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यहोवा “अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा” देता है

यहोवा “अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा” देता है

यहोवा “अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा” देता है

“जब तुम बुरे होकर अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।”—लूका 11:13.

1. हमें खासकर कब पवित्र आत्मा की मदद की ज़रूरत पड़ती है?

 ‘यह तकलीफ मेरे सहने के बाहर है। अब सिर्फ पवित्र आत्मा ही मुझे धीरज धरने की ताकत दे सकती है!’ क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है? ज़्यादातर मसीहियों ने अपनी ज़िंदगी में ऐसा महसूस किया है। शायद आपके मन में भी ये भावनाएँ तब उभरी हों जब आपको पता चला कि आपको एक जानलेवा बीमारी है। या तब जब आपने अपने जीवन-साथी को मौत में खो दिया हो जिसके साथ आपने ज़िंदगी के कई साल गुज़ारे थे। या फिर हो सकता है कि पहले आप बड़े खुशमिज़ाज़ और ज़िंदादिल इंसान थे, मगर अब आप निराशा के घुप्प अँधेरे में खो गए हैं। ज़िंदगी के इन दर्दनाक लमहों में, आपने शायद महसूस किया होगा कि आप यह सब इसलिए झेल पा रहे हैं, क्योंकि यहोवा की पवित्र आत्मा आपको “असीम सामर्थ” दे रही है।—2 कुरिन्थियों 4:7-9; भजन 40:1, 2.

2. (क) सच्चे मसीही किन मुश्‍किलों का सामना करते हैं? (ख) इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

2 सच्चे मसीही होने के नाते, आज हमें इस अधर्मी संसार के बढ़ते दबावों और विरोध का सामना करना पड़ता है। (1 यूहन्‍ना 5:19) इसके अलावा, हम शैतान इब्‌लीस का खास निशाना हैं। वह उन सभी के खिलाफ ज़बरदस्त युद्ध लड़ रहा है, “जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं।” (प्रकाशितवाक्य 12:12, 17) इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं कि पहले से कहीं ज़्यादा आज, हमें परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की मदद की ज़रूरत है। मगर यह आत्मा हमें बहुतायत में मिलती रहे, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? हम क्यों यह यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आज़माइश की घड़ी में, हमें ज़रूरी ताकत देने के लिए न सिर्फ हरदम तैयार है बल्कि ऐसा करने में उसे खुशी भी मिलती है? हमें इन सवालों के जवाब यीशु के दो दृष्टांतों से मिलते हैं।

प्रार्थना में लगे रहिए

3, 4. यीशु ने कौन-सा दृष्टांत बताया, और उसे प्रार्थना पर कैसे लागू किया?

3 एक बार, यीशु के एक चेले ने उससे गुज़ारिश की: ‘हे प्रभु, हमें प्रार्थना करना सिखा।’ (लूका 11:1) इस पर यीशु ने अपने चेलों को दो दृष्टांत बताए, जिनका एक-दूसरे से ताल्लुक था। पहला दृष्टांत एक आदमी के बारे में है, जो अपने घर पर आए मेहमान की खातिरदारी करता है। दूसरा दृष्टांत एक पिता के बारे में है, जो अपने बेटे की फरमाइश पूरी करता है। अब आइए हम एक-एक करके इन दोनों दृष्टांतों पर गौर करें।

4 यीशु ने कहा: “तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास जाकर उस से कहे, कि हे मित्र; मुझे तीन रोटियां दे। क्योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिये मेरे पास कुछ नहीं है। और वह भीतर से उत्तर दे, कि मुझे दुख न दे; अब तो द्वार बन्द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर हैं, इसलिये मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता? मैं तुम से कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्जा छोड़कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्‍यकता हो उतनी उठकर देगा।” फिर यीशु ने समझाया कि यह दृष्टांत, प्रार्थना पर कैसे लागू होता है। उसने कहा: “मैं तुम से कहता हूं; कि मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा।”—लूका 11:5-10.

5. प्रार्थना करते वक्‍त हमारा जो नज़रिया होना चाहिए, इस बारे में हम दृष्टांत के मेज़बान से क्या सीख सकते हैं?

5 यह जीता-जागता दृष्टांत दिखाता है कि प्रार्थना करते वक्‍त हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए। गौर कीजिए, यीशु ने कहा कि वह आदमी ‘लज्जा छोड़कर माँगता रहा,’ इसलिए उसे जो चाहिए था वह उसे मिला। (लूका 11:8) बाइबल में “लज्जा छोड़कर मांगने” का ज़िक्र सिर्फ एक ही बार किया गया है। अकसर लज्जा छोड़ना या त्यागना, एक बुरी बात मानी जाती है। लेकिन अगर कोई भले काम करने के लिए अपनी लज्जा त्याग देता है या डटा रहता, तो इसे काबिले-तारीफ गुण समझा जा सकता है। और यही बात दृष्टांत के मेज़बान के बारे में सच थी। उसे जो चाहिए था, उसे माँगते रहने में उसने ज़रा भी हिचकिचाहट महसूस नहीं की। यीशु ने बताया कि यह मेज़बान हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है। इसका मतलब है कि हमें भी प्रार्थना करने में लगे रहना चाहिए। यहोवा चाहता है कि हम ‘मांगते रहे, ढूंढ़ते रहे, खटखटाते रहे।’ और बदले में वह “अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा” ज़रूर देगा।

6. यीशु के ज़माने में मेहमाननवाज़ी दिखाने के दस्तूर के बारे में लोगों की क्या राय थी?

6 यीशु ने प्रार्थना में बेझिझक लगे रहने के अलावा, यह भी बताया कि हमें ऐसा क्यों करना चाहिए। इसे और भी अच्छी तरह समझने के लिए, आइए हम सबसे पहले यह देखें कि यीशु के ज़माने में, मेहमाननवाज़ी दिखाने के दस्तूर के बारे में लोगों की क्या राय थी। बाइबल में दर्ज़ बहुत-से ब्यौरे दिखाते हैं कि उन्हें लिखे जाने के समय में, लोग खासकर परमेश्‍वर के सेवक, घर आए मेहमानों की खातिरदारी करने के मामले को बहुत गंभीरता से लेते थे। (उत्पत्ति 18:2-5; इब्रानियों 13:2) अगर एक इंसान मेहमाननवाज़ी दिखाने से चूक जाता था, तो पूरी बिरादरी में उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाती थी। (लूका 7:36-38, 44-46) इस जानकारी को मन में रखते हुए, आइए हम दोबारा यीशु की कहानी पर एक नज़र डालें।

7. यीशु के दृष्टांत का मेज़बान, अपने दोस्त को नींद से जगाने में क्यों झिझक महसूस नहीं करता?

7 दृष्टांत में बताए मेज़बान के घर पर आधी रात को एक मेहमान आता है। मेज़बान को लगता है कि उसे खाना खिलाना उसका फर्ज़ है, मगर “उसके आगे रखने के लिये [उसके] पास कुछ नहीं है।” अब वह क्या करता? उसे कहीं-न-कहीं से तो रोटी लानी ही है, फिर चाहे इसके लिए उसे कितनी ही तकलीफ क्यों न उठानी पड़े। आखिर, यह उसकी इज़्ज़त का सवाल था! इसलिए वह अपने दोस्त के पास जाता है और बेझिझक उसे नींद से जगाता है। वह ऊँची आवाज़ में पुकारता है: “हे मित्र; मुझे तीन रोटियां दे।” और वह तब तक माँगते रहता है जब तक कि उसे रोटियाँ नहीं मिल जातीं। क्योंकि बिना रोटी के वह अपने मेहमान की खातिरदारी कैसे करता और एक अच्छा मेज़बान कैसे साबित होता?

ज़्यादा चाहिए, तो ज़्यादा माँगिए

8. क्या बात हमें परमेश्‍वर से लगातार पवित्र आत्मा माँगने के लिए उकसाएगी?

8 दृष्टांत में यह भी बताया गया है कि हम प्रार्थना में क्यों लगे रहते हैं। वह आदमी रोटियाँ माँगता रहा क्योंकि वह जानता था कि अगर उसे मेज़बान होने का फर्ज़ निभाना है, तो उसके पास रोटियाँ होना ज़रूरी है। (यशायाह 58:5-7) वरना, वह अपना फर्ज़ पूरा करने में नाकाम हो जाएगा। उसी तरह, हमें यह एहसास है कि सच्चे मसीही होने के नाते हमें जो सेवा मिली है, उसे पूरा करने के लिए हमें परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की बहुत ज़रूरत है। इसलिए हम परमेश्‍वर से उस आत्मा के लिए लगातार बिनती करते हैं। (जकर्याह 4:6) वरना, पवित्र आत्मा के बगैर हम भी अपनी सेवा में नाकाम हो जाएँगे। (मत्ती 26:41) क्या आप देख सकते हैं कि हम इस दृष्टांत से कौन-सा ज़रूरी सबक सीखते हैं? अगर हम दिल से मानते हैं कि हमें अपनी ज़िंदगी में पवित्र आत्मा की सख्त ज़रूरत है, तो हम उसके लिए परमेश्‍वर से बिनती करते रहेंगे।

9, 10. (क) मिसाल देकर समझाइए कि हमें क्यों परमेश्‍वर से उसकी आत्मा माँगने में लगे रहना चाहिए। (ख) हमें खुद से क्या सवाल पूछना चाहिए, और क्यों?

9 आइए हम अब इस सबक को आज के ज़माने के हालात पर लागू करें। मान लीजिए कि आधी रात को, आपके घर में किसी की तबियत खराब हो जाती है। ऐसे में क्या आप डॉक्टर को बुलाने के लिए उसे नींद से नहीं जगाएँगे? अगर आपके अज़ीज़ को कोई छोटी-मोटी तकलीफ है, तो ज़ाहिर है आप ऐसा नहीं करेंगे। लेकिन अगर उसे दिल का दौरा पड़ा है, तो आप बेशक डॉक्टर को बुलाने में नहीं हिचकिचाएँगे। क्यों नहीं? क्योंकि यह आपके अज़ीज़ की ज़िंदगी और मौत का सवाल है! आप जानते हैं कि अगर आप डॉक्टर को नहीं बुलाएँगे तो उसकी जान जा सकती है। उसी तरह, एक मायने में सच्चे मसीहियों की भी जान खतरे में है। क्योंकि शैतान एक “गर्जनेवाले सिंह” की तरह हमें फाड़ खाने की फिराक में घूम रहा है। (1 पतरस 5:8) ऐसे में, अगर हम आध्यात्मिक मायने में ज़िंदा रहना चाहते हैं, तो परमेश्‍वर की आत्मा की मदद लेना हमारे लिए निहायत ज़रूरी है। अगर हम परमेश्‍वर से मदद नहीं माँगेंगे, तो हमें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। इसलिए परमेश्‍वर से बेझिझक उसकी पवित्र आत्मा माँगते रहिए। (इफिसियों 3:14-16) ऐसा करने से ही हम “अन्त तक धीरज ध[रने]” की अपनी ताकत बरकरार रख पाएँगे।—मत्ती 10:22; 24:13.

10 इसलिए कभी-कभी कुछ पल रुककर हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए: ‘क्या मैं वाकई प्रार्थना में लगा रहता हूँ?’ याद रखिए, जब यह बात हमारे दिल में घर कर जाएगी कि हमें परमेश्‍वर की मदद की ज़रूरत है, तब हम उसकी पवित्र आत्मा माँगने में और भी ज़्यादा लगे रहेंगे।

क्या बात हमें पूरे यकीन के साथ प्रार्थना करने के लिए उकसाती है?

11. यीशु ने एक पिता और बेटे के दृष्टांत को किस तरह प्रार्थना के मामले में लागू किया?

11 यीशु ने मेज़बान का दृष्टांत देकर बताया कि प्रार्थना करनेवाले यानी परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखनेवाले इंसान का नज़रिया कैसा होना चाहिए। अब आइए हम दूसरे दृष्टांत पर गौर करें जो दिखाता है कि प्रार्थना का सुननेवाला, यहोवा परमेश्‍वर कैसा रवैया दिखाता है। यीशु ने कहा: “तुम में से ऐसा कौन पिता होगा, कि जब उसका पुत्र रोटी मांगे, तो उसे पत्थर दे: या मछली मांगे, तो मछली के बदले उसे सांप दे? या अण्डा मांगे तो उसे बिच्छू दे?” फिर यीशु ने इस दृष्टांत का मतलब समझाते हुए कहा: “सो जब तुम बुरे होकर अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।”—लूका 11:11-13.

12. पिता का अपने बेटे की फरमाइश पूरी करने का दृष्टांत कैसे दिखाता है कि यहोवा हमारी प्रार्थनाओं को सुनने के लिए तैयार है?

12 पिता अपने बेटे की फरमाइश जिस तरह पूरी करता है, उसकी मिसाल देकर यीशु ने ज़ाहिर किया कि यहोवा उससे प्रार्थना करनेवालों के बारे में कैसा महसूस करता है। (लूका 10:22) लेकिन सबसे पहले आइए हम गौर करें कि इन दो दृष्टांतों में क्या फर्क है। पहले दृष्टांत में मेज़बान का दोस्त, मदद देने से ना-नुकुर करता है। लेकिन यहोवा उस दोस्त के जैसा नहीं है। इसके बजाय, वह दूसरे दृष्टांत में बताए पिता की तरह है, जो अपने बच्चे की परवाह करता है और उसकी फरमाइश पूरी करने के लिए बेताब है। (भजन 50:15) यहोवा हमारी मदद करने के लिए हरदम तैयार है, इस बात को समझाने के लिए यीशु ने यहोवा की तुलना एक इंसानी पिता से करने के साथ-साथ, यह भी बताया कि वह इंसानी पिता से कहीं बढ़कर है। उसने कहा कि अगर एक पिता, जो जन्म से पापी होने की वजह से ‘बुरा’ है, अपने बेटे को अच्छे-अच्छे तोहफे देता है, तो यह उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि हमारा भला चाहनेवाला स्वर्गीय पिता अपने उपासकों से बने परिवार को पवित्र आत्मा ज़रूर देगा!—याकूब 1:17.

13. यहोवा से प्रार्थना करते वक्‍त, हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

13 इस दृष्टांत से हम क्या सबक सीखते हैं? हम इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि जब हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से पवित्र आत्मा माँगते हैं, तो वह हमारी यह गुज़ारिश पूरी करने के लिए न सिर्फ तैयार रहता है बल्कि ऐसा करने में उसे खुशी भी मिलती है। (1 यूहन्‍ना 5:14) चाहे हम यहोवा से बार-बार प्रार्थना क्यों न करें, वह हमसे कभी यह नहीं कहेगा: “मुझे तंग मत कर, द्वार बंद हो चुका है।” (लूका 11:7, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसके बजाय, जैसा यीशु ने कहा: “मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा।” (लूका 11:9, 10) जी हाँ, ‘यहोवा उन सभों के निकट रहता है जो उसे पुकारते हैं।’—भजन 145:18.

14. (क) जब कुछ लोग आज़माइशों से गुज़रते हैं, तो कौन-सी गलत सोच उन्हें खाए जाती है? (ख) हम परीक्षाओं में क्यों पूरे भरोसे के साथ यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं?

14 यीशु ने एक परवाह करनेवाले पिता के दृष्टांत के ज़रिए इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यहोवा की भलाई, इंसानी माता-पिता की भलाई से कहीं बढ़कर है। इसलिए हममें से किसी को कभी ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्‍वर मुझसे खफा है, इसलिए मुझ पर आज़माइशें आयी हैं। असल में, यह हमारे सबसे बड़े दुश्‍मन, शैतान की एक चाल है जो चाहता है कि हम खुद को दोषी ठहराएँ। (अय्यूब 4:1, 7, 8; यूहन्‍ना 8:44) लेकिन बाइबल ऐसा नहीं सिखाती बल्कि यह बताती है कि यहोवा हमें “बुरी बातों से” नहीं परखता। (याकूब 1:13) जिस तरह एक प्यार करनेवाला पिता अपने बेटे को कोई भी ऐसी चीज़ नहीं देता है जिससे उसे नुकसान पहुँचे, उसी तरह यहोवा हम पर खतरनाक परीक्षाएँ या आज़माइशें नहीं लाता। इसके बजाय, वह “अपने मांगनेवालों को अच्छी वस्तुएं” देता है। (मत्ती 7:11; लूका 11:13) वाकई, हमें जितना ज़्यादा यहोवा की भलाई का और इस बात का एहसास होगा कि वह हमारी मदद करने के लिए हरदम तैयार है, उतना ही ज़्यादा हम भरोसे के साथ प्रार्थना करेंगे। ऐसा करने से हम भजनहार की जैसी भावना ज़ाहिर कर पाएँगे, जिसने लिखा था: “परमेश्‍वर ने तो सुना है; उस ने मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दिया है।”—भजन 10:17; 66:19.

पवित्र आत्मा कैसे हमारी सहायक है

15. (क) यीशु ने पवित्र आत्मा के बारे में क्या वादा किया? (ख) पवित्र आत्मा किस खास तरीके से हमारी मदद करती है?

15 यीशु ने दो दृष्टांतों के ज़रिए जो भरोसा दिलाया, उसे उसने अपनी मौत से कुछ समय पहले फिर से दोहराया था। उसने पवित्र आत्मा के बारे में अपने प्रेरितों से कहा: “मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे।” (यूहन्‍ना 14:16) इस तरह यीशु ने वादा किया कि यह सहायक या पवित्र आत्मा आनेवाले समयों में, यानी हमारे दिनों में भी उसके चेलों के साथ रहेगी। पवित्र आत्मा किस खास तरीके से हमारी मदद करती है? यह हमें तरह-तरह की परीक्षाओं में धीरज धरने में मदद देती है। वह कैसे? प्रेरित पौलुस जिसने खुद कई आज़माइशों का सामना किया था, उसने कुरिन्थुस के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में समझाया कि परमेश्‍वर की आत्मा ने कैसे उसकी मदद की थी। आइए हम कुछ पल के लिए उसकी लिखी बातों पर गौर करें।

16. हमारे हालात पौलुस की तरह कैसे हो सकते हैं?

16 पौलुस ने सबसे पहले अपने मसीही भाई-बहनों को खुलकर बताया कि उसके “शरीर में एक कांटा चुभाया गया” है, यानी वह एक किस्म की आज़माइश से गुज़र रहा था। फिर उसने कहा: “मैं ने प्रभु [यहोवा] से तीन बार बिनती की, कि मुझ से यह दूर हो जाए।” (2 कुरिन्थियों 12:7, 8) हालाँकि पौलुस ने परमेश्‍वर से गिड़गिड़ाकर बिनती की, मगर उसकी तकलीफ दूर नहीं हुई। हो सकता है कि आज, आप भी पौलुस के जैसे हालात का सामना कर रहे हों। शायद आपने पूरे यकीन के साथ, यहोवा से कई बार बिनती की होगी कि वह आपकी आज़माइश हटा दे। मगर आपकी तकलीफ दूर नहीं हुई है। तो क्या इसका मतलब यह है कि यहोवा ने आपकी प्रार्थनाओं का जवाब नहीं दिया और उसकी आत्मा आपकी मदद नहीं कर रही है? ऐसा बिलकुल नहीं है। (भजन 10:1, 17) ध्यान दीजिए कि प्रेरित पौलुस ने आगे क्या कहा।

17. यहोवा ने पौलुस की प्रार्थनाओं का जवाब कैसे दिया?

17 पौलुस की प्रार्थनाओं के जवाब में, परमेश्‍वर ने उससे कहा: “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है।” फिर पौलुस ने कहा: “इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर [“एक तंबू की तरह,” NW] छाया करती रहे।” (2 कुरिन्थियों 12:9; भजन 147:5) पौलुस ने महसूस किया कि परमेश्‍वर, मसीह के ज़रिए बहुत ही ज़बरदस्त तरीके से उसकी हिफाज़त कर रहा है, मानो उस पर तंबू ताना गया हो। आज, यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब भी इसी तरह देता है। वह मानो हम पर तंबू तानकर हमारी हिफाज़त करता है।

18. हम परीक्षाओं में क्यों धीरज रख पाते हैं?

18 यह सच है कि तंबू में रहने से बारिश की बौछार पड़ना बंद नहीं हो जाती और ना ही हवा चलनी रुक जाती है। लेकिन हाँ, इससे कुछ हद तक हमें खराब मौसम से पनाह ज़रूर मिलती है। उसी तरह, “मसीह की सामर्थ” से मिलनेवाली छाया हम पर आनेवाली हर मुसीबत या आज़माइश को नहीं रोकती। मगर यह हमें आध्यात्मिक मायने में संसार के लोगों, उनके रवैयों और तौर-तरीकों से ज़रूर बचाती है। साथ ही, यह हमें दुनिया के शासक, शैतान के हमलों से भी हिफाज़त करती है। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 15, 16) इसलिए अगर आप ऐसी आज़माइश से गुज़र रहे हैं, जो “दूर” होने का नाम ही नहीं ले रही है, तो यकीन रखिए कि यहोवा जानता है कि आप कितना संघर्ष कर रहे हैं। साथ ही, उसने आपकी “दोहाई” सुनकर उसका जवाब दे दिया है। (यशायाह 30:19; 2 कुरिन्थियों 1:3, 4) पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, बरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको।”—1 कुरिन्थियों 10:13; फिलिप्पियों 4:6, 7.

19. आपने क्या करने की ठानी है, और क्यों?

19 माना कि आज, इस दुष्ट संसार के “अन्तिम दिनों” का बहुत ही “कठिन समय” चल रहा है। (2 तीमुथियुस 3:1) फिर भी, परमेश्‍वर के सेवक इन मुश्‍किल हालात का सामना कर सकते हैं। क्यों? क्योंकि परमेश्‍वर की आत्मा उनकी मदद और हिफाज़त करती है। यहोवा खुशी-खुशी अपनी यह आत्मा उन्हें बहुतायत में देता है, जो पूरे विश्‍वास के साथ, बार-बार इसकी गुज़ारिश करते हैं। इसलिए आइए हम ठान लें कि हम हर दिन यहोवा से उसकी पवित्र आत्मा के लिए प्रार्थना करेंगे।—भजन 34:6; 1 यूहन्‍ना 5:14, 15. (w06 12/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

• जब हम यहोवा से पवित्र आत्मा माँगते हैं, तब हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि वह हमें जवाब ज़रूर देगा?

• पवित्र आत्मा, परीक्षाओं में धीरज धरने में हमारी मदद कैसे करती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

यीशु ने माँगने में डटे रहनेवाले मेज़बान का जो दृष्टांत बताया था, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

[पेज 14 पर तसवीर]

क्या आप परमेश्‍वर से पवित्र आत्मा माँगने के लिए बार-बार प्रार्थना करते हैं?

[पेज 15 पर तसवीर]

एक परवाह करनेवाले पिता के दृष्टांत से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?