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यहोवा का भय मानिए और खुशहाल ज़िंदगी बिताइए

यहोवा का भय मानिए और खुशहाल ज़िंदगी बिताइए

यहोवा का भय मानिए और खुशहाल ज़िंदगी बिताइए

“हे यहोवा के पवित्र लोगो, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयों को किसी बात की घटी नहीं होती!”—भजन 34:9.

1, 2. (क) ईसाईजगत के लोगों ने परमेश्‍वर का भय मानने के बारे में कौन-सी दो अलग राय बना ली हैं? (ख) अब हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

 ईसाईजगत के पादरी, लोगों में परमेश्‍वर का डर पैदा करने के लिए अकसर यह शिक्षा देते हैं कि वह, पापियों को हमेशा तक नरक की आग में तड़पाता रहता है। लेकिन यह शिक्षा बाइबल से नहीं है। क्योंकि बाइबल सिखाती है कि यहोवा, प्रेम और न्याय का परमेश्‍वर है। (उत्पत्ति 3:19; व्यवस्थाविवरण 32:4; रोमियों 6:23; 1 यूहन्‍ना 4:8) दूसरी तरफ, कुछ ऐसे भी पादरी हैं जो परमेश्‍वर का भय मानने के बारे में बिलकुल भी ज़िक्र नहीं करते। इसके बजाय, वे सिखाते हैं कि परमेश्‍वर हर बात की खुली छूट देता है और एक इंसान चाहे जैसी भी ज़िंदगी बिताए, परमेश्‍वर उसे कबूल करता है। मगर यह शिक्षा भी बाइबल से नहीं है।—गलतियों 5:19-21.

2 दरअसल, बाइबल यह बढ़ावा देती है कि हम परमेश्‍वर का भय मानें। (प्रकाशितवाक्य 14:7) इस शिक्षा से कुछ सवाल उठते हैं: प्यार करनेवाला परमेश्‍वर क्यों चाहता है कि हम उसका भय मानें? उसके लिए हमारे दिल में किस तरह का भय होना चाहिए? परमेश्‍वर का भय मानने के क्या-क्या फायदे हैं? इन सवालों के जवाब पाने के लिए, आइए हम भजन 34 पर अपनी चर्चा जारी रखें।

परमेश्‍वर का भय क्यों मानें

3. (क) परमेश्‍वर का भय मानने की आज्ञा के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं? (ख) यहोवा का भय माननेवाले क्यों खुश रहते हैं?

3 यहोवा पूरे जहान का सिरजनहार, मालिक और महाराजाधिराज है, इसलिए हम इंसानों को उसका भय मानना चाहिए। (1 पतरस 2:17) लेकिन इस भय का यह मतलब नहीं कि हमें डर के मारे थर-थर काँपना चाहिए, मानो वह कोई क्रूर देवता हो। इसके बजाय, यहोवा जैसा परमेश्‍वर है, उसके लिए हममें गहरी श्रद्धा और विस्मय की भावना होनी चाहिए। यहोवा का भय मानने का यह भी मतलब है कि हम उसे नाराज़ करने से डरें। परमेश्‍वर का भय कोई खौफ नहीं बल्कि यह आदर का सबसे महान रूप है। यह हमें मायूस नहीं करता और ना ही हमारे अंदर दहशत पैदा करता है, बल्कि हमारी ज़िंदगी को खुशहाल बनाता है। यहोवा “आनंदित परमेश्‍वर” है, इसलिए वह चाहता है कि उसके बनाए हुए इंसान भी ज़िंदगी का पूरा-पूरा लुत्फ उठाएँ। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) लेकिन यह तभी मुमकिन होगा जब हम परमेश्‍वर की माँगों के मुताबिक जीएँगे। बहुतों के लिए इसका मतलब है, अपने जीने के तरीके में बदलाव करना। जो अपने जीवन में ज़रूरी बदलाव करते हैं, वे सभी भजनहार दाऊद के इन शब्दों को सच होते देखते हैं: “परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरुष जो उसकी शरण लेता है। हे यहोवा के पवित्र लोगो, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयों को किसी बात की घटी नहीं होती!” (भजन 34:8, 9) यहोवा का भय माननेवालों का उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता होता है। इसलिए उन्हें ऐसी किसी भी चीज़ की कमी नहीं होती जिससे सही मायने में हमेशा तक फायदा मिले।

4. दाऊद ने अपने आदमियों को और यीशु ने अपने चेलों को किस बात का यकीन दिलाया?

4 गौर कीजिए कि दाऊद के दिनों में इन आयतों का क्या मतलब था। उसने अपने आदमियों को ‘पवित्र लोग’ कहकर उनका मान बढ़ाया। वे परमेश्‍वर की पवित्र जाति का एक हिस्सा थे। इतना ही नहीं, उन्होंने दाऊद का साथ निभाने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल दी थी। हालाँकि दाऊद और उसके आदमी, राजा शाऊल से भाग रहे थे, फिर भी दाऊद को पूरा यकीन था कि यहोवा उनकी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करेगा। उसने लिखा: “जवान सिंहों को तो घटी होती और वे भूखे भी रह जाते हैं; परन्तु यहोवा के खोजियों को किसी भली वस्तु की घटी न होवेगी।” (भजन 34:10) यीशु ने भी अपने चेलों को इसी बात का यकीन दिलाया था।—मत्ती 6:33.

5. (क) यीशु के ज़्यादातर चेले किस वर्ग के लोग थे? (ख) यीशु ने डर के बारे में क्या सलाह दी?

5 यीशु का उपदेश सुननेवाले बहुत-से यहूदी, समाज के पिछड़े वर्ग से थे और उनका बहुत ही खस्ताहाल था। इसलिए यीशु को उन “पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।” (मत्ती 9:36) क्या इन दीन-दुःखियों के पास यीशु के पीछे हो लेने की हिम्मत होती? ज़रूर, बशर्ते वे अपने अंदर यहोवा का भय पैदा करते, न कि इंसानों से डरते। यीशु ने कहा: “जो शरीर को घात करते हैं परन्तु उसके पीछे और कुछ नहीं कर सकते, उन से मत डरो। मैं तुम्हें चिताता हूं कि तुम्हें किस से डरना चाहिए, घात करने के बाद जिस को नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो: बरन मैं तुम से कहता हूं, उसी से डरो। क्या दो पैसे की पांच गौरैयां नहीं बिकतीं? तौभी परमेश्‍वर उन में से एक को भी नहीं भूलता। बरन तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं, सो डरो नहीं, तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।”—लूका 12:4-7.

6. (क) यीशु के कौन-से शब्दों से मसीहियों की हिम्मत बँधी है? (ख) परमेश्‍वर का भय मानने में यीशु क्यों सबसे उम्दा मिसाल है?

6 जब यहोवा का भय माननेवालों पर उनके दुश्‍मन दबाव डालते हैं कि वे परमेश्‍वर की सेवा करना छोड़ दें, तब वे यीशु की इस सलाह को याद कर सकते हैं: “जो कोई मनुष्यों के साम्हने मुझे मान लेगा उसे मनुष्य का पुत्र भी परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के साम्हने मान लेगा। परन्तु जो मनुष्यों के साम्हने मुझे इन्कार करे उसका परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के साम्हने इन्कार किया जाएगा।” (लूका 12:8, 9) इन शब्दों से मसीहियों की काफी हिम्मत बँधी है, खासकर उन देशों के मसीहियों की, जहाँ सच्ची उपासना पर पाबंदी लगायी गयी है। ये मसीही, एहतियात से सभाएँ चलाते हैं और प्रचार में हिस्सा लेते हैं। इस तरह, वे यहोवा की महिमा करना जारी रखते हैं। (प्रेरितों 5:29) “भक्‍ति” दिखाने, यानी परमेश्‍वर का भय मानने में यीशु सबसे उम्दा मिसाल है। (इब्रानियों 5:7) उसके बारे में, भविष्यवाणी के वचन में पहले से कहा गया था: “यहोवा की आत्मा, . . . यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी। और उसको यहोवा का भय सुगन्ध सा भाएगा।” (यशायाह 11:2, 3) इसलिए यीशु से काबिल और कोई नहीं है, जो हमें सिखा सके कि परमेश्‍वर का भय मानने से क्या फायदे होते हैं।

7. (क) मसीही कैसे एक मायने में उस न्यौते को कबूल करते हैं जो दाऊद के दिए बुलावे से काफी मिलता-जुलता है? (ख) माता-पिता, दाऊद की बढ़िया मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

7 जो लोग यीशु की मिसाल पर चलते हैं और उसकी शिक्षाओं को मानते हैं, वे सभी एक मायने में उस न्यौते को कबूल करते हैं जो दाऊद के इस बुलावे से काफी मिलता-जुलता है: “हे लड़को [“पुत्रो,” नयी हिन्दी बाइबिल], आओ, मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा।” (भजन 34:11) दाऊद का अपने आदमियों को ‘पुत्र’ कहना लाज़िमी था, क्योंकि वे उसे अपना अगुवा मानते थे। दाऊद ने खुद उन्हें परमेश्‍वर का भय मानने में मदद दी थी, ताकि उनमें एकता बनी रहे और वे परमेश्‍वर की मंज़ूरी पा सकें। इस मामले में दाऊद, मसीही माता-पिताओं के लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है! यहोवा ने उन्हें यह अधिकार दिया है कि वे अपने बेटे-बेटियों को “प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण क[रें]।” (इफिसियों 6:4) माता-पिता को चाहिए कि वे हर दिन अपने बच्चों के संग आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा करें और उनके साथ नियमित बाइबल अध्ययन चलाएँ। ऐसा करके वे बच्चों को यहोवा का भय मानने और एक खुशहाल ज़िंदगी बिताने में मदद दे पाएँगे।—व्यवस्थाविवरण 6:6, 7.

हम अपने जीवन में परमेश्‍वर का भय कैसे मान सकते हैं

8, 9. (क) परमेश्‍वर का भय मानते हुए जीवन बिताना ही क्यों जीने का सबसे बढ़िया तरीका है? (ख) अपनी जीभ को बुराई से रोकने का क्या मतलब है?

8 जैसे कि शुरू में बताया गया है, यहोवा का भय मानने का मतलब यह नहीं कि हमारी खुशी छिन जाएगी। दाऊद ने एक सवाल पूछा था: “वह कौन मनुष्य है जो जीवन की इच्छा रखता, और दीर्घायु चाहता है ताकि भलाई देखे?” (भजन 34:12) इससे साफ ज़ाहिर है कि लंबी और खुशियों-भरी ज़िंदगी जीने, साथ ही अपने साथ भला होते हुए देखने के लिए यहोवा का भय मानना सबसे ज़रूरी है। दरअसल, यह कहना बड़ा आसान है कि “मैं परमेश्‍वर का भय मानता हूँ।” मगर इसी बात को अपने चालचलन से साबित कर दिखाना उतना ही मुश्‍किल है। इसलिए दाऊद ने आगे की आयतों में समझाया कि हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम परमेश्‍वर का भय मानते हैं।

9 “अपनी जीभ को बुराई से रोक रख, और अपने मुंह की चौकसी कर कि उस से छल की बात न निकले।” (भजन 34:13) प्रेरित पतरस ने मसीहियों को आपस में भाईचारे की प्रीति दिखाने की सलाह देने के बाद, ईश्‍वर-प्रेरणा से भजन 34:13 का हवाला दिया। (1 पतरस 3:8-12) अपनी जीभ को बुराई से रोकने का मतलब है कि हम ऐसी गपशप ना फैलाएँ जिससे दूसरों को नुकसान हो सकता है। इसके बजाय, हम हमेशा दूसरों से ऐसी बातें करें जिनसे उनकी उन्‍नति हो। इसके अलावा, हम दिलेर होकर सिर्फ सच बोलने की कोशिश करें।—इफिसियों 4:25, 29, 31; याकूब 5:16.

10. (क) समझाइए कि बुराई को छोड़ने का क्या मतलब है। (ख) भलाई करने में क्या शामिल है?

10 “बुराई को छोड़ और भलाई कर; मेल को ढूंढ़ और उसी का पीछा कर।” (भजन 34:14) हम ऐसे कामों से दूर रहते हैं जिनकी परमेश्‍वर निंदा करता है, जैसे लैंगिक अनैतिकता, पोर्नोग्राफी, चोरी, भूतविद्या, खून-खराबा, पियक्कड़पन और ड्रग्स का नशा करना। हम ऐसे मनोरंजन को भी ठुकरा देते हैं जिसमें इस तरह के घिनौने काम बढ़-चढ़कर दिखाए जाते हैं। (इफिसियों 5:10-12) इसके बजाय, हम अपना वक्‍त भलाई करने में बिताते हैं। और भलाई करने का सबसे महान काम है, राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने में नियमित तौर पर हिस्सा लेना। इस तरह, हम दूसरों को उद्धार पाने में मदद देते हैं। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) भलाई करने में ये काम भी शामिल हैं: मसीही सभाओं के लिए तैयारी करना और उनमें हाज़िर होना, दुनिया-भर में हो रहे प्रचार काम के लिए दान देना, अपने राज्य घर की देखभाल करना और ज़रूरतमंद भाई-बहनों को मदद देना।

11. (क) दाऊद ने शांति का पीछा करने की जो बात सिखायी, उसे उसने खुद कैसे लागू किया? (ख) कलीसिया में ‘मेल का पीछा’ करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

11 दाऊद ने मेल या शांति का पीछा करने में एक अच्छी मिसाल कायम की। उसके सामने शाऊल का कत्ल करने के दो मौके आए थे। मगर दोनों ही मौकों पर, उसने शाऊल पर हाथ नहीं उठाया। और बाद में, उसने राजा के साथ फिर से एक अच्छा रिश्‍ता कायम करने के इरादे से पूरे आदर के साथ उससे बात की। (1 शमूएल 24:8-11; 26:17-20) आज अगर कलीसिया में ऐसे हालात पैदा होने का खतरा हो जिनसे कलीसिया की शांति भंग हो जाए, तो ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? हमें ‘मेल को ढूंढ़ना और उसी का पीछा करना’ चाहिए। इसलिए अगर हमें लगता है कि हमारे और किसी भाई या बहन के बीच रिश्‍ते में तनाव आ गया है, तो हमें यीशु की इस सलाह को मानना चाहिए: “पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर।” इसके बाद, हम सच्ची उपासना के बाकी पहलुओं में हिस्सा लेना जारी रख सकते हैं।—मत्ती 5:23, 24; इफिसियों 4:26.

परमेश्‍वर का भय मानने से भरपूर आशीषें मिलती हैं

12, 13. (क) परमेश्‍वर का भय माननेवाले, आज कौन-से फायदे पा रहे हैं? (ख) परमेश्‍वर के वफादार उपासकों को बहुत जल्द कौन-सा बढ़िया इनाम मिलनेवाला है?

12 “यहोवा की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं।” (भजन 34:15) परमेश्‍वर ने दाऊद के साथ जिस तरह व्यवहार किया था, उसका रिकॉर्ड दिखाता है कि दाऊद के ये शब्द सोलह आने सच हैं। आज, यह जानकर हमें कितनी खुशी और कितना चैन मिलता है कि यहोवा हम पर नज़र रखे हुए है। हमें पूरा यकीन है कि वह हमारी ज़रूरतें हमेशा पूरी करेगा, ऐसे वक्‍त में भी जब हम भारी तनाव से गुज़रते हैं। हमें मालूम है कि जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, बहुत जल्द सभी सच्चे उपासकों पर मागोग देश का गोग हमला करनेवाला है और हमें ‘यहोवा के भयानक दिन’ का सामना करना होगा। (योएल 2:11, 31; यहेजकेल 38:14-18, 21-23) उस वक्‍त हमें चाहे जैसे भी हालात से गुज़रना क्यों न पड़े, दाऊद के ये शब्द हम पर भी ज़रूर पूरे होंगे: “धर्मी दोहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उनको सब विपत्तियों से छुड़ाता है।”भजन 34:17.

13 उस समय, यहोवा को अपने महान नाम की महिमा करते देखना अपने आप में एक रोमांचक अनुभव होगा! हमारा दिल पहले से कहीं ज़्यादा, गहरी श्रद्धा और विस्मय से भर जाएगा। दूसरी तरफ, यहोवा के सभी विरोधी उसके हाथों एक शर्मनाक मौत मरेंगे। “यहोवा बुराई करनेवालों के विमुख रहता है, ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले।” (भजन 34:16) इतने शानदार तरीके से छुटकारा पाने के बाद, परमेश्‍वर की धार्मिकता की नयी दुनिया में कदम रखना हमारे लिए क्या ही बढ़िया इनाम होगा!

यहोवा के वादे, जो हमें धीरज धरने में मदद देते हैं

14. विपत्तियों के दौरान धीरज धरने में, कौन-सी आयतें हमें मदद देंगी?

14 जब तक वह समय नहीं आ जाता, तब तक हमें भ्रष्टाचार और नफरत से भरी इस दुनिया में यहोवा की आज्ञा मानने के लिए धीरज धरने की ज़रूरत है। परमेश्‍वर का भय मानने से उसकी आज्ञाओं का पालन करने में बहुत मदद मिलती है। आज हम कठिन समय में जी रहे हैं, इसकी वजह से यहोवा के कुछ सेवकों को मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में, उनका मन टूट जाता है और वे पिसा हुआ महसूस करते हैं यानी उनके हौसले पस्त हो जाते हैं। मगर फिर भी, वे इस बात का पक्का यकीन रख सकते हैं कि अगर वे यहोवा पर भरोसा करें, तो वह उन्हें धीरज धरने में ज़रूर मदद देगा। दाऊद के इन शब्दों से हमें सच्चा दिलासा मिलता है: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” (भजन 34:18) दाऊद ने हिम्मत बँधाते हुए आगे कहा: “धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्‍त करता है।” (भजन 34:19) चाहे हम पर कितनी ही विपत्तियाँ क्यों न आएँ, यहोवा इतना शक्‍तिशाली है कि वह हमें उन सबसे छुटकारा दिला सकता है।

15, 16. (क) भजन 34 की रचना करने के फौरन बाद, दाऊद को किस विपत्ति की खबर मिली? (ख) आज़माइशों के दौरान धीरज धरने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

15 भजन 34 की रचना करने के फौरन बाद, दाऊद को खबर मिलती है कि नोब नगर के रहनेवालों पर आफत का कहर टूट पड़ा है। शाऊल ने उनके साथ-साथ, वहाँ के ज़्यादातर याजकों को भी मौत के घाट उतार दिया है। और जब दाऊद याद करता है कि उसके नोब जाने की वजह से ही शाऊल का क्रोध भड़का है, तो सोचिए उसे कितना दुःख पहुँचा होगा! (1 शमूएल 22:13, 18-21) इसमें कोई शक नहीं कि दाऊद ने अपना दुःख सहने के लिए यहोवा से मदद माँगी होगी। साथ ही, उसे इस आशा से भी काफी दिलासा मिला होगा कि भविष्य में ‘धर्मियों’ को दोबारा जिंदा किया जाएगा।—प्रेरितों 24:15.

16 पुनरुत्थान की आशा, आज हमें भी मज़बूत करती है। हम जानते हैं कि हमारे दुश्‍मन चाहे कुछ भी कर लें, वे हमें ऐसा कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकते जिसकी भरपाई न हो सके। (मत्ती 10:28) दाऊद को भी इस बात का यकीन था जो उसने इन शब्दों में ज़ाहिर किया: “वह [धर्मी की] हड्डी हड्डी की रक्षा करता है; और उन में से एक भी टूटने नहीं पाती।” (भजन 34:20) यीशु के मामले में, यह आयत सचमुच में पूरी हुई थी। हालाँकि यीशु को बहुत ही बेरहमी से मारा गया था, मगर उसकी एक भी हड्डी नहीं “तोड़ी” गयी। (यूहन्‍ना 19:36) भजन 34:20 आज हमारे समय में भी लागू होता है। यह हमें यकीन दिलाता है कि अभिषिक्‍त मसीही और उनके साथी, ‘अन्य भेड़’ के लोग चाहे किसी भी तरह की आज़माइशों से गुज़रें, उन्हें कभी-भी हमेशा के लिए नहीं मिटाया जाएगा। आध्यात्मिक मायने में, उनकी हड्डियाँ कभी नहीं तोड़ी जाएँगी।—यूहन्‍ना 10:16, NW.

17. जो यहोवा के लोगों का विरोध करने से बाज़ नहीं आते, उनके लिए कैसा अंजाम तय है?

17 लेकिन दुष्टों का अंजाम बिलकुल अलग होगा। बहुत जल्द, उन्हें वही काटना पड़ेगा जो उन्होंने बोया है। “दुष्ट अपनी बुराई के द्वारा मारा जाएगा; और धर्मी के बैरी दोषी ठहरेंगे।” (भजन 34:21) जो परमेश्‍वर के लोगों का विरोध करने से बाज़ नहीं आते, उन सबको बहुत ही भयानक अंजाम भुगतना पड़ेगा। जब यीशु मसीह, महिमा के साथ प्रगट होगा, तब वे “अनन्त विनाश का दण्ड पाएंगे।”—2 थिस्सलुनीकियों 1:9.

18. किस मायने में “बड़ी भीड़” के लोगों का आज उद्धार हो चुका है, और भविष्य में उन्हें क्या आशीषें मिलेंगी?

18 दाऊद ने अपने भजन के आखिर में यह भरोसा दिलाया: “यहोवा अपने दासों का प्राण मोल लेकर बचा लेता है; और जितने उसके शरणागत हैं उन में से कोई भी दोषी न ठहरेगा।” (भजन 34:22) राजा दाऊद ने 40 साल की अपनी हुकूमत के आखिर में कहा: “[परमेश्‍वर] मेरा प्राण सब जोखिमों से बचाता आया है।” (1 राजा 1:29) आज जो यहोवा का भय मानते हैं, वे भी बहुत जल्द दाऊद की तरह, अपने बीते दिनों को याद करके खुश होंगे कि परमेश्‍वर ने उनके हरेक पाप के दोष से उन्हें आज़ाद कराया है और उनकी सभी आज़माइशों से छुड़ाया है। आज, ज़्यादातर अभिषिक्‍त मसीहियों को अपना स्वर्गीय इनाम मिल चुका है। इसके अलावा, सभी जातियों से निकली एक “बड़ी भीड़” के लोग, यीशु के बचे हुए अभिषिक्‍त भाइयों के साथ मिलकर परमेश्‍वर की सेवा कर रहे हैं। नतीजा, उन्होंने उसकी नज़रों में शुद्ध ठहरने की आशीष पायी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अपना यह विश्‍वास ज़ाहिर करते हैं कि यीशु के बहाए गए लहू में उनका उद्धार करने की शक्‍ति है। मसीह के आनेवाले हज़ार साल के राज में, उन्हें छुड़ौती बलिदान के सभी फायदे दिलाए जाएँगे और उनकी बदौलत वे समय के गुज़रते सिद्ध किए जाएँगे।—प्रकाशितवाक्य 7:9, 14, 17; 21:3-5.

19. “बड़ी भीड़” के लोगों ने क्या करने की ठान ली है?

19 परमेश्‍वर के उपासकों से बनी “बड़ी भीड़” को ये सारी आशीषें क्यों दी जाएँगी? क्योंकि उन्होंने ठान लिया है कि वे यहोवा का भय मानते रहेंगे, पूरी श्रद्धा और विस्मय के साथ उसकी सेवा करते रहेंगे और उसकी आज्ञा मानते रहेंगे। वाकई, यहोवा का भय मानने से आज हमारी ज़िंदगी खुशहाल बन गयी है। साथ ही, यह हमें भविष्य के मिलनेवाले “सत्य जीवन” को यानी परमेश्‍वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी को “वश में कर” लेने में भी मदद देता है।—1 तीमुथियुस 6:12, 18, 19; प्रकाशितवाक्य 15:3, 4. (w07 3/1)

क्या आपको याद है?

• हमें क्यों परमेश्‍वर का भय मानना चाहिए, और उसका भय मानने का मतलब क्या है?

• परमेश्‍वर के भय का हमारे चालचलन पर कैसा असर होना चाहिए?

• परमेश्‍वर का भय मानने से क्या-क्या फायदे मिलते हैं?

• परमेश्‍वर के कौन-से वादे हमें धीरज धरने में मदद देते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 28 पर तसवीर]

यहोवा का भय माननेवालों के काम पर जब पाबंदी लगायी जाती है, तो वे एहतियात से काम लेते हैं

[पेज 30 पर तसवीर]

अपने पड़ोसियों को राज्य की खुशखबरी सुनाना, दुनिया में भलाई का सबसे महान काम है