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“यहोवा का भयानक दिन निकट है”

“यहोवा का भयानक दिन निकट है”

“यहोवा का भयानक दिन निकट है”

“यहोवा का भयानक दिन निकट है, वह बहुत वेग से समीप चला आता है।”—सपन्याह 1:14.

1, 2. (क) मसीही किस खास दिन का इंतज़ार कर रहे हैं? (ख) हमें कौन-से सवाल पूछने चाहिए, और क्यों?

 एक लड़की, जो खुशी से लाल हो रही है, बड़ी बेकरारी से अपनी शादी के दिन का इंतज़ार करती है। एक गर्भवती माँ, जिसके चेहरे से ममता झलक रही है, अपने बच्चे को जन्म देने की घड़ियाँ गिनती है। एक थका हुआ कामकाजी आदमी मन-ही-मन सोचता है कि काश, वह दिन जल्दी आ जाए जब उसकी छुट्टियाँ शुरू होंगी। इन तीनों में एक मिलती-जुलती बात क्या है? वे सब एक खास दिन की आस लगाए हुए हैं, जिसका उनकी ज़िंदगी पर गहरा असर होगा। हालाँकि वे सभी बेचैन हैं, मगर उनकी भावनाएँ अलग-अलग हैं। उन्हें जिस दिन का इंतज़ार है, वह ज़रूर आएगा और वे उम्मीद करते हैं कि वे उस दिन के लिए तैयार रहेंगे।

2 उसी तरह, आज सच्चे मसीही बेसब्री से एक खास दिन के आने का इंतज़ार कर रहे हैं। यह खास दिन “यहोवा का [महान] दिन” है। (यशायाह 13:9; योएल 2:1; 2 पतरस 3:12) ‘यहोवा का दिन’ क्या है और इसके आने से इंसानों पर क्या असर होगा? और-तो-और, हम कैसे पक्का कर सकते हैं कि हम उस दिन के लिए तैयार हैं? आज हमारे लिए इन सवालों के जवाब ढूँढ़ना निहायत ज़रूरी है। क्योंकि सबूत दिखाते हैं कि बाइबल की यह बात सौ-फीसदी सच है: “यहोवा का भयानक दिन निकट है, वह बहुत वेग से समीप चला आता है।”—सपन्याह 1:14.

“यहोवा का भयानक दिन”

3. “यहोवा का भयानक दिन” क्या है?

3 “यहोवा का भयानक दिन” क्या है? पूरी बाइबल में जहाँ-जहाँ ‘यहोवा का दिन’ शब्दों का ज़िक्र आता है, उससे पता चलता है कि यह एक खास दौर होता था जिसमें यहोवा अपने दुश्‍मनों पर न्यायदंड लाता था और अपने महान नाम को रोशन करता था। मिसाल के लिए, परमेश्‍वर ने यहूदा और यरूशलेम के विश्‍वासघाती लोगों पर, साथ ही बाबुल और मिस्र के ज़ालिम लोगों पर न्यायदंड लाया था। इस तरह उन्हें ‘यहोवा के दिन’ का सामना करना पड़ा था। (यशायाह 2:1, 10-12; 13:1-6; यिर्मयाह 46:7-10) लेकिन ‘यहोवा के [सबसे बड़े] दिन’ का आना अभी-भी बाकी है। उस “दिन” यहोवा उन लोगों का न्याय करेगा जो उसके नाम को बदनाम करते हैं। वह दिन, ‘बड़े बाबुल’ यानी झूठे धर्म के साम्राज्य के नाश से शुरू होगा और हरमगिदोन में शैतान की बाकी दुष्ट व्यवस्था के नाश से खत्म होगा।—प्रकाशितवाक्य 16:14, 16; 17:5, 15-17; 19:11-21.

4. ज़्यादातर इंसानों को जल्द आनेवाले यहोवा के दिन से क्यों खौफ खाने की ज़रूरत है?

4 ज़्यादातर इंसानों को जल्द आनेवाले यहोवा के दिन से क्यों खौफ खाने की ज़रूरत है? इसका जवाब यहोवा अपने नबी, सपन्याह के ज़रिए देता है: “वह रोष का दिन होगा, वह संकट और सकेती का दिन, वह उजाड़ और उधेड़ का दिन, वह अन्धेर और घोर अन्धकार का दिन, वह बादल और काली घटा का दिन होगा।” वह क्या ही भयानक दिन होगा, है ना! यही नहीं, नबी आगे कहता है: “मैं मनुष्यों को संकट में डालूंगा, . . . क्योंकि उन्हों ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।”—सपन्याह 1:15, 17.

5. लाखों लोग बेसब्री से यहोवा के दिन के आने का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं?

5 दूसरी तरफ, ऐसे लाखों लोग हैं जो बेसब्री से यहोवा के दिन के आने का इंतज़ार कर रहे हैं। भला क्यों? क्योंकि वे जानते हैं कि यह दिन धर्मियों के लिए उद्धार और छुटकारे का दिन होगा। और उसी दिन यहोवा महाप्रतापी साबित होगा और उसके गौरवशाली नाम को पवित्र किया जाएगा। (योएल 3:16, 17; सपन्याह 3:12-17) लोग आज जिस तरीके से अपनी ज़िंदगी बिता रहे हैं, उसी से तय होता है कि क्या उन्हें उस दिन से खौफ खाना चाहिए या उसका बेसब्री से इंतज़ार करना चाहिए। आपके बारे में क्या? यहोवा के दिन के आने के बारे में आपका नज़रिया क्या है? क्या आप उस दिन के लिए तैयार हैं? क्या इस बात से आपकी रोज़ाना ज़िंदगी पर असर होता है कि यहोवा का दिन कभी-भी आ सकता है?

“हंसी ठट्ठा करनेवाले आएंगे”

6. ज़्यादातर लोग ‘यहोवा के दिन’ के बारे में क्या नज़रिया रखते हैं, और यह देखकर सच्चे मसीहियों को क्यों हैरानी नहीं होती?

6 आज हम बहुत ही नाज़ुक दौर में जी रहे हैं। फिर भी, दुनिया के ज़्यादातर लोगों को कोई फिक्र नहीं कि “यहोवा का दिन” तेज़ी से पास आ रहा है। उलटा, वे सच्चे मसीहियों का मज़ाक उड़ाते हैं और उन पर ताने कसते हैं, जो उस दिन के बारे में दूसरों को खबरदार कर रहे हैं। मगर लोगों का यह रवैया देखकर मसीहियों को कोई हैरानी नहीं होती है। इसके बजाय, वे प्रेरित पतरस की इस चेतावनी को याद रखते हैं: “यह पहिले जान लो, कि अन्तिम दिनों में हंसी ठट्ठा करनेवाले आएंगे, जो अपनी ही अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे। और कहेंगे, उसके आने की प्रतिज्ञा कहां गई? क्योंकि जब से बाप-दादे सो गए हैं, सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से था?”—2 पतरस 3:3, 4.

7. हम कैसे वक्‍त की नज़ाकत को हमेशा ध्यान में रख सकते हैं?

7 हमें हँसी-ठट्ठा करनेवाले लोगों की गलत सोच को अपने अंदर कभी पनपने नहीं देना चाहिए, बल्कि हमेशा वक्‍त की नज़ाकत को ध्यान में रखना चाहिए। हम यह कैसे कर सकते हैं? पतरस हमें बताता है: “[मैं] सुधि दिलाकर तुम्हारे शुद्ध मन को उभारता हूं। कि तुम उन बातों को, जो पवित्र भविष्यद्वक्‍ताओं ने पहिले से कही हैं और प्रभु, और उद्धारकर्त्ता की उस आज्ञा को स्मरण करो, जो तुम्हारे प्रेरितों के द्वारा दी गई थी।” (2 पतरस 3:1, 2) हम अपने “शुद्ध मन” यानी ठीक-ठीक सोचने की काबिलीयत को तभी ‘उभार’ पाएँगे, जब हम भविष्यवाणियों में दी चेतावनियों पर ध्यान देंगे। हो सकता है कि हमें ये बातें बार-बार याद दिलायी गयी हों, मगर आज हमें पहले से कहीं ज़्यादा इन पर ध्यान देने की ज़रूरत है।—यशायाह 34:1-4; लूका 21:34-36.

8. बहुत-से लोग बाइबल की चितौनियों को क्यों नज़रअंदाज़ कर देते हैं?

8 लेकिन दुनिया के बहुत-से लोग इन चितौनियों को क्यों नज़रअंदाज़ कर देते हैं? पतरस आगे कहता है: “वे तो जान बूझकर यह भूल गए, कि परमेश्‍वर के वचन के द्वारा से आकाश प्राचीन काल से वर्तमान है और पृथ्वी भी जल में से बनी और जल में स्थिर है। इन्हीं के द्वारा उस युग का जगत जल में डूब कर नाश हो गया।” (2 पतरस 3:5, 6) जी हाँ, ऐसे भी लोग हैं जो नहीं चाहते कि यहोवा का दिन आए। वे अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इतने मस्त हैं कि वे कोई रोक-टोक नहीं चाहते। उन्हें यह हरगिज़ मंज़ूर नहीं कि वे जिस तरीके से अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे हुए हैं, उसका लेखा उन्हें यहोवा को देना पड़े। जैसे पतरस ने बताया, वे “अपनी ही अभिलाषाओं के अनुसार” जी रहे हैं।

9. नूह और लूत के दिनों में, लोगों ने कैसा रवैया दिखाया था?

9 ठट्ठा करनेवाले “जान बूझकर” इस बात से अपनी आँखें मूँद लेते हैं कि यहोवा ने प्राचीन समय में इंसानी मामलों में दखल दिया था। यीशु मसीह और प्रेरित पतरस ने ऐसी दो घटनाओं का ज़िक्र किया था। एक घटना “नूह के दिनों में” घटी थी और दूसरी “लूत के दिनों में।” (लूका 17:26-30; 2 पतरस 2:5-9) जलप्रलय से पहले, लोगों ने नूह की चेतावनियों को अनसुना कर दिया था। उसी तरह, सदोम और अमोरा के नाश से पहले जब लूत ने अपने दामादों को खबरदार किया, तो उन्होंने समझा कि वह “मजाक कर रहा है।”—उत्पत्ति 19:14, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

10. यहोवा, चेतावनियों को अनसुना करनेवालों से क्या कहता है?

10 आज भी लोग चेतावनियों को अनसुना कर रहे हैं। मगर गौर कीजिए कि यहोवा उनसे क्या कहता है: “जो लोग दाखमधु के तलछट तथा मैल के समान बैठे हुए मन में कहते हैं कि यहोवा न तो भला करेगा और न बुरा, उनको मैं दण्ड दूंगा। तब उनकी धन सम्पत्ति लूटी जाएगी, और उनके घर उजाड़ होंगे; वे घर तो बनाएंगे, परन्तु उन में रहने न पाएंगे; और वे दाख की बारियां लगाएंगे, परन्तु उन से दाखमधु न पीने पाएंगे।” (सपन्याह 1:12, 13) लोग शायद अपने हर दिन के “मामूली” कामों में लगे रहें, मगर उन्हें अपनी मेहनत की कमाई से हमेशा का फायदा नहीं होगा। क्यों? क्योंकि जब यहोवा का दिन अचानक उन पर आ पड़ेगा, तो उनकी जमा की गयी धन-दौलत उन्हें नहीं बचा पाएगी।—सपन्याह 1:18.

‘उसकी बाट जोहते रहिए’

11. हमें कौन-सी सलाह को गाँठ बाँध लेना चाहिए?

11 हमें दुनिया का रवैया अपनाने के बजाय, हबक्कूक नबी की इस सलाह को गाँठ बाँध लेना चाहिए: “इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है, वरन इसके पूरे होने का समय वेग से आता है; इस में धोखा न होगा। चाहे इस में विलम्ब भी हो, तौभी उसकी बाट जोहते रहना; क्योंकि वह निश्‍चय पूरी होगी और उस में देर न होगी।” (हबक्कूक 2:3) शायद हम असिद्ध इंसानों को लगे कि यहोवा के दिन के आने में अभी देर है। मगर हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा कभी देर नहीं करता। उसका दिन ठीक समय पर आएगा। और हाँ, यह ऐसा समय होगा जिसकी किसी इंसान ने उम्मीद भी नहीं की होगी।—मरकुस 13:33; 2 पतरस 3:9, 10.

12. यीशु ने अपने चेलों को किस बात से खबरदार किया था, और उसके विश्‍वासयोग्य चेले क्या कदम उठाते आए हैं?

12 यीशु ने भी यहोवा के दिन की बाट जोहते रहने पर ज़ोर दिया था। उसने अपने चेलों को खबरदार किया था कि उनमें से कुछ, वक्‍त की नज़ाकत को भूल जाएँगे। उसने उनके बारे में यह भविष्यवाणी की: “यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे, कि मेरे स्वामी के आने में देर है। और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए पीए। तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उस की बाट न जोहता हो। और ऐसी घड़ी कि वह न जानता हो, और उसे भारी ताड़ना दे[गा]।” (मत्ती 24:48-51) इसके बिलकुल उलट, विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग पूरी वफादारी से वक्‍त की नज़ाकत को ध्यान में रखता आया है। यह दास वर्ग हमेशा से तैयार और जागता रहा है। यीशु ने उसे धरती की ‘अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराया है।’—मत्ती 24:42-47.

जल्द-से-जल्द कदम उठाना ज़रूरी है

13. यीशु ने कैसे ज़ोर दिया कि पहली सदी के मसीहियों को जल्द-से-जल्द कदम उठाने की ज़रूरत थी?

13 पहली सदी में, मसीहियों के लिए वक्‍त की नज़ाकत को ध्यान में रखना बेहद ज़रूरी था। उन्हें बताया गया था कि जब वे यरूशलेम को “सेनाओं से घिरा” देखें, तो फौरन वहाँ से भाग जाएँ। (लूका 21:20, 21) ऐसा सा.यु. 66 में हुआ था। गौर कीजिए, यीशु ने कैसे इस बात पर ज़ोर दिया कि उस वक्‍त के मसीहियों को जल्द-से-जल्द कदम उठाने की सख्त ज़रूरत थी। उसने कहा: “जो घर की छत पर हो, वह घर में से कुछ लेने के लिए नीचे न उतरे। जो खेत में हो, वह अपना वस्त्र लेने को पीछे न लौटे।” (मत्ती 24:17, 18, NHT) लेकिन सा.यु. 66 में मसीहियों के लिए फौरन कदम उठाना क्यों ज़रूरी था, जबकि इतिहास दिखाता है कि यरूशलेम का नाश इसके चार साल बाद हुआ था?

14, 15. यरूशलेम को सेनाओं से घिरा देखकर, पहले सदी के मसीहियों को जल्द-से-जल्द कदम उठाने की ज़रूरत क्यों थी?

14 यह सच है कि रोमी सेना ने सा.यु. 70 में यरूशलेम को नाश किया था। मगर उन चार सालों के दौरान यरूशलेम में कोई शांति नहीं थी, बल्कि हर जगह अफरा-तफरी मची हुई थी। लोग एक-दूसरे को मार-काट रहे थे। एक इतिहासकार ने बताया कि यरूशलेम के हालात “बहुत ही खौफनाक थे। गृह-युद्ध छिड़ा हुआ था और खून की नदियाँ बहायी जा रही थीं। लोगों पर वहशियाना ज़ुल्म ढाए जा रहे थे।” जवान लड़कों को नगर की मोर्चाबंदी मज़बूत करने के लिए काम पर लगाया गया था। उन्हें फौज में भी भरती किया गया था और उनके हाथों में हथियार थमाए गए थे। उन्हें हर दिन फौजी कसरत करायी जाती थी। जो लोग यहूदी कट्टरपंथियों की हिमायत करने से इनकार कर देते थे, उन्हें गद्दार माना जाता था। इसलिए अगर मसीही नगर से भाग निकलने में ज़रा भी देर करते, तो वे बहुत ही खतरनाक हालात में फँस जाते।—मत्ती 26:52; मरकुस 12:17.

15 गौर कीजिए कि यीशु ने सिर्फ यरूशलेम के नहीं बल्कि “यहूदिया” के मसीहियों को भी पहाड़ों पर भाग जाने के लिए कहा था। उनके लिए यह हिदायत मानना बहुत ज़रूरी था। क्योंकि रोमी सेना, यरूशलेम से चले जाने के कुछ ही महीनों बाद दोबारा वापस आयी और उसने यहूदियों के खिलाफ जंग छेड़ दी। सामान्य युग 67 में, उसने सबसे पहले गलील पर फतह हासिल की। फिर अगले साल, उसने बड़े तरतीब से पूरे यहूदिया पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। यरूशलेम के बाहर देहाती इलाकों में लोगों को रोमियों के हाथों बड़ी-बड़ी मुसीबतें झेलनी पड़ीं। यरूशलेम से भागने के सारे रास्ते भी बंद हो चुके थे। नगर के फाटकों पर यहूदियों ने भारी पहरा लगाया और जो कोई भागने की कोशिश करते वक्‍त पकड़ा जाता, उसे रोमियों का तरफदार समझा जाता था।

16. पहली सदी के मसीहियों को मुसीबत की घड़ी से बचने के लिए कैसा रवैया दिखाना था?

16 इन सारी बातों को मद्देनज़र रखते हुए, हम समझ सकते हैं कि क्यों यीशु ने जल्द-से-जल्द कदम उठाने पर ज़ोर दिया था। उस वक्‍त के मसीहियों को अपनी धन-संपत्ति से कोई लगाव नहीं रखना था, बल्कि उन्हें ‘अपना सब कुछ त्याग देने’ के लिए तैयार रहना था। दूसरे शब्दों में कहें तो यीशु की चेतावनी को मानने के लिए, उन्हें ‘अपनी सभी चीज़ों को अलविदा कहना था।’ (NW) (लूका 14:33) जो मसीही, यीशु की बात मानकर फौरन यरदन नदी के पार भाग गए, उनकी जान बच गयी।

वक्‍त की नज़ाकत को हमेशा ध्यान में रखना

17. हमें क्यों वक्‍त की नज़ाकत को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए?

17 बाइबल की भविष्यवाणियाँ साफ-साफ दिखाती हैं कि हम इस संसार के अंत की आखिरी घड़ी में जी रहे हैं। इसलिए हमें पहले से कहीं ज़्यादा आज, वक्‍त की नज़ाकत को ध्यान में रखने की ज़रूरत है। मिसाल के लिए, जब देश में शांति होती है तो एक फौजी को युद्ध की चिंता नहीं होती। मगर फिर भी उसे चौकस रहने की ज़रूरत है। क्योंकि अगर वह चौकस नहीं रहेगा और कल अचानक उसे लड़ाई के लिए बुलाया जाए, तो ज़ाहिर है कि वह इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं होगा। नतीजा, मैदाने-जंग में उसकी जान जा सकती है। आध्यात्मिक मायने में हम मसीही भी फौजी हैं। अगर हम धीरे-धीरे वक्‍त की नज़ाकत को भूलते जाएँगे, तो हम शायद आनेवाले हमलों का सामना करने के लिए तैयार नहीं होंगे। और आखिर में, यहोवा का दिन अचानक हम पर आ पड़ेगा। (लूका 21:36; 1 थिस्सलुनीकियों 5:4) अगर किसी मसीही ने “यहोवा का अनुसरण करना छोड़ दिया” (NHT) है, तो यही वक्‍त है कि वह उसे दोबारा ढूँढ़े।—सपन्याह 1:3-6; 2 थिस्सलुनीकियों 1:8,9.

18, 19. ‘परमेश्‍वर के दिन के जल्द आने’ के लिए यत्न करने में कौन-सी बातें हमारी मदद करेंगी?

18 इसलिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि प्रेरित पतरस ने हमें यह सलाह दी कि हम ‘परमेश्‍वर के दिन के जल्द आने’ के लिए यत्न करें, या उसे हमेशा मन में रखें। हम यह कैसे कर सकते हैं? एक तरीका है, “पवित्र चालचलन” बनाए रखने और “भक्‍ति” के काम करने के ज़रिए। (2 पतरस 3:11, 12) अगर हम इन कामों में लगे रहेंगे, तो हमें ‘यहोवा के दिन’ के आने का बेसब्री से इंतज़ार करने में मदद मिलेगी। दूसरा पतरस 3:12 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “यत्न करना” किया गया है, उसका शब्द-ब-शब्द मतलब है, “रफ्तार तेज़ करना।” दरअसल, यहोवा के दिन के आने का जितना समय बचा है, हम उसकी रफ्तार तेज़ नहीं कर सकते। लेकिन अगर हम यहोवा की सेवा में अपने आपको व्यस्त रखें, तो इंतज़ार की घड़ियाँ देखते-ही-देखते बीत जाएँगी।—1 कुरिन्थियों 15:58.

19 इसके अलावा, परमेश्‍वर के वचन पर मनन करने से और उसमें दी चितौनियों पर ध्यान देने से, हमें उस दिन के “आने की कामना करने (उम्मीद करने और जल्दी करने)” में मदद मिलेगी। जी हाँ, हम ‘हमेशा उम्मीद लगाए रखेंगे।’ (2 पतरस 3:12, दी एम्प्लीफाइड बाइबल; विलियम बार्कले की द न्यू टेस्टामेंट) इन चितौनियों में ढेरों भविष्यवाणियाँ भी शामिल हैं जो न सिर्फ यहोवा के दिन के आने के बारे में बताती हैं, बल्कि यह भी कि ‘यहोवा की बाट जोहते रहनेवालों’ को बेशुमार आशीषें दी जाएँगी।—सपन्याह 3:8.

20. हमें किस उपदेश को दिल से मानना चाहिए?

20 जी हाँ, आज ही वह समय है, जब हमें सपन्याह नबी के ज़रिए दिए इस उपदेश को दिल से मानना है: “इस से पहिले कि दण्ड की आज्ञा पूरी हो और बचाव का दिन भूसी की नाईं निकले, और यहोवा का भड़कता हुआ क्रोध तुम पर आ पड़े, और यहोवा के क्रोध का दिन तुम पर आए, तुम इकट्ठे हो। हे पृथ्वी के सब नम्र लोगो, हे यहोवा के नियम के मानेवालो, उसको ढूंढ़ते रहो; धर्म [या धार्मिकता] को ढूंढ़ो, नम्रता को ढूंढ़ो; सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।”—सपन्याह 2:2, 3.

21. सन्‌ 2007 के दौरान, परमेश्‍वर के लोगों ने क्या करने की ठानी है?

21 इसलिए सन्‌ 2007 के लिए चुना गया यह सालाना वचन एकदम सही है: “यहोवा का भयानक दिन निकट है।” परमेश्‍वर के लोगों को पक्का यकीन है कि ‘वह दिन बहुत वेग से समीप चला आ रहा है।’ (सपन्याह 1:14) “उस में देर न होगी।” (हबक्कूक 2:3) इसलिए उस दिन का इंतज़ार करते वक्‍त, आइए हम हमेशा चौकन्‍ना रहें कि हम किस दौर में जी रहे हैं। साथ ही, हर वक्‍त यह याद रखें कि इन भविष्यवाणियों का आखिरी बार पूरा होने का वक्‍त आ पहुँचा है! (w06 12/15)

क्या आप जवाब दे सकते हैं?

• “यहोवा का भयानक दिन” क्या है?

• बहुत-से लोग वक्‍त की नज़ाकत को क्यों नज़रअंदाज़ कर देते हैं?

• पहली सदी के मसीहियों को जल्द-से-जल्द कदम उठाने की क्यों ज़रूरत थी?

• हम वक्‍त की नज़ाकत को कैसे हमेशा ध्यान में रख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 11 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सन्‌ 2007 का सालाना वचन है: “यहोवा का भयानक दिन निकट है।”—सपन्याह 1:14.

[पेज 9 पर तसवीरें]

नूह के दिन की तरह, यहोवा आज के हँसी-ठट्ठा करनेवालों के खिलाफ अचानक कार्रवाई करेगा

[पेज 10 पर तसवीर]

यरूशलेम को “सेनाओं से घिरा” देखकर, मसीहियों को जल्द-से-जल्द कदम उठाने की ज़रूरत थी