

18 प्रेरित यहून्‍ना ने हमारे समय में होनेवाले बटोरने के इस काम का एक दर्शन देखा था। सबसे पहले उसने 1,44,000 के आखिरी अभिषिक्‍त मसीहियों पर मुहर लगाए जाने की घोषणा सुनी। फिर उसने देखा कि यहोवा और यीशु के सामने एक “बड़ी भीड़” खड़ी है, “जिसे कोई गिन नहीं सकता” और जिनके “हाथों में खजूर की डालियां” हैं। यह भीड़ “बड़े क्लेश में से निकलकर” नयी दुनिया में दाखिल हुई है। आज बड़ी भीड़ के लोग भी अभिषिक्‍त मसीहियों की तरह इस पुरानी व्यवस्था में यात्री हैं। वे पूरे यकीन के साथ उस दिन की आस लगाए हुए हैं, जब “मेम्ना . . . उनकी रखवाली करेगा; और उन्हें जीवन रूपी जल के सोतों के पास ले जा[एगा]।” और उस वक्‍त “परमेश्‍वर उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।” (प्रकाशितवाक्य 7:1-10, 14-17) मसीह के एक हज़ार साल की हुकूमत के खत्म होने के बाद, जब बड़ी भीड़ और पुनरुत्थान पाए वफादार लोगों को हमेशा की ज़िंदगी दी जा चुकी होगी, तब झोंपड़ियों का यह लाक्षणिक पर्व खत्म हो जाएगा।—प्रकाशितवाक्य 20:5.

19. इस्राएल में मनाए जानेवाले पर्वों पर गौर करने से हमें कैसे फायदा होता है?

19 जब हम प्राचीन समय के यहूदी पर्वों पर मनन करते हैं, तो हम भी “आनन्द” कर सकते हैं। वाकई जब हम गौर करते हैं कि यहोवा ने कैसे पर्वों के ज़रिए अदन में की भविष्यवाणी के पूरे होने की झलक दी, तो हमारे अंदर एक सिहरन-सी दौड़ जाती है! साथ ही, जब हम खुद इस भविष्यवाणी के एक-एक पहलू को पूरा होते देखते हैं, तो हम और भी रोमांचित हो उठते हैं। आज हम जानते हैं कि वह वंश आ चुका और उसकी एड़ी को डसा जा चुका है। और वह अब स्वर्ग में एक राजा है। यही नहीं, 1,44,000 के ज़्यादातर जनों ने पूरी वफादारी के साथ धरती पर अपना जीवन पूरा कर लिया है। अब और क्या होना बाकी है? अदन में की भविष्यवाणी को पूरा होने में और कितना वक्‍त रह गया है? यह हम अगले लेख में चर्चा करेंगे। (w07 1/1)

[फुटनोट]

^ निसान का महीना, हमारे कैलेंडर में लगभग मार्च-अप्रैल के महीने में पड़ता है।

^ हिलाने की भेंट में, खमीर के साथ पकायी गयी दो रोटियों को याजक अकसर अपनी हथेलियों पर रखकर ऊपर उठाता था और फिर दायें-बायें हिलाता था। इस तरह हिलाना दिखाता था कि यहोवा को बलिदान की गयी चीज़, उसे भेंट के तौर पर पेश की जा रही है।इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 2 का पेज 528 देखिए; इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ एतानीम या तिशरी का महीना, हमारे कैलेंडर में लगभग सितंबर-अक्टूबर में पड़ता है।

क्या आप समझा सकते हैं?

• फसह का मेम्ना किसे दर्शाता था?

• पिन्तेकुस्त का पर्व, किन्हें इकट्ठा किए जाने की झलक थी?

• प्रायश्‍चित्त के दिन जो बलिदान चढ़ाए जाते थे, वे कैसे यीशु के छुड़ौती बलिदान पर लागू होते हैं?

• किस मायने में झोंपड़ियों के पर्व से मसीहियों को इकट्ठा करने की झलक मिलती थी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 24, 25 पर चार्ट]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

फसह का पर्व

निसान 14

घटना:

फसह के मेम्ने का घात करना

इस बात की झलक थी:

यीशु का बलिदान

अखमीरी रोटी का पर्व (निसान 15-21)

निसान 15

घटना:

सब्त

निसान 16

घटना:

जौ की भेंट चढ़ाना

इस बात की झलक थी:

यीशु का पुनरुत्थान

50 दिन

अठवारों का पर्व (पिन्तेकुस्त)

सीवान 6

घटना:

दो रोटियों की भेंट चढ़ाना

इस बात की झलक थी:

यीशु ने यहोवा को अपने अभिषिक्‍त भाई पेश किए

प्रायश्‍चित्त का दिन

तिशरी 10

घटना:

एक बछड़े और दो बकरे की बलि चढ़ाना

इस बात की झलक थी:

यीशु ने सभी इंसानों की खातिर अपने लहू की कीमत पेश की

झोंपड़ियों का पर्व (बटोरन या मण्डपों का पर्व)

तिशरी 15-21

घटना:

इस्राएली खुशी-खुशी झोंपड़ियों में रहते थे, कटनी की खुशी मनाते थे, और 70 बैल की भेंट चढ़ायी जाती थी

इस बात की झलक थी:

अभिषिक्‍त मसीहियों और “बड़ी भीड़” का इकट्ठा किया जाना

[पेज 23 पर तसवीरें]

फसह के मेम्ने के लहू की तरह, यीशु का बहाया गया लहू भी कई लोगों को उद्धार दिलाता है

[पेज 24 पर तसवीरें]

निसान 16 को चढ़ायी जानेवाली जौ की पहली उपज, यीशु के पुनरुत्थान की निशानी थी

[पेज 25 पर तसवीरें]

पिन्तेकुस्त के दिन चढ़ायी जानेवाली दो रोटियाँ, अभिषिक्‍त मसीहियों की कलीसिया को दर्शाती थीं

[पेज 26 पर तसवीरें]

झोंपड़ियों का पर्व, सभी जातियों से अभिषिक्‍त जनों और “बड़ी भीड़” के लोगों के इकट्ठा किए जाने को दर्शाता था