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पतियो—मसीह के मुखियापन को कबूल कीजिए और उसके जैसे बनिए

पतियो—मसीह के मुखियापन को कबूल कीजिए और उसके जैसे बनिए

पतियो—मसीह के मुखियापन को कबूल कीजिए और उसके जैसे बनिए

“हर एक पुरुष का सिर मसीह है।”—1 कुरिन्थियों 11:3.

1, 2. (क) किसे एक कामयाब पति कहा जा सकता है? (ख) शादी के बंधन की शुरूआत करनेवाले परमेश्‍वर को पहचानना क्यों ज़रूरी है?

 आप किसे एक कामयाब पति कहेंगे? वह जो बहुत होशियार या ताकतवर है? या वह जो खूब पैसा कमाता है? या फिर वह जो अपने बीवी-बच्चों से प्यार करता है और उनकी अच्छी देखभाल करता है? देखा जाए तो ज़्यादातर पति इस आखिरी कसौटी पर खरे नहीं उतरते। क्यों? क्योंकि उन पर संसार की आत्मा और इंसानी सोच का ज़बरदस्त असर होता है। मगर इससे भी बढ़कर, वे शादी के बंधन की शुरूआत करनेवाले परमेश्‍वर को पहचानने और उसकी सलाह पर चलने से चूक जाते हैं। बाइबल कहती है कि परमेश्‍वर ने “उस पसुली को जो उस ने [पुरुष] में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको [पुरुष] के पास ले आया।” इस तरह परमेश्‍वर यहोवा ने शादी के इंतज़ाम की शुरूआत की।—उत्पत्ति 2:21-24.

2 इस बात को यीशु मसीह ने भी पुख्ता किया था। उसने अपने ज़माने के नुक्‍ताचीनी करनेवालों से कहा: “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि जिस ने उन्हें बनाया, उस ने आरम्भ से नर और नारी बनाकर कहा। कि इस कारण मनुष्य अपने माता पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे? सो वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं: इसलिये जिसे परमेश्‍वर ने [शादी के बंधन में] जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” (मत्ती 19:4-6) तो फिर, यह एक सच्चाई है कि कामयाब शादी के लिए इसकी शुरूआत करनेवाले परमेश्‍वर को पहचानना और उसके वचन, बाइबल में दी उसकी हिदायतों पर चलना निहायत ज़रूरी है।

एक कामयाब पति बनने का राज़

3, 4. (क) यीशु को शादी के बारे पूरा-पूरा ज्ञान क्यों है? (ख) यीशु की लाक्षणिक पत्नी कौन है, और पतियों को अपनी-अपनी पत्नी के साथ कैसे पेश आना चाहिए?

3 एक कामयाब पति बनने का राज़ है, यीशु की कही बातों का अध्ययन करना और उसके जैसे काम करना। यीशु को शादी के बारे पूरा-पूरा ज्ञान है, क्योंकि वह पहले इंसानी जोड़े के बनाए जाने और उनकी शादी के वक्‍त मौजूद था। यहोवा परमेश्‍वर ने उससे कहा: “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं।” (उत्पत्ति 1:26) जी हाँ, इस आयत में परमेश्‍वर, यीशु से बात कर रहा था जिसकी उसने सबसे पहले सृष्टि की थी। वह परमेश्‍वर का “कुशल कारीगर” (NHT) बना। (नीतिवचन 8:22-30) यीशु ही “सारी सृष्टि में पहिलौठा है।” वह “परमेश्‍वर की सृष्टि का मूल” है, जिसे विश्‍व की रचना करने से कई अरबों साल पहले बनाया गया था।—कुलुस्सियों 1:15; प्रकाशितवाक्य 3:14.

4 यीशु को “परमेश्‍वर का मेम्ना” कहा गया है और उसे लाक्षणिक तौर पर एक पति भी बताया गया है। एक दफा, एक स्वर्गदूत ने कहा: “इधर आ: मैं तुझे दुल्हिन अर्थात्‌ मेम्ने की पत्नी दिखाऊंगा।” (यूहन्‍ना 1:29; प्रकाशितवाक्य 21:9) यीशु की दुल्हन यानी उसकी पत्नी कौन है? आत्मा से अभिषिक्‍त, मसीह के वफादार चेलों का समूह, “मेम्ने की पत्नी” है, जो उसके साथ स्वर्ग में हुकूमत करेगा। (प्रकाशितवाक्य 14:1, 3) इसलिए धरती पर रहते वक्‍त यीशु जिस तरह से अपने चेलों के साथ पेश आया था, वह पतियों के लिए एक आदर्श है कि उन्हें कैसे अपनी-अपनी पत्नी के साथ पेश आना चाहिए।

5. यीशु किनके लिए एक आदर्श है?

5 यह सच है कि बाइबल बताती है, यीशु अपने सभी चेलों के लिए एक मिसाल है। हम पढ़ते हैं: “मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।” (1 पतरस 2:21) लेकिन यीशु खासकर पुरुषों के लिए एक आदर्श है। बाइबल कहती है: “हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्‍वर है।” (1 कुरिन्थियों 11:3) क्योंकि मसीह, पुरुष का सिर है इसलिए पतियों को उसकी मिसाल पर चलने की ज़रूरत है। इसका मतलब है कि पतियों के लिए मुखियापन की अपनी ज़िम्मेदारी सही तरह से निभाना ज़रूरी है, तभी परिवार कामयाब होगा और सुखी रह पाएगा। इसके लिए, उन्हें अपनी-अपनी पत्नी के साथ बड़े प्यार से पेश आना है, ठीक जैसे यीशु अपनी लाक्षणिक पत्नी यानी अपने अभिषिक्‍त चेलों के साथ पेश आया था।

शादीशुदा ज़िंदगी में आनेवाली समस्याओं का सामना कैसे करें

6. पतियों को अपनी-अपनी पत्नी के साथ कैसे जीवन निर्वाह करना चाहिए?

6 आज मुसीबतों से घिरी इस दुनिया में, खासकर पतियों के लिए यह ज़रूरी है कि वे यीशु की तरह सब्र रखें और प्रेम दिखाएँ, साथ ही धर्मी सिद्धांतों को मज़बूती से थामे रहें। (2 तीमुथियुस 3:1-5) बाइबल कहती है: “हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से [अपनी] पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो।” (1 पतरस 3:7) जी हाँ, पतियों को शादीशुदा ज़िंदगी में आनेवाली समस्याओं का सामना करने में बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए, ठीक जैसे यीशु ने समझदारी के साथ मुश्‍किलों का सामना किया था। यीशु जिस तरह की आज़माइशों से गुज़रा था, वैसी आज़माइशों से आज तक कोई भी इंसान नहीं गुज़रा है। लेकिन फिर भी उसे कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि वह जानता था कि इनके पीछे शैतान, उसकी दुष्टात्माओं और इस दुष्ट संसार का हाथ है। (यूहन्‍ना 14:30; इफिसियों 6:12) उसी तरह, एक पति-पत्नी जब अपने “जीवन में कष्ट” झेलते हैं तो उन्हें हैरान नहीं होना चाहिए। बाइबल पहले से खबरदार करती है कि जो कोई शादी करेगा उसे कष्ट झेलने पड़ेंगे।—1 कुरिन्थियों 7:28, NHT.

7, 8. (क) पत्नी के साथ बुद्धिमानी से जीवन निर्वाह करने में क्या शामिल है? (ख) पत्नियाँ आदर पाने की हकदार क्यों है?

7 बाइबल, पतियों से यह भी कहती है कि वे अपनी पत्नी के संग ‘बुद्धिमानी से जीवन निर्वाह करें और उसे निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करें।’ (1 पतरस 3:7) बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि पति अपनी पत्नी पर रोब जमाएगा और आज यही देखने को मिलता है। लेकिन एक पति जो परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाना चाहता है, वह ऐसा हरगिज़ नहीं करेगा बल्कि हमेशा अपनी पत्नी का आदर करेगा। (उत्पत्ति 3:16) वह उसे एक अनमोल खज़ाना समझेगा और कभी-भी उस पर हाथ नहीं उठाएगा। इसके बजाय, वह उसकी भावनाओं के लिए लिहाज़ दिखाएगा और उसके साथ आदर और गरिमा से पेश आएगा।

8 एक पति का अपनी पत्नी को सही आदर देना क्यों ज़रूरी है? बाइबल जवाब देती है: “यह समझकर कि तुम दोनों जीवन के वरदान के वारिस हो . . . जिससे तुम्हारी प्रार्थनाएं किसी प्रकार की बाधा से रुक न जाएं।” (1 पतरस 3:7, आर.ओ.वी.) पतियों को यह बात समझने की ज़रूरत है कि यहोवा की नज़रों में पुरुष किसी भी मायने में स्त्रियों से बढ़कर नहीं हैं। वह पुरुषों के साथ-साथ उन स्त्रियों को भी हमेशा की ज़िंदगी का इनाम देगा, जिन पर उसका अनुग्रह है। यहाँ तक कि वह कई स्त्रियों को स्वर्ग में जीवन देता है, जहाँ “न कोई नर [है], न नारी।” (गलतियों 3:28) इसलिए पतियों को याद रखना चाहिए कि एक इंसान की वफादारी उसे परमेश्‍वर की नज़र में अनमोल बनाती है, न कि यह कि वह स्त्री है या पुरुष, पति है या पत्नी या फिर एक बच्चा।—1 कुरिन्थियों 4:2.

9. (क) पतरस के मुताबिक, पति को क्यों अपनी पत्नी का आदर करना चाहिए? (ख) यीशु ने स्त्रियों के लिए कैसे आदर दिखाया?

9 पति को अपनी पत्नी का आदर करने की ज़रूरत है, यह बात प्रेरित पतरस ने 1 पतरस 3:7 के आखिर में ज़ोर देकर बतायी। उसने कहा: “जिससे तुम्हारी प्रार्थनाएं किसी प्रकार की बाधा से रुक न जाएं।” ज़रा सोचिए, अगर एक पति अपनी पत्नी का आदर न करे, तो इसका क्या ही खतरनाक अंजाम हो सकता है! उसकी प्रार्थनाएँ रुक सकती हैं। प्राचीन समय में परमेश्‍वर के कुछ सेवकों के साथ यही हुआ था, जो उपासना के मामले में लापरवाह हो गए थे। (विलापगीत 3:43, 44) इसलिए उन मसीही पुरुषों के लिए, जो शादीशुदा हैं या शादी करने की सोच रहे हैं, इस बात का अध्ययन करना बुद्धिमानी होगी कि यीशु, स्त्रियों के साथ कैसे गरिमा से पेश आता था। वह उन्हें अपने साथ प्रचार में ले जाता था। वह उनके साथ प्यार से पेश आता था और उन्हें इज़्ज़त देता था। यहाँ तक कि एक मौके पर, उसने सबसे पहले स्त्रियों को एक हैरतअँगेज़ सच्चाई बतायी थी और फिर उनसे कहा कि वे जाकर पुरुषों को इस बारे में खबर दें।—मत्ती 28:1, 8-10; लूका 8:1-3.

खासकर पतियों के लिए एक मिसाल

10, 11. (क) खासकर पतियों को यीशु की मिसाल की जाँच क्यों करनी चाहिए? (ख) पति को अपनी पत्नी से कैसा प्रेम रखना चाहिए?

10 जैसे पहले बताया गया है, बाइबल एक पति-पत्नी के रिश्‍ते की तुलना, मसीह और उसकी “दुल्हिन” (अभिषिक्‍त चेलों की कलीसिया) के रिश्‍ते के साथ करती है। बाइबल कहती है: “पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है।” (इफिसियों 5:23) इन शब्दों से एक पति को यह जाँचने का बढ़ावा मिलना चाहिए कि यीशु किस तरह का मुखिया था, या वह कैसे अपने चेलों की अगुवाई करता था। इस तरह की जाँच करने पर ही वह यीशु की मिसाल पर अच्छी तरह चल पाएगा। वह अपनी पत्नी को हिदायतें और प्यार दे पाएगा, साथ ही उसकी ज़रूरतों को भी पूरा कर पाएगा, ठीक जैसे यीशु ने अपनी कलीसिया के साथ किया था।

11 बाइबल मसीही पतियों को बढ़ावा देती है: “अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया।” (इफिसियों 5:25) इफिसियों के अध्याय 4 में “कलीसिया” को “मसीह की देह” कहा गया है। यह लाक्षणिक देह कई सदस्यों से मिलकर बनी है, जिनमें स्त्री-पुरुष दोनों शामिल हैं। वे सब मिलकर शरीर को बेहतरीन तरीके से काम करने में मदद देते हैं। और बेशक, यीशु इस “देह, अर्थात्‌ कलीसिया का सिर है।”—इफिसियों 4:12; कुलुस्सियों 1:18; 1 कुरिन्थियों 12:12, 13, 27.

12. यीशु ने अपनी लाक्षणिक देह के लिए कैसे प्रेम दिखाया?

12 यीशु ने अपनी लाक्षणिक देह, यानी “कलीसिया” के लिए कई तरीकों से प्यार ज़ाहिर किया। उसने खास तौर पर उन लोगों के लिए परवाह दिखायी और भलाई के काम किए, जो आगे चलकर उस कलीसिया के सदस्य बनते। मिसाल के लिए, एक बार जब उसके चेले थककर चूर हो गए थे तो यीशु ने उनसे कहा: “आओ और एकान्त में चलकर कुछ देर विश्राम करो।” (मरकुस 6:31, NHT) अपनी मौत से कुछ ही घंटों पहले यीशु ने जो कुछ किया, उसका ब्यौरा देते हुए एक प्रेरित ने लिखा: ‘यीशु अपने लोगों [यानी, अपनी लाक्षणिक देह के सदस्यों] से जैसा प्रेम रखता था, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा।’ (यूहन्‍ना 13:1) यीशु ने पतियों के लिए क्या ही उम्दा मिसाल रखी कि उन्हें अपनी पत्नियों के साथ कैसे पेश आना चाहिए!

13. पतियों को अपनी-अपनी पत्नी से प्यार करने के बारे में क्या सलाह दी गयी?

13 यीशु ने पतियों के लिए जो मिसाल रखी, उसके बारे में और समझाते हुए प्रेरित पौलुस ने यह सलाह दी: “पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है।” उसने आगे कहा: “तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे।”—इफिसियों 5:28, 29, 33.

14. एक पति खुद के साथ कैसे पेश आता है, और इस बात से वह अपनी पत्नी के साथ व्यवहार करने के बारे क्या सीख सकता है?

14 ज़रा थोड़ी देर के लिए पौलुस की बात पर सोचिए। क्या एक समझदार आदमी कभी जानबूझकर खुद को चोट पहुँचाता है? या राह चलते जब उसे ठोकर लगती है तो क्या वह अपने पैर के अँगूठे को मारता है, क्योंकि उसकी वजह से वह लड़खड़ा गया? नहीं! क्या एक पति अपने दोस्तों के सामने खुद की इज़्ज़त उतारता है या अपनी कमियों के बारे उनसे गप्पे लड़ाता है? हरगिज़ नहीं! तो फिर जब उसकी पत्नी कोई गलती करती है, तब वह क्यों उस पर बरस पड़ता है या उसे मारने-पीटने लगता है? इन सारी बातों से साफ पता चलता है कि पतियों को न सिर्फ खुद की, बल्कि अपनी पत्नी की भलाई की भी फिक्र करनी चाहिए।—1 कुरिन्थियों 10:24; 13:5.

15. (क) जब यीशु के चेले इंसानी कमज़ोरी की वजह से उसकी बात मानने से चूक गए, तो उसने क्या किया? (ख) यीशु की इस मिसाल से क्या सबक सीखने को मिलता है?

15 गौर कीजिए कि यीशु की मौत से पहले की रात जब उसके चेले इंसानी कमज़ोरी की वजह से उसकी बात मानने से चूक गए, तब भी यीशु ने उनके लिए कैसी परवाह दिखायी। गतसमनी के बाग में, उसने उनसे बार-बार गुज़ारिश की थी कि वे प्रार्थना करते रहें। मगर फिर भी उसने उन्हें तीन बार सोते हुए पाया। फिर अचानक, हथियारों से लैस सिपाहियों ने उन्हें आ घेरा। यीशु ने उनसे पूछा: “[तुम] किसे ढूंढ़ते हो?” जब उन्होंने जवाब दिया: “यीशु नासरी को,” तो उसने कहा: “मैं ही हूं।” इसके बाद, यह जानते हुए कि उसके मरने की “घड़ी आ पहुँची” है यीशु ने कहा: “यदि [तुम] मुझे ढूंढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।” यीशु को हमेशा अपने चेलों की सलामती की फिक्र थी, जो उसकी लाक्षणिक दुल्हन का हिस्सा थे। इसलिए इस मौके पर उसने उनके बचाव के लिए रास्ता निकाला। यीशु ने अपने चेलों के साथ जैसा बर्ताव किया, उसका अध्ययन करने से पतियों को ऐसे कई सिद्धांत सीखने को मिलेंगे जो वे अपनी पत्नी से पेश आते वक्‍त लागू कर सकते हैं।—यूहन्‍ना 18:1-9; मरकुस 14:34-37, 41.

यीशु कलीसिया से प्यार करता था, मगर वह जज़्बाती नहीं था

16. यीशु, मार्था के बारे में कैसा महसूस करता था, मगर उसने एक मौके पर उसे कैसे सुधारा?

16 बाइबल कहती है: “यीशु मरथा और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता था,” जिनके घर पर वह अकसर मेहमान बनकर आता था। (यूहन्‍ना 11:5) लेकिन ज़रूरत पड़ने पर, वह मार्था के नज़रिए को सुधारने से पीछे नहीं हटा। एक मौके पर मार्था, खाना बनाने में इतनी उलझ गयी कि उसके पास यीशु की आध्यात्मिक बातों को सुनने की ज़रा भी फुरसत नहीं थी। इस पर यीशु ने उससे कहा: “मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है। पर थोड़ी या एक ही वस्तु अवश्‍य है।” (लूका 10:41, 42, फुटनोट) बेशक मार्था समझ गयी होगी कि यीशु ने उसे यह सलाह इसलिए दी क्योंकि वह उससे गहरा लगाव रखता था। इसलिए मार्था को उसकी सलाह मानने में मुश्‍किल नहीं हुई। ठीक इसी तरह, पतियों को भी अपनी-अपनी पत्नी के लिए प्यार और लिहाज़ दिखाना चाहिए और सोच-समझकर अच्छी बातें कहनी चाहिए। मगर जब पत्नी की सोच सुधारने की ज़रूरत पड़े, तो पति को यीशु की तरह मामले पर खुलकर उससे बात करनी चाहिए।

17, 18. (क) पतरस ने यीशु को झिड़ककर क्या कहा, और पतरस को ताड़ना की ज़रूरत क्यों थी? (ख) एक पति की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?

17 एक दूसरे मौके पर, यीशु ने अपने प्रेरितों को समझाया कि उसका यरूशलेम जाना ज़रूरी है जहाँ उसे “पुरनियों और महायाजकों और शास्त्रियों के हा[थों]” ज़ुल्म सहने पड़ेंगे, फिर उसे ‘मार डाला जाएगा और तीसरे दिन वह जी उठेगा।’ तब पतरस, यीशु को एक तरफ ले गया और उसे झिड़कने लगा: “हे प्रभु, परमेश्‍वर न करे [“अपने साथ इतनी ज़्यादती न कर,” NW]; तुझ पर ऐसा कभी न होगा।” ज़ाहिर है कि पतरस ने अपने जज़्बातों में बहकर यह बात कही थी। इसलिए उसे ताड़ना की ज़रूरत थी। तभी यीशु ने उसे फटकारा: “हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर हो: तू मेरे लिये ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्‍वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”—मत्ती 16:21-23.

18 यीशु ने अभी-अभी बताया था कि परमेश्‍वर की मरज़ी है कि वह बहुत दुःख उठाए और मार डाला जाए। (भजन 16:10; यशायाह 53:12) इसलिए पतरस का यीशु को झिड़कना गलत था। यही वजह है कि क्यों उसे कड़ी ताड़ना की सख्त ज़रूरत थी। पतरस की तरह, हम सभी को कभी-कभी ताड़ना की ज़रूरत पड़ सकती है। परिवार का मुखिया होने के नाते, पति का यह अधिकार ही नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी भी है कि वह अपने घरवालों को, यहाँ तक पत्नी को भी ज़रूरत पड़ने पर ताड़ना दे। हो सकता है कि उसे सख्ती से सलाह देनी पड़े, मगर साथ ही उसे प्यार और लिहाज़ के साथ ऐसा करना चाहिए। जिस तरह मामले को सही नज़रिए से देखने में यीशु ने पतरस की मदद की, उसी तरह पतियों को भी कई बार अपनी पत्नी को ऐसी मदद देने की ज़रूरत पड़ सकती है। मिसाल के लिए, अगर एक पति गौर करता है कि उसकी पत्नी के कपड़े, गहने या मेकअप, बाइबल के मुताबिक शालीन नहीं है, तो पति को प्यार से समझाना चाहिए कि उसे क्यों सुधार करने की ज़रूरत है।—1 पतरस 3:3-5.

सब्र रखना, पतियों के लिए फायदेमंद

19, 20. (क) यीशु के प्रेरितों के बीच क्या समस्या खड़ी हुई, और यीशु ने उसे कैसे हल किया? (ख) यीशु अपनी कोशिश में कितना कामयाब रहा?

19 जब एक पति अपनी पत्नी की किसी खामी को सुधारने की पूरी कोशिश करता है, तो उसे यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि उसे फौरन कामयाबी मिल जाएगी। यीशु को भी अपने प्रेरितों का रवैया बदलने में लगातार मेहनत करनी पड़ी थी। उदाहरण के लिए, प्रेरितों में इस बात को लेकर बार-बार बहस होती थी कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। ऐसी बहस दूसरी बार यीशु की सेवा के आखिर में हुई थी। (मरकुस 9:33-37; 10:35-45) इस दूसरी बहस के कुछ ही समय बाद, उसने अपने चेलों के साथ अकेले में आखिरी फसह मनाने का बंदोबस्त किया। उस मौके पर चेलों में से किसी ने भी दस्तूर के मुताबिक दूसरों के पैर नहीं धोए, जिसे कम दर्जे का काम समझा जाता था। मगर यीशु ने उठकर अपने चेलों के पैर धोए। और फिर उसने उनसे कहा: “मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है।”—यूहन्‍ना 13:2-15.

20 अगर एक पति, यीशु की तरह नम्रता के साथ अपने मुखियापन की ज़िम्मेदारी निभाए, तो ज़ाहिर है कि उसकी पत्नी उसे अच्छा सहयोग देगी और उसकी मदद करेगी। मगर फिर भी, उसे सब्र रखने की ज़रूरत है। फसह की उसी रात, प्रेरित एक बार फिर आपस में बहस करने लगे कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। (लूका 22:24) चालचलन और रवैया बदलने में अकसर वक्‍त लगता है और यह धीरे-धीरे होता है। मगर आखिर में जब यह बदलाव होता है तो इससे बढ़िया नतीजे मिलते हैं, ठीक जैसे प्रेरितों में देखने को मिले थे।

21. आज चुनौतियों का सामना करते वक्‍त, पतियों को क्या याद रखने और क्या करने की सलाह दी गयी है?

21 पहले से कहीं ज़्यादा आज, लोगों को अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं, कई लोग शादी की शपथ को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। इसलिए पतियों को इस बात पर मनन करना चाहिए कि शादी की शुरूआत कैसे हुई थी। याद रखिए कि हमारे प्यारे परमेश्‍वर यहोवा ने ही इसकी शुरूआत की थी। उसी ने शादी के बंधन के बारे में सोचा था और उसकी बुनियाद डाली थी। उसने अपने बेटे, यीशु को न सिर्फ हमें छुड़ाने या उद्धार दिलाने के लिए भेजा, बल्कि इसलिए भी कि वह पतियों के लिए एक ऐसी मिसाल कायम करे जिस पर वे चल सकें।—मत्ती 20:28; यूहन्‍ना 3:29; 1 पतरस 2:21. (w07 2/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• शादी की शुरूआत कैसे हुई, इस बारे जानना और उसे कबूल करना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?

• पतियों को किन तरीकों से अपनी पत्नी से प्यार करने का बढ़ावा दिया गया है?

• यीशु ने अपने चेलों के साथ जो बर्ताव किया, इसकी कुछ मिसालें बताइए जो दिखाती हैं कि एक पति को मसीह की तरह अपने मुखियापन की ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीर]

यीशु, स्त्रियों के साथ जैसे पेश आया, उसकी अलग-अलग मिसालों का पतियों को क्यों अध्ययन करना चाहिए?

[पेज 12 पर तसवीर]

पतियों को प्यार से और सोच-समझकर अपनी पत्नी को सलाह देनी चाहिए