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क्या पुनरुत्थान पर आपको पूरा यकीन है?

क्या पुनरुत्थान पर आपको पूरा यकीन है?

क्या पुनरुत्थान पर आपको पूरा यकीन है?

“धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।”—प्रेरितों 24:15.

1. मौत से बचना आसान क्यों नहीं है?

 “इस दुनिया में दो चीज़ों से बचना नामुमकिन है—कर चुकाने से और मौत से।” यह बात सन्‌ 1789 में अमरीका के राजनेता बेंजमिन फ्रैंकलिन ने लिखी थी। कुछ लोगों को उसकी यह बात एकदम सच लगती है। मगर दुनिया में ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो कर से बचने के लिए तरह-तरह के तिकड़म आज़माते हैं। लोग किसी तरह कर चुकाने से तो बच जाते हैं, मगर मौत से बचना इतना आसान नहीं। हाँ, कुछ वक्‍त के लिए उसे टाला ज़रूर जा सकता है। मगर एक-न-एक-दिन तो यह आ ही जाती है। सभी मुरदों की कब्र, शीओल ने न जाने हमारे कितने अज़ीज़ों को अपनी आगोश में ले लिया है, फिर भी उसकी प्यास बुझती ही नहीं। (नीतिवचन 27:20) मगर ज़रा एक बात पर ध्यान दीजिए, जिससे हमें दिलासा मिल सकता है।

2, 3. कुछ लोगों को कैसे मौत का मुँह नहीं देखना पड़ेगा? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

2 यहोवा का वचन पुनरुत्थान की पक्की आशा देता है, यानी यह आशा कि मरे हुए दोबारा जी उठेंगे। यह आशा न तो कोई कोरी-कल्पना है और ना ही इस जहान की कोई ताकत यहोवा को इसे हकीकत में बदलने से रोक सकती है। लेकिन आज ज़्यादातर लोग इस बात से अनजान हैं कि ऐसे कुछ लोग हैं, जो वाकई मौत का मुँह नहीं देखेंगे। वह कैसे? बहुत जल्द, जब इस दुनिया पर ‘बड़ा क्लेश’ आएगा, तब अनगिनत लोगों की एक “बड़ी भीड़” उसमें से ज़िंदा बच निकलेगी। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 10, 14) इसके बाद वे हमेशा के लिए जी सकेंगे। इस मायने में वे मौत का मुँह नहीं देखेंगे। इतना ही नहीं, उस वक्‍त तक ‘मृत्यु का नाश’ किया जा चुका होगा।—1 कुरिन्थियों 15:26.

3 पुनरुत्थान पर हमें उतना ही यकीन होना चाहिए, जितना कि प्रेरित पौलुस को था। उसने कहा: “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों 24:15) आइए हम पुनरुत्थान के सिलसिले में तीन सवालों पर चर्चा करें। पहला, क्या बात हमारी इस आशा को पक्का करती है? दूसरा, पुनरुत्थान की आशा से आप कैसे दिलासा पा सकते हैं? और तीसरा, यह आशा आपकी मौजूदा ज़िंदगी पर क्या असर कर सकती है?

पुनरुत्थान—एक पक्की आशा

4. यहोवा के मकसद के पूरा होने में पुनरुत्थान कैसे एक खास भूमिका अदा करता है?

4 ऐसी कई बातें हैं, जो पुनरुत्थान की आशा को पक्का करती हैं। उनमें सबसे अहम बात यह है कि यहोवा के मकसद के पूरा होने में पुनरुत्थान की एक खास भूमिका है। याद कीजिए, शैतान ने इंसानों को पाप करने के लिए बहकाया और इसका अंजाम था मौत। इसलिए यीशु ने शैतान के बारे में कहा: “वह तो आरम्भ से हत्यारा है।” (यूहन्‍ना 8:44) मगर यहोवा ने वादा किया कि उसकी “स्त्री,” यानी स्वर्ग में मौजूद उसका पत्नी-समान संगठन एक “वंश” पैदा करेगा। और वह वंश उस ‘पुराने सांप,’ शैतान का सिर कुचलकर उसका नामो-निशान मिटा डालेगा। (उत्पत्ति 3:1-6, 15; प्रकाशितवाक्य 12:9, 10; 20:10) जैसे-जैसे यहोवा ने उस मसीहाई वंश से जुड़ा अपना मकसद ज़ाहिर किया, यह साफ होता गया कि यह वंश शैतान को नाश करने के अलावा और भी कुछ करेगा। इस बारे में परमेश्‍वर का वचन कहता है: “परमेश्‍वर का पुत्र इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे।” (1 यूहन्‍ना 3:8) आदम के पाप की वजह से आयी मौत, शैतान के कामों में से सबसे विनाशकारी है, जिसे यहोवा यीशु मसीह के ज़रिए हमेशा के लिए मिटा देगा। और इस मकसद के पूरा होने में पुनरुत्थान और यीशु का छुड़ौती बलिदान बहुत अहम भूमिका अदा करते हैं।—प्रेरितों 2:22-24; रोमियों 6:23.

5. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि पुनरुत्थान से यहोवा के नाम की महिमा होगी?

5 यहोवा ने अपने पवित्र नाम की महिमा करने की ठानी है। शैतान ने परमेश्‍वर के नाम पर कीचड़ उछाला है और उसके खिलाफ झूठ बोला है। उसने आदम और हव्वा से यह झूठ बोला कि यहोवा ने जिस पेड़ का फल खाने से उन्हें मना किया था, उसे खाने से वे ‘निश्‍चय न मरेंगे।’ (उत्पत्ति 2:16, 17; 3:4) तब से शैतान ने इस तरह के कई झूठ फैलाए हैं। जैसे, उसने यह झूठी शिक्षा फैलायी है कि इंसान के मरने पर उसका शरीर तो नाश हो जाता है, मगर आत्मा अमर रहती है। लेकिन यहोवा पुनरुत्थान के ज़रिए इन सभी झूठी शिक्षाओं का परदाफाश कर देगा। वह हमेशा के लिए साबित कर देगा कि सिर्फ वही ज़िंदगी बचा सकता है और वही मरे हुओं को दोबारा ज़िंदगी दे सकता है।

6, 7. लोगों को दोबारा ज़िंदा करने के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है, और हम इस मामले में उसके जज़बातों को कैसे जानते हैं?

6 यहोवा मरे हुओं को ज़िंदा करने के लिए तरसता है। यह हम कैसे जानते हैं? इस मामले में बाइबल हमें यहोवा के जज़बातों के बारे में साफ-साफ बताती है। मिसाल के लिए, वफादार अय्यूब के इन शब्दों पर गौर कीजिए जो उसने ईश्‍वर-प्रेरणा से कहे थे: “यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छुटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता। तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती [या “अपने हाथ के काम के लिए तू तरसेगा,” NW]।” (अय्यूब 14:14, 15) इन शब्दों का क्या मतलब है?

7 अय्यूब को पता था कि मरने के बाद, उसे कुछ वक्‍त के लिए कब्र में इंतज़ार करना होगा, जब तक कि उसे ज़िंदा नहीं किया जाता। इंतज़ार की इस घड़ी को उसने “कठिन सेवा” कहा, क्योंकि वह जानता था कि छुटकारे का इंतज़ार करने के सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं होगा। मगर उसे पूरा यकीन था कि उसका छुटकारा ज़रूर होगा। वह क्यों? क्योंकि वह यहोवा के जज़बातों से वाकिफ था। यहोवा अपने इस वफादार सेवक को दोबारा देखने के लिए ‘तरस रहा है।’ जी हाँ, परमेश्‍वर मरे हुए सभी धर्मी लोगों को वापस ज़िंदा करने की दिली तमन्‍ना रखता है। उनके अलावा, वह दूसरों को भी धरती पर फिरदौस में जीने का मौका देगा। (लूका 23:43, किताब-ए-मुकद्दस; यूहन्‍ना 5:28,29) परमेश्‍वर के इस मकसद को पूरा करने से भला कौन उसे रोक सकता है?

8. भविष्य के लिए हमारी आशा को यहोवा ने कैसे “प्रमाणित” या पक्का किया है?

8 यीशु के पुनरुत्थान से हमें भविष्य के लिए पक्की गारंटी मिलती है। पौलुस ने अथेने में एक भाषण देते वक्‍त यह ऐलान किया था: “[परमेश्‍वर] ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” (प्रेरितों 17:31) पुनरुत्थान की बात सुनकर वहाँ मौजूद कुछ लोगों ने पौलुस की ठट्ठा उड़ायी। लेकिन कुछ लोगों ने उसका विश्‍वास किया और वे मसीही बने। हो सकता है यह बात उनके दिल को छू गयी हो कि पुनरुत्थान की आशा प्रमाणित या पक्की है। यहोवा ने यीशु को ज़िंदा करके सबसे बड़ा करिश्‍मा किया। उसने उसे एक शक्‍तिशाली आत्मिक प्राणी के रूप में ज़िंदा किया। (1 पतरस 3:18) यीशु धरती पर आने से पहले जितना महान था, उससे कहीं ज़्यादा महान वह पुनरुत्थान के बाद किया गया। आज वह अमर है और यहोवा के बाद सबसे शक्‍तिशाली हस्ती है। इसलिए अब वह अपने पिता से शानदार ज़िम्मेदारियाँ पाने के लिए बिलकुल तैयार है। दूसरों का पुनरुत्थान करने के लिए यहोवा यीशु का ही इस्तेमाल करता है, फिर चाहे वह पुनरुत्थान स्वर्ग में जीने के लिए हो या धरती पर। यीशु ने खुद कहा था: “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं।” (यूहन्‍ना 5:25; 11:25) यहोवा ने अपने बेटे को मरे हुओं में से जिलाकर सभी वफादार लोगों को पुनरुत्थान की पक्की गारंटी दी है।

9. बाइबल कैसे साबित करती है कि पुनरुत्थान एक हकीकत है?

9 पुनरुत्थान कई लोगों की आँखों के सामने किया गया था और ये घटनाएँ परमेश्‍वर के वचन में दर्ज़ हैं। बाइबल हमें आठ लोगों के पुनरुत्थान की ब्यौरेदार जानकारी देती है, जिन्हें धरती पर फिर से ज़िंदा किया गया था। इन चमत्कारों को चोरी-छिपे नहीं, बल्कि सरेआम और अकसर कई लोगों के सामने किया गया था। लाजर की मिसाल लीजिए, जिसे मरे चार दिन हो गए थे। यीशु ने उसे उन सबके सामने ज़िंदा किया, जो वहाँ उसकी मौत का मातम मनाने के लिए जमा हुए थे। उनमें बेशक उसके परिवारवाले, दोस्त और पड़ोसी शामिल थे। लाजर का पुनरुत्थान इस बात का ज़बरदस्त सबूत था कि यीशु परमेश्‍वर का भेजा हुआ है और इस घटना को यीशु के दुश्‍मन, यानी धर्मगुरु भी झुठला न सके। तभी उन्होंने यीशु के साथ-साथ लाजर को भी मार डालने की साज़िश रची! (यूहन्‍ना 11:17-44, 53; 12:9-11) जी हाँ, हम पक्का यकीन रख सकते हैं कि पुनरुत्थान वाकई एक हकीकत है! परमेश्‍वर ने बीते ज़माने में हुए पुनरुत्थान की घटनाओं को इसलिए दर्ज़ करवाया है, ताकि उन्हें पढ़कर हमें दिलासा मिले और हमारा विश्‍वास मज़बूत हो।

पुनरुत्थान की आशा से दिलासा पाना

10. बाइबल में दर्ज़ पुनरुत्थान के वाकयों से दिलासा पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

10 हो सकता है, आपने मौत को बहुत करीबी से देखा हो। क्या ऐसे में आपका मन दिलासा पाने को तरसता है? यकीन मानिए, बाइबल में दर्ज़ पुनरुत्थान के वाकये आपको दिलासा दे सकते हैं। जब आप उन वाकयों को पढ़ेंगे, उन पर मनन करेंगे और मन की आँखों से उन घटनाओं को होते देखेंगे, तो पुनरुत्थान की आशा आपके लिए और भी पक्की हो जाएगी। (रोमियों 15:4) ये कोई मनगढ़ंत कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि ये घटनाएँ सचमुच में घटी थीं। और उनमें बताए लोग हमारे-आपके जैसे ही हकीकत में जीए थे। आइए थोड़ी देर के लिए उनमें से एक वाकये पर गौर करें। वह है, बाइबल में दर्ज़ सबसे पहला पुनरुत्थान।

11, 12. (क) सारपत की विधवा पर क्या कहर टूट पड़ा था, और शुरू में उसने कैसा रवैया दिखाया? (ख) बताइए कि विधवा की खातिर, यहोवा ने एलिय्याह को क्या करने की शक्‍ति दी।

11 यह तब की बात थी, जब भविष्यवक्‍ता एलिय्याह कुछ हफ्तों से सारपत की विधवा के यहाँ मेहमान बनकर, उसके घर के ऊपरवाले कमरे में ठहरा था। वह बहुत ही मायूसी-भरा दौर था। चारों तरफ सूखा और भयंकर अकाल पड़ा था। कई लोग तिल-तिलकर मर रहे थे। उस अकाल के दौरान यहोवा ने पहले भी एक चमत्कार करके इस विधवा को उसके विश्‍वास का प्रतिफल दिया था। यह तब की बात थी, जब विधवा और उसके बेटे के पास सिर्फ एक वक्‍त का ही खाना बचा था और वे भूखों मरनेवाले थे। तभी यहोवा ने एलिय्याह के ज़रिए ऐसा चमत्कार किया था कि उनके पास बचा मैदा और तेल कभी खत्म नहीं हुआ। मगर अब, इस विधवा पर एक कहर टूट पड़ा। अचानक उसका बेटा बीमार पड़ गया और देखते-ही-देखते उसकी साँसें बंद हो गयी। उस बेचारी के तो पैरों तले ज़मीन खिसक गयी! पति के बगैर ज़िंदगी गुज़ारना वैसे ही मुश्‍किल था और अब उसका एकलौता बेटा भी उसे छोड़कर चला गया। दुःख के मारे वह इस कदर बावली हो गयी कि उसने एलिय्याह और उसके परमेश्‍वर यहोवा को अपने बेटे की मौत के लिए दोषी ठहराया। अब एलिय्याह क्या करता?

12 एलिय्याह ने उस विधवा को झूठा इलज़ाम लगाने के लिए फटकारा नहीं। इसके बजाय उसने कहा: “अपना बेटा मुझे दे।” फिर वह बच्चे की लाश को लेकर ऊपरवाले कमरे में गया। और उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से बच्चे की ज़िंदगी लौटाने की मिन्‍नतें कीं। आखिरकार यहोवा ने बच्चे को ज़िंदा कर दिया! जब एलिय्याह ने बच्चे को साँस लेते देखा, तो अंदाज़ा लगाइए कि एलिय्याह के चेहरे पर कैसी खुशी छा गयी होगी। धीरे से उस बच्चे ने अपनी पलकें खोलीं। उसकी आँखों में एक नयी चमक थी। एलिय्याह बच्चे को नीचे लेकर आया और उसे उसकी माँ को सौंपते हुए कहा: “देख तेरा बेटा जीवित है।” उस विधवा की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था। उसने एलिय्याह से कहा: “अब मुझे निश्‍चय हो गया है कि तू परमेश्‍वर का जन है, और यहोवा का जो वचन तेरे मुंह से निकलता है, वह सच होता है।” (1 राजा 17:8-24) इस चमत्कार से उस विधवा का यहोवा और उसके नबी पर विश्‍वास और भी मज़बूत हो गया।

13. विधवा के बेटे के पुनरुत्थान का वाकया आज हमें क्या दिलासा देता है?

13 इस तरह के वाकयों पर मनन करने से आपको बेशक दिलासा मिलेगा। इन वाकयों से साफ ज़ाहिर होता है कि यहोवा में हमारे दुश्‍मन, मौत का नामो-निशान मिटाने की ताकत है। ज़रा उस समय के बारे में सोचिए जब जितने कब्रों में हैं, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा। तब धरती पर रहनेवाले हज़ारों लोग, उस विधवा की तरह अपने अज़ीज़ों को वापस पाकर खुशी से झूम उठेंगे! जब यहोवा खुशी-खुशी अपने बेटे को बड़े पैमाने पर पुनरुत्थान करने की आज्ञा देगा, तो स्वर्ग में भी क्या ही खुशी का आलम होगा! (यूहन्‍ना 5:28, 29) क्या मौत ने आपके किसी अज़ीज़ को आपसे छीन लिया है? तो फिर यह जानकर आपको कितना चैन मिला होगा कि यहोवा मरे हुओं को ज़िंदा करने की न सिर्फ ताकत, बल्कि इच्छा भी रखता है!

आपकी आशा का आपकी मौजूदा ज़िंदगी पर असर

14. पुनरुत्थान की आशा आपकी मौजूदा ज़िंदगी पर क्या असर कर सकती है?

14 पुनरुत्थान की आशा आपकी मौजूदा ज़िंदगी पर क्या असर कर सकती है? जब आप मुश्‍किलों, समस्याओं, ज़ुल्मों या खतरों का सामना करते हैं, तो यह आशा आपको ताकत दे सकती है। शैतान चाहता है कि आप मौत से इस कदर खौफ खाएँ कि अपनी जान बचाने के लिए आप अपने ईमान तक को बेचने के लिए तैयार हो जाएँ। याद कीजिए कि उसने यहोवा से क्या कहा था: “प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।” (अय्यूब 2:4) यह कहकर शैतान ने हम सब पर घिनौना इलज़ाम लगाया है, आप पर भी। क्या यह सच है कि अगर आपकी जान पर बन आए, तो आप परमेश्‍वर की सेवा करना छोड़ देंगे? पुनरुत्थान की आशा पर मनन करने से आपका यह इरादा और भी बुलंद हो जाएगा कि चाहे जो भी हो, आप यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ेंगे।

15. खतरों का सामना करते वक्‍त, मत्ती 10:28 में दर्ज़ यीशु के शब्द हमें कैसे दिलासा दे सकते हैं?

15 यीशु ने कहा था: “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उन से मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है।” (मत्ती 10:28) हमें शैतान से या धरती पर उसके नुमाइंदों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। माना कि उसके कुछ नुमाइंदे हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं, यहाँ तक कि हमारी जान भी ले सकते हैं। मगर हमें मारकर भी वे हमें हमेशा का नुकसान नहीं पहुँचा सकते। क्योंकि यहोवा अपने वफादार सेवकों को पहुँचे किसी भी नुकसान की भरपाई कर सकता है, यहाँ तक कि उन्हें मौत से भी ज़िंदा कर सकता है। और वह ऐसा ज़रूर करेगा। हमें सिर्फ यहोवा का भय मानना चाहिए और सिर्फ उसी को गहरी श्रद्धा और आदर देना चाहिए। क्योंकि वही शरीर और आत्मा दोनों को गेहन्‍ना में नाश कर सकता है, यानी एक इंसान की मौजूदा ज़िंदगी और हमेशा की ज़िंदगी की आशा छीन सकता है। मगर खुशी की बात यह है कि यहोवा नहीं चाहता कि आप पर कभी ऐसी नौबत आए। (2 पतरस 3:9) पुनरुत्थान की आशा की वजह से हम यहोवा के सेवक हमेशा भरोसा रख सकते हैं कि हमारा भविष्य सही मायनों में सुरक्षित है। अगर हम वफादार बने रहेंगे, तो हमें हमेशा की ज़िंदगी ज़रूर मिलेगी। और शैतान और उसकी जी-हुज़ूरी करनेवाले हमसे यह इनाम छीन नहीं सकते।—भजन 118:6; इब्रानियों 13:6.

16. पुनरुत्थान की आशा होने की वजह से हम किन बातों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देंगे?

16 अगर पुनरुत्थान की आशा पर हमें पूरा यकीन है, तो इसका असर ज़िंदगी के बारे में हमारे नज़रिए पर भी हो सकता है। हमें एहसास होगा कि चाहे “हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं।” (रोमियों 14:7, 8) इसलिए हम किन बातों को ज़िंदगी में पहली जगह देंगे, यह तय करते वक्‍त हम पौलुस की इस सलाह को मानेंगे: “इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्‍वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” (रोमियों 12:2) आज बहुत-से लोग अंधाधुंध अपनी हर ख्वाहिश, हर सपना और हर लालसा को पूरा करने में लगे हुए हैं। उनकी नज़र में ज़िंदगी बस दो पल की है, इसलिए वे इसका जितना मज़ा लूट सकते हैं, लूट रहे हैं। और अगर उनमें भक्‍ति नाम की कोई चीज़ है भी, तो वह ‘परमेश्‍वर की सिद्ध इच्छा’ से बिलकुल भी मेल नहीं खाती।

17, 18. (क) यहोवा का वचन कैसे कबूल करता है कि इंसान की ज़िंदगी छोटी है, मगर यहोवा हमारे लिए क्या चाहता है? (ख) हम हर दिन यहोवा की स्तुति करने के लिए क्यों उभारे जाते हैं?

17 हाँ, यह सच है कि हमारी ज़िंदगी सचमुच दो पल की है। “वह जल्दी कट जाती है,” और कुछ 70-80 साल में हम चले ‘जाते हैं।’ (भजन 90:10) इंसान की ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं, वह हरी घास, ढलती हुई छाया और श्‍वास के समान है। (भजन 103:15; 144:3, 4) मगर परमेश्‍वर ने यह हरगिज़ नहीं चाहा था कि हम ज़िंदगी के कुछ साल बड़े होने में और ज्ञान और तजुरबा हासिल करने में बिता दें। फिर बाकी के बचे-खुचे साल बुढ़ापे और बीमारी का सामना करने में बिता दें और आखिरकार एक दिन मर जाएँ। यहोवा ने इंसानों को हमेशा तक जीने की इच्छा के साथ बनाया है। बाइबल कहती है: “उस ने मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्‍न किया है।” (सभोपदेशक 3:11) क्या परमेश्‍वर इतना बेरहम है कि हमारे अंदर यह इच्छा डालकर उसे पूरा करना नामुमकिन कर दे? नहीं, वह ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि “परमेश्‍वर प्रेम है।” (1 यूहन्‍ना 4:8) वह मरे हुओं का पुनरुत्थान करके उनके लिए हमेशा की ज़िंदगी पाना ज़रूर मुमकिन बनाएगा।

18 पुनरुत्थान की आशा की बदौलत ही हम एक सुरक्षित भविष्य की आस लगा सकते हैं। हमें यह सोचकर हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए कि हमारी ज़िंदगी छोटी है और इसलिए हमें कुछ हासिल करने या कुछ बनने के लिए अभी-के-अभी अपनी काबिलीयतों को इस्तेमाल करना चाहिए। और न ही हमें उस संसार का ‘उपभोग करने में लिप्त हो जाना’ (NHT) चाहिए, जो जल्द ही मिटनेवाला है। (1 कुरिन्थियों 7:29-31; 1 यूहन्‍ना 2:17) जिन लोगों के पास भविष्य की कोई पक्की आशा नहीं है, उनके मुकाबले हमारे पास यह बढ़िया इनाम पाने की आशा है: अगर हम यहोवा परमेश्‍वर के वफादार रहेंगे, तो हम उसका गुणगान करने और ज़िंदगी का पूरा-पूरा मज़ा लेने के लिए अनंतकाल तक ज़िंदा रहेंगे। तो फिर आइए, हम हर दिन पूरे दिल से यहोवा की स्तुति करें जिसकी बदौलत पुनरुत्थान की आशा हमारे लिए एक हकीकत है! (w07 5/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• हमें पुनरुत्थान की आशा के बारे में कैसा महसूस होना चाहिए?

• ऐसी क्या बातें हैं, जो पुनरुत्थान की आशा को पक्का करती हैं?

• पुनरुत्थान की आशा से दिलासा पाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

• पुनरुत्थान की आशा आपके जीने के तरीके पर क्या असर कर सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]