बाइबल असल में क्या सिखाती है, यह जानने में लोगों की मदद कीजिए
बाइबल असल में क्या सिखाती है, यह जानने में लोगों की मदद कीजिए
“सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें . . . सिखाओ।”—मत्ती 28:19, 20.
1. बाइबल जिस पैमाने पर पायी जाती है, उसके बारे में क्या कहा जा सकता है?
यहोवा का वचन, पवित्र बाइबल दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे ज़्यादा बाँटी जानेवाली किताबों में से एक है। इसके कुछ हिस्सों का 2,300 से भी अधिक भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। इसलिए दुनिया की 90 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी इसे अपनी-अपनी भाषा में पढ़ सकती है।
2, 3. (क) लोगों में बाइबल की शिक्षाओं को लेकर उलझन क्यों है? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
2 दुनिया में ऐसे लाखों लोग हैं जो हर रोज़ बाइबल की कुछ आयतें पढ़ते हैं। और ऐसे भी कुछ लोग हैं जिन्होंने कई बार पूरी बाइबल पढ़ी है। फिर भी लोगों में बाइबल की शिक्षाओं को लेकर उलझन है। वह क्यों? हालाँकि हज़ारों धार्मिक गुट दावा करते हैं कि उनकी शिक्षाएँ बाइबल से हैं, मगर अलग-अलग गुट बाइबल के बारे में अलग-अलग बातें सिखाते हैं। यहाँ तक कि एक ही गुट के लोगों में बाइबल की शिक्षाओं को लेकर बहुत मतभेद है। इसके अलावा, बाइबल कैसी किताब है, इसे किसने लिखवाया और यह हमारे लिए फायदेमंद है या नहीं, इस बारे में भी कुछ लोग सवाल उठाते हैं। कई लोग मानते हैं कि बाइबल बस दूसरे पवित्र ग्रंथों की तरह ही एक ग्रंथ है जिसे रस्मों में इस्तेमाल किया जाता है या जिस पर हाथ रखकर अदालत में सच बोलने की शपथ खायी जाती है।
3 दरअसल बाइबल में इंसानों के लिए परमेश्वर का ज़बरदस्त पैगाम दर्ज़ है। (इब्रानियों 4:12) इसलिए यहोवा के साक्षी होने के नाते, हम चाहते हैं कि लोग यह जानें कि बाइबल क्या सिखाती है। यीशु मसीह ने अपने चेलों को यह आज्ञा दी थी: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें . . . सिखाओ।” (मत्ती 28:19, 20) हम इस आज्ञा को खुशी-खुशी मानते हैं। प्रचार में हमारी मुलाकात ऐसे नेकदिल इंसानों से होती है जो आज दुनिया की धार्मिक शिक्षाओं में फैली गड़बड़ी की वजह से बहुत निराश हैं। वे जानना चाहते हैं कि परमेश्वर के बारे में सच्चाई क्या है और ज़िंदगी के मकसद के बारे में बाइबल क्या सिखाती है। आइए ऐसे तीन सवालों पर गौर करें जो आम तौर पर लोगों को परेशान करते हैं: (1) क्या परमेश्वर हमारी परवाह करता है? (2) हम इस दुनिया में क्यों हैं? और (3) मरने पर हमारा क्या होता है? हर सवाल की चर्चा करते वक्त, पहले हम देखेंगे कि धर्म-गुरु इन सवालों के क्या गलत जवाब देते हैं, और फिर जाँचेंगे कि बाइबल असल में क्या सिखाती है।
क्या परमेश्वर हमारी परवाह करता है?
4, 5. किन वजहों से लोग यह मानते हैं कि परमेश्वर हमारी परवाह नहीं करता?
4 आइए पहले इस सवाल पर गौर करें, क्या परमेश्वर हमारी परवाह करता है? अफसोस, बहुत-से लोग मानते हैं कि परमेश्वर हमारी परवाह नहीं करता। उन्हें ऐसा क्यों लगता है? इसकी एक वजह यह है कि आज जहाँ देखो वहाँ नफरत की आग भड़की हुई है, युद्धों ने लोगों का चैन छीन लिया है और चारों तरफ मुसीबतें-ही-मुसीबतें हैं। तभी तो लोग कहते हैं कि ‘अगर परमेश्वर को सचमुच हमारी फिक्र होती तो वह इन मुसीबतों को आने ही न देता।’
5 इसके अलावा, धर्म-गुरु भी लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि परमेश्वर हमारी परवाह नहीं करता। जब कोई हादसा होता है, तो धर्म-गुरु अकसर क्या कहते हैं? एक कार दुर्घटना में जब एक स्त्री के दो छोटे बच्चे मारे गए, तो उसके चर्च के पादरी ने कहा: “यह सब ऊपरवाले की मरज़ी थी। उसे दो और फरिश्तों की ज़रूरत थी इसीलिए उसने उन्हें अपने पास बुला लिया।” ऐसी बातें कहकर धर्म-गुरु असल में सारी मुसीबतों के लिए परमेश्वर को कसूरवार ठहराते हैं। मगर शिष्य याकूब ने लिखा: “जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।” (याकूब 1:13) यहोवा परमेश्वर कभी किसी का बुरा नहीं करता। वाकई, “यह सम्भव नहीं कि ईश्वर दुष्टता का काम करे।”—अय्यूब 34:10.
6. इस दुनिया में फैली बुराई और दुःख-तकलीफों के पीछे किसका हाथ है?
6 तो फिर आज दुनिया में इतनी बुराई और दुःख-तकलीफें क्यों फैली हैं? पहला कारण यह है कि पूरी दुनिया ने परमेश्वर को अपना राजा मानने और उसके ठहराए धार्मिकता के नियमों और सिद्धांतों पर चलने से इनकार कर दिया है। ऐसा करके वह अनजाने में परमेश्वर के दुश्मन, शैतान के कब्ज़े में आ गयी है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि बाइबल कहती है: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्ना 5:19) यह सच्चाई जानने से हम समझ पाते हैं कि दुनिया में इतनी दुःख-तकलीफें क्यों हैं। शैतान दुष्ट है, उसकी रग-रग में नफरत भरी है, वह बड़ा मक्कार और बेरहम है। और यह बात तो पक्की है कि जैसा शासक होगा, वैसी उसकी प्रजा भी होगी। इसलिए ताज्जुब नहीं कि आज जहाँ देखो वहाँ बुराई फैली है!
7. हम पर दुःख-तकलीफें क्यों आती हैं, इसके कुछ कारण बताइए।
7 दुःख-तकलीफों का दूसरा कारण है, इंसान की असिद्धता। पापी इंसान एक-दूसरे पर अधिकार जमाने के लिए आपस में होड़ लगाते हैं, और इस वजह से आए दिन युद्ध लड़े जाते हैं, लोगों पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं और उन्हें कितने ही आँसू बहाने पड़ते हैं। सभोपदेशक 8:9 ठीक ही कहता है: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” इंसान के दुःखों का एक और कारण है, “समय और संयोग।” (सभोपदेशक 9:11) अकसर लोग किसी हादसे के शिकार इसलिए होते हैं क्योंकि वे गलत वक्त पर गलत जगह मौजूद होते हैं।
8, 9. हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि परमेश्वर वाकई हमारी परवाह करता है?
8 यह जानकर हमारे मन को कितना सुकून मिलता है कि दुःख-तकलीफों के लिए यहोवा ज़िम्मेदार नहीं है। लेकिन आज हमें जो तकलीफें झेलनी पड़ती हैं, क्या परमेश्वर वाकई इसकी परवाह करता है? खुशी की बात यह है कि वह सचमुच परवाह करता है! ऐसा हम यकीन के साथ इसलिए कह सकते हैं क्योंकि उसका प्रेरित वचन हमें बताता है कि उसने इंसानों को बुराई के रास्ते पर क्यों चलने दिया है। परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसकी हुकूमत और इंसान की खराई के बारे में अहम मसले उठाए गए थे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर होने के नाते, यहोवा के लिए यह बताना ज़रूरी नहीं था कि उसने दुःख-तकलीफों को क्यों रहने दिया है। फिर भी वह हमें बताता है। क्या इससे साबित नहीं होता कि वह हमारी परवाह करता है?
9 आइए इस बात के एक और सबूत पर गौर करें कि परमेश्वर सचमुच हमारी परवाह करता है। नूह के दिनों में जब धरती पर हर तरफ बुराई फैल गयी थी, तो परमेश्वर “मन में अति खेदित हुआ” था। (उत्पत्ति 6:5, 6) क्या आज भी बुराई देखकर उसका मन खेदित होता है? ज़रूर होता है। क्योंकि वह बदला नहीं है। (मलाकी 3:6) वह हर तरह के अन्याय से नफरत करता है और यह देखकर उसका मन घृणा से भर जाता है कि सारी दुनिया कैसे दुःख-तकलीफों से कराह रही है। बाइबल सिखाती है कि परमेश्वर बहुत जल्द उन बुराइयों को मिटानेवाला है, जो इंसान की हुकूमत और शैतान के दबदबे की वजह से इस दुनिया में फैली हैं। क्या इससे हमें यकीन नहीं होता कि परमेश्वर हमारी परवाह करता है?
10. इंसानों को दुःख से तड़पता देखकर यहोवा कैसा महसूस करता है?
10 इसलिए जब धर्म-गुरु कहते हैं कि हम पर सारी दुःख-तकलीफें ऊपरवाले की मरज़ी से आती हैं, तो ऐसा कहकर वे परमेश्वर के बारे में सरासर गलत तसवीर पेश करते हैं। सच तो यह है कि यहोवा, हमारे सभी दुःखों का अंत करने के लिए तरसता है। पहला पतरस 5:7 (हिन्दुस्तानी बाइबल) कहता है, “उस को तुम्हारी फिक्र है।” परमेश्वर के बारे में बाइबल असल में यही सिखाती है!
हम इस दुनिया में क्यों हैं?
11. धरती पर इंसान की ज़िंदगी के बारे में दुनिया के अलग-अलग धर्म अकसर क्या कहते हैं?
11 आइए अब हम दूसरे सवाल पर चर्चा करें जिसकी वजह से कई लोग उलझन में हैं: हम इस दुनिया में क्यों हैं? दुनिया के अलग-अलग धर्म अकसर कहते हैं कि यह धरती इंसान की असली मंज़िल नहीं है। यह तो इंसान की ज़िंदगी के सफर का बस एक पड़ाव है, जहाँ वह चंद दिन बिताकर अपनी असली मंज़िल की ओर निकल पड़ता है। कुछ पादरी तो यह झूठी शिक्षा भी देते हैं कि परमेश्वर एक-न-एक-दिन इस पूरी पृथ्वी को खाक में मिला देगा। कई लोग ऐसी बातों पर यकीन कर लेते हैं और सोचते हैं कि जब तक साँस है, ज़िंदगी का पूरा मज़ा लूटना चाहिए, क्योंकि एक दिन तो सभी को मरना ही है। लेकिन हम इस दुनिया में क्यों हैं, इस बारे में बाइबल असल में क्या सिखाती है?
12-14. परमेश्वर ने जिस मकसद से पृथ्वी और इंसानों को बनाया है, उसके बारे में बाइबल क्या सिखाती है?
12 बाइबल सिखाती है कि इस पृथ्वी और इंसानों के लिए परमेश्वर का एक बढ़िया मकसद है। उसने “[पृथ्वी को] सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।” (यशायाह 45:18) इतना ही नहीं, उसने “पृथ्वी को उसकी नीव पर स्थिर किया है, ताकि वह कभी न डगमगाए।” (भजन 104:5) पृथ्वी और इंसानों को बनाते वक्त परमेश्वर का क्या मकसद था, यह जानने से हम समझ पाएँगे कि हम यहाँ क्यों हैं।
13 उत्पत्ति की किताब का अध्याय 1 और 2 हमें बताता है कि परमेश्वर ने धरती को बहुत सोच-समझकर बनाया था, ताकि इंसान यहाँ बसेरा कर सकें। जब धरती इंसान के रहने के लिए तैयार हो गयी, तब सब कुछ “बहुत ही अच्छा” था। (उत्पत्ति 1:31) परमेश्वर ने पहले इंसानी जोड़े, आदम और हव्वा को अदन नाम के एक सुंदर बगीचे में रखा और उन्हें खाने के लिए ढेर सारी अच्छी चीज़ें दीं। उसने उन्हें यह आज्ञा भी दी: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो।” जी हाँ, आदम और हव्वा को सिद्ध बच्चे पैदा करने थे, उस बगीचे की सरहदें बढ़ाते हुए पूरी धरती को एक फिरदौस बनाना था और पशु-पक्षियों को भी प्यार से अपने वश में करना था।—उत्पत्ति 1:26-28.
14 यहोवा का मकसद है कि पृथ्वी सिद्ध इंसानों से आबाद रहे और वे उसमें हमेशा-हमेशा के लिए जीएँ। परमेश्वर का वचन कहता है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन 37:29) जी हाँ, इंसानों को इसलिए बनाया गया था कि वे धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी का मज़ा ले सकें। यह परमेश्वर का मकसद है और बाइबल असल में यही सिखाती है!
मरने पर हमारा क्या होता है?
15. मरने पर हमारा क्या होता है, इस बारे में दुनिया के ज़्यादातर धर्म क्या सिखाते हैं?
15 आइए अब तीसरे सवाल पर गौर करें जिसने कई लोगों को परेशान कर रखा है: मरने पर हमारा क्या होता है? दुनिया के ज़्यादातर धर्म सिखाते हैं कि इंसान के शरीर में साए जैसा कुछ अंश होता है जो उसके मरने के बाद भी ज़िंदा रहता है। इतना ही नहीं, कुछ धार्मिक गुट आज भी सिखाते हैं कि परमेश्वर दुष्टों को सज़ा देने के वास्ते, उन्हें नरक की आग में हमेशा के लिए तड़पाता है। लेकिन क्या यह सच है? मौत के बारे में बाइबल असल में क्या सिखाती है?
16, 17. बाइबल के मुताबिक मरे हुए किस दशा में हैं?
16 परमेश्वर का वचन कहता है: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उनको कुछ और बदला मिल सकता है।” ध्यान दीजिए कि मरे हुए “कुछ भी नहीं जानते।” इसका मतलब है कि वे न तो सुन सकते हैं, न देख सकते हैं, न बोल सकते हैं और ना ही कुछ सोच सकते या महसूस कर सकते हैं। उन्हें कोई बदला नहीं मिल सकता, यानी वे कुछ कमा नहीं सकते। यह कितना सच है! मरे हुए जब कोई काम ही नहीं कर सकते, तो कमा कैसे सकते हैं? यही नहीं, “उनका प्रेम और उनका बैर और उनकी डाह नाश हो चुकी” है। इसका मतलब है कि वे किसी भी तरह की भावना ज़ाहिर नहीं कर सकते।—सभोपदेशक 9:5, 6, 10.
17 मौत के बारे में बाइबल जो सिखाती है, वह बिलकुल साफ और समझने में आसान है। जब एक इंसान मर जाता है, तो उसका अस्तित्त्व पूरी तरह मिट जाता है। हमारे शरीर में ऐसा कोई अंश नहीं होता जो हमारी मौत के बाद शरीर से निकल जाए और हमेशा तक ज़िंदा रहे। ना ही यह कोई और शरीर धारण करके दोबारा जन्म ले सकता है, जैसा कि पुनर्जन्म में विश्वास करनेवाले मानते हैं। यह बात हम इस उदाहरण से अच्छी तरह समझ सकते हैं: हमारा जीवन एक जलती लौ की तरह है। जब लौ बुझ जाती है, तो वह कहीं जाती नहीं, बस खत्म हो जाती है। उसी तरह, मरने के बाद हम पूरी तरह खत्म हो जाते हैं।
18. मरे हुओं के बारे में सच्चाई जानने के बाद बाइबल विद्यार्थी क्या समझ पाएगा?
18 ज़रा सोचिए इतनी सरल मगर ज़बरदस्त सच्चाई जानने का क्या नतीजा होता है। एक बार जब बाइबल विद्यार्थी सीख लेता है कि मरे हुए पूरी तरह अचेत हैं, तो वह आसानी से समझ पाएगा कि उसके पुरखे जीते-जी चाहे कितने ही खफा क्यों न रहे हों, मगर मौत के बाद वे उसे परेशान नहीं कर सकते। विद्यार्थी को यह भी समझते देर नहीं लगेगी कि उसके अपने जो मौत की नींद सो रहे हैं, वे सुन नहीं सकते, देख नहीं सकते, बोल नहीं सकते, सोच नहीं सकते और ना ही कुछ महसूस कर सकते हैं। इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि वे पाताल-लोक में तनहाई की ज़िंदगी काट रहे हैं या नरक की आग में तड़प रहे हैं। वे बस मर गए हैं। और बाइबल सिखाती है कि जितने मरे हुए, परमेश्वर की याद में हैं उनका पुनरुत्थान किया जाएगा। है ना यह एक बेहतरीन आशा!—यूहन्ना 5:28, 29.
हमारे इस्तेमाल के लिए नयी किताब
19, 20. मसीही होने के नाते हमारी क्या ज़िम्मेदारी है, और प्रचार में हमारी मदद करने के लिए बाइबल अध्ययन की कौन-सी किताब तैयार की गयी है?
19 अब तक हमने सिर्फ तीन सवालों पर गौर किया है जो बहुत-से लोग अकसर पूछते हैं। हमने देखा कि हर सवाल के बारे में बाइबल एकदम साफ और सीधा जवाब देती है। सोचिए कि ये सच्चाइयाँ ऐसे लोगों को बताना कितनी खुशी की बात है, जो जानना चाहते हैं कि बाइबल असल में क्या सिखाती है! लेकिन ऐसे और भी कई अहम सवाल हैं जिनके सही-सही जवाब नेकदिल लोग जानना चाहते हैं। मसीही होने के नाते, यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम ऐसे सवालों के जवाब जानने में इन लोगों की मदद करें।
20 यह हमारे लिए किसी चुनौती से कम नहीं कि हम बाइबल की सच्चाइयाँ लोगों को इस तरीके से सिखाएँ जो उन्हें साफ-साफ समझ में आएँ और उनके दिलों पर भी गहरा असर कर जाएँ। इस चुनौती का सामना करने में हमारी मदद करने के लिए, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने एक ऐसी किताब तैयार की थी, जिसे हम खास अपने प्रचार में इस्तेमाल कर सकते हैं। (मत्ती 24:45-47) इस 224 पेजवाली किताब का नाम है, बाइबल असल में क्या सिखाती है?
21, 22. बाइबल असल में क्या सिखाती है? इस किताब की क्या खासियतें हैं?
21 यह किताब सन् 2005 के दौरान, यहोवा के साक्षियों के “परमेश्वर की आज्ञा मानना” ज़िला अधिवेशनों में रिलीज़ की गयी थी। इस किताब की कई खासियतें हैं। मिसाल के लिए, इसकी शुरूआत में पाँच पेज का एक लेख दिया है, जो अध्ययन शुरू करने में काफी मददगार साबित हो रहा है। आप पाएँगे कि इस लेख में दी तसवीरें और आयतें दिखाकर घर-मालिक के साथ आसानी से चर्चा शुरू की जा सकती है। साथ ही, इस लेख में दी जानकारी का इस्तेमाल करके आप अपने विद्यार्थी को बता सकते हैं कि वह बाइबल में अध्याय और आयतें कैसे ढूँढ़ सकता है।
22 इस किताब में जानकारी को इस तरह से पेश किया गया है कि पढ़नेवाला उसे आसानी से और साफ-साफ समझ सकता है। किताब के ज़रिए विद्यार्थी को चर्चा में शामिल करके उसके दिल तक पहुँचने की कोशिश की गयी है। हर अध्याय की शुरूआत में कई सवाल दिए गए हैं और उनके जवाब अध्याय के आखिर में, “बाइबल यह सिखाती है” बक्स में दिए गए हैं। इस बक्स में इन जवाबों को पुख्ता करनेवाली बाइबल की आयतें भी दी गयी हैं। इतना ही नहीं, इस किताब में जो बढ़िया तसवीरें, चित्र-शीर्षक और मिसालें दी गयी हैं, उनकी मदद से विद्यार्थी नयी बातों को आसानी से समझ पाएगा। हालाँकि किताब में बातों को काफी आसान तरीके से पेश किया गया है, लेकिन इसमें एक अतिरिक्त लेख भी है जिसमें 14 अहम विषयों पर गूढ़ बातें समझायी गयी हैं। इसलिए अगर आपका विद्यार्थी किसी अहम विषय पर ज़्यादा जानकारी पाना चाहता है, तो आप इस लेख का इस्तेमाल कर सकते हैं।
23. विद्यार्थियों के साथ बाइबल सिखाती है किताब से अध्ययन करने के बारे में क्या सुझाव दिए गए हैं?
23 बाइबल सिखाती है किताब की मदद से हम हर तरह के लोगों को बाइबल के बारे में सिखा सकते हैं, फिर चाहे वे कम पढ़े-लिखे हों या ज़्यादा और किसी भी धर्म को क्यों न मानते हों। अगर विद्यार्थी को पहले से बाइबल की कोई जानकारी नहीं है, तो हो सकता है आपको एक पूरा अध्याय खत्म करने के लिए एक-से-ज़्यादा हफ्ते लगें। किताब को खत्म करने की जल्दबाज़ी मत कीजिए, मगर विद्यार्थी के दिल तक पहुँचने की कोशिश कीजिए। अगर विद्यार्थी किताब में दी किसी मिसाल को समझ नहीं पाता, तो उस मिसाल को समझने में उसकी मदद कीजिए या फिर कोई दूसरी मिसाल दीजिए। अध्ययन के लिए अच्छी तैयारी कीजिए। इस किताब के ज़रिए बेहतरीन नतीजे हासिल करने में अपना भरसक कीजिए। साथ ही, मदद के लिए परमेश्वर से प्रार्थना कीजिए ताकि आप “सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में” ला सकें।—2 तीमुथियुस 2:15.
अनमोल सुअवसरों के लिए एहसानमंद रहिए
24, 25. यहोवा ने अपने लोगों को क्या अनमोल सुअवसर दिए हैं?
24 यहोवा ने अपने लोगों को कई अनमोल सुअवसर दिए हैं। उनमें से एक यह है कि उसने अपने बारे में सच्चाई जानने में हमारी मदद की है। इस सुअवसर को हमें कभी कम नहीं आँकना चाहिए! क्योंकि यहोवा सिर्फ नम्र लोगों पर अपने मकसद ज़ाहिर करता है, जबकि वह घमंडी लोगों से इन्हें छिपाए रखता है। इस बारे में यीशु ने कहा: “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु; मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया है।” (मत्ती 11:25) इस पूरे जहान के मालिक, यहोवा की सेवा करनेवाले नम्र लोगों में गिने जाने का सम्मान बहुत कम लोगों को मिलता है।
25 यहोवा ने हमें उसके बारे में दूसरों को सिखाने का सुअवसर भी दिया है। मत भूलिए कि यहोवा के बारे में झूठी बातें सिखानेवालों ने उसे बदनाम किया है। इसलिए बहुत-से लोग यहोवा के बारे में बिलकुल गलत राय रखते हैं। वे सोचते हैं कि यहोवा पत्थरदिल है और हमारी परवाह नहीं करता। क्या आप यहोवा के बारे में लोगों की गलतफहमियाँ दूर करना चाहते हैं, और क्या आप ऐसा करने के लिए बेताब हैं? क्या आप चाहते हैं कि दुनिया का हर नेकदिल इंसान यहोवा के बारे में सच्चाई जाने? अगर हाँ, तो यहोवा की आज्ञा मानिए और प्रचार और सिखाने के काम में पूरा-पूरा हिस्सा लेकर लोगों को बताइए कि अहम विषयों के बारे में बाइबल क्या कहती है! आखिर, सच्चाई की तलाश करनेवालों को यह जानने की ज़रूरत है कि बाइबल असल में क्या सिखाती है। (w07 1/15)
आप क्या जवाब देंगे?
• हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि परमेश्वर हमारी परवाह करता है?
• हम इस दुनिया में क्यों हैं?
• मरने पर हमारा क्या होता है?
• बाइबल सिखाती है किताब की कौन-सी खासियतें आपके लिए फायदेमंद साबित हुई हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 13 पर तसवीर]
धर्मी लोग फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे