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क्या हमें सच बोलने की उम्मीद सिर्फ दूसरों से करनी चाहिए?

क्या हमें सच बोलने की उम्मीद सिर्फ दूसरों से करनी चाहिए?

क्या हमें सच बोलने की उम्मीद सिर्फ दूसरों से करनी चाहिए?

“मुझे झूठ पसंद नहीं और कोई मुझसे झूठ बोले, इस बात से मुझे सख्त नफरत है।” यह बात एक 16 साल की लड़की ने कही थी। हममें से ज़्यादातर लोग भी ऐसा ही महसूस करते हैं। हम हमेशा यही चाहते हैं कि जब हमें कोई ज़बानी या लिखित तौर पर जानकारी दे, तो वह सच हो। लेकिन जब हम खुद दूसरों को कुछ जानकारी देते हैं, तो क्या हम सच बोलते हैं?

इसी सिलसिले में, जर्मनी में एक सर्वे लिया गया था। उस सर्वे में बहुत-से लोगों ने कहा कि “खुद को या दूसरों को नुकसान से बचाने के लिए, छोटे-मोटे झूठ बोलने में कोई हर्ज़ नहीं। और-तो-और, लोगों के साथ अच्छा रिश्‍ता बनाए रखने के लिए झूठ बोलना ज़रूरी है।” एक पत्रकार कहती है: “हर समय सच कहना और सच के सिवा कुछ न कहना, यह एक नेक विचार है। मगर ऐसी ज़िंदगी जीने में कोई मज़ा नहीं।”

कहीं ऐसा तो नहीं कि हम सच बोलने की उम्मीद सिर्फ दूसरों से करते हैं, जबकि हम खुद कभी-कभी यह सोचकर झूठ बोलते हैं कि ऐसा करने के हमारे पास वाजिब कारण हैं? हमारे सच बोलने या न बोलने से क्या कोई फर्क पड़ता है? झूठ बोलने के क्या अंजाम होते हैं?

झूठ बोलने के नुकसान

ज़रा गौर कीजिए कि झूठ बोलने के क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं। इससे पति-पत्नी के बीच भरोसा टूट सकता है और परिवार में दरार पड़ सकती है। किसी के बारे में झूठी अफवाहें फैलाने से उसके नाम की बदनामी हो सकती है। कर्मचारियों की बेईमानी की वजह से कंपनी को ज़्यादा पैसा खर्च करना पड़ सकता है और इसकी भरपाई करने के लिए कंपनी अपनी चीज़ों को ऊँचे दामों पर बेच सकती है। आय की रिटर्न भरते वक्‍त गलत जानकारी पेश करके कर की चोरी की जाती है और इससे सरकार को वह पैसा नहीं मिलता, जो वह जनता को तरह-तरह की सुविधाएँ देने में लगाती है। खोजकर्ता जो तोड़-मरोड़कर जानकारी पेश करते हैं, उससे खुद उनका करियर बनते-बनते बरबाद हो जाता है और जिन मशहूर संस्थाओं के लिए वे काम करते हैं, उनका नाम भी मिट्टी में मिल जाता है। रातों-रात अमीर बनने की नकली तरकीबों में भोले-भाले लोगों की जीवन-भर की कमाई लुट जाती है, या इससे भी भयानक अंजाम होते हैं। इसलिए इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं कि बाइबल कहती है: यहोवा परमेश्‍वर जिन बातों से घृणा करता है, उनमें “झूठ बोलनेवाली जीभ” और “झूठ बोलनेवाला साक्षी” शामिल है।—नीतिवचन 6:16-19.

चारों तरफ फैले झूठ से न सिर्फ अलग-अलग लोगों को, बल्कि पूरे समाज को भारी नुकसान हो सकता है। इस बात से शायद ही कोई इंसान इनकार करे। तो फिर, लोग जानबूझकर झूठ क्यों बोलते हैं? क्या ऐसी हर बात जो सच नहीं, वह झूठ होती है? इन सवालों के और दूसरे सवालों के जवाब हम अगले लेख में देखेंगे। (w07 2/1)

[पेज 3 पर तसवीर]

झूठ बोलने से पति-पत्नी के बीच भरोसा टूट सकता है