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परमेश्‍वर का वचन आपके कदमों को सही राह दिखाए

परमेश्‍वर का वचन आपके कदमों को सही राह दिखाए

परमेश्‍वर का वचन आपके कदमों को सही राह दिखाए

“तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।”—भजन 119:105.

1, 2. क्यों ज़्यादातर इंसान सच्ची शांति और खुशी पाने में नाकाम रहे हैं?

 क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपको सफर के दौरान किसी से रास्ता पूछना पड़ा हो? हो सकता है कि आप अपनी मंज़िल के बहुत करीब थे, मगर आपको ठीक-ठीक पता नहीं था कि किन गलियों में मुड़ना है। या फिर, हो सकता है कि आप भटककर एकदम गलत रास्ते पर चले गए हों। जो भी हो, क्या इन हालात में किसी ऐसे शख्स के बताए रास्ते पर जाना अक्लमंदी नहीं होगी, जो उस इलाके से अच्छी तरह वाकिफ है? बेशक होगी! क्योंकि वह आपको अपनी मंज़िल तक पहुँचने में मदद दे सकता है।

2 इंसान की ज़िंदगी भी एक सफर है। हज़ारों सालों से, उसने यह सफर परमेश्‍वर की मदद के बगैर खुद-ब-खुद तय करने की कोशिश की है। मगर यूँ परमेश्‍वर से आज़ाद होकर असिद्ध इंसान अपने रास्ते से पूरी तरह भटक चुका है। लाख कोशिशों के बावजूद, वह अपनी मंज़िल तक नहीं पहुँच पाया है। यानी वह सच्ची शांति और खुशी पाने में नाकाम रहा है। भला क्यों? ढाई हज़ार से भी ज़्यादा साल पहले, यिर्मयाह नबी ने कहा: “मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्मयाह 10:23) जी हाँ, अगर एक इंसान किसी काबिल शख्स की मदद लिए बगैर अपने कदमों को सही राह दिखाने की कोशिश करेगा, तो उसे निराशा ही हाथ लगेगी। सचमुच, इंसानों को सही मार्गदर्शन की सख्त ज़रूरत है!

3. यहोवा परमेश्‍वर इंसानों को मार्गदर्शन देने में सबसे काबिल क्यों है, और उसने क्या वादा किया है?

3 यहोवा परमेश्‍वर सही मार्गदर्शन देने में सबसे काबिल है। ऐसा क्यों? क्योंकि वह हम इंसानों की फितरत और शख्सियत को हमसे बेहतर समझता है। उसे अच्छी तरह पता है कि इंसान कैसे सही रास्ते से भटककर दूर चले गए हैं। और वह यह भी जानता है कि दोबारा सही राह पर आने के लिए, उन्हें क्या करने की ज़रूरत है। इसके अलावा, सिरजनहार होने के नाते, यहोवा हमेशा से जानता है कि हमारी भलाई किस में है। (यशायाह 48:17) इसलिए हम भजन 32:8 में दिए उसके इस वादे पर पूरा भरोसा रख सकते हैं: “मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मति दिया करूंगा।” इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा ही सबसे बढ़िया मार्गदर्शन देता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि वह हमें कैसे सही राह दिखाता है?

4, 5. परमेश्‍वर के कहे वचन कैसे हमें राह दिखाते हैं?

4 भजनहार ने यहोवा से प्रार्थना में कहा: “तेरा वचन मेरे पांव के लिए दीपक, और मेरे मार्ग के लिए उजियाला है।” (भजन 119:105) बाइबल में, परमेश्‍वर की कही बातें और उसकी चितौनियाँ दी गयी हैं। ये हमें जीवन के मार्ग में आनेवाली रुकावटों को पार करने में मदद दे सकती हैं। वाकई, जब हम बाइबल पढ़ते हैं और उसमें दिए निर्देशनों के मुताबिक चलते हैं, तो हमें खुद इस बात का अनुभव होता जो यशायाह 30:21 में दर्ज़ है: “तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा, मार्ग यही है, इसी पर चलो।”

5 ध्यान दीजिए कि भजन 119:105 बताता है कि परमेश्‍वर का वचन दो तरीकों से काम करता है, जो एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। पहला, यह हमारे पाँव के लिए दीपक का काम देता है। जब हम हर दिन जीवन में आनेवाली मुश्‍किलों का सामना करते हैं, तब हमें अपने कदमों को सही राह दिखाने के लिए बाइबल के सिद्धांतों को मानना चाहिए। क्योंकि तभी हम बुद्धि-भरे फैसले कर पाएँगे और दुनिया के फँदों से बच पाएँगे। दूसरा, बाइबल में दी परमेश्‍वर की चितौनियाँ हमारे मार्ग के लिए उजियाले का काम देती हैं। ये हमें फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी की आशा को ध्यान में रखते हुए, सही चुनाव करने में मदद देती हैं। ये हमारी आगे की राह को रोशन करती हैं, जिससे हम साफ देख पाते हैं कि फलाँ काम करने का अंजाम अच्छा होगा या बुरा। (रोमियों 14:21; 1 तीमुथियुस 6:9; प्रकाशितवाक्य 22:12) अब आइए हम करीबी से जाँचें कि बाइबल में लिखे परमेश्‍वर के वचन कैसे हमारे पाँव के लिए दीपक और हमारे मार्ग के लिए उजियाला साबित हो सकते हैं।

“मेरे पांव के लिये दीपक”

6. किन हालात में परमेश्‍वर के कहे वचन पाँव के लिए दीपक साबित हो सकते हैं?

6 आए दिन हम कई फैसले लेते हैं। कुछ तो बहुत मामूली होते हैं। मगर कुछ फैसले बड़े ही मुश्‍किल होते हैं। जैसे, कभी-कभी हमारे सामने ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं जिनमें हमारी नैतिकता, ईमानदारी और निष्पक्षता की परख होती है। इस तरह के हालात का सामना करने में अगर हम कामयाब होना चाहते हैं, तो हमें अपनी ‘ज्ञानेन्द्रियों को अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्का’ करना होगा। (इब्रानियों 5:14) यही नहीं, हमें परमेश्‍वर के वचन का सही ज्ञान लेने और उसमें दिए सिद्धांतों की अच्छी समझ हासिल करने के ज़रिए, अपने विवेक को तालीम देना होगा। तभी हम ऐसे फैसले कर पाएँगे, जिनसे यहोवा खुश होगा।—नीतिवचन 3:21.

7. एक उदाहरण बताइए जिसमें एक मसीही का अपने साथ काम करनेवालों के संग मेल-जोल बढ़ाने का जी कर सकता है, जो सच्चाई में नहीं हैं।

7 एक उदाहरण लीजिए। क्या आप बालिग हैं और यहोवा का मन आनंदित करने की सच्चे दिल से कोशिश करते हैं? (नीतिवचन 27:11) अगर हाँ, तो हम इसके लिए आपकी तारीफ करते हैं। मगर थोड़ी देर के लिए सोचिए, आपके साथ काम करनेवाले कुछ लोग आपको टिकट देते हैं और कहते हैं कि आप उनके साथ एक खेल देखने जाएँ। उन्हें आपके साथ काम करना अच्छा लगता है, इसलिए वे काम के बाद आपके साथ और भी मेल-जोल बढ़ाना चाहते हैं। आपको शायद पक्का यकीन हो कि वे लोग बुरे नहीं हैं। इतना ही नहीं, उन्हें देखकर आपको लगता है कि वे अच्छे चरित्र के लोग हैं। तो क्या आप उनके साथ जाएँगे? क्या इस तरह उनके साथ मेल-जोल बढ़ाने में कोई खतरा है? इस मामले में, परमेश्‍वर का वचन कैसे आपको सही फैसला लेने में मदद दे सकता है?

8. बाइबल के कौन-से सिद्धांत, हमें संगति के मामले में सोच-समझकर सही फैसला करने में मदद देते हैं?

8 अब आइए बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर गौर करें। सबसे पहला सिद्धांत जो हमारे मन में आ सकता है, वह 1 कुरिन्थियों 15:33 में दिया गया है। इस आयत में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” क्या इस सिद्धांत को मानने का यह मतलब है कि हमें गैर-मसीहियों से कोई नाता नहीं रखना चाहिए? बाइबल ऐसा नहीं कहती। आखिरकार, खुद पौलुस ने “सब मनुष्यों के लिये,” यहाँ तक कि गैर-मसीहियों के लिए भी प्यार और लिहाज़ दिखाया था। (1 कुरिन्थियों 9:22) दरअसल, मसीहियत का सार ही यही है कि हम दूसरों में सच्ची दिलचस्पी दिखाएँ और इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो हमारे विश्‍वासों को नहीं मानते। (रोमियों 10:13-15) सच में, अगर हम खुद को उन लोगों से अलग कर लें जिन्हें शायद हमारी मदद की ज़रूरत है, तो हम ‘सब के साथ भलाई करने’ की सलाह पर कैसे अमल कर सकते हैं?—गलतियों 6:10.

9. साथी कर्मचारियों के साथ किस हद तक नाता रखना चाहिए, इस मामले में बाइबल की कौन-सी सलाह हमें मदद दे सकती है?

9 मगर किसी साथी कर्मचारी के साथ दोस्ताना व्यवहार करने और उसके साथ गहरी दोस्ती गाँठने में ज़मीन-आसमान का फर्क है। इस मामले में बाइबल का एक और सिद्धांत लागू होता है। प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को खबरदार किया: “अविश्‍वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो।” (2 कुरिन्थियों 6:14) “असमान जूए में न जुतो” इन शब्दों का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि गैर-मसीहियों के साथ किसी भी तरह के अनुचित रिश्‍ते नहीं रखने चाहिए। लेकिन कब जाकर किसी साथी कर्मचारी के साथ एक मसीही का रिश्‍ता अनुचित हो सकता है? कब वह बाइबल के इस सिद्धांत के खिलाफ जाकर असमान जुए में जुत जाता है? परमेश्‍वर का वचन, बाइबल इस मामले में आपके कदमों को सही राह दिखाने में मदद दे सकती है।

10. (क) यीशु ने किन लोगों को अपना दोस्त चुना? (ख) किन सवालों की मदद से, एक मसीही संगति के मामले में सही फैसला कर सकता है?

10 यीशु की मिसाल लीजिए, जो इंसानों की शुरूआत से उनसे प्यार करता आया है। (नीतिवचन 8:31) जब वह धरती पर था, तब उसने अपने चेलों के साथ करीबी रिश्‍ता कायम किया था। (यूहन्‍ना 13:1) यहाँ तक कि उसने एक ऐसे आदमी से “प्रेम किया” जो धर्म के बारे में गलत धारणाएँ रखता था। (मरकुस 10:17-22) लेकिन जहाँ तक गहरी दोस्ती करने की बात है, तो इसमें यीशु ने कुछ हदें ठहरायी थीं। उसने उन लोगों के साथ गहरा नाता कभी नहीं रखा जिन्हें उसके पिता की मरज़ी पूरी करने में सच्ची दिलचस्पी नहीं थी। एक मौके पर यीशु ने कहा: “जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।” (यूहन्‍ना 15:14) हो सकता है कि किसी साथी कर्मचारी के साथ आपकी अच्छी पटती हो। मगर खुद से पूछिए: ‘क्या वह इंसान यीशु की आज्ञाओं को मानने के लिए तैयार है? क्या वह यहोवा के बारे में सीखना चाहता/ती है, जिसकी उपासना करने की हिदायत यीशु ने हमें दी है? क्या वह उन्हीं नैतिक स्तरों को मानता/ती है जिन्हें मैं मसीही होने के नाते मानता/ती हूँ?’ (मत्ती 4:10) जब आप अपने साथ काम करनेवालों से बात करेंगे और बाइबल के स्तरों को लागू करने पर डटे रहेंगे, तो आपको इन सवालों के जवाब खुद-ब-खुद मिल जाएँगे।

11. कुछ ऐसे हालात के बारे में बताइए जिनमें हमें परमेश्‍वर के वचनों को अपने पाँवों के लिए दीपक बनने देना चाहिए।

11 ऐसे बहुत-से हालात हैं जिनमें परमेश्‍वर के कहे वचन हमारे पाँव के लिए दीपक का काम दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक बेरोज़गार मसीही नौकरी की तलाश में है और उसके आगे एक नौकरी की पेशकश रखी जाती है। लेकिन काम ऐसा है जिसमें उसे अपना काफी समय और ताकत खर्च करनी पड़ेगी। अगर वह यह नौकरी कबूल करेगा, तो वह कई मसीही सभाओं में हाज़िर नहीं हो पाएगा और न ही सच्ची उपासना से जुड़े दूसरे कामों में हिस्सा ले पाएगा। (भजन 37:25) एक दूसरे मसीही में कोई ऐसा टी.वी. कार्यक्रम या फिल्म वगैरह देखने की ज़बरदस्त इच्छा पैदा हो सकती है, जो बाइबल के सिद्धांतों के बिलकुल खिलाफ है। (इफिसियों 4:17-19) एक और मसीही शायद किसी भाई या बहन के गलती करने पर बहुत जल्द बुरा मान जाए। (कुलुस्सियों 3:13) इन सभी हालात में, हमें परमेश्‍वर के वचन को अपने पाँवों के लिए दीपक बनने देना चाहिए। सच, बाइबल के सिद्धांतों पर चलकर हम ज़िंदगी में आनेवाली हर चुनौती का सामना करने में कामयाब हो सकते हैं। परमेश्‍वर का वचन, “उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।”—2 तीमुथियुस 3:16.

“मेरे मार्ग के लिये उजियाला”

12. परमेश्‍वर के कहे वचन कैसे हमारे मार्ग के लिए उजियाला हैं?

12 भजन 119:105 यह भी बताता है कि परमेश्‍वर के कहे वचन हमारे मार्ग के लिए उजियाला हैं यानी ये हमारी आगे की राह को रोशन करते हैं। आनेवाले कल में क्या होगा, इस बारे में हम अनजान नहीं। क्योंकि हमने बाइबल से सीखा है कि दुनिया के हालात इतने बुरे क्यों हैं और इन सबका अंजाम क्या होगा। जी हाँ, हम समझते हैं कि हम इस दुष्ट संसार के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5) भविष्य में क्या होनेवाला है, इस बात के ज्ञान का हमारी मौजूदा ज़िंदगी पर गहरा असर होना चाहिए। प्रेरित पतरस ने लिखा: “तो जब कि ये सब वस्तुएं, इस रीति से पिघलनेवाली हैं, तो तुम्हें पवित्र चालचलन और भक्‍ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए। और परमेश्‍वर के उस दिन की बाट किस रीति से जोहना चाहिए और उसके जल्द आने के लिये कैसा यत्न करना चाहिए।”—2 पतरस 3:11, 12.

13. वक्‍त की नज़ाकत का हमारे सोच-विचार और जीने के तरीके पर क्या असर होना चाहिए?

13 हमारे सोच-विचार और जीने के तरीके से साफ झलकना चाहिए कि हमें पक्का यकीन है कि “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं।” (1 यूहन्‍ना 2:17) भविष्य के लिए हमें क्या लक्ष्य रखने चाहिए, इस मामले में अगर हम बाइबल के निर्देशनों को माने, तो हम बुद्धि-भरे फैसले कर पाएँगे। उदाहरण के लिए, यीशु ने कहा: “इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती 6:33) यह क्या ही खुशी की बात है कि कई नौजवान यीशु के शब्दों पर विश्‍वास रखते हुए, खुद को पूरे समय की सेवा में लगा रहे हैं! इतना ही नहीं, दूसरे भाई-बहन, यहाँ तक कि पूरे-के-पूरे परिवार खुशी-खुशी ऐसे देशों में जाकर सेवा कर रहे हैं जहाँ राज्य प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है!

14. एक मसीही परिवार ने कैसे अपनी सेवा बढ़ायी?

14 एक मसीही परिवार की मिसाल लीजिए, जिसमें माता-पिता और उनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी। यह परिवार अमरीका से डॉमिनिकन रिपब्लिक के एक कसबे में जा बसा, जहाँ की आबादी 50,000 है। वहाँ की कलीसिया में करीब 130 राज्य प्रचारक हैं। मगर 12 अप्रैल, 2006 को मसीह की मौत के स्मारक के लिए लगभग 1,300 लोग हाज़िर हुए! उस इलाके में आध्यात्मिक खेत ‘कटनी के लिये इतना पक चुका’ है कि वहाँ पहुँचने के पाँच महीने बाद वह पूरा परिवार कुल मिलाकर 30 बाइबल अध्ययन चलाने लगा। (यूहन्‍ना 4:35) पिता कहता है: “कलीसिया में 30 भाई-बहन ऐसे हैं जो मदद देने के लिए दूसरे देशों से आकर यहाँ बस गए हैं। उनमें से करीब 20 अमरीका से हैं और बाकी इटली, कैनडा, न्यू ज़ीलैंड, बहामाज़ और स्पेन से हैं। वे जब यहाँ पहुँचे तो प्रचार में हिस्सा लेने के लिए बड़े बेताब थे। तब से वे पूरे जोश के साथ सेवा में हिस्सा लेते आए हैं और इसका इलाके के भाई-बहनों पर ज़बरदस्त असर हुआ है।”

15. राज्य के कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देने से आपको क्या आशीषें मिली हैं?

15 हम समझ सकते हैं कि कई लोगों के लिए उन देशों में जाकर सेवा करना मुमकिन नहीं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। लेकिन जिन मसीहियों ने ऐसा किया है, वे ढेर सारी आशीषों का आनंद उठा रहे हैं। यही नहीं, जो भाई-बहन अपने हालात में फेरबदल करके सेवा के इस पहलु में हिस्सा ले सकते हैं, अगर वे ऐसा करें तो उन्हें भी भरपूर आशीषें मिलेंगी। आप चाहें कहीं भी सेवा करें, मगर पूरी शक्‍ति से यहोवा की सेवा करने से मिलनेवाली खुशी को अपने हाथों से मत जाने दीजिए। अगर आप राज्य के कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो यहोवा वादा करता है कि वह “तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा” करेगा।—मलाकी 3:10.

यहोवा के मार्गदर्शन से फायदा पाना

16. परमेश्‍वर के वचनों की दिखायी राह पर चलने से हमें क्या फायदे होंगे?

16 जैसा हमने देखा कि यहोवा के कहे वचन हमें दो मिलते-जुलते तरीकों से सही राह दिखाते हैं। ये हमारे पाँव के लिए दीपक का काम देते हैं, यानी हमें सही राह पर आगे बढ़ते रहने में और सही फैसले करने में मदद देते हैं। ये वचन हमारे मार्ग के लिए उजियाले का काम भी देते हैं जिससे हम साफ-साफ देख पाते हैं कि आगे क्या होनेवाला है। इससे हमें पतरस की इस सलाह पर चलने में मदद मिलती है: “अपनी अपनी बुद्धि की कमर बान्धकर, और सचेत रहकर उस अनुग्रह की पूरी आशा रखो, जो यीशु मसीह के प्रगट होने के समय तुम्हें मिलनेवाला है।”—1 पतरस 1:13.

17. बाइबल अध्ययन कैसे हमें परमेश्‍वर के मार्गदर्शन पर चलने में मदद देगा?

17 इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा मार्गदर्शन देता है। मगर सवाल यह है कि क्या आप उसे कबूल करेंगे? यहोवा से मिलनेवाले मार्गदर्शन को समझने के लिए, ठान लीजिए कि आप रोज़ बाइबल पढ़ेंगे। आप जो पढ़ते हैं उस पर मनन कीजिए और इस तरह अलग-अलग मामलों में यहोवा की मरज़ी क्या है, यह समझने की कोशिश कीजिए। और फिर, उसे अपनी ज़िंदगी में लागू करने के तरीकों के बारे में सोचिए। (1 तीमुथियुस 4:15) इसके बाद, जब आपको कोई निजी फैसला लेना होता है, तो अपनी “तर्क-शक्‍ति” का इस्तेमाल कीजिए।—रोमियों 12:1, NW.

18. अगर हम परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक चलें, तो हमें क्या आशीषें मिलेंगी?

18 जब हमें फैसला करना होता है कि हम कौन-सा रास्ता चुनें, तो ऐसे में परमेश्‍वर के वचन में दिए सिद्धांत हमारी समझ बढ़ा सकते हैं और हमें ज़रूरी मार्गदर्शन दे सकते हैं, बशर्ते हम उन सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू करें। हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा के लिखित वचन “साधारण [“नादान,” किताब-ए-मुकद्दस] लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं।” (भजन 19:7) जब हम बाइबल के मुताबिक चलते हैं, तो हमारा विवेक शुद्ध बना रहता है और हमें इस बात का संतोष मिलता है कि हमने परमेश्‍वर को खुश किया है। (1 तीमुथियुस 1:18, 19) अगर हम दिन-ब-दिन परमेश्‍वर के कहे वचनों को अपने कदमों को सही राह दिखाने दें, तो यहोवा हमें आखिर में हमेशा की ज़िंदगी का इनाम देगा।—यूहन्‍ना 17:3. (w07 5/1)

क्या आपको याद है?

• यह क्यों ज़रूरी है कि हम यहोवा परमेश्‍वर की दिखायी राह पर चलें?

• परमेश्‍वर के कहे वचन किस तरह हमारे पाँव के लिए दीपक का काम दे सकते हैं?

• परमेश्‍वर के कहे वचन कैसे हमारे मार्ग के लिए उजियाले का काम दे सकते हैं?

• बाइबल का अध्ययन करने से हमें परमेश्‍वर के मार्गदर्शन पर चलने में कैसे मदद मिलती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 19 पर तसवीर]

कब जाकर अविश्‍वासियों के साथ मेल-जोल रखना बेवकूफी होगी?

[पेज 20 पर तसवीर]

यीशु के करीबी दोस्त वे लोग थे, जो यहोवा की मरज़ी पूरी करते थे

[पेज 21 पर तसवीरें]

क्या हमारे जीने के तरीके से यह ज़ाहिर होता है कि हम राज्य के कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं?